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आज मैं आपको दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस में स्थित एक छोटी लेकिन ऐतिहासिक जगह की सैर पर लेकर चल रहा हूँ ! इस ऐतिहासिक इमारत के पास से रोजाना हज़ारों लोग गुज़रते है लेकिन इस भीड़ में से गिनती के कुछ लोग ही इस खूबसूरत जगह को देखने जाते है ! जी हाँ, जिस ऐतिहासिक धरोहर की मैं बात कर रहा हूँ वो बाराखंबा रोड और मंडी हाउस मेट्रो स्टेशन से बराबर दूरी पर स्थित एक बावली है ! अगर आप अभी भी इस जगह का अनुमान नहीं लगा पाए है तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं अग्रसेन की बावली की बात कर रहा हूँ ! वैसे इस बावली तक जाने का रास्ता बहुत आसान है लेकिन ऊँची-2 इमारतों से घिरी होने के कारण दूर से इस बावली का पता ही नहीं चलता ! कई बार तो लोग इसके पास से निकल जाते है और जानकारी के अभाव में इस जगह को नहीं देख पाते ! मैं लोकल ट्रेन में बैठकर शिवाजी ब्रिज रेलवे स्टेशन पहुँचा, फिर स्टेशन से बाहर आकर पैदल ही बाराखंबा मेट्रो स्टेशन की ओर चल दिया ! बाराखंबा मेट्रो स्टेशन से मंडी हाउस की ओर चलने पर आगे जाकर दाई ओर एक मार्ग हैली रोड के लिए अलग होता है ! इसी मार्ग पर 200 मीटर चलने के बाद फिर दाईं ओर एक मार्ग अंदर गली में जाता है, इसी गली में ये बावली स्थित है !
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अग्रसेन की बावली का एक दृश्य (A Glimpse of Agrsen ki Baoli, New Delhi) |
इस गली की शुरुआत में ही बावली की जानकारी देता एक बोर्ड भी लगा हुआ है ! वैसे आप रेलवे स्टेशन से बावली तक जाने के लिए ऑटो भी कर सकते है जो आपको 30-40 रुपए में बावली के पास छोड़ देगा ! वैसे दिल्ली का जंतर-मंतर भी इस बावली से ज़्यादा नहीं मात्र 1.5 किलोमीटर दूर ही है, इसलिए अक्सर जंतर-मंतर देखने जाने वाले लोग इस बावली का रुख़ भी कर ही लेते है ! कहते है 60 मीटर लंबी और 15 मीटर चौड़ी इस बावली का निर्माण अगरोहा के महाराज अग्रसेन ने करवाया, अगरोहा हरियाणा के हिसार के पास स्थित एक कस्बा है ! ये भी कहा जाता है कि अग्रवाल समुदाय की उत्पत्ति महाराज अग्रसेन से ही हुई ! महाराज अग्रसेन के नाम पर इस बावली का नाम भी पड़ा, ये बावली काफ़ी प्राचीन है ! लोग इस बावली को अग्रसेन और उग्रसेन दोनों ही नाम से पुकारते है ! अन्य बावलियों की तरह इस बावली का निर्माण भी पानी को संरक्षित करने के लिए करवाया गया था, ताकि सूखा पड़ने पर या विषम परिस्थितियों में बावली में मौजूद पानी को प्रयोग में लाया जा सके ! बीसवीं सदी के शुरुआत में दिल्ली की हालत वर्तमान जैसी नहीं थी, तब यहाँ छोटे-2 गाँव, कस्बे, ऐतिहासिक इमारतों के अवशेष, और बगीचे हुआ करते थे ! उस समय यहाँ कुएँ और बावलियाँ ही पानी का मुख्य स्त्रोत हुआ करते थे, इन बावलियों से ही लोगों की पानी की ज़रूरतों को पूरा किया जाता था !
वर्तमान में इस बावली का पानी सूख चुका है और बावली से जुड़े कुएँ में भी मिट्टी भर गई है, लेकिन बावली की दीवारें आज भी अपने दौर की याद दिलाती है ! प्रेमी युगलो ने भी इस धरोहर पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी और कुएँ की दीवारों पर अपने नाम लिख-2 कर अपने प्रेम को अमर करने की भरपूर कोशिश की है ! वैसे बावली देखने आने वालों में अधिकतर संख्या प्रेमी युगलों की ही होती है, उनके अलावा फोटोग्राफी के शौकीन कुछ लोग भी यहाँ अक्सर आ ही जाते है ! जब मैं टहलता हुआ साढ़े नौ बजे बावली पर पहुँचा तो यहाँ गिनती के कुछ लोग मौजूद थे, लेकिन दिन चढ़ने के साथ ही यहाँ आने वाले लोगों की तादात भी बढ़ती गई ! अगर आप दिल्ली में शहर की भीड़-भाड़ से दूर किसी एकांत जगह की तलाश में है तो ये आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! शहर के बीचों-बीच स्थित इस जगह के लिए आपको ज़्यादा दूर भी नहीं जाना होगा और इतिहास के बारे में भी कुछ जानने को ही मिलेगा ! प्रेमी जोड़े यहाँ घंटो बाहों में बाहें डाल कर एक दूसरे में खोए रहते है जिन्हें दीन-दुनिया की कोई परवाह नहीं है, वो तो बस एक दूसरे में ही खो जाना चाहते है !
