दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - पहली कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)

शुक्रवार, 26 मई 2017

अगर आप दिल्ली भ्रमण पर निकले है और "लाल क़िला" (Red Fort) नहीं घूमे तो क्या खाक दिल्ली घूमे ? लाल किला घूमे बिना आपका दिल्ली भ्रमण अधूरा है, और हो भी क्यों ना, आख़िर दिल्ली का इतिहास जो जुड़ा है इस किले से ! दिल्ली भ्रमण पर चलते हुए आज मैं भी आपको इसी किले की सैर कराने लेकर चल रहा हूँ ! चलिए, शुरुआत करते है इस किले के इतिहास से, जिसका निर्माण पाँचवे मुगल बादशाह "शाहजहाँ" (Shahjahan) ने करवाया था ! वही शाहजहाँ जिन्हें "आगरा" में "ताजमहल" (TajMahal) के निर्माण के लिए जाना जाता है और जिसके शासनकाल में मुगल साम्राज्‍य अपनी समृद्धि के चरम पर था ! 1628 में गद्दी संभालने के बाद शाहजहाँ का मकसद अपने दादा अकबर की तरह अपनी सत्ता का विस्तार करना था, अपने शासनकाल के दौरान सन 1638 में शाहजहाँ ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली स्थानांतरित करने का निर्णय किया ! दरअसल, शाहजहाँ आगरा की बढ़ती भीड़-भाड़ से परेशान थे, उन्हें ये बिल्कुल पसंद नहीं थी ! इसी सिलसिले में शाहजहाँ ने "शाहजहानाबाद" नाम का एक शहर बसाया जिसे बाद में "पुरानी दिल्ली" के नाम से जाना गया !
दिल्ली के लाल किले की एक झलक (A View of Red Fort, Delhi)
इसके एक साल बाद 12 मई 1639 को शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल क़िले की नींव रखी, उन्होनें खुद भी इस किले के निर्माण कार्य में बड़ी दिलचस्पी दिखाई ! इस क़िले का निर्माण एक अनियमित अष्टभुजाकार की आकृति में किया गया है, किले को बनकर तैयार होने में 9 वर्ष 3 महीने का समय लगा ! लाल किले में शाहजहाँ के वंशज अगली दो सदी तक रहने वाले थे ! किले में प्रवेश के दो द्वार है, एक "लाहौरी गेट" (Lahori Gate) और दूसरा "दिल्ली गेट" (Delhi Gate)दिल्ली गेट पर कभी बड़े आकार के हाथी भी बनाए गए थे जो देखने में बिल्कुल असली जैसे लगते थे, इसलिए दिल्ली गेट को हाथी गेट के नाम से भी जाना जाता था ! दिल्ली गेट सिर्फ़ बादशाह के लिए ही खोला जाता था, आम जनता को इस द्वार से आने-जाने की अनुमति नहीं थी ! सप्ताह में एक दिन मुगल बादशाह दिल्ली गेट से होते हुए लाल किले के सामने पड़ने वाली "जामा मस्जिद" (Jama Masjid) में नमाज़ अदा करके के लिए जाया करते थे, जिसका निर्माण सन 1651 से 1656 के बीच में हुआ ! सदी दर सदी आने वाले विदेशी हमलावरों ने इस किले को खूब नुकसान पहुँचाया ! 

वर्तमान में इस किले में लाहौरी गेट से प्रवेश किया जाता है जबकि दिल्ली गेट को निकास द्वार के लिए उपयोग में लाया जाता है ! लाल क़िला एक ऐसा असाधारण शाही स्थान है जिसमें 17वीं सदी के मुगल दरबार के वैभव की झलक आज भी दिखाई देती है ! वैसे देखा जाए तो किला शब्द तो इस स्थान के लिए उपयुक्त ही नहीं है क्योंकि ये 126 एकड़ में फैला हुआ एक छोटा शहर है ! अपने सुनहरे दौर में इस किले में लगभग 3000 लोग रहा करते थे, इन लोगों में उस समय के दुनिया के बेहद धनाढ्य और शक्तिशाली लोग शामिल थे ! किले के प्रवेश द्वार से तो आप सिर्फ़ लाल बलुआ के पत्थर से बनी दीवार ही देख सकते है जो इस किले की बाहरी दुश्मनों से रक्षा करती है, लेकिन किले के अंदर जाने पर आपको इस किले से जुड़ी कई महत्वपूण जानकारियाँ जानने को मिलेगी ! किले की बाहरी दीवार 33.5 मीटर (110 फीट) ऊँची और 2.4 किलोमीटर लंबी है, किले की बाहरी दीवार तीन तरफ से एक गहरी खाई से घिरी हुई है जिसमें यमुना नदी से सदैव पानी आता था, ताकि कोई दुश्मन आसानी से किले की दीवारों पर ना चढ़ सके ! किले की इन बाहरी दीवारों के ऊपरी भाग में हथियारबंद सैनिक हमेशा पहरा देते रहते थे ! 

