देशनोक का करणी माता मंदिर (Karni Mata Temple, Deshnok)

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आप जूनागढ़ के ऐतिहासिक किले का भ्रमण कर चुके है, भ्रमण के बाद पेट पूजा करके फ़ारिक हुए तो हमारे पास दो विकल्प थे ! या तो हम पहले लालगढ़ पैलेस देखकर फिर करणी माता मंदिर में दर्शन के लिए जाते या फिर ठीक इसके उलट, यानि करणी माता मंदिर पहले और लालगढ़ पैलेस बाद में ! हमने दूसरा विकल्प चुना, इसका कारण था कि करणी माता मंदिर बीकानेर से लगभग 30 किलोमीटर दूर देशनोक में है जबकि लालगढ़ पैलेस बीकानेर शहर में ही है ! फिर हमारी वापसी की ट्रेन आज रात को बीकानेर से ही थी, और हम नहीं चाहते थे कि शाम को ट्रेन पकड़ने के लिए किसी भी तरह की भागम-भाग हो ! देशनोक जाने के लिए हमें क्या सवारी मिलेगी, कहाँ से मिलेगी, यही सोचते हुए हम किले से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि जूनागढ़ किले से बीकानेर बस अड्डे की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है जहां से देशनोक के लिए नियमित अंतराल पर बसें चलती रहती है लेकिन ये बसें किले के पास स्थित एक चौराहे से होकर निकलती है ! इसलिए हम बस अड्डे ना जाकर इस चौराहे पर पहुंचे, और अगले 10 मिनट में ही देशनोक जाने के लिए एक बस आकर खड़ी हुई ! बस में बैठने से पहले हमने परिचालक से सुनिश्चित कर लिया कि ये बस करणी माता मंदिर जाने के लिए हमें देशनोक उतार देगी ! इस तरह हमने बीकानेर से देशनोक के लिए अपना आगे का सफर शुरू किया, बस रास्तों में कई जगह रुकी, इस बीच सवारियों का चढ़ना-उतरना भी जारी रहा !

करणी माता मंदिर की एक झलक

शहर में तो बस ने ज्यादा रफ्तार नहीं पकड़ी, लेकिन एक बार शहर से बाहर निकलकर बस ने रफ्तार पकड़ ली ! हालांकि, रास्ते में भी सवारियों के लिए बस कई जगह रुकी, दिसंबर का महीना होने के बावजूद आज बढ़िया धूप खिली थी और हवा भी ठीक-ठाक चल रही थी ! सर्दी के मौसम में खिड़की वाली सीट पर बैठकर बस में सफर करने के अगर कुछ फायदे है तो कुछ नुकसान भी है ! मुझे भी खिड़की से बाहर के नज़ारे तो दिखाई दे रहे थे, लेकिन अगली सीट का शीशा खुला होने के कारण ठंडी हवा भी लग रही थी ! सड़क के दोनों तरफ दूर-2 तक वीरान मैदान हमें रेगिस्तान में होने का एहसास करा रहे थे, कुल मिलाकर बढ़िया सफर कट रहा था ! वैसे राजस्थान में घूमने का असली मजा तो सर्दियों में ही है, यात्रा के दौरान मुझे तो बीच में कई बार झपकियाँ भी आई, लेकिन जब भी कहीं बस रुकती तो मेरी नींद खुल जाती ! हालांकि, बस में बैठे हुए मुझे कुछ अंदाजा नहीं हो रहा था कि हम किस दिशा में जा रहे है, क्योंकि मुझे तो हर चौराहा एक जैसा ही लग रहा था, जहां गन्ने का रस बेचने वाले ठेले खड़े थे ! इस तरह लगभग घंटे भर का सफर करके हम देशनोक पहुंचे, जब परिचालक ने आवाज लगाकर हमें यहाँ उतरने के लिए कहा ! 

