सोमवार, 25 दिसंबर 2017
इस यात्रा के पिछले लेख में आप जैसलमेर दुर्ग का भ्रमण करते हुए यहाँ स्थित राजा और रानी के शाही महल देख चुके है, महल से बाहर आने के बाद हम जैसलमेर दुर्ग की संकरी गलियों से होते हुए बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! इस महल के अलावा जैसलमेर शहर में घूमने के लिए अभी गदीसर झील, मंदिर पैलेस, और यहाँ की विश्व प्रसिद्द हवेलियाँ अभी बाकी है ! राजस्थानी परिधान और साज सज्जा का सामान लेने के लिए जैसलमेर में कई बाज़ार है, इन सभी जगहों के बारे में बारी-2 से बताऊंगा, चलिए, फिल्हाल दुर्ग का भ्रमण जारी रखते हुए आज के सफ़र की शुरुआत करते है जैसलमेर की हवेलियों से, जो अपनी सुन्दरता के लिए देश ही नहीं, विदेशों में भी प्रसिद्द है ! जैसलमेर में पीले-2 पत्थरों से बनी ऐसी कई विशाल और सुन्दर हवेलियाँ है जिन्हें शाही अंदाज में सजाया गया है और जिनके दीदार के लिए रोजाना हज़ारों देसी-विदेशी पर्यटक राजस्थान के इस रेगिस्तान का रुख करते है ! इन बहुमंजिला हवेलियों में अनगिनत कमरे है, जिनकी बालकनी और दरवाजों पर विशेष कलाकृतियाँ बनाई गई है, पत्थरों को तराश कर बनाई गई ये कलाकृतियाँ राजस्थानी कलाकारी का एक उत्कृष्ट नमूना है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों का ध्यान बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है !
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सालम सिंह की हवेली का एक दृश्य |
इनमें से कुछ हवेलियों को तो अब म्यूजियम का रूप दे दिया गया है लेकिन कई हवेलियों में आज भी लोग रहते है ! राजस्थान की इन हवेलियों में पटवों की हवेली, नाथमल ही हवेली और सलीम सिंह की हवेली प्रमुख है, हालांकि, इन हवेलियों के अलावा भी इस दुर्ग परिसर में कई हवेलियाँ है जो ज्यादा प्रसिद्द तो नहीं है लेकिन सुन्दरता के मामले में इन नामी हवेलियों से कमतर नहीं है ! वैसे, अगर आप जैसलमेर आए है तो कुछ समय निकालकर इन हवेलियों को भी देख सकते है, यहाँ की सुन्दरता लम्बे समय तक आपके दिलों-दिमाग में ताजा रहेंगी ! ऊपर बताई गई हवेलियों के अलावा एक है व्यास हवेली, जो 15वीं शताब्दी में बनाई गई थी और आज भी इस हवेली में लोग रहते है ! इसके अलावा एक अन्य हवेली है जिसका नाम श्री नाथ भवन है, एक समय था जब इस भवन में जैसलमेर के प्रधान रहा करते थे ! जैसलमेर की संकरी गलियों से गुजरते हुए जब हम एक हवेली के सामने से गुजरे तो वहां छिडके इत्र की खुशबु हमें अन्दर जाने के लिए ललचा रही थी ! चलिए, क्रमबद्ध तरीके से आगे बढ़ते है और शुरुआत करते है जैसलमेर की सबसे बड़ी और पुरानी हवेलियों में शामिल पटवों की हवेली से !
