शुक्रवार, 25 मार्च 2016
शायद ही कोई शख्स होगा जिसने भानगढ़ के बारे में ना सुना हो, आख़िर ये जगह मशहूर ही इतनी है कि लोगों ने इसके बारे में जाने-अंजाने सुन ही रखा होगा ! वैसे अगर आप इस जगह के बारे में नहीं जानते तो आपको बता दूँ कि भारत की सबसे डरावनी जगहों में से एक है राजस्थान के अलवर में स्थित भानगढ़ का किला ! यही कारण है कि यहाँ रोजाना हज़ारों लोग घूमने और किले परिसर में मौजूद मंदिर में पूजा करने के लिए आते है ! तो चलिए इस यात्रा को शुरू से बताता हूँ, भानगढ़ जाने की इच्छा काफ़ी समय से मन में थी, लेकिन अपनी इस इच्छा को पूरा करने के लिए किसी का साथ ढूँढ रहा था ! जब तक किसी का साथ नहीं मिल रहा था इस यात्रा को मैं आगे खिसकाते जा रहा था लेकिन संयोग देखिए कि जो यात्रा पिछले 1 साल से लटकी हुई थी उसपर जाने का विचार मात्र 10 मिनट में बन गया ! इस बार भी ये यात्रा ना हो पाती, लेकिन होली से अगले दिन एकदम से कुछ ऐसा घटित हुआ कि आनन-फानन में इस यात्रा पर निकल पड़े ! हुआ कुछ यूँ कि होली पर 4 छुट्टियों का संयोग बन रहा था, इसलिए हम 3-4 मित्रों का कहीं घूमने जाने का विचार था ! होली आकर चली भी गई लेकिन किसी ने भी यात्रा पर जाने के बाबत बात नहीं की !
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अलवर की सिलिसढ़ झील का एक दृश्य |
मैं और शशांक तो इस यात्रा पर जाने के लिए तैयार थे लेकिन जब बाकी मित्रों से पूछने पर कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो हमने भी इस यात्रा पर जाने का विचार त्याग दिया ! होली से अगले दिन मैं घर पर बैठा किसी काम में व्यस्त था, तभी योगेश का फोन आया कि भाई कहीं घूमने जाने वाले थे, नहीं चल रहे क्या ? मैने कहा यार ना तो तुमने कोई जवाब दिया और हितेश भी फोन नहीं उठा रहा, विश्वदीपक भी असमंजस में ही है ! यही सोचकर मैं और शशांक भी इस यात्रा पर नहीं जा रहे, ये सुनकर योगेश बोला भाई मैं तो तैयार हूँ आप दोनों भी तैयार हो तो आज ही निकल लेते है ! फिर मैने उसी समय शशांक को भी कान्फरेन्स कॉल में लेकर इस यात्रा के बाबत बात की और अगले पाँच मिनट में ही हमारा जाना तय हो गया ! फोन रखने के बाद मैने विश्वदीपक को फोन करके कहा कि तुम हमारे साथ भानगढ़ चल रहे हो और मैं ये पूछ नहीं, बता रहा हूँ ! थोड़ी देर में ही मैं और शशांक गाड़ी लेकर तुम्हारे पास पहुँच रहे है, तब तक तुम साथ चलने की तैयारी कर लो ! तो इस तरह हम 4 मित्र मैं, शशांक, विश्वदीपक और योगेश इस यात्रा पर जाने के लिए तैयार हो गए !
