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आज श्रीनगर में हमारी पहली सुबह थी, रुकने के लिए हितेश ने जिस हाउसबोट में हमारे लिए कमरा आरक्षित करवाया था सुख-सुविधाओं और साफ-सफाई के लिहाज से हमें वो अच्छा नहीं लगा ! हालाँकि, हम चाहते तो किसी दूसरे हाउसबोट में भी जा सकते थे पर यहाँ हम अग्रिम भुगतान कर चुके थे और दूसरे होटल में जाने का मतलब था पैसे की बर्बादी ! इस हाउसबोट में हमने दो दिन रुकने के लिए कमरा आरक्षित करवाया था, इसलिए हमारे पास यहाँ रुकने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था ! एक दिन तो हम यहाँ गुज़ार ही चुके थे, फिर आज दिनभर हम बाहर ही गुजारने वाले थे इसलिए बस आज की रात ही इस हाउसबोट में काटनी थी ! अगर मैं ये यात्रा परिवार संग कर रहा होता तो पहली बात तो रुकने के लिए मैं ऐसे हाउसबोट में कमरा आरक्षित करवाता ही नहीं ! अगर ग़लती से करवा भी लेता, तो यहाँ के हालात देख कर निश्चित तौर पर मैं कोई दूसरा हाउसबोट या होटल ढूँढ लेता ! हितेश ने शायद इस हाउसबोट के बारे में ज़्यादा जाँच-पड़ताल नहीं की थी, वैसे देखा जाए तो फ़र्क तो पड़ता ही है अकेले या मित्रों के साथ और परिवार के साथ यात्रा करने में !
आज श्रीनगर में हमारी पहली सुबह थी, रुकने के लिए हितेश ने जिस हाउसबोट में हमारे लिए कमरा आरक्षित करवाया था सुख-सुविधाओं और साफ-सफाई के लिहाज से हमें वो अच्छा नहीं लगा ! हालाँकि, हम चाहते तो किसी दूसरे हाउसबोट में भी जा सकते थे पर यहाँ हम अग्रिम भुगतान कर चुके थे और दूसरे होटल में जाने का मतलब था पैसे की बर्बादी ! इस हाउसबोट में हमने दो दिन रुकने के लिए कमरा आरक्षित करवाया था, इसलिए हमारे पास यहाँ रुकने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था ! एक दिन तो हम यहाँ गुज़ार ही चुके थे, फिर आज दिनभर हम बाहर ही गुजारने वाले थे इसलिए बस आज की रात ही इस हाउसबोट में काटनी थी ! अगर मैं ये यात्रा परिवार संग कर रहा होता तो पहली बात तो रुकने के लिए मैं ऐसे हाउसबोट में कमरा आरक्षित करवाता ही नहीं ! अगर ग़लती से करवा भी लेता, तो यहाँ के हालात देख कर निश्चित तौर पर मैं कोई दूसरा हाउसबोट या होटल ढूँढ लेता ! हितेश ने शायद इस हाउसबोट के बारे में ज़्यादा जाँच-पड़ताल नहीं की थी, वैसे देखा जाए तो फ़र्क तो पड़ता ही है अकेले या मित्रों के साथ और परिवार के साथ यात्रा करने में !
हाउसबोट से दिखाई देता सुबह का एक दृश्य (A view from Houseboat, Dal Lake, Srinagar) |
अपनी आदत के विपरीत इस बार हम दोनों सुबह देरी से सोकर उठे, फिर बारी-2 से नहा-धोकर तैयार होने में भी हमें काफ़ी समय लग गया ! इस देरी का मुख्य कारण था किसी योजना का ना होना, अक्सर मैं योजनाबद्ध तरीके से घूमता हूँ पर इस बार बिना योजना के ही घूम रहा था और ये प्रयास असफल रहा ! सुबह 9 बजे तक तैयार होकर हम दोनों हाउसबोट के बाहर आकर खड़े हो गए ! यहाँ से घाट की ओर मुख्य सड़क पर जाने के लिए हमारे हाउसबोट की नाव तैयार खड़ी थी ! हाउसबोट की देख-रेख के लिए एक कश्मीरी युवक बिलाल था जो यहाँ ठहरने वाले यात्रियों की ज़रूरत का सामान और नाव चलाने का काम देख रहा था ! अपने कमरे से बाहर निकलते हुए हमने देखा कि हमारे अलावा कुछ अन्य परिवार भी इस हाउसबोट में रुके हुए थे, वैसे इन परिवारों को देख कर लग रहा था कि ये लोग काफ़ी समय से यहाँ रह रहे थे ! रहन-सहन से ये लोग पर्यटक तो नहीं लग रहे थे, हो सकता है ये परिवार यहाँ स्थाई रूप से रह रहे हो !
हमने थोड़ी देर वहाँ नाव के पास खड़े रहकर प्रतीक्षा करने के बाद बिलाल को आवाज़ लगाई, जब तक बिलाल आया तब तक वहाँ खड़ी नाव में हम दोनों के अलावा कुछ अन्य लोग भी सवार हो चुके थे जो शायद हमारे हाउसबोट में ही रुके हुए थे ! इतने में हाउसबोट का मालिक भी वहाँ आ गया और उसने सभी लोगों को एक दूसरी बड़ी नाव में बैठने को कहा ! जब सब लोग इस बड़ी नाव में बैठ गए तो नाव को लेकर बिलाल घाट की ओर चल दिया ! जिस दौरान हम हाउसबोट पर खड़े होकर बिलाल की प्रतीक्षा कर रहे थे, हमें वहाँ कुछ फेरी वाले भी मिले जो नाव में ही सवार होकर केसर और शिलाजीत बेच रहे थे ! यहाँ डल झील में इस तरह से दुकान लगाने वाले आपको बहुत से दुकानदार मिल जाएँगे ! नाव में बैठने के बाद जब हमने इसमें सवार अन्य लोगों से बात-चीत शुरू की तो पता चला कि उनमें से एक परिवार दिल्ली से भी था !
