मंगलवार, 17 जुलाई 2012
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तीन दिन डलहौज़ी घूमने के बाद चौथे दिन सुबह हम लोग अपने होटल से निकलकर धर्मशाला जाने के लिए डलहौज़ी के बस स्टैंड पर पहुँच चुके थे ! सुबह के सात बजने में दस मिनट शेष थे, और डलहौज़ी के बस स्टैंड पर धर्मशाला जाने की पहली बस तैयार खड़ी थी ! हम सब इस बस में चढ़ गए, अन्दर जाने पर हमने देखा कि कुछ सवारियाँ पहले से ही बस में मौजूद थी, हमने भी अपने लिए एक-2 सीट ले ली ! सुबह सात बजकर पंद्रह मिनट पर हमारी बस डलहौज़ी से चली ! यहाँ से बमुश्किल 5-6 किलोमीटर ही आगे गए होंगें कि बस एक चौराहे पर आकर रुक गई, ये वही चौराहा था, जहाँ दिल्ली से डलहौज़ी आते समय हम पहली बस को छोड़ कर दूसरी बस में बैठे थे ! कंडक्टर से पूछने पर पता चला कि बस यहाँ नाश्ता-पानी के लिए रुकी थी, जिस किसी को भी कुछ खाना-पीना था वो यहाँ से ले सकता था क्योंकि बस यहाँ पंद्रह-बीस मिनट रुकने वाली थी ! अब इतनी सुबह हमारा तो कुछ खाने-पीने का मन नहीं था, पर हमने सोचा कि जब तक बस यहाँ रुकी है रास्ते में खाने के लिए कुछ सामान खरीद लिया जाए !
मैं और हितेश बस से नीचे उतरे और पास की दुकान से ही खाने के लिए कुछ फल और पढ़ने के लिए अखबार खरीद लाए और बस के बाहर ही खड़े होकर इसके चलने का इंतजार करने लगे ! थोड़ी देर बाद जब बस ने चलने के लिए हॉर्न बजाया तो हम दोनों भी बस में सवार हो गए ! घुमावदार रास्तों से होते हुए हमारी बस पहाड़ी रास्ते पर आगे बढ़ती जा रही थी, हर स्टॉप पर कुछ सवारियां बस से उतरती तो कुछ नई सवारियां बस में चढ़ जाती ! वैसे तो बसें अपने निर्धारित स्टॉप पर ही रूकती है पर मैंने पहाड़ो पर यात्रा के दौरान एक बात गौर की है कि आप रास्ते में कहीं भी खड़े हो, अगर आप बस को रोकने का इशारा करेंगे तो अमूमन वो आपके लिए रुक जाएगी ! इसका फायदा ये है कि अगर पहाड़ों पर कभी कहीं घुमते हुए आप बस स्टॉप से आगे निकल जाएँ तो परेशान होने की ज़रूरत नहीं है ! दूर से आती बस को रुकने का इशारा करके आप उस बस में चढ़ कर अपने गंतव्य पर पहुँच सकते है !
अधिकतर पहाड़ों पर अक्सर एक ही सड़क होती है और वो भी ज्यादा चौड़ी नहीं होती, उसी सड़क पर आने-जाने वाली गाड़ियाँ आपसी सामंजस्य से चलती है ! यहाँ गाड़ी चलाते हुए थोड़ी सी भी जल्दबाज़ी या लापरवाही जानलेवा साबित होती है, अक्सर पहाड़ों पर होने वाली ऐसी घटनाएँ अख़बारों की सुर्ख़ियों में छाई रहती है ! हम लोग बस में बैठे हुए अपने-2 तरीके से बाहर के नजारों का आनंद ले रहे थे, मैं गाने सुनता हुआ बाहर के नज़ारे देख रहा था, तो विपुल और शशांक अखबार पढ़ रहे थे और हितेश तो अपनी नींद पूरी करने में लगा हुआ था ! पता नहीं कौन सी कसरत करके आ रहा था कि उसे भयंकर नींद आ रही थी ! मैं सोच रहा था कि बस की खिड़की से इतने अच्छे नज़ारे दिखाई दे रहे है और ये महाशय हैं कि इनकी नींद ही नहीं पूरी हो रही ! गाने सुनते हुए मैं अपने ख्यालों में इतना खो गया कि ध्यान ही नहीं दिया कि बस कहाँ तक पहुँच चुकी है ! सुबह के नौ बज रहे थे जब बस एक तिराहे पर रुकी, और हम लोग बस से नीचे उतरे !
