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दिल्ली घूमते हुए आज मैं आपको दिल्ली की एक और ऐतिहासिक इमारत को घुमाने लेकर चल रहा हूँ, ये इमारत भी दिल्ली के एक व्यस्त इलाक़े में स्थित है ! ज़ोर बाग मेट्रो स्टेशन के पास स्थित इस इमारत से लोधी गार्डन भी बहुत ज़्यादा दूर नहीं है ! अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं सफ़दरजंग के मक़बरे की बात कर रहा हूँ, जो दिल्ली का एक ऐतिहासिक स्थल है ! 1754 में बने इस मक़बरे का निर्माण नवाब शुजा-उद्-दौला ने अपने पिता मिर्ज़ा-मुकीम-अबुल-मंसूर-ख़ान के सम्मान में करवाया था ! मुगल शासक मुहम्मद शाह के शासन काल में मिर्ज़ा साहब अवध प्रांत के गवर्नर थे और उन्होने अवध प्रांत पर स्वतंत्र शासक की तरह राज किया ! इस दौरान उन्हें सफ़दरजंग की उपाधि से नवाजा गया था, वे काफ़ी धनवान और ताकतवर शासक थे ! मुहम्मद शाह का शासनकाल 1719 से 1748 तक रहा, 1748 में मुगल शासक की मृत्यु के बाद मिर्ज़ा साहब अवध से दिल्ली चले आए ! फिर जब अहमद शाह ने दिल्ली की कमान संभाली तो मिर्ज़ा साहब को दिल्ली की सल्तनत का मुख्य मंत्री (वज़ीर) बनाया गया !
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सफ़दरजंग के मक़बरे का एक दृश्य |
वज़ीर बनते ही मिर्ज़ा साहब ने सारी बागडोर अपने हाथ में ले ली, और अहमद शाह सिर्फ़ एक कठपुतली बनकर रह गए जो शराब और दूसरे व्यसनों में फँस गए ! मिर्ज़ा साहब ने अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल किया, परिणामस्वरूप मुगल परिवार ने अबुल-मंसूर-ख़ान से छुटकारा पाने के लिए अपने हिंदू सहयोगियों को बुला लिया ! दोनों गुटों में जंग छिड़ी और अंतत: 1753 में अबुल-मंसूर-ख़ान को दिल्ली से खदेड़ दिया गया ! कुछ समय पश्चात 1754 में उनकी मृत्यु हो गई, जिसके पश्चात उनके पुत्र शुजा-उद्-दौला ने मुगल शासकों से अपने पिता के लिए दिल्ली में एक मकबरा बनवाने के लिए निवेदन किया ! अनुमति मिलने के बाद मक़बरे का निर्माण कार्य शुरू हुआ और बहुत कम समय में ही ये मकबरा बनकर तैयार हो गया ! इस मक़बरे का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व दिशा में है, मुख्य द्वार से मक़बरे तक जाने के लिए एक पक्का मार्ग बना है ! इस मार्ग पर दोनों ओर बड़े सुंदर फूल-पौधे लगे है और मक़बरे के ठीक सामने एक बड़ा तालाब है जिसमें फव्वारे भी लगे है ! हालाँकि, इस तालाब में अब पानी नहीं है और ये फव्वारे भी अब नहीं चलते !
मक़बरे तक जाने के लिए सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन ज़ोर बाग है, जहाँ से आप पैदल ही इस मक़बरे तक पहुँच सकते है ! इसके अलावा लोधी रोड जाने वाली दिल्ली परिवहन निगम की हर बस यहाँ रुकती है ! इस मक़बरे के बाहर पार्किंग की भी उचित व्यवस्था है इसलिए आप यहाँ निजी वाहन से भी आ सकते है ! मक़बरे का प्रवेश शुल्क मात्र 5 रुपए है और कैमरे के लिए अलग से कोई शुल्क नहीं देना होता ! पार्किग स्थल में एक-दो फेरी वाले खाने-पीने का सामान बेचते रहते है, और मक़बरे के ठीक सामने एक पुलिस की जिप्सी भी चक्कर लगाती रहती है ! मकबरा घूमने के लिए ठंडा मौसम सबसे बढ़िया है क्योंकि गर्मी में किले या मक़बरे में चलते-2 पसीने छूट जाएँगे ! बेहतर रहेगा आप ठंडी या बारिश के मौसम में यहाँ घूमने जाएँ ! ये मकबरा घूमने के लिए एक से डेढ़ घंटा पर्याप्त रहेगा, फोटोग्राफ़ी के शौकीन लोगों के लिए यहाँ बहुत कुछ है !
