शनिवार, 5 जुलाई 2014
आज सुबह जब मैं सोकर उठा तो एकदम खाली था, बीवी मायके जा चुकी थी इसलिए मेरे पास समय की कोई कमी नहीं थी ! रविवार होने के कारण दफ़्तर जाने की मारा-मारी भी नहीं थी, जुलाई का महीना चल रहा था और गर्मी भी पूरे चरम पर थी ! बाकी दिनों में तो दफ़्तर के वातानुकूलित माहौल में दिन आराम से गुजर जाता था, पर बिजली कटौती के बीच घर पर समय गुज़ारना तो जैसे जंग लड़ना था ! ऐसे मौसम में अगर कोई दोपहरी में बाहर घूमने की बात करे तो शायद लोग उसे पागल ही कहेंगे ! मैने बिस्तर में बैठे-2 ही सोचा कि क्यों ना आज थोड़ा पागलपन ही कर लिया जाए, और दिल्ली भ्रमण पर निकला जाए ! पहले तो सोचा कि अकेले ही घूमने जाया जाए फिर मन में विचार आया कि एक से भले दो, तो क्यों ना किसी दोस्त को साथ ले लिया जाए ! फोन उठाकर तुरंत अपने एक मित्र प्रमोद जोशी जोकि अभी गुड़गाँव में कार्यरत है, को फोन लगा दिया !
India Gate |
प्रमोद से मिले हुए काफ़ी समय हो गया था, इसलिए अगर उनकी हाँ हो जाती है तो इसी बहाने हम दोनों का मिलना भी हो जाएगा ! गनीमत थी कि प्रमोद ने फोन उठा लिया, वरना छुट्टी वाले दिन तो इतनी सुबह शायद ही कोई फोन उठाए ! वैसे मुझे भी सुबह-2 किसी की नींद खराब करना पसंद नहीं है ! हालाँकि फोन पर बात करते हुए मुझे एहसाह हो गया था कि वो महाशय अभी नींद में ही थे ! बातचीत के दौरान प्रमोद ने दिल्ली घूमने के लिए अपनी सहमति दे दी, साढ़े दस बजे दोनो का इंडिया गेट पर मिलना तय हुआ ! मैं बिस्तर से उठकर फटा-फट तैयार हुआ और सुबह का भोजन करने के बाद पलवल रेलवे स्टेशन के लिए निकल पड़ा ! पलवल से दिल्ली जाने के लिए सबसे बढ़िया साधन रेल ही है, यहाँ से नियमित अंतराल पर दिल्ली के लिए सवारी गाड़ियाँ चलती रहती है ! बसों की तुलना में सवारी गाड़ी का किराया भी कम है और ये गाड़ियाँ बसों से कम समय में ही आपको दिल्ली पहुँचा देती है !
दिल्ली तक का टिकट लेकर में गाड़ी में जाकर बैठ गया और इसके चलने की प्रतीक्षा कर रहा था ! गाड़ी अपने निर्धारित समय 8 बजकर 20 मिनट पर पलवल से चल पड़ी, सवारी गाड़ी होने के कारण इसे हर स्टेशन पर रुकना था ! रुकते-रुकाते गाड़ी 9 बजकर 45 मिनट पर तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन पर पहुँच गई, मैं ट्रेन से नीचे उतरा और इंडिया गेट जाने के लिए स्टेशन से बाहर की ओर चल दिया ! इंडिया गेट जाने के लिए आपको प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन के पास से बहुत सारी बसें मिल जाएँगी ! मैं भी इनमें से एक बस में चढ़ गया और अगले 10 मिनट में मैं इंडिया गेट पहुँच चुका था ! प्रमोद के आने में अभी आधा घंटा शेष था इसलिए मैने सोचा खाली बैठने से तो कुछ नहीं होना तो क्यों ना इंडिया गेट के आस-पास ही घूम लिया जाए !