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बावली जाने का मार्ग (Way to Baoli) |
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बावली का प्रवेश द्वार (Entrance to Baoli) |
बावली के प्रवेश द्वार पर एक लोहे का गेट लगा है, सीढ़ियों से होते हुए आप इस गेट को पार करके बावली परिसर में पहुँच जाओगे ! यहाँ आपके दाईं ओर एक कमरा है जिसके दरवाजे पर ताला लगा है जबकि आपके बाईं ओर एक छोटा मैदान है ! यहाँ एक विशाल पेड़ भी है जिसकी डालियों पर बैठकर कबूतर और दूसरे पक्षी लोगों की राह देखते रहते है कि कब कोई आए और वो उन्हें अपनी बीट का शिकार बनाए ! मैदान में मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक सामने कुछ और सीढ़ियों से चढ़कर मैं एक चबूतरे पर पहुँचा, जहाँ मेरी बाईं ओर बावली तक जाने की सीढ़ियाँ थी जबकि दाएं कोने में एक अस्थाई कक्ष बनाया गया है ! इस अस्थाई कक्ष के ठीक सामने एक क्षतिग्रस्त मस्जिद भी है, जिसकी छत का एक हिस्सा गिर चुका है ! बावली की तलहटी तक जाने के लिए 104 सीढ़ियाँ बनी हुई है, इन सीढ़ियों की चौड़ाई काफ़ी अधिक है ! इस बावली का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है, सीढ़ियों के दोनों ओर मजबूत चौड़ी दीवारें है जिनमें कई गुप्त दरवाजे, मोखले और कमरे बने है ! इन गुप्त दरवाज़ों को लोहे के गेट लगाकर बंद कर दिया गया है जबकि मोखले यहाँ रहने वाले सैकड़ों कबूतरों का आवास बन चुके है !
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बावली में एक अस्थाई कमरा |
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बावली परिसर में मस्जिद |
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अग्रसेन की बावली |
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अग्रसेन की बावली |
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बावली का एक और दृश्य |
जैसे-2 आप तलहटी की ओर बढ़ने लगते है, बाहर का शोर-शराबा ख़त्म हो जाता है और बावली की तलहटी में पसरे सन्नाटे में आपको अपने कदमो की आवाज़ भी काफ़ी तेज लगने लगती है ! शाम के समय या एकांत में नीचे जाने पर आपको एक अलग ही अनुभव होगा जो आपको रोमांचित कर देगा ! इस दौरान बावली के सबसे ऊपर वाले भवन की छत पर चिपके चमगादड़ो की आवाज़ भी काफ़ी डरावनी लगती है, इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि अब कोई चमगादड़ नीचे गिरा ! वैसे, इस बावली को दिल्ली की भूतिया जगहों में शुमार किया जाता है, क्योंकि इस बावली में कुछ लोग कूदकर अपनी जान भी दे चुके है ! कहते है 70 के दशक में इस बावली में खूब पानी हुआ करता था, बावली का वो काला पानी यहाँ आने वाले लोगों को अपनी और आकर्षित करता था ! इस कारण कुछ लोगों ने तो पानी में गिरकर अपनी जान तक गँवा दी, फिलहाल सूख चुकी इस बावली को पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित घोषित किया जा चुका है ! फिर भी इस बावली में जाने का कोई प्रवेश शुल्क नहीं है, बावली के प्रवेश द्वार के पास ही एक-दो फेरी वाले खाने-पीने का सामान बेचते रहते है !
