गुड़गाँव से देहरादून की सड़क यात्रा (Road Trip from Gurgaon to Dehradun)

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2022

इस यात्रा से पहले मुझे उत्तराखंड के चार धामों में से केवल केदारनाथ जाने का अवसर ही मिला था वो भी आज से पाँच साल पहले 2017 में, हालांकि, केदारनाथ से वापसी के समय ही निश्चित कर लिया था कि आगामी वर्षों में अन्य धामों के दर्शन भी करूंगा, लेकिन काम की व्यस्तता और रोजमर्रा की भागम-भाग के बीच ये योजना कहाँ चली गई, कुछ पता नहीं चला ! इसके अलावा जो कसर बची थी वो कोरोना महामारी ने पूरी कर दी और उत्तराखंड के बाकि धामों की यात्रा आसानी से पूरा ना होने वाला सपना सा लगने लगा ! इस साल जब चार धाम के कपाट खुले, तभी मैंने सोच लिया था कि सितंबर-अक्टूबर के महीने में किसी धाम की यात्रा तो करनी ही है ! पहले अपना विचार सितंबर के महीने में ही यमनोत्री जाने का था लेकिन पहाड़ों पर बारिश की मार ने एक बार फिर से इस यात्रा को खटाई में डाल दिया और हमारी यात्रा टल गई ! वैसे इस साल पहाड़ों पर मानसून का मौसम कुछ ज्यादा ही लंबा खिंच गया, अक्टूबर की शुरुआत हुई और दशहरे के दिन उत्तराखंड के चारों धाम के बंद होने का दिन भी निर्धारित हो गया ! इसके बाद मेरे अंदर यात्रा पर जाने का कीड़ा चुलबुलाने लगा और जल्द ही यमनोत्री पर जाने का दिन और साथी भी निर्धारित हो गए ! इन चार धामों पर जाने की योजना तो काफी समय से डायरी के किसी पन्ने में दर्ज थी लेकिन जब यात्रा पर जाना निश्चित हो गया तो मैंने अपनी योजना पर फिर से विचार करते हुए उसमें कुछ जरूरी बदलाव किए ! अपनी केदारनाथ यात्रा की तरह इस बार भी मेरी कोशिश यही थी कि रास्ते में पड़ने वाली जगहों को भी इस यात्रा में शामिल किया जाए !

केजीपी एक्स्प्रेसवे पर लिया एक चित्र

योजना के अनुसार हम पहले दिन दोपहर बाद गुड़गाँव से निकलकर देहरादून जाकर रुकने वाले थे और अगले दिन देहरादून स्थित प्रकाशेश्वर महादेव मंदिर देखते हुए लाखामंडल के प्राचीन शिव मंदिर को देखकर जानकीचट्टी पहुँचने वाले थे जोकि यमनोत्री यात्रा का मुख्य पड़ाव भी है !इस बार भी यात्रा पर अपने साथ वही पुराने साथी जाने वाले थे जो केदारनाथ में हमारे साथ गए थे लेकिन कुछ निजी कारणों से अनिल का इस यात्रा में हमारे साथ जाना स्थगित हो गया, तो एक नया साथी विजय हमारी यात्रा में शामिल हो गया, जिसके साथ देवेन्द्र ने पहले कई यात्राएं की थी ! निर्धारित दिन देवेन्द्र मुझे गुड़गाँव में ही मिलने वाला था जबकि विजय ग्वालियर से ट्रेन का सफर करके हमें फरीदाबाद में मिलने वाला था ! दोपहर 1 बजे देवेन्द्र उत्तम नगर से मेट्रो में सवार होकर गुड़गाँव के लिए निकल पड़ा, इस बीच वो लगातार विजय से भी संपर्क में था, जो आधे घंटे पहले फरीदाबाद पहुँच चुका था ! पहले विजय भी ट्रेन से नई दिल्ली उतरकर देवेन्द्र के साथ गुड़गाँव ही आने वाला था लेकिन मैंने सोचा इतना लंबा सफर करके उसे क्यों परेशान करना जब हमें फरीदाबाद से होकर ही निकलना है तो क्यों ना विजय को फरीदाबाद में ही रुकने का बोल देते है ! ऑफिस से फ़ारिक होकर मैं अपने एक सहकर्मी सतेन्द्र के साथ लगभग पौने तीन बजे निकल पड़ा, आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि देहरादून तक अपने इस सफर में सतेन्द्र भी साथ देने वाला था ! ऑफिस से निकलकर कुछ ही मिनटों में हम गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो के सामने देवेन्द्र का इंतजार कर रहे थे, वो मेट्रो से उतरने ही वाला था, इस बीच मेट्रो के सामने एक पेट्रोल पंप पर हमने अपनी गाड़ी की टंकी भी फुल करवा ली !