ऊँचाई पर होने के कारण इन दीवारों पर बैठे सैनिकों को किसी भी बाहरी हमले या दुश्मन का पता काफ़ी पहले लग जाता था ! वैसे ये किले की सुरक्षा के लिए बेहद ज़रूरी भी था, बाद में धीरे-2 यमुना नदी ने अपनी दिशा बदल ली और वर्तमान में ये किले के पिछले भाग से भी काफ़ी दूर बहती है ! इस किले में मुगल काल के दौरान शाही परिवार रहा करते थे, बादशाह अपने खिदमतगारों का भी पूरा ध्यान रखते थे इसलिए शाही परिवार के शाही सेवकों के रहने की व्यवस्था भी इस किले में थी ! लाहौरी गेट से अंदर जाते ही एक ढका हुआ मार्ग है जिसके दोनों ओर दो मंज़िली मेहराबदार कक्षों की श्रंखला है, प्रत्येक ओर 32 कक्ष है जो आज भी दुकानों के रूप में प्रयुक्त होते है ! मुगल काल में इसे "मीना बाज़ार" (Meena Bazaar) के नाम से जाना जाता था ! मीना बाज़ार उन दो बाज़ारों में से एक था जिसे किले की मूल योजना में शामिल किया गया था ! मुगल काल में इन बाज़ारों की रौनक देखते ही बनती थी जब यहाँ शाही परिवार की विलासपूर्ण और बेशक़ीमती वस्तुओं की बिक्री होती थी जिसमें हीरे-जवाहरात, मोती, रत्न, सोने-चाँदी के बर्तन, हाथी दाँत की वस्तुएँ, पीतल और तांबे का सामान, मखमली कालीन, केसर, महँगे इत्र और मसालों की बिक्री होती थी !

बाहर से दिखाई देता लाल किला 
बाहर से दिखाई देता लाल किला 
लाल किला जाने का मार्ग
बाहर से दिखाई देता लाल किला 

लाहौरी गेट के पास मौजूद जानकारी
लाहौरी गेट के पास मौजूद जानकारी
लाहौरी गेट 


छत्ता बाज़ार का एक दृश्य
ये सारा सामान किले में रहने वाले लोगों के लिए था और उन्हें ही इस बाज़ार में खरीददारी करने की इजाज़त थी ! मीना बाज़ार सप्ताह में एक दिन पुरुषों के लिए बंद रहता था, तब केवल महिलाएँ ही इस बाज़ार में खरीददारी करती थी ! उस दिन दुकान में सामान बेचने वाली भी महिलाएँ होती थी और खरीददारी करने वाली भी महिलाएँ ही हुआ करती थी ! इन दुकानों के पिछले भाग में काफ़ी जगह थी जहाँ शाही मेहमानों के रहने की व्यवस्था हुआ करती थी ! बादशाह जब कभी किसी ख़ास उत्सव या जलसे में निकलते थे, तो खूबसूरत दासियाँ इन मेहराबों में खड़ी होकर बादशाह के ऊपर गुलाब के फूल की पत्तियाँ बिखराया करती थी, त्योहारों के मौको पर यहाँ वाद्य यंत्र भी बजाए जाते थे ! 17वीं सदी में छत्ता बाज़ार का स्वरूप अस्तित्व में आया, छत्ता बाज़ार से तात्पर्य ढके हुए उन बाज़ारों से है, जिसे बादशाह ने ही शुरू किया था, ये ढके हुए बाज़ार मध्य एशिया के बाज़ारों की तर्ज पर बनाए गए थे ! ढके हुए बाज़ारों का विचार शाहजहाँ को सन 1646 में पेशावर शहर में ऐसा बेज़ार देखकर आया, ऐसे बाज़ारों को बाज़ार-ए-मुसक्कफ कहा जाता था जहाँ सक्कफ का अर्थ छत होता है ! 

