अलवर का बाला किला (A Visit to Bala Fort, Alwar)

बुधवार 3 अप्रैल 2019

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यात्रा के पिछले लेख में आप मेरे साथ तिजारा के जैन मंदिर के दर्शन कर चुके है, अब आगे, तिजारा के मंदिर से चले तो एक रिहायशी इलाके से होते हुए हम कुछ ही देर में फिर से भिवाड़ी-तिजारा राजमार्ग पर पहुँच गए ! अब हमारा अगला पड़ाव अलवर था जो यहाँ से 55 किलोमीटर दूर है, बढ़िया मार्ग बना है और ज्यादा भीड़ भी नहीं मिलती, इसलिए घंटे भर में ये सफर आसानी से तय हो जाता है ! आज बाहर बहुत तेज गर्मी है, गाड़ी के अंदर तो पता नहीं चलता लेकिन एसी बंद करते ही गर्मी का एहसास होने लगता है ! वैसे तो तिजारा से लस्सी पीकर चले थे लेकिन थोड़ी-2 देर में प्यास लग रही थी, अलवर पहुँचने पर भी सबको तेज प्यास लगी थी इसलिए सबसे पहले हम एक गन्ने के रस की दुकान पर जाकर रुके ! यहाँ 2-2 गिलास गन्ने का रस पीकर गले की तरावट की, रस पीकर तन के साथ मन भी तृप्त हो गया ! यहाँ से आगे बढ़े तो मुख्य मार्ग से हटकर बाला किले की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, मुख्य शहर से ये किला लगभग 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर है ! किले की ओर जाने का मार्ग एक रिहायशी इलाके से होकर निकलता है, गालियां थोड़ा संकरी है, इसलिए अगर सामने से कोई गाड़ी आ जाए तो निकलना थोड़ा मुश्किल है ! हालांकि, इस रिहायशी इलाके से बाहर निकलने के बाद रास्ता ठीक हो जाता है, लेकिन धीरे-2 चढ़ाई भरा मार्ग शुरू हो जाता है, ये रास्ता एक प्रवेश द्वार के पास जाकर खत्म होता है जहां इस किले में जाने के लिए चेक पोस्ट बना है ! वैसे आज हम अलवर में कई जगहें देखने का मन लेकर आए है, लेकिन मौसम का मिजाज देखते हुए पता नहीं क्या-2 देख पाएंगे !

बाला किला का एक दृश्य

चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको कुछ जानकारी इस किले के बारे में दे देता हूँ, बाला किले को अलवर का किला भी कहा जाता है ! अरावली पर्वत के बीच शहर से 304 मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर बसा ये किला 5 किलोमीटर लंबा और डेढ़ किलोमीटर चौड़ा है ! इस किले में 6 प्रवेश द्वार है और इन द्वारों को पोल के नाम से भी जाना जाता है, इन सभी द्वारों के नाम इस प्रकार है, जय पोल, सूरज पोल, चाँद पोल, कृष्ण पोल, लक्ष्मण पोल, और अंधेरी गेट ! इनमें से अधिकतर द्वारों के नाम कुछ शासकों के नाम पर रखे गए है, जैसे सूरजपोल का निर्माण महाराजा सूरजमल ने करवाया था ! प्राप्त जानकारी के अनुसार सबसे पहले इस किले पर निकुंभ राजपूतों का शासन रहा, लेकिन सन 1492 में खानज़ादा अलावल खान ने इस किले को निकुंभ राजपूतों से जीत लिया ! किले के वास्तविक निर्माण को लेकर जानकारी स्पष्ट नहीं है लेकिन 15वीं सदी में हसन खान मेवाती ने अपने शासन के दौरान इस किले का पुन: निर्माण करवाया था ! हालांकि, बाद में इस किले पर मराठों, मुगलों, जाटों और कछवाहों ने भी राज किया, 1775 में जब कछवाहा राजपूत शासक प्रताप सिंह ने किले पर कब्जा किया तो उन्होंने अलवर शहर की स्थापना भी की ! अगर किले की बनावट की बात करें तो ये इंडो-इस्लामिक शैली से निर्मित किला है, इस शैली की उत्पत्ति हिन्दू-मुस्लिम स्थापत्य कला के मिश्रण से हुई है और इस वास्तुकला में भारतीय और ईरानी शैलियों का मिश्रण दिखाई देता है ! किले की दीवारों पर सुंदर नक्काशी की गई है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को आकर्षित करती है !

