शनिवार, 19 जुलाई 2014
जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में एकदम से लैंसडाउन जाने का विचार बना और हम तीन मित्र जयंत, जीतू, और मैं इस यात्रा के लिए ज़्यादा कुछ सोचे बिना ही निकल लिए ! दरअसल, इस यात्रा पर जाने की योजना तो एक बार पहले भी जून के तीसरे सप्ताह में बनी थी, जब हम 4 दोस्तों ने इस यात्रा पर जाने का विचार बनाया था पर अंतिम समय में 2 दोस्तों के अचानक से मना कर देने से हमने इस यात्रा को ठंडे बस्ते में डाल दिया था ! इसलिए जुलाई में इस यात्रा का फिर से विचार आने पर हम लोगों ने ज़्यादा सोच विचार करना मुनासिब नहीं समझा और आनन-फानन में इस यात्रा के लिए निकल पड़े ! हुआ कुछ यूँ कि मेरे दो मित्र जयंत और जतिन (जीतू) इस यात्रा पर जा रहे थे और उन्होनें अंतिम समय में मुझे अपनी इस यात्रा की जानकारी दी, मैने बिना देर किए इस यात्रा के लिए हामी भर दी ! बीवी इन दिनों मायके गई हुई थी, इसलिए यात्रा पर जाने के लिए ज़्यादा सोच विचार करने की ज़रूरत ही नहीं थी, वरना तो ना जाने कितने सवाल-जवाब होते और अंत में परिणाम वही सिफ़र ही निकलता !
जुलाई माह के दूसरे सप्ताह में एकदम से लैंसडाउन जाने का विचार बना और हम तीन मित्र जयंत, जीतू, और मैं इस यात्रा के लिए ज़्यादा कुछ सोचे बिना ही निकल लिए ! दरअसल, इस यात्रा पर जाने की योजना तो एक बार पहले भी जून के तीसरे सप्ताह में बनी थी, जब हम 4 दोस्तों ने इस यात्रा पर जाने का विचार बनाया था पर अंतिम समय में 2 दोस्तों के अचानक से मना कर देने से हमने इस यात्रा को ठंडे बस्ते में डाल दिया था ! इसलिए जुलाई में इस यात्रा का फिर से विचार आने पर हम लोगों ने ज़्यादा सोच विचार करना मुनासिब नहीं समझा और आनन-फानन में इस यात्रा के लिए निकल पड़े ! हुआ कुछ यूँ कि मेरे दो मित्र जयंत और जतिन (जीतू) इस यात्रा पर जा रहे थे और उन्होनें अंतिम समय में मुझे अपनी इस यात्रा की जानकारी दी, मैने बिना देर किए इस यात्रा के लिए हामी भर दी ! बीवी इन दिनों मायके गई हुई थी, इसलिए यात्रा पर जाने के लिए ज़्यादा सोच विचार करने की ज़रूरत ही नहीं थी, वरना तो ना जाने कितने सवाल-जवाब होते और अंत में परिणाम वही सिफ़र ही निकलता !
राष्ट्रीय राजमार्ग 24 (National Highway 24) |
इस समय हम तीनों का शानदार समय चल रहा था क्योंकि मुझे पक्का यकीन है कि मेरे दोनों मित्रों की बीवियाँ भी मायके ही गई हुई थी, वरना इतनी आसानी से वो अकेले यात्रा का विचार कभी नहीं बनाते ! यात्रा का दिन शनिवार 19 जुलाई 2014 का निश्चित किया गया ! शुक्रवार रात्रि दफ़्तर से घर पहुँचने के बाद मैने इस यात्रा पर ले जाने के लिए कुछ जोड़ी कपड़े और बाकी ज़रूरी समान एक बैग में रख लिए ! खाना खा-पीकर जब सोने की कोशिश कर रहा था तभी जयंत का फोन आया कि सुबह पक्का चल रहे है ना, मैं बोला यार सारी तैयारियाँ कर ली है और तुझे अभी भी शंका क्यूँ हो रही है ! बातचीत के दौरान ही जयंत ने अपनी गाड़ी ले जाने में असमर्थता दिखाई तो मेरी गाड़ी से जाना तय हुआ ! खैर, शनिवार सुबह तैयार होकर मैं सुबह 4 बजकर 35 मिनट पर अपने घर से फरीदाबाद के लिए निकल पड़ा ! जयंत और जीतू फरीदाबाद में ही रहते है और उन्होनें मुझे 5 बजे फरीदाबाद पहुँचने के लिए कहा था ! इतनी सुबह राष्ट्रीय राजमार्ग खाली होने की वजह से मुझे पलवल से फरीदाबाद पहुँचने में ज़्यादा समय नहीं लगा और मैं निर्धारित समय पर फरीदाबाद पहुँच गया !
