शनिवार, 09 मार्च 2019
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यात्रा के पिछले लेख में आप हमारे साथ टेकनपुर में दीक्षांत समारोह (Passing Parade) देखकर दोपहर बाद ग्वालियर पहुँच चुके है, अब आगे, लंबा सफर और आधी रात से जागे होने के कारण हमें नींद आ रही थी, इसलिए होटल पहुँचकर सबसे पहले कुछ देर आराम किया ! शाम 4 बजे के आस-पास नींद खुली, हाथ-मुंह धोकर कुछ देर बाद हम होटल से निकलकर बाहर आ गए ! हम जिस होटल में रुके थे वो ग्वालियर किले के पास गांधी नगर इलाके में था ये एक रिहायशी इलाका है, होटल का नाम पक्के से तो याद नहीं, लेकिन शायद गिरनार होटल था ! मुझे होटल का रिसेप्शन बड़ा शानदार लगा, यहाँ बढ़िया सजावट की गई थी ! हमारा कमरा पहली मंजिल पर था, जो बहुत बड़ा तो नहीं था लेकिन हम तीनों के लिए पर्याप्त जगह थी और रिहायशी इलाके में होटल से व्यू तो क्या ही दिखाई देता ! खैर, होटल के सामने खड़े होकर कुछ देर विचार-विमर्श करने के बाद हम ग्वालियर की गलियों में घूमने निकल पड़े ! कुछ दूर चलने के बाद हम महारानी लक्ष्मी बाई मार्ग पर पहुँच गए, यहाँ से बाएं मुड़कर कुछ दूर चलने पर ग्वालियर का रेलवे स्टेशन है ! लेकिन हम दाएं मुड़े, कुछ दूर चलकर हमें अपनी दाईं ओर महारानी लक्ष्मीबाई पार्क दिखाई दिया, प्रवेश द्वार से अंदर दाखिल हुए तो सामने एक चबूतरे पर पुलवामा (Pulwama) में शहीद हुए जवानों के चित्र लगाए गए थे ! ये चित्र भारत के वीर जवानों के सम्मान में लगाए गए थे, ताकि लोग इन जवानों के बलिदान को सदा याद रख सके !
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महारानी लक्ष्मीबाई पार्क |
असल में रानी लक्ष्मीबाई के नाम से बना ये पार्क इस वीरांगना का समाधि स्थल है, ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई यहीं वीरगति को प्राप्त हुई थी ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि ये समाधि स्थल ग्वालियर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में से एक है ! इस पार्क की दीवारों पर रानी का अंग्रेजों से युद्ध करते हुए दृश्यों का सुंदर चित्रण किया गया है, जबकि पार्क के बीच एक चबूतरे पर रखे लाल पत्थर पर रानी लक्ष्मीबाई की 8 मीटर ऊंची एक धातु की प्रतिमा स्थापित की गई है जिसकी स्थापना ग्वालियर के शासकों ने कारवाई थी ! हाथ में तलवार लिए घोड़े पर सवार रानी की ये प्रतिमा उनके पराक्रम और बलिदान को प्रदर्शित करती है ! उनके सम्मान में यहाँ हर साल जून के महीने में यहाँ एक मेले का आयोजन भी किया जाता है ! मई 2008 में मध्य प्रदेश सरकार की ओर से रानी के सम्मान में इस प्रतिमा के सामने एक अखंड ज्योति प्रज्वलित की गई तो निरंतर जलती रहती है ! इसके अलावा पार्क में लोगों के टहलने के लिए पक्का मार्ग भी बना है और घास के बढ़िया मैदान भी है ! स्थानीय लोग अक्सर यहाँ सुबह-शाम टहलने के लिए आते रहते है ! पार्क में कई प्रकार के पेड-पौधे लगे है और सफाई का भी बढ़िया इंतजाम है, रोशनी के लिए बढ़िया लाइटें लगी है, कुछ समय पार्क में बिताने के बाद हम बाहर आ गए ! वैसे तो देखने के लिए ग्वालियर में बहुत कुछ है, लेकिन समय की कमी के कारण हम कहीं घूम नहीं पाए, ग्वालियर घूमने के लिए मैं फिर कभी आऊँगा, तब आपको यहाँ के सारे दर्शनीय स्थलों की सैर करवाऊँगा !
