शनिवार, 4 जून 2016
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पिछले लेख में आपने साधुपुल के बारे में पढ़ा, दिन भर के सफ़र की थकान की वजह से रात को बढ़िया नींद आई ! सुबह समय से सोकर उठे, घड़ी देखी तो अभी 5 बज रहे थे, कॉटेज की खिड़की से बाहर झाँककर देखा तो अभी हल्का-2 अंधेरा ही था ! बिस्तर से उठकर हमने हाथ-मुँह धोया और अपना कैमरा लेकर कॉटेज से बाहर आ गए, नदी के पास पहुँचे तो हल्का-2 उजाला होने लगा था ! ये जगह तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई थी, जिसके कारण कल हम सूर्यास्त का नज़ारा ठीक से नहीं देख पाए थे ! आज सूर्योदय देखने की उम्मीद के साथ दिन की शुरुआत कर रहे थे, नदी को पार करने के लिए पानी में पैर डाला तो महसूस किया कि इस समय पानी कल शाम से भी ज़्यादा ठंडा था ! सूर्योदय का नज़ारा देखने की ख्वाहिश लिए हम नदी के किनारे-2 पानी की विपरीत दिशा में चल दिए, उधर से ही सूर्य की लालिमा दिखाई दे रही थी ! इस समय चारों तरफ सन्नाटा था, इसलिए बहते हुए पानी की आवाज़ भी काफ़ी तेज लग रही थी ! हम सब नदी के किनारे-2 चलते रहे, अपने कैंप से थोड़ी दूर जाने पर नदी के किनारे खूब पत्थर बिखरे पड़े थे ! नदी के एक किनारे तो घने पेड़-पौधे थे जबकि दूसरी ओर ऊँचाई पर कुछ मकान और एक मंदिर बना हुआ था, मंदिर के बगल से एक अन्य स्त्रोत से बहकर आने वाले पानी के निशान दिखाई दे रही थी ! इस समय तो इसमें पानी नहीं था लेकिन बारिश के मौसम में इसमें आस-पास का पानी बहकर आता होगा !
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कुफरी का एक दृश्य
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हम रास्ते में रुक-रुककर फोटो भी खींचते रहे, हमें यहाँ कुछ दुर्लभ पक्षी भी देखने को मिले, लेकिन फोटो लेने से पहले ही वो उड़ गए ! रास्ते में कुछ जगहों पर नदी किनारे बड़े-2 पत्थर भी गिरे हुए थे, जो संभवत ऊपर पहाड़ी से टूटकर गिरे होंगे ! पत्थर पर बने निशानों को देखकर लग रहा था बारिश में ये पत्थर भी पानी में डूब जाते होंगे ! अब सूर्योदय हो चुका था, लेकिन सूर्य देव पहाड़ी के पीछे कहीं छुपे हुए थे ! नदी का तो कोई छोर ही नहीं दिखाई दे रहा था, बहुत ज़्यादा आगे जाने की हमारी भी इच्छा नहीं थी ! इसलिए थोड़ा समय वहाँ नदी के किनारे बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी !
नदी के किनारे झाड़ियों में से एक मार्ग हमारे कॉटेज की तरफ जा रहा था, नीचे पहाड़ी की तलहटी में बसे लोग इस मार्ग का प्रयोग मुख्य मार्ग तक जाने के लिए करते है ! कुछ लोगों ने तो इस मार्ग पर अपने घर भी बना रखे है, वापसी में हम इसी मार्ग से आए ! इस मार्ग पर कंटीली झाड़ियों के अलावा सुंदर फूल और फलों के वृक्ष भी है ! कुछ फल (ब्लुबेरी) हमने भी चखे, लेकिन जानकारी के बिना आप जंगल में से कोई भी फल मत खाना, नुक़सानदायक हो सकता है ! खैर, थोड़ी देर की यात्रा के बाद हम अपने कॉटेज पहुँच चुके थे ! यहाँ पहुँचकर हम नहाने-धोने में लग गए और अगले आधे घंटे में ही सब तैयार हो गए !
अब वापसी का समय था, बकाया राशि का भुगतान किया और अपना-2 बैग लेकर गाड़ी की ओर चल दिए ! थोड़ी देर बाद हम गाड़ी लेकर उस नए मार्ग पर पहुँच गए, जो पहाड़ी को काट कर बनाया गया था ! इस मार्ग से नीचे उतरकर थोड़ी दूर जाकर हमने नदी को पार किया और फिर चैल जाने के लिए एक तिराहे से दाएँ मुड़ गए, यहाँ से बाएँ जाने वाला मार्ग जुंगा जा रहा था !