जीतू के घर जाने के लिए नदी का रूप ले चुकी सड़क को पार करके जाना पड़ा, बारिश के मौसम में फरीदाबाद की ज़्यादातर सड़कें नदी की तरह लबालब हो जाती है ! जीतू को फोन किया तो पता चला कि जनाब तैयार होने में लगे है, 5 बजकर 15 मिनट पर जीतू तैयार होकर अपने घर से बाहर आ गया ! जीतू के आने के बाद हमें जयंत को लेने के लिए उसके घर जाना था ! जयंत के घर भी हमें 10 मिनट का इंतज़ार करना पड़ा, कुल मिलाकर 5 बजकर 40 मिनट पर हम तीनों एक बार फिर से राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुँच चुके थे ! सरिता विहार में गाड़ी में गैस और पेट्रोल डलवाने के साथ ही हमने गाड़ी के टायरों की हवा भी चेक करवाने के बाद हमने अपनी यात्रा जारी रखी ! कलिन्दि कुंज (दिल्ली बॉर्डर) पार करते ही उत्तर प्रदेश पुलिस ने जब हाथ देकर गाड़ी रुकवाई, तो हमें लगा आज इन लोगों ने क्या तलाशी अभियान चला रखा है ! जयंत के हाथ में गिटार देख कर एक पुलिस वाला बोला, भाई यू बाजे भी है क्या ! अब वो जयंत की माशूका तो था नहीं कि जयंत उसे गिटार बजा कर सुनाता !
थोड़ी देर की बातचीत और फिर अपना सामान चेक करवाने के बाद हम लोग आगे बढ़ गए ! मेट्रो के नीचे वाली सड़क पर चलते हुए नोयडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन को पार करने के बाद हम लोग उसी राह से राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर पहुँच गए ! सुबह होने की वजह से हमें ज़्यादा भीड़ नहीं मिली, वरना दिन में तो इस राह पर काफ़ी भीड़ रहती है ! इस राजमार्ग पर थोड़ी देर चलने के बाद हमें अपनी यात्रा का दूसरा टोल प्लाज़ा दिखाई दिया, पहला टोल प्लाज़ा फरीदाबाद-बदरपुर बॉर्डर के पास मिला था, जहाँ 23 रुपए का टोल अदा किया था ! यहाँ भी 15 रुपए का टोल चुकाने के बाद हमारी गाड़ी फिर से इस मार्ग परतेज़ी से दौड़ने लगी ! नोयडा से निकलते समय सड़क पर थोड़ा जाम तो मिला, पर थोड़ी दूर चलने पर आगे रास्ता खाली था ! वर्षा ऋतु में सुबह का मौसम काफ़ी सुहावना था पर जैसे-2 धूप तेज होती जा रही थी, गर्मी भी बढ़ने लगी थी ! हालाँकि, गाड़ी के भीतर का तापमान तो बढ़िया था पर जहाँ कहीं भी खिड़की खोलनी पड़ रही थी, बाहर पड़ रही गर्मी का एहसास हो रहा था !
ऐसे ही चलते हुए जब हम गढ़मुक्तेश्वर में गंगा नदी पर बने पुल से गुज़रे तो गंगा नदी का सौंदर्य देख कर मन खुश हो गया, रास्ता बढ़िया होने के कारण यहाँ तक का सफ़र हमने कब तय कर लिया पता ही नहीं चला ! लैंसडाउन जाने के लिए वैसे तो मेरठ से होकर भी एक राजमार्ग है पर सावन का महीना होने के कारण हमने उस मार्ग पर जाना उचित नहीं समझा ! हरिद्वार से गंगाजल लाने वाले कावड़ियों की वजह से मेरठ वाले मार्ग पर जाम की खबर सुनने को मिली थी ! अक्सर सावन माह में कावड़ियों की वजह से इस मार्ग पर काफ़ी अवरोध होता है, और अगर किसी सफ़र की शुरुआत में ही आपको ऐसी स्थिति का सामना करना पड़े तो सारे सफ़र का मज़ा किरकिरा हो जाता है ! इसलिए हमने मेरठ वाले मार्ग से ना जाकर इस मार्ग से जाने का फ़ैसला किया, लेकिन बाद में ये हमें ये एहसास हुआ कि इस मार्ग पर आना हमारे सफ़र की सबसे बड़ी ग़लती थी !