डलहौज़ी से चलते समय तो हमारी बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी, पर रास्ते में काफी सवारियां चढ़ने से बस में भीड़ बढ़ गई थी ! इस तिराहे पर आकर काफी यात्री बस से उतरे, जिससे बस खाली हो गई ! बस से नीचे उतरने पर इस तिराहे पर लगे दिशा निर्देश को देखने से हमें पता चला कि यहाँ से एक रास्ता तो धर्मशाला जाता है, और दूसरा रास्ता पठानकोट ! तीसरा रास्ता वो था जिस पर चल कर हमारी बस डलहौज़ी से यहाँ पहुँची थी ! इस तिराहे पर एक दुकान से हमने पानी लिया और फिर वहीं खड़े होकर कुछ फोटो भी खींची, फिर जब बस ने चलने के लिए हॉर्न बजाया तो हम फिर से बस में सवार हो गए ! उसके बाद जब बस ने रफ़्तार पकड़ी तो रास्ते में कहीं भी ज्यादा देर नहीं रुकी, केवल सवारियों के चढ़ने और उतरने के लिए थोड़ी देर रूकती और फिर चल देती ! पर फिर भी जब हमारी बस धर्मशाला पहुँची तो दोपहर के बारह बज रहे थे, मतलब साढ़े चार घंटे का सफ़र तय करके हम ड़लहौजी से धर्मशाला पहुँचे थे !
धर्मशाला बस स्टैंड पहुँच कर जब हम लोग बस से उतरे तो मैक्लोडगंज जाने वाली बस तैयार खड़ी थी, हम लोग फटाफट जाकर उस बस में बैठ गए ! मैक्लोडगंज धर्मशाला से काफी ऊँचाई पर है और धर्मशाला से इसकी दूरी करीब दस किलोमीटर है ! बस पूरी तरह से भर जाने पर चालक ने बस चालू की और हम सब मैक्लोडगंज के लिए चल दिए, धर्मशाला से मैक्लोडगंज जाते हुए रास्ते में बहुत सुन्दर नज़ारे दिखाई देते है ! दोनों तरफ उँचे-2 चीड़ के पेड़ और बीचे में बलखाती सड़क, बहुत ही सुंदर लगते है ! आधे घंटे बाद हम मैक्लोडगंज पहुँच गए, यहाँ पहुँच कर बस से उतरे और अपने लिए होटल ढूंढने चल दिए ! क्यूंकि मैं और शशांक यहाँ पिछले साल भी आए थे इसलिए हमें यहाँ के बारे में काफी जानकारी थी और हम लोगों को होटल ढूंढने में ज़्यादा परेशानी भी नहीं हुई ! जिस होटल में हम पिछले साल रुके थे वो होटल हमें बहुत पसंद आया था इसलिए हम अपना सामान लेकर सीधे उसी होटल में गए !
