चकराता के जंगल में बिताई एक शाम (A Beautiful Evening in Chakrata)

शुक्रवार, 25 दिसंबर, 2009 

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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम गुड़गाँव से एक लंबी यात्रा करके चकराता पहुँचे ! अब आगे, वैसे हमने अपनी यात्रा शुरू करने से पहले इंटरनेट से चकराता में अपने रुकने के लिए होटल तो ढूँढे थे, पर इंटरनेट से ढूँढने पर चकराता में हमें गिनती के ही होटल मिले थे और उनमें से किसी में भी कोई कमरा खाली नहीं था ! काफ़ी माथापच्ची के बाद भी जब चकराता में रुकने के लिए कोई होटल नहीं मिला तो हमने सोचा कि कोई बात नहीं, हम चकराता पहुँच कर कोई होटल ढूँढ लेंगे, क्योंकि बहुत से ऐसे छोटे-बड़े होटल भी होते है जिनकी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध नहीं होती ! इंटरनेट पर तो ज़्यादातर नामचीन होटल ही दिखाई देते है, या फिर ऐसे होटल जो पैसे खर्च करके अपनी वेबसाइट बनवाते है ! इसलिए चकराता पहुँचने के बाद हमारा सबसे पहला काम अपने लिए एक होटल ढूँढना था, ताकि थोड़ा आराम करने के बाद नहा- धोकर चकराता घूम सके ! 

hotel uttrayan
हमारे होटल का कमरा
वैसे, किसी भी पर्वतीय या दूसरे दर्शनीय स्थानों पर पहुँचने के बाद सबसे बड़ी दुविधा कमरा ढूँढने की ही होती है, अगर आसानी से उत्तम दर्जे का कमरा मिल जाए तो आपकी आधी दुविधा तो यहीं ख़त्म हो जाती है ! यात्रा के दौरान घूमने का कार्यक्रम आप कमरा मिलने के बाद ही बनाते है ! मैने कुछ लोगों को देखा है जो बड़ी उम्मीदों के साथ किसी जगह पर घूमने जाते है और अच्छा होटल ना मिलने के कारण यात्रा का उनका सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है ! वैसे, चकराता बहुत बड़ा कस्बा नहीं है, इसलिए अगर आप यहाँ गर्मी के मौसम में आएँगे जिस समय ज़्यादातर लोग घूमने के लिए निकलते है तो शायद आपको होटल को लेकर मारा-मारी देखने को मिले, पर अभी तो सर्दियाँ थी और ऐसे में तो यहाँ ज़्यादा पर्यटक नहीं आते होंगे ! गाड़ी से उतरकर हम दो लोग मैं और जयंत यहाँ के मुख्य चौराहे के आस-पास होटल ढूँढने लगे, पहले होटल में गए तो वहाँ 4 लोगों के रुकने की व्यवस्था नहीं थी, फिर अगले होटल में गए जोकि "होटल उत्तरायन" था यहाँ कमरे उपलब्ध थे और हम सबके रुकने की व्यवस्था हो गई ! 

ये होटल चकराता के मुख्य बाज़ार के पास ही था, और इस होटल के कमरे भी काफ़ी बड़े थे जिनमें सुंदर सजावट की गई थी ! पेशगी में कुछ रुपए देकर जयंत वहाँ कागज़ी कार्यवाही पूरी करने में लग गया और मैं बाकी साथियों को लेने वापस चला गया, जब मैने उन्हें बताया कि होटल मिल गया है तो राहुल होटल के बारे में मुझसे वहीं सवाल-जवाब करने लगा, कि होटल कैसा है, कमरे कैसे है, वगेरह-2 ! मैने कहा भाई इतनी मुश्किल से होटल मिला है, ज़्यादा नखरे मत दिखा वरना वो होटल भी भर जाएगा, और हाँ, कमरे तू खुद चलकर देख ले ! फिर हम सब अपना-2 बैग लेकर होटल की तरफ चल दिए, हमारे पीछे-2 ड्राइवर भी गाड़ी लेकर आ गया और होटल से 20 कदम पहले एक खुले भाग में जहाँ पहले से कुछ गाड़ियाँ खड़ी थी, उसने अपनी गाड़ी खड़ी कर दी ! ये होटल मुख्य शहर से थोड़ी उँचाई पर था, और यहाँ पार्किंग वाले क्षेत्र के किनारे खूब बड़े-2 चीड़ के पेड़ लगे हुए थे ! होटल पहुँचकर हम सब सीढ़ियों से होते हुए अपने कमरे में पहुँच गए, जोकि प्रथम तल पर था ! 