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जैसलमेर की संकरी गलियां |
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चंद्रप्रभा स्वामी जी मंदिर का एक दृश्य |
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जैसलमेर की संकरी गलियां |
पटवों की हवेली
राजस्थान की सबसे बड़ी हवेलियों में शुमार पटवों की हवेली जैसलमेर की पहली हवेली है जिसका निर्माण जैसलमेर के एक बड़े व्यापारी गुमानमल पटवा ने 1805 में करवाया था ! बाद में गुमानमल ने अपने पांच बेटों के लिए पांच अलग-2 हवेलियों का निर्माण करवाया, जिसका काम लगभग अगले पांच दशकों तक चला ! पीले बलुआ पत्थर की बनी इन सभी हवेलियों को सामूहिक रूप से आज पटवों की हवेली के नाम से जाना जाता है ! इन हवेलियों की दीवारों पर खूबसूरत चित्रकारी की गई है और इनके अन्दर बारीक खुदाई वाले झरोखे लगाए गए है, जिन्हें देखकर कोई भी इनकी तारीफ़ किये बिना नहीं रह पाता ! दरवाजों को छोड़कर पूरी हवेली पीले पत्थर से बनी हुई है, अपनी बारीक कारीगरी के लिए जानी जाने वाली ये हवेली जैसलमेर की सबसे खूबसूरत कलाकृतियों में से एक है ! जिस समय इन हवेलियों का निर्माण हुआ था तब इनकी कीमत 10 लाख रूपए आंकी गई थी लेकिन आज इनकी कीमत आंकना जरा मुश्किल काम है ! वर्तमान में इस हवेली में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्यालय स्थापित कर दिया गया है, इसके अलावा राज्य कला और शिल्प विभाग भी इसी हवेली में स्थित है !
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पटवों की हवेली का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली का अन्दर से एक दृश्य |
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पटवों की हवेली का अन्दर से एक दृश्य |
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पटवों की हवेली का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली का एक दृश्य |
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हवेली के कमरों की लकड़ी से बनी छत |
जैन परिवार के वंशज सेठ गुमानमल पटवा बाफना गौत्र के थे और इनको पटवों की उपाधि भी यूँ ही नहीं मिली ! इस परिवार के लोगों का परंपरागत कार्य पटवाई का था जिसका अर्थ होता है “गूंथना” ! ये लोग सोने-चाँदी के बारीक तारों को कपड़ों में गूंथने का काम करते थे या यूँ कहे कि इस काम में इन्हें महारत हासिल थी तो गलत नहीं होगा ! इनके काम से प्रभावित होकर ही जैसलमेर के महाराजा ने इन्हें पाटवी सेठ की उपाधि दी थी जो बाद में पटवा के नाम से प्रसिद्द हुई ! बाफना परिवार के लोगों का पश्चिम एशियाई देशों में अच्छा कारोबार था, जरी के परंपरागत काम के अलावा ये लोग हाथी दांत, सोने-चाँदी की वस्तुओं, मसालों और अफीम का कारोबार भी करते थे ! पटवों की हवेली देखने के लिए 50 रूपए का एक प्रवेश शुल्क अदा करना होता है, अन्दर फोटोग्राफी के लिए 30 रूपए का एक शुल्क अलग से देना होता है ! प्रवेश द्वार के पास कुर्सी पर बैठे एक व्यक्ति से टिकट लेकर हम हवेली परिसर में दाखिल हुए, इस समय यहाँ हमारे अलावा इक्का-दुक्का लोग ही थे, अन्दर जाते ही सामने एक बरामदा है जो चारों तरफ से हवेली की ऊंची-2 दीवारों से घिरा है !
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पटवों की हवेली के अन्दर का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली के अन्दर का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली के अन्दर चमगादड़ |
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पटवों की हवेली के अन्दर बनी बालकनी |
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पटवों की हवेली के अन्दर का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली के अन्दर से दिखाई देता बाहर का एक दृश्य |
वैसे तो हवेली के अधिकतर कमरों में अँधेरा ही था लेकिन जालीदार मोखलों से छनकर सूरज की जो रोशनी हवेली में आ रही थी उसी से हवेली में थोडा बहुत उजाला था ! इस खुले भाग में बैठने के लिए पत्थर की सीटें बनी थी, पीले रंग के पत्थर की बनी इन सीटों पर भी बढ़िया कारीगरी की गई थी ! हम इस हवेली में नज़र उठाकर जहाँ भी देख रहे थे वहां राजस्थानी कारीगरी दिखाई दे रही थी फिर वो चाहे कोई कोई स्तम्भ हो, द्वार, मोखले, झरोखे या खिड़कियाँ, हर जगह बारीक कारीगरी की गई थी ! वाकई, इस हवेली में आकर हमारा दिल खुश हो गया, सीढ़ियों से होते हुए हवेली के प्रथम तल पर पहुंचे, यहाँ भी कई कमरे बने थे, इन कमरों की सजावट देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब यहाँ लोग रहते होंगे तो इस हवेली की क्या रंगत होती होगी ! अधिकतर कमरों के छत लकड़ी के बने हुए थे, जो यहाँ रहने वाले लोगों को गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्माहट देते थे, इन कमरों के द्वारों की मजबूती देखने लायक थी, सैकड़ों साल पुराने ये द्वार आज भी ऐसे लगते है जैसे ये हाल में ही लगाए गए हो ! ऐसे ही टहलते हुए जब हम एक सीढ़ी के पास पहंचे तो यहाँ छत पर चिपके सैकड़ों चमगादड़ दिखे, ऐसे ही चमगादड़ हमें भानगढ़ के किले में भी देखने को मिले थे !