गूगल मैप का सहारा लेकर हम लोग राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर आगे बढ़ते रहे, गजरौला तक तो मार्ग बहुत ही बढ़िया था, फिर गजरौला पहुँचने के बाद हम लोग इस राजमार्ग से उतरकर अपनी बाईं ओर गजरौला-चांदपुर मार्ग पर चल दिए ! इस मार्ग पर आगे अवरोध था इसलिए हमें वापस राजमार्ग 24 पर आकर 1 किलोमीटर आगे जाकर एक रेलवे फाटक को पार करके घूम कर गजरौला-चांदपुर मार्ग पर जाना पड़ा ! गजरौला-चांदपुर मार्ग पर लगभग 35 किलोमीटर चलने के बाद हम लोग चांदपुर-नेठौर मार्ग पर पहुँच गए ! इस मार्ग पर तो स्थिति बहुत ही खराब थी, जैसे-2 हम लोग आगे बढ़ रहे थे रास्ता भी खराब होता जा रहा था ! राष्ट्रीय राजमार्ग 24 बहुत ही बढ़िया था, गजरौला-चांदपुर मार्ग ठीक-ठाक था, पर चांदपुर-नेठौर मार्ग तो इतना खराब था कि गाड़ी चलाने का भी मन नहीं कर रहा था ! यहाँ आकर हमने गूगल मैप को जो कोसना शुरू किया वो पूरे सफ़र में जारी रहा, यहाँ मैने ठान लिया कि ऐसे अंजान मार्ग पर गूगल मैप पर आँख मूंद कर तो कभी भी भरोसा नहीं करूँगा !
कम से कम अगर कोई मार्ग क्षतिग्रस्त हो तो गूगल को इस बाबत जानकारी दे देनी चाहिए, जैसे आजकल ये किसी भी मार्ग पर यातायात के हालात दर्शाता है ! चांदपुर से नेठौर का सफ़र वैसे तो 25 किलोमीटर का था, पर इस दूरी ने हमारे पसीने छुड़ा दिए ! कहने को तो ये राजमार्ग है पर इसकी वर्तमान स्थिति से ये हमें कहीं से भी राजमार्ग नहीं लगा ! यहाँ पर हम तीनों ने उत्तर प्रदेश सरकार की जी भरकर आलोचना की, जो चुनावों में दावे तो खूब करती है पर अभी तक यहाँ ढंग की सड़क तक मुहैया नहीं करवा पाई है ! एक तो रास्ता खराब था और रही-सही कसर बारिश के मौसम ने पूरी कर दी ! पास में ही गंगा नदी थी, जिसमें पानी ज़्यादा आ जाने के कारण इस राजमार्ग पर पड़ने वाले सारे गाँव ही जलमग्न थे ! सड़क पर तो हमारी कमर तक पानी भरा हुआ था, ऐसी हालत में गाड़ी चलाना तो दूर की बात, सोचने से ही डर लग रहा था !
इस समय कोई दूसरा विकल्प ना होने के कारण हमने इसी मार्ग से आगे बढ़ने की सोची, और भगवान का नाम लेकर पानी में से गाड़ी निकालनी शुरू कर दी ! चांदपुर तक तो गाड़ी मैं चला कर लाया था पर चांदपुर से आगे जीतू ने ये जिम्मा खुद ले लिया ! इस पूरे मार्ग पर पानी भरा होने के कारण अंदाज़ा भी नहीं लग पा रहा था कि कहाँ सड़क है और कहाँ गड्ढे ! अगर गाड़ी सड़क से हटकर किसी गड्ढे में फँस जाती और भी बुरा हाल हो जाता ! जैसे-तैसे करके हमने इस नदी रूपी सड़क को पार किया ! ये जीतू की मेहनत ही थी जिसकी बदौलत कई बार पानी में से होते हुए भी हमने वो सफ़र पूरा किया ! नेठौर से आगे निकलने के बाद हमने नजीबाबाद पहुँचकर एक होटल में सुबह का भोजन करने के लिए गाड़ी रोक दी !
