सालासर बालाजी – जहाँ दाढ़ी-मूछ वाले हनुमान जी विराजमान है (Temple of Lord Hanuman in Salasar Balaji)

शनिवार, 16 सितम्बर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आपने खाटूश्याम से सालासर पहुँचने तक की यात्रा के बारे में पढ़ा, अब आगे, सालासर पहुँचते-2 ही दोपहर हो गई थी और सबको तेज भूख लग रही थी । सुबह खाटूश्याम से चलते समय हल्का-फुल्का नाश्ता ही किया था, जो सालासर पहुँचने से पहले ही पच चुका था । धर्मशाला में थोड़ी देर आराम करने के बाद हम पेट पूजा करने के लिए यहाँ से थोड़ी दूर स्थित बाज़ार की ओर चल दिए, बाज़ार की जानकारी हमने पार्किंग से आते हुए वहां खड़े एक व्यक्ति से ले ली थी । धर्मशाला से निकले तो हम टहलते हुए मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए, यहाँ अच्छा-ख़ासा बाज़ार था, बाज़ार के बीच में ही मंदिर का प्रवेश द्वार भी है ! बाज़ार में खान-पान की कई दुकानें थी, हम महालक्ष्मी भोजनालय पर जाकर रुके । यहाँ हमने 100 रूपए थाली के हिसाब से पहले एक थाली ली और भोजन का स्वाद चखा, खाना बढ़िया लगा तो सबके लिए थालियाँ मंगवा ली । दाल-चावल, रोटी-सब्जी, अचार, सलाद सब था इस थाली में और भरपेट था, खाना खाकर मजा आ गया, अब तो इतना खाना खा लिया था कि शायद रात को खाने की ज़रूरत भी ना पड़े ।
सालासर से वापिस आते हुए रास्ते में लिया एक चित्र
खाना खाकर फारिक हुए तो हम घूमते हुए मंदिर के सामने पहुंचे, लेकिन अभी दर्शन के लिए अन्दर नहीं गए, सोचा शाम को आराम से दर्शन करने आयेंगे । सितम्बर का महीना था और बढ़िया धूप खिली थी, हमें भी कुछ ही देर में इस गर्मी का एहसास होने लगा था, आखिरकार आराम करने के लिए हमें वापिस धर्मशाला लौटना पड़ा । 5 मिनट की पदयात्रा करके धर्मशाला पहुंचे, यहाँ बिस्तर पर लेटते ही कब नींद आ गई पता ही नहीं चला, शायद बीती रात नींद पूरी ना हो पाने का असर था या भोजन का नशा, वजह जो भी हो, बढ़िया नींद आई । मैं शाम 5 बजे सोकर उठा, तब सभी लोग कमरे में बैठकर बातें कर रहे थे, मुझे उठता देख बोले, प्रदीप, नींद पूरी हो गई कि नहीं ? मैंने मुस्कुराते हुए पुछा, मंदिर कब चलना है, तो सब लोग बोले, भाई तेरा ही इन्तजार कर रहे थे, हाथ-मुंह धो ले तो थोड़ी देर में चलते है । कुछ देर बातचीत करने के बाद हम धर्मशाला से निकलकर दर्शन करने के लिए मंदिर की ओर चल दिए । जब हम दिन में भोजन करने आए थे तो बाज़ार में ज्यादा चहल-पहल नहीं थी लेकिन इस समय बाज़ार सज चुका था ! मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग के किनारे खड़े फेरी वाले खाने-पीने का सामान बेच रहे थे 