परिवार ज़्यादा बड़ा नहीं था, बस दोनों मियाँ-बीवी ही थे, जो यहाँ छुट्टियाँ बिताने आए थे ! उनका नाम था फ़तेहचन्द और वो सज्जन दिल्ली महानगर टेलिफोन विभाग में कार्यरत थे ! बातों-2 में ही उन्होनें हमसे पूछ लिया कि आप दोनों आज कहाँ घूमने जा रहे हो ! जवाब में मैं बोला गुलमर्ग और हितेश बोला सोनमर्ग, ये सुनकर वो दोनों मियाँ-बीवी हैरान निगाहों से हमें देखने लगे ! शायद सोच रहे होंगे कि या तो हम दोनों पागल है या फिर उनसे मज़ाक कर रहे है ! पर वास्तव में कुछ और ही था, बिना किसी योजना के घूमने पर ऐसा ही होता है, हम दोनों को जो नाम याद थे हमने बोल दिया ! हम अपने उत्तर के लिए कुछ सफाई देते उस से पहले ही वे बोल पड़े, क्या बात है दोनों लोग अलग-2 जगह जाओगे क्या ?
फिर हमने उन्हें समझाया कि ऐसी कोई बात नहीं है, दरअसल, हम यहाँ बिना किसी योजना के घूम रहे है, इसलिए आश्वस्त नहीं है कि आज कहाँ घूमने जाया जाए ! घाट के पास मुख्य सड़क पर जाकर खड़े हो जाएँगे, फिर जहाँ की बस या सूमो पहले मिल जाएगी, हम वहीं चले जाएँगे ! ये सुनकर नाव में सवार अन्य लोग भी मुस्कुराने लगे, फिर इस दंपति ने हमसे कहा कि हम आज पहलगाम घूमने जा रहे है, और हमने वहाँ जाने के लिए एक गाड़ी भी आरक्षित करवा रखी है ! आप दोनों भी आज हमारे साथ ही क्यों नहीं चल देते, साथ चलने से सफ़र भी अच्छा कट जाएगा और दो से भले चार हो जाएँगे ! रही बात कार के किराए की तो वो आधा-2 बाँट लेंगे, हमें उनका ये सुझाव अच्छा लगा और हम दो लोग होने के कारण सुरक्षा की दृष्टि से भी आश्वस्त थे !
हितेश और मैने एक-दूसरे की ओर देखा और नाव से उतरने से पहले ही हम इस सफ़र पर उनके साथ चलने के लिए तैयार हो गए ! नाव से उतरने के बाद उन्होनें टैक्सी वाले को फोन किया तो अगले 2-3 मिनट में ही टैक्सी भी घाट पर ही आ गई ! जब उन्होनें ड्राइवर को बताया कि हम दोनों भी इस सफ़र में उनके साथ इसी टैक्सी में जाने वाले है तो टैक्सी ड्राइवर नौटंकी करने लगा ! बोलने लगा कि इन दोनों का किराया अलग से लूँगा वगेरह-2, उसने बहाने भी बनाए कि बुकिंग आप दो लोगों के नाम से हुई है तो मैं 4 लोग लेकर नहीं जाने वाला ! मैने अपने मन में ही सोचा कि उसी किराए में हमें लेकर जाने से तो मना कर रहा है और अलग से पैसे देने पर 2 लोगों की बुकिंग में कैसे लेकर चला जाएगा ! खैर, मैने इस झमेले में बोलना उचित नहीं समझा और चुप रहकर सबकुछ देखता रहा !
फ़तेह चन्द जी ने ही सारा मामला निबटाया और अंत में वो ड्राइवर हमें लेकर चलने के लिए तैयार हुआ ! मामला निबटने के बाद सभी लोग टैक्सी में सवार हो गए, और ड्राइवर ने टैक्सी पहलगाम के लिए मोड़ दी ! वैसे तो श्रीनगर से पहलगाम की दूरी मात्र 90 किलोमीटर है पर इसे तय करने में ही 3-4 घंटे का समय लग जाता है ! वैसे पहाड़ी रास्तों पर समय तो लगता ही है और फिर श्रीनगर के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से निकलने में ही घंटे भर का समय लग गया ! वैसे, पहलगाम में घूमने के लिए बेताब वैली के अलावा और भी बहुत से प्राकृतिक नज़ारे है, पर ज़्यादातर पर्यटक तो यहाँ बेताब वैली ही देखने जाते है ! श्रीनगर से बाहर निकलते हुए ड्राइवर ने हमें वो इमारत दिखाई जहाँ फिल्म गाइड का एक दृश्य फिल्माया गया था !
इसी मार्ग पर आगे बढ़े तो लेथिपुर में सड़क किनारे दाईं ओर कुछ दूरी पर मेंढ बनाकर खेती करते हुए लोग दिखाई दिए, पूछने पर ड्राइवर ने हमें बताया कि ये लोग यहाँ केसर की खेती करते है ! पूरे भारतवर्ष में सिर्फ़ श्रीनगर में ही केसर की खेती की जाती है और यहाँ का केसर दुनिया भर में मशहूर है ! थोड़ी और आगे बढ़ने पर सड़क के दोनों ओर क्रिकेट बैट की अनगिनत दुकानें है, कहते है यहाँ के क्रिकेट बैट भी देश भर मशहूर है और देश के अलग-2 हिस्सों में भेजे जाते है ! वैसे यहाँ सड़क के दोनों ओर केसर की दुकानें भी है जहाँ से आप अपनी ज़रूरत अनुसार केसर खरीद सकते है ! फिर हमने सड़क किनारे धान की फसल भी देखी, गाड़ी से देखने पर दूर दिखाई देती धान की फसल बहुत सुंदर लग रही थी ! इस मार्ग पर चलते हुए हमें सड़क के दोनों ओर सेना के जवान खड़े हुए मिले, सुरक्षा की दृष्टि से शायद ये ज़रूरी भी है !
