दिल्ली से ग्वालियर की सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Gwalior)

शनिवार, 09 मार्च 2019 

आज की यात्रा शुरू करने से पहले आपको बता दूँ कि हमारी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य घूमना नहीं था बल्कि अपने एक मित्र शशांक रावत को टेकनपुर से लेने जाना था जिसकी वहाँ पिछले एक साल से सीमा सुरक्षा बल (BSF) में ट्रैनिंग चल रही थी ! आज उसकी ट्रैनिंग खत्म हो रही थी और दीक्षांत समारोह (Passing Parade) के बाद बोर्डर पर पोस्टिंग से पहले उसे घर लौटना था ! पिछले हफ्ते जब उससे फोन पर बात हुई थी तो उसने मुझे दीक्षांत समारोह में आने का निमंत्रण दिया था, शशांक के दीक्षांत समारोह में जाना मेरे लिए गर्व की बात थी, अपने जीवन के इस अहम मौके पर उसने घर से किसी को ना बुलाकर मुझे ये मौका दिया था, मैंने उसे निर्धारित दिन समय पर वहाँ पहुँचने का आश्वासन दिया ! मेरे साथ हितेश भी इस यात्रा पर साथ चलने वाला था, वैसे भी दोस्तों के साथ किसी यात्रा पर गए बहुत लंबा समय हो गया था तो हमने सोचा दीक्षांत समारोह से फ़ारिक होकर समय मिला तो शशांक संग आस-पास कहीं घूमना भी हो जाएगा ! वैसे तो बहुत दिनों से किसी यात्रा पर जाने का मन था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण कहीं जाना नहीं हो पा रहा था, मेरी पिछली लंबी यात्रा परिवार के साथ रानीखेत की हुई थी ! वैसे तो मुझे इस यात्रा को बहुत पहले लिख लेना था लेकिन काम की व्यस्तता के कारण लिख नहीं पाया, आज जब शशांक हमारे बीच नहीं है तो इस यात्रा लेख को लिखकर मैं उसके साथ बिताए पलों को सहेज कर रखना चाहता हूँ !

दीक्षांत समारोह के बाद लिया एक चित्र

यात्रा का दिन पहले से ही निर्धारित था, जिसके अनुसार हम दीक्षांत समारोह वाले दिन 9 मार्च को सुबह 3 बजे घर से निकलने वाले थे, पलवल से टेकनपुर की दूरी 305 किलोमीटर है जिसे तय करने में लगभग 5 घंटे का समय लगता है ! इस तरह हम सुबह जल्दी निकलकर 8 बजे तक टेकनपुर पहुँचने का सोच रहे थे, दीक्षांत समारोह 9 बजे शुरू होनी थी ! इस यात्रा के लिए हमें ज्यादा तैयारी नहीं करनी थी, बस एक बैग में 2 जोड़ी कपड़ों के साथ कुछ जरूरी सामान रख लिया ! 3 बजे निकलने के लिए, रात को ढाई बजे उठकर तैयार होना पड़ा, मार्च का दूसरा हफ्ता चल रहा था लेकिन सुबह-शाम के मौसम में अच्छी खासी ठंडक थी, जिसका एहसास नहाते समय हो रहा था ! हम ये यात्रा हितेश की गाड़ी से करने वाले थे, जो तय समय पर मेरे घर के सामने गाड़ी लिए मेरा इंतजार कर रहा था ! 3 बजे हम घर से निकल पड़े, गाड़ी हितेश चला रहा था और मैं आगे वाली सीट पर बैठकर उससे बातें कर रहा था ताकि गाड़ी चलाते हुए उसे नींद ना आए ! पलवल से चले तो बामनीखेड़ा से आगे श्रीनगर में पहले टोल प्लाजा (Toll Gate) पर जाकर रुके, आज यहाँ भीड़ नहीं थी या ऐसा कह लीजिए कि इस समय भीड़ नहीं थी वरना दिन में तो जितनी बार भी इस टोल से आना हुआ है हमेशा लंबी लाइन ही मिली है ! यहाँ 100 रुपए का टोल शुल्क देकर आगे बढ़े, टोल से निकलकर गाड़ी ने एक बार फिर से रफ्तार पकड़ ली, होडल, कोसी, छाता होते हुए साढ़े चार बजे तक हमने मथुरा भी पार कर लिया !

