जोधपुर से जैसलमेर की रेल यात्रा (A Train Trip from Jodhpur to Jaisalmer)

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आपने जोधपुर के क्लॉक टावर और कुछ प्रमुख मंदिरों के बारे में पढ़ा, जोधपुर घूमने के बाद हम रात्रि ट्रेन पकड़कर जैसलमेर के लिए प्रस्थान कर चुके है ! अब आगे, रात को जब हमारी ट्रेन जोधपुर से चली तभी कुछ दलाल हमारी कोच में घूम रहे थे, जो जैसलमेर में सस्ता होटल दिलाने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाते है ! ट्रेन के हर कोच में ऐसे 2-3 दलाल रहते है, रात को ट्रेन चलते ही ये यात्रियों में से अपना शिकार ढूंढना शुरू कर देते है ! चलती ट्रेन में होटल के पम्पलेट बांटे जाते है जिसमें होटल के कमरों की फोटो, और वहां मिलने वाली सुख-सुविधाएं से सम्बंधित जानकारी रहती है ! इसी पम्पलेट में होटल सस्ता देने का कारण भी बताया जाता है, जिसे पढ़कर अच्छे-खासे पढ़े लिखे आदमी भी आसानी से इन दलालों के जाल में फँस जाते है ! खासतौर से अगर कोई जैसलमेर पहली बार आ रहा हो तो उसका इनके जाल में फंसने की पूरी संभावना रहती है, ऐसे ही दलाल जयपुर से जैसलमेर आने वाली ट्रेन में भी घूमते रहते है ! मेरी आप लोगों से अपील है कि अगर आप जैसलमेर घूमने आ रहे है तो इन दलालों से दूर ही रहे, वरना आपका घूमने का मजा तो किरकिरा होगा ही, आप बुरे अनुभव के साथ यहाँ से वापिस जायेंगे !

मंदिर पैलेस का एक दृश्य

वैसे तो अक्सर ये दलाल बड़े समूह या परिवार को ही अपना निशाना बनाते है लेकिन अगर ज़रूरत पड़े तो कभी-2 ये छोटे समूह को भी अपनी निशाना बनाने से नहीं हिचकते ! हमारे सामने वाली बर्थ पर कुछ गुजराती लड़के सफ़र कर रहे थे, ये 8 लडको का एक समूह था, इन लड़कों को दलालों ने बड़ी आसानी से अपनी बातों में उलझा लिया ! होटल के अलावा दलालों ने इन लड़कों को स्टेशन से होटल तक ले जाने के लिए फ्री में गाडी की व्यवस्था करवाने का भी आश्वासन दिया ! ये सुनकर सभी लड़के बहुत खुश थे, शायद मन ही मन सोच रहे थे कि बिना कहीं गए सस्ता होटल मिल गया ! लेकिन मेरे मन में कुछ अलग ही विचार चल रहे थे, जैसलमेर अच्छा-ख़ासा शहर है, यहाँ पर्यटक भी खूब आते है फिर ये सस्ता होटल क्यों दे रहे है और वो भी प्रचार करके ! कोशिश तो इन्होनें हमें भी फंसाने की पूरी की, लेकिन हम सतर्क थे और इनके बताए होटल को एक अतिरिक्त विकल्प के रूप में देख रहे थे ! वैसे, ये इकलौता समूह नहीं था जो इनके झांसे में आया, हमसे अगले केबिन में भी कुछ लोग थे जो इनसे काफी प्रभावित थे ! चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है, रात के बारह बजने को है और हम सब सोने की तैयारी में लगे है, आखिर, घूमने के साथ-2 आराम भी ज़रूरी है !
जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य
जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

जोधपुर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य
ट्रेन के अन्दर इन्हीं होटलों के एजेंट घूमते रहते है

ट्रेन के अन्दर इन्हीं होटलों के एजेंट घूमते रहते है
ट्रेन के अन्दर इन्हीं होटलों के एजेंट घूमते रहते है


