वीरवार, 24 दिसंबर 2009
दिसंबर 2009 की एक दोपहर थी, जब में अपने दफ़्तर में बैठा खाना खाने की तैयारी में था, दिन काफ़ी व्यस्त चल रहे थे, दफ़्तर के लिए सुबह 6 बजे घर से निकलकर रात को 10 बजे घर में वापसी होती थी, रोजाना इस दिनचर्या से परेशान हो चुका था ! उस दौरान अर्थव्यवस्था ठीक ना होने के कारण नौकरियों की भी खूब मारा मारी थी, इन दिनों मैं संविदा पर एक कंपनी के माध्यम से दिल्ली हवाई अड्डे पर कार्यरत था ! दोपहर का खाना खाने के लिए अभी बैग से निकाला ही था कि तभी मेरा फोन बजा, उठाकर देखा तो ये जयंत था, कुशल-क्षेम पूछने के बाद वो बोला, कहीं घूमने चलेगा क्या ? जब मैने जगह के बारे में पूछा तो वो बोला, जगह का अभी सोचा नहीं है पर अगर 3-4 दोस्त हो गए, तो जगह भी सोच लेंगे ! इस साल मार्च में शिर्डी से आने के बाद मेरी कोई यात्रा नहीं हुई थी, इसलिए अपने दोस्तों को बोल रखा था अगर किसी का कहीं घूमने जाने का विचार बने तो मुझे भी ज़रूर बताना, मौका मिला तो मैं भी साथ चल दूँगा !
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गाड़ी का टायर बदलने के दौरान लिया एक चित्र (Somewhere in Meerut)
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आज इसी सिलसिले में जब जयंत का फोन आया तो मैने इस यात्रा पर उसके साथ चलने के लिए अपनी सहमति दे दी ! हालाँकि, नौकरी पक्की नहीं थी, और अभी तक दफ़्तर में छुट्टी की बात भी नहीं की थी ! मैने सोचा एक बार जगह और यात्रा की तारीख का पता चल जाए तो छुट्टी का भी देख लेंगे ! 3-4 दिन बाद जयंत का ये बताने के लिए फिर से फोन आया कि जगह और यात्रा की तारीख सुनिश्चित हो गई है ! योजना के मुताबिक आज से ठीक 6 दिन बाद यानि 24 दिसंबर को हम चार मित्र जयंत, राहुल, पवन और मैं उत्तराखंड में स्थित चकराता के लिए निकलने वाले थे, इस बार हम लोग क्रिसमस की शाम चकराता में ही बिताने वाले थे ! मैने इस जगह के बारे में पहले कभी नहीं सुना था और सुनता भी कैसे उत्तराखंड में तो ये मेरी पहली ही यात्रा थी ! थोड़ी देर तक चकराता के बारे में जयंत से जानकारी लेता रहा फिर उसने ये कहकर फोन काट दिया कि चलने की तैयारियाँ शुरू कर दे !
अधिकतर लोग तो चकराता के बारे में जानते ही होंगे, लेकिन जिन लोगों ने पहले इस जगह के बारे में कभी नहीं सुना उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि चकराता उत्तराखंड के पहाड़ों में स्थित एक छावनी क्षेत्र है ! समुद्र तल से 2118 मीटर की ऊँचाई पर स्थित चकराता टोन्स और यमुना नदी के बीच में बसा एक पहाड़ी क्षेत्र है ! देहरादून से चकराता की दूरी लगभग 88 किलोमीटर है, वैसे तो यहाँ देखने के लिए कई जगहें है पर देवबन, और टाइगर फॉल प्रमुख है ! दिसंबर-जनवरी में तो यहाँ काफ़ी ठंड रहती है, इसलिए इस समय यहाँ पर्यटकों की मारा-मारी ज़्यादा नहीं होती ! धीरे-2 दिन बीतते गए और यात्रा का दिन भी आ गया ! आज मैं किसी ज़रूरी काम से पूरे दिन की छुट्टी पर था, यात्रा पर जाने के लिए ले जाने वाले सारे सामान की पैकिंग मैने एक दिन पहले ही कर ली थी, ताकि अंतिम समय में कोई मारा-मारी ना हो ! शाम को जब जयंत से बात की तो पता चला कि उसने इस यात्रा पर जाने के लिए टैक्सी का बंदोबस्त कर लिया है, और मुझे जयंत से फरीदाबाद में ही मिलना था !
