मंगलवार, 19 जुलाई 2011
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आज सुबह आराम से सोकर उठे, आज हमारा यहाँ मक्लॉडगंज में आख़िरी दिन था इसलिए हमें कोई जल्दबाज़ी नहीं थी ! इस यात्रा में तो त्रिऊंड जाने का समय नहीं मिला, पर ये निश्चय कर लिया था कि अगली बार यहाँ आए तो त्रिऊंड की चढ़ाई ज़रूर करेंगे ! उठने के बाद नित्य-क्रम से निवृत हुए और नहाने से पहले अपना सारा समान अपने-2 बैग में रख लिया, इसी बीच होटल वाले से सुबह का नाश्ता तैयार करने को भी कह दिया ! पालमपुर की कुछ जानकारी तो हमें पहले से थी और कुछ जानकारी हमने होटल वाले से ले ली, फिर वापस आकर जब तक हम नहा-धोकर तैयार हुए, हमारा नाश्ता भी तैयार हो चुका था ! नाश्ता करने के बाद होटल वाले का सारा हिसाब-किताब कर दिया, और अपना बैग लेकर मोनेस्ट्री के पास से होते हुए मक्लॉडगंज के मुख्य चौराहे की ओर चल दिए ! यहाँ की यात्रा काफ़ी बढ़िया रही, पर त्रिऊंड और मोनेस्ट्री के अलावा कुछ और जगहें हम दोनों नहीं घूम पाए, जिसका हमें काफ़ी दिन तक मलाल रहा !
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आज सुबह आराम से सोकर उठे, आज हमारा यहाँ मक्लॉडगंज में आख़िरी दिन था इसलिए हमें कोई जल्दबाज़ी नहीं थी ! इस यात्रा में तो त्रिऊंड जाने का समय नहीं मिला, पर ये निश्चय कर लिया था कि अगली बार यहाँ आए तो त्रिऊंड की चढ़ाई ज़रूर करेंगे ! उठने के बाद नित्य-क्रम से निवृत हुए और नहाने से पहले अपना सारा समान अपने-2 बैग में रख लिया, इसी बीच होटल वाले से सुबह का नाश्ता तैयार करने को भी कह दिया ! पालमपुर की कुछ जानकारी तो हमें पहले से थी और कुछ जानकारी हमने होटल वाले से ले ली, फिर वापस आकर जब तक हम नहा-धोकर तैयार हुए, हमारा नाश्ता भी तैयार हो चुका था ! नाश्ता करने के बाद होटल वाले का सारा हिसाब-किताब कर दिया, और अपना बैग लेकर मोनेस्ट्री के पास से होते हुए मक्लॉडगंज के मुख्य चौराहे की ओर चल दिए ! यहाँ की यात्रा काफ़ी बढ़िया रही, पर त्रिऊंड और मोनेस्ट्री के अलावा कुछ और जगहें हम दोनों नहीं घूम पाए, जिसका हमें काफ़ी दिन तक मलाल रहा !
रास्ते में किसी चौराहे पर लिया गया एक चित्र (A view from bus stop) |
मैने यहाँ पठानकोट से जोगिंदर नगर वाली टॉय ट्रेन में अभी तक सफ़र नहीं किया है, अगर मौका मिला तो कभी ये सफ़र भी करूँगा ! लगभग 2 घंटे के सफ़र के बाद हमारी बस पालमपुर पहुँची, यहाँ का बस अड्डा मुख्य बाज़ार के पास ही है, बस से उतरते हुए घड़ी में समय देखा तो दोपहर के 12 बजने वाले थे ! नीचे उतरकर हम दोनों अपने लिए एक कमरा देखने चल दिए, ताकि अपना सामान कमरे में रखकर आराम से पालमपुर घूम सके ! 2-3 होटल देखने के बाद हमें एक होटल पसंद आ गया, हमें यहाँ एक ही रात रुकना था इसलिए कमरे का पूरा किराया देकर अपना सारा सामान कमरे में रखा और फिर ताला लगाकर एक बैग में ज़रूरत का सामान लेकर पैदल ही चल दिए ! यहाँ बस स्टैंड के पास कुछ स्थानीय दुकानदारों से आस-पास घूमने की जगहों के बारे में पूछा तो लोग कहने लगे यहाँ तो ऐसा कुछ भी घूमने का नहीं है जिसे देखने तुम लोग दिल्ली से आए हो ! बस स्टैंड से ही उत्तर दिशा की ओर एक उँचा सा पहाड़ दिखाई दे रहा था, जिसके चारों तरफ घने बादल थे !