इसलिए हम दोनों अपनी-2 सीट पर आराम करने चले गए, दिनभर की थकान के कारण हमें नींद आने में ज्यादा समय नहीं लगा और सुबह जब नींद खुली तो हमारे केबिन के सभी लोग अपना-2 सामान समेटने में लगे थे ! इसका मतलब स्टेशन आने वाला था, हमने भी अपने-2 कम्बल लपेट कर बैग में रख लिए और जूते पहनकर तैयार हो गए ! अब सभी लोग बेसब्री से स्टेशन आने का इन्तजार करने लगे, गुजराती लड़कों में से एक ने तो उस दलाल को फ़ोन भी मिला दिया, जो रात को ट्रेन में घूम रहे थे ! उधर से आवाज़ आई कि मेरा आदमी गाडी लेकर स्टेशन पर तुम्हारा इंतजार कर रहा है, मैंने उसे तुम्हारा नंबर दे दिया है, लड़के के कहने पर उस दलाल ने अपने आदमी का नंबर भी इन्हें दे दिया ! ट्रेन अपने निर्धारित समय पर स्टेशन पर पहुंची, ट्रेन से उतरकर सभी लोग प्लेटफार्म से होते हुए स्टेशन के बाहर पहुंचे ! यहाँ कई गाड़ियाँ खड़ी थी, कुछ ऑटो वाले भी थे, ये सभी लोग ट्रेन से उतरकर आए यात्रियों को होटल दिलाने का लालच देकर अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास कर रहे थे ! सुबह के 6 बज रहे थे लेकिन सर्दियों का मौसम होने के कारण चारों तरफ अभी अँधेरा ही था, भयंकर ठण्ड के कारण चाय पीने की तलब भी होने लगी थी इसलिए हम पैदल ही स्टेशन से बाहर आ गए !
जैसलमेर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य
स्टेशन से निकलकर अपनी बाईं ओर सड़क के किनारे कुछ दूर चलने के बाद हम एक चाय की स्टाल पर जाकर रुके ! 2 चाय का आदेश देकर हम वहीं पास में जल रहे एक अलाव के पास बैठकर हाथ सेंकते रहे, जब तक हमारी चाय बनकर तैयार हुई हमने चाय वाले से आस-पास के होटलों से सम्बंधित ज़रूरी जानकारी ले ली ! 10 मिनट बाद हमारी चाय तैयार हो गई, हम जब यहाँ आकर बैठे थे तो हमारे मन में अनेकों सवाल थे लेकिन जब चाय पीकर यहाँ से उठे तो अधिकतर सवालों के जवाब हमें मिल चुके थे ! अपना-2 बैग लेकर हम वापिस स्टेशन की ओर चल दिए, स्टेशन के सामने से होते हुए आधा किलोमीटर चलने के बाद हम मुख्य मार्ग को छोड़कर अपनी दाईं ओर जा रहे एक मार्ग पर मुड गए, इस मार्ग पर थोड़ी दूर जाने पर एक कतार में कई होटल थे ! बारी-2 से हमने कई होटलों में पता किया लेकिन क्रिसमस का समय होने के कारण कोई भी होटल खाली नहीं मिला ! थक-हारकर हमने भी उस होटल वाले को फ़ोन किया जिसका पता रात को ट्रेन में हमें एक दलाल ने दिया था, किस्मत से ये होटल उसी क्षेत्र में था जहाँ हम घूम रहे थे !
जैसलमेर रेलवे स्टेशन के बाहर का एक दृश्य
कुछ देर बाद हम अपना सामान लेकर इस होटल में पहुंचे, होटल के एक कर्मचारी से हमने कमरा लेने की बात की तो उसने हमें कुछ देर रिसेप्शन पर इन्तजार करने को कहा ! जितनी देर मैंने बैठकर इन्तजार किया इतने में देवेन्द्र जाकर नित्य-क्रम से फारिक हो आया, 10-15 मिनट बीत चुके थे लेकिन हमसे मिलने कोई नहीं आया ! हमने फिर से होटल के एक कर्मचारी को बुलाकर पुछा तो वो बोला, कमरा थोड़ी देर में खाली होने वाला है, तब तक आप दोनों रिसेप्शन पर अपना सामान रखकर नहा-धोकर फारिक हो जाओ, हमारी गाड़ी घंटे भर में सम के लिए निकलने वाली है ! मैं बोला, एक भाई तो फारिक हो चुका है कमरा मिल जायेगा तो मैं भी फारिक हो लूँगा, और रही बात सम जाने की तो वो हम अपने हिसाब से देखेंगे ! आज हमारा मन जैसलमेर घूमने का है, आज आस-पास की जगहें घूमकर सम के लिए तो हम कल ही निकलेंगे ! ये सुनकर पहले तो होटल वाले ने हमें ये कहकर मनाने की कोशिश की कि इतनी दूर से जैसलमेर घूमने आए हो तो सम में जाकर कैमल सफारी का मजा लो, यहाँ जैसलमेर में तो घूमने का कुछ नहीं है ! कुछ नहीं है से क्या मतलब, मैं जो ये लिस्ट लेकर घूम रहा हूँ वो जगहें क्या यहाँ से सम चली गई है, मैंने अपनी जेब से जैसलमेर में घूमने की जगहों की लिस्ट निकालकर उसे दिखाते हुए कहा !

