तिजारा का जैन मंदिर (A visit to Jain Temple of Tijara)

बुधवार 3 अप्रैल 2019 

ग्वालियर से आए 3 हफ्ते हो चुके थे इस बीच हम सब दोबारा एक बार फिर से अपने-2 काम में व्यस्त हो चुके थे, रोजमर्रा की भाग-दौड़ फिर से शुरू हो चुकी थी ! ऐसी व्यस्त दिनचर्या के बीच जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए समय-2 पर इस दिनचर्या में बदलाव बेहद जरूरी है और मैं तो इस बदलाव के लिए यात्राओं का सहारा लेता हूँ ! इसलिए फिलहाल मुझे ऐसी ही किसी यात्रा की दरकार थी फिर चाहे वो एक दिन की ही क्यों ना हो, वैसे भी ग्वालियर में समय के अभाव में हम कहीं घूम नहीं पाए थे ! इन सबके बीच शशांक की छुट्टियाँ अभी खत्म नहीं हुई थी, और सुबह-शाम दोस्तों संग रोज इस बात पर चर्चा होती कि उसकी छुट्टियाँ खत्म होने से पहले कहीं घूमने चलना है, क्या पता अगली बार वो छुट्टी पर कब आए ! रोज-2 की इस भागम-भाग से परेशान होकर आखिर एक दिन गाड़ी लेकर हम घूमने निकल ही पड़े, बेशक ये एक दिन की यात्रा थी लेकिन हमने सोचा इसी बहाने दिनचर्या में कुछ बदलाव तो होगा ! अपनी एक दिवसीय यात्रा में हम तिजारा का जैन मंदिर देखते हुए अलवर की ओर जाएंगे, वहाँ भी कुछ दर्शनीय स्थल है जो हमें देखने है ! वैसे तो मैं अलवर कई बार गया हूँ, लेकिन यहाँ देखने की इतनी जगहें है कि हर बार कुछ नया देखने को मिल ही जाता है ! वैसे, तिजारा के इस जैन मंदिर के बारे में मुझे अपने एक मित्र लोकेश से पता चला था, जो अक्सर इस मंदिर में जाता रहता है ! मंदिर की जानकारी मिलने के बाद से मैंने भी यहाँ जाने का सोच रखा था लेकिन कभी मौका ही नहीं मिला, इसलिए आज जब अलवर जाना निश्चित हुआ तो सोचा क्यों ना ये मंदिर भी देख ही लिया जाए !

तिजारा का जैन मंदिर

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि तिजारा का जैन मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में पड़ता है और मुख्य शहर से इसकी दूरी लगभग 55 किलोमीटर है ! आज की इस यात्रा पर मेरे साथ शशांक, हितेश, विपुल और विनोद भी जाने वाले थे जो पहले भी कई यात्राओं पर मेरे साथी रह चुके है ! निर्धारित दिन सुबह 7 बजे हमारी यात्रा शुरू हो गई, जब मैं गाड़ी लेकर घर से चला, यात्रा के सभी साथी अपनी-2 सहूलियत के हिसाब से रास्ते में मुझे मिलते रहे ! पिछली कई यात्राओं में हम अलवर जाने के लिए नूँह होकर ही गए थे इसलिए इस बार किसी नए रास्ते से जाने का विचार था, तो आज हम सोहना-तावडू होते हुए अलवर जाएंगे ! इस मार्ग से जाने पर हमें नूँह वाले मार्ग के मुकाबले 11 किलोमीटर ज्यादा चलना था लेकिन सोचा एक नया रास्ता देखने को मिलेगा ! वैसे भी किसी स्थान पर जाने के वैकल्पिक रास्ते तलाशते रहने चाहिए, क्योंकि हर राह पर चलने का एक अलग अनुभव होता है और जीवन में नए अनुभव तो जरूर होने चाहिए ! यात्रा के सभी साथियों को लेने के बाद कुछ ही देर में हम पलवल सोहना मार्ग पर पहुँच गए, सुबह-2 का समय होने के कारण सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी, वैसे हम रोजाना इसी मार्ग से होकर अपने दफ्तर भी जाते है ! पलवल से सोहना 30 किलोमीटर दूर है, 2 लेन का बढ़िया मार्ग बना है और सड़क के बीच में डिवाइडर नहीं है लेकिन फिर भी मार्ग पर्याप्त चौड़ा है इसलिए गाड़ी चलाने में कोई दिक्कत नहीं होती ! हाँ, रात को सामने से आने वाले वाहनों की रोशनी आँखों पर पड़ने से गाड़ी चलाने में जरूर दिक्कत होती है !

