दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

बात जुलाई की है जब सूर्य देव खूब आग बरपा रहे थे, बारिश शुरू हो चुकी थी पर फिर भी गर्मी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी ! सम्पूर्ण उत्तर भारत में गर्मी से बुरा हाल था, या यूँ कहिए कि पूरा उत्तर भारत गर्मी से झुलस रहा था ! ऐसे में मन हुआ कि इस गर्मी से राहत पाने के लिए कुछ दिन कहीं ठंडी जगह पर घुमक्कड़ी कर ली जाए ! फिर सोचा कि ऐसे मौसम में कहाँ जाया जाए, क्यूंकि अखबारों में रोज़ पढने को मिल रहा था कि बारिश से पहाड़ो पर जीवन अस्त व्यस्त हो गया है। बारिश के मौसम में कहीं बादल फटने की खबर आ रही थी तो कहीं नदिया उफान पर चल रही थी ! यही सोच कर मन असमंजस में था कि इस मौसम में घूमने जाना ठीक रहेगा या नहीं ! सोचते-2 कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं चला, और जब नींद खुली तो सुबह के 6 बज रहे थे ! मैं जल्दी से उठ कर नहा-धोकर तैयार होने के बाद मोटरसाइकल लेकर अपने दफ़्तर के लिए निकल पड़ा !अभी मुश्किल से आधे रास्ते ही पहुँचा था कि तभी मेरा फोन बजने लगा, सच कहूँ अगर आप कहीं जाम में फँसे हो, और आपका फोन बजने लगे तो उठाने का बिल्कुल भी मन नहीं होता !

train to pathankot
दिल्ली से चलते समय
एक बार तो फोन बजकर बंद हो गया, पर फिर जब ये दोबारा बजने लगा तो मुझे मोटरसाइकल रोक कर देखना ही पड़ा, कि कौन है जो मुझे बार-2 फोन किए जा रहा है ! फोन उठाने पर पता चला ये शशांक था, उसने पूछा यार चल कहीं घूमने चले क्या ? मैने कहा यार मेरे मन में भी कहीं घूमने जाने का ही विचार चल रहा था अभी तो मैं रास्ते में हूँ दफ़्तर पहुँच कर तुझसे बात करता हूँ ! फोन काटने के बाद मैं फिर से अपने दफ़्तर की ओर चल दिया ! बस फिर तो दफ़्तर पहुँचते ही मैंने इंटरनेट पर उत्तर भारत में घूमने की जगह तलाशना शुरू कर दिया ! काफी खोजबीन के बाद डलहौज़ी जाने का मन हुआ, पर सब कुछ मेरी इच्छा पर नहीं था, इस यात्रा पर मेरे अलावा कुछ और मित्र भी जा रहे थे और किसी भी स्थान को चुनने से पहले उन लोगों की सहमति भी ज़रूरी थी ! जब बाकी लोगो को मैंने डलहौज़ी के बारे में बताया तो सबने ही डलहौज़ी जाने के लिए हामी भर दी ! 

योजना के मुताबिक हम दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाने वाले थे और पठानकोट से आगे की यात्रा हम बस या टैक्सी से करने वाले थे ! इस यात्रा पर हम चार लोग मैं, शशांक, विपुल, और हितेश दस दिनों के लिए जा रहे थे, 13 जुलाई 2012 यात्रा शुरू करने का दिन निर्धारित हुआ ! यात्रा शुरू करने में बमुश्किल एक सप्ताह ही बचा था इसलिए जाने की तैयारियां ज़ोर-शोर से शुरू हो गई ! निर्धारित दिन यानि शुक्रवार की शाम को हम सभी यहाँ की गर्मी से राहत पाने की उम्मीद लिए हिमाचल की ओर निकल पड़े ! बाकी तीनों लोग तो पलवल से आने वाले थे, जबकि मैं नोयडा स्थित अपने दफ़्तर से निकलकर मेट्रो से सीधा पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गया ! जब मैं रेलवे स्टेशन पहुँचा तो साढ़े सात बज रहे थे और अभी तक मेरे तीनों साथी यहाँ नहीं पहुँचे थे, 8 बजे के आसपास वो लोग भी स्टेशन पर पहुँच गए ! हमारी ट्रेन धौलाधार एक्सप्रेस पुरानी दिल्ली से रात 10 बजे की थी पर हम लोग डलहौज़ी जाने के लिए इतने उत्सुक थे कि हम सभी रात को 8 बजे ही स्टेशन पर पहुँच गए ! 