सफ़र की शुरुआत हुई शाम 6 बजे, जब मैं पलवल रेलवे स्टेशन पर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस पकड़ने के लिए पहुँच गया, निर्धारित समय से 10 मिनट की देरी से ट्रेन आई और फिर थोड़ा समय यहाँ रुककर चल भी दी ! पौने घंटे बाद यानी साढ़े सात बजे मैं फरीदाबाद रेलवे स्टेशन पर उतरा और स्टेशन से बाहर आकर एटीम से पैसे निकालने के बाद जयंत को फोन मिलाने लगा ! बात करते हुए मैने जयंत को बता दिया कि मैं फरीदाबाद पहुँच चुका हूँ, और यहाँ रेलवे स्टेशन पर खड़ा उसका इंतजार कर रहा हूँ ! फोन रखने के 15 मिनट बाद जयंत वहाँ अपनी मोटरसाइकल से आया और मुझे अपने साथ लेकर चल दिया ! पूछने पर उसने बताया कि अभी टैक्सी वाला नहीं आया है, जैसे ही वो यहाँ पहुँचेगा हम लोग सफ़र के लिए निकल लेंगे ! हम रास्ते में ही थे कि तभी टैक्सी वाले का फोन आया, वो जयंत के घर गाड़ी लेकर पहुँच चुका है ! जल्दी से घर पहुँचकर जयंत ने भी अपना बैग उठाया और गाड़ी में रखकर हम तीनों मैं, जयंत, और टैक्सी वाला गुड़गाँव के लिए चल दिए !
इस यात्रा पर हमारे साथ जाने वाले दो अन्य मित्र हमें गुड़गाँव से मिलने वाले थे, ये दोनों मित्र अभी अपने दफ़्तर में ही थे ! मैं तो आज पूरे दिन अवकाश पर था, जबकि जयंत इस यात्रा के लिए अपने दफ़्तर से जल्दी घर आ गया था ! गुड़गाँव पहुँचे तो रात के 9 बजने वाले थे, यहाँ आकर सबसे पहले उबले अंडों से पेट पूजा की और फिर अपने तीसरे साथी पवन को उसके दफ़्तर से अपने साथ ले लिया ! यहाँ से निकलकर हम सब अपने चौथे साथी राहुल को लेने के लिए कापसहेडा बॉर्डर स्थित उसके दफ़्तर पहुँच गए, समय रात के साढ़े दस बज रहे थे, और अभी भी उसकी शिफ्ट ख़त्म होने में आधा घंटा बाकी था ! वहीं उसके दफ़्तर के बाहर खड़े होकर उसका इंतजार किया, तय समय पर वो अपने दफ़्तर से बाहर आया और फिर हम लोग अपने इस सफ़र के लिए चल दिए ! दिल्ली में प्रवेश करने के बाद हम सब धौला कुआँ होते हुए नोयडा की ओर बढ़ गए !
नोयडा से निकलने के बाद हम गाज़ियाबाद में कहीं थे यहाँ से आगे बढ़ने के लिए ड्राइवर को रास्ता ही नहीं मिल रहा था ! हम काफ़ी देर तक गाज़ियाबाद में ही भटकते रहे ! उस समय गूगल मैप तो चलता था लेकिन हम में से किसी के पास भी मल्टिमीडिया फोन तो नहीं था, इसलिए रास्ता भी नहीं ढूँढ सकते थे ! इंटरनेट से रूट मैप के कुछ प्रिंट निकलवा कर लाए थे लेकिन वर्तमान स्थिति का ना पता होने के कारण हम घंटो गाज़ियाबाद में ही भटकते रहे ! अब इतनी रात को कोई मिला भी नहीं जिससे रास्ता पूछ सके ! जैसे-तैसे करके यहाँ से बाहर निकले तो देहरादून जाने वाले मार्ग पर चल दिए, मेरठ पहुँचे तो हमारी गाड़ी पन्चर हो गई ! सड़क के किनारे रुककर अंधेरे में ही टॉर्च दिखाकर गाड़ी का टायर बदला और अपना आगे का सफ़र जारी रखा ! हमारा सफ़र सारी रात का था और ऐसे में हम पन्चर टायर लेकर नहीं चलना चाहते थे इसलिए अब हम सबकी आँखें पन्चर वाले को ढूँढने लगी !