बाज़ार के बीच में कुछ मेहराबों के पास कुछ खुला हिस्सा है जहाँ से रोशनी आया करती थी ! दिल्ली गेट से नौबत खाना की तरफ जाने वाले मार्ग पर एक अन्य बाज़ार भी था ! बाज़ार से निकलने के बाद आप "नौबतखाना" (Naubatkhana) या "ड्रम हाउस" की तरफ पहुँच जाओगे, नौबतखाना से दक्षिण की ओर जाने वाला मार्ग दिल्ली गेट की तरफ जाता है जबकि यहाँ से उत्तर की ओर जाने वाला मार्ग "वॉर मेमोरियल संग्रहालय" (War Memorial Museum) की तरफ जाता है ! हम पश्चिम दिशा की तरफ से आ रहे है जबकि पूर्व की तरफ नौबतखाना पार करने के बाद "दीवान-ए-आम" (Diwan E Aam)और महल की अन्य शाही इमारतें है ! सबसे पहले मैं आपको वॉर मेमोरियल संग्रहालय दिखाने लेकर चलूँगा, छत्ता चौक से 5 मिनट की पद यात्रा करके मैं इस संग्रहालय के प्रवेश द्वार पर पहुँचा ! संग्रहालय सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक खुलता है और हर सोमवार को ये बंद रहता है ! भूमितल और प्रथम तल पर बना ये संग्रहालय उन भारतीयों को समर्पित है जिन्होनें देश के अलग-2 हिस्सों में अँग्रेज़ों के खिलाफ लड़ते हुए अपनी जान दे दी !

छत्ता बाज़ार का एक दृश्य
छत्ता बाज़ार का एक दृश्य
छत्ता बाज़ार का एक दृश्य
छत्ता बाज़ार का एक दृश्य
इस संग्रहालय में जाने के लिए अलग से टिकट लेने की ज़रूरत नहीं थी, किले में घूमने के लिए जो 35 रुपए का प्रवेश टिकट लिया था उसी टिकट में इस संग्रहालय का शुल्क (जोकि 5 रुपए था) भी शामिल था ! टिकट दिखाकर संग्रहालय में प्रवेश किया और एक गलियारे से होते हुए मैं अंदर पहुँच गया, यहाँ दीवारों पर देश के अलग-2 हिस्सों में देश की आज़ादी में में शामिल रहे वीरों की जानकारी चित्रों के माध्यम से दी गई है ! आगे बढ़ने पर एक मूर्ति के माध्यम से महारानी लक्ष्मी बाई को अँग्रेज़ों से लड़ते हुए दिखाया गया है ! एक जगह 1857 की क्रांति से पहले क्रांतिकारियों को बहादुरशाह ज़फ़र से मुलाकात करते हुए भी दिखाया गया है ! दीवारों पर जगह-2 देश की आज़ादी से पहले हुए आंदोलन और विद्रोह की जानकारी भी दी गई है ! टहलते हुए मैं प्रथम तल पर पहुँचा, यहाँ आज़ाद हिंद फौज से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी गई है, जिसमें फौज के गठन से लेकर, कुछ सिपाहियों के बारे में बखूबी दिखाया गया है ! अंतिम दो कक्ष देश के अलग-2 हिस्सों में अंग्रेज़ो से लड़ते हुए मारे गए वीर बच्चों के नाम समर्पित है यहाँ ऐसे ही सैकड़ों बच्चे के खून से बने चित्र दीवारों की शोभा बढ़ा रहे है ! 
वॉर मेमोरियल संग्रहालय का प्रवेश द्वार

संग्रहालय के अंदर का एक दृश्य
संग्रहालय के अंदर का एक दृश्य
संग्रहालय के अंदर का एक दृश्य
संग्रहालय के अंदर का एक दृश्य
संग्रहालय के अंदर का एक दृश्य