थोड़ा समय तो हमने प्लेटफार्म पर घूम कर व्यतीत किया और फिर वहीं स्टेशन पर बनी एक सीट पर बैठ कर रात्रि का भोजन किया ! अभी भी गाड़ी आने में 1 घंटा शेष था, समय बिताने के लिए हम बैठकर गप्पे मारने लगे, और सच कहूँ समय काटने के लिए इससे अच्छा कोई दूसरा उपाय भी नहीं था ! देखते ही देखते कब 1 घंटा बीत गया, पता भी नहीं चला, जब हमारी ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हुई तब पता चला कि 10 बज गए है ! हमारी टिकट कन्फर्म थी इसलिए हमें आरक्षण तालिका देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी, हम लोग ट्रेन में घुसे और फटाफट अपनी सीट पर पहुँच गए ! रास्ते में खाने-पीने का थोड़ा सामान हम अपने साथ लाए थे और कुछ सामान हमने वहीं प्लेटफॉर्म से ले लिया ! ट्रेन में बैठकर हम सब यहाँ-वहाँ की बातें करने लगे, ट्रेन अपने निर्धारित समय पर यहाँ से चल दी ! बातें करते हुए कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला, सुबह जब नींद खुली तो ट्रेन जालंधर से आगे निकल चुकी थी ! पठानकोट आने में अभी काफी समय था पर डलहौज़ी के बारे में सोच कर ही मन रोमांचित हो रहा था ! 

डलहौज़ी के बारे में वैसे तो बहुत पढ़ चुका था और अपने दोस्तों से भी काफी सुना था, पर मन ये सोचकर खुश हो रहा था कि आज तो मैं भी डलहौज़ी की खूबसूरती को अपनी आँखों से देखूंगा ! इसी उधेड़-बुन में कब वक़्त गुजर गया पता ही नहीं चला और ट्रेन पठानकोट पहुँच गई ! समय देखा तो सुबह के आठ बज रहे थे, हम सबने अपना-2 सामान उठाया और ट्रेन से नीचे उतरकर स्टेशन से बाहर की ओर चल दिए ! स्टेशन से बाहर निकलते ही हमने एक ऑटो वाले से पठानकोट बस स्टैंड के बारे में पूछा ! वैसे तो आप बस स्टैंड जाने के लिए रेलवे स्टेशन से ऑटो या रिक्शा ले सकते है, पर दूरी ज़्यादा ना होने के कारण हम लोग तो पैदल ही चल दिए ! स्टेशन से बस स्टैंड की दूरी लगभग 500 मीटर होगी, दस मिनट की पद यात्रा करके हम लोग बस स्टैंड पहुँच गए ! वहां पहुँच कर पूछताछ से पता चला कि डलहौज़ी जाने के लिए अगली बस सुबह 9 बजे की है ! 9 बजने में अभी काफ़ी समय बाकी था, इसलिए हम सभी बस स्टैंड परिसर में घूमने के बाद एक पत्थर के चबूतरे पर बैठ गए ! 