दोपहर साढ़े ग्यारह बजे हमारी यात्रा की शुरुआत हुई जब मैं और शशांक अपने घर से निकलकर विश्वदीपक को लेने के बाद सोहना की ओर चल दिए, जहाँ हमें योगेश मिलने वाला था ! योगेश ने ही इस यात्रा की चिंगारी को हवा दी थी और साथ देने के लिए वो गुड़गाँव से चलकर हमें सोहना मिलने वाला था ! आधे घंटे में हम पलवल से चलकर सोहना बस अड्डे पर पहुँच चुके थे, यहाँ 15-20 मिनट के इंतजार के बाद योगेश भी आ गया ! योगेश के आते ही हम नूंह होते हुए अलवर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, मार्ग की हालत बढ़िया है इसलिए गाड़ी अपने आप रफ़्तार पकड़ लेती है ! पहले इस मार्ग पर काफ़ी बड़े-2 गति अवरोधक हुआ करते थे लेकिन अब इन सभी अवरोधकों को हटा दिया गया है, फिर भी गिनती के कुछ अवरोधक इस मार्ग पर अब भी है ! बीच-2 में रास्ते में पड़ने वाले कस्बों के चौराहों पर हमें एक दो जगह डंपरों का जाम भी मिला, लेकिन ज़्यादा परेशानी नहीं हुई ! नूंह, फ़िरोज़पुर झिरका, नौगाँव, राजगढ़ होते हुए हम अलवर पहुँचे ! नौगाँव हरियाणा-राजस्थान के बॉर्डर पर स्थित है और यहाँ एक टोल गेट भी है !
पहले जितनी भी बार यहाँ आना हुआ हर बार एक तरफ का 25 रुपए शुल्क लगता था इस बार भी 25 रुपए ही था लेकिन बढ़िया रहा कि टोल पर बैठे व्यक्ति ने हमसे पूछ लिया कि अलवर जाओगे? मैने कहा अलवर जाने के लिए अलग शुल्क है क्या? वो बोला, अलवर जाना है तो 30 रुपए की पर्ची कटवा लो, यही पर्ची आगे केसरोली टोल नाके पर भी काम आ जाएगी, वरना तुम्हें फिर से 25 रुपए चुकाने होंगे ! हमने ऐसा ही किया, टोल से आगे बढ़े तो हमें खाली मार्ग मिला, थोड़ी देर चलने के बाद हम एक व्यस्त इलाक़े में पहुँच गए, ये राजगढ़ था ! एक बाज़ार से होते हुए हम अलवर की ओर बढ़ने लगे ! केसरोली में टोल नाका पार करने के बाद एक रेलवे फाटक भी पार किया, थोड़ी दूर और चले तो हम एक चौराहे पर पहुँच गए ! मैं यहाँ पहले भी आ चुका हूँ इसलिए मुझे पता था कि यहाँ से बाएँ जाने वाला मार्ग सरिस्का के लिए जाता है ! बाकि यहाँ से दाएँ जाने वाला मार्ग आगे जाकर तिजारे के किले तक भी जाता है, इस समय हमें सरिस्का होते हुए भानगढ़ जाना था इसलिए हम सरिस्का वाले मार्ग पर हो लिए !
अलवर से सरिस्का जाते हुए रास्ते में सिलिसढ़ झील भी पड़ती है जिसकी दूरी अलवर से 13 किलोमीटर है ! भानगढ़ जाते हुए हमारा पहला पड़ाव ये झील ही थी, मैं तो इस झील पर पहले भी 2 बार आ चुका हूँ लेकिन इस यात्रा के मेरे बाकि साथी इस झील पर पहली बार जा रहे थे ! अलवर-सरिस्का मार्ग पर एक सहायक मार्ग इस झील के लिए जाता है, हम इसी मार्ग पर चल दिए ! दोपहर के 3 बजने वाले थे और भूख भी लगने लगी थी, इसलिए झील से थोड़ी पहले एक ढाबे पर भोजन करने के लिए हमने गाड़ी रोक दी ! खाने का आदेश देकर हम ढाबे के बाहर रखी कुर्सियों पर बैठ गए ! सिलिसढ़ झील इस ढाबे से बहुत ज़्यादा दूर नहीं है, शायद 200 मीटर दूर है ! अगले आधे-पौने घंटे में हम खा-पीकर फारिक हुए तो गाड़ी लेकर झील की ओर बढ़ गए ! झील तक जाने के लिए प्रति व्यक्ति 50 रुपए का टिकट लगता है लेकिन पार्किंग का अलग से कोई शुल्क नहीं देना होता ! प्रत्येक टिकट पर एक पानी की बोतल, एक चाय, या एक कोल्ड ड्रिंक में से कोई भी एक पेय पदार्थ आप ले सकते है ! छुट्टी का दिन होने के कारण यहाँ ठीक-ठाक भीड़ थी, झील परिसर में प्रवेश करने के बाद हम बोटिंग करने के इरादे से सीढ़ियों से होते हुए नीचे झील के किनारे चल दिए !