मैंने और शशांक ने होटल में अन्दर जाकर कमरे के लिए बात की और कमरा मिलने पर बाकी दोनों साथियों को भी बुला लिया ! जो लोग यहाँ पहली बार जाने का विचार बना रहे है उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आपकी ज़रूरत के हिसाब से 700 रुपए से शुरू होकर आपके बजट के अनुसार हर तरह के होटल यहाँ उपलब्ध है ! होटल लेते वक़्त थोड़ा-बहुत मोल-भाव भी कर सकते है ! ड़लहौजी से सुबह जल्दी निकलने के कारण हम नहाए नहीं थी इसलिए यहाँ होटल में अपने लिए कमरा लेकर हम लोगों ने फटाफट अपना सामान कमरे में रखा और एक बैग में ज़रूरी सामान लेकर भाग्सू नाग झरने की तरफ चल दिए ! मैक्लोडगंज के मुख्य चौराहे से एक रास्ता मोनेस्ट्री की तरफ जाता है, दूसरा रास्ता पुलिस चौकी के साइड से होता हुआ डल झील की ओर जाता है ! तीसरा रास्ता दो हिस्सों में बंट जाता है, इसमें से ऊपर जाने वाला रास्ता धर्मकोट की तरफ जाता है और नीचे वाले रास्ते पर आगे बढ़ने पर भाग्सू नाग मंदिर होते हुए भाग्सू नाग झरना आता है !
हम इसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे, इस वक़्त हमारा मंदिर में जाने का कोई विचार नहीं था, इसलिए हम लोग बिना रुके सीधे झरने की तरफ चल दिए ! मैक्लोडगंज से भाग्सू नाग मंदिर जाते हुए रास्ते में बहुत सुन्दर नज़ारे दिखाई देते है, हम लोग तो यहाँ दोनों बार वर्षा ऋतु में ही आए है, और दोनों बार खूब हरियाली देखने को मिली है ! वैसे झरने का आनंद लेना हो तो बारिश का मौसम ही सबसे अच्छा है, गर्मियों में शायद ये झरना सूख जाता है ! भाग्सू नाग मंदिर से थोड़ा पहले ही एक बाज़ार भी है जहाँ से आप खाने-पीने की वस्तुएं और ज़रूरत का दूसरा सामान खरीद सकते है ! बाज़ार से आगे निकलते ही भाग्सू नाग मंदिर है और मंदिर के सामने एक तरणताल ! यह तरणताल बहुत ही सुंदर है और इसका पानी बहुत ही ठंडा है, लोग निशुल्क ही इसमें तैराकी का आनंद ले रहे थे ! मंदिर और तरणताल के मध्य से होता हुआ एक रास्ता आगे भाग्सू नाग झरने की ओर जाता है, हम लोग इसी रास्ते पर आगे बढ़ गए !
ये रास्ता एक दरवाजे से होकर गुज़रता है, दरवाजे के इस ओर तो मंदिर परिसर है और उस पार जाते ही आपको खुले आसमान के नीचे ऊँचे-2 पहाड़ों के बीच में से गिरता हुआ झरना दिखाई देता है ! यहाँ खड़े होने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कुदरत ने सारी खूबसूरती यहीं इस दरवाजे के बाहर बिखेर दी हो ! ये नज़ारा अपने आप में एक अदभुत अनुभूति प्रदान करता है ! ऐसा लगता है कि बस समय ठहर जाए और आप प्रकृति की इस खूबसूरती को ऐसे ही निहारते रहे ! दरवाजे को पार करते ही एक कैफ़े भी है, जहाँ आपको ज़रूरत के अनुसार खाने-पीने की वस्तुएं मिल जाएँगी ! इसी कैफ़े के प्रांगण में एक बरामदा है जहाँ से झरने की खूबसूरती देखी जा सकती है ! यहाँ से बाईं ओर जाने वाला मार्ग सीधे भाग्सू वाटर फाल की तरफ जाता है ! मंदिर परिसर के पास से ही हितेश और शशांक तो लगभग दौड़ लगाते हुए बहुत तेजी से झरने की तरफ बढ़ गए, और मैं विपुल के साथ चलते हुए थोड़ा पीछे रह गया !