वैसे तो किले परिसर के कई इमारतें बनी है लेकिन इनमें से जय महल, निकुंभ महल, सलीम महल, सलीम सागर तालाब और सूरज कुंड प्रमुख है ! इसके अलावा किले परिसर में कई मंदिर भी बने है जिनमें से करणी माता मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर और चक्रधारी हनुमान जी का मंदिर प्रमुख है ! हालांकि, देख-रेख के अभाव में इनमें से अधिकतर मंदिर अब जर्जर हो चुके है, लेकिन जो मंदिर बचे है वो आज भी प्राचीन काल की ऐतिहासिक भव्यता को दर्शाते है ! किले परिसर में 15 बड़े और 51 छोटे टावर बने है जिनमें 446 मोखले बनाए गए है, युद्ध की स्थिति में दुश्मन पर सटीक हमले के लिए इन्हीं मोखलों में से बंदूकें चलाई जाती थी ! जबकि किले की बाहरी दीवारों पर भी हजारों मोखले बने है जहां बैठकर बंदूकधारी सिपाही किले की पहरेदारी किया करते थे ! किले की ओर जाने वाले मार्ग से किले की बाहरी दीवारें साफ दिखाई देती है, जो काफी दूर तक फैली हुई है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार मुग़लों द्वारा निष्कासित होने के बाद सलीम 3 साल तक इस किले के एक महल में रहा था, जिसे अब सलीम महल के नाम से जाना जाता है ! वर्तमान में इस किले के बहुत छोटे भाग को ही पर्यटकों के लिए खोला गया है, कुछ लोगों का मानना है कि इस किले में बहुत बड़ा खजाना छुपा है इसलिए किले के अधिकतर भाग में लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा है ! किले परिसर में पुलिस वालों का अस्थायी निवास भी बना है जहां रहकर वो इस किले की चौकीदारी करते है, इससे खजाने वाली बात को बल मिलता है !

चलिए, आगे बढ़ते है जहां हम किले की ओर जाने वाले मार्ग के उस प्रवेश द्वार पर पहुँच चुके है, जहां चेक पोस्ट बना है ! द्वार से अंदर जाते ही हमारे बाईं ओर टिकट घर था, किला देखने के लिए प्रवेश टिकट यहीं से जारी होते है जिसके लिए 10 रुपए का मामूली शुल्क लिया जाता है ! अगर आप यहाँ निजी वाहन से घूमने आए है तो 20 रुपए दुपहिया वाहनों के लिए और 40 रुपए कार या अन्य चार पहिया वाहनों के लिए अदा करना होता है ! किले में पैदल घूमने जाने की अनुमति नहीं है इसलिए अगर आपके पास वाहन नहीं है तो आप वन विभाग की सफारी से भी किले का भ्रमण कर सकते है जिसके लिए आपको 1360 रुपए खर्च करने होंगे, इस जिप्सी में 6 लोगों के बैठने की व्यवस्था रहती है ! टिकट लेने के बाद गाड़ी में सवार होकर हम किले की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, इस मार्ग के बाईं ओर एक दीवार बनी है जिसके उस पार गहरी खाई है ! जैसे-2 हम आगे बढ़ते गए, चढ़ाई भी बढ़ती गई, घुमावदार मार्ग से होते हुए हम कुछ देर बाद हम जयपोल द्वार पर पहुंचे, ये किले का प्रथम प्रवेश द्वार है, वर्तमान में इसी द्वार से किले तक जाया जाता है ! इस किले के चारों ओर घना जंगल है जो सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य से सटा हुआ ही है इसलिए यहाँ वन्य जीवों का दिखना आम बात है, सांभर तो आपको किले के प्रवेश द्वार के पास बने पानी के कुंड के पास भी दिख जाएंगे ! अपनी इस यात्रा के दौरान हमें भी किले के आस-पास खूब सांभर दिखे, आप अगर बाला किला भ्रमण पर निकले है तो किले के पास जंगल की ओर ना जाए, क्योंकि इस जंगल में कई बार तेंदुए भी देखे गए है !