बोटिंग करने के लिए आपको सीढ़ियों के पास बने एक अस्थाई काउंटर से टिकट लेना होता है ! झील परिसर में ही राजस्थान पर्यटन का एक बार बना हुआ है, जहाँ बैठकर लोग मदिरपान का आनंद लेते है ! बार की छत पर कैंटीन है और बैठने की भी उचित व्यवस्था है जहाँ से आप झील का नज़ारा भी ले सकते है ! यहाँ आने वाले अधिकतर लोग सबसे पहले कैंटीन का ही रुख़ करते है, इन लोगों को देखकर ऐसा लगता है जैसे अगर ये लोग कैंटीन में बाद में जाएँगे तो उनके टिकट पर मिलने वाले पेय पदार्थ की वैधता ख़त्म हो जाएगी ! नौकायान के टिकट काउंटर पर जाकर हमें पता चला कि नौकायान के लिए हमें नौवाँ नंबर मिला है, अभी दूसरे नंबर वाला ग्रुप नौकायान के लिए गया हुआ था ! पूछने पर पता चला कम से कम घंटा-डेढ़ घंटा इंतजार करना पड़ेगा, इतना समय हमारे पास नहीं था, आख़िर हमें आज ही भानगढ़ भी पहुँचना था ! इसलिए नौकायान के टिकट काउंटर से हटकर हम सब कैंटीन के पास वाली छत पर जाकर बैठ गए और झील के नज़ारों का आनंद लेने लगे ! थोड़ी देर बाद हम सीढ़ियों से होते हुए झील के किनारे खड़ी नावों को देखने चल दिए !
यहाँ झील के पास 1 घंटे खूब मस्ती की, अभी पाँचवा ग्रुप चल रहा था मतलब बोटिंग के लिए एक घंटे और इंतजार करना पड़ता ! खैर, साढ़े पाँच बजे हम यहाँ से चल दिए, थोड़ी दूर चलने के बाद हमने सरिस्का के जंगल में प्रवेश किया ! यहाँ मुख्य मार्ग जॅंगल के एक हिस्से से होकर निकलता है, इसलिए वन्य जीव सड़क के किनारे जॅंगल में घूमते-फिरते दिख जाते है ! बारहसिंगा तो मुझे लगभग यहाँ हर बार ही मिला है, ऐसा लगता है लोगों को देखते ही ये जीव फोटो खिंचवाने सड़क पर चले आते है ! यहाँ ज़्यादा समय ना गँवाते हुए हमने अपना आगे का सफ़र जारी रखा, हमारा विचार अंधेरा होने तक भानगढ़ पहुँचने का था ! सरिस्का पार करते ही जाने मन में क्या विचार आया कि मैने अपने एक फ़ेसबुक मित्र अवतार सिंह पाहवा जी को फोन करके भानगढ़ में रुकने संबंधित जानकारी ली !
पाहवा जी हाल-फिलहाल ही सरिस्का घूम कर आए थे, उनसे मिली जानकारी के मुताबिक भानगढ़ में रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है ! उन्होनें हमें सुझाव दिया कि आज रात हम सरिस्का या अलवर में ही कहीं रुक जाए और सुबह जल्दी उठकर भानगढ़ के लिए प्रस्थान करें ! वैसे उनका जवाब सुनकर थोड़ी निराशा हुई लेकिन इतनी आगे आने के बाद हमारा वापसी जाने का मन नहीं था !