इस बहु-मंज़िला मक़बरे के प्रथम तल में कई कमरे, एक बरामदा और एक मस्जिद है ! इस मक़बरे से चारों दिशाओं में मार्ग बने है, जिनके अंत में अलग-2 इमारतें बनी है ! पूर्व से तो मक़बरे का प्रवेश द्वार है, जिसके ठीक सामने एक बगीचा है जिसका नाम चारबाग है ! उत्तर दिशा में मोती महल, दक्षिण में बादशाह पसंद, और मक़बरे के पश्चिमी भाग में जंगली महल है ! हालाँकि, वर्तमान में ये सभी इमारतें पुरातत्व विभाग के अधीन है, और तीनों दिशाओं में स्थित ये महल अब पुरातत्व विभाग के कार्यालय के रूप में उपयोग में लाए जा रहे है ! मक़बरे के चारों ओर बने बगीचे में चलने के लिए पक्के मार्ग बने हुए है ! मक़बरे की मुख्य इमारत वर्गाकार है जिसकी लंबाई-चौड़ाई 18 मीटर है, इस मक़बरे को बनाने में लाल और सफेद पत्थर का प्रयोग हुआ है ! कहते है इस मक़बरे को बनाने के लिए पत्थर अब्दुर-रहीम-ख़ान-ए-खाना के मक़बरे से उखाड़े गये थे ! मक़बरे के निचले भाग में कई दरवाजे बने है जिनसे होते हुए मक़बरे तक जाने वाली सीढ़ियों तक जाया जाता है !
इस मक़बरे की ख़ासियत है कि इसे किसी भी कोने से देखने पर ये एक जैसा ही लगता है, मतलब इसके हर कोने की बनावट बिल्कुल एक जैसी है ! मक़बरे के चारों कोनों पर ऊँची-2 मीनारें बनी है और इन मीनारों के ऊपरी भाग में गुंबद बने है ! मक़बरे के सबसे ऊपरी भाग में जाने पर तो पाबंदी है लेकिन इसके प्रथम तल पर बने चबूतरे तक जाया जा सकता है ! मैं भी सीढ़ियों से होता हुआ मक़बरे के अंदर पहुँच गया, यहाँ कई दरवाजे बने हुए है ! इन दरवाज़ों से होते हुए मैं इमारत के बीचों-बीच पहुँचा जहाँ मिर्ज़ा साहब की कब्र बनी हुई है ! यहाँ से कुछ फोटो लेने के बाद मैं कब्र के बगल वाले कमरे में पहुँच गया, ये कमरा चारों ओर से खुला हुआ था इसलिए यहाँ से देखने पर मक़बरे परिसर में दूर तक की खूबसूरती एकदम साफ दिखाई दे रही थी ! इस मक़बरे के भीतरी भाग की दीवारों और छत पर खूब बढ़िया कारीगरी की गई है, आज भी ये इमारत देखकर ऐसा लगता है जैसे ये अभी बनाई गई हो !
मुख्य प्रवेश द्वार के पास भी एक इमारत बनी है और इसमें कई कमरे भी है, प्रवेश करते वक़्त तो मैने ध्यान नहीं दिया था लेकिन अब मक़बरे के बाहर बने बरामदे में खड़े होकर सबकुछ एकदम साफ दिखाई दे रहा था ! इसके अलावा मक़बरे परिसर में लगे फूल-पौधे और उनकी ओट में बैठकर विभिन्न क्रिया-कलाप करते प्रेमी-युगलों को देखकर कोई भी शरमा जाए ! मक़बरे परिसर में मैं कहीं भी फोटो खींचने के उद्देश्य से जाता तो वहीं ये प्रेमी-युगल बैठे दिख जाते, जिनमें से कुछ तो अपनी सीमाओं के बिल्कुल किनारे बैठे थे तो कुछ लाँघ भी चुके थे ! इन्हें शायद कुछ फ़र्क नहीं पड़ता सामने वाले को ही शर्म करते हुए वापिस लौटना पड़ता है, मैं भी कई जगह फोटो खींचने के उद्देश्य से गया लेकिन मुझे बेरंग ही वापिस लौटना पड़ा ! इस मक़बरे के प्रवेश द्वार के पास दाईं ओर एक मस्जिद भी है जो हर शुक्रवार को खुलती है और इसमें गैर मुस्लिम लोगों के जाने पर पाबंदी है !