नदी को पार करने के थोड़ी देर बाद ही हम चीड़ के घने जंगलों के बीच पहुँच चुके थे, मुख्य मार्ग घुमावदार मोडों से होता हुए जॅंगल के बीच में जा रहा था ! इस मार्ग पर जाते हुए हमें इक्का-दुक्का वाहन ही आते-जाते दिखे, इनमें से भी अधिकतर व्यावसायिक वाहन ही थे ! जब भी हम फोटो खींचने के लिए कहीं गाड़ी खड़ी करते, तो जंगल में फैले सन्नाटे का आभास होते ही मन रोमांच से भर जाता ! आगे बढ़े तो रास्ते में सड़क के किनारे एक बड़ा पैलेस भी आया, इसके पास खड़े होकर हम काफ़ी देर तक फोटो खींचते रहे ! यहाँ से आगे बढ़े तो एक जगह बैरियर लगाकर टोल वसूला जा रहा था, ग्राम पंचायत स्वच्छता अभियान के 20 रुपए देकर आगे बढ़े !
थोड़ी देर में ही हम चैल चौक पर खड़े थे, यहाँ कुछ दुकानें और एक टैक्सी स्टैंड बना है, इक्का-दुक्का होटल भी है, जहाँ खाने पीने का सामान मिल जाएगा ! एक स्थानीय व्यक्ति से पूछने पर पता चला कि चैल क्रिकेट ग्राउंड तो उसी मार्ग पर है, जिससे हम लोग अभी आए थे !
कोई बात नहीं, जल्दबाज़ी में शायद हमने ही नहीं देखा, पूछने पर पता चला कि यहाँ से एक अन्य मार्ग भी ग्राउंड के लिए जाता है ! वहीं एक होटल में रुककर पहले पेट-पूजा की फिर क्रिकेट ग्राउंड के लिए अपना सफ़र जारी रखा ! ये क्रिकेट ग्राउंड दुनिया का सबसे ऊँचा क्रिकेट ग्राउंड है, घुमावदार चढ़ाई भरे रास्ते से होते हुए हम इस ग्राउंड की ओर बढ़ते रहे ! ये एक सुनसान मार्ग था, हमारे अलावा शायद ही कोई वाहन इस मार्ग पर था, सेना के इक्का-दुक्का वाहन ज़रूर इस मार्ग पर दौड़ रहे थे ! घुमावदार रास्तों से होते हुए हम एक मोड़ पर पहुँचे, यहाँ सेना का चेक पोस्ट था लेकिन इस समय कोई यहाँ खड़ा नहीं था ! हम पोस्ट को पार करके आगे बढ़ गए, यहाँ से थोड़ी दूर पहुँचे तो एक खुला मार्ग मिला, यहाँ आस-पास की जगहों के नाम एक बोर्ड पर अंकित थे ! क्रिकेट ग्राउंड की ओर जाने वाले मार्ग पर हमने अपनी गाड़ी मोड़ दी, यहाँ से ब्मुश्किल 100 मीटर दूरी पर ही ये क्रिकेट ग्राउंड था !
समुद्र तल से 2444 मीटर ऊपर इस क्रिकेट ग्राउंड की स्थापना पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह ने 1893 में करवाई थी ! ये मैदान चारों ओर से घने पेड़ों से घिरा हुआ है, वर्तमान में इस ग्राउंड को चैल के मिलिट्री स्कूल के खेल के मैदान के रूप में किया जाता है ! स्कूल के छुट्टियों के दौरान इसे पोलो का मैदान बनाकर उपयोग में लाया जाता है ! इस मैदान में बास्केट बाल और फुटबाल खेलने के लिए गोल पोस्ट भी लगे है ! मैदान के आस-पास का इलाक़ा सेना के अधीन है, और यहीं सेना के अधिकारियों के निवास स्थान भी है ! गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके जब हम ग्राउंड की तरफ गए, तो इसका प्रवेश द्वार बंद था ! सेना के अधीन होने के कारण ग्राउंड की साफ-सफाई पर पूरा ध्यान दिया जाता है ! इस मैदान के चारों ओर बड़े-2 पेड़ लगे है जबकि बीच में घास लगाई गई है ! वैसे मैदान में खड़े होकर तो आभास भी नहीं होता कि आप इतनी ऊँचाई पर है लेकिन यहाँ खेलते हुए बड़ा आनंद आता होगा ! ग्राउंड के चारों तरफ कंटीली तारें लगी है, यहीं से हमने इस मैदान को देखा और कुछ फोटो लेने के बाद वापिस अपनी गाड़ी की ओर चल दिए !