गुड़गाँव फरीदाबाद मार्ग

गुड़गाँव फरीदाबाद मार्ग पर लिया एक चित्र

केजीपी एक्स्प्रेसवे का एक दृश्य

कुछ देर बाद देवेन्द्र को साथ लेकर हम फरीदाबाद की ओर बढ़ गए ! इस बीच हमने विजय को फोन करके दिल्ली-मथुरा हाइवे पर बाटा चौक के पास मिलने का कह दिया ! घंटे भर का सफर करके हम फरीदाबाद पहुंचे, यहाँ विजय से औपचारिक मुलाकात के बाद उसे अपने साथ लेकर हम फरीदाबाद स्थित मेरे घर पहुंचे ! यहाँ अपना सामान और पापा को साथ लेकर हमने देहरादून का अपना सफर शुरू कर दिया ! कुछ दूर चलकर हम हम मोहना रोड पहुँच गए, जो हमें कुंडली गाजियाबाद पलवल (केजीपी) एक्स्प्रेसवे पर लेकर जाने वाला था ! रास्ते में दिल्ली-मुंबई एक्स्प्रेसवे का निर्माण कार्य भी प्रगति पर था जो शायद अगले वर्ष तक बनकर तैयार हो जाए ! मोहना रोड पर चलकर चन्दावली, मछगर, दयालपुर, और अटाली को पार करते हुए आधे घंटे बाद हम केजीपी एक्स्प्रेसवे पर थे, शाम के पाँच बजने वाले थे, सूरज कि रोशनी भी मद्धम होने लगी थी ! एक्स्प्रेसवे तक आने का मार्ग तो गांवों से होकर निकलता है इसलिए गाड़ी ज्यादा रफ्तार नहीं पकड़ पाती लेकिन एक्स्प्रेसवे पर चढ़ते ही गाड़ी की रफ्तार अपने आप बढ़ जाती है ! हम तेजी से आगे बढ़ने लगे, बातचीत का दौर जारी था, विजय से मिलकर तो लगा ही नहीं कि ये हमारी पहली मुलाकात थी ! आगे बैठा देवेन्द्र भी रास्ते में पड़ने वाले खूबसूरत नज़ारों को अपने कैमरे में कैद करता रहा, हर गुजरते पल के साथ सूरज भी अस्त होने लगा था !