बस के आते ही हम सभी उसमें सवार हो गए और डलहौज़ी जाने की चार टिकटें ले ली, पठानकोट से डलहौज़ी जाने की प्रति व्यक्ति 70 रूपये की टिकट थी ! फिर जब थोड़ी देर बाद बस ने चलना शुरू किया तो 15-20 मिनट के बाद सड़क के दोनों ओर अद्भुत नज़ारे दिखाई देने शुरू हो गए, जो काफ़ी देर तक दिखाई देते रहे ! चारों तरफ हरियाली देख कर मन खुश हो गया, ऐसी हरियाली अपने यहाँ तो बमुश्किल ही दिखाई देती है ! कहीं ऊँचे-2 पहाड़, तो कहीं घने जंगल, कहीं बलखाती सड़क तो कहीं पहाड़ों पर मेंढ़नुमा खेत, पर एक बात जो मुझे बहुत अच्छी लगी, वो था यहाँ का शांत वातावरण, जिसके लिए हम इतनी दूर से यहाँ आए थे ! जैसे-2 डलहौज़ी की दूरी कम होती जा रही थी वैसे-2 मौसम भी ठंडा होता जा रहा था, पठानकोट में जहाँ सुबह के समय ही हमें गर्मी लग रही थी वहीं यहाँ दोपहर होने पर भी मौसम काफ़ी ठंडा लग रहा था ! रास्ते में बहुत से खुबसूरत नज़ारे देखने को मिले, कुछ तो हमने अपने कैमरे में भी कैद किए और कुछ को बस आँखों से ही देखा ! 

फिर एक जगह सड़क के किनारे-2 कुछ स्थानीय युवक टोकरी में रखकर आम बेच रहे थे, वो आम बहुत ही छोटे थे और देखने में भी काफ़ी अलग लग रहे थे ! ऐसे आम हमने अपने शहर में तो कभी नहीं देखे थे, रास्ते में जब एक जगह बस रुकी तो ऐसे ही एक स्थानीय आम बेचने वाले से तीस रुपए किलो के हिसाब से एक किलो आम ले लिए ! ये हिमाचली आम थे, इनका स्वाद चखने का मन हम सबका हुआ, वैसे भी अगर कहीं घूमने आए और वहाँ के स्थानीय फल ना चखे तो क्या चखा ! इस बात का मलाल वापस जाने पर काफ़ी दिनों तक रहता है, इसलिए बहतर है कि स्थानीय भोजन या फल का स्वाद ज़रूर चखना चाहिए ! ये पेड़ के पके आम थे और खाने में बहुत ही लाजवाब थे, अगर आप भी कभी हिमाचल जाओ तो इस आम का स्वाद चखना मत भूलना ! सब तो आम खाते रहे और बस में बैठे हुए बाहर सड़क के दोनों ओर पहाड़ों के नज़ारे लेते रहे ! परिचालक से पूछने पर पता चला कि बस डलहौज़ी 12:30 तक पहुंचेगी, समय की परवाह किए बिना हम इस यात्रा का आनंद लेते रहे ! 

आधे से ज्यादा सफ़र बीत चुका था कि तभी हमारी बस पंक्चर हो गई, परिचालक बोला कि पंक्चर लगवाने में आधा घंटा लग जाएगा, इसलिए अगर किसी को कुछ खाना-पीना हो तो खा-पी लो ! अन्य सवारियों की तरह हम लोग भी बस से नीचे उतरकर घूमने लगे, तभी एक स्थानीय लड़का फल बेचने आया, ये फल भी कुछ अलग ही थे, देखने में तो नाशपाती की तरह, पर आकार में नीबू जैसे थे ! ये फल भी हमने एक किलो ले लिए, ये ताज़ा तोड़े हुए फल थे, इसलिए इन पर एक भी निशान (दाग) नहीं था और इनका स्वाद भी बहुत अच्छा था ! अपने यहाँ तो हमें ताज़ा फल बहुत कम ही मिलते है ! इस दौरान स्थानीय लोगों से हमें एक और बात पता चली कि इन फलों को आप सड़क के किनारे लगे पेड़ो से तोड़ भी सकते हो ! थोड़ी देर में ही बस ने एक हॉर्न दिया और सब यात्री बस में आकर बैठने लगे ! परिचालक ने यात्रियों की गिनती की और फिर बस चल दी ! बैठे-2 पता ही नहीं चला और हमारा सफ़र कट गया ! 