यहाँ इंडिया गेट पर बने अमर जवान ज्योति के पास तीनों सेना के जवान प्रहरी बनकर खड़े थे ! इंडिया गेट के इतिहास के बारे में तो आप सभी जानते होंगे, और जो लोग नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए मैं बता दूँ कि इसका निर्माण प्रथम विश्व युद्ध के दौरान शहीद हुए हज़ारों भारतीय सैनिकों के स्मृति-चिन्ह के रूप में किया गया ! बाद में सन 1971 में इंदिरा गाँधी के शासनकाल में अमर-जवान ज्योति का निर्माण किया गया, तभी से ये ज्योति निरंतर प्रज्वलित है, चाहे सर्दी, गर्मी, वर्षा या बसंत ऋतु हो, ये ज्योति लगातार जल रही है ! इसकी सुरक्षा के लिए यहाँ सेना के कुछ जवान हमेशा तैनात रहते है ! यहीं पर सैनिकों के असीम बलिदान के लिए उनके स्मृति-चिन्ह के रूप में एक हेल्मेट और एक बंदूक को रखा गया है ! भारत भ्रमण पर आए देश-विदेश से लाखों सैलानी यहाँ इंडिया गेट देखने भी आते है !
इंडिया गेट के आस-पास घूमने के बाद मैं वहीं मैदान के एक किनारे में घास पर आकर बैठ गया, इसी दौरान प्रमोद से फोन पर बात हुई और पता चला कि वो यहाँ 11 बजे तक ही पहुँच पाएगा ! इंडिया गेट पर उस समय भी काफ़ी लोग आए हुए थे, वैसे शाम के समय तो यहाँ काफ़ी भीड़ रहती है ! 2010 में जब मैं ख़ान मार्केट में एक दफ़्तर में कार्यरत था तो बस में बैठे हुए प्रतिदिन इंडिया गेट के सामने से गुज़रना होता था ! उस समय तो यहाँ इंडिया गेट के पास ही बने एक छोटे से पानी के तालाब में नौकायान की व्यवस्था भी थी, पर आज मुझे कोई भी नौका दिखाई नहीं दी ! शायद पानी ना होने ही वजह से नौकायान की सवारी बंद कर दी गई हो या फिर शायद कोई और कारण हो ! प्रमोद के आने के बाद हम दोनों ने फिर से इंडिया गेट का चक्कर लगाया और कुछ चित्र अपने कैमरे में क़ैद किए !
12 बजने वाले थे और गर्मी भी बढ़ती जा रही थी, हल्का-फुल्का खाने के बाद हम लोग पैदल ही चिड़ियाघर की ओर चल दिए जो यहाँ से लगभग 2 किलोमीटर दूर होगा ! बातों ही बातों में कब ये 2 किलोमीटर की दूरी तय हो गई पता ही नहीं चला. वैसे दिल्ली के अलग-2 हिस्सों से चिड़ियाघर आने के लिए आपको नियमित अंतराल पर बसें मिल जाएँगी, चिड़ियाघर पहुँचने के लिए निकटतम मेट्रो स्टेशन प्रगती मैदान है ! चिड़ियाघर पहुँचकर अंदर जाने के लिए 40 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से दो प्रवेश टिकट लिए और मुख्य द्वार से होते हुए चिड़ियाघर में प्रवेश किया ! चिड़ियाघर में अंदर जाने के लिए एक पक्की सड़क बनी है, और जगह-2 आगंतुकों की सहूलियत के लिए दिशा सूचक बोर्ड भी लगे हुए है ! हालाँकि, आप चिड़ियाघर में अंदर चलने वाली बस में बैठ कर भी घूमने का आनंद ले सकते है, जिसका किराया भी ज़्यादा नहीं है, ये बस आपको पूरे चिड़ियाघर का चक्कर लगवा देगी !
