फरीदाबाद से मैहर की रेल यात्रा (A Rail Journey from Faridabad to Maihar)

शनिवार, 28 अगस्त 2021

कोरोना महामारी के बाद से मेरी यात्राओं पर जैसे ग्रहण सा लग गया है, तभी तो इस दौरान कुछ गिनी-चुनी यात्राएं ही हो सकी, इन्हीं यात्राओं में से एक यात्रा मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित माता मैहर देवी की है ! मैहर देवी का ये मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है, मैंने भी इस मंदिर के बारे में कई लोगों से सुना था और इससे संबंधित कुछ लेख भी पढे थे, मंदिर की जानकारी मिलने के बाद से ही मेरी इच्छा मैहर जाने की थी ! लेकिन एक तो कोरोना के कारण लगे प्रतिबंधो से इस यात्रा पर जाने का संयोग नहीं बन रहा था, और दूसरा साथ चलने के लिए कोई मित्र भी नहीं मिल रहा था, इसलिए ना चाहते हुए भी ये यात्रा टलते जा रही थी ! फिर जब अगस्त 2021 में सतना जाने का कार्यक्रम बना तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था ! दरअसल, हुआ कुछ यूं कि एक दिन देवेन्द्र से बात करते हुए मैंने इस मंदिर का जिक्र किया तो उसने भी इस यात्रा पर चलने की इच्छा जताई ! देवेन्द्र के साथ मैं पहले भी कई यात्राएं कर चुका हूँ, और हर यात्रा यादगार रही है इसलिए ये तो पक्का था कि हमारी ये यात्रा भी अच्छी रहने वाली है ! इस यात्रा को हम महकौशल एक्स्प्रेस ट्रेन से करने वाले थे, जो दिल्ली के हज़रत निजामुद्दीन से चलती है, और जबलपुर तक जाती है, हम इस ट्रेन से मैहर तक सफर करने वाले थे ! दिल्ली से मैहर की दूरी लगभग 803 किलोमीटर है, ट्रेन दोपहर ढाई बजे दिल्ली से चलकर सुबह साढ़े पाँच बजे मैहर पहुँच जाती है ! इस तरह ये सफर तो 15 घंटे का रहता है लेकिन ट्रेन का समय ऐसा है कि यात्रा के दौरान आप बोर नहीं होते ! यात्रा का दिन निर्धारित होने के बाद हम अपनी-2 तैयारियों में लग गए, मैंने इस यात्रा पर अपने साथ ले जाने वाला सारा सामान एक बैग में रख लिया और जो थोड़ा-बहुत खरीददारी करनी थी वो भी कर ली !

Maihar
मैहर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

निर्धारित दिन सुबह ही देवेन्द्र से बात हो गई थी, आज उसे किसी जरूरी काम से बाहर जाना था इसलिए एक बार तो उसका जाना खटाई में पड़ता दिख रहा था लेकिन अपना काम निबटा कर वो दोपहर तक वापिस आ गया ! मैं इस ट्रेन में बल्लभगढ़ से सवार होने वाला था जबकि देवेन्द्र अपना सफर निजामुद्दीन से शुरू करने वाला था ! दोपहर में हम दोनों समय से तैयार होकर अपने-2 घर से स्टेशन के लिए निकल पड़े, दिल्ली से ढाई बजे चलकर ये ट्रेन 3 बजे बल्लभगढ़ पहुँचती है ! मैं तो इस यात्रा पर जाने के लिए बड़ा उत्साहित था इसलिए 3 बजे की ट्रेन होने के बावजूद घर से 2 बजे ही निकल पड़ा ! ऑटो में सवार होकर बल्लभगढ़ पहुँचा और फिर कुछ दूर पैदल चलकर रेलवे स्टेशन के सामने पहुँच गया ! घर से स्टेशन पहुँचने में मुझे 15-20 मिनट का समय ही लगा, रेलवे स्टेशन के बाहर वाली सीढ़ियों से होते हुए जब मैं प्लेटफार्म पर पहुँचा तो इस ट्रेन से यात्रा करने वाले कुछ अन्य यात्री भी यहाँ खड़े थे ! टहलते हुए मैं प्लेटफार्म का एक पूरा चक्कर लगा आया, इस बीच देवेन्द्र से भी बात कर ली, वो ट्रेन में बैठ चुका था लेकिन ट्रेन अभी चली नहीं थी, फोन रखने से पहले मैंने उसे बोल दिया कि ट्रेन चले तो मुझे मेसेज कर देना ! कुछ देर प्लेटफार्म पर टहलने के बाद मैं एक जगह जाकर खड़ा हो गया, यहाँ प्लेटफार्म के एक हिस्से की मरम्मत का काम चल रहा था, मुझे तो ट्रेन आने तक किसी तरह समय काटना था इसलिए वहीं एक चबूतरे पर बैठकर इस मरम्मत कार्य को देखने लगा ! यहाँ काम करने वाले कारीगरों का आपसी तालमेल काफी अच्छा था, नतीजन, कुछ ही देर में इन्होने प्लेटफार्म के एक टूटे हुए हिस्से की मरम्मत कर दी ! इस बीच रेलवे लाइन पर ट्रेनों का आना-जाना जारी रहा, जब कोई ट्रेन आती तो मेरा ध्यान अपने आप मरम्मत कार्य से हटकर ट्रेन की बोगियों को गिनने में लग जाता, और फिर ट्रेन जाने के बाद मैं दोबारा मरम्मत कार्य का निरीक्षण करने लगता !