जब परिचालक ने आवाज़ लगाई कि डलहौज़ी जाने वाले यात्री यहाँ उतर कर सामने खड़ी बस में जाकर बैठ जाएँ, यहाँ से डलहौज़ी जाने के लिए बस तैयार खड़ी है ! सुनकर बड़ा अजीब सा लगा कि हम लोग तो डलहौज़ी की बस में ही बैठे है फिर डलहौज़ी जाने की ये कौन सी बस तैयार खड़ी है ! अपनी बस के परिचालक से पूछने पर पता चला कि ये बस यहाँ से चंबा के लिए मुड जाएगी और डलहौज़ी इस चौराहे से 6 किलोमीटर ही है ! ये सुनकर पहले तो हमने थोड़ी देर परिचालक से बहस की और फिर हम लोग भी दूसरे यात्रियों की तरह उस बस में जाकर बैठ गए, यहाँ से दूसरी बस में बैठने के बाद 5 रुपए प्रति सवारी का किराया लगा ये बस पूरी तरह भरी हुई थी, बैठने की तो छोड़िए, खड़े होने की जगह भी बड़ी मुश्किल से मिली थी, और हो भी क्यों ना ये बस दो बसों की सवारियों को लेकर जो चल रही थी ! घुमावदार रास्तों से होते हुए बीच में कई खूबसूरत दृश्यों को देखते हुए हम आगे बढ़ते रहे ! 

अगले दस मिनट का सफ़र तय करके हमारी बस डलहौजी बस अड्डे पर पहुँची, यहाँ का बस अड्डा ज़्यादा बड़ा नहीं था, गिनती की बसें ही यहाँ आ सकती है ! वैसे भी यहाँ से जब एक बस चली जाती है तभी दूसरी बस आती है एक समय में 3-4 बसें शायद ही कभी आती हो ! हम चारों बस से उतरकर अपना सामान लेकर एक तरफ खड़े हो गए, फिर हम चारों में से दो लोग तो होटल ढूँढने चले गए और दो लोग वहीं रुक कर सामान की रखवाली करने लगे ! कई होटल देखने के बाद हमें एक होटल पसंद आ गया ! बस फिर तो वापस बस अड्डे पर जाकर बाकी दोनों साथियो के साथ सामान होटल में ले आए ! बस स्टैंड के पास वाले कुछ होटलों में कमरे खाली तो थे पर इनका किराया ज़्यादा था, जो होटल हमने पसंद किया वो बस अड्डे से थोड़ी दूर था लेकिन ये हमारे बजट में था ! होटल तक जाने के लिए आधा किलोमीटर की पैदल यात्रा भी करनी पड़ी ! होटल पहुँच कर फटाफट नहा-धोकर तैयार हुए और खाना खाने के बाद डलहौज़ी घूमने के लिए तैयार होने लगे !

pathankot railway station
पठानकोट में शशांक और विपुल

at pathankot junction
पठानकोट रेलवे स्टेशन पर मैं, शशांक, और हितेश (बाएँ से दाएँ)
क्यों जाएँ (Why to go Dalhousie): अगर आप दिल्ली की गर्मी और भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल पहाड़ों पर बिताना चाहते है तो आप डलहौजी का रुख़ कर सकते है ! यहाँ घूमने के लिए भी कई जगहें है, जिसमें झरने, चर्च, पहाड़, मंदिर और वन्य जीव उद्यान शामिल है !

कब जाएँ (Best time to go Dalhousie): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए 
डलहौजी जा सकते है लेकिन झरनों में नहाना हो तो बारिश से बढ़िया कोई मौसम हो ही नहीं सकता ! वैसे अगर बर्फ देखने का मन हो तो आप यहाँ दिसंबर-जनवरी में आइए, बढ़िया बर्फ़बारी देखने को मिलेगी !

