रविवार, 29 अगस्त 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप मेरे साथ माँ मैहर देवी के दर्शन कर चुके है अब आगे, मंदिर से नीचे आकर हमने हल्का-फुल्का जलपान किया और कुछ स्थानीय लोगों से रास्ता पूछकर आल्हा सरोवर देखने चल दिए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि यहाँ मैहर देवी मंदिर के आस-पास कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है जिसमें आल्हा सरोवर प्रमुख है ! इस सरोवर तक जाने के लिए त्रिकुट पर्वत के बगल से जा रहे पक्के मार्ग से होकर जाना होता है, इस मार्ग पर कुछ दूर चलकर मुख्य सड़क से हटकर एक कच्चा मार्ग घने जंगल से होकर सरोवर की ओर चला जाता है ! मंदिर तक जाने के लिए प्राइवेट गाड़ी वाले इसी मार्ग से होकर निकलते है, हालांकि, सरोवर तक जाने वाले मार्ग की जानकारी इस सड़क पर कहीं भी दर्ज नहीं है ! वैसे आल्हा सरोवर जाने के लिए एक पक्का मार्ग भी है जहां गाड़ी से जाया जा सकता है, गाड़ी जहां तक जाती है वहाँ से सरोवर ज्यादा दूर नहीं है ! हम दोनों पैदल ही सरोवर की ओर जाने वाले कच्चे मार्ग की तलाश में निकल पड़े, रास्ते में मिलने वाले राहगीरों से हम सरोवर जाने के मार्ग के बाबत जानकारी लेते रहे और आगे बढ़ते रहे, जैसे-2 हम आगे बढ़ते जा रहे थे मार्ग चढ़ाई भरा होता जा रहा था ! काफी दूर चलने के बाद भी सरोवर जाने का मार्ग हमें दिखाई नहीं दिया, इस बीच हमें मार्ग पर तेज रफ्तार से दौड़ती इक्का-दुक्का गाड़ियां दिखाई देती रही ! ये श्रद्धालुओं को लेकर मंदिर के पिछले भाग तक ले जाती है, जहां कुछ सीढ़ियों से होते हुए ये श्रद्धालु मंदिर के मुख्य भवन तक पहुंचते है !
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मंदिर जाने का पक्का मार्ग |
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सीढ़ियों वाले मार्ग का प्रवेश द्वार |
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आल्हा सरोवर की तलाश में इसी मार्ग से गए थे |
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मैहर देवी मंदिर जाने के लिए रोपवे |
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मंदिर जाने का मोटर मार्ग |
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रास्ता बिल्कुल सुनसान है |
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मंदिर जाने का मोटर मार्ग |
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सड़क से दिखाई देती एक पहाड़ी |
इस मार्ग पर चलते हुए हमें सड़क के दोनों ओर खूब हरियाली दिखी, इन पेड़ों के कारण सड़क पर धूप तो नहीं लग रही थी लेकिन उमस ने हालत खराब कर रखी थी ! थोड़ी देर के अंतराल पर बीच-2 में कुछ वाहन सड़क पर दौड़ते नजर आते, लेकिन सभी गाड़ियों की रफ्तार तेज थी ! नीचे से आने वाली गाड़ियों की रफ्तार तेज थी ताकि चढ़ाई भरे मार्ग पर आसानी से चल सके और ढलान की वजह से नीचे उतरने वाली गाड़ियों की रफ्तार वैसे ही तेज थी ! ऐसे ही चलते हुए कुछ देर बाद हमें मंदिर से वापिस आते कुछ श्रद्धालु दिखाई दिए, उनसे बातचीत की तो पता चला कि वो मंदिर में दर्शन करके वापिस आ रहे है, मंदिर जाने की सीढ़ियाँ यहाँ से 300-400 मीटर से ज्यादा दूर नहीं थी ! इन लोगों से आल्हा सरोवर के बाबत पूछा तो इन्हें भी कुछ ज्यादा जानकारी तो नहीं थी लेकिन उन्होंने कहा कि इस मार्ग पर आगे तो सरोवर की ओर जाने का मार्ग नहीं है ! फिर उन्होनें ये भी कहा कि अगर सरोवर है तो पहाड़ की चोटी पर तो नहीं होगा, निश्चित तौर पर पहाड़ी की तलहटी में ही होगा, इससे ये तो पक्का हो गया कि आल्हा सरोवर जाने का मार्ग सड़क किनारे इन घने जंगलों के बीच से कहीं निकल रहा होगा ! वैसे भी इस मार्ग पर आते हुए शुरुआत में एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया था कि लगभग आधा किलोमीटर चलने के बाद सड़क से दाईं ओर एक कच्चा मार्ग जंगल से होकर आल्हा सरोवर को जाता है, जो हमें नहीं मिला था और हम चलते हुए यहाँ तक पहुँच गए थे !