गूगल मैप का सहारा लेकर हम लोग राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर आगे बढ़ते रहे, गजरौला तक तो मार्ग बहुत ही बढ़िया था, फिर गजरौला पहुँचने के बाद हम लोग इस राजमार्ग से उतरकर अपनी बाईं ओर गजरौला-चांदपुर मार्ग पर चल दिए ! इस मार्ग पर आगे अवरोध था इसलिए हमें वापस राजमार्ग 24 पर आकर 1 किलोमीटर आगे जाकर एक रेलवे फाटक को पार करके घूम कर गजरौला-चांदपुर मार्ग पर जाना पड़ा ! गजरौला-चांदपुर मार्ग पर लगभग 35 किलोमीटर चलने के बाद हम लोग चांदपुर-नेठौर मार्ग पर पहुँच गए ! इस मार्ग पर तो स्थिति बहुत ही खराब थी, जैसे-2 हम लोग आगे बढ़ रहे थे रास्ता भी खराब होता जा रहा था ! राष्ट्रीय राजमार्ग 24 बहुत ही बढ़िया था, गजरौला-चांदपुर मार्ग ठीक-ठाक था, पर चांदपुर-नेठौर मार्ग तो इतना खराब था कि गाड़ी चलाने का भी मन नहीं कर रहा था ! यहाँ आकर हमने गूगल मैप को जो कोसना शुरू किया वो पूरे सफ़र में जारी रहा, यहाँ मैने ठान लिया कि ऐसे अंजान मार्ग पर गूगल मैप पर आँख मूंद कर तो कभी भी भरोसा नहीं करूँगा !
इस समय कोई दूसरा विकल्प ना होने के कारण हमने इसी मार्ग से आगे बढ़ने की सोची, और भगवान का नाम लेकर पानी में से गाड़ी निकालनी शुरू कर दी ! चांदपुर तक तो गाड़ी मैं चला कर लाया था पर चांदपुर से आगे जीतू ने ये जिम्मा खुद ले लिया ! इस पूरे मार्ग पर पानी भरा होने के कारण अंदाज़ा भी नहीं लग पा रहा था कि कहाँ सड़क है और कहाँ गड्ढे ! अगर गाड़ी सड़क से हटकर किसी गड्ढे में फँस जाती और भी बुरा हाल हो जाता ! जैसे-तैसे करके हमने इस नदी रूपी सड़क को पार किया ! ये जीतू की मेहनत ही थी जिसकी बदौलत कई बार पानी में से होते हुए भी हमने वो सफ़र पूरा किया ! नेठौर से आगे निकलने के बाद हमने नजीबाबाद पहुँचकर एक होटल में सुबह का भोजन करने के लिए गाड़ी रोक दी !
क्यों जाएँ (Why to go Lansdowne): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो लैंसडाउन आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! इसके अलावा अगर आप प्राकृतिक नज़ारों की चाह रखते है तो आप निसंकोच लैंसडाउन का रुख़ कर सकते है ! अगर दिसंबर-जनवरी में पहाड़ों पर बर्फ देखने की चाहत हो तो भी लैंसडाउन चले आइए, दिल्ली के सबसे नज़दीक का हिल स्टेशन होने के कारण लैंसडाउन लोगों की पसंदीदा जगहों में से एक है !
कब जाएँ (Best time to go Lansdowne): लैंसडाउन आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है बारिश के दिनों में तो यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है लेकिन अगर आप बारिश के दिनों में जा रहे है तो मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होकर ही जाए ! गढ़मुक्तेश्वर वाला मार्ग बिल्कुल भी ना पकड़े, गंगा नदी का जलस्तर बढ़ने के कारण नेठौर-चांदपुर का क्षेत्र जलमग्न रहता है ! वैसे, यहाँ सावन के दिनों में ना ही जाएँ तो ठीक रहेगा और अगर जाना भी हो तो अतिरिक्त समय लेकर चलें क्योंकि उस समय कांवड़ियों की वजह से मेरठ-बिजनौर मार्ग अवरुद्ध रहता है !