पहलगाम जाते हुए रास्ते में एक होटल में जाकर हमारी गाड़ी रुकी, यहाँ हमने तो खाना खाया लेकिन उस दंपति ने कुछ ऊनी कपड़ों की खरीददारी की ! यहाँ मुझे अपनी पिछली कंपनी में कार्यरत एक सहकर्मी भी मिला जो अपने परिवार संग यहाँ घूमने आया था ! खैर, आधे घंटे बाद हमने फिर से अपनी यात्रा शुरू कर दी, जो काफ़ी देर तक चलती रही, इस दौरान टैक्सी वाला हमें रास्ते में पड़ने वाली जगहों के बारे में विस्तार से बताता रहा ! उसने हमें उन जगहों से भी अवगत कराया जहाँ फिल्म हैदर, बजरंगी भाईजान और अन्य बॉलीवुड फिल्मों के दृश्य फिल्माए गए थे ! थोड़ा और आगे बढ़ने पर सड़क के किनारे एक खड्ड दिखाई दिया, खड्ड का पानी हमारी विपरीत दिशा में बह रहा था ! काफ़ी देर तक हम इस खड्ड के किनारे-2 चलते रहे और फिर दोपहर 1 बजे के लगभग हम सब पहलगाम पहुँचे !
ड्राइवर ने यहाँ पहुँचने से पहले ही हमें बता दिया था कि यहाँ पहुँचने के बाद वो हमें कोई भी जानकारी नहीं दे पाएगा क्योंकि यहाँ मौजूद खच्चर वाले और दूसरे व्यावसायी लड़ने झगड़ने पर उतारू हो जाते है ! इसलिए यहाँ आने के बाद सारे निर्णय आपको खुद ही लेने होते है, वैसे हम तो अपने निर्णय खुद ही लेते है ! यहाँ आप अपने टैक्सी वाले या दूसरे पर्यटकों से किरायों संबंधित या अन्य कोई जानकारी भी नहीं ले सकते, वरना ये स्थानीय लोग मार-पिटाई पर उतर आते है ! वैसे देखा जाए तो ये बड़ा बेकार रवैया है, क्योंकि इस तरह से यहाँ आने वाले पर्यटकों के मन में ये लोग अपनी बेकार छवि ही छोड़ रहे है ! एक और बात, आप अपनी टैक्सी यहाँ से आगे नहीं ले जा सकते, आगे बेताब वैली जाने के लिए आपको यहाँ से दूसरी टैक्सी करनी होती है ! निजी गाड़ियाँ आप यहाँ से आगे ले जा सकते है या नहीं, मुझे मालूम नहीं है और मुझे वहाँ पूछने का याद भी नहीं रहा !
पहलगाम पहुँचकर हमारे टैक्सी वाले ने सड़क के बाईं ओर उस खड्ड के किनारे एक खुले मैदान में जाकर गाड़ी खड़ी कर दी और कहा कि यहाँ से बेताब वैली जाने के लिए आपको कोई दूसरी सवारी लेनी होगी ! हम चारों लोग गाड़ी से उतरकर बातें करते हुए मुख्य मार्ग की ओर पैदल ही चल दिए, हमें देखते ही वहाँ मौजूद कुछ टैक्सी वाले दौड़ते हुए आए और हमें घेर लिया ! ये लोग हमें तरह-2 के लुभावने प्रलोभन देने लगे, और पहलगाम के दर्शनीय स्थल दिखाने की बातें करने लगे ! सबकी बातों को अनसुना करते हुए हमने पैदल चलना जारी रखा, थोड़ी देर में हम सड़क पार करके दूसरी ओर के टैक्सी स्टैंड पर पहुँच गए ! यहाँ टैक्सी के अग्रिम आरक्षण के लिए एक दफ़्तर भी था, वो दंपति यहाँ खड़े एक-दो टैक्सी वालों से पहलगाम जाने की बातें करने लगा !
यहाँ से एक मार्ग ऊपर पहाड़ी पर जा रहा था, जहाँ से शायद खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते होंगे ! स्थानीय लोगों ने पहाड़ी के उस शीर्ष बिंदु को व्यू पॉइंट नाम दे रखा था, यहाँ आने वाले लोग खच्चरों पर सवार होकर व्यू पॉइंट देखने जा रहे थे ! बेताब वैली जाने का हमारा मन तो था पर हम इस व्यू पॉइंट को भी छोड़ना नहीं चाहते थे ! इस समय हम असमंजस में थे कि पहले कहाँ जाया जाए, अंत में हम दोनों ने तय किया कि पहले व्यू पॉइंट देख लेते है फिर समय बचा तो बेताब वैली चला जाएगा ! वैसे भी बेताब वैली तो यहाँ आने वाले पर्यटकों में काफ़ी लोकप्रिय है इसलिए हमारे हिसाब से वहाँ भीड़-भाड़ भी ज़्यादा होगी ! इस व्यू पॉइंट पर लोग जा तो रहे थे पर बहुत ज़्यादा नहीं, इसलिए व्यू पॉइंट को पहले देखने पर सहमति बनी !
पहाड़ों पर चढ़ाई करने के भी अपना अलग ही मज़ा है, वैसे तो इस व्यू पॉइंट पर जाने के लिए यहाँ बहुत से खच्चर वाले थे पर हमारा मन तो पैदल जाने का ही था ! सोचा इसी बहाने पहाड़ पर चढ़ाई करने का मौका भी मिल जाएगा और वैसे भी खच्चर पर बैठकर पहाड़ घूमना मुझे तो अच्छा नहीं लगता ! फिर उस दंपति से शाम को वापसी में यहीं टैक्सी स्टैंड पर मिलने का कहकर हम दोनों इस व्यू पॉइंट की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! थोड़ा आगे बढ़ते ही रास्ते में जगह-2 खड़े खच्चर वाले हमें व्यू पॉइंट दिखाने की बातें कहने लगे, उनकी बातों को अनसुना करते हुए हम दोनों ने पैदल चलना जारी रखा ! थोड़ी देर बाद हम दोनों ठीक-ठाक ऊँचाई पर पहुँच गए, ऊबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए थोड़ी देर बाद हम एक समतल मैदान में थे !
