लोद्रवा का चुंधी-गणेश मंदिर (Chundhi Ganesh Temple of Lodruva)

सोमवार, 25 दिसंबर 2017

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जैसलमेर यात्रा के पिछले लेख में आप लोद्रवा के जैन मंदिर घूम चुके है, मंदिर से बाहर निकले तो अँधेरा हो चुका था, गाडी में सवार होकर हम जैसलमेर के लिए वापसी कर रहे थे, इस बीच मन में उधेड़-बुन चल रही थी कि जैसलमेर पहुँच कर कठपुतली का शो देखा जाए या स्थानीय बाज़ार घूमा जाए ! आज दिनभर की यात्रा के पल भी मन के किसी कोने में घूम रहे थे और हम तेजी से जैसलमेर की ओर प्रस्थान कर रहे थे ! इस बीच सड़क पर एक ब्रेकर आया और भूरा राम इसे देख नहीं पाया, नतीजन, गाडी जोर से उछली और हमारा सिर गाडी की छत से टकराया ! मन में चल रहे सारे विचार एकदम से गायब हो गए, हम कुछ कहते उससे पहले भूरा राम ही बोल पड़ा, सरजी मुझे ब्रेकर दिखाई नहीं दिया, इसलिए गाडी उछल गई, आप लोगों को चोट तो नहीं लगी ! खैर, चिंता वाली कोई बात नहीं थी इसलिए हम समय गंवाए बिना फिर से आगे बढ़ गए, कुछ दूर जाने पर रास्ते में पैदल जा रहे एक वृद्ध ने हाथ देकर गाडी रुकने का इशारा किया तो हमने उसे भी अपने साथ बिठा लिया ! उसे पास के ही एक गाँव में जाना था, पैदल जाता तो जाने कितना समय लग जाता, हम उसे रास्ते में छोड़ते हुए आगे बढ़ गए !

चुंधी गणेश मंदिर के अन्दर का एक दृश्य

फिर जब हम एक तिराहे पर पहुंचे तो गाडी की रोशनी में दाईं ओर जा रहे मार्ग के कोने पर चुंधी-गणेश मंदिर का एक बोर्ड दिखाई दिया ! भूरा राम बोला, सरजी अगर आप कहो तो कठपुतली के शो से बढ़िया आपको इस मंदिर के दर्शन करवा देता हूँ, बहुत शानदार मंदिर बना है, और इसकी मान्यता भी है ! हमने कहा चलो मंदिर ही देख लेते है, हमें तो घूमने से मतलब है, गाडी इस तिराहे से मोड़कर हम मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, ये सड़क मंदिर के सामने ही जाकर ख़त्म होती है ! आधा-पौना किलोमीटर चलने के बाद हम मंदिर के सामने पहुंचे, गाडी खड़ी करके प्रवेश द्वार से मंदिर परिसर में दाखिल हुए ! अँधेरा हो चुका था लेकिन आसमान के एक कोने में लाल बादलों ने अपना डेरा जमाया हुआ था, जो देखने में बहुत शानदार लग रहे थे ! मंदिर परिसर में फव्वारे लगे हुए थे, जिनमें इस समय पानी तो नही था लेकिन ये रंग-बिरंगी कृत्रिम रोशनी में नहाए हुए थे ! चलिए आगे बढ़ने से पहले आपको इस मंदिर से सम्बंधित कुछ जानकारी दे देता हूँ ! इस मंदिर का इतिहास लगभग 1400 वर्ष पुराना है, कहते है कि यहाँ चंवद नाम के महात्मा ने कई वर्षों तक तपस्या की थी, कालांतर में ये स्थान उन्हीं के नाम पर प्रसिद्द हो गया और इसे चुंधी मंदिर के नाम से जाना जाने लगा !
चुंधी गणेश मंदिर प्रांगण से लिया एक चित्र 