घर से निकलते हुए रास्ते में लिया एक चित्र

घर से निकलते हुए रास्ते में लिया एक चित्र

बल्लभगढ़ बस अड्डे के बाहर राष्ट्रीय राजमार्ग

बल्लभगढ़ बस अड्डे के सामने राष्ट्रीय राजमार्ग

बल्लभगढ़ बस अड्डे का एक दृश्य

बस अड्डे से रेलवे स्टेशन जाते हुए

बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

प्लेटफार्म की ओर जाने की सीढ़ियाँ

रेलवे पुल से दिखाई देता एक नजारा

बल्लभगढ़ रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म की ओर जाने का पुल

कसम से अपनी जिम्मेदारियों से हटकर कभी इस तरह खाली बैठकर अपने आस-पास हो रहे किसी साधारण से काम को असाधारण तरीके से देखिए, इसमें आपको जो आनंद आएगा वो लंबे समय तक याद रहेगा ! इस बीच देवेन्द्र का मेसेज तो आया लेकिन मैं इस मरम्मत कार्य को देखने में इतना व्यस्त था कि मेसेज की ओर ध्यान ही नहीं गया, जब मेरे फोन की घंटी बजी तब याद आया कि मैं यहाँ मरम्मत कार्य देखने नहीं बल्कि ट्रेन पकड़ने आया हूँ ! फोन उठाकर देखा तो देवेन्द्र था, उसने ये बताने के लिए फोन किया था कि ट्रेन फरीदाबाद स्टेशन को पार कर चुकी है और कुछ ही देर में बल्लभगढ़ पहुँच जाएगी ! समय देखा तो 3 बजने में अभी 10 मिनट बाकि थे, मतलब ट्रेन अपने निर्धारित समय या उससे भी पहले यहाँ पहुँच जाएगी ! अपना बैग लेकर मैं चबूतरे से उठकर प्लेटफार्म नंबर 4 की ओर आ गया, जहां ट्रेन आने वाली थी, प्लेटफार्म पर उद्घोषणा केंद्र से महकौशल एक्स्प्रेस के आने की उद्घोषणा लगातार हो रही थी ! कुछ देर बाद हमारी ट्रेन आकर प्लेटफार्म पर रुकी, देवेन्द्र ने खिड़की से हाथ हिलाकर मेरा अभिवादन किया, मैंने उसका अभिवादन स्वीकार किया ! फिर अन्य यात्रियों की तरह मैं भी अपनी बोगी में सवार हो गया, आज देवेन्द्र से काफी समय बाद मुलाकात हो रही थी ! कुछ देर बाद ट्रेन यहाँ से चली तो हमारी बातों का सिलसिला भी शुरू हो गया जो पूरे सफर चलता रहा, कहने-सुनने को बहुत कुछ था, और फिर आमने-सामने बैठकर बात करने की बात ही अलग होती है ! बल्लभगढ़ से निकलने के बाद रेलवे लाइन के दोनों ओर हरे-भरे खेत भी दिखाई देने शुरू हो जाते है जो आगे मथुरा और उससे आगे भी चलते रहते है !

