रविवार, 01 अप्रैल 2018
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यात्रा के पिछले लेख में आप कीठम झील का भ्रमण कर चुके है, अब आगे, झील का भ्रमण करके बाहर आया तो मैं आगरा जाने वाले मार्ग पर चल दिया ! मेरा अगला पड़ाव आगरा के सिकंदरा में स्थित अकबर का मकबरा था, सूर सरोवर पक्षी विहार से सिकंदरा की दूरी महज 12 किलोमीटर है जिसे तय करने में मुझे 15-20 मिनट का समय ही लगा ! मुख्य मार्ग पर चलते हुए हमारे बाईं ओर सड़क किनारे स्थित इस मकबरे का प्रवेश द्वार दिखाई देने लगता है, थोड़ा आगे बढ़ने पर पार्किंग स्टैंड है, बगल में ही टिकट घर भी है ! सिकंदरा आगरा के व्यस्त इलाकों में आता है, वैसे तो यातायात व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए पुलिसकर्मी यहाँ हमेशा तैनात रहते है लेकिन फिर भी कभी-2 यहाँ भयंकर जाम लग जाता है ! अपनी स्कूटी पार्किंग में खड़ी करके मैंने टिकट खिड़की से जाकर मकबरे स्थल पर जाने के लिए एक प्रवेश टिकट लिया ! रविवार होने के बावजूद ना तो आज पार्किंग में भीड़ थी और ना ही टिकट खिड़की पर, जहां पार्किंग में गिनती की गाड़ियां दिखाई दे रही थी वहीँ टिकट खिड़की पर भी इक्का-दुक्का लोग ही खड़े थे ! मकबरे स्थल पर जाने का प्रवेश शुल्क 10 रुपए है और इतना ही शुल्क मुझे पार्किंग में स्कूटी के लिए देना पड़ा ! टिकट खिड़की से हटा तो दोपहर के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, धूप तेज थी इसलिए मैं तेजी से प्रवेश द्वार की ओर चल दिया ! टिकट घर से मकबरे के प्रवेश द्वार तक जाने के लिए पक्का मार्ग बना है जिसके दोनों तरफ बड़े-2 कई मैदान है, जहां रंग-बिरंगे फूलों के अलावा अन्य पेड़-पौधे भी लगाए गए है !
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सड़क किनारे से दिखाई देता अकबर के मकबरे का प्रवेश द्वार |
मार्ग के किनारे बने इन मैदानों की हरियाली भी देखते ही बनती है, इनमें घास लगाकर अच्छे से सजाया गया है ! मकबरा एक विशाल बगीचे के बीचों-बीच स्थित है, जिसके चारों तरफ ऊंची-2 दीवारे है और बीच में कई बहुमंजिला इमारतें है ! टिकट घर से मकबरे के बाहरी प्रवेश द्वार तक पहुँचने में ही अच्छी-खासी पद यात्रा हो जाती है ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस मकबरे से संबंधित कुछ जानकारी दे देता हूँ, प्राप्त जानकारी के अनुसार सिकंदरा में स्थित ये मकबरा अकबर का है जिसका निर्माण कार्य उसने खुद शुरू करवाया था ! वर्तमान में जहां सिकंदरा है वहाँ कभी सिकंदर की सेना ने पड़ाव डाला था, उसी के नाम पर इस जगह का नाम सिकंदरा पड़ा ! मकबरे के निर्माण के लिए यमुना नदी के किनारे ये स्थान और इसकी रूपरेखा खुद अकबर ने ही निर्धारित की थी, दुर्भाग्यवश जब 1605 में अकबर की मृत्यु हुई तो मकबरे का निर्माण कार्य अभी शुरू ही हुआ था बाद में उसके पुत्र जहांगीर ने 1612 में इस मकबरे को इसकी मूल रूपरेखा के अनुरूप ही पूर्ण करवाया ! ये मकबरा मुगल शासकों द्वारा बनवाई गई सुंदर इमारतों में से एक है, 18वीं सदी में ये बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था लेकिन बाद में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इसका जीर्णोंद्वार करवाया गया !
