रविवार, 29 अगस्त 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप हमारे साथ धर्मशाला से निकलकर मैहर के बस अड्डे तक पहुँच चुके है, अब आगे, ऑटो से उतरकर हम बस अड्डे के सामने पहुंचे ! कहने को तो ये मैहर का सरकारी बस अड्डा है लेकिन फिलहाल यहाँ प्राइवेट बसों और ऑटो का जमावड़ा लगा था, चित्रकूट, सतना, नागौर, कटनी और कुछ अन्य जगहों की बसें खड़ी थी ! बस स्टैंड के बाहर छोटी-2 कई दुकानें थी, इन्हीं में से एक चाय की दुकान पर कुछ सवारियाँ और बस कन्डक्टर बैठकर बतियाने में लगे थे ! हमने जाकर इनसे सतना जाने वाली बस के बाबत पूछा तो इन्होनें इशारे से बता दिया कि कौन सी बस जाने वाली है ! उक्त बस में अंदर जाकर हमने देखा तो इसमें अभी गिनती की 8-10 सवारियाँ ही थी, प्राइवेट बस में अक्सर जब तक पर्याप्त सवारियाँ नहीं हो जाती ये बसें नहीं चलती, इस बात का अंदाजा हमें था ! ड्राइवर से बस चलने का समय पूछा तो उसने कहा ढाई बजे बस चल देगी, अभी सवा दो बज रहे थे, इस 15 मिनट में मैं बस अड्डे का एक चक्कर लगाते हुए सड़क के दूसरी ओर भी घूम आया ! सड़क से कुछ दूरी पर एक तालाब भी था, आस-पास के कुछ फोटो लेकर मैं वापिस आ गया, अब तक बस में कुछ और सवारियाँ भी चढ़ चुकी थी ! बस अपने निर्धारित समय पर बस अड्डे से निकल पड़ी, लेकिन अभी भी बस में काफी सीटें खाली थी, कुछ दूर चलकर घंटाघर चौराहे से हमारी बस बाएं मुड़ गई, ये मैहर-बंशीपुर मार्ग था ! चौराहे से थोड़ा आगे बढ़ते ही बस कुछ नई सवारियाँ लेने के लिए रुकी, 10 मिनट यहाँ रुककर हम एक बार फिर से चल पड़े ! कन्डक्टर जब टिकट के लिए हमारे पास आया तो उसने हमें बता दिया कि ये बस पन्ना तक जाएगी, ये सुनकर हमें बड़ी राहत मिली !
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मैहर बस अड्डे का एक दृश्य |
पहले हम इस बस से सतना जाने वाले थे लेकिन अब हम इसी बस से पन्ना तक चले जाएंगे ! पन्ना से खजुराहों के लिए हमें कोई दूसरी बस मिल जाएगी, मैहर से पन्ना का किराया शायद 90 रुपए प्रति सवारी लगा ! लगभग 12 किलोमीटर चलने के बाद इचौल टोल प्लाजा आया, मैहर-बंशीपुर मार्ग तो बढ़िया बना था लेकिन सड़क के बीच में डिवाइडर ना होने से बस ज्यादा रफ्तार नहीं पकड़ रही थी ! बारिश का मौसम होने के कारण सड़क के दोनों ओर बढ़िया हरियाली थी, बस की खिड़की से दूर दिखाई देते पहाड़ और इस पर बिखरी हरियाली बहुत सुंदर लग रही थी ! लगभग एक घंटे बाद हम उचेहरा में थे, यहाँ भी बस कुछ सवारी लेने के लिए बस अड्डे में गई, उचेहरा की दूरी मैहर से मात्र 16 किलोमीटर है लेकिन इसे ही तय करने में हमें घंटे भर का समय लग गया ! वैसे जो मजा बस या रेल यात्रा के दौरान मिलता है वो आपको निजी वाहन में कभी नहीं मिल सकता, इसके लिए आपको बसों में यात्रा करनी ही पड़ेगी, फिर ऐसी यात्राओं के दौरान हमेशा कुछ नए अनुभव भी मिलते है ! उचेहरा का बस अड्डा ज्यादा बड़ा नहीं है, एक रिहायशी इलाके के बीचों-बीच स्थित इस बस अड्डे के चारों तरफ दुकानें है, जहां बसों को मोड़ने और बस-अड्डे से बाहर निकालने के लिए भी बहुत कम जगह है ! उचेहरा में भी हमारी बस 10-15 मिनट के लिए रुकी, इस बीच हमने 1-1 कप चाय पी ली और हल्की पेट-पूजा भी कर ली ! उचेहरा से सवारियाँ लेकर एक बार फिर हमारी बस मुख्य मार्ग पर आ गई, यहाँ से एक रेलवे लाइन भी सड़क के साथ-2 सतना तक चलती है, फिलहाल एक लोकल ट्रेन हमारी बस के बराबर ही चल रही थी !