चुंधी गणेश मंदिर प्रांगण का एक दृश्य

चुंधी गणेश मंदिर प्रांगण का एक दृश्य

चुंधी गणेश मंदिर प्रांगण से लिया एक चित्र 
मंदिर में रखी प्रतिमा भूमि से स्वत: ही प्रकट हुई थी, बाद में यहाँ इस मंदिर की स्थापना कर दी गई, वैसे ये मंदिर एक बरसाती नदी के बीच में बना है, फिल्हाल तो इसमें पानी नहीं था लेकिन बारिश के दिनों में इसमें बढ़िया जल-प्रवाह रहता है और गणेश जी की प्रतिमा भी जलमग्न हो जाती है ! कुछ लोग ये भी मानते है कि गणेश चतुर्थी से पहले जब यहाँ बारिश होती है और प्रतिमा जलमग्न हो जाती है तो इंद्र सहित समस्त देवतागण गणपति जी का जलाभिषेक करने आते है ! ये गणेश जी अपने भक्तों का घर बनाने का सपना भी पूरा करते है, मंदिर के पीछे पत्थरों का ढेर लगा हुआ है और यहाँ आने वाले भक्त अपने हाथों से बिखरे हुए इन पत्थरों को जोड़कर घर बनाकर प्रार्थना करते है कि ऐसा ही घर वो स्वयं के लिए जल्द ही बना सके ! अब ऐसे कितने लोगों की मन्नत पूरी होती है इसका तो मुझे नहीं पता लेकिन यहाँ पत्थरों को जोड़कर बनाए गए घरों का अम्बार लगा हुआ है ! पूरे देश में गणेश जी का ये इकलौता मंदिर है जो कभी रेत के दरिया में रहता है तो कभी पानी के सैलाब में ! एक ही स्थान पर दो अनोखे माहौल देखने के लिए पूरे वर्ष यहाँ भक्तों का तांता लगता रहता है !
चुंधी गणेश मंदिर के अन्दर का एक दृश्य

मंदिर के अन्दर का एक दृश्य

मंदिर के अन्दर का एक दृश्य

मंदिर के अन्दर का एक दृश्य

मंदिर के अन्दर स्थापित एक शिवलिंग
चलिए, वापिस लौटते है जहाँ हम मुख्य भवन के पास पहुँच चुके है, सीढ़ियों से होते हुए हम मुख्य भवन में पहुंचे, मंदिर के भीतरी भाग में दीवारों और छत को रंग-बिरंगे चमकीले कागजों से सजाया गया है ! मंदिर की सजावट देखने लायक थी, अलग-2 देवी-देवताओं की मूर्तियाँ यहाँ स्थापित की गई है, एक कक्ष में काली माता की मूर्ति स्थापित थी तो दूसरे में हनुमान जी विराजमान थे ! एक अन्य कक्ष में शिवलिंग की स्थापना की गई थी जिसके ऊपर मुकुट रखा गया था तो एक जगह भगवान् राम-सीता की मूर्ति सुशोभित थी ! दर्शन करने के बाद हम कुछ देर ध्यान लगाने के लिए मुख्य भवन के बरामदे में बैठ गए, इस बीच मंदिर के पुजारी से भी बातचीत हुई ! ये अपनी बाल अवस्था में ही यहाँ आ गए थे, पुजारी जी से कुछ गंभीर विषयों पर भी चर्चा हुई ! यहाँ से निकले तो मंदिर के दूसरे भाग में पहुँच गए, जहाँ गणेश जी की भूमि से निकली हुई प्रतिमा रखी हुई थी, लगे हाथ हमने भी गणेश जी से अपना घर बनाने की अपील कर डाली ! देखिये, अगर आने वाले समय में अपना घर बनता है तो इस मान्यता पर भी मुहर लग जाएगी ! मंदिर में भी हमने काफी समय व्यतीत किया, भूरा राम को भी अपने घर से कई बार फ़ोन आ चुका था शायद उसे किसी ज़रूरी काम से कहीं जाना था !
मंदिर के अन्दर का एक दृश्य