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पार्क के अंदर दीवारों पर बनी चित्रकारी |
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पार्क में स्थापित रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा |
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पार्क की भीतरी दीवारों पर की गई चित्रकारी |
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पार्क का एक दृश्य |
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रानी लक्ष्मीबाई की छत्री की जानकारी देता एक बोर्ड |
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शशांक और हितेश |
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पार्क में स्थापित शहीद ज्योति |
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पार्क से निकलकर हम वापिस उसी मार्ग पर चल दिए जिससे यहाँ आए थे, लेकिन अब हम अपने होटल ना जाकर स्टेशन की ओर चल दिए ! ग्वालियर रेलवे स्टेशन इस पार्क से लगभग एक किलोमीटर दूर है, यहाँ की सड़कों पर भी खूब यातायात था ! बातें करते-2 कब हम स्टेशन पहुँच गए पता ही नहीं चला, स्टेशन से थोड़ा पहले एक रेलवे पुल है जिसे पार करते ही सड़क किनारे खान-पान की खूब दुकानें है ! हम सबको भूख लगी थी, इसलिए एक दुकान पर रुककर पेट पूजी की और कुछ खाना पैक भी करवा लिया, कुछ देर स्टेशन के आस-पास घूमते रहे ! यहाँ से वापिस जाते हुए भी हम ग्वालियर की गलियों से घूमते हुए आए, होटल पहुंचे तो कमरे में ना जाकर छत पर चले गए, यहाँ बैठने की बढ़िया व्यवस्था थी ! बातों का दौर शुरू हुआ तो काफी देर तक चलता रहा, पहले हमने अपने सुबह के सफर की बातें साझा की और फिर शशांक ने ट्रैनिंग के दौरान हुए कई रोमांचक और मजेदार किस्से हमें बताए ! ट्रैनिंग के दौरान किसी एक केडेट की गलती की सजा पूरी यूनिट को मिलने के भी कई मजेदार किस्से बताए, कुछ बातों ने हमें हँसाया तो कुछ ने आँखें नम कर दी ! सीमा सुरक्षा बल (BSF) की ट्रैनिंग के दौरान होने वाली परेशानियों के बारे में भी हमें काफी कुछ जानने को मिला ! आज मेजर साब फिल्म में अमिताभ बच्चन के लिए कहा गया वो डायलॉग भी समझ आ गया कि कैसे शीशे को तराश कर हीरा बनाया जाता है !
हमारी बातों का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा, इस दौरान हमने अपनी आगामी यात्राओं पर चर्चा भी की ! शशांक की पहली पोस्टिंग से पहले हम किसी यात्रा पर जाना चाहते थे, ताकि साथ में कुछ समय बिता सके ! उस दिन को आज भी याद करता हूँ तो लगता है जैसे कल की ही बात हो, आज शशांक हमारे बीच नहीं है लेकिन उसके साथ बिताए पल मेरे जेहन में है और हमेशा रहेंगे ! होटल की छत से नीचे जाने का मन किसी का नहीं हो रहा था, खाना हम शाम को खा ही चुके थे इसलिए देत रात तक छत पर ही बैठे रहे, और शशांक हमें ट्रैनिंग के किस्से बताता रहा ! जैसे-2 रात होती रही, आस-पास का शोर शराबा भी कम होता गया, जब चारों तरफ एकदम सन्नाटा पसर गया तब हम नीचे उतरे ! अपने कमरे में सोने जाने से पहले हमने होटल के सामने गली में खड़ी अपनी गाड़ी को होटल के गैराज में खड़ा कर दिया ! कल हमें यहाँ से वापसी करनी है, देखते है वापिस जाने से पहले ग्वालियर का किला घूम पाएंगे या नहीं, फिलहाल हम गाड़ी खड़ी करके अपने कमरे में आराम करने के लिए आ चुके है ! चलिए आज के इस लेख पर फिलहाल विराम लगाता हूँ, यात्रा के अगले लेख में आपसे फिर मुलाकात होगी !
अगले भाग में जारी...
ग्वालियर यात्रा
- दिल्ली से ग्वालियर की सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Gwalior)
- ग्वालियर की एक शाम (An Evening in Gwalior)
- ग्वालियर से वापसी का सफर (Road Trip from Gwalior to Delhi)