इस मैदान से देखने पर ऐसा लग रहा था कि मुख्य मार्ग पहाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए था, सभी खच्चर वाले इसी मार्ग से जा रहे थे ! मैदान में थोड़ी देर रुकने के बाद हमने फिर से चलना शुरू कर दिया, इस दौरान मार्ग में मिलने वाले दूसरे पर्यटक हमें देख रहे थे और शायद मन ही मन सोच भी रहे थे कि ये दोनों भले पैदल जा रहे है ! जैसे-2 हम उँचाई पर पहुँचते जा रहे थे, रास्ता भी मुश्किल होता जा रहा था, यहाँ अधिकतर लोग खच्चरों पर सवार होकर व्यू पॉइंट देखने जा रहे थे ! फिर हमें एक अन्य युवक पैदल आता दिखाई दिया, थोड़ी देर बाद वो भी हमारे पास आकर बैठ गया, पूछने पर पता चला कि वो यूपी में कहीं से था ! हम यहाँ थोड़ी देर आराम करने के लिए रुके थे, फिर जाने क्या मन में आया कि हम दोनों मुख्य मार्ग छोड़कर पहाड़ी पर सीधा चढ़ने लगे !
हम अनुमान लगा रहे थे कि ये रास्ता पहाड़ी के चारों ओर होता हुआ व्यू पॉइंट पर जाता होगा, ये भी निश्चित था कि व्यू पॉइंट किसी पहाड़ी की चोटी पर ही होगा ! अक्सर पहाड़ी पर रास्ते घुमावदार ही होते है ताकि चढ़ाई के दौरान दिक्कत ना हो ! किसी तरह अगर हम पहाड़ी का चक्कर लगाए बिना सीधे ही इस पर चढ़ जाए तो काफ़ी समय और ऊर्जा बच जाएगी ! सीधा चढ़ाई करने से यात्रा का रोमांच भी बढ़ेगा, पर जैसे ही हम मुख्य मार्ग को छोड़कर पहाड़ी पर सीधे चढ़ने लगे, एक स्थानीय चरवाहे ने हमसे कहा भी कि इस रास्ते से ग़लत जा रहे हो, पहाड़ी के साथ वाले रास्ते से जाओ ! पर अपने पिछले अनुभव के आधार पर उसकी बात को अनसुना करते हुए हमने पहाड़ी पर सीधी चढ़ाई जारी रखी !
हम काफ़ी देर तक पहाड़ी पर चढ़ते रहे, फिर थोड़ी देर बाद नीचे वाला रास्ता दिखाई देना बंद हो गया और ऊपर भी कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था ! पहाड़ी के ऊपर से दिशा का अंदाज़ा भी नहीं लग रहा था, इसलिए पता नहीं चल रहा था कि हमें जाना किधर है ! वैसे, जब हमने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया था तो वहाँ से मुख्य मार्ग पहाड़ी के पीछे जाता दिखाई दे रहा था ! हो सकता है वो रास्ता पहाड़ी के पीछे से होता हुआ आगे जॅंगल में जाता हो, और व्यू पॉइंट इस पहाड़ी पर ना होकर किसी अन्य पहाड़ी पर हो ! इसके अलावा संभावना तो कुछ भी हो सकती थी, पर इस समय हम पहाड़ी पर काफ़ी ऊँचाई पर खड़े थे, यहाँ आते समय तो झाड़ियाँ और दूसरे पेड़-पौधे पकड़ते हुए हम चढ़ गए थे पर यहाँ से आगे जाने का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था !
चढ़ाई के दौरान हितेश काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ गया था, जबकि मैं धीरे-2 और रुकता हुआ आगे जा रहा था, नतीजा ये हुआ कि थोड़ी देर में ही हितेश मुझसे काफ़ी आगे निकल गया ! इस बीच वो मुझे टोकता भी रहा कि बार-2 मत रुक वरना ऊपर नहीं पहुँच पाएँगे ! पर मैं उसकी बातों को अनसुना करता रहा और अपने हिसाब से आगे बढ़ता रहा, फिर मैने उस से पूछा कि आगे रास्ता दिखाई दे रहा है या नहीं ! जवाब आया अभी तो नहीं, अब हमारी परेशानी बढ़ने लगी ! मैने कहा यार रास्ता दिखाई नहीं दे रहा और हम इस खड़ी पहाड़ी पर चढ़ते जा रहे है, कहीं ऐसा ना हो कि रास्ता इस पहाड़ी पर हो ही ना ! हितेश बोला, अरे शुभ-2 बोल भाई, अगर ऐसा हुआ तो हमारी सारी मेहनत बेकार है !
यहाँ खड़े होकर ये निर्णय लिया गया कि अब इस पहाड़ी पर ना चढ़कर इसके बगल से होते हुए पीछे की ओर चलते है ! हो सकता है वहाँ से देखने पर दूर जाता कोई मार्ग हमें दिखाई दे जाए ! हितेश मेरी बात से सहमत था, इसलिए अब पहाड़ी पर और ऊपर ना चढ़कर वो पहाड़ी के बगल से पीछे की ओर जाने लगा ! इस मार्ग पर भी काफ़ी दूर तक जाने पर भी ना तो कोई मार्ग दिखाई दिया और ना ही पहाड़ी का दूसरा छोर ! इस बार हितेश बोला, यार कहीं रास्ते के चक्कर में हम भटक ना जाए, पता चला कि वापिस जाने का रास्ता भी ना मिले, हमारा फोन भी काम नहीं कर रहा इसलिए किसी को मदद के लिए भी नहीं बुला पाएँगे !