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दूर से दिखाई देता मकबरे के प्रवेश द्वार |
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दुपहिया पार्किंग का एक नजारा |
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कार पार्किंग का एक नजारा |
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सिकंदरा स्थित मकबरे की टिकट खिड़की |
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टिकट खिड़की से पार्किंग का नजारा |
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प्रवेश द्वार जाने का मार्ग |
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रास्ते में दिखाई देते घास के मैदान |
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दूर से दिखाई देता प्रवेश द्वार |
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पेड़ों के बीच से दिखाई देता प्रवेश द्वार |
वापिस यात्रा पर लौटते है जहां मैं मकबरे मे बाहरी प्रवेश द्वार के सामने पहुँच गया हूँ और इस द्वार की खूबसूरती को निहार रहा हूँ ! इस विशाल दो मंजिले प्रवेश द्वार के दोनों ओर मेहराबदार द्वारों वाली इमारतें बनी है, जिनके अंदर जालीदार परकोटे भी बने है ! प्रवेश द्वार की बाहरी दीवारों को रंग-बिरंगे और चूना पत्थरों से सजाया गया है, इन दीवारों में सामान्य पत्थरों के अलावा कुछ कीमती पत्थर भी जड़े गए है, जिनकी चमक आज तक बरकरार है ! दीवारों पर और हाल के अंदर फारसी भाषा में शिलालेख उकेरे गए है, इस द्वार का सबसे खूबसूरत भाग द्वार की छत के चारों कोनों पर सफेद संगमरमर से बनी मीनारे है जो दूर से देखने पर ताजमहल के चारों कोनों पर बनी मीनारों जैसी प्रतीत होती है ! ये मीनारें छत के चारों कोनों से उठती है, हर मीनार तिमंजिला है, और मीनार के शीर्ष पर एक सुंदर छत्र बना हुआ है जिससे मीनारों की सुंदरता और बढ़ जाती है ! बाहरी प्रवेश द्वार का दीदार करने के बाद मैं मकबरा परिसर में दाखिल हुआ, अंदर आते ही यहाँ से एक अन्य मार्ग सीधा मकबरे तक जाता है, इस मार्ग के दोनों ओर ताड़ के पेड़ लगाए गए है और पेड़ों के पीछे हरे-भरे खुले मैदान ! चारों तरफ एक खामोशी छाई रहती है, प्राकृतिक सौन्दर्य ऐसा कि एकटक देखते रहो, फिर भी मन ना भरे !
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प्रवेश द्वार से दिखाई देती मकबरे की इमारत |
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मकबरे परिसर की ओर जाने वाले मार्ग से दिखाई देता प्रवेश द्वार |
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प्रवेश द्वार से आगे बढ़ने पर दिखाई देती मकबरे की इमारत |
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मकबरा परिसर की ओर जाने वाले मार्ग के किनारे ताड़ के पेड़ |
वैसे गर्मी का मौसम किला या मकबरा देखने के लिए बिल्कुल भी उपयुक्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इन इमारतों को बनाने में लगे ये पत्थर भट्टी की तरह गरम हो जाते है ! वो अलग बात है कि इमारत के अंदर ठंडक रहती है लेकिन जब सीधी धूप में चलना पड़ता है तो हालत खराब होने लगती है ! इस समय मेरी हालत कुछ ऐसी ही थी, इस तपती दोपहरी में मकबरे तक जाने वाले इस पक्के मार्ग पर चलते हुए सिर चकरा रहा था ! मैं तेजी से चलते हुए मकबरे की इमारत तक पहुँच गया, मुख्य कब्र के दोनों तरफ 5-5 मेहराबदार द्वार बने है, इनमें से कुछ में मुगल वंश के अन्य लोगों के मकबरे बने है ! अकबर के मकबरे की रूपरेखा असाधारण है, ये एक पाँच मंजिला इमारत है, जिसे सामने से देखने पर एक मेहराबदार द्वार दिखाई देता है इसके ऊपरी भाग में सफेद संगमरमर से बने गुंबद लगे है, इस पाँच मंजिल इमारत के अन्य भागों में भी गुंबद लगे है ! मुख्य मकबरे के बाहरी भाग पर पत्थर जड़े गए है और कुरान की आयतें लिखी है ! मकबरे की आंतरिक दीवारों और छत वाले भाग में बढ़िया कारीगरी की गई है, मकबरे तक जाने पर पाबंदी है ! इस परिसर में लोधी का मकबरा भी है जो अब क्षतिग्रस्त हो गया है, इसे देखने मैं नहीं गया !