दरवाजा पार करने पर हमें हितेश और शशांक में से कोई भी दिखाई नहीं दिया ! विपुल को लगा कि कहीं ये दोनों लोग पीछे ना रह गए हो, इसलिए थोड़ी देर कैफ़े में इंतज़ार करने के बाद हम लोग भी झरने की तरफ बढ़ गए ! कैफ़े से थोड़ा आगे बढ़ते ही हम दोनों ने सीधे रास्ते पर आगे ना जाकर नीचे उतरकर पानी के बहाव की विपरीत दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर किया, पिछले साल धर्मशाला आने पर भी हम इसी मार्ग से झरने तक गए थे ! मेरा तर्क है कि ऐसी यात्रा में बिना रोमांच के आगे बढ़ने में मजा नहीं आता, और जिस रास्ते से सभी लोग आगे बढ़ रहे थे हमें उस रास्ते पर कुछ रोमांच नज़र नहीं आ रहा था ! पत्थरों पर चढ़ते-उतरते हुए उबड़-खाबड़ रास्तों और झाड़ियों के बीच में से होते हुए हम लोग झरने की ओर आगे बढ़ रहे थे, मुझे यकीन था कि अगर शशांक और हितेश हमसे आगे चले गए होंगे तो इसी मार्ग से गए होंगे ! झरने की ओर जाते हुए हम दोनों बीच-2 में रुक कर थोड़ा आराम भी कर ले रहे थे और इधर-उधर के नज़ारे भी देखते जा रहे थे, कुछ सुंदर दृश्यों को तो हमने अपने कैमरे में भी क़ैद किया !
आधे घंटे उस दुर्गम रास्ते पर चलने के बाद हम लोग झरने तक पहुँचे, जहाँ हितेश और शशांक पहले ही पहुँच चुके थे और हम दोनों के पहुँचने के इंतजार कर रहे थे ! हम वहाँ एक घंटे से भी ज़्यादा देर तक झरने में नहाए और फिर पानी से बाहर निकल कर वहीँ एक पत्थर पर बैठ गए ! झरने के पास दो-तीन दुकानें है जहाँ बैठकर हमने आमलेट और मैगी का आनंद लिया ! जब पेट पूजा हो गई तो फिर से हम लोग झरने में कूद गए ! दो-तीन बार नहाने के बाद पानी से बाहर आकर समय देखा तो अभी पांच बजने में बीस मिनट शेष थे ! फिर हमने वापसी की राह पकड़ी, और उसी रास्ते से वापस आने लगे जिस रास्ते से हम लोग झरने तक गए थे ! वापस आते हुए हमने रास्ते में कई जगह पत्थरों से घेराव करके पानी को रोक कर नहाने का आनंद लिया ! रुकते-रुकाते जब वापस मैक्लोडगंज पहुँचे तो अँधेरा हो चुका था, बाज़ार में ही एक दुकान पर रुककर थोड़ी पेट-पूजा की और फिर वापस अपने होटल पहुँच गए !