फिर आपसी सहमति से निर्णय लिया कि और आगे ना जाकर यहीं इस पहाड़ी से दिखाई दे रहे खूबसूरत नज़ारों का आनंद लेंगे और जब मन करेगा तो नीचे जाकर उस खड्ड में पैर डालकर बैठेंगे ! यहाँ इस खड़ी पहाड़ी पर थोड़ी सी समतल जगह देख कर सिर टिकाकर लेट गए और दूर तक फैली घाटी के नज़ारों का आनंद लेने लगे ! पहाड़ों पर खूब घना जंगल था इसलिए चारों तरफ खूब हरियाली फैली हुई थी, यहाँ से नीचे देखने पर फ़ौजियों के कैंप भी दिखाई दे रहे थे ! लगभग आधे घंटे बाद विचार बना कि अब नीचे चलकर थोड़ी पेट पूजा करेंगे और फिर उस चलकर उस खड्ड किनारे बैठेंगे ! सावधानी से हम दोनों ने पहाड़ी से नीचे उतरना शुरू कर दिया !
वैसे, किसी भी पहाड़ी पर चढ़ना जितना मुश्किल होता है उतरना भी उससे कम मुश्किल नहीं होता ! चढ़ते वक़्त तो हितेश ने बड़ी फुर्ती दिखाई और हमेशा मुझसे आगे ही रहा, लेकिन अब आगे रहने की बारी मेरी थी ! वापसी में मैं तो काफ़ी तेज़ी से संतुलन बनाते हुए नीचे उतरने लगा, लेकिन हितेश को नीचे उतरते हुए बहुत परेशानी हो रही थी, एक-दो जगह तो वो बैठ कर भी उतरा ! उसे राहत देने के लिए बैग भी मैने ले लिया, कैमरा मेरे पास पहले से ही था, लेकिन फिर भी उसकी परेशानी कम नहीं हुई ! सबसे बड़ी परेशानी की वजह थे उसके जूते, जिनकी पकड़ पहाड़ों पर मजबूत नहीं थी, थोड़ी देर तो हितेश ठीक से उतरता रहा ! फिर एकदम से उसका पैर फिसला, लेकिन वो समय रहते सँभल गया वरना इस बार वो मुझसे आगे निकल जाता ! दरअसल, वो हड़बड़ाहट में पैर रख रहा था और इसी वजह से उसका संतुलन बिगड़ गया था !
वैसे, यहाँ से गिरने पर उसे गंभीर चोट लगती, मैने एक बार फिर उसे आराम से उतरने की हिदायत दी ! चढ़ते वक़्त जहाँ हितेश हमेशा मुझसे आगे रहा और मैं आराम करने के लिए बार-2 रुकता रहा, वहीं उतरते समय हितेश मुझसे पीछे ही रहा और मैं रुक-2 कर उसके आने की प्रतीक्षा करता रहा ! दोनों ही स्थिति में आराम तो मैं ही कर रहा था, हितेश मन ही मन मुझे कोस रहा होगा ! खैर, काफ़ी मेहनत के बाद हम दोनों पहाड़ी से नीचे आ गए, फिर टैक्सी स्टैंड को पार करते हुए दोनों मुख्य बाज़ार में पहुँच गए ! यहाँ से खाने के लिए कुछ फल और उबले अंडे लेकर खड्ड की ओर चल दिए ! इसी खड्ड के किनारे वाले खुले मैदान में हमारी गाड़ी खड़ी थी, जहाँ इस समय कुछ स्थानीय लड़के वॉलीबॉल और क्रिकेट खेलने में व्यस्त थे ! मैदान को पार करते हुए हम खड्ड के किनारे पहुँच गए, इस समय यहाँ बहुत ज़्यादा तो नहीं, पर ठीक-ठाक पानी था !
हमारे अलावा और भी कई पर्यटक खड्ड किनारे बैठ कर प्रकृति का आनंद ले रहे थे और फोटो भी खिंचवा रहे थे ! एक बड़े से पत्थर पर बैठकर, जूते निकालने के बाद जैसे ही मैने पानी में अपना पैर डाला तो पता चला कि पानी बरफ की तरह ठंडा था, अगले कुछ ही पलों में इस ठंडक से मेरे पैर सुन्न पड़ गए ! थोड़ी देर बाद हमने देखा कि वो दंपति जिसके साथ हम यहाँ आए थे वो भी हमसे थोड़ी दूरी पर इसी खड्ड के किनारे बैठे थे ! आधा घंटा यहाँ बैठने के बाद हमने वापिस चलने की सोची, इसलिए उस मैदान की ओर चल दिए जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! यहाँ पहुँचकर गाड़ी में सवार हुए और ड्राइवर से वापिस चलने को कहा, थोड़ी देर बाद हम मैदान से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुँच गए ! बातचीत से पता चला कि वो दंपति बेताब वैली गए थे और उनका अनुभव भी काफ़ी अच्छा रहा, वैसे अनुभव तो हमारा भी ज़्यादा बुरा नहीं रहा था वो अलग बात है कि हम रास्ता भटकने की वजह से ज़्यादा आगे नहीं जा पाए थे !
पहलगाम पहुँचकर हमारे टैक्सी वाले ने सड़क के बाईं ओर उस खड्ड के किनारे एक खुले मैदान में जाकर गाड़ी खड़ी कर दी और कहा कि यहाँ से बेताब वैली जाने के लिए आपको कोई दूसरी सवारी लेनी होगी ! हम चारों लोग गाड़ी से उतरकर बातें करते हुए मुख्य मार्ग की ओर पैदल ही चल दिए, हमें देखते ही वहाँ मौजूद कुछ टैक्सी वाले दौड़ते हुए आए और हमें घेर लिया ! ये लोग हमें तरह-2 के लुभावने प्रलोभन देने लगे, और पहलगाम के दर्शनीय स्थल दिखाने की बातें करने लगे ! सबकी बातों को अनसुना करते हुए हमने पैदल चलना जारी रखा, थोड़ी देर में हम सड़क पार करके दूसरी ओर के टैक्सी स्टैंड पर पहुँच गए ! यहाँ टैक्सी के अग्रिम आरक्षण के लिए एक दफ़्तर भी था, वो दंपति यहाँ खड़े एक-दो टैक्सी वालों से पहलगाम जाने की बातें करने लगा !