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नगर परिषद मैहर का कार्यालय |
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मार्ग से दिखाई देता मैहर बस अड्डा |
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मैहर बस अड्डा - फिलहाल ऑटो और प्राइवेट बसें ही खड़ी है |
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मैहर बस अड्डे पर खड़ी बसें |
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मैहर बस अड्डे पर खड़ी बसें |
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लाल वाली बस में हमने यात्रा की थी |
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बस अड्डे के बाहर दुकानें |
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बस अड्डे के सामने मुख्य मार्ग |
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बस अड्डे के सामने मुख्य मार्ग |
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सड़क के दूसरी ओर का नजारा |
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इचौल टोल प्लाजा का एक दृश्य |
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मैहर बंशीपुर मार्ग |
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उचेहरा बस अड्डे से लिया एक चित्र |
ऐसा लग रहा था कि बस और ट्रेन में कोई रेस चल रही हो, कभी हमारी बस सवारियों के लिए रुकती तो ट्रेन आगे निकल जाती, लेकिन फिर सिग्नल ना मिलने से ट्रेन आगे कहीं खड़ी मिलती ! इसी तरह ट्रेन और बस के बीच भागम-भाग चल रही थी, कसम से, मुझे ऐसे सफर में बड़ा आनंद आता है जब किसी ट्रेन और बस या निजी गाड़ी के बीच ऐसे लुका-छुपी का खेल चल रहा हो ! खैर, कुछ देर तक साथ-2 चलने के बाद ट्रेन हमारी आँखों से ओझल हो गई और फिर पूरे रास्ते ना तो ये ट्रेन मिली और ना ही कोई दूसरी ट्रेन इस लाइन से गुजरी, मैं खिड़की वाली सीट पर बैठा बाहर के नज़ारों का आनंद ले रहा था ! जहां भी सड़क किनारे कोई सवारी दिखाई देती, हमारी बस का ड्राइवर झट से गाड़ी रोक देता, इसी तरह रुकते-रुकाते हम आगे बढ़ते रहे ! सतना रेलवे स्टेशन से थोड़ा आगे निकलते ही हमारी बस एक पुल से होते हुए बाएं मुड़ गई, सतना का बस अड्डा यहाँ से थोड़ी दूरी पर दाईं ओर था, सतना जाने वाली सवारियाँ इस मोड पर उतर गई ! चौड़ी सड़क मिली तो हमारी बस ने कुछ रफ्तार पकड़ी, यहाँ से लगभग 50 किलोमीटर का सफर तय करके हम देवेन्द्रनगर पहुंचे, इस बीच रास्ते में कई गाँव और कस्बे आए, जहां सवारियाँ बस में चढ़ती-उतरती रही ! सड़क के दोनों ओर हरियाली अपने चरम पर थी, इस बीच ढलते सूरज का नजारा भी शानदार था ! देवेन्द्रनगर पहुंचे तो शाम के 6 बज रहे थे, यहाँ भी कुछ देर के लिए हमारी बस रुकी, देवेन्द्रनगर से पन्ना की दूरी मात्र 26 किलोमीटर है लेकिन इसे तय करने में हमें लगभग पौने घंटे का समय लग गया ! जैसे-2 शाम हो रही थी, खिड़की से आती ठंडी हवा मन में एक नई ताजगी भर रही थी, हालांकि, सफर की थकान भी महसूस हो रही थी !