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पटवों की हवेली के अन्दर का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली के अन्दर का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली के अन्दर बना एक कक्ष |
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कक्ष की छत पर की गई कारीगरी |
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पटवों की हवेली के अन्दर का एक दृश्य |
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हवेली के अन्दर से दिखाई देता बाहर का एक दृश्य |
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हवेली की छत से दिखाई देता जैसलमेर शहर का एक दृश्य |
बड़ी सावधानी से हम इन चमगादड़ों के नीचे से होकर निकले ! हर तल पर कमरों के बाहर बालकनी बनी है जिनके ऊपर की गई कारीगरी देखने लायक है, हर हवेली में एक दीवान खाना, मेहमान कक्ष, रसोईघर, तहखाना, सीढियाँ, और अलमारियां बनी थी ! दीवानखाने में शीशे का बढ़िया काम किया गया है इसकी छत पर लाल रंग से पुताई की गई है और छत के बीचों-बीच बढ़िया चित्रकारी की गई है ! लेकिन नई पीढ़ी के कुछ लोगों ने इस हवेली की दीवार को ही अपने प्यार का इजहार करने का जरिया बना लिया है, इन ऐतिहासिक इमारतों के साथ होते इस दुर्व्यवहार को देखकर बड़ा दुःख होता है ! दीवानखाने से होते हुए हम हवेली के सबसे ऊपरी तल पर पहुंचे, इस हवेली की छत से आस-पास की इमारतों, जैसलमेर दुर्ग और शहर का एक शानदार दृश्य दिखाई देता है ! कुछ समय हवेली की छत पर बिताने के बाद हम सीढ़ियों से होते हुए बाहर आ गए ! हवेली के सामने एक खुले क्षेत्र में कुछ फेरी वाले राजस्थानी पगड़ियाँ, कठपुतलियां और साज-सज्जा की अन्य सामग्रियां बेच रहे थे, हमें अभी खरीददारी नहीं करनी थी इसलिए हम अपने अगले पड़ाव सालम सिंह की हवेली की ओर चल दिए जो यहाँ से लगभग आधा किलोमीटर दूर था !
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पटवों की हवेली से दिखाई देता जैसलमेर शहर का एक दृश्य |
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हवेली से दिखाई देता शहर का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली की छत का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली छत का एक दृश्य |
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हवेली के अन्दर बनी पत्थर की एक सीट |
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पटवों की हवेली का प्रवेश द्वार |
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हवेली से सम्बंधित जानकारी |
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पटवों की हवेली के सामने का एक दृश्य |
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पटवों की हवेली के बाहर का एक दृश्य |
सालम सिंह की हवेली
पटवों की हवेली से निकलकर हम फिर से जैसलमेर की संकरी गलियों में पहुँच गए और लगभग 3-4 मिनट बाद ही हम सालम सिंह की हवेली के सामने खड़े थे ! सालम सिंह की हवेली के सामने एक चबूतरा बना है, इस चबूतरे पर हाथी बने है तत्कालीन समय में घर के सामने पत्थर के ये हाथी होना बड़े गर्व की बात मानी जाती थी, लेकिन उस समय केवल राजा के दीवान ही अपने घर के सामने ये हाथी बनवा सकते थे ! इस हवेली का निर्माण 1815 में जैसलमेर के तत्कालीन दीवान सलीम सिंह ने करवाया था इस हवेली को बनाने में सीमेंट या गारे का प्रयोग नहीं किया गया बल्कि इसके निर्माण में पत्थरों को लोहे की छड़ों से जोड़ा गया है ! ये भी कहा जाता है कि इस हवेली का निर्माण एक पुरानी हवेली के अवशेषों पर किया गया है पुरानी हवेली 17वीं शताब्दी के अंत में बनाई गई थी ! जबकि सालम सिंह की हवेली 19वीं शताब्दी के शुरुआत में बनकर तैयार हुई, जिसके बाद इस हवेली में मेहता परिवार आकर रहने लगा था, अपने समय में मेहता परिवार काफी प्रभावशाली माना जाता था ! सालम सिंह की ये हवेली अपनी 38 बालकनियों के लिए प्रसिद्द है जिनपर की गई कारीगरी एक-दूसरे से बिलकुल भिन्न है !