प्लेटफार्म पुल से दिखाई देती रेलवे लाइन

पुल से दिखाई देता एक नजारा

प्लेटफार्म का एक नजारा

प्लेटफार्म पर खड़ी महकौशल एक्स्प्रेस

बारिश का मौसम होने के कारण चारों तरफ बढ़िया हरियाली थी, ट्रेन की खिड़की से दूर तक दिखाई देते लहराते खेत आँखों को ताजगी दे रहे थे, हमारी सीट खिड़की के पास वाली थी इसलिए बातचीत के दौरान हम खिड़की से बाहर के नज़ारों का आनंद भी लेते रहे ! इस बीच ट्रेन पलवल पहुंची, यहाँ कुछ सवारियाँ ट्रेन से उतरी तो कुछ नई सवारियाँ ट्रेन में सवार भी हुई ! पौने चार बजे ट्रेन कोसी पहुँची, और अगले आधे घंटे बाद हम मथुरा में थे, ट्रेन यहाँ दस मिनट रुकी, यहाँ काफी यात्री ट्रेन में चढ़े, नतीजन, जो सीटें अभी तक खाली थी वो सब भर गई ! मथुरा से कुछ दूर चलते ही बाहर बारिश शुरू हो गई, बारिश भी हल्की-फुल्की नहीं, मूसलाधार थी, ट्रेन की खिड़की से अंदर आती बारिश की फुहारें मन को तरोताजा कर रही थी ! लगभग 35 मिनट बाद ट्रेन राजा की मंडी पहुँचकर खड़ी हो गई, यहाँ रेलवे लाइन में इतना घुमाव है कि हमारी खिड़की से पूरी ट्रेन दिखाई दे रही थी, शानदार नजारा था ! स्टेशन पर एकदम सन्नाटा था, गिनती के कुछ पुलिसकर्मी प्लेटफार्म पर बनी सीटों पर बैठकर बीड़ी फूँक रहे थे, कुछ देर बाद ट्रेन यहाँ से चली तो अगले दस मिनट में आगरा छावनी पहुँच गई ! यहाँ ट्रेन के रुकते ही हमने प्लेटफार्म पर उतरकर अपने लिए खान-पान का कुछ सामान लिया और ट्रेन में जाकर बैठ गए ! हम खान-पान में इतने व्यस्त थे कि धौलपुर कब निकला, पता ही नहीं चला, लेकिन जब ट्रेन चम्बल नदी से गुजरी तब हमारा ध्यान बाहर की ओर गया ! पुल से गुजरते हुए जो नज़ारे दिखाई दे रहे थे वो लाजवाब थे, इस दृश्य को हमने अपने कैमरे में भी कैद किया ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि चम्बल नदी को मगरमच्छों के लिए जाना जाता है, पिछली बार जब मैं ग्वालियर गया था तब सड़क मार्ग से इस नदी को पार किया था आज रेलवे पुल से भी नदी के दर्शन हो गए !

कोसी रेलवे स्टेशन का एक नजारा

इस यात्रा का साथी देवेन्द्र

मथुरा रेलवे स्टेशन पहुँचने वाले है

मथुरा रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

मथुरा रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

मथुरा-आगरा के बीच कहीं - बाहर बारिश हो रही है

राजा की मंडी रेलवे स्टेशन

रेलमार्ग पर इतना घुमाव है कि पूरी ट्रेन दिखाई दे रही है

आगरा रेलवे स्टेशन

आगरा रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

मुरैना रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

मुरैना पहुंचे तो 7 बजने में 5 मिनट बाकि थे, ट्रेन जब यहाँ से चली तो अंधेरा होने लगा था, पेंट्री के कर्मचारी भी ट्रेन में खान-पान का सामान लिए लगातार चक्कर लगा रहे थे ! देवेन्द्र अपने साथ पराठे लेकर आया था, जब तक ये पराठे निबटाए, हमारी ट्रेन ग्वालियर पहुँच चुकी थी, पौने आठ बज रहे थे ! ग्वालियर में प्लेटफार्म पर उतरकर मैं एक खान-पान की दुकान पर पहुँचा और एक वैज बिरयानी खरीद लाया, जो एकदम बेस्वाद निकली, स्टेशन के खाने से अच्छे स्वाद की वैसे तो ज्यादा उम्मीद भी नहीं रहती, लेकिन ये उस उम्मीद से भी बेकार थी ! सवा आठ बजे डबरा पहुंचे, और 9 बजे दतिया, ट्रेन रुकने पर प्लेटफार्म पर उतरकर स्टेशन की फोटो खींचना मुझे पसंद है और आज भी जहां मौका मिला, मैं फोटो खींचता रहा ! झांसी पहुंचे तो साढ़े नौ बजने वाले थे, यहाँ भी प्लेटफार्म पर उतरकर मैं एक चक्कर लगा आया, ट्रेन यहाँ से चली तो आगे भी कई स्टेशन पर रुकी, लेकिन हम नीचे नहीं उतरे ! इस बीच कब नींद आई, पता ही नहीं चला, सुबह पौने 5 बजे अलार्म बजा तो नींद खुली, मोबाईल पर देखा तो हमारी ट्रेन सतना पहुँचने वाली थी, सतना से मैहर ज्यादा दूर नहीं है इसलिए हमने धीरे-2 अपना सामान समेटना शुरू कर दिया ! सवा पाँच बजे हमारी ट्रेन सतना पहुँची, फिर अपने निर्धारित समय से आधा घंटा देरी से 6 बजे मैहर पहुँची ! ट्रेन से उतरे तो उजाला हो चुका था, यहाँ आकर ट्रेन काफी खाली हो गई, मतलब इस ट्रेन के अधिकतर यात्री मैहर देवी के दर्शन करने ही आते है ! प्लेटफ़ॉर्म से निकलकर पैदल पुल से होते हुए हम स्टेशन से बाहर की ओर चल दिए, स्टेशन के निकास द्वार के थोड़ा पहले टिकट चेकर मिल गए ! 