गाड़ी लेकर वापिस उस खुले स्थान पर पहुँचे जहाँ यहाँ की आस-पास की जगहों के नाम अंकित थे, यहाँ एक किनारे गाड़ी खड़ी करने की व्यवस्था भी थी, हमने भी अपनी गाड़ी यहीं खड़ी कर दी ! यहाँ से एक किलोमीटर की दूर सिद्ध बाबा का मंदिर है, हमारा मन इस मंदिर को देखने का था इसलिए गाड़ी खड़ी करने के बाद मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! ये मार्ग घने जंगलों के बीच से होकर गुज़रता है, वाहन लेकर भी इस मार्ग से होते हुए मंदिर तक जाया जा सकता है, लेकिन मैं जब तक पहाड़ों पर या जंगलों में पैदल ना घूम लूँ, मुझे आनंद नहीं मिलता ! जून का महीना होने के कारण अधिकतर पेड़ सूखे हुए थे, लेकिन फिर भी शानदार दृश्य बन रहा था, हरियाली में तो यहाँ खूब रौनक होती होगी ! लगभग 20-25 मिनट चलने के बाद हमें सड़क के दाईं ओर एक मंदिर दिखाई दिया, लेकिन ये मंदिर का पिछला भाग था, मुख्य प्रवेश द्वार दूसरी ओर था ! घूमते हुए हम मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुँचे, यहाँ दो मंदिर है, पहला मंदिर पंचमुखी हनुमान जी को समर्पित है जबकि दूसरा मंदिर सिद्ध बाबा का है जहाँ कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की गई है ! हम पहले पॅंच-मुखी हनुमान जी के दर्शन करने के लिए गए !
कहा जाता है कि पटियाला के महाराजा भूपिंदर सिंह पहले इस मंदिर का निर्माण अपने महल के बगल में करवाना चाहते थे ! लेकिन सिद्ध बाबा ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर का निर्माण वर्तमान स्थल पर करवाने को कहा, फिर 1891 में इन दोनों मंदिरों का निर्माण हुआ ! चैल घूमने आने वाले अधिकतम लोग इस मंदिर में पूजा करके भगवान का आशीर्वाद लेने आते है ! शांति की तलाश में चैल घूमने आने वाले लोगों के लिए ये सर्वोतम स्थान है ! यहाँ आप घंटो बैठ कर भक्ति में ध्यान लगा सकते है या यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को निहार सकते है, हम भी यहाँ आधे घंटे तक बैठे रहे, वाकई मन को बड़ा सुकून मिला ! मंदिर के आस-पास वन्य क्षेत्र है इसलिए इस क्षेत्र में वन्य जीवों के होने की भी प्रबल संभावना है, हालाँकि, हमें वहाँ कोई वन्य जीव नहीं दिखा ! खैर, पॅंच-मुखी हनुमान जी के दर्शन करने के बाद हम इसी मंदिर से सटे दूसरे मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए ! जिस समय हम इस मंदिर में थे, हमारे और पंडित के अलावा वहाँ कोई नहीं था ! हां, बंदर ज़रूर मंदिर परिसर में उछल-कूद मचा रहे थे ! मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए हम मंदिर परिसर में दाखिल हुए !
मंदिर परिसर में एक खुला मैदान है, जहाँ बैठने के लिए पत्थर की सीटें भी बनी है ! मंदिर के अलग-2 सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर के अलग-2 भवनों में गए जहाँ गणेश जी, राम-सीता, शेरवाली और राधा कृष्ण की मूर्तियाँ स्थापित थी ! एक भवन में तो बीच में शिवलिंग स्थापित है और इसके चारों ओर अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित है ! जब हमारे अलावा यहाँ कोई था ही नहीं तो हड़बड़ी की कोई बात ही नहीं थी ! आराम से भगवान के दर्शन किए और फिर मुख्य भवन से बाहर आकर मंदिर परिसर में बनी सीटों पर बैठ गए ! यहाँ से मंदिर के चारों ओर लगे चीड़ के ऊँचे-2 पेड़ दिखाई दे रहे थे, मन कर रहा था घंटे यहीं बैठे रहो ! लेकिन आगे भी जाना था इसलिए ना चाहते हुए भी मंदिर से बाहर आकर अपने जूते पहने और वापसी के मार्ग पर हो लिए ! जब हम यहाँ से निकल रहे थे तो एक टैक्सी यहाँ आकर रुकी, एक परिवार के लोग गाड़ी से उतरे और मंदिर में दर्शन के लिए चले गए ! यहाँ आते हुए भी राह में हमें एक गाड़ी जाती दिखाई दी थी ! आज की सबसे बढ़िया जगह तो मुझे ये मंदिर ही लगी, कुल मिलाकर यहाँ आना सफल रहा ! रास्ते में हमें एक जगह सड़क किनारे बियर की टूटी हुई बोतलें दिखाई दी, लोगों को कम से कम धार्मिक जगहों को तो छोड़ देना चाहिए ! खैर, वापसी का रास्ता ढलान भरा था इसलिए हमें कम समय लगा !