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मंदिर जाने का मोटर मार्ग |
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सड़क के दोनों ओर बढ़िया हरियाली थी |
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आखिर इस सुनसान मार्ग पर 2 लोग दिख ही गए |
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सड़क किनारे मिट्टी के ढेर का लिया एक चित्र |
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मंदिर की दूरी दर्शाता सड़क किनारे लगा एक पत्थर |
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बीच-2 में पहाड़ियों के ऐसे दृश्य बहुत थे |
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मंदिर जाने का मोटर मार्ग |
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मंदिर जाने का मोटर मार्ग |
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शायद यही मार्ग आल्हा सरोवर जाता था |
उनकी बात में दम तो था कि सरोवर है तो पहाड़ी के नीचे ही होगा, इसलिए इस मार्ग पर थोड़ा दूर चलकर हमने भी वापसी की राह पकड़ी ! वापिस आते हुए भी हम सड़क किनारे ऐसे किसी मार्ग की तलाश करते हुए आए जो आल्हा सरोवर की ओर जाता हो ! एक कच्चा मार्ग तो हमें सड़क किनारे से जंगल में जाता दिखाई दिया लेकिन सरोवर संबंधित कोई जानकारी नहीं थी और ये रास्ता भी सड़क किनारे लगे लोहे के तारों के नीचे से होकर जा रहा था ! मतलब इसे देखकर लग नहीं रहा था कि इस मार्ग पर कोई जाता भी होगा, फिर जानकारी के अभाव में ऐसे घने जंगल में जाना हमें सुरक्षित भी नहीं लगा, इसलिए वापसी में ही अपनी भलाई समझी ! वापिस आने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा, इस बीच हम यही विचार-विमर्श कर रहे थे कि किसी गाड़ी या टेम्पो से आल्हा सरोवर चलते है, पता नहीं दोबारा यहाँ कब आना होगा ! समय दोपहर के साढ़े ग्यारह बज रहे थे जब हम एक बार फिर से मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने पहुंचे ! धूप तेज थी और भूख भी लगी थी, सुबह मंदिर जाते हुए नाश्ता भी नहीं किया था, सोचा था माँ के दर्शन करने के बाद ही कुछ खाएंगे ! आस-पास की दुकानों पर खाने का पता किया तो वहाँ बैठने की जगह नहीं थी, दुकानदार बोला, "थोड़ा इंतजार कर लो" ! हमने सोचा यहाँ खड़े होकर क्या ही इंतजार करना, तब तक कुछ खरीददारी ही कर लेते है ! मंदिर मार्ग के किनारे एक दुकान से हमने घर के लिए प्रसाद और कुछ अन्य सामग्री की खरीददारी की ! यहाँ से निकलते हुए ही पता चला कि मंदिर के बाहर कोई भंडारा भी चल रहा है, लाउड्स्पीकर में भंडारे संबंधित उद्घोषणा भी हो रही थी लेकिन अब तक हमारा ध्यान उस ओर नहीं गया था !
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मंदिर जाने का मोटर मार्ग |
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मार्ग पर एकदम सन्नाटा था |
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मंदिर जाने के पैदल मार्ग के पास लिया एक चित्र |
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मंदिर जाने के मार्ग किनारे सजा बाजार |
भंडारे की जानकारी मिलने के बाद हमने सोचा यहाँ इंतजार करने से अच्छा है भंडारे में ही चला जाए ! मंदिर मार्ग के बगल से जा रहे एक मार्ग पर कुछ दूर चलकर हम भंडारा स्थल के सामने पहुँच गए, यहाँ भी लोगों की काफी भीड़ थी लेकिन यहाँ एक बार में लगभग 100 से अधिक लोगों के खाने की व्यवस्था थी ! भंडारा हाल में अभी काफी लोग भोजन कर रहे थे, बाकि लोग यहाँ बाहर खड़े होकर अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे ! हम यहाँ खड़े होकर भंडारे की व्यवस्था को समझने लगे, अंदर के लोग खा-पीकर फ़ारिक हुए तो हाल का दरवाजा खोल दिया गया ! ये लोग बाहर आ गए और बाहर खड़े सभी लोग हाल में पहुँच गए, हम भी जाकर एक बेंच पर बैठ गए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि यहाँ भंडारे में खान-पान और बैठने की उचित व्यवस्था थी, खाना परोसने के लिए लोग बारी-2 से आते रहते है और पूछ-2 कर भरपेट भोजन कराया जाता है ! धीरे-2 जब हाल में लगी सभी बेंचें भर गई तो हाल का दरवाजा बंद कर दिया गया ताकि भंडारे की व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाया जा सके ! अगर दरवाजा बंद ना करें तो लोग लगातार आते रहेंगे और व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न होगा ! थोड़ी देर में सबके सामने थाली रख दी गई और फिर बारी-2 से इसमें खाद्य सामग्री परोसी जाने लगी ! यहाँ प्रसाद में चावल, पूड़ी, सब्जी और मिठाई सब कुछ था, खाना भी स्वादिष्ट बना था, हमने भरपेट भोजन किया ! आधे घंटे में जब सभी लोग खा-पीकर फ़ारिक हुए तो हाल का दरवाजा खोल दिया गया, एक बार फिर से बाहर जो लोग इंतजार कर रहे थे वो हाल में चले गए और हम सब लोग बाहर आ गए !