वॉर मेमोरियल संग्रहालय घूमने के बाद मैं बाहर आ गया और इसी मार्ग पर थोड़ी दूरी पर पड़ने वाले "बावली" को देखने चल दिया ! 5 मिनट पैदल चलने के बाद अपनी दाईं ओर मुझे इस बावली का प्रवेश द्वार दिखाई दिया ! इसके सामने ही कोई दफ़्तर था बाहर कुछ हथियारबंद फ़ौजी पहरा दे रहे थे ! बावलियों का निर्माण प्राचीन काल से ही मौसमी उतार-चढ़ाव को देखते हुए पानी के संग्रह हेतु किया जाता रहा है ! वैसे तो लाल किले के बगल में ही यमुना नदी बहती थी इसलिए यहाँ शायद ही कभी पानी की दिक्कत होती होगी, लेकिन फिर भी विषम परिस्थितियों से बचने के लिए लाल किले परिसर में ये बावली कभी बनाई गई होगी ! इस बावली के निर्माण से संबंधित ज़्यादा जानकारी मुझे नहीं मिली, इसलिए आपको इसकी फोटो देखकर ही काम चलाना पड़ेगा ! बावली की सीढ़ियाँ कुएँ के तल से जुड़ी रहती थी, कुएँ का तल नीचाई पर होने के कारण दिन की गर्मी से राहत भी पहुँचाता था, इसलिए इसका प्रयोग आराम करने के लिए भी किया जाता था ! लाल किला परिसर में मौजूद अष्टकोणीय आकार की ये प्राचीन बावली 14 मीटर गहरी है जो 6.1 मीटर लंबे और इतने ही चौड़े आकार के एक कुंड से जुड़ी हुई है ! 

इस बावली के उत्तर और पश्चिम में दोनों और मेहराबदार कक्ष युक्त सीढ़ियाँ बनी है ! वर्तमान में भी इस बावली में पर्याप्त पानी था लेकिन ये काफ़ी गंदा था, किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए एक चौकीदार प्रवेश द्वार के पास ही बैठा था ताकि कोई बावली के तल पर ना जाए ! आज़ाद हिंद फौज के अधिकारियों शाहनवाज़ ख़ान, पी के सहगल और जी एस ढिल्लो को 1945-46 में यहाँ क़ैद करके रखा गया था, ये जानकारी मुझे बावली के बाहर लगे एक पत्थर पर लिखी मिली ! बावली देखने के बाद मैं वापिस छत्ता चौक की ओर चल दिया, 10 मिनट बाद मैं नौबतखाने के सामने खड़ा था ! 17वी शताब्दी में तो इस नौबतखाने का एक अलग ही रूप दिखाई पड़ता था, तब यहाँ चौड़ी-2 सड़के थी, जिसपर घुड़सवार मौजूद रहते थे, नौबतखाने के ऊपरी हिस्से में मौजूद खिड़कियों के पिछले हिस्से में ड्रम बजाने वाले दिन में पाँच बार ड्रम बजा कर नमाज़ का वक्त बताया करते थे ! इसके अलावा स्वागत के लिए ख़ास मेहमानों के आने का एलान छोटे ढोल बजाकर किया जाता था ! नौबतखाने के पास मेहमानों को अपने रथ, पालकियों और हाथियों से उतरना होता था ! 
प्रवेश द्वार से दिखाई देता बावली का एक दृश्य
बावली का एक दृश्य


बावली का एक दृश्य
नौबतखाना शाही इलाक़े का प्रवेश द्वार हुआ करता था और आज भी ऐसा ही है ! मुगल बादशाह शाहजहाँ का जन्म हुआ था इसलिए बादशाह के सम्मान में हर रविवार को यहाँ नौबत-खाने में पूरे दिन वाद्य यंत्रों के माध्यम से मधुर संगीत बजता था ! वर्तमान में नौबतखाने के ऊपरी भाग में एक संग्रहालय बना दिया गया है जिसमें मुगलों और अँग्रेज़ों के हथियारों और अन्य वस्तुओं को संग्रहित किया गया है ! ये संग्रहालय उन भारतीय सैनिकों को समर्पित है जिन्होनें विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार की ओर से भाग लिया ! सीढ़ियों से होते हुए मैं प्रथम तल पर पहुँचा जहाँ अलग-2 कक्षों में इन वस्तुओं को संग्रहित किया गया है ! गर्मी से निजात दिलाने के लिए आजकल इस संग्रहालय में कई बड़े-2 पंखे और एसी भी लगे है ! इस संग्रहालय के प्रथम कक्ष में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच लड़े गए पानीपत के युद्ध का सुंदर चित्रण किया गया है, इस युद्ध को जीतने के बाद ही बाबर ने हिन्दुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखी ! अगले कक्ष में हथियारों का संग्रह किया गया है जिनका प्रयोग विश्व युद्ध के दौरान हुआ था ! एक अन्य कक्ष में हथियारों और दूरभाष के साधनों पर यूरोपीए औद्योगीकरण का प्रभाव दिखाने की कोशिश की गई है ! 

