जैसलमेर से बीकानेर की रेल यात्रा (A Train Trip from Jaisalmer to Bikaner)

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आप जैसलमेर का स्थानीय भ्रमण कर चुके है, दिनभर कुलधरा, खाभा फोर्टसम और जैसलकोट होटल में घूमने के बाद अँधेरा होते-2 हम जैसलमेर पहुँच गए ! यहाँ रात 9 बजे तक हम जैसलमेर के किले में घूमते रहे, जिसका वर्णन मैं अपनी यात्रा के पिछले लेख में कर चुका हूँ ! रात्रि भोजन के बाद देर रात हम जैसलमेर रेलवे स्टेशन पहुंचे, जहाँ से आधी रात को बीकानेर के लिए हमारी ट्रेन थी ! अब आगे, हमारी ट्रेन लीलण एक्सप्रेस अपने निर्धारित समय पर जैसलमेर से चली, इस बीच लगभग सभी सीटों पर यात्री आ चुके थे ! रात के 12 बज रहे थे इसलिए हम बिना देर किए अपनी-2 सीट पर सोने चल दिए, वैसे भी दिनभर सफ़र करके हमें अच्छी-खासी थकान हो गई थी, इसलिए ट्रेन में होने के बावजूद बढ़िया नींद आई ! हालांकि, सर्दी ने भी अपना खूब जोर दिखाया और ट्रेन की खिड़की बंद होने के बाद भी इसमें से रातभर हवा आती रही ! आलम ये था कि सुबह नींद खुली तो भयंकर ठण्ड लग रही थी या यूं कह सकते है कि सुबह नींद ही ठण्ड लगने के कारण खुली, लेटे-2 मोबाइल निकालकर समय देखा तो 5 बजने वाले थे ! मैंने कई जोड़े गर्म कपडे पहन रखे थे, एक कम्बल भी ओढ़ रखा था लेकिन फिर भी ठण्ड से गलन हो रही थी !

बीकानेर का जूनागढ़ किला

मोबाइल खंगालकर अपने ट्रेन की वर्तमान स्थिति देखी तो पता चला कि बीकानेर पहुँचने में अभी एक घंटा बाकि था ! दोबारा सोने की खूब कोशिश की, लेकिन नींद नहीं आई, आखिरकार मैं उठकर अपनी सीट पर बैठ गया, देवेन्द्र अभी भी अपनी सीट पर सोया हुआ था ! इसी बीच मैंने देखा कि मेरे सामने वाली सीट पर बैठे कुछ लड़के लगातार ऊंची आवाज में बातें कर रहे थे, पता नहीं सर्दी दूर करने का ये कोई नया तरीका था या कुछ और ? खैर, वजह जो भी हो, लेकिन पूरे डिब्बे में बस इन लड़कों की आवाजें ही आ रही थी ! सुबह-2 इतना शोर-शराबा सुनकर गुस्सा तो खूब आया, लेकिन बहस करने का मन नहीं था इसलिए मैं चुप ही रहा ! आखिरकार, साढ़े छह बजे हमारी ट्रेन बीकानेर स्टेशन पर आकर रुकी, धीरे-2 सवारियां ट्रेन से नीचे उतरने लगी, हमने भी अपना सामान समेटा और ट्रेन से उतरकर प्लेटफार्म पर आ गए ! फिर सीढ़ियों से होते हुए प्लेटफार्म से निकलकर स्टेशन के बाहर आ गए, सामने ही ऑटो स्टैंड था, जहाँ ऑटो वाले ट्रेन से उतरी सवारियों का इन्तजार कर रहे थे ! हमें कहाँ जाना था हम नहीं जानते थे, लेकिन एक ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ जाकर नहा-धोकर तैयार हो सके, क्योंकि दिनभर घूमकर हमें रात्रि को घर वापसी की ट्रेन पकडनी थी !
बीकानेर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य

