शनिवार, 16 जुलाई 2011
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम दिल्ली से ऊना होते हुए धर्मशाला पहुँचे ! रात को होटल ना मिलने के कारण हम बस अड्डे पर ही सो गए ! अब आगे, जब उजाला हुआ तो हम दोनों धर्मशाला से मक्लॉडगंज जाने वाले मार्ग पर आकर खड़े हो गए, यहाँ एक स्थानीय युवक से पूछने पर पता चला कि यहीं से मक्लॉडगंज जाने के लिए नियमित अंतराल पर बसें मिलती है ! एक विचार तो यहाँ धर्मशाला में ही होटल लेने का बना, पर उस युवक ने ही हमें बताया कि यहाँ कमरा लेने का कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि घूमने की ज़्यादातर जगहें उपर मक्लॉडगंज में ही है ! हमने भी सोचा कि जब सारी जगहें उपर ही है तो यहाँ कमरा लेने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता, एक दिन समय निकालकर आएँगे और यहाँ नीचे धर्मशाला भी घूम जाएँगे ! सात बजे के आस-पास हमें इस मार्ग पर एक बस आती दिखाई दी, जब वो पास आकर रुकी तो पता चला कि यही बस मक्लॉडगंज जाएगी !
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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम दिल्ली से ऊना होते हुए धर्मशाला पहुँचे ! रात को होटल ना मिलने के कारण हम बस अड्डे पर ही सो गए ! अब आगे, जब उजाला हुआ तो हम दोनों धर्मशाला से मक्लॉडगंज जाने वाले मार्ग पर आकर खड़े हो गए, यहाँ एक स्थानीय युवक से पूछने पर पता चला कि यहीं से मक्लॉडगंज जाने के लिए नियमित अंतराल पर बसें मिलती है ! एक विचार तो यहाँ धर्मशाला में ही होटल लेने का बना, पर उस युवक ने ही हमें बताया कि यहाँ कमरा लेने का कोई फ़ायदा नहीं है क्योंकि घूमने की ज़्यादातर जगहें उपर मक्लॉडगंज में ही है ! हमने भी सोचा कि जब सारी जगहें उपर ही है तो यहाँ कमरा लेने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता, एक दिन समय निकालकर आएँगे और यहाँ नीचे धर्मशाला भी घूम जाएँगे ! सात बजे के आस-पास हमें इस मार्ग पर एक बस आती दिखाई दी, जब वो पास आकर रुकी तो पता चला कि यही बस मक्लॉडगंज जाएगी !
होटल के कमरे का दृश्य (A view from our Hotel Room) |
चर्च को पार करने के थोड़ी देर बाद ही हम लोग मक्लॉडगंज के मुख्य चौराहे पर पहुँच गए ! यहाँ का बस अड्डा ज़्यादा बड़ा नहीं है एक निर्माणाधीन इमारत की छत की तरह लगता है यहाँ का बस अड्डा ! अब तो फिर भी इसका काफ़ी विस्तार कर दिया गया है ! बस से उतरकर हम दोनों अपने लिए कमरा ढूँढने में लग गए ! सबसे पहले हम लोग भग्सू नाग मंदिर जाने वाले मार्ग पर कमरा ढूँढने के लिए गए, मुख्य बाज़ार से थोड़ा सा आगे निकलकर हमें एक कमरा पसंद तो आया पर उसका किराया कुछ ज़्यादा ही था और ये कमरा था भी दूसरी मंज़िल पर, इसलिए यहाँ रुकना ठीक नहीं लगा ! वहाँ से वापस मक्लॉडगंज के मुख्य चौराहे पर आ गए और इस बार मोनेस्ट्री वाले मार्ग की ओर बढ़ गए ! यहाँ एक दो होटलों में कमरा देखने के बाद हमें एक होटल पसंद आ गया, हालाँकि, ये होटल मुख्य बाज़ार से 800 मीटर दूर और काफ़ी अंदर था, पर यहाँ से मोनेस्ट्री काफ़ी नज़दीक थी !
पूछने पर पता चला कि होटल का किराया भी ज़्यादा नहीं था, इसलिए मैने बिना देर किए इस कमरे के लिए हामी भर दी ! शशांक मोनेस्ट्री के पास ही सारा सामान लेकर मेरा इंतज़ार कर रहा था जब मैं ये होटल देखने मोनेस्ट्री से अंदर की तरफ आया ! पहाड़ी क्षेत्रों में सामान लेकर होटल ढूँढना काफ़ी मुश्किल काम है, कमरा मिल जाने पर मैने उसे फोन करके होटल में ही आने के लिए कह दिया ! जब तक शशांक होटल पहुँचा, मैने पेशगी में कुछ रुपए देकर होटल में रुकने की कागज़ी कार्यवाही भी पूरी कर ली, शशांक ने देखा तो उसे भी ये कमरा पसंद आ गया ! कमरे में जाकर हमने अपना सामान एक तरफ रखा और सोने के लिए बिस्तर पर चले गए, रात भर नींद ना पूरी होने के कारण हमें थकान काफ़ी हो गई थी, इसलिए बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ गई ! नींद इतनी भयंकर थी कि जब शशांक ने मुझे जगाया तो मुझे ऐसा लगा जैसे अभी तो सोया हूँ, मुझे उठाने से पहले शशांक तो नहा-धोकर तैयार भी हो चुका था !
