यात्रा के पिछले लेख में आप जैसलमेर का बड़ा बाग देख चुके है, यहाँ से चले तो साढ़े पांच बज रहे थे, शाम होने लगी थी लेकिन फिर भी हल्की-2 धूप बाकी थी ! गाडी में सवार होकर कुछ ही देर में हम बड़ा बाग परिसर से निकलकर लोद्रवा जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए ! अब आगे, जैसलमेर में मुख्य मार्गों को छोड़ दे तो सहायक मार्ग ज्यादा चौड़े नहीं है, लोद्रवा जाने वाले मार्ग का हाल भी कुछ ऐसा ही था, एकदम सीधी सड़क थी जो काफी दूर तक जाती दिखाई दे रही थी ! रास्ते में बीच-2 में कुछ उतार-चढ़ाव भी है और सड़क के दोनों ओर कंटीली झाड़ियां और नागफनी के पौधे है ! वैसे कुल मिलाकर शानदार दृश्य दिखाई दे रहा था, हमारी गाडी तेजी से आगे बढ़ रही थी, इस बीच सामने से जब कोई दूसरी गाडी आ जाती तो भूरा राम को गाडी सड़क से थोडा नीचे उतारनी पड़ती ! कुछ दूर जाने के बाद रास्ते में ही भूरा राम का गाँव पड़ा, गाडी सड़क के किनारे खड़ी करके कुछ देर के लिए वो गाँव में स्थित अपने घर गया ! परिवार के सदस्यों से मिलकर जब वो 10 मिनट बाद आया तो कुछ बच्चे भी उसके साथ थे, शायद उसके छोटे भाई-बहन थे !
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लोद्रवा के जैन मंदिर का एक दृश्य |
भूरा राम बड़ा खुश था, शायद परिवार के लोगों को इस तरह अचानक से मिलने की उम्मीद नहीं थी ! इस मार्ग पर गाड़ियों का ज्यादा आवागमन नहीं है इसलिए जब कोई इक्का-दुक्का गाडी यहाँ से गुजरती है तो लोग अचरज भरी निगाहों से देखते है ! भूरा राम के आने के बाद हम यहाँ से चले तो रास्ते में एक जगह हल्का होने के लिए रुके, यहाँ आस-पास के कुछ फोटो भी लिए, आसमान में लाल रंग के बादल छाए हुए थे, जो तेजी से आगे बढ़ रहे थे, बड़ा शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था ! आधे घंटे की यात्रा करने के बाद हम लोद्रवा के जैन मंदिर के सामने खड़े थे, इस समय हमारे अलावा यहाँ इक्का-दुक्का लोग ही थे ! पार्किंग स्थल में एक पेड़ के किनारे चबूतरा बना था, बगल में ही एक खाली टूरिस्ट बस भी खड़ी थी ! गाडी से उतरकर हम तेजी से मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर बढे, एक कोने में जूते उतारकर अन्दर दाखिल हुए, चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको लोद्रवा से सम्बंधित कुछ ज़रूरी जानकारी दे देता हूँ ताकि आप इस शहर के महत्त्व को समझ सके !
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लोद्रवा जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र |
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लोद्रवा जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र |
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लोद्रवा जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र |
लोद्रवा राजस्थान के जैसलमेर शहर से 18 किलोमीटर दूर काक नदी के किनारे बसा एक ऐतिहासिक स्थल है ये स्थान मध्यकालीन मंदिरों के लिए प्रसिद्द है ! राव जैसल द्वारा त्रिकुट पर्वत पर जैसलमेर की नींव रखने से पहले भाटी राजपूतों की राजधानी लोद्रवा ही थी, कहते है कि लोद्रवा का नाम इसे बसाने वाले “लोद्रुवा” और “रोद्रवा” नामक राजपूत जातियों के नाम पर पड़ा ! 9वीं शताब्दी में एक भाटी शासक देवराज ने लोद्रवा को “लोद्रुवा” राजपूतों से छीन कर अपने अधीन कर लिया और इसे अपनी राजधानी घोषित कर दिया ! वर्तमान में एक गाँव तक सिमटकर रह गया लोद्रवा हमेशा से ऐसा नहीं था, एक समय था जब यहाँ के लोग भी काफी समृद्ध थे और ये शहर भी काफी हरा-भरा था, लेकिन धीरे-2 समय ने करवट ली ! राजधानी रहने के दौरान इस शहर पर कई विदेशी आक्रमणकारियों ने हमले किये, सबसे पहले 11वीं शताब्दी में महमूद गजनवी ने इस शहर पर आक्रमण किया, इसके बाद 12वीं शताब्दी में मोहम्मद गौरी ने निचले सिंध और इससे सटे हुए लोद्रवा पर आक्रमण करके इस शहर को बर्बाद कर दिया !