कैसे जाएँ (How to reach Dalhousie): दिल्ली से 
डलहौजी की दूरी लगभग 559 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से पठानकोट तक ट्रेन से जाइए, जम्मू जाने वाली हर ट्रेन पठानकोट होकर ही जाती है ! पठानकोट से डलहौजी की दूरी महज 83 किलोमीटर है जिसे आप बस या टैक्सी से तय कर सकते है, इस सफ़र में आपके ढाई से तीन घंटे लगेंगे ! अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से डलहौजी (चम्बा) के लिए हिमाचल टूरिज़्म की वोल्वो और हिमाचल परिवहन की सामान्य बसें भी चलती है ! आप निजी गाड़ी से भी डलहौजी जा सकते है जिसमें आपको दिल्ली से डलहौजी पहुँचने में 10-11 घंटे का समय लगेगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Dalhousie): 
डलहौजी में रुकने के लिए बहुत होटल है आपको अपने बजट के अनुसार 700 रुपए से शुरू होकर 3000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे ! मई-जून के महीनों में यहाँ ज़्यादा भीड़ रहती है इसलिए अगर इन महीनों में जाना हो तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ !

क्या देखें (Places to see in Dalhousie): 
डलहौजी में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण पॅंचपुला वॉटरफॉल, सातधारा वॉटरफॉल, ख़ज़ियार, कलाटॉप वाइल्डलाइफ सेंचुरी, सेंट जॉन चर्च, डायन कुंड, और माल रोड है ! इसके अलावा रोमांच के शौकीन लोगों के लिए यहाँ से थोड़ी दूर चम्बा में रिवर राफ्टिंग, राक क्लाइंबिंग, और ट्रेकिंग के विकल्प भी है !

अगले भाग में जारी...

डलहौजी - धर्मशाला यात्रा
  1. दिल्ली से डलहौजी की रेल यात्रा (A Train Trip to Dalhousie)
  2. पंज-पुला की बारिश में एक शाम (An Evening in Panch Pula)
  3. खजियार – देश में विदेश का एहसास (Natural Beauty of Khajjar)
  4. कालाटोप के जंगलों में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Walk in Kalatop Wildlife Sanctuary)
  5. डलहौज़ी से धर्मशाला की बस यात्रा (A Road Trip to Dharmshala)
  6. दोस्तों संग त्रिउंड में बिताया एक दिन (An Awesome Trek to Triund)
  7. मोनेस्ट्री में बिताए सुकून के कुछ पल (A Day in Mcleodganj Monastery)
  8. हिमालयन वाटर फाल - एक अनछुआ झरना (Untouched Himachal – Himalyan Water Fall)
  9. पठानकोट से दिल्ली की रेल यात्रा (A Journey from Pathankot to Delhi)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

15 Comments

  1. Are yaar jo Picture raste main li thi woh toh sahre karta. Aur kis hotel mai ruke ye bhi bata deta so that ki kabhi hum jaye toh hotel dhundhne main jyada dikkat na ho.

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    1. हम लोग होटल भंडारी पैलेस में रुके थे जिसका किराया 800 रुपए था !

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    2. हम लोग होटल 'हॉलिडे' में रुके थे जिसका किराया 2010 में 900 और 2014 में 1500 रु दिए थे क्योकि इस बार हमको टू बेडरम सेट मिला था।

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  2. वहां के आम और नाशपती का स्वाद हमने भी लिया है।

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  3. बढ़िया यात्रा वृत्तांत है ट्रैन के सफर का, मौसमी फलों के नाम ने ही मुंह में स्वाद जगा दिया,पहाड़ी जगह में आधे रास्ते पर उतरने का भी ज्यादा बुरा नहीं लगता ,क्यूंकि सुन्दर दृश्य और अच्छी जलवायु मिल जाती है ,डलहोजी के बारे विस्तार से पढ़ने का इन्तजार रहेगा

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    1. बात तो सही है कि पहाड़ी रास्तों में ऐसे अगर कहीं रुकने का मौका मिल जाए तो बुरा नहीं लगता ! अगला भाग कल ही आ रहा है !

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  4. क्या बात है सर जी, अतीउत्तम

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  5. अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद - रामकृष्ण लाल

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  6. Bhaiya aapki story padkr mann aanandit ho jata hai or jankari bui milti hai

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