हमारा विचार तो आज रात भानगढ़ के किले में ही रुकने का था, इतनी चर्चित जगह है, एक रात रुकना तो बनता ही है ! लेकिन फिर भी एक विकल्प के तौर पर सभी लोग भानगढ़ में रुकने के लिए एक जगह तलाश रहे थे ! बाकी साथियों ने भी अपने सूत्रों से भानगढ़ में रुकने संबंधित जानकारी ली, लेकिन सबको निराशा ही हाथ लगी ! इसी बीच विश्वदीपक ने इंटरनेट पर जानकारी ढूंढी तो उसे भानगढ़ में रुकने के लिए 2 जगहें दिखाई दी !
इनमें से एक जगह तो लाल बाग पैलेस था, जो भानगढ़ से मात्र 8 किलोमीटर दूर था, जबकि दूसरी जगह एक पाँच सितारा गेस्ट हाउस था ! ये हमारे बजट से बाहर था इसलिए लाल बाग पैलेस को विकल्प के तौर पर निश्चित किया, फोन करके होटल के मालिक से पता भी कर लिया कि रात को रुकने की व्यवस्था है या नहीं ! अब तक हम सरिस्का पार कर चुके थे, सरिस्का से कुछ किलोमीटर चलने के बाद मुख्य मार्ग दो भागों में बँट जाता है ! सीधा जाने वाला मार्ग शाहपुरा होते हुए जयपुर निकल जाता है, जबकि बाएँ जाने वाला मार्ग भानगढ़ जाता है, हम इसी मार्ग पर चल रहे थे !
अलवर से एक अन्य मार्ग भी भानगढ़ के लिए जाता है, अलवर से भानगढ़ जाने वाले दोनों ही मार्ग आगे जाकर आपस में मिल जाते है, या यूँ कह लीजिए कि ये मार्ग गोला बनाते हुए सरिस्का वन्य जीव उद्यान के चारों ओर घूमते है !
सरिस्का से निकले तो छह बज चुके थे, अभी अंधेरा नहीं हुआ था, अंजान मार्ग होने के कारण हमारी कोशिश थी कि अंधेरा होने से पहले ही अधिक से अधिक दूरी तय कर ली जाए, ताकि रात में रास्ता भटकने की संभावना ना रहे ! लेकिन सरिस्का से आगे बढ़ने पर भानगढ़ जाने वाले मार्ग की हालत ठीक नहीं है इसलिए गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ती ! पूरे रास्ते 30-35 की रफ़्तार से गाड़ी चलती रही, और सड़क पर मौजूद गढ्ढे आपके सब्र का भी पूरा इम्तिहान लेते है ! कई गाँवों को पार करते हुए हम भानगढ़ की ओर बढ़े जा रहे थे, इस मार्ग पर चलते हुए हमें 1 घंटे से भी अधिक समय हो गया था लेकिन रास्ते में पड़ने वाले दूरी-दर्शाते बोर्ड को देख पर हमें अंदाज़ा हो गया था कि अभी हम ज़्यादा दूर नहीं आए है ! अब तक अंधेरा भी हो गया था, और रास्ते में सन्नाटा पसारने लगा था !
हम अकेले ही इस मार्ग पर बढ़े जा रहे थे, रास्ते में इक्का-दुक्का गाड़ियाँ सामने से आ जाती तो एहसास होता कि हम अकेले नहीं है ! इसके अलावा मार्ग पर जब कोई गाँव या कस्बा आता तो हल्का-2 प्रकाश भी दिखाई दे देता, वरना तो इस गुप्प अंधेरे में हमारी गाड़ी की रोशनी ही थोड़ा-बहुत उजाला कर रही थी !