उठने के बाद भी मैं काफ़ी देर तक बिस्तर पर ही लेटा रहा, इस पर शशांक बोला कि भाई अगर सोया ही रहा तो फिर घूमने कब चलेगा ! वो बोला अभी उठ कर तैयार हो ले, वैसे भी 10 तो बज ही चुके है, अपनी नींद रात को पूरी कर लेना ! उसके बाद तो मैं भी उठ कर नहा-धोकर तैयार हो गया और फिर लगभग 11 बजे से दस मिनट पहले ही हम लोग अपने कमरे से बाहर भाग्सू नाग झरने की ओर चल दिए ! हालाँकि, हम दोनों धर्मशाला पहली बार ही आए थे पर फिर भी यहाँ घूमने वाली जगहों के बारे में आवश्यक जानकारी अपने साथ लाए थे, ताकि कोई जगह हमसे रह ना जाए ! होटल से निकलकर वापस मक्लॉडगंज के मुख्य चौराहे से होते हुए हम दोनों भाग्सू नाग मंदिर वाले मार्ग पर चल दिए ! यहाँ रास्ते में सड़क के किनारे ही कई होटल और खाने-पीने के सामान की दुकानें थी ! झरने की ओर जाते हुए मार्ग में एक जगह से तो पूरा मक्लॉडगंज दिखाई देता है, रास्ते में जहाँ कहीं भी सुंदर नज़ारे दिखाई देते, हम लोग उसे अपने कैमरे में क़ैद करना नहीं भूलते !
अभी हम भाग्सू नाग मंदिर तक भी नहीं पहुँचे थे कि बारिश शुरू हो गई, और हम दोनों सिर छुपाने के लिए एक चाय की दुकान में घुस गए ! यहाँ हम बारिश के रुकने का इंतज़ार करने लगे, इस दौरान समय बिताने के लिए हमने यहाँ चाय के साथ मैगी भी खा ली ! जब तक हमने चाय और मैगी ख़त्म की बारिश भी रुक चुकी थी ! भारतवर्ष में चेरापूंजी के बाद धर्मशाला में ही सबसे ज़्यादा बारिश होती है, धर्मशाला में अक्सर ऐसा होता है पल भर में बारिश और फिर अगले ही पल अच्छी धूप खिल जाती है ! भाग्सू नाग मंदिर से थोड़ा पहले एक छोटा सा बाज़ार है, जहाँ खाने-पीने से लेकर, कपड़े, और ज़रूरत का बाकी समान भी मौजूद है ! बाज़ार में कुछ लोग चाट-पकोड़ी का स्वाद ले रहे थे तो कुछ लोग गोल-गप्पे गटकने में लगे थे, वहीं कुछ अन्य लोग कपड़ों की खरीददारी कर रहे थे ! इस बाज़ार से होते हुए हम दोनों मंदिर के मुख्य द्वार तक पहुँच गए, भाग्सू नाग मंदिर के सामने पानी का एक छोटा सा कुंड है जिसमें लोग नहाने का आनंद ले रहे थे !
हम दोनों ने भी थोड़ा समय कुंड के पास व्यतीत किया, अब हमें तैरना तो आता नहीं था इसलिए एक सुरक्षा ट्यूब लेकर पानी में उतरे ! कुंड का पानी एकदम ऐसा जैसे बर्फ पिघला के डाल दी हो, पानी में घुसते ही शरीर सुन्न हो जाता है ! खैर, यहाँ से थोड़ा आगे बढ़े तो एक द्वार को पार करने के बाद नज़ारा एकदम अलग था, इधर कुंड के पास खड़े होकर तो लग ही नहीं रहा था कि द्वार के उस पास एक सुंदर नज़ारा हमारा इंतज़ार कर रहा होगा ! यहाँ की सुंदरता देख कर एक बार तो हमें ऐसा लगा कि शायद हम किसी दूसरी ही दुनिया में आ गए है ! दूर तक दिखाई देते हरे-भरे पहाड़, और उस पहाड़ से गिरता हुआ एक झरना बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे ! पहाड़ी से गिरता हुआ झरने का पानी नीचे घाटी में बहता हुआ यहाँ से होकर आगे की ओर जा रहा था, वहीं पहाड़ी के किनारे-2 झरने तक जाने का एक पक्का मार्ग बना हुआ है !