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लोद्रवा के जैन मंदिर का एक दृश्य |
पतन के बाद यहाँ की सत्ता रावल जैसल सिंह भाटी के हाथ में आ गयी, जिसने 3 साल बाद त्रिकूट पर्वत पर अपनी नई राजधानी जैसलमेर की स्थापना की ! ये वो दौर था जब मध्य एशिया के बर्बर लुटेरे इस्लाम का परचम लिए अपने इलाकों से निकलकर भारत की उतर-पश्चिमी सीमाओं से प्रवेश कर यहाँ छा जाने के लिए लगातार प्रयत्नशील थे ! अपने इस मंसूबे में ये मुस्लिम शासक सफल भी हुए, परिणामस्वरूप जैसलमेर शहर को पहले अलाउदीन खिलजी और बाद में मुहम्मद बिन तुगलक की सेना का कहर झेलना पड़ा ! अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने जब यहाँ आक्रमण किया तो राज्य की सीमा में प्रवेश कर दुर्ग को चारों ओर से घेर लिया गया, और ये घेरा लगभग 6 वर्षों तक रहा ! तत्कालीन राजपूत योद्धा ना तो नवीनतम अश्त्र-शस्त्रों को अपनाते थे और ना ही किसी युद्ध नीति के तहत युद्ध करते थे, इन राजाओं की सबसे बड़ी कमी ये थी कि इनके पास कोई नियमित और प्रशिक्षित सेना भी नहीं होती थी ! जब कोई शत्रु चढ़ाई करके किले के द्वार तक पहुँच जाते थे तो ये राजपूत राजा अपनी प्रजा को युद्ध का आह्वान कर युद्ध में झोंक देते थे !
इसके विपरीत इस्लामी आक्रमणकारी सेना को अनगिनत युद्धों का अनुभव रहता था, वे इस प्रजा को गाजर-मूली की तरह काट देते थे ! इस तरह के युद्धों का परिणाम तो युद्ध शुरू होने से पहले निश्चित होता था, अधिकतर युद्धों के दौरान राजपूत महिलायें युद्ध के अंतिम चरण में जौहर कर लेती थी और राजपूत योद्धा लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होते थे ! इस तरह अलग-2 हमलों में प्राचीन राजधानी लोद्रवा के अवशेष तो रेत में दफ़न हो गए लेकिन जो कुछ निशानियाँ बच गई उनपर जैन धर्म के अनुयायिओं ने कुछ धार्मिक स्थलों का निर्माण करवा दिया, बाद में ये जैन सम्प्रदाय के लोगों का तीर्थ स्थल बन गया ! जैन मंदिर भी इन्हीं धार्मिक स्थलों में से एक है जो आज लोद्रवा की पहचान बन चुका है, इस मंदिर में भगवान् पार्श्वनाथ की श्याम मूर्ति प्रतिष्ठित है जिसके ऊपरी भाग में हीरे जड़े हुए है ! मंदिर को कलात्मक रूप देने के लिए पत्थर के शिल्पकारों ने मंदिर के स्तंभों और दीवारों पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ उकेर कर इसके सौन्दर्य को बढ़ा दिया है ! इस मंदिर में गर्भगृह, और सभा मंडप है, जहाँ बैठकर लोग प्रार्थना करते है, यहाँ के शांत वातावरण में बैठकर प्रार्थना करना मन को सुकून देता है !