यहाँ रुकने के लिए हमने दो कमरे लिए थे, पर थकान की वजह से उस समय सभी लोग एक ही कमरे में अपना बैग रखकर आराम करने के लिए बेड पर बैठ गए ! हमारे कमरे में पहुँचते ही जयंत भी कागज़ी कार्यवाही पूरी करके आ गया, अंदर आते ही उसने खिड़की खोल कर झाँक कर बाहर का नज़ारा देखा तो थोड़ी दूरी पर उसे एक घना जॅंगल दिखाई दिया ! वो बोला यार शाम को इस जंगल में घूमने चलेंगे, हमने भी उसकी ओर देखे बिना ही हामी भर दी, इतने में राहुल टीवी चालू कर चुका था ! पवन जोकि बिस्तर पर लेटा हुआ था बोला, अबे तू यहाँ टीवी देखने आया है या घूमने, आते ही टीवी चालू करके बैठ गया ! मैं मोबाइल को चार्जिंग में लगाते हुए बोला, सही होटल मिल गया यार, वरना दिक्कत हो जाती ! थोड़ी देर तक तो हम सब यहाँ तक आने के सफ़र पर चर्चा करते रहे, फिर आगे की योजना पर बात होने लगी ! समय देखा तो दोपहर के डेढ़ बज रहे थे, सबको बहुत तेज भूख लग रही थी, और लगे भी क्यों ना, सुबह के पराठे ही तो खाए थे ! 

देहरादून से आते हुए रास्ता इतना खराब और थकाउ था कि ना तो किसी ने खाने के लिए कहा और ना ही रास्ते में कोई बढ़िया जगह मिली, जहाँ बैठकर कुछ खा सकते ! देहरादून से निकलने के बाद सब यही सोच रहे थे कि जल्द से जल्द चकराता पहुँचे और वहाँ कोई होटल लेकर फिर कुछ खाया-पिया जाए ! फिर इस समय बिना नहाए-धोए थकान भी कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी इसलिए हमने सोचा पहले नहा-धो लेते है फिर कुछ खाएँगे ! 10-15 मिनट आराम करने के बाद हम सब बिस्तर से उठे और बारी-2 से नहाने-धोने में लग गए ! जब जयंत नहाने के लिए बाथरूम में गया तो वहाँ रखे लाइफबॉय साबुन को देख कर हंसता हुआ बाहर आकर बोला ! यार इस लाइफबॉय कंपनी ने इस साबुन का खूब तो रंग बदल दिया, महक भी खूब डाल दी, और इसकी पैकिंग भी बदल दी, पर काम ये आज भी हाथ धोने के ही आता है ! वैसे, हम तो नहाने का साबुन अपने साथ लेकर गए थे इसलिए हमें कोई परेशानी नहीं हुई ! दोनों कमरों में अलग-2 बाथरूम होने के कारण अगले आधे घंटे में हम चारों नहा-धोकर तैयार हो गए ! 

राहुल बोला, यार बाहर जाने से अच्छा है होटल वाले से यहीं कमरे में ही खाना मंगवा लेते है, खाना खा कर फिर बाहर घूमने चलेंगे ! फिर हममें से ही कोई बोला, बाहर ही चलते है यार, इसी बहाने यहाँ के बाज़ार में भी थोड़ा-बहुत घूमना हो जाएगा ! जब सबने बाहर जाकर खाने पर ही सहमति जताई तो हम सब अपने होटल से निकलकर बाज़ार की ओर जाने वाले मार्ग पर पैदल ही चल दिए, और अगले पंद्रह मिनट बाद हम सब एक होटल में बैठे खाने का इंतजार कर रहे थे ! खाने में हमने पूड़ी-छोले मँगवाए थे, जिनका स्वाद ठीक-ठाक ही था, खाना खा-पीकर फारिक हुए और बिल चुकाकर होटल से बाहर आ गए ! फिर वहाँ के स्थानीय बाज़ार में घूमने लगे, स्थानीय लोगों से अगले दिन के सफ़र के लिए कुछ ज़रूरी जानकारी भी ले ली, ताकि सफ़र थोड़ा आसान हो जाए ! आधा घंटा वहाँ घूमने के बाद वापस अपने होटल की तरफ चल दिए, अब हमारा मन उस जंगल की ओर घूमने जाने का था जो जयंत ने कमरे की खिड़की से देखा था ! 