स्थानीय लोगों को थोड़ा और कुरेदने पर पता चला कि उस पहाड़ी के पास ही न्यूगल खड्ड (नहर) है, अगर जाना है तो वहाँ चले जाओ ! प्राप्त जानकारी के आधार पर हम दोनों पैदल ही मुख्य बाज़ार से होते हुए आगे उस खड्ड की ओर जाने वाले मार्ग पर चल पड़े ! बाज़ार से बाहर निकलने के बाद एक चौराहे पर कुछ जीप वाले खड़े दिखाई दिए, पूछने पर हमने कह दिया कि रास्ते में जो खड्ड आता है उसके पास ही हमें उतार देना ! जीप में बैठी सवारियों से जब हमने उस खड्ड और उसके आस-पास के जगहों की जानकारी लेनी चाही तो सभी लोग हमें हैरत भरी निगाहों से देखने लगे ! कि भला खड्ड में देखने के लिए ऐसा क्या है जो ये लोग दिल्ली से यहाँ पालमपुर आए है ! शायद दस रुपए प्रति सवारी किराया लगा, और पंद्रह मिनट बाद ही हम दोनों जीप से उतरकर सड़क के बाईं ओर जाने वाले एक कच्चे मार्ग पर चल दिए ! इसी मार्ग पर एक दुकान वाले से खाने पीने का थोड़ा सामान खरीदा और आस-पास की जानकारी भी ले ली !
फिर दुकानदार के बताए रास्ते पर पैदल ही उस खड्ड की ओर चल दिए, यहाँ पर हमसे थोड़ी ग़लती हुई, दरअसल इस खड्ड तक जाने के दो मार्ग है, एक मार्ग तो मुख्य सड़क से होकर ही है, और जल्दबाज़ी में जीप वाले ने हमें खड्ड से काफ़ी पहले ही उतार दिया था, जबकि दूसरा मार्ग ये था जिस पर हम अभी चल रहे थे ! ये मार्ग एक रिहायशी इलाक़े से होते हुए जाता है, और इस पर वाहनों की आवाजाही ना के बराबर थी ! जहाँ से हमने खाने-पीने का सामान लिया था, वहाँ से बमुश्किल 200 मीटर आगे ही चले होंगे कि हमें पानी के गिरने की आवाज़ सुनाई दी, हमें आभास हो गया कि खड्ड कहीं आस-पास ही है ! फिर आवाज़ को आधार बनाकर हम उसी दिशा में आगे बढ़ते रहे जहाँ से पानी के गिरने की आवाज़ आ रही थी, थोड़ा आगे बढ़ने पर हमने देखा कि करीब 60-70 फीट नीचे एक नहर बह रही है ! जिस स्थान पर हम खड़े थे वहाँ से खड्ड की दूरी का अंदाज़ा लगाना मुश्किल था पर मैं अपने अनुभव के आधार पर बता रहा हूँ !