रात के खाने का आर्डर देकर हम अपने कमरे में चले गए, आधे घंटे बाद होटल का एक लड़का खाना लेकर हमारे कमरे में आ गया, हमने वहीँ बैठ कर खाना खाते हुए अगले दिन की यात्रा पर चर्चा भी की !अगले दिन हम त्रिउंड की चढ़ाई करने वाले थे जो पिछले समय के अभाव के कारण हम नहीं कर पाए थे !त्रिऊंड जाते हुए ही रास्ते में एक से बढ़कर एक नज़ारे दिखाई देते है और रास्ता भी पहाड़ियों और घने जंगल से होकर जाता है, जिसका वर्णन में इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा ! कल की यात्रा के लिए आराम करना भी ज़रूरी था इसलिए खाना खाने के बाद हम अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
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तीन दिन डलहौज़ी घूमने के बाद चौथे दिन सुबह हम लोग अपने होटल से निकलकर धर्मशाला जाने के लिए डलहौज़ी के बस स्टैंड पर पहुँच चुके थे ! सुबह के सात बजने में दस मिनट शेष थे, और डलहौज़ी के बस स्टैंड पर धर्मशाला जाने की पहली बस तैयार खड़ी थी ! हम सब इस बस में चढ़ गए, अन्दर जाने पर हमने देखा कि कुछ सवारियाँ पहले से ही बस में मौजूद थी, हमने भी अपने लिए एक-2 सीट ले ली ! सुबह सात बजकर पंद्रह मिनट पर हमारी बस डलहौज़ी से चली ! यहाँ से बमुश्किल 5-6 किलोमीटर ही आगे गए होंगें कि बस एक चौराहे पर आकर रुक गई, ये वही चौराहा था, जहाँ दिल्ली से डलहौज़ी आते समय हम पहली बस को छोड़ कर दूसरी बस में बैठे थे ! कंडक्टर से पूछने पर पता चला कि बस यहाँ नाश्ता-पानी के लिए रुकी थी, जिस किसी को भी कुछ खाना-पीना था वो यहाँ से ले सकता था क्योंकि बस यहाँ पंद्रह-बीस मिनट रुकने वाली थी ! अब इतनी सुबह हमारा तो कुछ खाने-पीने का मन नहीं था, पर हमने सोचा कि जब तक बस यहाँ रुकी है रास्ते में खाने के लिए कुछ सामान खरीद लिया जाए !
ड़लहौजी में बस में बैठे हुए |
अधिकतर पहाड़ों पर अक्सर एक ही सड़क होती है और वो भी ज्यादा चौड़ी नहीं होती, उसी सड़क पर आने-जाने वाली गाड़ियाँ आपसी सामंजस्य से चलती है ! यहाँ गाड़ी चलाते हुए थोड़ी सी भी जल्दबाज़ी या लापरवाही जानलेवा साबित होती है, अक्सर पहाड़ों पर होने वाली ऐसी घटनाएँ अख़बारों की सुर्ख़ियों में छाई रहती है ! हम लोग बस में बैठे हुए अपने-2 तरीके से बाहर के नजारों का आनंद ले रहे थे, मैं गाने सुनता हुआ बाहर के नज़ारे देख रहा था, तो विपुल और शशांक अखबार पढ़ रहे थे और हितेश तो अपनी नींद पूरी करने में लगा हुआ था ! पता नहीं कौन सी कसरत करके आ रहा था कि उसे भयंकर नींद आ रही थी ! मैं सोच रहा था कि बस की खिड़की से इतने अच्छे नज़ारे दिखाई दे रहे है और ये महाशय हैं कि इनकी नींद ही नहीं पूरी हो रही ! गाने सुनते हुए मैं अपने ख्यालों में इतना खो गया कि ध्यान ही नहीं दिया कि बस कहाँ तक पहुँच चुकी है ! सुबह के नौ बज रहे थे जब बस एक तिराहे पर रुकी, और हम लोग बस से नीचे उतरे !
डलहौज़ी से चलते समय तो हमारी बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी, पर रास्ते में काफी सवारियां चढ़ने से बस में भीड़ बढ़ गई थी ! इस तिराहे पर आकर काफी यात्री बस से उतरे, जिससे बस खाली हो गई ! बस से नीचे उतरने पर इस तिराहे पर लगे दिशा निर्देश को देखने से हमें पता चला कि यहाँ से एक रास्ता तो धर्मशाला जाता है, और दूसरा रास्ता पठानकोट ! तीसरा रास्ता वो था जिस पर चल कर हमारी बस डलहौज़ी से यहाँ पहुँची थी ! इस तिराहे पर एक दुकान से हमने पानी लिया और फिर वहीं खड़े होकर कुछ फोटो भी खींची, फिर जब बस ने चलने के लिए हॉर्न बजाया तो हम फिर से बस में सवार हो गए ! उसके बाद जब बस ने रफ़्तार पकड़ी तो रास्ते में कहीं भी ज्यादा देर नहीं रुकी, केवल सवारियों के चढ़ने और उतरने के लिए थोड़ी देर रूकती और फिर चल देती ! पर फिर भी जब हमारी बस धर्मशाला पहुँची तो दोपहर के बारह बज रहे थे, मतलब साढ़े चार घंटे का सफ़र तय करके हम ड़लहौजी से धर्मशाला पहुँचे थे !