यहाँ से एक मार्ग ऊपर पहाड़ी पर जा रहा था, जहाँ से शायद खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते होंगे ! स्थानीय लोगों ने पहाड़ी के उस शीर्ष बिंदु को व्यू पॉइंट नाम दे रखा था, यहाँ आने वाले लोग खच्चरों पर सवार होकर व्यू पॉइंट देखने जा रहे थे ! बेताब वैली जाने का हमारा मन तो था पर हम इस व्यू पॉइंट को भी छोड़ना नहीं चाहते थे ! इस समय हम असमंजस में थे कि पहले कहाँ जाया जाए, अंत में हम दोनों ने तय किया कि पहले व्यू पॉइंट देख लेते है फिर समय बचा तो बेताब वैली चला जाएगा ! वैसे भी बेताब वैली तो यहाँ आने वाले पर्यटकों में काफ़ी लोकप्रिय है इसलिए हमारे हिसाब से वहाँ भीड़-भाड़ भी ज़्यादा होगी ! इस व्यू पॉइंट पर लोग जा तो रहे थे पर बहुत ज़्यादा नहीं, इसलिए व्यू पॉइंट को पहले देखने पर सहमति बनी !
पहाड़ों पर चढ़ाई करने के भी अपना अलग ही मज़ा है, वैसे तो इस व्यू पॉइंट पर जाने के लिए यहाँ बहुत से खच्चर वाले थे पर हमारा मन तो पैदल जाने का ही था ! सोचा इसी बहाने पहाड़ पर चढ़ाई करने का मौका भी मिल जाएगा और वैसे भी खच्चर पर बैठकर पहाड़ घूमना मुझे तो अच्छा नहीं लगता ! फिर उस दंपति से शाम को वापसी में यहीं टैक्सी स्टैंड पर मिलने का कहकर हम दोनों इस व्यू पॉइंट की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! थोड़ा आगे बढ़ते ही रास्ते में जगह-2 खड़े खच्चर वाले हमें व्यू पॉइंट दिखाने की बातें कहने लगे, उनकी बातों को अनसुना करते हुए हम दोनों ने पैदल चलना जारी रखा ! थोड़ी देर बाद हम दोनों ठीक-ठाक ऊँचाई पर पहुँच गए, ऊबड़-खाबड़ रास्तों से होते हुए थोड़ी देर बाद हम एक समतल मैदान में थे !
इस मैदान से देखने पर ऐसा लग रहा था कि मुख्य मार्ग पहाड़ी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए था, सभी खच्चर वाले इसी मार्ग से जा रहे थे ! मैदान में थोड़ी देर रुकने के बाद हमने फिर से चलना शुरू कर दिया, इस दौरान मार्ग में मिलने वाले दूसरे पर्यटक हमें देख रहे थे और शायद मन ही मन सोच भी रहे थे कि ये दोनों भले पैदल जा रहे है ! जैसे-2 हम उँचाई पर पहुँचते जा रहे थे, रास्ता भी मुश्किल होता जा रहा था, यहाँ अधिकतर लोग खच्चरों पर सवार होकर व्यू पॉइंट देखने जा रहे थे ! फिर हमें एक अन्य युवक पैदल आता दिखाई दिया, थोड़ी देर बाद वो भी हमारे पास आकर बैठ गया, पूछने पर पता चला कि वो यूपी में कहीं से था ! हम यहाँ थोड़ी देर आराम करने के लिए रुके थे, फिर जाने क्या मन में आया कि हम दोनों मुख्य मार्ग छोड़कर पहाड़ी पर सीधा चढ़ने लगे !
हम अनुमान लगा रहे थे कि ये रास्ता पहाड़ी के चारों ओर होता हुआ व्यू पॉइंट पर जाता होगा, ये भी निश्चित था कि व्यू पॉइंट किसी पहाड़ी की चोटी पर ही होगा ! अक्सर पहाड़ी पर रास्ते घुमावदार ही होते है ताकि चढ़ाई के दौरान दिक्कत ना हो ! किसी तरह अगर हम पहाड़ी का चक्कर लगाए बिना सीधे ही इस पर चढ़ जाए तो काफ़ी समय और ऊर्जा बच जाएगी ! सीधा चढ़ाई करने से यात्रा का रोमांच भी बढ़ेगा, पर जैसे ही हम मुख्य मार्ग को छोड़कर पहाड़ी पर सीधे चढ़ने लगे, एक स्थानीय चरवाहे ने हमसे कहा भी कि इस रास्ते से ग़लत जा रहे हो, पहाड़ी के साथ वाले रास्ते से जाओ ! पर अपने पिछले अनुभव के आधार पर उसकी बात को अनसुना करते हुए हमने पहाड़ी पर सीधी चढ़ाई जारी रखी !
हम काफ़ी देर तक पहाड़ी पर चढ़ते रहे, फिर थोड़ी देर बाद नीचे वाला रास्ता दिखाई देना बंद हो गया और ऊपर भी कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था ! पहाड़ी के ऊपर से दिशा का अंदाज़ा भी नहीं लग रहा था, इसलिए पता नहीं चल रहा था कि हमें जाना किधर है ! वैसे, जब हमने पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया था तो वहाँ से मुख्य मार्ग पहाड़ी के पीछे जाता दिखाई दे रहा था ! हो सकता है वो रास्ता पहाड़ी के पीछे से होता हुआ आगे जॅंगल में जाता हो, और व्यू पॉइंट इस पहाड़ी पर ना होकर किसी अन्य पहाड़ी पर हो ! इसके अलावा संभावना तो कुछ भी हो सकती थी, पर इस समय हम पहाड़ी पर काफ़ी ऊँचाई पर खड़े थे, यहाँ आते समय तो झाड़ियाँ और दूसरे पेड़-पौधे पकड़ते हुए हम चढ़ गए थे पर यहाँ से आगे जाने का कोई मार्ग दिखाई नहीं दे रहा था !