आगरा बाइपास के बाद लिया एक चित्र

सारा शहर अभी नींद के आगोश में था, चारों तरफ खामोशी थी, जबकि दिन के समय इस मार्ग पर खूब चहल-पहल रहती है ! मथुरा से निकलकर हम आगरा की तरफ बढ़ रहे थे, मथुरा से 20 किलोमीटर चलकर महुवन में फिर एक टोल प्लाजा आया, यहाँ भी 100 रुपए का टोल शुल्क अदा किया ! टोल से 13 किलोमीटर चलने के बाद कीठम झील के पास ग्वालियर जाने के लिए आगरा-बाइपास निकलता है जो आगे चलकर दिल्ली-मुंबई राजमार्ग में मिल जाता है ! इस बाइपास से आगरा लगभग 25 किलोमीटर रह जाता है, जब मैं कीठम झील घूमने आया था तो आगरा की ओर जाने वाले मार्ग से ही सिकंदरा गया था ! लेकिन अगर आपको आगरा में कुछ काम नहीं है तो भीड़-भाड़ में फँसने से बढ़िया है ये बाइपास लेकर आगरा के बाहर से ही निकल लिया जाए ! आज हम इसी बाइपास पर चल रहे थे, बाइपास पर थोड़ी दूर चलते ही राइभा में फिर एक टोल प्लाजा आया, घर से चलने के बाद ये आज का तीसरा टोल प्लाजा था, यहाँ 70 रुपए का शुल्क अदा किया ! मेरी जानकारी के अनुसार टेकनपुर तक अभी 3 टोल प्लाजा और पड़ेंगे, बस में यात्रा करने पर प्रति किलोमीटर जितना किराया लगता है, निजी वाहन से सफर करने पर प्रति किलोमीटर उस किराये का दुगुना तो टोल शुल्क लग जाता है ! 

ईंधन का खर्च अलग और गाड़ी चलाने की सिरदर्दी भी, लेकिन फिर भी कुछ यात्राएं निजी गाड़ी से ही ज्यादा सही रहती है, वैसे सरकार को इस दिशा में लोगों को कुछ रियायत देनी चाहिए ! इस समय यहाँ ट्रकों की आवाजाही थोड़ा ज्यादा थी, बाइपास होने के कारण लंबी दूरी के ट्रक चालक इस मार्ग पर रुककर थोड़ा आराम करते है ! मुझे बीच-2 में एक-दो जगह झपकी भी आई, लेकिन हितेश लगातार गाड़ी चलाता रहा, बार-2 मेरी झपकी से परेशान होकर टोल पार करके हितेश ने एक चाय की दुकान पर जाकर गाड़ी रोक दी ! गाड़ी रुकते ही मेरी भी नींद खुल गई, बाहर देखा तो अभी अंधेरा ही था, सड़क किनारे कई ट्रक खड़े थे, कुछ ट्रक चालक गाड़ी में ही सोये हुए थे जबकि कुछ आस-पास की दुकानों के बाहर बिछी खाट पर सोये थे ! गाड़ी से उतरकर हम दुकान में गए, लेकिन यहाँ कोई दिखाई नहीं दिया, अंदर झाँककर देखा तो दुकान के पिछले हिस्से में एक चारपाई पर कोई सोया हुआ था, हमने आवाज लगाकर उसे उठाया, ये दुकानदार ही था ! उसे 2 कप चाय बनाने को कहकर हम वहीं बैठ गए, जब तक हमारे लिए चाय बनकर तैयार हुई, हम नमकीन-बिस्कुट खाते रहे ! चाय पीकर यहाँ से चले तो कुछ देर बाद एक पुल से उतरकर हम दिल्ली-मुंबई राजमार्ग पर जा मिले, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आगरा बाइपास 35 किलोमीटर लंबा मार्ग है !