फिर रास्ते में जब सड़क किनारे एक पन्चर वाले को देखा तो वहीं रुककर हमने टायर का पन्चर भी लगवा लिया ताकि सफ़र में आगे कहीं कोई दिक्कत ना हो ! दिसंबर का महीना होने की वजह से ठंड बहुत थी, पन्चर लगवाते समय वहीं दुकान में रखी एक अंगीठी पर हाथ सेंकते रहे ! मेरठ के बारे में काफ़ी सुन रखा था कि यहाँ रात को लूट-लपाट ज़्यादा होती है इसलिए पन्चर लगवाते समय थोड़ा डर भी लग रहा था ! फिर जब पन्चर वाले ने कहा कि टायर में पन्चर चेक करने के लिए मुझे अपनी दूसरी दुकान पर जाना होगा जोकि पास में ही है तो हमारा डर थोड़ा और बढ़ गया कि कहीं वो पन्चर के चक्कर में हमें ही ना लुटवा दे ! क्या पता, दूसरी दुकान के बहाने अपने साथियों को बुलाने जा रहा हो, इसलिए अब हम थोड़ा सतर्क हो गए ! हालाँकि, ऐसी कोई भी अप्रिय घटना नहीं घटी और थोड़ी देर में ही उसने पन्चर लगाकर टायर ठीक कर दिया !
टायर डिग्गी में रखकर हमने फिर से अपना आगे का सफ़र जारी रखा, इस यात्रा के दौरान इस मार्ग पर कई जगह सड़क निर्माण का कार्य चल रहा था ! मुख्य सड़क पर जगह-2 मिट्टी के ढेर लगे हुए थे और कहीं-2 निर्माण सामग्री भी रखी हुई थी, हमारा ड्राइवर भी इस मार्ग से अंजान ही था ! सफ़र के दौरान पता नहीं कब हमें नींद आ गई, इसके बाद पता नहीं ड्राइवर लगातार गाड़ी चलाता रहा या वो भी कहीं गाड़ी खड़ी करके सो गया ! क्योंकि सारी रात गाड़ी चलाने के बाद भी सुबह 6 बजे जब हमारी नींद खुली तो हम देहरादून ही पहुँचे थे ! यहाँ रेलवे स्टेशन के पास एक होटल में चाय संग गोभी के पराठे खाए और फिर आगे चकराता के लिए अपना सफ़र जारी रखा ! देहरादून से थोड़ा आगे बढ़ने पर पहाड़ी रास्ता शुरू हो गया, मतलब असली सफ़र की शुरुआत तो अब हुई थी, क्योंकि सफ़र में पहाड़ी रास्तो पर ही ज़्यादा समय लगता है ! हमारे ड्राइवर को पहाड़ पर गाड़ी चलाने का बिल्कुल भी अनुभव नहीं था, ये बात उसके चेहरे पर दिखाई दे रहे डर से साफ देखी जा सकती थी !