यहाँ रडार, टेलिफोन, सिग्नल लैंप, और अन्य उपकरणों का मॉडल बनाकर सजीव सा चित्रण किया गया है, संग्रहालय परिसर में फोटोग्राफी वर्जित थी लेकिन फिर भी मौका पाकर मैने कुछ फोटो खींच लिए ! चलिए, नौबतखाने से आगे बढ़ते है, नौबतखाने और दीवान-ए-आम के बीच में एक खुला मैदान है, इस मैदान के बगल से एक मार्ग महल के दूसरे भाग में जाता है ! इसी मार्ग पर आगे बढ़ने पर मैदान को पार करने के बाद आपकी दाईं ओर दीवान-ए-आम है, यही वो स्थान है जहाँ मुगल बादशाह का दरबार लगा करता था, इस दरबार में बैठकर वो अपनी प्रजा की समस्याएँ सुना करते थे ! दीवान-ए-आम के छत के ऊपरी भाग में हाथी के सूंड की आकार के पत्थर नज़र आएँगे, इस इमारत में बनी मेहराबें बौद्ध वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है ! हर स्तंभ के ऊपरी भाग में आग की लपटों की आकार का फ़ारसी डिज़ाइन है, और निचले भाग में कमल का फूल बना है ! हिंदू धर्म में कमल के फूल को बहुत पवित्र माना जाता है क्योंकि इनका संबंध सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी से है, स्तंभ का आकार यूनानी है ! 
छत्ता चौक से दिखाई देता नौबतखाना
नौबतखाने से दिखाई देता दीवान-ए-आम

नौबतखाने के ऊपर बने संग्रहालय के अंदर का दृश्य
नौबतखाने के ऊपर बने संग्रहालय के अंदर का दृश्य
नौबतखाने के ऊपर बने संग्रहालय के अंदर का दृश्य
नौबतखाने के ऊपर बने संग्रहालय के अंदर का दृश्य
दीवान-ए-आम की ओर जाने वाले मार्ग से दिखाई देता नौबतखाना 
दीवान-ए-आम का एक दृश्य 
दीवान-ए-आम का एक दृश्य 
ये इस बात की याद दिलाते है कि मुगल बहुत पुरानी सभ्यता से ताल्लुक रखते थे जिनकी जड़ें मध्य एशिया में थी ! वर्तमान में ये इमारत एक खुले बरामदे के रूप में दिखाई देती है लेकिन मुगल काल में ऐसा नहीं था ! उस समय दीवान-ए-आम की फर्श पर शानदार कालीनें बिछी होती थी, दीवारों पर सोने और चाँदी के तारों/धागों वाली रेशम टॅंगी होती थी ! खुले हिस्से ठोस चाँदी की रेलिंग से घिरे हुए होते थे, और दीवारों की जगह ऊपर मेहराबों से बेहद शानदार पर्दे लटके होते थे जो मुगलों के पूर्वजों के ख़ानाबदोश तौर-तरीकों की याद दिलाते थे ! स्तंभों के ऊपरी या मध्य वाले हिस्सों पर सोने की परत चढ़ी होती थी, हॉल में लंबी-2 मशालों और बड़ी मोमबत्तियों से रोशनी की जाती थी ! आप इस इमारत की छत को देखोगे तो आपको अब भी छतों में छेद नज़र आएँगे, जिसमें उस समय सोने-चाँदी के विशाल फ़ानूस (झूमर) लटकते थे ! हर सदी में विदेशी हमलावरों द्वारा इन बेशक़ीमती चीज़ों को लूटा गया, यहाँ तक कि जिन तांबे के छल्लों के सहारे इस भवन में पर्दे लटकते थे वो भी लूट लिए गए ! 