पलवल सोहना मार्ग

रास्ते में लिया एक चित्र

सिलानी के पास लिया एक चित्र

रास्ते में लिया एक और चित्र

खाली मार्ग का फायदा हुआ और हम पलवल से निकलकर जल्द ही धतीर, जेंदापुर, सिलानी होते हुए लाखुवास पहुंचे, यहाँ एक तिराहे पर बल्लभगढ़ से पाली-धौज और सिरोही होते हुए एक मार्ग आकर पलवल सोहना मार्ग में मिल जाता है ! इसी मार्ग पर मेरा कॉलेज हुआ करता था और चार साल मैं यहाँ खूब चला हूँ, हालांकि, तब ये मार्ग टूटा-फूटा और संकरा हुआ करता था लेकिन अब ये बढ़िया बन गया है ! खैर, चलिए वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम लखुवास पहुँच चुके है,  और बल्लभगढ़ तिराहे से सोहना तक सड़क के बीच में डिवाइडर भी है ! लाखुवास के बाद अगला गाँव जुकुपुर है जिसे पार करते हुए हम सोहना चौराहे पर पहुंचे, बड़ा चौराहा होने के कारण यहाँ थोड़ा जाम लगा था, इस चौराहे से बाएं जाने वाला मार्ग नूँह जाता है, जबकि दाईं ओर जाने वाला मार्ग सोहना बस-अड्डा होते हुए गुड़गाँव को चला जाता है ! हमें सीधे जाना था, इस मार्ग से तावडू-भिवाड़ी होते हुए हम तिजारा जाएंगे, शुरुआत में इस मार्ग पर अच्छी-खासी चढ़ाई है लेकिन आगे जाने पर रास्ता समतल हो जाता है ! सोहना से लगभग डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद एक मोड पर दाईं ओर सोहना किले के खंडहर बन चुके अवशेष दिखाई देते है ! जानकारी के लिए बता दूँ कि सोहना से तावडू की दूरी 12 किलोमीटर है जबकि तावडू से भिवाड़ी 13 किलोमीटर दूर है, जहां तावडू हरियाणा राज्य में आता है वहीं भिवाड़ी राजस्थान का भाग है ! सोहना से तावडू जाने का मार्ग बहुत अच्छा नहीं था, ये बहुत ऊबड़-खाबड़ और जगह-2 टूटा हुआ था !

सोहना से आगे लिया एक चित्र

अरावली की पहाड़ियों के बीच बना ये मार्ग

अरावली की पहाड़ियों के बीच से निकलते इस मार्ग के दोनों ओर अभी तो दूर-2 तक सूखे पहाड़ ही दिखाई दे रहे थे लेकिन बारिश के मौसम में इन पहाड़ों पर खूब हरियाली रहती है ! तिजारा स्थित इस जैन मंदिर की दूरी भिवाड़ी से मात्र 32 किलोमीटर रह जाती है, लेकिन सड़क खराब होने के कारण ये दूरी तय करने में भी पौने घंटे का समय लग ही जाता है ! तिजारा बस अड्डे से थोड़ा आगे बढ़ने पर अहिंसा चौक से हमें मुख्य मार्ग को छोड़कर बाएं मुड़ना था, ये मार्ग एक रिहायशी इलाके से होता हुआ जैन मंदिर तक जाता है जिसकी दूरी इस चौराहे से लगभग 2 किलोमीटर है ! इस रिहायशी इलाके में बढ़िया मार्ग मिला, जिससे होते हुए कुछ देर बाद हम मंदिर के पास पहुँच गए, आज यहाँ ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिए गाड़ी मंदिर से थोड़ी दूर सड़क किनारे खड़ी कर दी ! वैसे भीड़ बढ़ने की स्थित में मंदिर के बगल में एक पार्किंग स्थल भी है जहां आप अपनी गाड़ी खड़ी कर सकते है ! गाड़ी से उतरकर हम सब मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, इस मार्ग के दोनों ओर दुकानें सजी थी जहां प्रसाद, साज-सज्जा और खान-पान का सामान मिल रहा था ! मंदिर से थोड़ा पहले मार्ग के बीच में डिवाइडर बना दिया गया है जिससे यहाँ भीड़ बढ़ने पर धक्का-मुक्की ना हो और आने-जाने का मार्ग अलग-2 रहे ! एक दुकान पर रुककर हमने प्रसाद लिया और मुख्य द्वार से होते हुए मंदिर परिसर में दाखिल हुए !