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सामने से दिखाई देता मकबरा परिसर |
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मकबरे परिसर के बगल में बनी इमारतें |
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मकबरे के ऊपरी भाग की सजावट |
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मकबरे परिसर की भीतरी दीवारों की सजावट |
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मकबरे परिसर की भीतरी दीवारों की सजावट |
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मकबरे परिसर की छत पर की गई सजावट |
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मकबरे परिसर की भीतरी दीवारों की सजावट |
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मकबरे परिसर का एक दृश्य |
मकबरा देखने के बाद कुछ देर मैं परिसर में इधर-उधर घूमता रहा उसके बाद वापसी की राह पकड़ी ! पार्किंग से स्कूटी लेकर चला तो दोपहर के साढ़े बारह बज रहे थे, रास्ते में कुछ देर के लिए जय गुरुदेव आश्रम में रुका, यहाँ 10-15 मिनट बिताए ! यहाँ से चला तो कोसी के आस-पास कहीं एक होटल में जलपान करने के लिए रुका ! फिर घर पहुंचते-2 शाम के 4 बज गए थे, आज लगभग 300 किलोमीटर स्कूटी चलाई, बढ़िया मजा आया लेकिन थकान भी हो गई थी ! इसी के साथ ये सफर खत्म होता है, जल्द ही आपसे एक नई यात्रा में फिर मुलाकात होगी !
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मकबरे परिसर का एक दृश्य |
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मकबरे परिसर से दिखाई देता एक दृश्य |
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मकबरे परिसर में घूमते हुए |
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मकबरे परिसर से दिखाई देता एक दृश्य |
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मकबरे परिसर से दिखाई देता एक अन्य द्वार |
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वाकई लाजवाब सजावट है |
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मकबरे परिसर से बाहर आते हुए एक मैदान |
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लोधी का मकबरा |
क्यों जाएँ (Why to go Agra): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें देखने का शौक है और साप्ताहिक अवकाश पर दिल्ली के पास कहीं घूमने जाने का विचार बना रहे है तो आगरा आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है !
कब जाएँ (Best time to go Agra): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में आगरा जा सकते है लेकिन गर्मी के मौसम में यहाँ दिल्ली जैसी ही गर्मी पड़ती है और तपती दोपहरी में आगरा के ऐतिहासिक इमारतों के पत्थर खूब जलते है, कुछ इमारतों में तो नंगे पैर भी चलना पड़ता है ! गर्मी के मौसम में किले घूमने में भी परेशानी ही होती है ! बेहतर रहेगा आप यहाँ ठंडे मौसम में ही घूमने आए, सितंबर से फ़रवरी यहाँ आने के लिए बढ़िया मौसम है !
कैसे जाएँ (How to reach Agra): आप दिल्ली से आगरा सड़क या रेल किसी भी मार्ग से जा सकते है दिल्ली से आगरा के लिए नियमित अंतराल पर ट्रेने चलती रहती है ! जबकि अगर आप सड़क मार्ग से भी आगरा जा सकते है यमुना एक्सप्रेस वे शानदार राजमार्ग है ! जहाँ ट्रेन से जाने में आपको 3-4 घंटे का समय लगेगा वहीं आप एक्सप्रेस वे से ढाई से तीन घंटे में आगरा पहुँच जाओगे ! इस एक्सप्रेस वे पर रफ़्तार की वजह से अमूमन दुर्घटनाएँ होती रहती है इसलिए इस मार्ग पर चलते हुए अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कहाँ रुके (Where to stay in Agra): आगरा उत्तर प्रदेश का एक प्रसिद्ध पर्यटन केंद्र है दुनिया के सात अजूबों में शामिल ताज महल को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों सैलानी आते है ! इसलिए आगरा में रुकने के लिए होटलों की भी कोई कमी नहीं है आपको यहाँ 600 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Agra): आगरा में देखने के लिए जगहों की भी कोई कमी नहीं है लोग यहाँ ताज महल के अलावा लाल किला, सिकंदरा, महताब बाग, ताज नेचर वॉक, जामा मस्जिद, बुलंद दरवाजा और फतेहपुरी सीकरी घूमने आते है ! दिल्ली से आगरा आते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 2 पर आगरा से 20 किलोमीटर पहले कीठम लेक नामक एक झील है ये भी देखने के लिए एक शानदार जगह है ! इसी मार्ग पर आगे चलने पर डॉल्फिन वॉटर पार्क है यहाँ भी कुछ समय आप बिता सकते है जबकि थोड़ी ओर आगे बढ़ने पर गुरु का ताल नाम का एक गुरुद्वारा भी है ! ये सभी जगहें शानदार है, जो आपकी इस यात्रा को यादगार बना देंगी !
Nice
ReplyDeleteVery Nice अकबर का मकबरा कहां स्थित है? Thank you.
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