हमने यहाँ से कुछ पत्थर नीचे भी फेंके जो खड्ड में गिरने से पहले काफ़ी देर तक हमें नीचे जाते दिखाई देते रहे ! यहाँ से अगर कोई नीचे गिरता तो उसके बचने की गुंजाइश कम ही थी ! इतनी उँचाई से भी हमें खड्ड में बहते पानी की कल-2 की आवाज़ साफ सुनाई दे रही थी, थोड़ी देर वहीं बैठ कर प्रकृति के नज़ारों का आनंद लेने के बाद हमने अपना सफ़र जारी रखा ! खड्ड के बहाव के विपरीत दिशा में चलने पर थोड़ी दूर जाकर हमें एक फार्म हाउस मिला, जिसमें काफ़ी सुंदर-2 फूल लगे थे ! यहीं से एक कच्चा रास्ता इस फार्म हाउस के पीछे से होता हुआ आगे खड्ड की ओर जाने वाले मार्ग को जुड़ रहा था ! हम इसी मार्ग पर आगे बढ़ते रहे, और रास्ते में कई जगह रुक-2 कर फोटो भी खींचते रहे ! इसी बीच हमारा सामना एक आवारा कुत्ते से भी हुआ, पर सारी मुश्किलों को पार करते हुए आख़िर में हम खड्ड में नीचे की ओर जाने वाली सीढ़ियों तक पहुँच ही गए !
ये सीढ़ियाँ बहुत चौड़ी और उँची-2 थी, जिनके एक तरफ तो लोहे के पाइप की रेलिंग लगी हुई थी, जबकि दूसरी तरफ दीवार थी ! मेरा अनुमान है कि सिंचाई विभाग के संबंधित अधिकारी ज़रूरत पड़ने पर इन्हीं सीढ़ियों से तकनीकी निरीक्षण के लिए खड्ड में नीचे जाते होंगे ! सीढ़ियाँ उतरकर हम लोग नीचे खड्ड में पहुँच गए, वैसे इस खड्ड की चौड़ाई तो काफ़ी थी पर इस समय खड्ड में पानी बहुत कम था ! अलग-2 धाराएँ खड्ड के अलग-2 हिस्सों में बह रही थी, मतलब एक धारा बह रही थी, फिर बीच में थोड़ा सूखा मैदान था, फिर दूसरी धारा बह रही थी और इसी तरह अनेकों धाराएँ ! जब खड्ड में खूब पानी होता होगा तो ये सारी धाराएँ आपस में मिल जाती होंगी, खड्ड में गोल-2 छोटे-बड़े काफ़ी पत्थर पड़े हुए थे, जो ये खड्ड पहाड़ों से आते हुए अपने साथ बहा कर लाती होगी ! यहाँ खड्ड में खड़े होकर खड्ड के बाहर किनारे से जाता हुआ मार्ग भी नहीं दिखाई दे रहा था !
मेरा कहने का मतलब ये है कि अगर इस समय हम दोनों यहाँ फँस भी जाते तो चिल्लाने पर एक तो हमारी आवाज़ बाहर तक नहीं जाने वाली थी और यहाँ नीचे तो हमारे सिवा कोई था ही नहीं जो ज़रूरत पड़ने पर हमें बचाने के लिए आता ! फिर वहीं खड्ड के एक किनारे हमें कुछ गाएँ घूमती हुई दिखाई दी, जो निश्चित तौर पर यहाँ नीचे पानी पीने के लिए आई थी, पर ये आई किस मार्ग से थी, इसका पता मैं भी नहीं लगा सका ! एक धारा को पार करके और दूसरी धारा से पहले खाली मैदान में जाकर हम दोनों बैठ गए, और वहाँ से आस-पास के नज़ारे देखने लगे ! यहाँ से उत्तर दिशा की ओर इसी खड्ड पर एक पुल निर्माण का कार्य भी चल रहा था, पुल बनकर तैयार हो चुका था जहाँ से अभी इक्का-दुक्का गाड़ियाँ गुजर रहीं थी ! ये खड्ड उत्तर से दक्षिण की ओर बह रही थी, खड्ड किनारे पड़े कुछ पत्थरों पर बैठकर पहले तो हमने हल्की पेट पूजा की और फिर खड्ड के पानी में पैर डालकर बैठ गए, जोकि बहुत ठंडा था !