किले की ओर जाने का मार्ग

दूर से दिखाई देता जयपोल द्वार

जयपोल द्वार का एक दृश्य

जयपोल द्वार पर कुछ चित्र लेते हुए

विपुल और शशांक 

पीछे दिखाई देती किले की दीवार

तपती दोपहरी में किला भ्रमण

जयपोल द्वार से थोड़ा आगे बढ़ने पर बाईं ओर नीचे करणी माता का मंदिर है, जहां जाने के लिए सड़क किनारे सीढ़ियाँ बनी है ! अपनी यात्रा के दौरान जानकारी के अभाव में हम इस प्राचीन मंदिर को नहीं देख पाए थे, लेकिन अगर आप यहाँ घूमने आए तो इस मंदिर में दर्शन के लिए अवश्य जाए ! राजस्थान में करणी माता को कुल देवी का दर्जा प्राप्त है और समस्त राजस्थान में उनकी पूजा की जाती है, वैसे बीकानेर के देशनोक में करणी माता का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है, जिसे चूहों का मंदिर नाम से भी जाना जाता है ! बाला किला परिसर में स्थित इस मंदिर का निर्माण अलवर के शासक रहे बख्तावर सिंह ने करवाया था, इस मंदिर के बारे में विस्तार से फिर कभी बताऊँगा, फिलहाल आगे बढ़ते है ! यहाँ से चलकर कुछ देर बाद हम बाला किले के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने खड़े थे जहां द्वार के दोनों ओर तोपें रखी थी ! किले का मुख्य प्रवेश द्वार मोटी लकड़ी से बना है जिसे मजबूती देने के लिए लोहे की चद्दरों और कीलों को लगाया गया है ! किले का प्रवेश द्वार तो बहुत बड़ा नहीं था लेकिन अंदर जाते ही नजारा बदल जाता है और किले की विशालता का अनुमान होने लगता है ! प्रवेश द्वार से अंदर आते ही एक खुला बरामदे है जो काफी दूर तक फैला है, तीनों ओर इमारतों से घिरे इस बरामदे में पत्थर बिछाए गए है और जगह-2 पेड़-पौधे भी लगाए गए है ! इस बरामदे के चारों तरफ बने गलियारे में प्रदर्शनी के लिए तोपें और अन्य युद्ध सामग्री रखी गई है ! हालांकि, इन वस्तुओं को राजस्थान के अन्य किलों की तरह व्यवस्थित करके नहीं रखा गया और इनका रख-रखाव भी अच्छे से नहीं किया जाता, जो एक चिंता का विषय है !