आगे बढ़ने से पहले इस इमारत के किसी हिस्से में खड़े होकर स्तंभों के कतार के बीच से देखिए, आप देखोगे कि इन भव्य मेहराबों की कतार से शांति, भव्यता और रोशनी का प्रभाव नज़र आता है ! इसके अलावा इन स्तंभों का निर्माण व्यवाहरिक भी था, ये स्तंभ इस तरह से बनाए गए थे कि मुगल बादशाह को अपनी गद्दी पर से बैठे-2 ही भवन में बैठा हर शख्स नज़र आता था ! 3 सदी पहले फरियादी यहाँ अपनी फरियाद लेकर आते थे, तब मुगल बादशाह यहाँ हीरे-जवाहरात से सजे अपने तख्त-ए-ताऊस (शाही सिंहासन) Takht-E-Taus पर बैठा करते थे ! यहाँ बैठकर सामने ही उन्हें नौबतखाना भी दिखाई देता था जिसकी बाहरी दीवारों पर सोने की परत चढ़ी हुई थी, जब सूर्य की किरणें नौबतखाने की स्वर्ण जडित दीवारों पर पड़ती थी तो इसकी चमक देखकर बादशाह प्रसन्नचित होते थे ! आम लोगों के सभा में आने से पहले बादशाह अपने सैनिकों का मुआयना भी करते थे ! शाहजहाँ अपने दादा मुगल बादशाह अकबर के प्रिय थे, उन्होनें मुसलमान, हिंदू, और ईसाई लड़कियों से विवाह किया था, वे अपने तर्क, कुछ नया करने की चाह और सभी धर्मो के प्रति सम्मान रखने के कारण काफ़ी लोकप्रिय भी थे ! 

एक राजपूत राजकुमारी की कोख से जन्म लेने के बावजूद "शाहजहाँ" (Shahjahan) ज़्यादा सहनशील नहीं थे, लेकिन वो उन लोगों से भी खुद को अलग-थलग नहीं कर सकते थे जिनपर वो राज करते थे ! उनकी प्रजा में अधिकतर लोग हिंदू ही थे, आज आप लाल किले में मौजूद जिन इमारतों को देखेंगे, उनकी सजावट में आपको फ़ारसी, हिंदू, मुगल, यूनानी और ईसाई प्रभाव की झलक साफ दिखाई देगी ! दीवान-ए-खास में बने संगमरमर की छतरी वाले इस नक्काशीदार चबूतरे पर मुगल सम्राट अपने मशहूर तख्त-ए-ताऊस पर बैठा करते थे ! 2 भरोसेमंद अंगरक्षक हमेशा शाहजहाँ के दाएँ-बाएँ खड़े रहते थे, दूर से देखने पर ऐसा लगता था जैसे वो किसी पालकी में बैठे हो और इस पालकी को कंधे पर ले जाया जा रहा हो ! उन्हें देखने वाला हर शख्स जान जाता था कि वो एक ऊँचे रुतबे वाले राजवंश से है, इस सभा में सम्राट खुद बैठा करते थे जबकि सभा में मौजूद अन्य सभी छोटे-बड़े लोग खड़े रहते थे ! अपने तख्त पर बैठकर सम्राट फ़ैसले सुनाते थे और ज़रूरी घोषणाएँ किया करते थे, तख्त-ए-ताऊस के नीचे संगमरमर की बनी एक शाही मेज है ! 

इस मेज में सामान्य पत्थरों के अलावा कई कीमती पत्थर भी लगे है जिनमें शामिल है नीला लापिस लज़ूली,  हरा मेलाकाइट, लाजवर्द स्टोन, और लाल रूबी वैसे हक़ीकत में ये मेज नहीं है, सम्राट के मुख्यमंत्री इस पर खड़े होकर बादशाह को मुक़दमें सुनाया करते थे ! सम्राट के सामने मौजूद जाली पर पत्र होता था और यहीं पर शाही मुहर भी रखी होती थी ! तख्त-ए-ताऊस पर लगी सुनहरी रेलिंग फरियादियों को एक सुरक्षित दूरी पर रखती थी, इस सोने को फ़ारस से आने वाले हमलावरों ने 18वीं शताब्दी में खूब लूटा ! लेख काफ़ी लंबा हो गया है इसलिए इस कड़ी में फिलहाल इतना ही, लाल किले परिसर में मौजूद अन्य शाही इमारतों की सैर पर मैं आपको अगली कड़ी में लेकर चलूँगा !


दीवान-ए-आम का एक दृश्य 
सफेद संगमरमर के इसी चबूतरे पर तख्त-ए-ताऊस रखा था 
क्यों जाएँ (Why to go Red Fort): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें देखना पसंद है तो आप दिल्ली में स्थित लाल किले का रुख़ कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Red Fort
): आप साल भर किसी भी दिन यहाँ जा सकते है लेकिन अगर ठंडे मौसम में जाएँगे तो ज़्यादा अच्छा रहेगा !