चढ़ाई के दौरान हितेश काफ़ी तेज़ी से आगे बढ़ गया था, जबकि मैं धीरे-2 और रुकता हुआ आगे जा रहा था, नतीजा ये हुआ कि थोड़ी देर में ही हितेश मुझसे काफ़ी आगे निकल गया ! इस बीच वो मुझे टोकता भी रहा कि बार-2 मत रुक वरना ऊपर नहीं पहुँच पाएँगे ! पर मैं उसकी बातों को अनसुना करता रहा और अपने हिसाब से आगे बढ़ता रहा, फिर मैने उस से पूछा कि आगे रास्ता दिखाई दे रहा है या नहीं ! जवाब आया अभी तो नहीं, अब हमारी परेशानी बढ़ने लगी ! मैने कहा यार रास्ता दिखाई नहीं दे रहा और हम इस खड़ी पहाड़ी पर चढ़ते जा रहे है, कहीं ऐसा ना हो कि रास्ता इस पहाड़ी पर हो ही ना ! हितेश बोला, अरे शुभ-2 बोल भाई, अगर ऐसा हुआ तो हमारी सारी मेहनत बेकार है !
यहाँ खड़े होकर ये निर्णय लिया गया कि अब इस पहाड़ी पर ना चढ़कर इसके बगल से होते हुए पीछे की ओर चलते है ! हो सकता है वहाँ से देखने पर दूर जाता कोई मार्ग हमें दिखाई दे जाए ! हितेश मेरी बात से सहमत था, इसलिए अब पहाड़ी पर और ऊपर ना चढ़कर वो पहाड़ी के बगल से पीछे की ओर जाने लगा ! इस मार्ग पर भी काफ़ी दूर तक जाने पर भी ना तो कोई मार्ग दिखाई दिया और ना ही पहाड़ी का दूसरा छोर ! इस बार हितेश बोला, यार कहीं रास्ते के चक्कर में हम भटक ना जाए, पता चला कि वापिस जाने का रास्ता भी ना मिले, हमारा फोन भी काम नहीं कर रहा इसलिए किसी को मदद के लिए भी नहीं बुला पाएँगे !
फिर आपसी सहमति से निर्णय लिया कि और आगे ना जाकर यहीं इस पहाड़ी से दिखाई दे रहे खूबसूरत नज़ारों का आनंद लेंगे और जब मन करेगा तो नीचे जाकर उस खड्ड में पैर डालकर बैठेंगे ! यहाँ इस खड़ी पहाड़ी पर थोड़ी सी समतल जगह देख कर सिर टिकाकर लेट गए और दूर तक फैली घाटी के नज़ारों का आनंद लेने लगे ! पहाड़ों पर खूब घना जंगल था इसलिए चारों तरफ खूब हरियाली फैली हुई थी, यहाँ से नीचे देखने पर फ़ौजियों के कैंप भी दिखाई दे रहे थे ! लगभग आधे घंटे बाद विचार बना कि अब नीचे चलकर थोड़ी पेट पूजा करेंगे और फिर उस चलकर उस खड्ड किनारे बैठेंगे ! सावधानी से हम दोनों ने पहाड़ी से नीचे उतरना शुरू कर दिया !
वैसे, किसी भी पहाड़ी पर चढ़ना जितना मुश्किल होता है उतरना भी उससे कम मुश्किल नहीं होता ! चढ़ते वक़्त तो हितेश ने बड़ी फुर्ती दिखाई और हमेशा मुझसे आगे ही रहा, लेकिन अब आगे रहने की बारी मेरी थी ! वापसी में मैं तो काफ़ी तेज़ी से संतुलन बनाते हुए नीचे उतरने लगा, लेकिन हितेश को नीचे उतरते हुए बहुत परेशानी हो रही थी, एक-दो जगह तो वो बैठ कर भी उतरा ! उसे राहत देने के लिए बैग भी मैने ले लिया, कैमरा मेरे पास पहले से ही था, लेकिन फिर भी उसकी परेशानी कम नहीं हुई ! सबसे बड़ी परेशानी की वजह थे उसके जूते, जिनकी पकड़ पहाड़ों पर मजबूत नहीं थी, थोड़ी देर तो हितेश ठीक से उतरता रहा ! फिर एकदम से उसका पैर फिसला, लेकिन वो समय रहते सँभल गया वरना इस बार वो मुझसे आगे निकल जाता ! दरअसल, वो हड़बड़ाहट में पैर रख रहा था और इसी वजह से उसका संतुलन बिगड़ गया था !
वैसे, यहाँ से गिरने पर उसे गंभीर चोट लगती, मैने एक बार फिर उसे आराम से उतरने की हिदायत दी ! चढ़ते वक़्त जहाँ हितेश हमेशा मुझसे आगे रहा और मैं आराम करने के लिए बार-2 रुकता रहा, वहीं उतरते समय हितेश मुझसे पीछे ही रहा और मैं रुक-2 कर उसके आने की प्रतीक्षा करता रहा ! दोनों ही स्थिति में आराम तो मैं ही कर रहा था, हितेश मन ही मन मुझे कोस रहा होगा ! खैर, काफ़ी मेहनत के बाद हम दोनों पहाड़ी से नीचे आ गए, फिर टैक्सी स्टैंड को पार करते हुए दोनों मुख्य बाज़ार में पहुँच गए ! यहाँ से खाने के लिए कुछ फल और उबले अंडे लेकर खड्ड की ओर चल दिए ! इसी खड्ड के किनारे वाले खुले मैदान में हमारी गाड़ी खड़ी थी, जहाँ इस समय कुछ स्थानीय लड़के वॉलीबॉल और क्रिकेट खेलने में व्यस्त थे ! मैदान को पार करते हुए हम खड्ड के किनारे पहुँच गए, इस समय यहाँ बहुत ज़्यादा तो नहीं, पर ठीक-ठाक पानी था !