2013 में बनी हॉलीवुड की एक फिल्म जॉब्स के दृश्य इस मक़बरे के परिसर में ही फिल्माए गए थे ! इसके अलावा लोग यहाँ शादी के एलबम के लिए दूल्हा-दुल्हन को प्री-वेडिंग फोटोग्राफ़ी के लिए लेकर आते है ! जिस दिन मैं यहाँ घूमने गया था एक जोड़ा अपनी शादी के लिए कुछ फोटो खिंचवाने के लिए इस मक़बरे परिसर में आए थे ! मक़बरे परिसर में काफ़ी देर तक घूमने और खूब सारी फोटो खींचने के बाद मैं बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिया ! दोपहर हो गई थी और धूप भी बहुत तेज लगने लगी थी, मक़बरे से बाहर आकर मैं लोधी गार्डन की ओर चल दिया, जिसका वर्णन मैं अपने अगले लेख में करूँगा !
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मक़बरे का मुख्य प्रवेश द्वार |
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दूर से दिखाई देता मक़बरे का एक दृश्य |
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प्रवेश द्वार के पास बने भवन |
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मक़बरे परिसर में खिले फूल |
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मक़बरे परिसर में खिले फूल |
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मक़बरे परिसर में खिले फूल |
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मक़बरे के बाहर बना मस्जिद |
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मक़बरे परिसर में खिले फूल |
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मक़बरे परिसर में खिले फूल |
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मक़बरे के ऊपरी भाग में बने गुंबद |
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मक़बरे में जाने की सीढ़ियाँ |
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मक़बरे से दिखाई देते फव्वारे |
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मक़बरे की दीवारों पर की गई कारीगरी |
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मक़बरे की दीवारों पर की गई कारीगरी |
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मक़बरे की छत पर की गई कारीगरी |
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मक़बरे से दिखाई देता महल |
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मक़बरे में बनी कब्र |
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मक़बरे का एक और दृश्य |
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मक़बरे का एक और दृश्य |
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प्रवेश द्वार से दिखाई देता मकबरा |
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मक़बरे के बाहर वाली मस्जिद |
क्यों जाएँ (Why to go Safdarjung Tomb): अगर इतिहास में आपकी रूचि है, किलों और मकबरों में घूमना आपको अच्छा लगता है तो निश्चित रूप से ये आपके लिए एक उत्तम स्थान है !
कब जाएँ (Best time to go Safdarjung Tomb): आप साल भर किसी भी दिन यहाँ जा सकते है लेकिन अगर ठंडे मौसम में जाएँगे तो ज़्यादा अच्छा रहेगा !
कैसे जाएँ (How to reach Safdarjung Tomb): सफ़दरजंग के मक़बरे को देखने के लिए आप मेट्रो से जा सकते है, इस मक़बरे के सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन ज़ोरबाग है जहाँ से ये महज आधा किलोमीटर दूर है जिसे आप पैदल भी तय कर सकते है या रिक्शा ले सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay in Delhi): अगर आप आस-पास के शहर से इस मक़बरे को देखने आ रहे है तो शायद आपको रुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! जो लोग कहीं दूर से दिल्ली भ्रमण पर आए है उनके रुकने के लिए दिल्ली में रुकने के बहुत विकल्प मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see near Safdarjung Tomb): अगर दिल्ली भ्रमण पर निकले है तो दिल्ली में घूमने के लिए जगहों की कमी नहीं है आप लाल किला, जामा मस्जिद, राजघाट, लोधी गार्डन, हुमायूँ का मकबरा, इंडिया गेट, चिड़ियाघर, पुराना किला, क़ुतुब मीनार, कमल मंदिर, अक्षरधाम, कालकाजी मंदिर, अग्रसेन की बावली, इस्कान मंदिर, छतरपुर मंदिर, और तुगलकाबाद के किले के अलावा अन्य कई जगहों पर घूम सकते है ! ये सभी जगहें आस-पास ही है आप दिल्ली भ्रमण के लिए हो-हो बस की सेवा भी ले सकते है या किराए पर टैक्सी कर सकते है ! बाकि मेट्रो से सफ़र करना चाहे तो वो सबसे अच्छा विकल्प है !
अगले भाग में जारी...
दिल्ली भ्रमण
- इंडिया गेट, चिड़ियाघर, और पुराना किला (Visit to Delhi Zoo and India Gate)
- क़ुतुब-मीनार में बिताए कुछ यादगार पल (A Day with Friends in Qutub Minar)
- अग्रसेन की बावली - एक ऐतिहासिक धरोहर (Agrasen ki Baoli, New Delhi)
- बहाई उपासना केंद्र - कमल मंदिर - (Lotus Temple in Delhi)
- सफ़दरजंग के मक़बरे की सैर (Safdarjung Tomb, New Delhi)
- लोधी गार्डन - सिकंदर लोदी का मकबरा (Lodhi Garden - Lodhi Road, New Delhi)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - पहली कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - दूसरी कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
Nice clicks Mr.pardeep.
ReplyDeleteThank you Mr. Sachin...
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