बस से उतरकर हमें मंदिर जाने के लिए कुछ दूर पैदल भी चलना पड़ा, लेकिन मार्ग बढ़िया बना है और सड़क के दोनों तरफ चहल-पहल है तो कोई परेशानी नहीं होती ! कुछ देर बाद हम करणी माता के मंदिर के ठीक सामने खड़े थे, यहाँ पूजा सामग्री और खान-पान की कई दुकानें थी ! ऐसी ही एक दुकान पर रुककर हमने पूजा सामग्री ली और मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए जहां एक कतार में कई श्रद्धालु खड़े थे ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी आपको इस मंदिर के बारे में दे देता हूँ ! करणी माता का ये मंदिर एक प्राचीन हिन्दू धार्मिक स्थल है जिसकी स्थापना 14 वीं सदी में हुई थी ! करणी माता को बीकानेर राजघराने की कुलदेवी के रूप में पूजा जाता है, स्थानीय लोगों के अनुसार बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना करणी माता के आशीर्वाद से ही हुई ! करणी माता का जन्म 1387 में एक साधारण परिवार में हुआ, समय बीतने के साथ वो बड़ी हुई और अपने विवाह के कुछ वर्ष पश्चात ही वो पारिवारिक जीवन से विमुख होकर भक्ति और जनकल्याण में अपना ध्यान लगाने लगी ! अपने जीवन काल में उन्होनें कई चमत्कार किए, इसलिए उनका नाम करणी माता पड़ा ! जिस गुफा में रहकर करणी माता अपने आराध्य की पूजा करती थी वो गुफा आज भी मंदिर परिसर में मौजूद है ! माता का जीवनकाल 151 वर्षों का रहा, उनकी मृत्यु के पश्चात लोगों ने उनकी अंतिम इच्छा स्वरूप इस गुफा में ही उनकी मूर्ति की स्थापना कर दी, तभी से निरंतर भक्तजन उनकी पूजा करते आ रहे है !

मंदिर में जाने का प्रवेश द्वार

कतार में लगे लोग

इसके अलावा ये मंदिर चूहों के लिए भी प्रसिद्ध है इसलिए इसे चूहों का मंदिर भी कहा जाता है, मंदिर में मौजूद हजारों चूहे स्वतंत्र रूप से भगवान की मूर्ति से लेकर प्रसाद और अन्य पूजा सामग्रियों पर घूमते रहते है ! लोगों की मौजूदगी भी इन चूहों को विचलित नहीं करती, आप बस मंदिर परिसर में कहीं भी बैठ जाइए, ये चूहे आपके ऊपर से दौड़ लगाते हुए इधर-उधर भागते रहेंगे ! कहते है कि करणी माता की बहन के चार पुत्र हुए, जिन्हें करणी माता अपने पुत्रों की तरह ही मानती थी, बाद में इनके वंशज देपावत चारण के नाम से जाने गए, करणी माता की मृत्यु के बाद ये देपावत चारण मंदिर के पुजारी बने ! ये भी कहा जाता है कि जब कोई देपावत मृत्यु को प्राप्त होता है तो वो मंदिर में चूहा बनकर पैदा होता है ! इन चूहों को चील, गिद्ध और अन्य जानवरों से बचाने के लिए मंदिर परिसर में जाली लगाई गई है ! जो लोग यहाँ माता के दर्शन के लिए आते है वो इन चूहों के लिए प्रसाद स्वरूप दूध और लड्डू लेकर आते है ! चूहों द्वारा भोग लगाने के बाद प्रसाद को भक्तजनों में वितरित किया जाता है और लोग श्रद्धाभाव से प्रसाद ग्रहण करते है ! इसके अलावा मंदिर में एक सफेद चूहा भी है जो बहुत विरला ही दिखाई देता है, हमें अपनी यात्रा में सफेद चूहा नहीं दिखाई दिया ! 

चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम कतार में खड़े अंदर जाने की प्रतीक्षा कर रहे है ! जिस समय हम मंदिर पहुंचे यहाँ मरम्मत कार्य चल रहा था, मंदिर की बनावट में राजपूत और मुग़ल वास्तुकला की झलक देखने को मिलती है ! बाहरी दीवारों पर गुलाबी और सफेद रंग से पुताई की गई है, अपनी बनावट के कारण दूर से देखने पर ये दीवारें किसी किले की दीवार जैसी प्रतीत होती है ! मंदिर निर्माण में बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, इसमें कई द्वार, और गलियारे है ! मंदिर के मुख्य द्वार पर सुंदर नक्काशी की गई है और गर्भगृह में हाथ में त्रिशूल पकड़े माता की मूर्ति स्थापित की गई है ! मंदिर में चांदी का दरवाजा, सोने का छत्र और चूहों के भोग के लिए रखी चांदी की बड़ी परात आकर्षण का मुख्य केंद्र है ! देश-विदेश से हजारों भक्त श्रद्धा भाव से हर साल इस मंदिर में आते है ! जब हम अंदर दाखिल हुए तो यहाँ का दृश्य देखने लायक था, चारों तरफ जहां भी नजर जाती, चूहे ही दौड़ते हुए दिखाई दे रहे थे ! एक तरफ बड़ी कड़ाही में प्रसाद रखा हुआ था और चूहे भोग लगा रहे थे तो कहीं एक चबूतरे पर बड़े थाल में दूध रखा हुआ था, यहाँ भी चूहे ही भोग लगा रहे थे ! माता के दर्शन करने के बाद हम भी परिसर में चूहों के बीच घूमते रहे, चूहे बड़ी बेफिक्री से घूम रहे थे ! फिर हम अपने हाथ में लड्डू लेकर एक जगह बैठ गए और चूहे हमारे हाथ पर आकर लड्डू खाते रहे !

मंदिर में चूहों के लिए रखा दूध

गर्भ गृह का एक दृश्य

मंदिर की जानकारी देता एक बोर्ड

मंदिर परिसर में लगा करणी माता का एक चित्र

मंदिर परिसर में चूहे

गर्भ गृह का एक अन्य दृश्य
लड्डू का भोग लगाते चूहे
यहाँ मंदिर परिसर में फोटो खींचने की मनाही थी लेकिन कुछ लोग पैसे लेकर फोटो खींचने दे रहे थे, कुछ लोगों को इस बाबत लड़ते भी देखा ! पूछने पर पता चला कि मंदिर के इन लोगों ने एक लड़के का फोन छीन लिया है क्योंकि वो बिना पैसे दिए फोटो खींच रहा था ! ये बड़ी बेकार बात थी, अगर फोटो खींचने पर मनाही है तो किसी को भी मत खींचने दो लेकिन फोटो खींचने की एवज में लोगों से पैसे ऐंठना गलत बात है वो भी एक मंदिर में ! खैर, कुछ देर मंदिर में बिताने के बाद हम बाहर आ गए और मंदिर के सामने बने करणी माता के म्यूजियम में चले गए ! यहाँ भी फोटो खींचने की मनाही थी इसलिए थोड़ी देर घूमने के बाद ही हम म्यूजियम परिसर से बाहर आकर पेट पूजा के लिए एक दुकान पर जाकर रुके ! मंदिर के पास थोड़ी खरीददारी करने के बाद हम आराम करने के लिए यहाँ से थोड़ी दूर स्थित एक पार्क में चले गए, जो एक अन्य मंदिर परिसर से सटा हुआ था ! घंटा भर आराम करने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी, और शाम 4 बजे से पहले बीकानेर के उसी चौराहे पर पहुँच गए जहां से हमने देशनोक जाने के लिए बस पकड़ी थी ! चलिए, तो इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, यात्रा के अगले लेख में आपको बीकानेर के लालगढ़ पैलेस की सैर करवाऊँगा !

मंदिर के सामने बना संग्रहालय

क्यों जाएँ (Why to go Bikaner): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, तो राजस्थान में बीकानेर का रुख कर सकते है !


कब जाएँ (Best time to go Bikaner): बीकानेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Bikaner): बीकानेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 460 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से बीकानेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 11-12 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी तो बढ़कर लगभग 500 किलोमीटर हो जाती है लेकिन दूरी तय करने का समय घटकर 8 घंटे हो जाता है ! सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बीकानेर के लिए बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी बीकानेर जा सकते है !


कहाँ रुके (Where to stay near Bikaner): बीकानेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 500 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! यहाँ कई धर्मशालाएं भी है जहाँ रुकना काफी सस्ता पड़ता है ! खाने-पीने की सुविधा हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !


क्या देखें (Places to see near Bikaner): बीकानेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जूनागढ़ किला, लालगढ़ पैलेस, और देशनोक में स्थित करनी माता का मंदिर प्रमुख है ! खरीददारी के लिए बीकानेर के में आपको काफी कुछ मिल जायेगा, आप यहाँ से राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !



Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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