रेलवे स्टेशन के बाहर का एक दृश्य
इस बीच चलते-2 ऑटो स्टैंड को पार करते हुए हम पैदल ही किसी होटल की तलाश में चल दिए, स्टेशन से बाहर निकलते ही सामने मुख्य सड़क थी जो शहर के अन्दर जा रही थी ! अधिकतर ऑटो और सवारियां इसी मार्ग पर जा रहे थे, हम भी ज्यादा सिर खपाए बिना इसी मार्ग पर चल दिए ! लगभग 100 मीटर चलने के बाद सड़क के बाईं ओर हमें एक धर्मशाला दिखाई दी, ये मोहता धर्मशाला थी जो काफी बड़ी थी ! हमने सोचा, क्यों ना इस धर्मशाला में ही रुका जाए वैसे भी घंटे भर में तैयार होकर हमें घूमने ही चले जाना है ! धर्मशाला के प्रवेश द्वार से होते हुए हम अन्दर दाखिल हुए, यहाँ प्रवेश द्वार के पास ही एक गलियारा था जिसके अंतिम छोर पर पूछताछ कार्यालय बना था जिसके ठीक सामने गलियारे में ही एक छोटा पुस्तकालय भी था ! गलियारा ख़त्म होते ही ये मार्ग तीन हिस्सों में विभाजित हो रहा था ! सीधा जाने वाला मार्ग एक मंदिर पर जाकर ख़त्म हो रहा था जबकि दाईं ओर जाने वाले मार्ग पर कैंटीन था, कैंटीन से थोडा आगे बढ़ने पर यात्रियों के रुकने के लिए कमरे बने थे ! मैं प्रवेश द्वार के पास एक कोने में सारा सामान लेकर खड़ा हो गया और देवेन्द्र यहाँ रुकने के लिए कमरे के बाबत पूछताछ करने चला गया ! 
धर्मशाला का एक दृश्य 
धर्मशाला के कायदे-कानून प्रवेश द्वार के बगल वाली एक दीवार पर अंकित थे, इन नियमों में धर्मशाला में आने-जाने के समय से लेकर, खान-पान, और व्यवहार सम्बंधित बातें लिखी थी ! गलियारे अंतिम छोर के बाईं ओर जाने वाले मार्ग पर भी कई कमरे थे, धर्मशाला के भीतरी भाग की परिक्रमा लगाते सारे मार्ग आपस में जुड़े हुए थे, जबकि इस मार्ग के चारों तरफ एक खुला मैदान था, जिसमें कई किस्म के पेड़-पौधे और फूल लगे थे ! इस धर्मशाला की अधिकतर इमारतें 2 मंजिला थी, आकार के हिसाब से कमरों को भी अलग-2 श्रेणियों में बांटा गया था ! जहाँ छोटे कमरों को अकेले आने वाले यात्रियों को दिया जाता था वहीँ बड़े कमरे परिवार संग आए लोगों के रुकने के लिए मुहैया कराया जाता था ! धर्मशाला की भीतरी दीवारों पर जगह-2 दोहे और अन्य ज्ञानवर्धक बातें लिखी थी, मैं एक कोने में खड़ा दीवार पर लिखीं इन बातों को पढने में लगा था ! इतने में देवेन्द्र आया और बोला, भाई यहाँ तो कोई कमरा खाली नहीं है, हमें कहीं और ही जाना पड़ेगा !

मैं बोला, आज कोई खाली भी नहीं होगा क्या ?

अभी कुछ नहीं कह सकते, सुबह का समय है लोग अभी सोकर भी नहीं उठे होंगे, देवेन्द्र बोला !

यार कुछ देर इन्तजार करके देख लेते है, शायद बात बन ही जाए ! हम दोनों फिर से पूछताछ कार्यालय की ओर बढे !

हमने वहां बैठे कर्मचारी से पूछा, श्रीमान जी, एक बार फिर से देख लीजिए, इतनी बड़ी धर्मशाला है कोई तो कमरा खाली होगा ! हमें कमरे की ज़रूरत थी, इसलिए इतना सम्मान तो देना ही था ! 

चेक करके ही बता रहा हूँ, कोई कमरा खाली नहीं है, अगर होता तो दे ना देता !

इतनी रूखी आवाज में क्यों बता रहा है भाई, खैर, अब काम निकलवाना है तो थोडा रूखापन भी बर्दाश्त करना पड़ेगा, हमने मन ही मन सोचा !

हमसे पहले जो सज्जन यहाँ आए थे, उन्हें तो दे दिया, मैं बोला !