अधिकतर लोग इसी मार्ग से झरने की ओर जा रहे थे, शुरुआत में तो हम भी इसी मार्ग पर चले ! पर हम लोगों को इस मार्ग से जाने पर कुछ भी रोमांच नहीं लग रहा था इसलिए थोड़ी देर तक इस मार्ग पर चलने के बाद हम दोनों नीचे घाटी में उतर गए और बहते हुए पानी की विपरीत दिशा में चलने लगे ! जैसे ही हमने पानी में पैर रखा, हमें एक अजीब सी ठंडक का एहसास हुआ, झरने का पानी बहुत ठंडा था, जो उपर पहाड़ी पर जमी बर्फ से पिघल कर आ रहा था ! इस पानी में चलकर घाटी से होते हुए झरने की ओर जाना बहुत रोमांचकारी लग रहा था, इस समय हम लोग सभी के आकर्षण का केंद्र भी बने हुए थे, हमारी देखा-देखी कुछ और युवक भी मुख्य मार्ग को छोड़ कर नीचे घाटी में ही उतर गए और हमारे पीछे-2 आने लगे ! हालाँकि, आगे जाने पर हमें कुछ अन्य लोग घाटी वाले मार्ग से वापस आते भी दिखे जो निश्चित तौर पर झरने से घूम कर वापस आ रहे थे ! बीच में जगह-2 रुकते-रुकाते हम दोनों ने झरने की ओर अपना सफ़र जारी रखा !
घाटी वाले मार्ग पर ही बीच में एक बड़े पत्थर के नीचे रुककर हमने पहले थोड़ा जलपान और फिर आराम भी किया ! नीचे घाटी में से उपर देखने पर बहुत ही सुंदर दृश्य दिखाई दे रहे थे ! काफ़ी देर की मेहनत के बाद हम दोनों झरने तक पहुँच ही गए, जहाँ पहले से ही काफ़ी भीड़ थी, बहुत से लोग यहाँ झरने के नीचे बने पानी के कुंड में नहाने में लगे थे ! हम लोग भी झट से अपना सामान एक तरफ रखकर झरने के नीचे नहाने के लिए कूद गए ! झरने के पास बना पानी का कुंड काफ़ी गहरा था और पानी की धार भी बहुत तेज़ी से नीचे गिर रही थी ! 10 मिनट में ही हमें सर्दी लगनी लगी, फिर पानी से बाहर निकलकर वहीं एक बड़े से पत्थर पर पैर लटका कर बैठ गए ! ठंडे पानी में नहाने के कारण चेहरे पर एक नई चमक दिखाई दे रही थी, काफ़ी देर तक झरने के नीचे मस्ती करने के बाद हम दोनों बाहर आ गए और वहीं झरने के पास बनी दुकान से आमलेट, और चाय लिया !
फिर बैठ कर बातें करते हुए प्रकृति के इस रूप को निहारते रहे, लगभग एक घंटे बाद हमने वापसी की राह पकड़ी ! वापस आते हुए हम पहाड़ी के साथ-2 बने हुए पक्के मार्ग से आए, और फिर भाग्सू नाग मंदिर से बाहर वाले बाज़ार से थोड़ी खरीददारी भी की ! मक्लॉडगंज चौराहे तक पहुँचते-2 अंधेरा हो गया था और मौसम में ठंडक भी बढ़ गई थी, फिर यहीं चौराहे के पास लगी कुछ लोहे की कुर्सियों पर हम दोनों ने बैठ कर कुल्फी का लुत्फ़ उठाया और अपने अगले दिन के कार्यक्रम पर चर्चा भी की ! कभी-2 सर्दी के मौसम में कुल्फी खाना बहुत अच्छा लगता है, 8 बजे के आस-पास हम दोनों वापस अपने होटल की तरफ चल दिए ! वैसे, मक्लॉडगंज में तो रात में काफ़ी देर तक रौनक रहती है, पर मोनेस्ट्री जाने वाले मार्ग की दुकानें अंधेरा होते ही बंद हो जाती है, जिस वजह से यहाँ सुनसान रहता है ! हम लोगों ने यहाँ पहुँचकर अपना टॉर्च जला लिया और थोड़ी देर में ही अपने होटल पहुँच गए !
होटल में घुसते ही हम रात्रि के खाने का ऑर्डर देते हुए अपने कमरे में चले आए ! थोड़ी देर बाद हमारा खाना तैयार हो गया और हमारे कमरे में ही परोस दिया गया ! आज खाने में हमने चपातियों के साथ कढ़ाई चिकन का ऑर्डर दिया था ! इस होटल का खाना बहुत स्वादिष्ट था ! फिर खाना खाकर हम दोनों सोने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए, थकान ज़्यादा होने के कारण बिस्तर पर जाते ही हमें नींद आ गई !