सीढ़ियों से नीचे उतरकर आप बावली के उत्तरी भाग में पहुँच जाओगे जहाँ 7.8 मीटर व्यास का एक कुआँ मौजूद है, कुआँ अब सूख चुका है और इसके ऊपरी भाग को भी लोहे की सलाखें लगाकर बंद कर दिया गया है ! ये कुआँ बावली से एक छोटे दरवाजे के माध्यम से जुड़ा हुआ है ! प्राचीन काल में जब कुएँ का जल स्तर बढ़ता था तो ये जल छोटे दरवाजे से होते हुए बावली में आ जाया करता था, जहाँ ये लंबे समय तक संरक्षित किया जाता था ! लोगों का मानना है कि सूर्यास्त के बाद यहाँ शैतानों का वास होता है, लेकिन मैं इस बात को सच नहीं मानता ! सुनसान होने के कारण ये जगह थोड़ी डरावनी ज़रूर लगती है, लेकिन कुछ लोग तथ्यों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करते है ! चार मंज़िला इस बावली की हर मंज़िल पर द्वार बने हुए है, दूसरे तल के ऊपर तो बावली के द्वार तक जाने के लिए छज्जे भी बने हुए है ! यहाँ आमिर ख़ान की फिल्म पीके (PK) का एक दृश्य भी फिल्माया गया था, जिसके बाद ये बावली काफ़ी दिनों तक चर्चा में भी रही थी ! इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद बावली आने वाले लोगों की तादात में भी काफ़ी इज़ाफा हुआ था !
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बावली का एक और दृश्य |
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बावली में जाने की सीढ़ियाँ |
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बावली में जाने की सीढ़ियाँ |
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बावली में जाने की सीढ़ियाँ |
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नीचे से दिखाई देती बावली |
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बावली का एक दृश्य |
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कुएँ में जाने की खिड़की |
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कुएँ में जाने की खिड़की |
वैसे भारत में मौजूद ऐतिहासिक इमारतों का वजूद तभी तक बचा हुआ है जब तक यहाँ पर्यटक आते रहें ! क्योंकि तभी तक इन जगहों की देख-रेख भी होती है, कुछ जगहें तो ऐसी भी है जहाँ पर्यटकों के आने के बावजूद भी देख-रेख पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाता ! वैसे पर्यटकों को खींचने के लिए पर्यटन विभाग समय-2 पर विभिन्न कार्यक्रम भी चलाता है, जिसमें फिल्मी हस्तियों का भी सहारा लिया जाता है ! सलमान ख़ान की सुल्तान (Sultan) फिल्म के कुछ दृश्य भी यहाँ फिल्माए गए है ! आप भी अपनी व्यस्त दिनचर्या से थोड़ा समय निकाल कर किसी भी छुट्टी वाले दिन इस जगह को देखने निकल जाएँगे, मेरा विश्वास है कि आप यहाँ जाकर निराश नहीं होंगे ! ये बावली प्रतिदिन सुबह 7 बजे से लेकर शाम को 6 बजे तक खुली रहती है और यहाँ आने के लिए सबने नज़दीकी मेट्रो स्टेशन बाराखंबा रोड और मंडी हाउस है ! जहाँ से आप पैदल या ऑटो रिक्शा लेकर पहुँच सकते है ! वैसे तो यहाँ किसी भी मौसम में आया जा सकता है लेकिन ठंडा मौसम यहाँ घूमने के लिए उपयुक्त है !
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बावली की छत पर चिपके चमगादड़ |
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कुएँ से दिखाई देती सीढ़ियाँ |
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कुएँ में जाने का मार्ग |
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बावली के बगल में कुआँ |
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कुएँ का ऊपरी भाग |
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कुएँ का ऊपरी भाग |
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कुएँ से दिखाई देती सीढ़ियाँ |
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कुएँ से दिखाई देती सीढ़ियाँ |
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बावली का एक और दृश्य |
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बावली का एक और दृश्य |
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बावली का एक और दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Agrsen ki Baoli): अगर आपको ऐतिहासिक बावली देखना पसंद है तो आप अग्रसेन की बावली का रुख़ कर सकते है, इस बावली को देखकर कोई अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता कि यहाँ दिल्ली के बीचों-बीच व्यस्त इलाक़े में इतनी सुंदर जगह भी हो सकती है !
कब जाएँ (Best time to go Agrsen ki Baoli): आप साल भर किसी भी दिन यहाँ जा सकते है लेकिन अगर ठंडे मौसम में जाएँगे तो ज़्यादा अच्छा रहेगा !