वैसे यहाँ घूमने आने वालों के लिए बता दूँ कि यहाँ चैल में क्रिकेट स्टेडियम से थोड़ी दूरी पर ही एक वन्य उद्यान भी है, हालाँकि हम समय के अभाव के कारण इस उद्यान में नहीं गए ! एक अन्य जगह है काली का टिब्बा, ये भी चैल में घूमने के लिए बढ़िया जगह है ! अगर आप चैल घूमने आए है तो इन जगहों पर भी थोड़ा समय बिता सकते है ! पार्किंग स्थल से गाड़ी लेकर हम वापिस चैल चौराहे की तरफ चल दिए, जहाँ से हम कुफरी होते हुए शिमला जाने वाले थे ! चैल चौराहे से थोड़ी आगे बढ़े तो सड़क के दाईं ओर ही चैल पैलेस है, इस पैलेस के खुलने का समय सुबह 10 बजे है ! अंदर जाने के लिए प्रति व्यक्ति 100 रुपए प्रवेश शुल्क भी देना होता है, वैसे ये पैलेस देखने लायक है ! लेकिन हम तीनों में से अंदर जाने के लिए कोई भी सहमत नहीं हुआ तो हम यहाँ से आगे कुफरी की ओर बढ़ गए ! इस मार्ग पर भी खूबसूरत नज़ारे आते रहे, थोड़ी देर बाद हम कुफरी पहुँच गए, यहाँ सड़क किनारे हिमालयन नेचर पार्क नाम से एक छोटा चिड़ियाघर बनाया गया है ! नेचर पार्क के सामने सड़क के दूसरी ओर पार्किंग की व्यवस्था है, 100 रुपए देकर हमने अपनी गाड़ी खड़ी की ! जिन लोगों ने गाड़ियाँ सड़क किनारे खड़ी कर रखी थी, कुछ पुलिस कर्मियों को उनका चलान करते हुए भी देखा !
इसलिए यहाँ आने वाले लोगों से अनुरोध है कि किसी भी असुविधा से बचने के लिए गाड़ी पार्किंग में खड़ी करके जाए ! पता चला कि आप रोड पर गाड़ी खड़ी करके घूमने निकल गए और वापिस आने पर चलान के चक्कर में पुलिस के चक्कर लगाने पड़े ! चिड़ियाघर देखने का मन तो किसी का नहीं था लेकिन व्यू पॉइंट नाम से एक जगह थी, उसे देखने पर सबकी सहमति थी ! पार्किंग स्थल से व्यू पॉइंट की दूरी महज 1 किलोमीटर है जिसके लिए यहाँ मौजूद खच्चर वाले प्रति व्यक्ति 500 रुपए तक वसूलते है ! इनका धंधा भी इसलिए फल-फूल रहा है क्योंकि यहाँ आने वाला हर व्यक्ति व्यू पॉइंट की तरफ ही भागता है ! आलम ये है कि लोग अपनी बारी की प्रतीक्षा करते है, प्रशासन को इनके लिए कुछ नियम बनाने चाहिए और इनकी मनमानी पर भी लगाम लगानी चाहिए ! फिर यहाँ आने वाले अधिकतर लोग या तो परिवार संग होते है या फिर नव-विवाहित जोड़े, ये लोग मोल-भाव करने में भी कतराते है ! शायद इसी वजह से यहाँ खच्चर वालों ने लूट मचा रखी है ! व्यू पॉइंट देखने जाने के लिए मैं और देवेन्द्र तो पैदल जाने के लिए तैयार थे लेकिन मनोज पैदल जाने के पक्ष में नहीं था, उसने ज़िद पकड़ रखी थी कि खच्चर बैठकर ही जाएगा !