पर मुझे तो जंगलों, चिड़ियाघरों, या फिर पहाड़ों पर पैदल ही घूमने में मज़ा आता है, इससे मैं जहाँ मन चाहे और जितनी देर चाहे रुक सकता हूँ ! चिड़ियाघर में बने पक्के मार्ग पर चलते-2 हम लोग हिरणों के झुंड के पास से गुज़रे, वैसे इस चिड़ियाघर में सबसे ज़्यादा हिरण ही है, अलग-2 प्रजातियों के हिरण यहाँ आपको देखने के लिए मिल जाएँगे ! इस समय बहुत तेज धूप थी और गर्मी भी बहुत लग रही थी, आलम ये हो गया था कि थोड़ी-2 देर में हम दोनों छाया देख कर आराम करने बैठ जा रहे थे ! पीने के लिए ठंडे पानी की यहाँ अच्छी व्यवस्था है, और चिड़ियाघर में अंदर ज़रूरी जानकारी भी अच्छे ढंग से मुहैया की गई है ! चिड़ियाघर में घुसने पर तो ज़्यादा भीड़ नहीं लग रही थी पर यहाँ बाघ के आस-पास वाली जगह पर लोगों की काफ़ी भीड़ थी !
भालू और बाघ को कुछ लोग तो चिढ़ा रहे थे जबकि कुछ अन्य लोग उन्हें पत्थर भी मार रहे थे, जोकि ग़लत बात है, चिड़ियाघर के प्रवेश द्वार के पास ही एक बोर्ड पर लिखा भी था कि किसी भी जानवर को ना तो चिढ़ाएँ और ना ही उनकी ओर पत्थर या अन्य सामान फेंके ! धीरे-2 हम यहाँ काफ़ी घूम लिए थे, और अब पैदल चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर फिर भी सोचा कि जब घूमने आ ही गए है तो फिर धूप और गर्मी से क्या डरना ! चिड़ियाघर में घूमते हुए हमने बहुत से जानवर देखे जिसमें हिरण, बतख, वानर, जंगली भैंसा, अफ्रीकी हाथी, ज़िराफ़, लोमड़ी, तेंदुआ, बाघ, मगरमच्छ, भालू, और हिपो प्रमुख थे ! इन जानवरों को देखने के लिए हमें काफ़ी पैदल चलना पड़ा, अगली बार कभी यहाँ आने का मन हुआ तो ठंडे मौसम में ही योजना बनेगी !
भालू और बाघ को कुछ लोग तो चिढ़ा रहे थे जबकि कुछ अन्य लोग उन्हें पत्थर भी मार रहे थे, जोकि ग़लत बात है, चिड़ियाघर के प्रवेश द्वार के पास ही एक बोर्ड पर लिखा भी था कि किसी भी जानवर को ना तो चिढ़ाएँ और ना ही उनकी ओर पत्थर या अन्य सामान फेंके ! धीरे-2 हम यहाँ काफ़ी घूम लिए थे, और अब पैदल चलने की हिम्मत नहीं हो रही थी, पर फिर भी सोचा कि जब घूमने आ ही गए है तो फिर धूप और गर्मी से क्या डरना ! चिड़ियाघर में घूमते हुए हमने बहुत से जानवर देखे जिसमें हिरण, बतख, वानर, जंगली भैंसा, अफ्रीकी हाथी, ज़िराफ़, लोमड़ी, तेंदुआ, बाघ, मगरमच्छ, भालू, और हिपो प्रमुख थे ! इन जानवरों को देखने के लिए हमें काफ़ी पैदल चलना पड़ा, अगली बार कभी यहाँ आने का मन हुआ तो ठंडे मौसम में ही योजना बनेगी !