कुछ देर तक वो हमें सम ले जाने के लिए मनाने में लगा रहा, लेकिन जब उसकी दाल नहीं गली तो आखिर में वो बोला, कमरा लेना है तो हमारे साथ सम जाना ही पड़ेगा ! मैं बोला नहीं जाना तेरे साथ, बता कोई जबरदस्ती है क्या ? मामला गरमाते देख, देवेन्द्र ने उससे सम जाने का खर्च पूछ ही लिया, इस पर वो बोला, हमारे पास दो पैकेज है एक में 3000 रूपए प्रति व्यक्ति और दूसरे में 5000 रूपए प्रति व्यक्ति ! 5000 वाले में टेंट में रात्रि विश्राम और भोजन के अलावा, राजस्थानी संगीत, नृत्य और भी ना जाने क्या-क्या ? अब तक मैं सारा मामला समझ चुका था, मैं बोला, जिस आदमी ने हमें यहाँ भेजा है ट्रेन में तो वो बोल रहा था 400-500 रूपए का कमरा मिल जायेगा और यहाँ तुम्हारी अलग ही नौटंकी है ! इसलिए तुमने अपने दलाल ट्रेन में भेज रखे है ताकि वो तुम्हारे लिए ग्राहक पकड़कर लाये और तुम उन्हें सस्ता होटल दिलाने के बहाने सम में ले जाकर सफारी कराने के नाम पर पैसे लूटो ! हमारी इस गरमा-गर्मी के बीच होटल के अन्य कर्मचारी भी रिसेप्शन पर आ गए, इनमें से एक हट्टा-कट्टा आदमी बोला, सम नहीं जाना तो टॉयलेट इस्तेमाल करने के 100 रूपए देकर अपने लिए कोई दूसरा होटल ढूंढ लो ! मैं बोला, एक रपिया नहीं दूंगा, जो करना है कर लो !

पहले तो तुम यात्रियों को खुद बुलाते हो, और बाद में डरा-धमकाकर उनसे पैसे लूटते हो और बवाल करते हो ! इस बीच वहां कुछ नए यात्री भी बैठे थे जो सम जाने की तैयारी में लगे थे, हमारा मामला देख सब अपना काम-धाम छोड़ हमें ही देखने लगे ! होटल वाले को लगा कहीं हमारे चक्कर में वो ग्राहक भी ना भाग जाए इसलिए मामला रफा-दफा करने के लिए उन्होंने हमसे कहा, भाई तुम कोई दूसरा होटल ही ढूंढ लो ! हमें भी यहाँ रूककर कौन सी दावत खानी थी, अपना बैग लेकर होटल से बाहर आ गए और पैदल ही कोई दूसरा होटल ढूँढने चल दिए ! दिमाग गरम होने के बावजूद भी हम 10 से ज्यादा होटलों में घूमे, लेकिन क्रिसमस का समय होने के कहीं भी कमरा नहीं मिला, एक-दो होटलों में कमरा मिल भी रहा था तो उनका किराया 3000 रूपए से अधिक था ! अब हमारी हिम्मत जवाब देने लगी थी लेकिन इस विषम परिस्थिति में भी मन के किसी कोने में घूमने की योजना पर काम चल रहा था ! सुबह जब हम ट्रेन से उतरे थे तो एक अलग योजना थी तब लग रहा था कि आज दोपहर तक जैसलमेर किला और इसके आस-पास की जगहें घूम लेंगे, लेकिन जैसे-2 समय बीतता जा रहा था मेरे मन में आज घूमने की योजना में भी लगातार बदलाव हो रहा था !