कैसे जाएँ (How to reach Red Fort): पुरानी दिल्ली में स्थित 
लाल किले को देखने के लिए आप मेट्रो से जा सकते है, लाल किले का सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन चाँदनी चौक है जहाँ से इस किले की दूरी महज 1.5 किलोमीटर है ! मेट्रो स्टेशन से उतरकर आप पैदल भी जा सकते है या ऑटो ले सकते है !

कहाँ रुके (Where to stay in Delhi): अगर आप आस-पास के शहर से इस 
किले को देखने आ रहे है तो शायद आपको रुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! जो लोग कहीं दूर से दिल्ली भ्रमण पर आए है उनके रुकने के लिए कनाट प्लेस और इसके आस-पास रुकने के लिए बहुत विकल्प मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see near Red Fort): अगर दिल्ली भ्रमण पर निकले है तो दिल्ली में घूमने के लिए जगहों की कमी नहीं है आप जामा मस्जिद, राजघाट, लोधी गार्डन, हुमायूँ का मकबरा, इंडिया गेट, चिड़ियाघर, पुराना किला, क़ुतुब मीनार, सफ़दरजंग का मकबरा, कमल मंदिर, अक्षरधाम, कालकाजी मंदिर, इस्कान मंदिर, छतरपुर मंदिर, और तुगलकाबाद के किले के अलावा अन्य कई जगहों पर घूम सकते है ! ये सभी जगहें आस-पास ही है आप दिल्ली भ्रमण के लिए हो-हो बस की सेवा भी ले सकते है या किराए पर टैक्सी कर सकते है ! बाकि मेट्रो से सफ़र करना चाहे तो वो सबसे अच्छा विकल्प है !

अगले भाग में जारी...


दिल्ली भ्रमण

  1. इंडिया गेट, चिड़ियाघर, और पुराना किला (Visit to Delhi Zoo and India Gate)
  2. क़ुतुब-मीनार में बिताए कुछ यादगार पल (A Day with Friends in Qutub Minar)
  3. अग्रसेन की बावली - एक ऐतिहासिक धरोहर (Agrasen ki Baoli, New Delhi)
  4. बहाई उपासना केंद्र - कमल मंदिर - (Lotus Temple in Delhi)
  5. सफ़दरजंग के मक़बरे की सैर (Safdarjung Tomb, New Delhi)
  6. लोधी गार्डन - सिकंदर लोदी का मकबरा (Lodhi Garden - Lodhi Road, New Delhi)
  7. दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - पहली कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
  8. दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - दूसरी कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

4 Comments

  1. लाल किला दिल्ली का ऐसा एकमात्र स्थल है जो मैंने सबसे अधिक बार देखा है।
    यहाँ कभी हर महीने जाया करता था। अब लगभग रोज सुबह इसके सामने से तो शाम को इसके पीछे वाले रोड से इसे निहारता हुआ निकल जाता हूँ।

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    1. अरे वाह, संदीप भाई, बहुत बढ़िया लगा जानकर् कि आप इस ऐतिहासिक किले को इतनी बार इतने करीब से देख चुके है !

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  2. बढिया जानकारी वाली पोस्ट, मै भी कई बार लाल किला जा चुका हूं,समय बिताने व कुछ इतिहास में रूची रखने वालो के लिए एक बेहतरीन जगह है। अभी कुछ ही हिस्सा देखने के लिए है बाकी पर अभी पाबंदी है लेकिन कही पढा है की जल्द ही लाल किले का दूसरा गेट दिल्ली गेट वाला हिस्सा भी पर्यटको के लिए खोला जाएगा। जिस हिस्से से अभी तक पर्यटक अंजान है। पर देखते है यह कब तक खुलता है।
    आपके फोटो गजब है प्रदीप जी

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    1. सचिन भाई, दिल्ली गेट तो अब भी आम जनता के लिए खुला है, लेकिन इसे निकासी गेट के रूप में प्रयोग में लाते है ! वैसे जिस हिस्से में पाबंदी है वो तो हम लाहौरी गेट से भी जा सकते है, अगर मैं आपकी बात समझने में गड़बड़ कर रहा हूँ तो कृपया इस बात पर प्रकाश डालिए !

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