बीच-2 में पानी का बहाव तेज भी हो जा रहा था, खड्ड में कहीं-2 तो गहराई भी काफ़ी ज़्यादा थी, ये बात हमें पानी में पत्थर डालकर महसूस हुई ! काफ़ी देर तक हम दोनों वहाँ ऐसे ही बैठ कर बातें करते रहे, और बहुत सारे पत्थरों को खड्ड के बहाव में फेंकते रहे ! पता नहीं ये क्या पागलपन था कि हम दोनों बेवकुफों की तरह खड्ड में पत्थर फेंके जा रहे थे, इस तरह ना तो पत्थर ख़त्म होने वाले थे और ना ही खड्ड का जल स्तर बढ़ने वाला था ! पर वहाँ धूप में बैठ कर पानी में पत्थर फेंकने में जो मज़ा आ रहा था वो मुझे अपने वातानुकूलित दफ़्तर में बैठ कर भी नहीं आता ! फिर धीरे-2 मौसम खराब होने लगा, थोड़ी देर तक तो हमने खराब मौसम की परवाह नहीं की, लेकिन जब बारिश भी होने लगी और खड्ड का जलस्तर धीरे-2 बढ़ने लगा, शायद दूर पहाड़ी पर कहीं तेज बारिश हो रही थी जिसकी वजह से खड्ड का जलस्तर बढ़ रहा था ! बारिश के दौरान नदियों का जलस्तर बढ़ने से होने वाली घटनाओं के बारे में हम पहले पढ़ और सुन भी चुके थे इसलिए बारिश शुरू होने पर हमने खड्ड से बाहर जाना ही उचित समझा !
हमें लगा क्या पता खड्ड में एकदम से पानी आ जाए और फिर हमें यहाँ से निकलने का मौका भी ना मिले, इसलिए बेहतर है कि समय रहते ही सुरक्षित स्थान पर पहुँच जाया जाए ! खड्ड से बाहर आते-2 हम दोनों अच्छी तरह से भीग चुके थे, कैमरा और दूसरा ज़रूरी सामान हमने एक थैली में लपेट कर पहले ही बैग में रख लिया था ! ऐसे बेपरवाह होकर घूमने में वाकई जो मज़ा था वो मुझे आज तक किसी और यात्रा में शायद ही मिला हो ! मुख्य सड़क पर आकर हमने एक मोबाइल की दुकान में शरण ली और फिर बारिश रुकने पर हम वापिस पालमपुर जाने के लिए एक जीप में बैठ गए ! बारिश के कारण मौसम काफ़ी ठंडा हो गया था और हम दोनों तो भीग भी चुके थे इसलिए अब जलेबी खाने का मन हुआ, जीप से उतरकर दोनों एक मिठाई की दुकान में जलेबी खाने के लिए घुस गए ! हालाँकि, यहाँ की जलेबी ज़्यादा स्वादिष्ट तो नहीं थी पर स्वाद के लिए हमने तो चख ही ली !
जब हम पालमपुर आए थे तो हमारा विचार आज रात यहीं रुकने का था, पर जब यहाँ घूमने के लिए कुछ था ही नहीं तो हमने सोचा यहाँ रुक कर कोई फ़ायदा नहीं है ! जलेबी खाकर सीधे यहाँ के बस अड्डे पर पहुँचे, जहाँ से हमने दिल्ली जाने वाली बस के बारें में पता किया, नोयडा के लिए 6 बजकर 30 मिनट पर चलने वाली बस को आधार बनाकर हम दोनों वापस अपने होटल की ओर चल दिए ! अभी शाम के 5 बज रहे थे और हमारे होटल से बस स्टैंड की दूरी भी मात्र 10 मिनट की थी ! होटल पहुँचकर होटल वाले को हमने इस बात से अवगत करा दिया कि हम आज शाम को ही यहाँ से निकल जाएँगे, सारा समान तो पहले से ही बैग में पैक था ! फिर हम दोनों अपने होटल की छत पर जाकर बैठ गए और यहाँ से पालमपुर के खूबसूरत नज़ारों का आनंद लेने लगे ! यहाँ पर मौसम ठीक था और इस समय भी ठीक-ठाक धूप थी, फिर 6 बजे अपने होटल से निकलकर बस स्टैंड के लिए चल दिए !