लेकिन उसकी शर्त ये भी थी कि हम दोनों में से कम से कम एक जन तो खच्चर पर चले ! जब चार लोगों के साथ घूमने निकले हो तो सबकी इच्छाओं का ख्याल रखना पड़ता है यही सोचकर मैने भी मनोज की ज़िद पूरी करने के लिए खच्चर पर चलने के लिए सहमति दे दी ! फिर हमने 600 रुपए में 2 खच्चर का सौदा तय किया, इसके तहत खच्चर वाला हमें व्यू पॉइंट दिखाकर वापिस लाने वाला था ! व्यू पॉइंट जाने का मार्ग ऊबड़-खाबड़ है और धूल से भरा पड़ा है, फिर इस मार्ग पर चलने वाले सैकड़ों खच्चरों के मल की दुर्गंध भी हालत खराब कर देती है ! 15-20 मिनट का सफ़र तय करके धूल भरे मार्ग से होते हुए हम व्यू पॉइंट पर पहुँचे, यहाँ एक प्रवेश द्वार से होकर हम अंदर दाखिल हुए ! व्यू पॉइंट काफ़ी ऊँचाई पर स्थित है इसलिए यहाँ से दूर तक की पहाड़ियाँ एकदम साफ दिखाई देती है, फिलहाल यहाँ मेले जैसा माहौल था ! यहाँ भी स्वच्छ अभियान के तहत 10 रुपए का प्रवेश शुल्क लिया, वैसे रास्ते में पड़ी हुई गंदगी को देखकर तो ये प्रवेश शुल्क देने का मन नहीं था ! प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही कुछ लोग याक लेकर खड़े थे, छोटे बच्चे और महिलाएँ याक पर बैठकर फोटो खिंचवा रही थी, जिसकी एवज में याक वाले पैसे वसूल रहे थे !
यहाँ से आगे बढ़े तो खाने-पीने का सामान बेचने की दुकानें लगी थी, एक किनारे बड़े-2 बलून वाले खड़े थे जिसमें आपको डालकर बलून को धकेला जाता है, ऐसे ही बलून मैने मनाली के सोलांग वैली में भी देखा था ! घूमते हुए हम व्यू पॉइंट के सबसे ऊँचे स्थान पर पहुँच गए, यहाँ से दूर तक की पहाड़ियों का दृश्य एकदम साफ दिखाई दे रहा था ! दूसरी पहाड़ियों पर खूब हरियाली थी, बीच-2 में कुछ होटल और अन्य इमारतें भी दिखाई दे रही थी ! हमसे कुछ दूरी पर ही कुछ लोग टेलिस्कोप लेकर खड़े थे, जो कुछ रुपए लेकर यहाँ से दूसरी पहाड़ियों पर स्थित कुछ पॉइंट दिखा रहे थे ! हम एक ऊँची से जगह पर बैठ कर आस-पास के नज़ारे देखते रहे, फिर वहीं एक दुकान से मैगी खाई और चाय पी ! इस समय यहाँ बहुत भीड़ थी, और हो भी क्यों ना ? एक परिवार के लिए खाने-पीने से लेकर मनोरंजन की सारी सुविधाएँ तो यहाँ मौजूद है ! व्यू पॉइंट पर ही एक तरफ खूब हरियाली और रंग-बिरंगी फूल लगे थे, यहाँ के कुछ फोटो भी हमने लिए ! जब यहाँ बैठे हुए काफ़ी समय हो गया तो हमने अपने खच्चर वाले को फोन कर दिया कि वो हमें लेने आ जाए !
टहलते हुए हम भी व्यू पॉइंट के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए, थोड़ी देर बाद ही हमारा खच्चर वाला कुछ अन्य सवारियों को लेकर आ गया ! उनके उतरते ही हम खच्चर पर सवार हो गए और अगले 15-20 मिनट में हम पार्किंग स्थल पर पहुँच गए ! देवेन्द्र यहाँ पहले ही पहुँच चुका था और हमारे आने की प्रतीक्षा कर रहा था ! पार्किंग स्थल से अपनी गाड़ी लेकर हमने शिमला के लिए प्रस्थान किया, यहाँ से शिमला जाते हुए भी रास्ते में खूबसूरत नज़ारे आते रहे ! शाम 5 बजे हमने शिमला में प्रवेश किया, जहाँ भयंकर भीड़ ने हमारा स्वागत किया ! आज का दिन अब तक तो मजेदार गुजरा था, लेकिन शिमला में प्रवेश करते ही ऐसा महसूस हुआ कि वापिस दिल्ली में आ गए हो, बारिश भी हो रही थी ! आधे घंटे में रेलवे स्टेशन के पास मौजूद एक पार्किंग स्थल पहुँचे, यहाँ गाड़ी खड़ी करके पैदल ही माल रोड की तरफ चल दिए ! दिन भर की यात्रा करके थक चुके थी इसलिए एक-दो होटल देखने के बाद ही एक होटल ले लिया, अपना सामान कमरे में रखा और थोड़ी देर आराम करने के बाद शिमला के माल रोड पर घूमने के लिए निकल पड़े !