वो परिवार संग थे, परिवार वालों के रुकने के लिए अलग श्रेणी के कमरे है !

मैंने एक बार मुड़कर देवेन्द्र की ओर देखा, फिर उस कर्मचारी से कहा, श्रीमान जी, हम भी तो परिवार वाले ही है, वो अलग बात है, अलग-2 परिवार से है !

कुछ देर चुप रहकर वो बोला, थोडा इन्तजार कर लो, 1-2 कमरे खाली होने वाले है ! ये सुनकर हम गैलरी में बने एक चबूतरे पर बैठ गए !

कुछ देर बाद एक कमरा खाली हुआ तो उस कर्मचारी ने हमें आवाज देकर बुलाया, वैसे अब हमारे अलावा कुछ अन्य यात्री भी कतार में खड़े प्रतीक्षा कर रहे थे ! रुकने के लिए आप दोनों को अपने पहचान पत्र की 1-1 कॉपी जमा करानी होगी, ये सुनकर मैंने तो अपने बैग से पहचान पत्र की एक कॉपी निकाल ली, लेकिन देवेन्द्र के पास ओरिजिनल पहचान पत्र ही था,जिसकी फोटोकॉपी मैं धर्मशाला के सामने स्थित एक दुकान से करवा लाया ! फिर तो कुछ कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद हम प्रथम तल पर स्थित एक कमरे में थे ! ये कमरा ज्यादा बड़ा नहीं था, कमरे में बस एक तख़्त ही बिछा हुआ था, जिसके बाद कमरे में ज्यादा जगह नहीं बची थी, एक खिड़की भी थी जो धर्मशाला के पिछले हिस्से में खुलती थी ! खैर, अपने को ज्यादा कुछ नहीं चाहिए था, सारा सामान कमरे में रखकर अपने-2 ब्रश लेकर हम दोनों नीचे शौचालय के पास पहुँच गए, बगल में ही गरम पानी की व्यवस्था भी थी ! 5 रूपए प्रति बाल्टी के हिसाब से गरम पानी मिल रहा था, 2 बाल्टी गरम पानी लेकर हम दोनों बारी-2 से नहा-धोकर फारिक हुए ! फिर अपने कमरे में जाकर तैयार हुए और एक बैग में ज़रूरी सामान लेकर घूमने के लिए निकल पड़े !

नीचे कैंटीन के सामने पहुंचे तो चाय बन रही थी, सोचा 1-1 कप चाय पीकर ही निकलते है, 2 चाय का आदेश देकर हम वहीँ बैठ गए ! सर्दी के दिन की शुरुआत गर्मा-गर्म चाय से बेहतर हो ही नहीं सकती, चाय की चुस्कियां लेते हुए दिनभर के कार्यक्रम पर चर्चा करते रहे ! यहाँ से चले तो पैदल ही जूनागढ़ के किले की ओर निकल पड़े जो यहाँ से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर था ! एक बाज़ार में से होते हुए हम किले के सामने पहुंचे, वैसे तो अधिकतर किले शहर की भीड़-भाड़ से थोडा हटकर ही होते है लेकिन ये किला शहर के बीच में ही था, सामने एक चौराहा था, जहाँ वाहनों की खूब आवाजाही थी ! शहर के बीचों-2 लाल बलुआ पत्थर से बना ये किला वाकई बहुत खूबसूरत लग रहा था, बीकानेर के इस किले को जूनागढ़ का किला भी कहा जाता है ! मुख्य प्रवेश द्वार से अन्दर जाने पर सामने करण पोल दिखाई दिया, ये इस किले का प्रथम प्रवेश द्वार था किले के मुख्य भाग में जाने के लिए आपको इस तरह के 4 अन्य प्रवेश द्वार और भी पार करने है ! यहाँ से आगे बढ़ने पर दौलत पोल, फ़तेह पोल, रतन पोल और सूरज पोल को पार करते हुए हम एक खुले मैदान में पहुंचे ! इस मैदान के एक हिस्से में पार्किंग की व्यवस्था थी, अधिकतर लोग तो यहाँ पैदल ही घूम रहे थे लेकिन कुछ लोग टैक्सी तो कुछ निजी वाहनों से भी यहाँ आए थे !
जूनागढ़ का किला