पुल से उतरकर कुछ दूर चलने के बाद हितेश ने एक बार फिर से गाड़ी रोक दी, यहाँ हल्का होने के बाद दोबारा चले तो साढ़े छह बजने वाले थे, अभी हमने आधा सफर तय किया था इस हिसाब से हम लेट थे ! यहाँ से धोलपुर लगभग 44 किलोमीटर दूर था, जो इस मार्ग पर पड़ने वाला अगला बड़ा कस्बा था, इस मार्ग पर 20 किलोमीटर चलने के बाद जाजऊ में अगला टोल प्लाजा आया, यहाँ 60 रुपए टोल शुल्क देना पड़ा ! यहाँ से कुछ दूर चलकर उटंगन नदी का पुल आया, ये पुल उत्तर-प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर स्थित है ! सात बजे हम धोलपुर में थे, यहाँ सड़क पर जगह-2 पुल निर्माण कार्य चल रहा था, इसलिए शहर में यातायात थोड़ा धीमा मिला लेकिन कहीं रुकना नहीं पड़ा ! सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि सुबह का समय होने के कारण शहर का यातायात अभी सड़क पर नहीं आया था, वरना दिन के समय यहाँ जाम जरूर लगता होगा ! धोलपुर से चले तो 5 किलोमीटर चलकर चम्बल नदी का पुल आया, ये पुल राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है ! एक समय था जब चम्बल का नाम सुनते ही डाकुओं की छवि दिमाग में उभरने लगती थी, बीहड़ का ये इलाका कभी डकैतों के लिए बदनाम था ! वर्तमान में अधिकतर डकैत मर चुके है, और जो बचे है उन्होनें आत्म-समर्पण कर दिया है, इन डकैतों की अगली पीढ़ियाँ अब सामान्य जीवन जी रही है ! धोलपुर से मुरैना पहुँचने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा, इन 2 कस्बों के बीच 25 किलोमीटर की दूरी को तय करने में शायद 20 मिनट का समय लगा !

रास्ते में लिया एक चित्र

इस मार्ग पर भी चौंधा में एक टोल प्लाजा आया जहां 65 रुपए का शुल्क देना पड़ा ! वैसे मुरैना का गजक देशभर में प्रसिद्ध है लेकिन हमारे दिमाग में तो फिलहाल टेकनपुर पहुँचने की जद्दोजेहद चल रही थी ! मुरैना से ग्वालियर होते हुए टेकनपुर की दूरी 75 किलोमीटर है, लेकिन अगर ग्वालियर बाइपास से होकर निकलते है तो ये दूरी बढ़कर 85 किलोमीटर हो जाती है ! पहले हम ग्वालियर होकर ही जाने वाले थे, लेकिन मुरैना-ग्वालियर मार्ग पर बानमोर नाम की एक जगह पर बहुत लंबा जाम मिला, इस जाम से परेशान होकर हमने ग्वालियर से ना जाकर बाइपास से जाना ही उचित समझा, क्योंकि जैसे-2 दिन चढ़ता जाएगा स्थानीय लोगों की भीड़ भी सड़क पर बढ़ती जाएगी ! ऐसे में ग्वालियर जाकर हम फिर से जाम में नहीं फंसना चाहते थे, लेकिन फिलहाल तो बानमोर का जाम इतना भयंकर था कि लोग अपनी गाड़ियों से निकलकर सड़क पर टहलने लगे थे ! समय तेजी से बीत रहा था और जाम था कि खुलने का नाम ही नहीं ले रहा था ! यहाँ गाड़ी मुझे देकर हितेश जाम से निकलने का रास्ता देखने चला गया, वो आगे जाकर फोन पर मुझे दिशा निर्देश देता रहा और मैं उसी हिसाब से गाड़ी को लेन बदलकर धीरे-2 निकालता रहा ! 15-20 मिनट की मशक्कत के बाद हम इस जाम से निकलकर ग्वालियर बाइपास रोड पर पहुँच गए, पीछे मुड़कर देखा तो अभी भी लंबा जाम लगा था ! 