कैसे जाएँ (How to reach Agrsen ki Baoli): दिल्ली के कनाट प्लेस में स्थित इस बावली को देखने के लिए आप मेट्रो से जा सकते है, इस बावली के सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन बाराखंबा रोड है जहाँ से इस बावली की दूरी महज एक किलोमीटर है ! मेट्रो स्टेशन से उतरकर आप पैदल भी जा सकते है या ऑटो ले सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay in Delhi): अगर आप आस-पास के शहर से इस बावली को देखने आ रहे है तो शायद आपको रुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! जो लोग कहीं दूर से दिल्ली भ्रमण पर आए है उनके रुकने के लिए कनाट प्लेस और इसके आस-पास रुकने के लिए बहुत विकल्प मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see near Agrsen ki Baoli): अगर दिल्ली भ्रमण पर निकले है तो दिल्ली में घूमने के लिए जगहों की कमी नहीं है आप लाल किला, जामा मस्जिद, राजघाट, लोधी गार्डन, हुमायूँ का मकबरा, इंडिया गेट, चिड़ियाघर, पुराना किला, क़ुतुब मीनार, सफ़दरजंग का मकबरा, कमल मंदिर, अक्षरधाम, कालकाजी मंदिर, इस्कान मंदिर, छतरपुर मंदिर, और तुगलकाबाद के किले के अलावा अन्य कई जगहों पर घूम सकते है ! ये सभी जगहें आस-पास ही है आप दिल्ली भ्रमण के लिए हो-हो बस की सेवा भी ले सकते है या किराए पर टैक्सी कर सकते है ! बाकि मेट्रो से सफ़र करना चाहे तो वो सबसे अच्छा विकल्प है !
अगले भाग में जारी...
दिल्ली भ्रमण
- इंडिया गेट, चिड़ियाघर, और पुराना किला (Visit to Delhi Zoo and India Gate)
- क़ुतुब-मीनार में बिताए कुछ यादगार पल (A Day with Friends in Qutub Minar)
- अग्रसेन की बावली - एक ऐतिहासिक धरोहर (Agrasen ki Baoli, New Delhi)
- बहाई उपासना केंद्र - कमल मंदिर - (Lotus Temple in Delhi)
- सफ़दरजंग के मक़बरे की सैर (Safdarjung Tomb, New Delhi)
- लोधी गार्डन - सिकंदर लोदी का मकबरा (Lodhi Garden - Lodhi Road, New Delhi)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - पहली कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - दूसरी कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
प्रदीप जी बहुत ही बढिया जानकारी व फोटो,मै आजतक जानकारी होने के वाबजूद यहां नहीं जा पाया हूँ, वाकई सुंदर जगह है।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन भाई !
Deleteबहुत ही सुन्दर चित्र और लेख ।
ReplyDeleteधन्यवाद कपिल भाई !
Deleteएक से बढ़कर एक फ़ोटो । इन्हें देखकर किसका मन न होगा की इतिहास की इस धरोहर से रूबरू होया जाय ।
ReplyDeleteइसके साथ अपने वहा पहुचने से लेकर वह के अंदर तक जाने के रास्तो को इस तरह बताया की हमे लगा हम आपके साथ सर कर रहे है ।
एक जगह शायद आपको किसी ने भ्रमित किया है । ये बावली का निर्माण राजा अग्रसेन ने किया है ।जिनका महाभारत काल से कोई रिश्ता नहीं है ।ये अग्रवाल समाज के संस्थापक के रूप में जाने जाते है । जो कुछ सौ वर्षो पहले की बात है ।हाँ कुछ लोगो का मानना है की ये बावली महाभारत काल की है जिनका पुनःनिर्माण राजा अग्रसेन जी (अगरोहा)ने कराया था ।
ये बात तो साफ है की इनका महाभारत वाले राजा अग्रसेन से कोई रिश्ता न था ।
जय भारत माता की
किशन जी मेरा ध्यान इस ओर आकर्षित करने और जानकारी देने के लिए धन्यवाद ! त्रुटि को अब सही कर दिया गया है, आप लोगों का सहयोग सदैव सराहनीय है !
Deleteबहुत बढ़िया प्रदीप जी..... कनाट प्लेस के पास तो हम भी कई बार गुजरे...पर यहाँ का न पता था ...| आपने उग्रसेन के बाबली के फोटो दर्शन करा कर अच्छा किया |
ReplyDeleteमेरा मानना है की महाराज अग्रेसन तो नही हो सकते पर महाराज उग्रसेन हो सकते है और महाभारत कालीन अवशेष कहाँ बचे है ..... ये मध्यकालीन समय की बाबड़ी हो सकती है |
रितेश भाई, इस बावली का निर्माण अगरोहा के महाराज अग्रसेन ने करवाया था !
Deletenice pics bro...keep it up :)
ReplyDeleteThanks bro !!
DeleteThank you...
ReplyDeleteशानदार यात्रा प्रदीप जी ! पुरानी यादें ताजा हो गईं फिर से !!
ReplyDeleteजानकर अच्छा लगा कि यात्रा लेख से आपकी यादें ताज़ा हो गई !
DeleteAap ne ghar baithe baithe hi hume ugrasen ki bawadi ki yatra karwa di
ReplyDeleteजानकर अच्छा लगा कि लेख पढ़कर आपको महसूस हो रहा है कि आपकी घर बैठे ही यात्रा संपन्न हो गई !
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