यात्रा के पिछले लेख में आप खाभा फोर्ट के बारे में पढ़ चुके है, फोर्ट देखने के बाद हम यहाँ से निकलकर खाभा रिसोर्ट की ओर चल पड़े, अब आगे, इस फोर्ट से खाभा रिसोर्ट की दूरी बहुत ज्यादा नहीं है, मुश्किल से 5 मिनट का समय लगा और हम रिसोर्ट के प्रवेश द्वार के सामने खड़े थे ! सड़क किनारे बाइक खड़ी करके हम प्रवेश द्वार से होते हुए रिसोर्ट परिसर में दाखिल हुए, यहाँ एक खुला मैदान है जिसमें बीच-2 में पेड़-पौधे भी लगे है ! पैदल चलने के लिए बने पक्के रास्ते से होते हुए हम अन्दर गए तो यहाँ कई झोपड़ीनुमा कमरे बने थे, एक तरफ तो टेंट भी लगे थे, ये सारी सुविधा यहाँ आने वाले पर्यटकों के लिए थी ! रोशनी के लिए छोटे-2 पोल लगाए गए थे जिनमें लाइटें लगी थी और बीच-2 में चबूतरे बने थे जिनपर टेबल और कुर्सियां रखी थी ! चबूतरों के चारों कोनों पर सजावट के लिए काले मटके रखे हुए थे, थोडा और आगे बढ़ने पर एक गोल चबूतरा आया, जिसके चारों तरफ लोगों के बैठने की व्यवस्था थी, जबकि बीच में अलाव जलाने का प्रबंध किया गया था ! कुल मिलाकर पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए यहाँ सारा इंतजाम किया गया था, रोजाना शाम ढलते ही राजस्थानी कलाकार यहाँ मेहमानों के लिए राजस्थानी लोकनृत्य और अन्य रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत करते है !
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सम से दिखाई देता टेंटों का एक दृश्य |
यहाँ टेंट में रुकने के लिए आपको प्रतिदिन 3500 रूपए खर्च करने होंगे, अगर आपका इन झोपड़ियों में रुकने का मन हो तो उसका खर्चा भी लगभग इतना ही है ! हमें अन्दर आता देखकर रिसोर्ट संचालक को लगा कि शायद हम यहाँ रुकने आए है, बाहर तेज धूप होने के कारण वो हमें लेकर एक हॉल में गया, यहाँ थोडा राहत थी ! रिसोर्ट के एक कर्मचारी ने यहाँ रखी कुर्सियों में से दो पर कपडा मारकर साफ़ करने के बाद हमें बैठने के लिए दी ! इस दौरान रिसोर्ट के कर्मचारी हमारी आवभगत में लग गए, लेकिन हमने उन्हें बता दिया कि हमारा यहाँ रुकने का कोई विचार नहीं है, हम तो यहाँ बस पानी लेने आए है ! ये सुनने के बाद भी उनकी मेहमान-नवाजी में कोई कमी नहीं आई, हमने चाहे यहाँ 10-15 मिनट बिताए लेकिन यहाँ बिताया एक-2 पल हमारे लिए यादगार रहा ! हमने दो कोल्ड ड्रिंक और एक पानी की बोतल मंगाई, इस दौरान रिसोर्ट संचालक ने इस रिसोर्ट और यहाँ होने वाले कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी हमें दी ! इस बीच हमारी कोल्ड ड्रिंक आ गई, तपती गर्मी में प्यास से गला सूख गया था ठंडा पीकर काफी राहत मिली, पानी लेकर यहाँ से चले तो सभी कर्मचारियों से औपचारिक मुलाकात की और अगली बार जैसलमेर आने पर एक रात इस रिसोर्ट में रुकने का आश्वासन भी दिया !