कैसे जाएँ (How to Reach Lansdowne): दिल्ली से लैंसडाउन की कुल दूरी 260 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 7 से 8 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से लैंसडाउन जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मेरठ-बिजनौर-नजीबाबाद होते हुए है, दिल्ली से खतौली तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि खतौली से आगे कोटद्वार तक 2 लेन राजमार्ग है ! इस पूरे मार्ग पर बहुत बढ़िया सड़क बनी है, कोटद्वार से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Lansdowne): लैंसडाउन एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, एक दो जगह होमस्टे का विकल्प भी है मैने एक यात्रा के दौरान जहाँ होमस्टे किया था वो है अनुराग धुलिया 9412961300 ! अगर आप यात्रा सीजन (मई-जून) में लैंसडाउन जा रहे है तो होटल में अग्रिम आरक्षण (Advance Booking) करवाकर ही जाएँ ! होटल के लिए आपको 800 से 2500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है ! यहाँ गढ़वाल मंडल का एक होटल भी है, हालाँकि, ये थोड़ा महँगा है लेकिन ये सबसे बढ़िया विकल्प है क्योंकि यहाँ से घाटी में दूर तक का नज़ारा दिखाई देता है ! सूर्योदय और सूर्यास्त देखने के लिए भी ये शानदार जगह है !
कहाँ खाएँ (Where to eat in Lansdowne): लैंसडाउन में छोटे-बड़े कई होटल है, जहाँ आपको खाने-पीने का सभी सामान आसानी से मिल जाएगा ! अधिकतर होटलों में खाना सादा ही मिलेगा, बहुत ज़्यादा विकल्प की उम्मीद करना बेमानी होगा !
क्या देखें (Places to see in Lansdowne): लैंसडाउन में देखने के लिए कई जगहें है जैसे भुल्ला ताल, दरवान सिंह म्यूज़ीयम, टिप एन टॉप, और एक चर्च भी है ! टिप एन टॉप के पास संतोषी माता का मंदिर भी है ! चर्च सिर्फ़ रविवार के दिन खुलता है जबकि म्यूज़ीयम रोजाना सुबह 9 बजे खुलकर दोपहर को बंद हो जाता है, फिर शाम को 3 खुलता है, अगर आप लैंसडाउन आए है तो ये म्यूज़ीयम ज़रूर देखिए ! लैंसडाउन से 35 किलोमीटर दूर ताड़केश्वर महादेव मंदिर भी है, लैंसडाउन से एक-डेढ़ घंटे का सफ़र तय करके जब आप ताड़केश्वर महादेव मंदिर पहुँचोगे तो मंदिर के आस-पास के नज़ारे देखकर आपकी सारी थकान दूर हो जाएगी ! चीड़ के घने पेड़ो के बीच बने इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है !
लैंसडाउन यात्रा
- दिल्ली से लैंसडाउन का एक यादगार सफ़र (A Road Trip from Delhi to Lansdowne)
- बारिश में देखने लायक होती है लैंसडाउन की ख़ूबसूरती (Beautiful Views on the Way to Lansdowne)
- लैंसडाउन से दिल्ली की सड़क यात्रा (A Road Trip from Lansdowne to Delhi)
पास में रहने का ये फायदा भी है कि आप एक दुसरे के पास जल्दी ही पहुँच पाते हैं ! दुनियां में सबको बीवी का डर सताता है भाई जी !!
ReplyDeleteवैसे दोस्तों संग ऐसी यात्राओं में रोमांच भी खूब रहता है ! बीवी वाली बात का तो क्या जवाब दूँ आपने ही सब कुछ कह दिया !
Deleteशुरू में ही मार्ग गलत पकड लिया, हापुड से मेरठ व वहां से नजीबाबाद वाला रास्ता पकडना था, रास्ता भी अच्छा था ओर कांवडियो की इतनी भीड भी नही होती है, पहले सडको पर पानी आ जाता था, अब तो ऐसी जगह पुलिया भी बना दी गई है, खैर कोई नही अपनी यात्रा को आगे बढाओ।
ReplyDeleteगूगल के भरोसे गए थे, नतीजा भी भुगत लिया !
Deleteवैसे इंटीरियर्स में ज़्यादातर एप्स की जगह लोकल लोगों से रास्ता पूछना ही सही रहता है. कई बार वे खुद की एक रास्ते के साथ साथ alternative रास्ते भी बता देते हैं. Nice narration, moving on to the next post.
ReplyDeleteबात तो सही है, लेकिन कई बार आपका आत्मविश्वास आपके आड़े आ जाता है ! हमारे साथ कुछ ऐसा ही हुआ था कि लैंसडाउन का रास्ता तो सीधा ही है !
Deleteपहला ही कदम रखते ओले पड़े यानि सिर मुड़ाते ओले पड़े।चलते है आगे थोडा नाश्ता कर लो हा हा हा
ReplyDeleteबिलकुल सही बात, मैंने तो बरसात के मौसम में पहाड़ो पर गाडी ले जाने से तौबा कर ली !
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