होटल की छत से दिखाई देता नज़ारा (A view from Hotel terrace) |
ना जाने शशांक क्या दिखा रहा था |
होटल की छत से दिखाई देता नज़ारा |
मक्लॉडगंज बाज़ार का एक दृश्य (Somewhere in Mcleodganj Market) |
झरने की ओर जाते समय लिया गया एक चित्र, पीछे मक्लॉडगंज शहर (A view of Mcleodganj) |
झरने का पहला दृश्य (A Glimpse of Bhagsu Naag Waterfall) |
झरने की ओर जाने का पक्का मार्ग (Way to Bhagsu Naag Waterfall) |
घाटी वाले मार्ग के एक दृश्य |
एक फोटो मेरा भी हो जाए |
राह में विश्राम करते हुए |
Streams from Bhagsu Naag Waterfall |
बड़े पत्थर के नीचे बैठा शशांक |
घाटी से दिखाई देता एक नज़ारा (A view from valley) |
भू-स्खलन से खिसक कर नीचे आए पत्थर (Land Sliding) |
घाटी से दिखाई देता एक और दृश्य |
Another view from the Valley |
Trail to Bhagsu Naag Waterfall |
झरने के पास से दिखाई देती घाटी (A view from Waterfall) |
भाग्सू नाग झरना (Bhagsu Naag Waterfall, Mcleodganj) |
भाग्सू नाग झरना (Bhagsu Naag Waterfall) |
झरने के नीचे शशांक |
झरने से वापसी आते समय |
झरने से वापसी आते समय |
क्यों जाएँ (Why to go Dharmshala): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप धर्मशाला-मक्लॉडगंज का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, किले, चर्च, स्टेडियम, और पहाड़ शामिल है ! ट्रेकिंग के शौकीन लोगों के लिए कुछ बढ़िया ट्रेक भी है !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कब जाएँ (Best time to go Dharmshala): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए धर्मशाला जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में आपको बढ़िया बर्फ मिल जाएगी !
कैसे जाएँ (How to reach Dharmshala): दिल्ली से धर्मशाला की दूरी लगभग 478 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से धर्मशाला की दूरी महज 90 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से धर्मशाला के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी धर्मशाला जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से धर्मशाला पहुँचने में 9-10 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा पठानकोट से बैजनाथ तक टॉय ट्रेन भी चलती है जिसमें सफ़र करते हुए धौलाधार की पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! टॉय ट्रेन से पठानकोट से कांगड़ा तक का सफ़र तय करने में आपको साढ़े चार घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Dharmshala): धर्मशाला में रुकने के लिए बहुत होटल है लेकिन अगर आप धर्मशाला जा रहे है तो बेहतर रहेगा आप धर्मशाला से 10 किलोमीटर ऊपर मक्लॉडगंज में रुके ! घूमने-फिरने की अधिकतर जगहें मक्लॉडगंज में ही है धर्मशाला में क्रिकेट स्टेडियम और कांगड़ा का किला है जिसे आप वापसी में भी देख सकते हो ! मक्लॉडगंज में भी रुकने और खाने-पीने के बहुत विकल्प है, आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Dharmshala): धर्मशाला में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन अधिकतर जगहें ऊपरी धर्मशाला (Upper Dharmshala) यानि मक्लॉडगंज में है यहाँ के मुख्य आकर्षण भाग्सू नाग मंदिर और झरना, गालू मंदिर, हिमालयन वॉटर फाल, त्रिऊँड ट्रेक, नड्डी, डल झील, सेंट जोन्स चर्च, मोनेस्ट्री और माल रोड है ! जबकि निचले धर्मशाला (Lower Dharmshala) में क्रिकेट स्टेडियम (HPCA Stadium), कांगड़ा का किला (Kangra Fort), और वॉर मेमोरियल है !
अगले भाग में जारी...
धर्मशाला - मक्लॉडगंज यात्रा
- मक्लॉडगंज का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Mcleodganj)
- भाग्सू नाग झरने में मस्ती (Fun in Bhagsu Naag Waterfall)
- कांगड़ा घाटी में बिताए कुछ यादगार पल (Time Spent in Kangra Valley)
- मक्लॉडगंज चर्च और धमर्शाला स्टेडियम (A Day in HPCA Stadium, Dharamshala)
- मक्लॉडगंज से पालमपुर की बस यात्रा (A Road Trip to Palampur)
धर्मशाला से मैक्लॉडगंज के लिए छोटी गाड़ियाँ भी चलती हैं, मै जब गया था तब किराया पाँच रुपए था। मैक्लॉडगंज अच्छी जगह है। यहीं से भग्सुनाग को रास्ता जाता है।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने ललित जी, छोटी गाड़ियाँ भी चलती है इस मार्ग पर ! छोटी बसें, जीपें वगेरह !
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