थोड़ी देर बाद उसने इस बात की पुष्टि भी कर दी जब वो बोला, भाई साहब, आप में से कोई यहाँ गाड़ी चला लेगा क्या, मैने पहले कभी पहाड़ों पर गाड़ी चलाई नहीं है इसलिए मुझे यहाँ पहाड़ी रास्ते पर डर लग रहा है ! अब सबकी नज़र जयंत पर थी, गाड़ी चलाने के लिए नहीं बल्कि यात्रा पर ऐसा ड्राइवर लाने के लिए ! बहुत गुस्सा आया, पर मैने कहा मुझे क्या करना है, मुझे तो चलानी आती नहीं, ज़रूरत पड़ी तो इन तीनों में से कोई चलाएगा ! हालाँकि, कोई भी ड्राइविंग सीट संभालने के लिए आगे नहीं आया ! सभी इस बात से खफा थे कि यार ड्राइविंग भी खुद ही करनी होती तो ड्राइवर को लाते ही क्यों ? हमें सफ़र का आनंद लेना है इसलिए तो खुद नहीं चलाकर लाए, फिर रोता-पड़ता ही सही ड्राइवर ही गाड़ी चलाता रहा, और हमने भी टोका-टाकी बंद कर दी ! बस उस से यही कहा, भाई हमें सही-सलामत पहुँचा दियो ! 9 बजे के आस पास हम यमुना का पुल पार करके जब डाक-पत्थर पहुँचे तो नदी के किनारे से जाते हुए बहुत सुंदर नज़ारे दिखाई दे रहे थे !
हमने सोचा थोड़ी देर यहाँ रुककर ही आगे बढ़ा जाए, सर्वसहमति से नदी किनारे गाड़ी खड़ी की और नीचे नदी में चल दिए ! वैसे नदी में पानी तो ज़्यादा नहीं था, पर ये इतना साफ था कि नदी के अंदर तैरती मछलियाँ तक दिखाई दे रही थी, पानी में पैर डालने पर पता चला कि नदी का पानी बहुत ठंडा था ! फिर काफ़ी देर तक ऐसे ही पानी में पैर डालकर बैठे रहे और जब यहाँ बैठे-2 मन भर गया तो वापस अपनी गाड़ी में आकर चकराता की ओर चल दिए ! यहाँ से चलने के थोड़ी देर बाद ड्राइवर बोला, गाड़ी में डीजल ख़त्म होने वाला है ! हम सब एक साथ एक ही आवाज़ में बोले, क्या ? हमने पूछा तुमने तो दिल्ली में ही गाड़ी की टंकी फुल करवाई थी ना, उसने कहा करवाई तो थी पर ये रास्ता इतना खराब है कि सारा डीजल ख़त्म होने वाला है ! ख़त्म हो भी क्यों ना, साला पहले-दूसरे गियर में गाड़ी चला रहा है, एवरेज क्या खाक देगी गाड़ी ! हमने कहा बुरे फँसे यार, गाड़ी का मीटर भी खराब था कि अंदाज़ा लगा सके कि गाड़ी कितना चल चुकी है !
हममें से किसी को भी ये नहीं मालूम था कि उपर चकराता में कोई पेट्रोल पंप है भी या नहीं, फिर तो मार्ग में हमें जो भी मिलता हम गाड़ी रोक कर उस से आस-पास किसी पेट्रोल पंप के बारे में ज़रूर पूछते ! थोड़ी चिंता भी होने लगी कि अगर यहाँ पेट्रोल पंप नहीं हुआ तो वापस कैसे जाएँगे, फिर सोचा जो होगा देखा जाएगा, परेशान होने से कुछ होना तो है नहीं, सारे सफ़र का मज़ा भी किरकिरा हो जाएगा ! इस मार्ग पर रास्ते में कई सुंदर नज़ारे दिखाई दिए, पर सर्दी का मौसम होने के कारण इस समय पहाड़ों पर हरियाली तो ना के बराबर थी ! रास्ते में दिशा-सूचक और दूरी दर्शाते बोर्ड भी ग़लत लगे हुए थे, कहीं पर लिखा था चकराता 30 किलोमीटर और फिर 5-7 किलोमीटर आगे जाने पर दिखाई देता चकराता 35 किलोमीटर ! गंजे पहाड़ों पर सफ़र करने में मुझे ज़्यादा मज़ा नहीं आता, हरियाली हो तो काफ़ी सुंदर नज़ारे दिखाई देते है ! सफ़र के दौरान ही गाड़ी का ऑडियो सिस्टम भी खराब हो गया, हमने कहा क्या बकवास गाड़ी लाया है यार, मीटर इसका चलता नहीं, एसी इसका खराब है और अब ऑडियो सिस्टम भी जवाब दे गया !