ग्वालियर शहर में जाने वाले मार्ग पर भी भयंकर जाम लगा था, इस बीच शशांक का फोन आता रहा, हालांकि, हमने उसे बानमोर के जाम में फंसे होने की खबर दे दी थी लेकिन फिर भी वो हर 10 मिनट में हमें फोन करके जाम से निकलने के बाबत जानकारी ले रहा था ! शशांक परेड में जाने के लिए तैयार हो रहा था, उसने कहा परेड में जाने के बाद उसका फोन बंद रहेगा, इसलिए अगर तुम्हें आने में देर हुई तो कोशिश करना कि परेड देखने के लिए आगे वाली लाइन में बैठना ! बानमोर से गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर मैं बैठा था टेकनपुर अभी भी यहाँ से 60 किलोमीटर दूर था और आठ बजने में मात्र 10 मिनट बाकि थे ! बाइपास पर खाली रास्ता मिला तो मैंने एक्सीलेटर पर रखा अपना पंजा दबा दिया, स्पीड की सुई तेजी से 100 को पार कर गई ! यहाँ ग्वालियर बाइपास पर भी मेहरा नाम की जगह पर एक टोल प्लाजा मिला, यहाँ 80 रुपए का टोल शुल्क लगता है, ये आज का हमारा छठा टोल प्लाजा था ! 300 किलोमीटर की दूरी में 6 टोल प्लाजा, मतलब हर 50 किलोमीटर पर एक टोल ! एक तो टेकनपुर पहुँचने की जल्दी और दूसरा इतने टोल प्लाजा देखने के बाद मेरा दिमाग खराब हो गया था ! इसलिए मैंने टोल प्लाजा पर गाड़ी धीमी नहीं की, हमसे आगे चल रही गाड़ी तो निकल गई लेकिन हमारे आगे बढ़ते ही टोल बैरियर आकर गाड़ी के बोनट पर लगा, गनीमत रही कि कुछ नुकसान नहीं हुआ ! 

टोल पर खड़े सुरक्षाकर्मियों को कुछ समझ आता उससे पहले ही मैंने गाड़ी आगे बढ़ा ली ! साढ़े आठ बजे हम टेकनपुर में थे, शशांक को फोन करके बता दिया कि हम यहाँ पहुँच गए है, वो भी परेड के लिए मैदान में पहुँच चुका था ! उससे ज्यादा बात तो नहीं हुई, लेकिन उसने ये बता दिया कि परेड मैदान के सामने सड़क के उस पार पार्किंग स्थल है, वहाँ गाड़ी खड़ी करके जल्दी आ जाना ! हमने पार्किंग में खड़े एक फौजी को जरूरी जानकारी दी, शशांक का चेस्ट नंबर बताया और गाड़ी खड़ी करके आ गए ! शशांक ने हमारे दीक्षांत समारोह में आने के बाबत यहाँ पहले ही जानकारी दे रखी थी, पार्किंग में खड़े फौजी ने हमसे ली जानकारी को सत्यापित किया और हमें परेड मैदान में जाने का मार्ग बता दिया ! 5 मिनट से कम समय में हम परेड देखने के लिए बने स्टैंड में बैठे थे, 9 बज चुके थे और परेड शुरू होने वाली थी, हमारी आँखें मैदान में खड़े जवानों में शशांक को ढूंढ रही थी ! कुछ देर में मुख्य अतिथि के आने के बाद परेड शुरू हुई, सीमा सुरक्षा बल के जवानों की ये परेड देखकर सीना गर्व से चौड़ा हो गया, यहाँ से जाने के बाद यही जवान भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपना दमखम दिखाएंगे ! सभी जवानों का जोश देखने लायक था, मैदान के दो चक्कर लगाने के बाद सभी जवान बाहर चले गए, परेड के बाद 1 साल के प्रशिक्षण के दौरान चुने गए सर्वोच्च निशानेबाज, एथलीट और अलग-2 श्रेणियों में जवानों को चुना गया और उन्हें मुख्य अथिति द्वारा सम्मानित किया गया !