मुरैना रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

ग्वालियर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

खिड़की से दिखाई देता डबरा रेलवे स्टेशन

गाड़ी दतिया पहुँच चुकी है

झांसी रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

झांसी रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

मैहर रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते हुए लिया एक चित्र

मैहर में रेलवे पुल से दिखाई देती रेलवे लाइन

कुछ बेटिकट यात्री भी धरे गए थे, पता नहीं कैसे ये टिकट चेकर बेटिकट यात्रियों को इतनी भीड़ में भी पहचान लेते है ! हम इनके बगल से निकले लेकिन इन्होंने हमारा टिकट नहीं देखा, लेकिन जिस दिन हमारे पास टिकट नहीं होगी उस दिन पक्का हम इनके निशाने पर होंगे ! खैर, स्टेशन से बाहर निकलते ही ऑटो वाले एक कतार में खड़े थे जो यात्रियों को देखते ही मक्खियों की तरह घेर लेते है ! हमारे पीछे भी कई ऑटो वाले लग गए, किसी तरह इनसे पीछा छुड़ाया, और स्टेशन के आस-पास की कुछ फोटो खींचने के बाद स्टेशन के बाहर एक चाय की दुकान पर जाकर रुके ! स्टेशन के बाहर इक्का-दुक्का होटल भी दिखाई दिए जहां शायद रात्रि विश्राम की व्यवस्था हो जाती है ! हमारे पास कुछ फल बचे थे, कुछ हमने खुद खाए और कुछ अपने पास खड़ी एक गाय को खिला दिए ! स्टेशन पूरा खाली हो चुका था, ट्रेन से उतरे सभी यात्री अपने-2 गंतव्य की ओर प्रस्थान कर चुके थे ! ऑटो वाले भी स्टेशन के निकास द्वार से वापिस आकर जगह-2 झुंड बनाकर खड़े हो गए ! दुकानदार ने चाय की पतीली आंच पर चढ़ा दी थी, हमने भी अपने लिए चाय बनाने का आदेश दे दिया और अपनी आगे की यात्रा पर चर्चा करने लगे ! कुछ देर में चाय बनकर तैयार हो गई, कांच के गिलास में चाय की चुस्किया लेते हुए हम बतियाने लगे ! चलिए, फिलहाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ अगले लेख में आपको माँ मैहर देवी के दर्शन करवाऊँगा !

मैहर रेलवे स्टेशन के अंदर लिया एक चित्र

मैहर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

स्टेशन के बाहर लिया एक चित्र

क्यों जाएँ (Why to go)अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप माँ सती के शक्तिपीठ का दर्शन करना चाहते है तो निश्चित तौर पर आपको मैहर जाना चाहिए ! इस स्थान पर माँ सती का हार गिरा था, त्रिकुट पर्वत पर स्थित ये मंदिर मैहर का प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है !

कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन यहाँ जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का महीना सबसे उपयुक्त है !

कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से मैहर की दूरी लगभग 803 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से 15-16 घंटे में पूरा कर सकते है ! वैसे तो आप यहाँ बस या निजी वाहन से भी आ सकते है लेकिन दिल्ली से यहाँ आने के लिए सबसे बढ़िया विकल्प रेल मार्ग है ! आप अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी विकल्प चुन सकते है !

कहाँ रुके (Where to stay): मैहर में रुकने के लिए बहुत ज्यादा तो विकल्प नहीं है, अधिकतर लोग किसी धर्मशाला या सार्वजनिक शौचालय में नहा-धोकर तैयार होने के बाद मंदिर में दर्शन के लिए चले जाते है ! यहाँ कुछ गिनती की धर्मशालाएं है, अकेले यात्रा के दौरान या अगर कम बजट में रुकना हो तो आप इन धर्मशालाओं में रुक सकते है !

क्या देखें (Places to see): मैहर में इस मंदिर के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है जिसमें आल्हा सरोवर और कुछ स्थानीय मंदिर शामिल है !

Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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