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जैन मंदिर में भगवान्लो पार्श्वनाथ की मूर्ति |
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मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
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मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
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मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
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मुख्य भवन के चित्र पर की गई कारीगरी |
मंदिर के गर्भगृह की छत पर भी बढ़िया कारीगरी की गई है, काफी प्राचीन होने के बावजूद समय-2 पर इस मंदिर का जीर्णोद्वार होता रहा है इसलिए ये आज भी बढ़िया स्थिति में है ! मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही चौक में एक पच्चीस फीट ऊंचा भव्य द्वार सा बना है, इस पर बारीक कारीगरी करके सुन्दर आकृतियाँ उकेरी गई है ! गर्भगृह के मुख्य द्वार के निचले हिस्से में गणेश और कुबेर जी की आकृतियाँ बनाई गई है ! मंदिर के चारों कोनों में भी 1-1 छोटे मंदिर बनाए गए है जिनमें से दक्षिण-पूर्वी कोने पर आदिनाथ, दक्षिण-पश्चिम कोने पर अजीतनाथ, उतर-पश्चिम कोने पर सम्भवनाथ और उत्तर-पूर्वी कोने में चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बना है ! मूल मंदिर के पास एक कल्पवृक्ष सुशोभित है जिसमें चीते, बकरी, गाय, पक्षी और अन्य जानवरों को एक साथ दर्शाया गया है, कल्पवृक्ष जैन धर्म के अनुयायिओं के लिए समृद्धि और शान्ति का द्योतक है ! मंदिर में एक प्राचीन कलात्मक रथ भी रखा हुआ है जिसमें चिंतामणि पार्श्वनाथ स्वामी की मूर्ति गुजरात से यहाँ लाई गई थी ! इसके अलावा लोद्रवा स्थित काक नदी के किनारे रेत में दबी भगवान् शिव की एक अनोखी मूर्ति है जिसके चार सिर है !
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मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
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मंदिर का भव्य द्वार |
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मंदिर के अन्दर स्थापित एक मूर्ति |
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मंदिर परिसर में कल्पवृक्ष |
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मंदिर के अन्दर कल्पवृक्ष का एक दृश्य |
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मंदिर के अन्दर स्थापित एक अन्य मूर्ति |
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मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
इस मूर्ति का केवल आधा भाग ही जमीन से ऊपर है, जबकि आधा भाग ज़मीन में है, कहते है ये मूर्ति खुद से यहाँ प्रकट हुई थी ! लोद्रवा में प्राचीन काल में बने घर, कुँए, तालाब और स्नान घर के अवशेष देखने को मिलते है जो उस काल के वैभव को दर्शाते है ! मंदिर में पूजा करके कुछ समय बिताने के बाद हम बाहर आ गए, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि इस मंदिर के आस-पास कुछ अन्य मंदिर भी है जिसमें हिंगलाज माता मंदिर, चामुंडा माता मंदिर, और शिवजी का प्राचीन मंदिर प्रमुख है लेकिन जानकारी के अभाव में हम इन्हें नहीं देख पाए ! चलिए, फिर कभी इधर आना हुआ तो इन मंदिरों के दर्शन भी कर लूँगा, इसी के साथ इस लेख पर विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको जैसलमेर के चुंधी-गणेश मंदिर के दर्शन करवाऊंगा !
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मंदिर के बाहर का एक दृश्य |
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मंदिर के बाहर का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
अगले भाग में जारी...
जैसलमेर यात्रा
लोद्रवा के मंदिर की विस्तृत जानकारी पढ़कर अच्छा लगा और भूरा राम को अचानक घर जाने को मिलना भी अच्छा लगा...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई, जानकर अच्छा लगा कि लेख आपको अच्छा लगा !
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