धर्मशाला बस स्टैंड पहुँच कर जब हम लोग बस से उतरे तो मैक्लोडगंज जाने वाली बस तैयार खड़ी थी, हम लोग फटाफट जाकर उस बस में बैठ गए ! मैक्लोडगंज धर्मशाला से काफी ऊँचाई पर है और धर्मशाला से इसकी दूरी करीब दस किलोमीटर है ! बस पूरी तरह से भर जाने पर चालक ने बस चालू की और हम सब मैक्लोडगंज के लिए चल दिए, धर्मशाला से मैक्लोडगंज जाते हुए रास्ते में बहुत सुन्दर नज़ारे दिखाई देते है ! दोनों तरफ उँचे-2 चीड़ के पेड़ और बीचे में बलखाती सड़क, बहुत ही सुंदर लगते है ! आधे घंटे बाद हम मैक्लोडगंज पहुँच गए, यहाँ पहुँच कर बस से उतरे और अपने लिए होटल ढूंढने चल दिए ! क्यूंकि मैं और शशांक यहाँ पिछले साल भी आए थे इसलिए हमें यहाँ के बारे में काफी जानकारी थी और हम लोगों को होटल ढूंढने में ज़्यादा परेशानी भी नहीं हुई ! जिस होटल में हम पिछले साल रुके थे वो होटल हमें बहुत पसंद आया था इसलिए हम अपना सामान लेकर सीधे उसी होटल में गए !
मैंने और शशांक ने होटल में अन्दर जाकर कमरे के लिए बात की और कमरा मिलने पर बाकी दोनों साथियों को भी बुला लिया ! जो लोग यहाँ पहली बार जाने का विचार बना रहे है उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आपकी ज़रूरत के हिसाब से 700 रुपए से शुरू होकर आपके बजट के अनुसार हर तरह के होटल यहाँ उपलब्ध है ! होटल लेते वक़्त थोड़ा-बहुत मोल-भाव भी कर सकते है ! ड़लहौजी से सुबह जल्दी निकलने के कारण हम नहाए नहीं थी इसलिए यहाँ होटल में अपने लिए कमरा लेकर हम लोगों ने फटाफट अपना सामान कमरे में रखा और एक बैग में ज़रूरी सामान लेकर भाग्सू नाग झरने की तरफ चल दिए ! मैक्लोडगंज के मुख्य चौराहे से एक रास्ता मोनेस्ट्री की तरफ जाता है, दूसरा रास्ता पुलिस चौकी के साइड से होता हुआ डल झील की ओर जाता है ! तीसरा रास्ता दो हिस्सों में बंट जाता है, इसमें से ऊपर जाने वाला रास्ता धर्मकोट की तरफ जाता है और नीचे वाले रास्ते पर आगे बढ़ने पर भाग्सू नाग मंदिर होते हुए भाग्सू नाग झरना आता है !