बस स्टैंड पहुँचे तो नोयडा जाने की बस तैयार खड़ी थी, बस में चढ़कर हमने अपने लिए एक-2 सीट ले ली, और थोड़ी देर बाद बस चल पड़ी ! हरे-भरे खेतों से होते हुए बस पालमपुर से आगे बढ़ी, रास्ते में एक जगह टिकट चेकिंग के लिए बस रुकी भी ! यहाँ से आगे बढ़ी तो कुछ रिहायशी इलाक़ों से होते हुए बस ने अपना सफ़र जारी रखा ! अब हम एक मैदानी इलाक़े में थे लेकिन फिर भी बाहर दिखाई दे रहे दृश्य देखकर मन को राहत मिल रही थी ! धीरे-2 अंधेरा हो गया और नज़ारे दिखाई देने भी बंद हो गए, मैने झपकी लेनी शुरू कर दी ! रास्ते में एक होटल पर बस खाने के लिए भी रुकी जहाँ शशांक ने तो खाना खाया, पर मैं खाली पेट ही रहा ताकि आराम से सफ़र कर सकूँ ! सुबह 6 बजे हमारी बस दिल्ली पहुँच गई, शशांक पलवल जाने वाली दूसरी बस पकड़ने के लिए आइएसबीटी उतर गया और मैं इसी बस में नोयडा जाने के लिए बैठा रहा !
सुबह 6 बजकर 35 मिनट पर बस ने मुझे नोयडा के सेक्टर 12-22 के चौराहे पर उतार दिया, जहाँ से मेरा नोयडा वाला फ्लैट पास ही था ! यहाँ से एक ऑटो में सवार होकर मैं अपने फ्लैट पर पहुँचा, दरवाजा अभी बंद ही था, मतलब जीतू अभी सोकर नहीं उठा ! नींद में जीतू को उठना तो जंग जीतने जैसा है लेकिन दो साल एक ही फ्लैट में रहने के कारण मुझे उसकी आदतों का भी पता था ! काफ़ी मशक्कत के बाद उठकर उसने दरवाजा खोला, मैने अपना सामान एक तरफ रखा, और नित्य क्रम में लग गया ! फिर थोड़ी देर बाद मैं नहा-धोकर तैयार हुआ और अपने दफ़्तर चला गया ! इसी के साथ ये सफ़र ख़त्म होता है जल्द ही आपको एक नए सफ़र पर लेकर चलूँगा !
रास्ते का एक और चित्र (Another view on the way to Palampur, Himachal Pradesh) |
The Greenery of Himachal Pradesh |
शशांक के बगल में दिखाई देता खड्ड |
Near Khadd, Palampur |
फार्म हाउस वाले मार्ग पर लिया एक चित्र |
फार्म हाउस वाले मार्ग पर लिया एक चित्र |
On the way to Khadd, Palampur |
पीछे दिखाई देता खड्ड |
खड्ड तक जाने वाली सीढ़ियाँ |
Khadd in Palampur |
खड्ड का एक दृश्य (Amazing view of Khadd) |
खड्ड में खड़े होकर देखने पर |
खड्ड में विश्राम करते हुए |
खड्ड पर बना पुल (Bridge on the Khadd, Palampur) |
पत्थर फेंकते हुए (Some Physical Effort in Khadd, Palampur) |
Relaxing somewhere in Palampur |
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
धर्मशाला - मक्लॉडगंज यात्रा
- मक्लॉडगंज का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Mcleodganj)
- भाग्सू नाग झरने में मस्ती (Fun in Bhagsu Naag Waterfall)
- कांगड़ा घाटी में बिताए कुछ यादगार पल (Time Spent in Kangra Valley)
- मक्लॉडगंज चर्च और धमर्शाला स्टेडियम (A Day in HPCA Stadium, Dharamshala)
- मक्लॉडगंज से पालमपुर की बस यात्रा (A Road Trip to Palampur)
nice location...good pics of palampur
ReplyDeleteThank you Jatin...
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