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खाभा रिसोर्ट में लगे टेंटों का एक दृश्य |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर का एक दृश्य |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर का एक दृश्य |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर बना एक चबूतरा |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर रात को अलाव जलाने का स्थान |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर बना एक बार काउंटर |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर का एक दृश्य |
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खाभा रिसोर्ट के अन्दर लगे टेंट |
रिसोर्ट से निकलते हुए शाम के 4 बज चुके थे, यहाँ से सम ज्यादा दूर भी नहीं है इसलिए हमें कोई आपा-धापी नहीं थी मन ही मन सोच चुके थे कि रास्ते में जहाँ कहीं भी बढ़िया नज़ारे दिखाई देंगे, कुछ देर आराम कर लेंगे ! 10-15 मिनट बाद हम एक खुले मैदान के बीचों-बीच चल रहे थे, यहाँ दोनों तरफ दूर तक फैले मैदान थे और बीच में वो सड़क जिस पर हमारी बाइक 60-70 की रफ़्तार से भागे जा रही थी ! घास सूखकर पीली हो चुकी थी, और सड़क किनारे थोड़ी-2 दूरी पर बेर के पेड़ थे, फिल्हाल बाइक चलाने का जिम्मा देवेन्द्र ने ले रखा था और मैं पीछे बैठा चारों तरफ के नजारों का आनंद ले रहा था ! इस मैदान में थोड़ी-2 दूरी पर पवन चक्कियां लगी हुई थी, और मैदान के दूसरे छोर पर ऊंचे-नीचे पहाड़ दिखाई दे रहे थे, ऐसा शानदार नज़ारा था जिसे शब्दों में बयाँ कर पाना मुमकिन नहीं है ! यहाँ कुछ देर रुकने के बाद हमने अपना सफ़र जारी रखा, काफी देर तक हम इसी मार्ग पर चलते रहे, कुछ दूर जाने पर मैदान ख़त्म हो गया और ये मार्ग जाकर जैसलमेर से सम जाने वाले मार्ग में जाकर मिल गया ! यहाँ से सम की दूरी महज 7 किलोमीटर रह जाती है, जबकि खाभा फोर्ट से सम की कुल दूरी 17 किलोमीटर है !
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खाभा रिसोर्ट से सम जाते हुए रास्ते में लिया एक दृश्य |
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खाभा रिसोर्ट से सम जाते हुए रास्ते में लिया एक दृश्य |
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यहाँ रूककर हमने कुछ देर आराम भी किया था |
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मैदान में लगी पवन चक्कियां |
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विभिन्न जगहों की दूरी दर्शाता एक बोर्ड |
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विभिन्न जगहों की दूरी दर्शाता एक बोर्ड |
पौने पांच बजे हम सम पहुंचे, सम से आधा किलोमीटर पहले एक पुलिस नाका है जो सम जाने वाले वाहनों की चेकिंग करते रहते है ! यहाँ अधिकतर लोग मौज-मस्ती के लिए आते है, और कई लोग तो मदिरा का सेवन करके गाडी भी चलाते है इसलिए किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए यहाँ एक पुलिस दस्ता तैनात रहता है ! जब हम इस नाके से गुजरे तो यहाँ कुछ गाड़ियाँ चेकिंग के लिए रुकी हुई थी ! थोड़ी आगे जाने पर सड़क के बाईं ओर तो दूर तक दिखाई दे रहे रेत के टीले थे जबकि हमारी दाईं ओर एक कतार में कई टेंट लगे हुए थे, बीच-2 में खान-पान की कुछ दुकानें भी थी ! हमने अपनी बाइक सड़क के किनारे खड़ी की और पहले तो एक नज़र जी भरकर चारों तरफ देखा, उसके बाद एक ऊँट वाले से कैमल सफारी की बात करने लगे ! उसने ऊँट पर बिठाकर रेत के टीलों का एक चक्कर लगाने के लिए प्रति व्यक्ति 200 रूपए मांगे, लेकिन मोल-भाव करके आखिरकार 50 रूपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से सौदा तय हो गया ! फिर हम दोनों अलग-2 ऊंटों पर बैठकर रेत के टीलों की ओर चल दिए, वैसे तो ऊँट की सवारी हम पहले भी कर चुके है लेकिन यहाँ रेगिस्तान में बात ही अलग है ! ऊँट पर बैठकर तो दूर तक का नज़ारा एकदम साफ़ दिखाई दे रहा था !