किले में जाने का प्रवेश द्वार - करण पोल

किले में जाने का प्रवेश द्वार - दौलत पोल

किले में जाने का प्रवेश द्वार - फ़तेह पोल

किले में जाने का प्रवेश द्वार - रतन पोल

किले में जाने का प्रवेश द्वार - सूरज पोल
पार्किंग के पीछे शौचालय बने थे जबकि हमारे बाईं ओर किले की इमारतें थी, इन्हीं इमारतों में एक बरामदे में टिकट घर था, बरामदे से होते हुए किले के भीतरी भाग में जाने का मार्ग भी था ! अभी टिकट घर खुलने में समय था इसलिए अन्य यात्रियों की तरह हम भी मैदान के एक हिस्से में खड़े हो गए ! हमारे बाईं ओर वाली इमारतों के किनारे मैदान में एक जगह तोप रखी थी, जबकि थोडा आगे बढ़ने पर सीढियाँ के पास पुराने डिजाईन की लाइटें भी लगी थी, लोग इस तोप और सीढ़ियों के पास खड़े होकर फोटो खिंचवाने में लगे थे ! 10 बजने में अभी 15 मिनट बाकि थे, सर्दी का मौसम होने के कारण अभी हल्की-2 धूप ही खिली थी ! हम दोनों धूप में खड़े होकर हर छोटी-बड़ी बात पर नज़र रखे हुए थे ! हमें यहाँ देश के अलग-2 हिस्सों से आए लोग दिखाई दे रहे थे, इसकी पहचान हमें कुछ लोगों के पहनावों से तो कुछ की बोली से हुई ! वैसे आज इस इन्तजार में भी एक अलग ही आनंद आ रहा था, समय ठहर सा गया था, पिछले 4 दिन के सफ़र की यादें मेरे स्मृति पटल पर बार-2 आ रही थी, अब तक तो ये सफ़र बढ़िया ही चल रहा था ! मेरे मन में यही उठा-पाठक चल रही थी कि इस बीच अचानक हमने लोगों का हुजूम टिकट घर की ओर जाते हुए देखा !
पार्किंग का एक दृश्य

मैदान से दिखाई देता एक दृश्य
मैदान से दिखाई देता एक दृश्य

मैदान से दिखाई देता एक दृश्य
घडी में समय देखा तो हमें समझते देर नहीं लगी कि टिकट काउंटर खुल चुका है, इसलिए हम दोनों भी तेज क़दमों से टिकट घर की ओर बढ गए ! टिकट के लिए 2 कतारें बनी थी और ज्यादा भीड़ भी नहीं थी, देवेन्द्र टिकट लेने के लिए एक कतार में खड़ा हो गया ! चलिए, फिल्हाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको जूनागढ़ के इस भव्य किले का भ्रमण कराऊंगा !

क्यों जाएँ (Why to go Bikaner): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, तो राजस्थान में बीकानेर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Bikaner): बीकानेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Bikaner): बीकानेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 460 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से बीकानेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 11-12 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी तो बढ़कर लगभग 500 किलोमीटर हो जाती है लेकिन दूरी तय करने का समय घटकर 8 घंटे हो जाता है ! सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बीकानेर के लिए बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी बीकानेर जा सकते है !


कहाँ रुके (Where to stay near Bikaner): बीकानेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 500 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! यहाँ कई धर्मशालाएं भी है जहाँ रुकना काफी सस्ता पड़ता है ! खाने-पीने की सुविधा हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !


क्या देखें (Places to see near Bikaner): बीकानेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जूनागढ़ किला, लालगढ़ पैलेस, और देशनोक में स्थित करनी माता का मंदिर प्रमुख है ! खरीददारी के लिए बीकानेर के में आपको काफी कुछ मिल जायेगा, आप यहाँ से राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. बढ़िया लगा आपका बीकानेर यात्रा का ये लेख ..... वैसे बिना परिवार के अधिकतर धर्मशालाओ में कमरे मिलना मुश्किल होता है ....अच्छा हुआ की आपको कमरा मिला गया ...बीकानेर का जूनागढ़ किला अच्छा लगा

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    1. धन्यवाद रितेश भाई, वाकई, कमरा ढूंढना काफी मुश्किल काम था !

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