गोलगप्पों को यहाँ फुल्की कहते है, और सड़क के किनारे एक कतार में फुल्कियों की कई दुकानें सजी थी, जैसे-2 शाम होते जाएगी, यहाँ आने वाले लोगों की भीड़ भी बढती जाएगी । थोड़ी देर में हम मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचे, इस मंदिर का एक अन्य प्रवेश द्वार भी है जो बाज़ार में दूसरी ओर था । मुख्य प्रवेश द्वार के अगल-बगल में प्रसाद और पूजा सामग्रियों की कई दुकानें है, मंदिर में अन्दर जाने से पहले हमने एक दुकान से पूजा सामग्री ली और आगे बढे । इस समय मंदिर में भक्तों की कतार तो लगी थी लेकिन ज्यादा भीड़ नहीं थी, हम भी जाकर एक कतार में खड़े हो गए और हमारी कतार धीरे-2 मुख्य भवन की ओर बढ़ने लगी । चलिए, जब तक कतार आगे बढ़ रही है मैं आपको इस मंदिर से सम्बंधित जानकारी दे देता हूँ, राजस्थान के चुरू जिले में स्थित हनुमान जी का ये प्रसिद्द मंदिर है जहाँ देश-विदेश से श्रद्धालु आते है, इस मंदिर को सालासर बालाजी के नाम से जाना जाता है । बालाजी के प्रकट होने की कथा भी थोड़ी चमत्कारी है, कहते है बहुत समय पहले बालाजी के एक भक्त थे मोहनदास, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर प्रभु ने इन्हें मूर्ति रूप में प्रकट होने का वचन दिया ।

अपने वचन के अनुसार बालाजी 1811 में राजस्थान के नागौर जिले के असोटा गाँव में प्रकट हुए । कहते है गाँव में एक किसान खेत जोत रहा था तभी उसके हल की नोक से कोई कठोर चीज़ टकराई, जब उसने उसे निकाल कर देखा तो वो एक पत्थर था । जब उस किसान ने कपडे से उस पत्थर को पोछकर साफ़ किया तो उसे पत्थर पर बालाजी की छवि दिखाई दी । इतने में ही किसान की पत्नी उसके लिए खाना लेकर पहुंची, उन दोनों ने खाना खाने से पहले पत्थर में दिखाई दे रही उस छवि को बाजरे के चूरमे का भोग लगाया, बस तभी से बालाजी को चूरमे का भोग लगाया जाता है । कहते है जिस दिन ये मूर्ति प्रकट हुई उसी रात बालाजी ने सपने में असोटा के ठाकुर को अपनी मूर्ति सालासर ले जाकर स्थापित करने को कहा । उसी दिन मोहनदास को भी सपने में बालाजी दिखाई दिए, उन्होंने कहा कि जिस बैलगाड़ी से मूर्ति सालासर जाएगी उसे सालासर पहुँचने पर कोई नहीं चलाएगा, जहाँ जाकर बैलगाड़ी खुद रुक जाएगी वहीँ मेरी मूर्ति स्थापित कर देना । कहते है सपने में मिले निर्देश के अनुसार ही इस मूर्ति को यहाँ सालासर में स्थापित किया गया है । ये भी कहा जाता  है कि पूरे भारतवर्ष में दाढ़ी-मूंछों वाले हनुमान जी यहाँ बालाजी में ही स्थित है । 

इसके पीछे भी ये मान्यता है कि मोहनदास को पहली बार बालाजी ने दाढ़ी-मूंछों में ही दर्शन दिया था और मोहनदास ने बालाजी को इसी रूप में प्रकट होने के लिए कहा था । इसलिए हनुमान जी यहाँ दाढ़ी मूंछों में ही विराजमान है, इस मंदिर के बारे में एक रोचक बात ये भी है कि इसका निर्माण करने वाले अधिकतर कारीगर मुसलमान थे । मंदिर में जलने वाली धुनी को भी चमत्कारी माना जाता है कहते है कि मोहनदास जी ने ये धुनी 300 साल पहले जलाई थी जो आज भी प्रज्ज्वलित है । सालासर में बालाजी की स्थापना के कई साल बाद बालाजी के अनुरोध पर माता अंजनी का यहाँ आगमन हुआ । लेकिन इसी अनुरोध में उन्होंने ये भी कहा कि वे साथ में नहीं रहेंगे वरना ये समस्या आ सकती है कि पहले किसकी पूजा हो । इसलिए माता अंजनी का मंदिर बालाजी के मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित है, जहाँ बालाजी अंजनी माता की गोद में बैठे है । अंजनी माता का मंदिर बनने के पीछे भी एक रोचक कथा है, कहते है कि ब्रहमचर्य का पालन करने वाले हनुमान जी अपने उन भक्तों की चिंता दूर करते हुए कठिनाई महसूस करते थे जो स्त्री रोग और संतान सम्बन्धी समस्याओं को लेकर उनकी शरण में आते थे ।