जाने से पहले अपने साथ थोड़ा-बहुत सामान भी लेना था ताकि वापसी में अंधेरा होने पर भी किसी तरह की कोई परेशानी ना हो ! होटल पहुँचकर एक बैग में अपने साथ ले जाने का ज़रूरी सामान रखा और शाम सवा चार बजे जंगल की ओर चल दिए ! चकराता के चौराहे से 500-600 मीटर जाने के बाद मुख्य सड़क दोनों और से घने पेड़ों से घिरी हुई है, इक्का-दुक्का गाड़ियाँ ही इस मार्ग से आ-जा रही थी, चारों तरफ एकदम सन्नाटा था ! हम इस सुनसान मार्ग पर 2 किलोमीटर गए, फिर हमें एक गोल छतरीनुमा आकार की पत्थर की एक झोपड़ी दिखाई दी ! इसी झोपड़ी में बैठकर हमने काफ़ी देर तक मस्ती की और खूब सारे फोटो भी खींचे, यहाँ से मार्ग पर आते-जाते वाहन भी दिखाई दे रहे थे, फिर जब 6 बजे अंधेरा होने लगे तो वापस चलने की सोची ! यहाँ से निकलते समय हमारा मन तरो-ताज़ा और थकान काफ़ी कम हो गई थी, इसलिए वापसी में हमें होटल पहुँचने में कम समय ही लगा ! 

आधे घंटे बाद हम चारों अपने कमरे में बैठे गप्पे मार रहे थे, इस समय तक बाहर काफ़ी अंधेरा हो गया था और ठंड भी बहुत बढ़ गई थी ! 7 बजे के आस-पास होटल के एक कर्मचारी ने आकर हमें जानकारी दी कि होटल के बाहर अलाव जलाकर लोग क्रिस-मस संध्या का आनंद ले रहे है, अगर हम इसमें शामिल होना चाहे तो हो सकते है ! हमने कहा मस्ती करने ही तो आए है तो इसमें सोचना कैसा, चलते है हम भी बाहर ! होटल से बाहर आकर देखा तो वहाँ से 20-25 गज़ की दूरी पर पार्किंग क्षेत्र से थोड़ा आगे एक अलाव जल रहा है और काफ़ी लोग आग के चारों ओर बैठे है ! हम चारों भी जाकर उनमें शामिल हो गए, कुछ अन्य पर्यटक भी हमें वहाँ मिले जो दिल्ली से ही आए थे ! यहाँ हमें एक बूढ़ा व्यक्ति भी मिला जो पागल था, लोग उसे परेशान करने में लगे थे, थोड़ी देर तक तो वो भी अलाव की आगे बैठा रहा, फिर एक पत्थर पर जाकर सो गया ! हम लोग भी थोड़ी देर तो वहाँ बैठे रहे और फिर वापस अपने होटल की ओर चल दिए, रात्रि का भोजन करने के बाद सब अपने-2 बिस्तर पर आराम करने चले गए !


in chakrata
तीन घुमक्कड़ (On the way to Chakrata Market, Dehradun)
स्थानीय बाज़ार जाते हुए (On the way to Chakrata Market, Dehradun)
chakrata trip
खाने के दौरान बातचीत करते हुए
chakrata market
चकराता (A view of Chakrata, Dehradun)


chakrata local




forest in chakrata
A Trail to Forest, Chakrata
walk in chakrata


road in chakrata
A view of Forest from top, Chakrata
way to forest
जंगल में घूमने जाते हुए
enjoy in forest


chakrata forest

क्यों जाएँ (Why to go Chakrata): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो उत्तराखंड में स्थित चकराता का रुख़ कर सकते है ! यहाँ आपको देखने के लिए पहाड़, झरने, जंगल, और रोमांच सबकुछ मिलेगा !

कब जाएँ (Best time to go Chakrata): 
वैसे तो आप चकराता साल के किसी भी महीने में जा सकते है, पर अगर आपको हरे-भरे पहाड़ देखने हो और अगर आप झरने देखने का भी शौक रखते हो तो जुलाई-अगस्त उत्तम समय है ! अगर प्राकृतिक दृश्यों का भरपूर आनंद लेना हो तो आप यहाँ मार्च से जून के मौसम में आइए ! सर्दियों के मौसम में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है इसलिए अगर सर्दी में यहाँ जाने की इच्छा हो रही हो तो अपने साथ गर्म कपड़े ज़रूर ले जाएँ !