जब काफ़ी समय हो गया और भूख लगने लगी तो हमने यहाँ से बाहर निकालने की सोची ! चिड़ियाघर में जाते हुए तो बड़े ध्यान से रास्ता देखते हुए जाना पड़ता है ताकि कोई जानवर देखने से रह ना जाए, पर वापसी में तो हर तरफ से बाहर जाने का मार्ग बना हुआ है ! पैदल चलते हुए 15 मिनट में ही हम लोग निकास द्वार के पास पहुँच गए ! यहाँ से बाहर निकलते ही बाईं ओर एक रेस्टोरेंट है, जहाँ आपको अपने स्वाद अनुसार खाने के लिए भोजन के कई विकल्प मिल जाएँगे ! हमने अपने लिए छोले-भठूरे लिए और वहीं रखी हुई कुर्सियों पर बैठ कर खाने लगे, थोड़ी देर में अपना खाना ख़त्म करके समय देखा तो दोपहर के 3 बज रहे थे ! मतलब अभी भी हमारे पास काफ़ी समय था, और पुराना किला भी चिड़ियाघर के साथ ही है, हमने सोचा पुराने किले के साथ अन्याय क्यों करना !
जब यहाँ तक आ ही गए है तो इसे भी देखते हुए चलते है, क्या पता दोबारा यहाँ आने का कब मौका मिले ! चिड़ियाघर से बाहर निकलने पर दाईं ओर ही पुराने किले में जाने का मुख्य द्वार है और मुख्य द्वार से पहले यहाँ की टिकट खिड़की ! 5-5 रुपए के दो प्रवेश टिकट लेकर, मुख्य द्वार से होते हुए हमने किले में प्रवेश किया, अंदर जाने पर सामने ही एक पुरानी बावली है, जो अब बंद कर दी गई है ! प्राचीन समय में इन बावलियों में पानी इकट्ठा किया जाता था और समय पड़ने पर इन बावलियों का पानी नियमित रूप से प्रयोग में लाया जाता था. वैसे यहाँ किले में मौजूद हर चीज़ का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है ! बावली के बगल से होते हुए हम लोग किले के पिछले हिस्से में पहुँच गए, यहाँ से देखने पर दूर उँची-2 इमारतें दिखाई दे रही थी !
किले के पिछले हिस्से में ही एक सुरंग भी थी, इस सुरंग से होते हुए हम दोनों किले के दूसरे भाग में पहुँच गए, यहाँ से किले के उपरी भाग में जाने के लिए पत्थर की उँची-2 सीढ़ियाँ बनी थी, जिन्हें इस समय लोहे की ज़ालियाँ लगाकर बंद कर दिया गया है ! ऐसे ही काफ़ी देर तक किले में घूमने के बाद जब गर्मी बर्दाश्त से बाहर होने लगी तो हम दोनों किले से बाहर आकर अपने बस स्टॉप की ओर चल दिए ! बाहर आकर हम दोनों ने एक दूसरे से विदा ली, क्योंकि यहाँ से मैं तो प्रगति मैदान जाने वाली बस में बैठ गया जबकि प्रमोद गुड़गाँव जाने वाली बस का इंतज़ार करने के लिए वहीं बस स्टॉप पर खड़ा हो गया ! फिर प्रगति मैदान स्टॉप पर बस से उतरकर मैं तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन की ओर चल दिया !
यहाँ से मुझे पलवल जाने वाली ट्रेन पकड़नी थी, टिकट लेकर जब प्लेटफॉर्म पर पहुँचा तो पता चला कि ट्रेन के आने में अभी 20 मिनट का समय है ! गर्मी से मेरा बुरा हाल था, यहाँ स्टेशन पर तो चारों तरफ से गरम हवाओं के थपेड़े लग रहे थे और लू भी चल रही थी ! मैने अपने बैग से अपना अंगोछा निकाला और उसे पानी में भिगोकर अपना सिर ढक लिया ताकि गर्मी से थोड़ा निजात मिल सके ! फिर जब ट्रेन आई तो मैं ट्रेन में सवार होकर पलवल के लिए चल दिया, पौने सात बजे पलवल स्टेशन पहुँचा और सात बजे घर ! आज भी जब कभी इस यात्रा के बारे में सोचता हूँ तो मुस्कुरा उठता हूँ कि ऐसी गर्मी में भी भला कोई किले में घूमने जाता है !