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सम में घुड़सवारी का आनंद लेता देवेन्द्र |
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सम में दिखाई देते रेत के टीले |
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सम में दिखाई देते रेत के टीले |
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एक फोटो मेरी भी हो जाए |
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सम में दिखाई देते रेत के टीले |
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सम में ऊँट से चलने वाली एक बुग्गी |
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सम में सड़क के उस पार दिखाई देते टेंट |
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सम में रेत के टीले |
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सम में ऊँट की सवारी करते पर्यटक |
कुछ लोग ऊँट की सवारी कर रहे थे तो कुछ अन्य लोग ऊँट से चलने वाली बुग्गी पर बैठे थे, कुछ लोग सूर्यास्त के इन्तजार में जगह-2 डेरा जमाए भी बैठे थे ! वास्तव में रेगिस्तान का ऐसा शानदार दृश्य मैंने पहले कभी नहीं देखा था, ये एक सुखद अनुभव था, 200-250 मीटर का एक चक्कर लगाने के बाद हम वापिस आ गए ! इस दौरान हमने कुछ चित्र भी लिए, वापिस आकर ऊँट से उतरने के बाद हम पैदल ही रेत के इन टीलों की ओर चल दिए ! हवा के साथ रेत के बने ये टीले भी अपना आकार और स्थान बदलते रहते है, अभी जो टीला आपको दिखाई दे रहा है हो सकता है हवा चलने के कारण वो टीला अगले कुछ घंटो में अपना स्थान और आकार बदल ले ! ऊँट की सवारी करते हुए अच्छे से मोल भाव कर ले, क्योंकि रेत के ये टीले दूर तक फैले हुए थे और कुछ ऊँट वाले आपको बड़ा चक्कर लगाने का कहकर आधा चक्कर लगाकर ही वापिस ले आते है ! वापिस आने के बाद हम पैदल ही इस रेगिस्तान में चल इए, फिर एक ऊंचा सा टीला देखकर उस पड़ बैठ गए, यहाँ हम रेत में काफी देर तक खेलते रहे, बारीक रेत हमारे जूतों में भी भर गया !
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सम में दिखाई देते रेत के टीले |
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सूर्यास्त होने ही वाला है |
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रेगिस्तान का एक दृश्य |
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सम में सूर्यास्त की प्रतीक्षा करते पर्यटक |
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सूर्यास्त का एक दृश्य |
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सूर्यास्त के समय ऊँट की सवारी करते पर्यटक |
जहाँ हम बैठे थे उस टीले से सड़क के उस पार एक कतार में टेंट दिखाई दे रहे थे, सम में हमें तो कोई स्थाई होटल दिखाई नहीं दिया, अधिकतर लोग इन टेंटों में ही आकर रुकते है ! लोग यहाँ जिप्सी में बैठकर डेजर्ट सफारी का आनंद भी ले रहे थे, यहाँ से कुछ दूरी पर ही डेजर्ट नेशनल पार्क भी है ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यहाँ डेजर्ट सफारी का शुल्क 1000 रूपए से शुरू था और आगे आप अपनी सहूलियत के हिसाब से जितना खर्च करना चाहे, ये आप पर निर्भर है ! फिल्हाल हम सब यहाँ सम में बैठे सूर्यास्त की प्रतीक्षा कर रहे थे, यहाँ से एक ऊंचा टावर भी दिखाई देता है जो आस-पास के क्षेत्रों की निगरानी रखने के लिए प्रयोग में लाया जाता होगा ! इस बीच कुछ ऊँट वाले मस्ती करते हुए ऊँट की दौड़ भी लगा रहे है, सूर्यास्त होने में अभी समय था तो हम इन्हें ही देखने लगे ! कुछ ही देर बाद आखिर सूर्यास्त की वो घड़ी आ ही गई जिसका यहाँ सम में बैठे पर्यटक काफी देर से इन्तजार कर रहे थे, जैसे ही सूर्यास्त हुआ सैकड़ों कैमरे के फ़्लैश एकसाथ चमके ! यहाँ आए लोग डूबते हुए सूर्य का दृश्य अपने कैमरे में कैद कर लेना चाहते थे, हम भी एकटक सूर्यास्त के इस नज़ारे को देखते रहे, आखिर हम यहाँ आए ही इसी उद्देश्य से थे !
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देवेन्द्र, पता नहीं क्या करना चाह रहा है |
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सूर्यास्त की प्रतीक्षा करते पर्यटक |
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सूर्यास्त हो चुका है |
सूर्यास्त होने के बाद भी काफी देर तक सूर्य की लालिमा आसमान में रही, कुछ जगह तो सिन्दूरी बादल भी घिर आए थे, इन्हें देखकर एक बार तो ऐसा लगा जैसे ये सूर्य के बिदाई समारोह में आए हो ! सूर्यास्त होते ही सड़क के उस पार लगे टेंटों में ढोल-नगाड़ों की थाप सुनाई देने लगती है, ये ढोल-नगाड़े यहाँ आए पर्यटकों को आमंत्रित करने के लिए बजाए जाते है ! दूसरी और ये एक सन्देश भी देते है कि प्रकृति का आनंद तो आप ले चुके, अब हम आपको राजस्थानी संस्कृति और रंगारंग कार्यक्रम की झलक दिखाने के लिए तैयार है ! जैसे-2 अँधेरा बढ़ता जाता है ढोल की ये थाप भी बढती जाती है, अलग-2 कैम्पों की अनेकता में भी एकता दिखाई देती है ! अधिकतर टेंट सफ़ेद रंग के है लेकिन विविधता लाने के लिए इनके आकार में बदलाव कर दिया गया है, यहाँ बज रहे ढोल-नगाड़ों की थाप भी एक जैसी ही लगती है ! जैसे-2 अँधेरा बढ़ता जाता है इन टेंटों की रोशनी बढती जाती है, कुछ देर बाद पश्चिम दिशा के आसमान में कृत्रिम रोशनी का प्रकाश चमकने लगता है, हम अभी भी रेत के एक टीले पर बैठे ये नज़ारा देख रहे है ! मन करता है यहाँ घंटो ऐसे बैठकर इस दृश्य को देखते रहे, लेकिन रात को इस रेगिस्तान का तापमान बहुत तेजी से घटता है और ठण्ड काफी बढ़ जाती है !