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उचेहरा से बाहर मुख्य मार्ग का दृश्य |
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सतना रेलवे स्टेशन के पास पुल को पार करते हुए |
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दूर दिखाई देता सतना रेलवे स्टेशन |
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सड़क किनारे दिखाई देते खेत |
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सड़क किनारे लगी एक दुकान |
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देवेन्द्र नगर बस अड्डे से लिया एक चित्र |
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सड़क किनारे दूर तक खाली मैदान |
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सड़क किनारे दूर तक खाली मैदान |
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यहाँ आबादी ना के बराबर थी |
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सकरिया जाने का प्रवेश द्वार - स्वागत के लिए गाय खड़ी है |
जिस क्षेत्र में हमारी बस गुजर रही थी मुझे यहाँ की आबादी ना के बराबर लगी, क्योंकि सड़क और इसके आस-पास गिनती के लोग ही दिखाई दे रहे थे, जब कोई गाँव या कस्बा आता तो कुछ लोग जरूर दिखाई दे जाते लेकिन आगे बढ़ते ही फिर से सन्नाटा पसर जाता ! 7 बजे के आस-पास हम पन्ना पहुंचे, यहाँ का बस अड्डा भी शहर के अंदर जाकर है, हमारी बस पन्ना-खजुराहो मार्ग से उतरकर बस अड्डे पर पहुँची, यहाँ आकर बस खाली हो गई ! हमने भी बस से उतरकर पूछताछ की तो पता चला कि छतरपुर जाने वाली किसी भी बस में सवार होकर हमें बमीठा उतरना है, यहीं से खजुराहो जाने का मार्ग अलग होता है ! फिर हमारी आँखें पन्ना से छतरपुर जाने वाली बस की तलाश करने लगी, थोड़ी खोजबीन के बाद हमें एक कतार में छतरपुर जाने की कई बसें दिखाई दी, पहली बस में चढ़े तो इसमें कोई सीट खाली नहीं थी, दूसरी बस के चलने में अभी काफी समय था, तीसरी बस में सीट भी मिल गई और ये चलने के लिए भी तैयार खड़ी थी ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि पन्ना एक बड़ा बस अड्डा है, यहाँ से मध्य प्रदेश के अलग-2 शहरों के लिए नियमित अंतराल पर बसें चलती रहती है ! बस के चलने से पहले देवेन्द्र जाकर 2 कप चाय और थोड़ी नमकीन ले आया ! सवा सात बजे बस यहाँ से चली तो अंधेरा होने लगा था, वैसे तो काफी उमस थी लेकिन बस के चलने से ठंडी हवा लग रही थी ! एक बार फिर हमारी बस रिहायशी इलाके से होते हुए दोबारा पन्ना-खजुराहो मार्ग पर आ गई ! यहाँ भी सड़क के दोनों ओर बढ़िया हरियाली है, जैसे-2 अंधेरा बढ़ता जा रहा था, सड़क किनारे झाड़ियों से झींगुर की आवाज़ें भी तेज होते जा रही थी !
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पन्ना बस अड्डे का एक दृश्य |
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पन्ना बस अड्डे का एक दृश्य |
पन्ना-खजुराहों मार्ग पर लगभग 10 किलोमीटर चलने के बाद पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्र शुरू हो जाता है, इस उद्यान के शुरू में ही माँ मनसा देवी का एक मंदिर है ! रात्रि में यात्रा करने वाली अधिकतर बसें यहाँ मंदिर के सामने रुककर माँ का आशीर्वाद लेने के बाद ही वन्य क्षेत्र में प्रवेश करती है ! इसे लोगों की आस्था कह लीजिए या यहाँ की मान्यता, बिना आशीर्वाद के शायद ही कोई स्थानीय गाड़ी आगे जाती हो ! हमारी बस भी मंदिर के सामने जाकर रुकी, कन्डक्टर ने मंदिर में जाकर माथा टेका, और प्रसाद लेकर वापिस आ गया ! सवारियों में प्रसाद बांटने के साथ ही सभी को ये निर्देश भी दे दिया कि खिड़की के बाहर शरीर का कोई अंग ना निकाले, ये वन्य क्षेत्र है इसलिए जंगली जानवरों का खतरा बना रहता है ! बस मंदिर के सामने से निकलकर वन्य क्षेत्र में प्रवेश कर गई, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान से जब हमारी बस निकली तो बाहर एकदम सन्नाटा था, हर मोड पर मुझे तो ऐसा महसूस हो रहा था कि ना जाने बस की खिड़की से कौन सा जंगली जानवर दिख जाए, रात्रि में यहाँ सफर करना वाकई रोमांचकारी था ! किसी रोमांच की तलाश में आँखें लगातार बाहर देखे जा रही थी, जंगली जानवर तो नहीं दिखा, लेकिन सफर के दौरान रोमांच में कोई कमी नहीं आई ! 10 किलोमीटर जंगल में चलने के बाद केन नदी का पुल पार करते हुए हम राष्ट्रीय उद्यान से बाहर निकल गए, लेकिन इस छोटे से सफर ने मन में जो रोमांच भरा वो दिनभर के सफर पर भारी था, आज हम पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के एक किनारे से होकर निकले थे !