Near India Gate |
India Gate, Delhi |
Delhi Zoo |
किले का प्रवेश द्वार (Entrance, Old Fort) |
Way to Baoli |
क्यों जाएँ (Why to go Old Fort): अगर ऐतिहासिक इमारतों के अलावा वन्य जीव देखने का शौक भी रखते है तो दिल्ली में स्थित चिड़ियाघर और इसके बगल में पुराना किला घूमने का कार्यक्रम बना सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Old Fort): आप साल भर किसी भी दिन यहाँ जा सकते है लेकिन अगर ठंडे मौसम में जाएँगे तो ज़्यादा अच्छा रहेगा ! शुक्रवार के दिन ये दोनों ही जगहें बंद रहती है इसलिए शुक्रवार को यहाँ ना जाएँ !
कैसे जाएँ (How to reach Old Fort): दिल्ली में स्थित पुराना किला और चिड़ियाघर देखने के लिए आप मेट्रो से आ सकते है यहाँ के सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन प्रगति मैदान और लोधी रोड (सीजीओ कॉंप्लेक्स) है ! दोनों ही स्टेशनो की दूरी यहाँ से 2 किलोमीटर है, मेट्रो स्टेशन से आप फीडर बस या ऑटो की सवारी का आनंद ले सकते है ! यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन तिलक ब्रिज है, चिड़ियाघर आने के लिए आप बस या निजी वाहन का उपयोग भी कर सकते है, यहाँ पार्किंग की उचित व्यवस्था है !
कहाँ रुके (Where to stay near Old Fort): अगर आप आस-पास के शहर से चिड़ियाघर या पुराना किला देखने आ रहे है तो शायद आपको रुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ! जो लोग कहीं दूर से दिल्ली भ्रमण पर आए है उनके रुकने के लिए दिल्ली में रुकने के बहुत विकल्प मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see near Old Fort): अगर दिल्ली भ्रमण पर निकले है तो दिल्ली में घूमने के लिए जगहों की कमी नहीं है आप लाल किला, जामा मस्जिद, राजघाट, हुमायूँ का मकबरा, लोधी गार्डन, इंडिया गेट, क़ुतुब मीनार, कमल मंदिर, अक्षरधाम, कालकाजी मंदिर, अग्रसेन की बावली, इस्कान मंदिर, छतरपुर मंदिर, और तुगलकाबाद के किले के अलावा अन्य कई जगहों पर घूम सकते है ! ये सभी जगहें आस-पास ही है आप दिल्ली भ्रमण के लिए हो-हो बस की सेवा भी ले सकते है या किराए पर टैक्सी कर सकते है ! बाकि मेट्रो से सफ़र करना चाहे तो वो भी एक अच्छा विकल्प है !
अगले भाग में जारी...
दिल्ली भ्रमण
- इंडिया गेट, चिड़ियाघर, और पुराना किला (Visit to Delhi Zoo and India Gate)
- क़ुतुब-मीनार में बिताए कुछ यादगार पल (A Day with Friends in Qutub Minar)
- अग्रसेन की बावली - एक ऐतिहासिक धरोहर (Agrasen ki Baoli, New Delhi)
- बहाई उपासना केंद्र - कमल मंदिर - (Lotus Temple in Delhi)
- सफ़दरजंग के मक़बरे की सैर (Safdarjung Tomb, New Delhi)
- लोधी गार्डन - सिकंदर लोदी का मकबरा (Lodhi Garden - Lodhi Road, New Delhi)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - पहली कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)
- दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले की सैर - दूसरी कड़ी (A Visit to Historical Monument of Delhi, Red Fort)