तिजारा के जैन मंदिर का प्रवेश द्वार

चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको थोड़ी जानकारी इस मंदिर के बारे में दे देता हूँ, प्राप्त जानकारी के अनुसार ये मंदिर एक प्रमुख जैन तीर्थ स्थल है जो अवसर्पिणी काल के आठवें तीर्थकर चन्द्रप्रभ स्वामी को समर्पित है ! मंदिर की स्थापना को लेकर कहा जाता है कि तिजारा नगर निगम द्वारा सड़क विस्तारीकरण के दौरान भूमि की खुदाई करते हुए 16 अगस्त 1956 को यहाँ खंडहरों के कुछ अवशेष मिले जो इस बात को प्रमाणित करते थे कि यहाँ प्राचीन काल में जैन मंदिर था ! इस बात की पुष्टि के लिए जैन समाज द्वारा स्थानीय प्रशासन की मदद से यहाँ 2 हफ्तों तक खुदाई का काम चला, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली, अंतत खुदाई का काम बंद हो गया ! तत्पश्चात एक स्थानीय महिला को स्वप्न में मंदिर परिसर में भगवान दिखाई दिए, उसने ये बात अपने परिवार के लोगों को बताई, लेकिन सबने ये कहकर उसकी बात टाल दी कि 15 दिन की खुदाई के बाद भी यहाँ कुछ नहीं मिला तो ये स्वप्न मात्र एक संयोग ही है ! लेकिन वो महिला अपनी जिद पर अड़ी रही, आखिरकार महिला के बताए स्थान पर जब दोबारा खुदाई हुई तो 7 फुट नीचे स्वामी चन्द्रप्रभ जी की पद्मासन की मुद्रा में एक मूर्ति प्राप्त हुई ! तत्पश्चात यहाँ इस मंदिर की स्थापना हुई, मंदिर में स्थापित मुख्य प्रतिमा की ऊंचाई 15 इंच है जो सफेद संगमरमर की बनी है ! प्रतिमा पर अंकित उत्कीर्ण लेख के अनुसार ये प्रतिमा पहली बार 1554 में स्थापित की गई थी, लेकिन शायद किसी आपदा में या अन्य कारणों से ये जमींदोज हो गई ! 