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सालम सिंह की हवेली के बाहर का एक दृश्य |
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सालम सिंह की हवेली से दिखाई देता एक दृश्य |
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सालम सिंह की हवेली से दिखाई देता एक दृश्य |
इस हवेली की वास्तुकला अपने आप में एक उत्कृष्ट नमूना है हवेली की छत को मोर के आकार का बनाया गया है जबकि इसके सामने का हिस्सा एक जहाज की तरह दिखाई देता है इसलिए इसे जहाज महल के नाम से भी जाना जाता है ! हवेली के अन्दर जाने के लिए चबूतरे के पास कुछ सीढियाँ बनी है, जिनसे होते हुए हम हवेली के प्रवेश द्वार पर पहुंचे ! यहाँ 30 रूपए प्रति व्यक्ति का प्रवेश शुल्क अदा करके हम अन्दर दाखिल हुए, सीढ़ियों से होते हुए हम हवेली के प्रथम तल पर पहुंचे ! यहाँ भी अधिकतर कमरों में अँधेरा ही था, समय के अभाव के कारण हमने इस हवेली में ज्यादा समय नहीं बिताया और 15-20 मिनट में ही घूमकर नीचे आ गए ! यहाँ से निकले तो हमारा अगला पड़ाव यहाँ से कुछ दूरी पर स्थित नाथमल की हवेली था, जहाँ पहुँचने में भी हमें ज्यादा वक़्त नहीं लगा !
नाथमल की हवेली
नाथमल की हवेली का निर्माण दो भाइयों ने मिलकर करवाया था इसलिए इसके दोनों हिस्सों में आपको थोडा सा अंतर नज़र आएगा ! इस हवेली का निर्माण दीवान मोहता नाथमल के रहने के लिए करवाया था, मोहता नाथमल एक समय जैसलमेर के दीवान थे इसलिए इस हवेली के सामने भी आपको वैसे ही हाथी बने दिखाई देंगे जैसे आपने सालम सिंह की हवेली के सामने देखे थे ! कहा जाता है कि दो वास्तुकार भाइयों ने एक साथ इस हवेली के अलग-2 हिस्सों में निर्माण कार्य शुरू करवाया था ! उस समय ऐसा कोई यंत्र नहीं था जिससे किसी ईमारत की एकरूपता मापी जा सके, परिणामस्वरूप ये हवेली बनकर तैयार हुई जिसके दोनों भाग आपस में थोडा भिन्न है ! इसके बावजूद भी ये हवेली भी जैसलमेर की शानदार हवेलियों में शुमार है ! हवेली के सामने पीले पत्थर से बने हाथियों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये हवेली की पहरेदारी कर रहे हो, इसके अलावा हवेली के अन्दर पत्थर के स्तंभों और दीवारों पर भी सुन्दर कारीगरी की गई है, इसमें घोड़े, गाय-बैल, और कुछ अन्य वस्तुओं की चित्रकारी शामिल है ! लेकिन इस हवेली में जो सबसे आकर्षक चित्रकारी है वो है आधुनिक सुख-सुविधाओं में प्रयोग में आने वाली कारें, पंखे और कुछ अन्य वस्तुएं !