सूर्यास्त होने वाली है

दिल्ली मेरठ राजमार्ग पर लिया एक चित्र

हम आगे बढ़ ही रहे थे कि अपने साथ एक मजेदार वाक्या हुआ, दरअसल, हुआ कुछ यूं कि हमें केजीपी से उतरकर मेरठ एक्स्प्रेसवे पर चढ़ना था, जो हमें ट्रैफिक से बचाता हुआ मेरठ बाईपास पर पहुँचा देता है ! केजीपी पर लगे दिशा-निर्देश से मुझे अंदाजा तो हो गया था कि मेरठ एक्स्प्रेसवे के लिए रास्ता कहाँ से अलग हो रहा था लेकिन गाड़ी में चल रहा नेविगेशन हमें थोड़ा आगे जाकर इस एक्स्प्रेसवे से उतार रहा था ! मैं भी बातचीत में मगन ज्यादा ध्यान दिए बिना नेविगेशन के हिसाब से आगे बढ़ गया और जब इस एक्स्प्रेसवे से उतरकर नीचे पहुंचे तो मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ ! दरअसल, गाड़ी के नेविगेशन सिस्टम में ऑफलाइन मैप है जिसमें नए बने एक्स्प्रेसवे और हाइवे अपडेट नहीं हुए है, ऐसी ही परेशानी मुझे पूर्वाञ्चल एक्स्प्रेसवे पर भी हुई थी ! खैर, आस-पास मेरठ एक्स्प्रेसवे पर जाने का रास्ता भी कहीं दिखाई नहीं दे रहा था और फिलहाल सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी इसलिए हम इसी मार्ग पर आगे बढ़ गए ! लेकिन जैसे-2 हम आगे बढ़ते रहे, शाम का ट्रैफिक भी सड़क पर बढ़ने लगा, और मेरठ तक का जो सफर हम आधे घंटे में तय कर सकते थे उसे पूरा करने में हमें घंटे से भी ऊपर का समय लगा ! मेरठ तक सड़क पर जगह-2 जाम की समस्या बनी रही, लेकिन मेरठ बाईपास पहुँचकर हमने थोड़ी राहत की सांस ली ! इस मार्ग पर कुछ देर चलने के बाद हम मुजफ्फरनगर पहुंचे, यहाँ हम रुड़की-हरिद्वार मार्ग से उतरकर देवबंद जाने वाले मार्ग पर मुड़ गए ! रास्ते में कई टोल प्लाज़ा आए, लेकिन कहीं भी फास्ट टैग काम नहीं कर रहा था, हालांकि, इस मार्ग पर भीड़-भाड़ ज्यादा नहीं थी इसलिए हमें कोई समस्या नहीं हुई !

रास्ते में टोल प्लाजा पर लिया एक दृश्य

रास्ते में लिया एक अन्य चित्र

देहरादून राजमार्ग पर मुड़ने वाले है 

देहरादून में सुरंग निर्माण कार्य

खैर, अब सबको भूख लगने लगी थी इसलिए सड़क किनारे किसी अच्छे होटल या ढाबे की तलाश शुरू कर दी, लेकिन फिलहाल हमें आस-पास कोई भी विकल्प दिखाई नहीं दिया ! छुटमुलपर से आगे बढ़े तो सड़क किनारे कुछ ढाबे दिखाई दिए, ऐसे ही एक ढाबे के सामने जाकर हम रुके, ढाबे का खाना बढ़िया बना था सबने भरपेट खाया, आधे घंटे में यहाँ से खा-पीकर फ़ारिक हुए तो आगे बढ़े, इस बीच देवेन्द्र ने देहरादून में हमारे लिए होटल ढूँढना शुरू कर दिया और एक बढ़िया जगह देखकर बुकिंग कर ली ! सतेन्द्र को देहरादून के बस अड्डे पर छोड़कर हम वापिस अपने होटल की ओर चल दिए जो एक रिहायशी इलाके में था ! इसे ढूँढने में हमें अच्छी-खासी मशक्कत करनी पड़ी, दरअसल, ये ओयो से रेजिस्टर्ड एक घर था जिसे इसकी मालकिन संचालित कर रही थी ! दिक्कत ये थी कि घर के बाहर ना तो ओयो का कोई बोर्ड लगा था और आस-पास पूछताछ करने से भी कोई जानकारी नहीं मिली थी ! जैसे-तैसे करके हम यहाँ पहुंचे और कुछ जरूरी कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद अपना सामान लेकर आराम करने के लिए अपने-2 कमरे में चले गए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ये कमरा हमारी उम्मीद से काफी छोटा था, वैसे, कभी-2 ऑनलाइन होटल बुकिंग में इस तरह की समस्या आ जाती है जहां फोटो तो बहुत अच्छे दिखाई देते है लेकिन वास्तव में होटल उतना अच्छा नहीं होता, हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था !