इस पुल को पार करने के बाद हमारी बस चंद्रनगर रुकी, जहां से बमीठा की दूरी मात्र 10 किलोमीटर रह जाती है ! चंद्रनगर से निकलकर 8 बजे के आस-पास हम बमीठा उतरे, जहां से खजुराहों जाने का मार्ग अलग होता है, बमीठा एक तिराहे पर स्थित है, यहाँ पन्ना-खजुराहों मार्ग से एक मार्ग अलग होकर खजुराहों के लिए चला जाता है ! आस-पास घूमकर देखा तो यहाँ कोई होटल नहीं मिला, फिर एक स्थानीय दुकानदार से पूछने पर पता चला इस मार्ग पर आगे जाकर कई होटल है ! बमीठा से एक ऑटो में सवार होकर हम खजुराहो जाने वाले मार्ग पर किसी होटल की तलाश में चल दिए ! ज्यादा दूर ना जाते हुए हमने बमीठा से थोड़ी दूर एक होमस्टे में रात्रि विश्राम के लिए कमरा ले लिया ! अपना सामान कमरे में रखकर कुछ देर विश्राम किया और फिर भोजन के लिए किसी होटल की तलाश में निकल पड़े, सड़क किनारे हमारे होमस्टे से थोड़ी दूरी पर एक होटल मिल गया, जहां रात्रि भोजन के बाद 9 बजे तक हम वापिस आ गए ! होमस्टे वापिस पहुंचे तो पता चला बिजली गुल थी, बैकअप की कोई व्यवस्था नहीं थी इसलिए कुछ देर बालकनी में बैठकर बातें की ! आधे घंटे बाद बिजली आई तो हमने बारी-2 से स्नान किया और फिर आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए ! चलिए, फिलहाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको खजुराहो के विश्वप्रसिद्ध मंदिरों के दर्शन करवाऊँगा !
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होमस्टे का एक दृश्य |
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होमस्टे का एक दृश्य |
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होमस्टे से दिखाई देता एक दृश्य |
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होमस्टे के बाहर का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go): खजुराहो अपने कुशल कारीगरी वाले मंदिरों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है, अगर आपको भी प्राचीन कलाकृतियाँ देखना पसंद है तो निश्चित तौर पर आपको यहाँ जरूर आना चाहिए ! खजुराहो का नाम सुनते ही अक्सर लोगों के मन में कामुक कलाकृतियों की छवि उभरने लगती है लेकिन इन कलाकृतियों से इतर कभी यहाँ के इतिहास को जानने की कोशिश करिए !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन यहाँ जाने के लिए अक्टूबर से मार्च का महीना सबसे उपयुक्त है !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से खजुराहो की दूरी लगभग 650 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से 12 घंटे में आराम से पूरी 8 से 10 घंटे में आराम से पूरा कर सकते है ! इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों से भी खजुराहो के लिए ट्रेनें चलती है ! आप चाहे तो खजुराहो का ये सफर बस या निजी वाहन से भी आ सकते है लेकिन यहाँ आने के लिए सबसे बढ़िया विकल्प रेल मार्ग है क्योंकि रेलवे स्टेशन से खजुराहो के मंदिरों की दूरी महज 8 किलोमीटर है ! इस दूरी को तय करने के लिए आपको नियमित अंतराल पर ऑटो या अन्य गाड़ियां मिल जाती है, वैसे आप अपनी सहूलियत के अनुसार कोई भी विकल्प चुन सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay): खजुराहो में रुकने के लिए आपको 1000 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक के होटल भी मिल जाएंगे ! आप अपने बजट के हिसाब से किसी भी होटल का चयन कर सकते है, खजुराहो में स्टेशन से निकलकर बमीठा-खजुराहो मार्ग पर कोई होटल लेंगे तो ज्यादा ठीक रहेगा !
क्या देखें (Places to see): खजुराहो में घूमने के लिए बहुत से मंदिर है जिन्हें अलग-2 श्रेणियों में बांटा गया है, आप चाहे तो दिनभर में इन सभी मंदिरों को आराम से देख सकते है ! लेकिन अगर आप इन मंदिरों की विस्तृत जानकारी लेना चाहते है तो आप यहाँ ज्यादा दिन भी रुक सकते है !
धन्यवाद अच्छी जानकारी प्राप्त हो रही है
ReplyDeleteजी धन्यवाद !
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