ये कहा जाता है कि इनमें से अधिकतर वस्तुएं वास्तुकार भाइयों ने अपने जीवन में कभी देखी भी नहीं थी और ये चित्रकारी उन्होंने उन लोगों द्वारा मिली जानकारी के आधार पर की जो इन वस्तुओं को देख चुके थे ! इन चित्रों को देखकर मानना पड़ेगा कि वाकई उस दौर में मंझे हुए चित्रकार थे ! जैसलमेर की अधिकतर हवेलियाँ राजपूत और मुस्लिम वास्तुकला का मिला-जुला उदहारण है, वैसे आजादी के बाद से ही ये हवेलियाँ सरकार के नियंत्रण में है ! इन सभी हवेलियों के आस-पास के रास्ते काफी तंग है, इतने तंग कि यहाँ गाडी लेकर जाना संभव नहीं है वैसे भी इन संकरी गलियों में पैदल घूमने का जो आनंद है वो गाडी में बैठकर शायद ही मिले ! इन हवेलियों की ख़ूबसूरती को उभारने के लिए आस-पास की कुछ इमारतों को हटाया भी गया ताकि यहाँ आने वाले लोग इन हवेलियों की असली ख़ूबसूरती को निहार सके ! यहाँ मौजूद एक इमारत में सत्यजीत रे की एक बंगला फिल्म सोनार केला (सोनार किला) की शूटिंग की गई थी ! नाथमल की हवेली से निकलने के बाद हम अपने अगले पड़ाव गदीसर झील की ओर चल दिए जो यहाँ से ढाई किलोमीटर दूर है ! चलिए, इस लेख में फिल्हाल इतना ही, अगले लेख में आपको गदीसर झील की सैर करवाऊंगा !
क्यों जाएँ (Why to go Jaisalmer): अगर आपको ऐतिहासिक इमारतें और किले देखना अच्छा लगता है, भारत में रहकर रेगिस्तान घूमना चाहते है तो निश्चित तौर पर राजस्थान में जैसलमेर का रुख कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Jaisalmer): जैसलमेर जाने के लिए नवम्बर से फरवरी का महीना सबसे उत्तम है इस समय उत्तर भारत में तो कड़ाके की ठण्ड और बर्फ़बारी हो रही होती है लेकिन राजस्थान का मौसम बढ़िया रहता है ! इसलिए अधिकतर सैलानी राजस्थान का ही रुख करते है, गर्मी के मौसम में तो यहाँ बुरा हाल रहता है !
कैसे जाएँ (How to reach Jaisalmer): जैसलमेर देश के अलग-2 शहरों से रेल और सड़क मार्ग से जुड़ा है, देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी लगभग 980 किलोमीटर है जिसे आप ट्रेन से आसानी से तय कर सकते है ! दिल्ली से जैसलमेर के लिए कई ट्रेनें चलती है और इस दूरी को तय करने में लगभग 18 घंटे का समय लगता है ! अगर आप सड़क मार्ग से आना चाहे तो ये दूरी घटकर 815 किलोमीटर रह जाती है, सड़क मार्ग से भी देश के अलग-2 शहरों से बसें चलती है, आप निजी गाडी से भी जैसलमेर जा सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay near Jaisalmer): जैसलमेर में रुकने के लिए कई विकल्प है, यहाँ 1000 रूपए से शुरू होकर 10000 रूपए तक के होटल आपको मिल जायेंगे ! आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है ! खाने-पीने की सुविधा भी हर होटल में मिल जाती है, आप अपने स्वादानुसार भोजन ले सकते है !
क्या देखें (Places to see near Jaisalmer): जैसलमेर में देखने के लिए बहुत जगहें है जिसमें जैसलमेर का प्रसिद्द सोनार किला, पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली, नाथमल की हवेली, बड़ा बाग, गदीसर झील, जैन मंदिर, कुलधरा गाँव, सम, और साबा फोर्ट प्रमुख है ! इनमें से अधिकतर जगहें मुख्य शहर में ही है केवल कुलधरा, खाभा फोर्ट, और सम शहर से थोडा दूरी पर है ! जैसलमेर का सदर बाज़ार यहाँ के मुख्य बाजारों में से एक है, जहाँ से आप अपने साथ ले जाने के लिए राजस्थानी परिधान, और सजावट का सामान खरीद सकते है !
अगले भाग में जारी...
जैसलमेर यात्रा