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मंदिर से वापिस धर्मशाला जाने का मार्ग |
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मंदिर से वापसी का मार्ग |
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सड़क किनारे लगी स्वामी विवेकानंद की मूर्ति |
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मंदिर से वापसी का मार्ग |
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सड़क किनारे सजी एक खिलौनों की दुकान |
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रास्ते में भी एकदम सन्नाटा पसरा है |
चलिए, अब आपको इस भंडारे से संबंधित कुछ जरूरी जानकारी दे देता हूँ, यहाँ आने वाले लोग अक्सर अपनी मन्नत पूरी होने पर मंदिर में भंडारे का आयोजन करवाते है ! भंडारा समिति, हर भंडारे से पहले उसे आयोजित करवाने वाले श्रद्धालु की जानकारी उद्घोषणा केंद्र से देते रहते है, हमने जिस भंडारे का प्रसाद ग्रहण किया वो राजस्थान के किसी श्रद्धालु द्वारा आयोजित था ! भोजन करने के बाद आराम करने का मन था, गर्मी में ज्यादा घूमने की इच्छा नहीं थी और वैसे भी आज काफी पैदल चल चुके थे इसलिए अच्छी-खासी थकान हो गई थी ! हमने सोचा, धर्मशाला चलकर थोड़ी देर आराम करते है फिर अपना आगे का सफर जारी रखेंगे ! कुछ देर चलने के बाद हम मंदिर से धर्मशाला जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए, धर्मशाला पहुंचे तो ये सुबह की तरह अभी भी एकदम खाली पड़ा था, गिनती के कुछ लोग ही फिलहाल यहाँ थे ! बाहर तेज धूप थी और उमस भी हो रही थी इसलिए कमरे में जाकर पंखा चलाकर आराम करने लगे, थकान होने के कारण मुझे तो थोड़ी देर में नींद भी आ गई ! डेढ़ घंटे बाद नींद खुली तो आगे की यात्रा पर चर्चा होने लगी, और अंत में आल्हा सरोवर देखने का विचार त्यागना पड़ा ! कुछ देर बाद हम अपना सामान लेकर एक बार फिर से मंदिर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए, यहाँ एक ऑटो में सवार होकर हम मैहर के बस अड्डे की ओर चल दिए जो हमारी धर्मशाला से लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर दूर था ! चलिए, फिलहाल इस यात्रा पर यहीं विराम लगाता हूँ, मैहर से खजुराहो की यात्रा का वर्णन मैं अपने अगले लेख में करूंगा !
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मंदिर से वापसी का मार्ग |
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बस धर्मशाला पहुँचने वाले है |
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धर्मशाला के अंदर का एक दृश्य |
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धर्मशाला के अंदर का एक दृश्य |
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धर्मशाला के अंदर का एक दृश्य |
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धर्मशाला के अंदर का एक दृश्य |
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धर्मशाला का मुख्य प्रवेश द्वार |
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धर्मशाला के बाहर का एक दृश्य |
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थोड़ी दूर दिखाई देती मुख्य सड़क |
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मैहर बस अड्डे की ओर जाते हुए |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप माँ सती के शक्तिपीठ का दर्शन करना चाहते है तो निश्चित तौर पर आपको मैहर जाना चाहिए ! इस स्थान पर माँ सती का हार गिरा था, त्रिकुट पर्वत पर स्थित ये मंदिर मैहर का प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन यहाँ जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का महीना सबसे उपयुक्त है !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से मैहर की दूरी लगभग 803 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से 15-16 घंटे में पूरा कर सकते है ! वैसे तो आप यहाँ बस या निजी वाहन से भी आ सकते है लेकिन दिल्ली से यहाँ आने के लिए सबसे बढ़िया विकल्प रेल मार्ग है ! आप अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी विकल्प चुन सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay): मैहर में रुकने के लिए बहुत ज्यादा तो विकल्प नहीं है, अधिकतर लोग किसी धर्मशाला या सार्वजनिक शौचालय में नहा-धोकर तैयार होने के बाद मंदिर में दर्शन के लिए चले जाते है ! यहाँ कुछ गिनती की धर्मशालाएं है, अकेले यात्रा के दौरान या अगर कम बजट में रुकना हो तो आप इन धर्मशालाओं में रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see): मैहर में इस मंदिर के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है जिसमें आल्हा सरोवर और कुछ स्थानीय मंदिर शामिल है !