रास्ते में एक-दो जगह रुककर हमने लोगों से भानगढ़ जाने वाले रास्ते की जानकारी भी ली, अधिकतर लोगों ये यही सुझाव दिया कि रात में कहाँ भानगढ़ जा रहे हो, सवेरे चले जाना ! रात में वहाँ जाना ठीक नहीं है और भी जाने क्या-2 कहते ! लेकिन हम रास्ते से जुड़ी जानकारी के अलावा बाकि सभी बातों को अनसुना करते हुए आगे बढ़ जाते ! ये मार्ग इतना सुनसान है कि रात को अकेले तो इस मार्ग पर जाने की हिम्मत शायद ही कोई करे ! जॅंगल के बीच में से जाते हुए इस मार्ग पर किस पल जाने क्या घटित हो जाए, कुछ भी कहना मुश्किल है ! हमें ही मार्ग पर चलते हुए रास्ते में कई बार जंगली जानवर सड़क पार करते हुए दिखे !
ऐसे सुनसान मार्ग पर अगर किसी की गाड़ी खराब हो जाए, या किसी अन्य वजह से कोई जंगल में फँस जाए, तो उसकी क्या मनोदशा होगा, ये सोचकर ही रोमांच डर में बदल जाता है !
धीरे-2 अब हमारा सफ़र लंबा होने लगा था, सरिस्का से निकलने के बाद इस मार्ग पर चलते हुए हमें लगभग ढाई घंटे हो चुके थे ! बीच-2 में मैं गाड़ी के शीशे खोल देता तो रात के सन्नाटे में जंगल से आती अजीब-2 सी आवाज़ें सबको रोमांचित कर देती और अगले 15-20 मिनट आराम से कट जाते ! रात के अंधेरे में हम एक तिराहे पर पहुँचे, यहाँ से दाएँ जाने वाला मार्ग भानगढ़ किले की ओर जाता है, जबकि सीधा मार्ग सरिस्का वन्य जीव उद्यान के बाहर ही बाहर कई कस्बों से होते हुए फिर से अलवर चला जाता है ! दोपहर को भोजन करने के बाद से हमें रास्ते में कहीं कुछ खाने का दिखा नहीं और किसी को याद भी नहीं रहा कि खाने-पीने का कुछ सामान अपने साथ रख ले ! तिराहे पर पहुँचकर हम थोड़ा असमंजस में थे, कि सीधे भानगढ़ के किले की ओर प्रस्थान करे या पहले पेट-पूजा कर ले !
सर्व सहमति से तय हुआ कि पहले पेट-पूजा, फिर काम दूजा, इसलिए तिराहे से हम सीधा निकल गए !
तीन किलोमीटर आगे जाने पर सड़क के बाईं ओर होटल लाल बाग का बोर्ड दिखाई दिया, सड़क के किनारे ही ये होटल स्थित है ! होटल पहुँचने से पहले ही एक तीव्र मोड़ पर सड़क पार करते एक जंगली जानवर को देखते हुए मेरा ध्यान कब ड्राइविंग से हट गया पता ही नहीं चला और एक हादसा होते-2 बचा ! दरअसल, सामने से एक बोलेरो आ रही थी, वो तो अच्छा रहा कि उसके ड्राइवर ने समय पर ब्रेक लगा ली और हॉर्न भी बजाया ! इतना समय मुझे हालात को काबू में करने के लिए काफ़ी था, गाड़ी होटल के अंदर बने पार्किंग स्थल में खड़ी करके हम होटल के मालिक से रात्रि भोजन के लिए बात करने चल दिए ! होटल वाले ने हमें कहा कि सूर्यास्त के बाद किले में जाने पर पाबंदी है, और रात में जाना सुरक्षित भी नहीं है ! इसलिए रात को यहीं होटल में रूको और सुबह उठकर चले जाना !
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अलवर की सिलिसढ़ झील का एक दृश्य |
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भानगढ़ यात्रा के मेरे साथी |
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झील में तैरती मछलियाँ (फोटो आभार - विश्वदीपक शर्मा) |
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झील की ओर जाने का प्रवेश द्वार |
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झील में नौकायान करते कुछ लोग |
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शशांक और मैं |
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झील में नौकायान करते कुछ लोग |
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नौकायान की प्रतीक्षा करते लोग |
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एक विशाल पेड़ की फैली हुई जड़ें |
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नौकायान का आनंद लेता शशांक |
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नटनी का बारा के पास एक झील |
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झील के पास स्थित एक मंदिर |
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सरिस्का वन्य जीव उद्यान में एक जीव |
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होटल की जानकारी देता एक बोर्ड |
क्यों जाएँ (Why to go Bhangarh): अगर आपको रहस्यमयी और डरावनी जगहों पर घूमना अच्छा लगता है तो भानगढ़ आपके लिए उपयुक्त स्थान है ! भानगढ़ का किला दुनिया की डरावनी जगहों में शुमार है !