कैसे जाएँ (How to reach Chakrata): दिल्ली से चकराता की दूरी महज 320 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देहरादून होते हुए आप चकराता जा सकते है एक मार्ग यमुनानगर-पौंटा साहिब होकर भी चकराता को जाता है ! दोनों ही मार्गों की हालत बढ़िया है ! अगर आप चकराता ट्रेन से जाने का विचार बना रहे है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन देहरादून है, जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा हुआ है ! देहरादून से चकराता महज 88 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है, देहरादून से 10-15 किलोमीटर जाने के बाद पहाड़ी क्षेत्र शुरू हो जाता है !


कहाँ रुके (Where to stay in Chakrata): चकराता उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है पहले यहाँ कम ही लोग जाते थे लेकिन अब यहाँ जाने वाले लोगों की तादात काफ़ी बढ़ गई है ! लोगों की सुविधा के लिए यहाँ रुकने के लिए कई होटल है लेकिन अगर यात्रा सीजन मई-जून में यहाँ जाने की योजना है तो होटल का अग्रिम आरक्षण करवाकर ही जाएँ ! होटल में रुकने के लिए आपको 800 रुपए से लेकर 2000 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है !

कहाँ खाएँ (Eating option in Chakrata): चकराता का बाज़ार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन फिर भी खाने-पीने के लिए ठीक-ठाक दुकानें है ! फिर भी पहाड़ी क्षेत्र है इसलिए ख़ान-पान के ज़्यादा विकल्पों की उम्मीद ना ही रखे तो बेहतर होगा !

क्या देखें (Places to see in Chakrata): चकराता में घूमने के लिए बहुत ज़्यादा विकल्प तो नहीं है फिर भी कुछ जगहें ऐसी है जो यहाँ आने वाले यात्रियों का मन मो लेती है ! इनमें से कुछ जगहें है टाइगर फाल, देवबन, और लाखामंडल !

अगले भाग में जारी...

चकराता - मसूरी यात्रा
  1. चकराता का एक यादगार सफ़र (A Memorable Trip to Chakrata)
  2. चकराता के जंगल में बिताई एक शाम (A Beautiful Evening in Chakrata)
  3. देवबन के घने जंगल की रोमांचक यात्रा (Road Trip to Deoban, Chakrata)
  4. टाइगर फॉल में दोस्तों संग मस्ती (A Perfect Destination - Tiger Fall)
  5. लाखामंडल से मसूरी की सड़क यात्रा (A Road Trip to Mussoorie)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

10 Comments

  1. तुम वहां क्या जंगल घूमने ही गए थे न तो बाजार का कोई फोटु न किसी और चीज़ का ।
    तुमने सही कहा जब तक सही कमरा न मिल जाये यात्रा का मज़ा किरकिरा हो जाता है । हमको 'माथेरान'में कोई ठीक कमरा नहीं मिला ।बड़ी मुश्किल से 6 हजार में एक रूम मिला । वो भी बेकार ।कोई मेंटन्स नहीं ।
    खेर ,तुम होटल के रूम का किराया भी बताया करो ताकि हम जाये तोद्या ध्यान रखे ।
    वैसे तुम दोस्तों की घुमक्कडी पसन्द आई । मोगेम्बो खुश हुआ ।

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    1. दर्शन जी,
      इस यात्रा के काफ़ी फोटो खराब या गुम हो गए है, इसलिए जो फोटो है उनसे ही काम चला रहा हूँ ! वैसे होटल का किराया 1000 रुपए था, सुनकर अच्छा लगा कि मोगेंबो खुश हुआ !

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  2. Nice write-up, pradeep the columbus and nice location !!

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  3. To kaisa raha tumhara jungle ka trip. Kisi junglee janvar se samna ni hua??

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    1. सौरभ भाई,
      यात्रा बढ़िया रही, शायद जानवर अकेले पड़ गए, इसलिए 4 इंसानों को देख कर आगे नहीं आए !

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  4. बढ़िया पोस्ट है, चीड़ के जंगल देख के अल्मोड़ा याद आ रहा है, हिल स्टेशन लगभग एक से ही होते हैं

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    1. सही बात है, चीड़ के पेड़ों से सारे हिल स्टेशन एक जैसे लगते है !

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  5. Pradeep when will write the next part??

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