आखिरकार, थक-हारकर हम हजूरी सेवा सदन धर्मशाला पहुंचे, लेकिन शायद आज किस्मत ही खराब थी, यहाँ आस-पास दो धर्मशालाएं थी लेकिन किसी में भी कोई कमरा खाली नहीं था ! अब तो लगने लगा था कि आज का दिन कमरा ढूँढने में ही निकल जायेगा, मेरा विचार अब स्टेशन पर क्लॉक रूम में सामान रखकर घूमने का था ! लेकिन देवेन्द्र ने अभी हिम्मत नहीं हारी थी, इस धर्मशाला वाले ने उससे कहा था कि शायद थोड़ी देर में कोई कमरा खाली हो जायेगा ! लेकिन इस थोड़ी देर की परिभाषा ना उसने बताई, ना हमने पूछी, देवेन्द्र ने कहा जब इतनी देर देख चुके तो आधा घंटा और देख लेते है, आखिरकार हमारा धैर्य रंग लाया और पौने दस बजे हमें धर्मशाला के कमरे की चाबी मिली ! कमरा मिलते ही हम नहाने-धोने में लग गए, 15 रूपए देकर हमने एक बाल्टी गरम पानी लिया और बारी-2 से नहा-धोकर फारिक हुए ! इस धर्मशाला में खाने-पीने का कुछ इंतजाम नहीं था, इसलिए हमने एक बैग में अपने साथ लाया खाने-पीने का कुछ सामान ले लिया और पैदल ही बाज़ार की ओर चल दिए, जो यहाँ से थोड़ी दूरी पर था ! हनुमान चौराहे पर पहुंचकर हमने एक होटल में भोजन किया और फिर सदर बाज़ार से होते हुए हम जैसलमेर किले की ओर चल दिए !
सदर बाज़ार से किले की ओर जाते हुए

जैसलमेर दुर्ग के बाहर का एक दृश्य
जैसलमेर पहुंचकर एहसास होने लगता है कि क्यों इस शहर को स्वर्ण नगरी कहा जाता है, जिधर देखो उधर सुनहरे रंग की इमारतें दिखाई देती है, जो सूर्य का प्रकाश पड़ने पर चमकने लगती है ! वैसे तो जैसलमेर किले तक जाने के कई मार्ग है, लेकिन हम जिस मार्ग से जा रहे थे वो मंदिर पैलेस से होते हुए सदर बाज़ार में निकलता है, बाज़ार के अन्दर से होता हुआ ये मार्ग किले के अखय पोल वाले प्रवेश द्वार पर जाकर निकलता है ! यहाँ के बाज़ार रंग-बिरंगे राजस्थानी परिधानों, साज-सज्जा की वस्तुओं, और धातुओं के सामानों से भरे पड़े है, यहाँ के बाज़ार में घूमना एक सुखद अनुभव था, जिसका वर्णन मैं अपने लेखों में आगे भी करता रहूँगा ! यहाँ से हमने घर ले जाने के लिए हस्त निर्मित राजस्थानी पर्स लिए, दुर्ग के प्रवेश द्वार पर आकर कई मार्ग मिलते है ! वैसे, जैसलमेर का दुर्ग रिहायशी है, वर्तमान में दुर्ग के अन्दर कई कालोनियां बनी हुई है, जहाँ लोग स्थाई रूप से निवास करते है ! किले में घूमने का वर्णन मैं इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा !

क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है ! 

कहाँ रुके (Where to stay near 
Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !

क्या देखें (Places to see near 
Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !

अगले भाग में जारी...

जैसलमेर यात्रा
  1. जोधपुर से जैसलमेर की ट्रेन यात्रा (A Journey from Jodhpur to Jaisalmer)
  2. जैसलमेर के सोनार किले की सैर (A Visit to Jaisalmer Fort)
  3. जैसलमेर की शानदार हवेलियाँ (Beautiful Haveli’s of Jaisalmer)
  4. जैसलमेर की गदीसर झील (Gadisar Lake of Jaisalmer)
  5. जैसलमेर का बड़ा बाग (Bada Bagh of Jaisalmer)
  6. लोद्रवा के जैन मंदिर (Jain Temples of Lodruva)
  7. लोद्रवा का चुंधी-गणेश मंदिर (Chundhi Ganesh Temple of Lodruva)
  8. कुलधरा – एक शापित गाँव (Kuldhara – A Haunted Village)
  9. खाभा फोर्ट – पालीवालों की नगरी (Khabha Fort of Jaisalmer)
  10. खाभा रिसोर्ट और सम में रेत के टीले (Khabha Resort and Sam Sand Dunes)
  11. जैसलमेर के पांच सितारा होटल (Five Star Hotels in Jaisalmer)
  12. जैसलमेर दुर्ग के मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थल (Local Sight Seen in Jaisalmer)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

4 Comments

  1. तभी तो कहते हैं भाई जी कि पढ़कर जाना चाहिए :) . हमने भी वो सब झेला था जो आपने झेला जैसलमेर में। और मैंने पोस्ट में ये सब लिखा भी था , खैर जैसलमेर की तो बात ही अलग है !! सुन्दर और शानदार !!

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    1. धन्यवाद योगी जी, सही कह रहे हो, किसी भी जगह जाना हो तो पढ़कर जाने से काफी सहूलियत रहती है !

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  2. शानदार लेखन प्रदीप जी..

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