इसलिए उन्होंने अंजनी माता से यहाँ आने का अनुरोध किया ताकि वो ऐसे भक्तों की परेशानियां दूर कर सके । अंजनी माता के एक भक्त थे पंडित पन्ना लाल, जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माता ने उन्हें ये आशीर्वाद दिया कि उनकी तपस्या स्थली पर ही वो निवास करेंगी । इसके बाद सीकर नरेश कल्याणसिंह ने यहाँ अंजनी माता की मूर्ति स्थापित करवाई । इस तरह सालासर में बालाजी और अंजनी माता के मंदिर की स्थापना हुई, चलिए, वापिस मंदिर में लौटते है जहाँ हमारी कतार मुख्य भवन में पहुँच चुकी है । मंदिर की भीतरी दीवारों और दरवाजों पर चाँदी की मूर्तियाँ और चित्र बनाए गए है, जो यहाँ आने वाले श्रधालुओं का ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींचते है । मुख्य भवन में बालाजी की मूर्ति विराजमान है जिसे देखकर श्रधालुओं की सारी थकान दूर हो जाती है । बालाजी के दर्शन करने के बाद एक परिक्रमा लगाते हुए हम मंदिर परिसर के दूसरे हिस्से में पहुँच गए, जहाँ कुछ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की गई थी । यहाँ से मंदिर का दूसरा प्रवेश मार्ग भी दिखाई देता है । सालासर आने वाले बहुत से श्रद्धालु यहाँ भंडारा करवाते है और सवामनी (सवा मन मतलब 50 किलो) का प्रसाद भी चढाते है, मंदिर के आस-पास प्रसाद की दुकानों पर आवश्यकतानुसार ये प्रसाद तैयार किया जाता है !

थोड़ी देर मंदिर में बैठने के बाद हम बाहर आ गए, और बाज़ार में घूमने लगे, रात हो चुकी थी इसलिए आज अंजना माता के मंदिर नहीं गए । मंदिर के पास वाले बाज़ार में काफी देर तक घूमते रहे, इस दौरान हमने एक होटल में रात्रि भोजन भी कर लिया । धर्मशाला में वापिस आने से पहले हमने बाज़ार से थोड़ी खरीददारी की और रास्ते में एक जगह रूककर कुल्हड़ वाला दूध भी पिया । धर्मशाला में हमारे अलावा एक दो लोग ही ठहरे हुए थे, इतनी बड़ी धर्मशाला खाली पड़ी थी, रात को टॉयलेट भी जा रहे थे तो चारों तरफ एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था । हमारे कमरे में ज़मीन पर ही गद्दे बिछे हुए थे, और एक कूलर भी लगा था, इसलिए रात को बढ़िया नींद आई । सुबह समय से सोकर उठे, और जल्द ही नहा-धोकर फारिक हो गए, नाश्ता करने के लिए हम पार्किंग के पास बने एक रेस्टोरेंट में पहुंचे । यहाँ हमने चाय के साथ कचोरियों का लुत्फ़ लिया, स्वाद ज्यादा अच्छा तो नहीं था लेकिन भूख लगी हो तो सब ठीक लगता है । टहलते हुए एक बार फिर हम बालाजी के मंदिर में दर्शन करने हेतु गए और फिर वापिस आकर बाज़ार के एक किनारे स्थित एक गलियारे से होते हुए अंजनी माता के मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ।