मंदिर के अन्दर का एक दृश्य
मंदिर के अन्दर गणेश जी की एक प्रतिमा 
मंदिर के अन्दर गणेश जी की एक प्रतिमा 

मंदिर परिसर में पत्थरों से बनाये हुए भक्तों के घर
कुछ देर बाद मंदिर परिसर से निकलकर अपनी गाडी में सवार होकर हम जैसलमेर की ओर चल दिए, मंदिर से हनुमान चौराहे के 12 किलोमीटर के सफ़र को तय करने में हमें ज्यादा समय नहीं लगा, 15-20 मिनट बाद हम हनुमान चौराहे पर एक रेहड़ी पर खड़े मूंगफली खा रहे थे ! आज का भ्रमण लगभग पूरा हो चुका था लेकिन अभी जैसलमेर किले को रात की रोशनी में देखना बाकि रह गया था ! हनुमान चौराहे से निकलकर हम एक रिहायशी इलाके में पहुंचे, गाडी खड़ी करके हम पैदल ही इस बस्ती में चल दिए, यहाँ एक ऊंची दीवार से कृत्रिम रोशनी में जैसलमेर दुर्ग का शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था ! एक घर की छत पर खड़े होकर हमने कुछ चित्र लिए और भूरा राम को उसका मेहनताना देने के साथ ही वापसी की राह पकड़ी ! वापसी में भूरा राम ने हमें फिर से हनुमान चौराहे पर छोड़ दिया, जिस धर्मशाला में हम ठहरे थे वैसे तो वो यहाँ से ज्यादा दूर तो नहीं था लेकिन वापिस जाने से पहले हमें पेट पूजा भी करनी थी इसलिए हम दोनों बाज़ार की ओर चल दिए ! रात्रि भोजन करने के बाद टहलते हुए हम अपनी धर्मशाला में पहुंचे और आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए, इस लेख में फिल्हाल इतना ही, अगले लेख में आपको कुलधरा की सैर करवाऊंगा !
मंदिर परिसर से वापिस जाते हुए लिया एक चित्र

मंदिर परिसर का एक चित्र

रात के समय दिखाई देता जैसलमेर शहर

रात के समय दिखाई देता जैसलमेर शहर
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है ! 

कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !

क्या देखें (Places to see near 
Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !


अगले भाग में जारी...

जैसलमेर यात्रा

  1. जोधपुर से जैसलमेर की ट्रेन यात्रा (A Journey from Jodhpur to Jaisalmer)
  2. जैसलमेर के सोनार किले की सैर (A Visit to Jaisalmer Fort)
  3. जैसलमेर की शानदार हवेलियाँ (Beautiful Haveli’s of Jaisalmer)
  4. जैसलमेर की गदीसर झील (Gadisar Lake of Jaisalmer)
  5. जैसलमेर का बड़ा बाग (Bada Bagh of Jaisalmer)
  6. लोद्रवा के जैन मंदिर (Jain Temples of Lodruva)
  7. लोद्रवा का चुंधी-गणेश मंदिर (Chundhi Ganesh Temple of Lodruva)
  8. कुलधरा – एक शापित गाँव (Kuldhara – A Haunted Village)
  9. खाभा फोर्ट – पालीवालों की नगरी (Khabha Fort of Jaisalmer)
  10. खाभा रिसोर्ट और सम में रेत के टीले (Khabha Resort and Sam Sand Dunes)
  11. जैसलमेर के पांच सितारा होटल (Five Star Hotels in Jaisalmer)
  12. जैसलमेर दुर्ग के मंदिर और अन्य दर्शनीय स्थल (Local Sight Seen in Jaisalmer)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. जय हो भूराराम...कठपुतली शो के बदले मंदिर दर्शन करवा दिये....

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    1. जी बिलकुल प्रतीक भाई, मंदिर के दर्शन करवा दिए भूरा राम ने !

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