हमारे अलावा और भी कई पर्यटक खड्ड किनारे बैठ कर प्रकृति का आनंद ले रहे थे और फोटो भी खिंचवा रहे थे ! एक बड़े से पत्थर पर बैठकर, जूते निकालने के बाद जैसे ही मैने पानी में अपना पैर डाला तो पता चला कि पानी बरफ की तरह ठंडा था, अगले कुछ ही पलों में इस ठंडक से मेरे पैर सुन्न पड़ गए ! थोड़ी देर बाद हमने देखा कि वो दंपति जिसके साथ हम यहाँ आए थे वो भी हमसे थोड़ी दूरी पर इसी खड्ड के किनारे बैठे थे ! आधा घंटा यहाँ बैठने के बाद हमने वापिस चलने की सोची, इसलिए उस मैदान की ओर चल दिए जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी ! यहाँ पहुँचकर गाड़ी में सवार हुए और ड्राइवर से वापिस चलने को कहा, थोड़ी देर बाद हम मैदान से निकलकर मुख्य मार्ग पर पहुँच गए ! बातचीत से पता चला कि वो दंपति बेताब वैली गए थे और उनका अनुभव भी काफ़ी अच्छा रहा, वैसे अनुभव तो हमारा भी ज़्यादा बुरा नहीं रहा था वो अलग बात है कि हम रास्ता भटकने की वजह से ज़्यादा आगे नहीं जा पाए थे !
A morning in Houseboat |
हाउसबोट से दिखाई देता सुबह का एक दृश्य (A view from Houseboat) |
पहलगाम जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र (On the way to Pehalgam) |
पहलगाम पहुँचने पर एक चित्र (Pehalgam Taxi Stand) |
व्यू पॉइंट जाते हुए (Way to View Point, Pehalgam) |
व्यू पॉइंट जाते हुए (Way to View Point, Pehalgam) |
वापिस पहलगाम के चौराहे पर (Pehalgam Taxi Stand) |
पहलगाम में खड्ड का एक दृश्य (A view from Pehalgam) |
A view from Pehalgam |
पहलगाम में खड्ड का एक दृश्य |
A view from Pehalgam |
पानी के अंदर दिखाई देते पत्थर |
घाटी का एक और खूबसूरत दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Srinagar): अगर आप श्रीनगर की डल झील में नौकायान के अलावा हाउसबोट में कुछ दिन बिताना चाहते है तो कश्मीर जाइए ! यहाँ घूमने के लिए पहाड़, झील, प्राकृतिक नज़ारे, बगीचे, नदियाँ सब कुछ है ! ऐसे ही इसे "धरती का स्वर्ग" नहीं कहा जाता, जो भी एक बार यहाँ आता है, वो यहाँ की खूबसूरती की तारीफ़ किए बिना नहीं रह पाता !
कब जाएँ (Best time to go Srinagar): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में श्रीनगर जा सकते है लेकिन यहाँ आने का सबसे बढ़िया समय अप्रैल से अक्तूबर का है सर्दियों में तो यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है कई बार तो डल झील भी जम जाती है !
कैसे जाएँ (How to reach Srinagar): दिल्ली से श्रीनगर की दूरी 808 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 15-16 घंटे का समय लगेगा ! श्रीनगर देश के अन्य शहरों से सड़क और हवाई मार्ग से अच्छे से जुड़ा है जबकि यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन उधमपुर है ! वैसे तो बारामूला से बनिहाल तक भी रेलवे लाइन है लेकिन इस मार्ग पर लोकल ट्रेन ही चलती है ! बारामूला से बनिहाल जाते हुए रास्ते में श्रीनगर भी पड़ता है ! उधमपुर से श्रीनगर तक आप बस या टैक्सी से भी आ सकते है, इन दोनों जगहों के बीच की कुल दूरी 204 किलोमीटर है और पूरा पहाड़ी मार्ग है जिसे तय करने में लगभग 5 घंटे का समय लगता है !
कहाँ रुके (Where to stay in Srinagar): श्रीनगर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! लेकिन अगर आप श्रीनगर में है तो कम से कम 1 दिन तो हाउसबोट में ज़रूर रुके ! डल झील में बने हाउसबोट में रुकने का अनुभव आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा !
कहाँ खाएँ (Eating option in Srinagar): श्रीनगर में अच्छा-ख़ासा बाज़ार है, यहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने-पीने का हर सामान मिल जाएगा !
क्या देखें (Places to see in Srinagar): श्रीनगर और इसके आस-पास घूमने की कई जगहें है जिसमें से शंकराचार्य हिल, ट्यूलिप गार्डन, डल झील, सोनमर्ग, बेताब वैली, निशात गार्डन, मुगल गार्डन, शालीमार बाग, गुलमर्ग, परी महल, पहलगाम, खीर भवानी मंदिर और चश्मेशाही प्रमुख है !
श्रीनगर यात्रा
- श्रीनगर यात्रा - उड़ान भरने से पहले का सफ़र (Pre-Departure Journey)
- दिल्ली से श्रीनगर की विमान यात्रा (Flying Delhi to Srinagar)
- श्रीनगर हवाई अड्डे से डल झील की बस यात्रा (A Road Trip to Dal Lake)
- श्रीनगर से पहलगाम की सड़क यात्रा (A Road Trip to Pehalgam)
- सेब के बगीचों में बिताए कुछ पल (An Hour in Apple Orchard)
- श्रीनगर स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen of Srinagar)
- श्रीनगर से दिल्ली वापसी (Return Journey to Delhi)
स्थानीय लोगो से पूछकर ही सही जगह जाना चाहिए वरना परेशानी हो सकती है । वैसे लगता है कश्मीर का सफर तुम्हारे लिए ज्यादा अच्छा नहीं रहा
ReplyDeleteकश्मीर यात्रा का अनुभव ठीक-2 ही था !
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