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रेगिस्तान का एक दृश्य |
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अपनी एक फोटो तो बनती है |
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पता नहीं मैं कुछ तो बनाने का प्रयास कर रहा था |
लोग अब इस रेगिस्तान से निकलकर अपने-2 टेंटों की ओर बढ़ने लगे है, कुछ हमारे जैसे लोग भी है जिनका यहाँ रुकने का कोई विचार नहीं है इसलिए ये लोग अपनी-2 सवारियों में बैठकर वापिस जैसलमेर का रुख करने लगे है ! कुछ देर बाद हम भी यहाँ से उठे और अपनी बाइक की ओर चल दिए, जैसलमेर यहाँ से 40 किलोमीटर दूर है, हमें वापिस जाने में लगभग पौने घंटे का समय लगेगा ! यहाँ से निकले तो 6:35 बज रहे थे, सड़क पर चार पहिया वाहनों की लम्बी कतार लग चुकी थी, लेकिन ये कतार ऐसी भी नहीं थी कि दोपहिया वाहन को रोक सके ! हम यहाँ से तेजी से निकलकर जैसलमेर की ओर बढ़ चले, ऊंचा-नीचा रास्ता होने के बावजूद शानदार सड़क बनी थी, हम आराम से 60-70 की स्पीड से चल रहे थे ! सम से निकलने के बाद रास्ता खाली था, सड़क के किनारे खुला मैदान होने के कारण तेज हवा लग रही थी, गनीमत रहा कि हम जैकेट लेकर गए थे ! दिन में तो तेज धूप होने के कारण जैकेट बैग में ही रखा रहा था और एक बार तो हमें लगने लगा था कि बेकार में ही जैकेट उठाकर लाए, लेकिन अब ये अपना काम बखूबी कर रही थी !
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सूर्यास्त का एक नज़ारा |
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सम में एक डेजर्ट कैंप का बोर्ड |
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हमारी धर्मशाला एक एक दृश्य |
सवा सात बजे तक हम जैसलमेर के हनुमान चौराहे पर पहुँच चुके थे और फिर यहाँ से दुर्ग तक पहुँचने में मुश्किल से 5 मिनट का समय लगा ! रात के समय जैसलमेर दुर्ग की सजावट भी देखने लायक थी, इसके प्रवेश द्वार को कृत्रिम रोशनी से सजाया गया था, बाइक वाले से अपनी बकाया राशि लेने के बाद हम दुर्ग के प्रवेश द्वार के सामने आकर खड़े हुए ! चलिए, इस लेख पर फिल्हाल यहीं विराम लगाते हुए आपसे विदा लेता हूँ, जल्द ही इस यात्रा के अगले लेख में आपसे मुलाकात होगी !
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और khaabha साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
खाभा रिसोर्ट के टेंट में रुकने के 3500 rs बहुत ज्यादा लगे....50 rs में कैमल सफारी मस्त है...बढ़िया जानकारी ऑयर पोस्ट....
ReplyDeleteहाँ प्रतीक भाई, है तो ज्यादा ही लेकिन लोग फिर भी देते है, अगर हमें रुकना होता तो मोल भाव करके कुछ कम करवाते लेकिन जब रुकना ही नहीं था तो आगे बात ही नहीं की ! कैमल सफारी के तो मोलभाव करके 50 रूपए में बात बन गई !
Deleteबढ़िया पोस्ट . चौहान साहब आपसे पहले भी कहा था .लिंक भेज दिया करो .ऐसे मिस हो जाता है .
ReplyDeleteजी बिलकुल, आगे से याद रखूँगा ! धन्यवाद !
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