हम इसी रास्ते पर आगे बढ़ रहे थे, इस वक़्त हमारा मंदिर में जाने का कोई विचार नहीं था, इसलिए हम लोग बिना रुके सीधे झरने की तरफ चल दिए ! मैक्लोडगंज से भाग्सू नाग मंदिर जाते हुए रास्ते में बहुत सुन्दर नज़ारे दिखाई देते है, हम लोग तो यहाँ दोनों बार वर्षा ऋतु में ही आए है, और दोनों बार खूब हरियाली देखने को मिली है ! वैसे झरने का आनंद लेना हो तो बारिश का मौसम ही सबसे अच्छा है, गर्मियों में शायद ये झरना सूख जाता है ! भाग्सू नाग मंदिर से थोड़ा पहले ही एक बाज़ार भी है जहाँ से आप खाने-पीने की वस्तुएं और ज़रूरत का दूसरा सामान खरीद सकते है ! बाज़ार से आगे निकलते ही भाग्सू नाग मंदिर है और मंदिर के सामने एक तरणताल ! यह तरणताल बहुत ही सुंदर है और इसका पानी बहुत ही ठंडा है, लोग निशुल्क ही इसमें तैराकी का आनंद ले रहे थे ! मंदिर और तरणताल के मध्य से होता हुआ एक रास्ता आगे भाग्सू नाग झरने की ओर जाता है, हम लोग इसी रास्ते पर आगे बढ़ गए !
ये रास्ता एक दरवाजे से होकर गुज़रता है, दरवाजे के इस ओर तो मंदिर परिसर है और उस पार जाते ही आपको खुले आसमान के नीचे ऊँचे-2 पहाड़ों के बीच में से गिरता हुआ झरना दिखाई देता है ! यहाँ खड़े होने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कुदरत ने सारी खूबसूरती यहीं इस दरवाजे के बाहर बिखेर दी हो ! ये नज़ारा अपने आप में एक अदभुत अनुभूति प्रदान करता है ! ऐसा लगता है कि बस समय ठहर जाए और आप प्रकृति की इस खूबसूरती को ऐसे ही निहारते रहे ! दरवाजे को पार करते ही एक कैफ़े भी है, जहाँ आपको ज़रूरत के अनुसार खाने-पीने की वस्तुएं मिल जाएँगी ! इसी कैफ़े के प्रांगण में एक बरामदा है जहाँ से झरने की खूबसूरती देखी जा सकती है ! यहाँ से बाईं ओर जाने वाला मार्ग सीधे भाग्सू वाटर फाल की तरफ जाता है ! मंदिर परिसर के पास से ही हितेश और शशांक तो लगभग दौड़ लगाते हुए बहुत तेजी से झरने की तरफ बढ़ गए, और मैं विपुल के साथ चलते हुए थोड़ा पीछे रह गया !
दरवाजा पार करने पर हमें हितेश और शशांक में से कोई भी दिखाई नहीं दिया ! विपुल को लगा कि कहीं ये दोनों लोग पीछे ना रह गए हो, इसलिए थोड़ी देर कैफ़े में इंतज़ार करने के बाद हम लोग भी झरने की तरफ बढ़ गए ! कैफ़े से थोड़ा आगे बढ़ते ही हम दोनों ने सीधे रास्ते पर आगे ना जाकर नीचे उतरकर पानी के बहाव की विपरीत दिशा में आगे बढ़ना शुरू कर किया, पिछले साल धर्मशाला आने पर भी हम इसी मार्ग से झरने तक गए थे ! मेरा तर्क है कि ऐसी यात्रा में बिना रोमांच के आगे बढ़ने में मजा नहीं आता, और जिस रास्ते से सभी लोग आगे बढ़ रहे थे हमें उस रास्ते पर कुछ रोमांच नज़र नहीं आ रहा था ! पत्थरों पर चढ़ते-उतरते हुए उबड़-खाबड़ रास्तों और झाड़ियों के बीच में से होते हुए हम लोग झरने की ओर आगे बढ़ रहे थे, मुझे यकीन था कि अगर शशांक और हितेश हमसे आगे चले गए होंगे तो इसी मार्ग से गए होंगे ! झरने की ओर जाते हुए हम दोनों बीच-2 में रुक कर थोड़ा आराम भी कर ले रहे थे और इधर-उधर के नज़ारे भी देखते जा रहे थे, कुछ सुंदर दृश्यों को तो हमने अपने कैमरे में भी क़ैद किया !