किला परिसर के बरामदे से दिखाई देता एक दृश्य

विपुल फोटोग्राफी करते हुए

किला परिसर के गलियारे में रखी एक तोप

तोप के साथ एक फोटो अपनी भी हो जाए

किला परिसर से दिखाई देता एक दृश्य

वो भी क्या दिन थे

बाला किले में ग्रुप फोटो

किले के प्रथम तल से दिखाई देता एक दृश्य

किले का कुछ भाग मौसम की मार से क्षतिग्रस्त होकर टूटने भी लगा है जिसके अवशेष किले परिसर में बिखरे पड़े है, प्रशासन को इस किले के रख-रखाव की ओर ध्यान देना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इस ऐतिहासिक किले को देख सके ! हमने बारी-2 से गलियारे में जाकर वहाँ रखे हथियारों को देखा और कुछ फोटो खींचने के बाद सीढ़ियों से होते हुए किले के ऊपरी भाग में चले गए ! प्रथम तल पर भी किले का अधिकतर भाग बंद ही था लेकिन फिर भी यहाँ से अलवर का जो विहंगम दृश्य दिखाई देता है वो लाजवाब है ! किले के एक भाग से दूसरे भाग में जाने के लिए चौड़ा गलियारा बना है और यहाँ से भी किले के चारों ओर बनी सुरक्षा दीवारें दिखाई देती है ! दूर तक फैले घने जंगल को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि बारिश में जब हरियाली अपने चरम पर होती होगी तो यहाँ के नज़ारे कितने खूबसूरत होते होंगे, फिलहाल तो चारों तरफ सूखे पहाड़ और जंगल ही दिखाई दे रहे थे ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस किले से मिला अधिकतर सामान नीचे सिटी पैलेस में बने संग्रहालय में प्रदर्शनी के लिए रखा है, जहां 20 रुपए का मामूली शुल्क देकर आप संग्रहालय का भ्रमण कर सकते है ! किले परिसर में कुछ समय बिताने के बाद हम बाहर आ गए, वैसे फिलहाल हमारे अलावा यहाँ इक्का-दुक्का पर्यटक ही दिखाई दे रहे थे ! किले से बाहर आते ही हमें सांभर का एक झुंड दिखाई दिया जो भोजन और पानी की तलाश में किले के आस-पास घूमते रहते है, वापिस आने से पहले हमने इनकी भी कुछ फोटो ली ! इसी के साथ यात्रा के इस लेख पर विराम लगाता हूँ अगले लेख में आपसे फिर मुलाकात होगी !

विपुल, हितेश और शशांक

शशांक और दूर दिखाई देते अन्य साथी

सेल्फ़ी स्टिक ठीक करते हुए मैं

अब कहाँ चला जाए शायद यही सोच रहे थे

किले से अलवर शहर को निहारते हुए

किले के अंदर एक कक्ष का दृश्य

किले के बरामदे में लिया एक चित्र

अलवर में पर्यटक स्थलों की जानकारी देता एक बोर्ड

किले के बाहर घूमते सांभर

वापसी की तैयारी करते हुए

किले के बाहर एक सांभर

कुत्ते के गले में प्लेट फंस गई

सांभर भी मस्त पोज दे रहे थे

वापसी में जयपोल के पास लिया एक चित्र

क्यों जाएँ (Why to go)अगर आप ऐतिहासिक इमारतों को देखना पसंद करते है और साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो आप अलवर के बाला किले का भ्रमण कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go): वैसे तो आप अलवर साल के किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन गर्मियों में यहाँ का तापमान बहुत बढ़ जाता है और ऐसे में किला घूमना आसान नहीं होता ! इसलिए कोशिश कीजिए कि आप बारिश के मौसम में या सर्दियों में यहाँ भ्रमण के लिए आए !

कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से अलवर की दूरी महज 170 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 2-3 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से अलवर जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मानेसर-भिवाड़ी होते हुए है, बढ़िया मार्ग बना है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो अलवर देश के कई रेलमार्गों से जुड़ा हुआ है ! अलवर रेलवे स्टेशन से इस किले की दूरी मात्र 11 किलोमीटर है, जिसे आप टैक्सी या ऑटो से तय कर सकते है !

कहाँ रुके (Where to stay): अलवर राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है लेकिन यहाँ रुकने के लिए बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है ! फिर भी जो होटल है उनमें से आप अपनी सुविधा अनुसार 1000 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! वैसे अलवर में घूमने की जगहें आप शहर में रहकर भी आसानी से देख सकते है इसलिए कोशिश कीजिए कि किसी सुनसान जगह ना रुककर शहर के बीच ही रुके !

क्या देखें (Places to see): अलवर में देखने की कई जगहें है जिसमें से बाला किला, सिटी पैलेस, मूसी महारानी की छतरी, मोती डूंगरी, कंपनी गार्डन, सिलिसेढ़ झील, और सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य प्रमुख है !


तिजारा-अलवर यात्रा

  1. तिजारा का जैन मंदिर (A visit to Jain Temple of Tijara)
  2. अलवर का बाला किला (A Visit to Bala Fort, Alwar)
  3. अलवर का सिटी पैलेस और संग्रहालय (City Palace and Museum, Alwar)
  4. मूसी महारानी की छतरी (Cenotaph of Maharani Moosi, Alwar)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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