कब जाएँ (Best time to go Bhangarh): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में भानगढ़ जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है ! इस मौसम में हरे-भरे पहाड़ों के बीच भानगढ़ का किले की खूबसूरती देखने लायक होती है ! हर मौसम में यहाँ अलग ही आनंद आता है गर्मी के दिनों में भयंकर गर्मी पड़ती है तो सर्दी भी कड़ाके की रहती है ! क्योंकि ये किला एक डरावनी जगह है इसलिए रात को इस किले में ना ही जाएँ तो सही रहेगा !
कैसे जाएँ (How to reach Bhangarh): दिल्ली से भानगढ़ की दूरी मात्र 250 किलोमीटर है भानगढ़ रेल और सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन दौसा है जिसकी दूरी भानगढ़ के किले से 29 किलोमीटर है ! दौसा से भानगढ़ जाने के लिए आपको जीपें और अन्य सवारियाँ आसानी से मिल जाएँगी ! जबकि आप सीधे दिल्ली से भानगढ़ निजी गाड़ी से भी जा सकते है, इसके लिए आपको दिल्ली-जयपुर राजमार्ग से होते हुए जयपुर से पहले मनोहरपुर नाम की जगह से आपको बाएँ मुड़ना है ! एक मार्ग अलवर-सरिस्का से होकर भी है वैसे तो इस मार्ग की हालत बहुत लेकिन सरिस्का के बाद थोड़ा खराब और सँकरा मार्ग है !
कहाँ रुके (Where to stay in Bhangarh): भानगढ़ में रुकने के लिए बहुत कम विकल्प है, अधिकतर होटल यहाँ से 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है ! शुरुआती होटल तो आपको 1000-1200 में मिल जाएँगे लेकिन अगर किसी पैलेस में रुकना चाहते है तो आपको अच्छी ख़ासी जेब ढीली करनी पड़ेगी !
क्या देखें (Places to see in Bhangarh): वैसे तो भानगढ़ और इसके आस-पास देखने के लिए काफ़ी जगहें है लेकिन भानगढ़ का किला, नारायणी माता का मंदिर, पाराशर धाम, सरिस्का वन्य जीव उद्यान, सरिस्का पैलेस, और सिलिसढ़ झील प्रमुख है !
अगले भाग में जारी...
भानगढ़ यात्रा
- भानगढ़ की एक सड़क यात्रा (A road trip to Bhangarh)
- भानगढ़ की वो यादगार रात (A Scary Night in Bhangarh)
- भानगढ़ का नारायणी माता मंदिर और पाराशर धाम (Parashar Dham and Narayani Temple in Bhangarh)
- भानगढ़ के किले में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Day in Bhangarh Fort)
- भानगढ़ के किले से वापसी (Bhangarh to Delhi – Return Journey)
मैंने यहाँ यात्रा मार्च 2015 में की थी भानगढ़ किले से 5 k.m. पहले एक गॉव आता है गोले का बॉस वहा पर रुकने के कई सरे होम स्टे और गेस्ट रूम है।।।।।।।
ReplyDeleteजानकर अच्छा लगा सचिन भाई कि आप वहाँ गए हो !
Deleteisi post ka intezar tha
ReplyDeleteChaliye, intzaar khatm hua...
Deleteशानदार यात्रा चौहान साहब!
ReplyDeletewww.travelwithrd.com
जी धन्यवाद आर डी साहब !
Deletenext part jaldi post kro...
ReplyDeleteBilkul sir, karte hai jald hi...
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