भाई ये गाड़ी हमें वापस भी ले आएगी इस सफ़र से या नहीं ! वो तो गनीमत थी कि जयंत अपने साथ छोटे स्पीकर लाया था जिसने इस सफ़र के दौरान हमारा भरपूर साथ दिया, मोबाइल से जोड़ कर इसी पर गाने सुनते हुए रास्ते की बोरियत दूर की ! रास्ते में कई जगह रुकते-रुकाते जब हम एक जगह रुके तो वहीं हमें सड़क के किनारे एक जगह थोड़ी बरफ भी दिखाई दी, जिस से हमारी उम्मीदें बढ़ गई, कि आगे चकराता में बरफ मिल सकती है ! दोपहर 1 बजे जाकर हमारा सफ़र ख़त्म हुआ जब हम सब चकराता पहुँचे, 14 घंटे का सफ़र कम नहीं होता, लंबे सफ़र से सारा शरीर दर्द कर रहा था और थकान भी काफ़ी हो गई थी ! कार में बैठे-2 हालत ऐसी हो गई थी कि मन कर रहा था कोई यहीं लाकर बिस्तर लगा दे और हम उस पर अपनी पीठ सीधी कर ले ! खैर, चकराता पहुँचकर काफ़ी खुशी भी हुई कि आख़िरकार इतने लंबे सफ़र का फल तो मिला !
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पन्चर लगवाते समय दुकान में लिया एक चित्र |
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देहरादून से आगे का मार्ग (A view somewhere near Dehradun) |
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यमुना नदी के किनारे |
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यमुना नदी (A view of River Yamuna, Near Dehradun) |
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जयंत, राहुल और पवन (बाएँ से दाएँ) |
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Fishing or something else |
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जयंत कसरत करते हुए |
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पीछे दिखाई दे रहे पुल को पार करके हम यहाँ आए थे |
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रास्ते में कहीं लिया गया एक चित्र |
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रास्ते में कहीं लिया गया एक चित्र |
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ये बोर्ड ग़लत दिशा दिखा रहा था (Wrong Turn to Chakrata, Dehradun) |
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पहाड़ी से नीचे आते हुए जयंत और राहुल |
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दूर दिखाई देती बरफ की पहाड़ियाँ |
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बरफ का स्वाद लेता हुआ राहुल |
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दूरबीन से कुछ देखने की तैयारी |
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दूर दिखाई देती चकराता की इमारतें (View of Chakrata from the Hill) |
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एक फोटो मेरी भी हो जाए |
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होटल के कमरे में (A view of our Hotel room) |
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Another view of our Hotel Room |
क्यों जाएँ (Why to go Chakrata): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित चकराता का रुख़ कर सकते है ! यहाँ आपको देखने के लिए पहाड़, झरने, जंगल, और रोमांच सबकुछ मिलेगा !
कब जाएँ (Best time to go Chakrata): वैसे तो आप चकराता साल के किसी भी महीने में जा सकते है, पर अगर आपको हरे-भरे पहाड़ देखने हो और अगर आप झरने देखने का भी शौक रखते हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! अगर प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद लेना हो तो आप यहाँ मार्च से जून के मौसम में आइए ! सर्दियों के मौसम में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है इसलिए अगर सर्दी में यहाँ जाने की इच्छा हो रही हो तो अपने साथ गर्म कपड़े ज़रूर ले जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Chakrata): दिल्ली से चकराता की दूरी महज 320 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देहरादून होते हुए आप चकराता जा सकते है एक मार्ग यमुनानगर-पौंटा साहिब होकर भी चकराता को जाता है ! दोनों ही मार्गों की हालत बढ़िया है ! अगर आप चकराता ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से चकराता महज 88 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Chakrata): चकराता उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है पहले यहाँ कम ही लोग जाते थे लेकिन अब यहाँ जाने वाले लोगों की तादात काफ़ी बढ़ गई है ! लोगों की सुविधा के लिए यहाँ रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर यात्रा सीजन मई-जून में यहाँ जाने की योजना है तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ ! होटल में रुकने के लिए आपको 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !
क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !
अगले भाग में जारी...
चकराता - मसूरी यात्रा
- चकराता का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Chakrata)
- चकराता के जंगल में बिताई एक शाम (A Beautiful Evening in Chakrata)
- देवबन के घने जंगल की रोमांचक यात्रा (Road Trip to Deoban, Chakrata)
- टाइगर फॉल में दोस्तों संग मस्ती (A Perfect Destination - Tiger Fall)
- लाखामंडल से मसूरी की सड़क यात्रा (A Road Trip to Mussoorie)
यह चकराता कहाँ से आएगा । कुछ इसके बारे में भी प्रकाश डालो । कब जाना चाहिए ? देहरादून से कितना दूर है ?होटल का किराया वगैरा
ReplyDeleteचकराता देहरादून से 85 किलोमीटर दूर है, यहाँ हर मौसम में जाया जा सकता है, अगर हरियाली देखनी हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! यहाँ दिसंबर-जनवरी में काफ़ी ठंड रहती है, वैसे अप्रैल-जून और सितंबर-नवंबर चकराता जाने के लिए सबसे बढ़िया समय है ! जिस समय हम चकराता गए थे वहाँ गिनती के ही होटल थे पर अभी काफ़ी विस्तार हो गया है ! 800 रुपए से शुरू होकर आगे आपके बजट अनुसार होटल ले सकते है ! पीक सीजन में होटल काफ़ी महँगे मिलते है !
DeleteDriver ne toh watt lgwa di...aur 14 hrs kaise lag gye ?? bdw nice pics :)
ReplyDeleteबिल्कुल जीतू भाई, भगवान ऐसा ड्राइवर किसी को ना दे, वैसे इस यात्रा के बाद से ड्राइवर को ले जाना बंद कर दिया है ! :-)
DeleteBahut badiya travelogue hai bhai... tumhare har ek travelogue me alag maza hota hai... waiting for next episode.. :)
ReplyDeleteप्रशंसा के लिए धन्यवाद सौरभ भाई !
Deleteऔर हाँ सौरभ भाई, अगला भाग भी जल्द ही आएगा !
DeleteWhat is best month to visit Chakrata
ReplyDeleteरमेश भाई, अप्रैल-जून और सितंबर-नवंबर चकराता जाने के लिए सबसे बढ़िया समय है ! अगर हरियाली देखनी हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है !
Deleteबहुत बढ़िया वर्णन,सच कहा गंजे पहाड़ों के बीच यात्रा में मजा नहीं आता ,ड्राइवर और गाड़ी तो कमाल की थी
ReplyDeleteसही कहा हर्षिता जी, बड़ी किस्मत से ऐसे ड्राइवर मिलते है !
DeleteInteresting, Impressive and Engaging post. I couldn't see the beauty and greenery in the photos which is usually seen in the hills and hill stations. May be because of the continuous sunshine...
ReplyDeleteThanks,
Thank you Mukesh for this appreciation. Yes, greenery is missing from most of the images because the time we visited there was not the best time to visit chakrata.
Delete
ReplyDeleteस्वागत ! वृतांत अच्छा है बांधे रखता है लेकिन प्रकृति शायद नाराज रही होगी और इस स्वर्ग जैसी जगह पर भी अपना वास्तविक रूप नही दिखाया !!
धन्यवाद सारस्वत जी,
Deleteहम वहाँ दिसंबर में गए थे तो हरियाली की उम्मीद तो वैसे भी नहीं कर सकते ! पहाड़ों पर हरियाली के लिए जुलाई-अगस्त का महीना सर्वोत्तम है !