आधे घंटे उस दुर्गम रास्ते पर चलने के बाद हम लोग झरने तक पहुँचे, जहाँ हितेश और शशांक पहले ही पहुँच चुके थे और हम दोनों के पहुँचने के इंतजार कर रहे थे ! हम वहाँ एक घंटे से भी ज़्यादा देर तक झरने में नहाए और फिर पानी से बाहर निकल कर वहीँ एक पत्थर पर बैठ गए ! झरने के पास दो-तीन दुकानें है जहाँ बैठकर हमने आमलेट और मैगी का आनंद लिया ! जब पेट पूजा हो गई तो फिर से हम लोग झरने में कूद गए ! दो-तीन बार नहाने के बाद पानी से बाहर आकर समय देखा तो अभी पांच बजने में बीस मिनट शेष थे ! फिर हमने वापसी की राह पकड़ी, और उसी रास्ते से वापस आने लगे जिस रास्ते से हम लोग झरने तक गए थे ! वापस आते हुए हमने रास्ते में कई जगह पत्थरों से घेराव करके पानी को रोक कर नहाने का आनंद लिया ! रुकते-रुकाते जब वापस मैक्लोडगंज पहुँचे तो अँधेरा हो चुका था, बाज़ार में ही एक दुकान पर रुककर थोड़ी पेट-पूजा की और फिर वापस अपने होटल पहुँच गए !
रात के खाने का आर्डर देकर हम अपने कमरे में चले गए, आधे घंटे बाद होटल का एक लड़का खाना लेकर हमारे कमरे में आ गया, हमने वहीँ बैठ कर खाना खाते हुए अगले दिन की यात्रा पर चर्चा भी की !अगले दिन हम त्रिउंड की चढ़ाई करने वाले थे जो पिछले समय के अभाव के कारण हम नहीं कर पाए थे !त्रिऊंड जाते हुए ही रास्ते में एक से बढ़कर एक नज़ारे दिखाई देते है और रास्ता भी पहाड़ियों और घने जंगल से होकर जाता है, जिसका वर्णन में इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा ! कल की यात्रा के लिए आराम करना भी ज़रूरी था इसलिए खाना खाने के बाद हम अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !
इसी चौराहे पर हमारी बस रुकी थी |
हितेश अपने नींद पूरी करते हुए |
रास्ते में तिराहे पर दिशा दर्शाता एक बोर्ड |
मक्लॉडगंज चौराहे पर दिशा सूचक बोर्ड |
मक्लॉडगंज चौराहे पर दिशा सूचक बोर्ड |
भाग्सू नाग झरने की ओर जाते हुए (On the way to Bhagsu Naag Water Fall) |
मुख्य मार्ग से नीचे घाटी में आता विपुल |
झरने तक जाने का घाटी वाला मार्ग (A view on the way to Bhagsu Naag) |
Amazing view of Bhagsu Naag trail |
झरने तक जाने का घाटी वाला मार्ग |
झरने की तरफ से नीचे देखने पर |
भाग्सू नाग झरने में नहाते हुए (A bath in Bhagsu Naag Waterfall) |
झरने तक जाने का पक्का मार्ग |
मक्लॉडगंज से अपने होटल जाते हुए |
मक्लॉडगंज से अपने होटल जाते हुए |
मक्लॉडगंज का मुख्य बाज़ार |
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
- दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
- पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
- खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
- कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन ( A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
- डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
- दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
- मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
- हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
- पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
ये झरना देख नहीं सके क्योकि लोगो ने बताया काफी दूर है
ReplyDeleteबहुत शानदार झरना है ये, अगर कभी मौका मिले तो यहाँ ज़रूर जाइए !
Deleteफ़ोटो देखने से लग रहा है कि प्राकृतिक सौंदर्य भरपूर है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने, यहाँ प्राकृतिक सौंदर्य बहुत है !
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