दीक्षांत समारोह के दौरान हितेश

दीक्षांत समारोह का एक दृश्य

दीक्षांत समारोह का एक दृश्य

दीक्षांत समारोह का एक दृश्य

दीक्षांत समारोह के दौरान सीमा सुरक्षा बल के जवान

दीक्षांत समारोह के दौरान सीमा सुरक्षा बल के जवान

दीक्षांत समारोह देखते हुए

दीक्षांत समारोह के दौरान मैं और हितेश

दीक्षांत समारोह के बाद मैं और शशांक

दीक्षांत समारोह के बाद शशांक और हितेश

इस बीच सीमा सुरक्षा बल द्वारा प्रशिक्षित किए गए कुछ विशेष प्रजाति के कुत्तों द्वारा आतंकियों के खिलाफ की जाने वाली कार्यवाही में उनके योगदान का प्रदर्शन किया गया, हथियारों को ढूँढने में भी इन कुत्तों को महारत हासिल होती है ! दीक्षांत समारोह देखकर बाहर निकले तो यहाँ एक बड़े मैदान में टैंट लगाया गया था, और जवानों के घर से आए लोगों के खान-पान की उत्तम व्यवस्था की गई थी ! सभी जवान एक-दूसरे का परिचय अपने परिवार के लोगों से करवा रहे थे, शशांक ने भी अपने कुछ साथियों से हमें मिलवाया ! इस बीच शशांक ने अपने कंधे पर लगे सितारों को जो अब तक एक सफेद कपड़े से ढके हुए थे, हमें हटाने के लिए कहा, ये हमारे लिए बड़े गर्व की बात थी ! इन सितारों को हासिल करने के लिए उसने एक साल खून-पसीना बहाया था, और आज इन सितारों को पहली बार उसने हमें देखने का मौका दिया ! कपड़े को हटाकर जैसे ही सितारों की चमक मेरी आँखों में गई, आँखें नम हो गई, लेकिन ये खुशी के आँसू थे, इन आंसुओं में शशांक के लिए मेरे मन में सम्मान झलक रहा था ! देश सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं है, लोग बातें तो अक्सर करते है लेकिन ये मौका कुछ चुनिंदा लोगों को ही मिलता है ! काफी देर तक यहाँ फोटो सेशन चलता रहा, इस बीच एक-दूसरे से मिलने-मिलाने का दौर भी जारी रहा, यहाँ से निकले तो हम शशांक के साथ उसके होस्टल में गए, जहां उसने अपने कुछ और दोस्तों से भी हमें मिलवाया !

दीक्षांत समारोह के बाद एक ग्रुप फोटो

टेकनपुर के घूमते हुए

बीएसएफ़ अकादेमी में भ्रमण के दौरान
बीएसएफ़ अकादेमी में भ्रमण के दौरान
बीएसएफ़ अकादेमी में भ्रमण के दौरान

बीएसएफ़ अकादेमी में भ्रमण के दौरान
होस्टल के बाहर भी खाने-पीने की व्यवस्था की गई थी, जहां हम सबने साथ में खाना खाया ! फिर होस्टल से शशांक का सामान लेकर सभी साथियों से विदा लेते हुए बाहर आ गए, गाड़ी में सामान रखकर यहाँ से चले तो शशांक ने इस अकादमी का एक पूरा चक्कर लगाते हुए हमें घुमाया ! अकादमी से बाहर आकर हमने टेकनपुर में रुककर कुछ खरीददारी की, और फिर ग्वालियर के लिए निकल पड़े ! टेकनपुर से ग्वालियर का सफर बातें करते हुए कब कट गया पता ही नहीं चला, वैसे आज हमारे पास करने के लिए बहुत बातें थी, जिसका मतलब था कि ग्वालियर में आज हमारी शाम बढ़िया बीतने वाली थी ! ग्वालियर पहुंचकर ओयो से एक होटल में कमरा बुक किया और गाड़ी से जरूरी सामान लेकर कमरे में आराम करने चले गए ! 2 घंटे की नींद लेने के बाद हम शाम को ग्वालियर घूमने के लिए पैदल ही निकल पड़े ! चलिए, इस लेख पर फिलहाल यहीं विराम लगाता हूँ, यात्रा के अगले लेख में ग्वालियर में बिताई उस शाम का जिक्र करूंगा !

अगले भाग में जारी...

ग्वालियर यात्रा

  1. दिल्ली से ग्वालियर की सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Gwalior)
  2. ग्वालियर की एक शाम (An Evening in Gwalior)
  3. ग्वालियर से वापसी का सफर (Road Trip from Gwalior to Delhi)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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