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जैसलमेर दुर्ग के प्रवेश द्वार का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य |
इस किले के चारों कोनों पर तोपें भी रखी हुई है, इन तोपों तक जाने का रास्ता रिहायशी इलाकों की इन्हीं संकरी गलियों से होकर निकलता है, हमने 4 में से 3 तोपें देखी ! गलियों में भटकते हुए हमें कुछ बंद रास्ते भी मिले, इस बीच हम टहलते हुए लक्ष्मी नारायण मंदिर पहुंचे, मंदिर की बनावट देखकर ही हमें अंदाजा हो गया था कि ये एक प्राचीन मंदिर है ! अपने जूते बाहर उतारकर हम मंदिर परिसर में दाखिल हुए, इस समय संध्या आरती चल रही थी हम भी जाकर इस आरती में शामिल हो गए ! आरती ख़त्म होने के बाद भी हम काफी देर तक वहीँ बैठे रहे, इस दौरान वहां लोग आते जाते रहे ! हमने मंदिर में बैठे कुछ स्थानीय लोगों से मंदिर के इतिहास के बारे में पूछा तो पता चला कि ये मंदिर कई शताब्दियों पुराना है !
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर मंदिर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर का एक दृश्य |
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दीवार पर लगा शादी का एक निमंत्रण पत्र |
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जैसलमेर दुर्ग के अन्दर एक होटल |
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दीवार पर लगा विवाह का एक निमंत्रण पत्र |
प्राप्त जानकारी के अनुसार जैसलमेर दुर्ग में स्थित ये एक महत्वपूर्ण हिन्दु मंदिर है, जिसका आधार मूल रूप में पंचयतन के रूप में था। इस मंदिर का निर्माण जैसलमेर दुर्ग के निर्माण के समय ही राव जैसल द्वारा कराया गया था । मंदिर का सभामंडप किले की अन्य इमारतों के समकालीन है, इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में हुआ था। अलाउद्धीन के आक्रमण के समय इस मंदिर का एक बङा भाग ध्वस्त कर दिया गया था । लेकिन 15वीं शताब्दी में महारावल लक्ष्मण द्वारा इसका जीर्णोधार करवाया गया। मंदिर के सभा मंडप के खंभों पर घटपल्लव आकृतियाँ बनी है। मंदिर के गर्भ गृह, गूढ़ मंडप तथा अन्य भागों का भी कई बार जीर्णोधार करवाया गया। मंदिर के दरवाजों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमाएँ भी उत्कीर्ण है तथा गणेश मंदिर की छत में भगवान् विष्णु की सर्पो पर विराजमान मूर्ति है। इस मंदिर का प्रांगण काफी खुला है और पिछले भाग में कुछ निर्माण कार्य चल रहा था ! हम इस मंदिर से दर्शन करके निकले तो रात के साढ़े नौ बज रहे थे, अधिकतर लोग अपने घरों में जा चुके थे, लेकिन फिर भी कुछ घरों के आगे लोगों ने दुकानें भी खोल रखी थी जहाँ किताबें, साज-सज्जा की वस्तुएं और अन्य सामान बिक्री के लिए रखी थी !
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जैसलमेर दुर्ग की दीवार पर लगी एक तोप |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर के बाहर का एक दृश्य |
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लक्ष्मी नारायण मंदिर के बाहर का एक दृश्य |
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दीवार पर लगा विवाह का एक निमंत्रण पत्र |
पूछताछ में एक स्थानीय व्यक्ति से हमें पता चला कि किले के प्रवेश द्वार रात को 10 बजे बंद हो जाते है, हम अब तक किले का अधिकतर भाग घूम ही चुके थे इसलिए यहाँ से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! स्टेशन के लिए प्रस्थान करने से पहले हमें रात्रि भोजन भी करना था, यहाँ आने से पहले हमने बस कुल्हड़ वाला दूध ही पिया था ! इसलिए यहाँ से निकलकर हम फिर से हनुमान चौराहे की ओर चल दिए, वहां खाने-पीने के बढ़िया विकल्प थे और हमारी धर्मशाला भी वहां से ज्यादा दूर नहीं थी ! 10-15 मिनट बाद हम मंदिर पैलेस के पास एक होटल में बैठे अपने खाने की प्रतीक्षा कर रहे थे और फिर अगले आधे घंटे में हम खा-पीकर फारिक हो चुके थे ! यहाँ से निकले तो धर्मशाला जाकर अपना सामान लिया और वापिस इसी चौराहे पर आ गए ! फिर एक ऑटो में सवार होकर हम स्टेशन के लिए निकल पड़े, मुश्किल से 10 मिनट का समय लगा और हम स्टेशन के सामने खड़े थे, समय रात के 11 बज रहे थे ! हमारी ट्रेन रात्रि 11 बजकर 55 मिनट पर थी, मतलब अभी एक घंटा बाकि था, करने को कुछ था नहीं तो स्टेशन पर एक खाली जगह देखकर बैठ गए !