आधा-पौना किलोमीटर चलने के बाद हम अंजनी माता के मंदिर पहुंचे, इस बीच रास्ते में कई बढ़िया धर्मशालाएं और एक मैदान भी दिखाई दिया ! स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार यहाँ हर वर्ष एक विशाल मेला लगता है, फिल्हाल यहाँ झूले लगाये जा रहे थे, शायद ये मेले की तैयारियों का ही एक हिस्सा हो ! यहाँ अंजनी माता के दर्शन के लिए देश-विदेश से हज़ारों श्रद्धालु आते है और इस मेले में भी शामिल होते है । बड़ा शानदार मंदिर बना है एक खुले बरामदे से होते हुए हम मंदिर परिसर में पूजा के लिए गए, अंजनी माता का ऐसा ही एक मंदिर मैंने मेहंदीपुर बालाजी में भी देखा था ! हालांकि, मुझे ये मंदिर ज्यादा बड़ा और सुन्दर लगा, कुछ देर मंदिर में बिताने के बाद हम वापिस अपने होटल की ओर चल दिए ! बाज़ार से हमने घर ले जाने के लिए प्रसाद भी ले लिया और फिर पार्किंग से अपनी गाडी लेकर हमने वापसी की राह पकड़ी । दिनभर लगभग 400 किलोमीटर से भी थोडा अधिक का सफ़र तय करके अपने एक साथी को फरीदाबाद छोड़ने के बाद शाम साढ़े चार बजे हम अपने घर पहुंचे, इसी के साथ ये सफ़र ख़त्म होता है जल्द ही आपको किसी नई यात्रा पर लेकर चलूँगा ।

क्यों जाएँ (Why to go Salasar Balaji): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर बालाजी जाकर आप निराश नहीं होंगे ! ये एक धार्मिक स्थल है, यहाँ हनुमान जी को समर्पित एक मंदिर है ! पूरी दुनिया में यहीं हमुनान जी को दाढ़ी-मूछ वाले रूप में दिखाया गया है ! यहाँ दूर-2 से लोग दर्शन के लिए आते है, यहाँ आने वाले लोगों की कतार कभी कम नहीं होती ! 

कब जाएँ (Best time to go Salasar Balaji
)आप साल के किसी भी महीने में सालासर बालाजी जा सकते है, वैसे ज्यादा ठण्ड और ज्यादा गर्मी में ना ही जाएँ तो बेहतर होगा ! यहाँ जाने के लिए अक्तूबर-नवम्बर का समय सर्वोत्तम है !

कैसे जाएँ (How to reach Salasar Balaji
)दिल्ली से सालासर बालाजी की दूरी लगभग 340 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन सड़क मार्ग है दिल्ली से सालासर बालाजी जाने के लिए वॉल्वो भी चलती है ! अगर आप रेल मार्ग से जाना चाहे तो सुजानगढ़ यहाँ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 27 किलोमीटर दूर है ! स्टेशन से मंदिर जाने के लिए आपको कई सवारियां मिल जाएँगी !

कहाँ रुके (Where to stay near Salasar Balaji
): सालासर बालाजी में रुकने के लिए मंदिर के आस-पास कई धर्मशालाएँ और होटल है, जिनका किराया भी 400 रूपए से शुरू होकर 1000 रुपए तक है ! इन धर्मशालाओं में ज़रूरत की सभी सुविधाएँ मौजूद है, आप अपनी सहूलियत के हिसाब से कहीं भी रुक सकते है !

क्या देखें (Places to see near Salasar Balaji): सालासर बालाजी राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है यहाँ बालाजी मंदिर के अलावा देखने के लिए अन्य कई स्थल है जिसमें ताल छप्पर सेंचुरी, चुरू का किला, और कुछ अन्य मंदिर प्रमुख है !

समाप्त...

खाटूश्याम - सालासर यात्रा
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. जानकारी अच्छी दी है प्रदीप भाई लेकिन फोटो एक ही है .मंदिर की बाहर से तो फोटो ले सकते होंगे .

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    1. नरेश जी धन्यवाद, फोटो तो ले सकते थे लेकिन पता नहीं क्यों इस यात्रा पर फोटो लेने की इच्छा ही नहीं हुई !

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