मंदिर परिसर में मान स्तम्भ 

मंदिर का एक दृश्य 

मंदिर में बना परिक्रमा मार्ग

मंदिर में बना पार्किंग स्थल
वैसे इस मंदिर में एक अन्य प्रतिमा भी है जो काले संगमरमर से बनी है और जिसकी ऊंचाई 8 इंच है ! फिलहाल इस मंदिर की इतनी मान्यता है कि जैन समाज ही नहीं अन्य धर्मों के लोग भी यहाँ दर्शन के लिए देश-विदेश से आते है ! बाहरी प्रवेश द्वार से अंदर दाखिल होते ही सामने संगमरमर से बना एक स्तम्भ है जिसे मान स्तम्भ कहा जाता है, मंदिर प्रांगण में स्थित ये स्तम्भ यहाँ के मुख्य आकर्षण केंद्रों में से एक है ! इस स्तम्भ के बाईं मंदिर का मुख्य भवन है, जो काफी बड़े क्षेत्र में फैला है, कहा जाता  है कि मंदिर के मुख्य हाल में एक साथ 2000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है ! मुख्य भवन में जाकर पहले हमने दर्शन किये और फिर इसके चारों ओर बने परिक्रमा मार्ग पर चल दिए, इस मार्ग की दीवारों पर बढ़िया चित्रकारी की गई है ! यहाँ दर्शन करने के बाद हम बाहर आ गए, हालांकि, जानकारी के अभाव में हम मंदिर परिसर से थोड़ी दूर बने चन्द्र गिरी वाटिका को नहीं देख पाए ! अगर आप यहाँ दर्शन के लिए आए है तो इस वाटिका को जरूर देखें, यहाँ चन्द्रप्रभ स्वामी की 15 फुट ऊंची पाषाण की मूर्ति स्थापित है ! वाटिका के निचले भाग में एक सुंदर पार्क भी बना है जो बहुत आकर्षक है ! मंदिर के बगल में यहाँ आने वाले यात्रियों के लिए जैन धर्मशाला भी है जहां लगभग 500 कमरे है और रुकने की उचित व्यवस्था है ! परिक्रमा करने के बाद हम मंदिर परिसर से बाहर आ गए और मंदिर के सामने एक दुकान पर जाकर लस्सी पी और कुछ चाट-पकोड़े भी खाए ! इसके साथ ही इस लेख पर विराम लगाते हुए आपसे विदा लेता हूँ, यात्रा के अगले लेख में आपसे फिर मुलाकात होगी !

परिक्रमा मार्ग पर लिया एक चित्र

मंदिर से दिखाई देता पार्किंग स्थल

मान स्तम्भ के पास से लिया एक चित्र

इस यात्रा के सभी साथी

क्यों जाएँ (Why to go)अगर आप धार्मिक जगहों पर जाना पसंद करते है और जैन धर्म में आपकी आस्था है तो आपको तिजारा के जैन मंदिर जरूर जाना चाहिए ! इस मंदिर को देखते हुए आप अलवर में स्थित पर्यटक स्थलों का भ्रमण भी कर सकते है ! 

कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन गर्मियों में यहाँ का तापमान बहुत बढ़ जाता है इसलिए कोशिश कीजिए कि आप बारिश के मौसम में या सर्दियों में यहाँ भ्रमण के लिए आए !

कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से तिजारा का जैन मंदिर महज 110 किलोमीटर दूर है जिसे तय करने में आपको लगभग 2 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से तिजारा जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मानेसर-भिवाड़ी होते हुए है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो खैरथल यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जिसकी दूरी यहाँ से 28 किलोमीटर है ! खैरथल दिल्ली-अलवर मार्ग पर स्थित है और यहाँ गिनती की ट्रेनें ही रुकती है ! खैरथल से तिजारा के इस जैन मंदिर का सफर आप टैक्सी या ऑटो से तय कर सकते है !

कहाँ रुके (Where to stay): वैसे तो इस मंदिर में रुकने के लिए धर्मशालाएं है लेकिन अगर आप धर्मशालाओं में रुकना पसंद नहीं करते तो मंदिर परिसर के आस-पास आपको होटल मिल जाएंगे जिनका किराया 1000 रुपए से शुरू हो जाता है आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है !

क्या देखें (Places to see): तिजारा के इस मंदिर को देखने के बाद आप अलवर का रुख कर सकते है जो यहाँ से महज 55 किलोमीटर दूर है ! अलवर में देखने की कई जगहें है जिसमें से बाला किला, सिटी पैलेस, मूसी महारानी की छतरी, मोती डूंगरी, कंपनी गार्डन, सिलिसेढ़ झील, और सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य प्रमुख है !


तिजारा-अलवर यात्रा

  1. तिजारा का जैन मंदिर (A visit to Jain Temple of Tijara)
  2. अलवर का बाला किला (A Visit to Bala Fort, Alwar)
  3. अलवर का सिटी पैलेस और संग्रहालय (City Palace and Museum, Alwar)
  4. मूसी महारानी की छतरी (Cenotaph of Maharani Moosi, Alwar)

Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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