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साधुपुल से चैल जाने का मार्ग |
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साधुपुल से चैल जाने का मार्ग |
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साधुपुल से चैल जाने का मार्ग |
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रास्ते में पड़ने वाला एक अन्य मार्ग |
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पैलेस के पास लिया एक चित्र |
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ऐसे नज़ारों की यहाँ भरमार है |
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पैलेस के पास लिया एक चित्र |
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चैल जाते हुए मार्ग में लिया एक चित्र |
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चैल जाते हुए मार्ग में लिया एक चित्र |
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चैल क्रिकेट ग्राउंड के पास का एक चित्र |
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चैल क्रिकेट ग्राउंड का एक चित्र |
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सिद्ध बाबा के मंदिर जाने का मार्ग |
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सिद्ध बाबा के मंदिर जाने का मार्ग |
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रास्ता जंगल में से निकलता है |
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लो जी पहुँच गए मंदिर |
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पॅंच-मुखी हनुमान जी का मंदिर |
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पॅंच-मुखी हनुमान जी का मंदिर |
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सिद्ध बाबा मंदिर के प्रांगण में |
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मंदिर के अंदर का दृश्य |
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मंदिर के अंदर का दृश्य |
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मंदिर के अंदर का दृश्य |
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मंदिर के अंदर का दृश्य |
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मंदिर के बाहर का जंगल |
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चैल जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र |
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चैल जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र |
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कुफरी में व्यू पॉइंट जाने का मार्ग |
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व्यू पॉइंट का एक नज़ारा |
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व्यू पॉइंट का एक नज़ारा |
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Add caption |
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व्यू पॉइंट से दिखाई देता एक नज़ारा |
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व्यू पॉइंट से दिखाई देता एक नज़ारा |
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व्यू पॉइंट से दिखाई देता एक नज़ारा |
क्यों जाएँ (Why to go Chail): अगर आप साप्ताहिक अवकाश पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप चैल का रुख़ कर सकते है ! यहाँ चैल में देखने के लिए कई जगहें है जिनमें से चैल क्रिकेट ग्राउंड, चैल पैलेस, सिद्ध बाबा का मंदिर, वन्य जीव उद्यान, और काली माता का मंदिर प्रमुख है !
कब जाएँ (Best time to go Chail): आप साल के किसी भी महीने में चैल जा सकते है, लेकिन बारिश के मौसम में यहाँ की हरियाली और नज़ारे देखने लायक होते है !
कैसे जाएँ (How to reach Chail): दिल्ली से चैल की दूरी लगभग 335 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन सड़क मार्ग है दिल्ली से चैल के लिए प्राइवेट बसें चलती है जबकि आप निजी गाड़ी से भी जा सकते है ! रेल मार्ग से जाना चाहे तो नई दिल्ली से कालका रेलवे स्टेशन जुड़ा है, कालका से आप टॉय ट्रेन की सवारी का आनंद ले सकते है ! टॉय ट्रेन वाले मार्ग पर चैल के सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन कंड़ाघाट है जहाँ से चैल मात्र 25 किलोमीटर दूर है !
कहाँ रुके (Where to stay in Chail): चैल में रुकने के लिए छोटे-बड़े कुछ होटल है, आप चैल पैलेस में भी रुक सकते है लेकिन वो थोड़ा महँगा पड़ेगा ! होटल में रुकने के लिए आपको 1000 रुपए से लेकर 4000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !
क्या देखें (Places to see in Chail): चैल में देखने के लिए कई जगहें है जिनमें से चैल क्रिकेट ग्राउंड, चैल पैलेस, सिद्ध बाबा का मंदिर, वन्य जीव उद्यान, और काली माता का मंदिर प्रमुख है ! इसके अलावा कुफरी और शिमला भी यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है आप चैल के साथ इन जगहों का भ्रमण भी कर सकते है !