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जैसलमेर रेलवे स्टेशन का एक दृश्य |
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जैसलमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म का एक दृश्य |
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जैसलमेर रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म का एक दृश्य |
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लीलण राजस्थान लोक देवता की प्रिय घोड़ी का नाम था |
कुछ देर तो आस-पास की गतिविधियों पर नज़र रखी, लेकिन खाली बैठे-2 नींद की झपकियाँ भी आने लगी ! नींद से बचने के लिए प्लेटफार्म पर टहलना शुरू कर दिया, इस बीच खाली दिमाग में जैसलमेर भ्रमण के चित्र स्मृति पटल पर आने लगे ! ये यात्रा बड़ी मजेदार रही थी, पहले दिन होटल ढूँढने में देरी के कारण एक बार तो लगने लगा था कि शायद पूरा जैसलमेर नहीं घूम पाएंगे, लेकिन अंत भला तो सब भला ! हम यहाँ की अधिकतर जगहें देख चुके थे, कुल मिलाकर अभी तक हमारी ये यात्रा सफलतापूर्वक चल रही है, उम्मीद है बीकानेर में भी बढ़िया समय कटेगा ! हमारे ट्रेन की उद्घोषणा अभी नहीं हुई थी, हालांकि, ये ट्रेन सबसे आखिरी वाले प्लेटफार्म पर खड़ी थी, लेकिन जानकारी के अभाव में हमने ज्यादा माथा-पच्ची नहीं की ! रात पौने बारह बजे जब इस ट्रेन के आखिरी प्लेटफार्म पर खड़े होने की उद्घोषणा हुई तो भगदड़ सी मच गई, खैर, हमारी सीटें कन्फर्म थी तो कोई परेशानी वाली बात नहीं थी ! इस ट्रेन का नाम लीलण एक्सप्रेस है जो राजस्थान के लोक देवता की प्रिय घोड़ी का नाम था, ये जानकारी ट्रेन के ऊपर ही लिखी हुई थी ! ट्रेन अपने निर्धारित समय पर जैसलमेर से चल पड़ी, आज खूब पैदल चले थे इसलिए अच्छी-खासी थकान हो गई थी, अपनी बर्थ पर लेटते ही कब नींद आ गई कुछ याद नहीं ! चलिए, इसके साथ ही यात्रा के इस लेख पर विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको बीकानेर की घुमक्कड़ी करवाऊंगा !
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और khaabha साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
जैसलमेर यात्रा समाप्त...
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जैसलमेर यात्रा
लीलण नाम राजस्थान के लोक देवता की घोड़ी का अच्छा लगा और पढ़कर कुछ नया जानने को मिला...जैसलमेर मंदिर और किले के रात्रि कालीन दृश्य मस्त है...बीकानेर की प्रतीक्षा में
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई, बीकानेर के लेख भी जल्द ही प्रकाशित करूँगा !
Deleteबहुत बढ़िया पोस्ट चौहान साहब .इधर कभी गया नहीं जब जाऊँगा तो आपकी ये पोस्ट काम आएगी .
ReplyDeleteशानदार जगह है, मेरा मन तो इधर दोबारा जाने का है !
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