आप भी कभी अनलाइन होटल बुक कर रहे हो तो इस बात का जरूर ध्यान रखे कि सिर्फ होटल की फोटो देखकर बुकिंग करने से इस तरह की समस्या का सामना करना पड़ सकता है ! खाना तो हम रास्ते में खा ही चुके थे और यहाँ हमें अब सोना ही था इसलिए दिमाग पर ज्यादा जोर ना देते हुए अपने-2 बिस्तर पर लेट गए ! देहरादून में रात को मौसम ठंडा था, लेकिन एक बार जो आँख लगी तो फिर सुबह 5 बजे अलार्म बजने के साथ ही नींद खुली ! देवेन्द्र और विजय दूसरे कमरे में सो रहे थे, फोन करके मैंने देवेन्द्र को भी उठा दिया ताकि सभी लोग समय से तैयार होकर आज का सफर शुरू कर सके ! होटल संचालिका ने रात को ही बता दिया था कि सुबह 6 बजे के बाद ही घर का गेट खुलेगा ! हम सब बारी-2 से नहा-धोकर तैयार हुए और सुबह सवा 6 बजे तक अपना सामान गाड़ी में रख लिया ! हमें आज शाम तक जानकीचट्टी पहुंचना था ताकि कल सुबह यमनोत्री की चढ़ाई कर सके ! चलिए, यात्रा के इस लेख पर फिलहाल यहीं विराम लगाता हूँ, यात्रा के अगले लेख में मैं आपको देहरादून से जानकीचट्टी पहुँचने के सफर का वर्णन करूंगा !

देहरादून में अपने होटल के बाहर

रात्रि में होटल के बाहर लिया एक चित्र

सुबह के समय लिया एक चित्र

सफर के लिए निकलने की तैयारी
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक यात्राएं करना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर आपको उत्तराखंड के चार-धाम की यात्रा पर जरूर जाना चाहिए ! इन धार्मिक स्थलों की यात्रा करके आपको मानसिक शांति और सुख की अनुभूति होगी ! 

कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन चार-धाम यात्रा के दौरान इस मार्ग पर भीड़-भाड़ ज्यादा रहती है, इसलिए सितंबर से नवंबर का महीना यहाँ आने के लिए उपयुक्त है तब चार-धाम यात्रा तो जारी रहती है लेकिन मई-जून के मुकाबले ज्यादा भीड़ नहीं रहती !

कैसे जाएँ (How to reach): हरिद्वार या देहरादून आने के लिए आपको देश के अलग-2 हिस्सों से ट्रेन मिल जाएगी ! यहाँ से आगे का सफर करने के लिए आपको उत्तराखंड परिवहन के अलावा निजी बसें भी मिल जाएगी ! आप इस सफर के लिए टैक्सी भी बुक कर सकते है या निजी वाहन से भी ये यात्रा की जा सकती है, निश्चित तौर पर आपको ये यात्रा जीवन भर याद रहेगी ! 

कहाँ रुके (Where to stay): इस सफर पर आपको यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले हर शहर या कस्बे के आस-पास रुकने के लिए ढेरों विकल्प मिल जाएंगे ! यात्रा सीजन के हिसाब से होटलों का किराया बढ़ता-घटता रहता है, आपको यहाँ 500 रुपए से लेकर 3000 रुपए तक के होटल भी मिल जाएंगे ! आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल का चयन कर सकते है !

क्या देखें (Places to see): चार धाम की यात्रा करते हुए आप रास्ते में की धार्मिक स्थल और छोटे-बड़े मंदिरों के दर्शन कर सकते है ! 

अगले भाग में जारी...

चार धाम यात्रा - यमुनोत्री और गंगोत्री

  1. गुड़गाँव से देहरादून की सड़क यात्रा (Road Trip from Gurgaon to Dehradun)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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