केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर (Bhairavnath Temple in Kedar Valley)

शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

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यात्रा के पिछले लेख में आप केदारनाथ के दर्शन कर ही चुके है, अब आगे, दर्शन करने के बाद सभी लोगों को तेज भूख लगी थी, आखिरकार सुबह से हमने खाया ही क्या था ! हल्का-फुल्का खाते हुए ही हमने केदारनाथ की चढ़ाई चढ़ी थी ! रात्रि में रुकने का इंतजाम तो हम कर ही चुके थे, उस होटल में इस समय खाने की व्यवस्था नहीं थी, इसलिए भोजन करने के लिए हम मंदिर के सामने एक होटल में जाकर रुके ! होटल क्या था, जलपान गृह था, जहाँ आपको चाय, पकोड़े, बिस्कुट, नमकीन और हल्का-फुल्का भोजन मिल जायेगा ! थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद हमारा खाना आ गया, खाने का स्वाद तो पूछो ही मत, बस पेट भरने के लिए कुछ खाना था तो खा लिया, वरना खाना ज्यादा स्वादिष्ट नहीं था ! हमने दाल मंगाई थी, जो दाल परोसी गई, उसमें इतनी तेज मिर्च थी कि जैसे सारे होटल की मिर्च उस दाल में ही डाल दी हो ! खैर, दूसरी दाल आई, ये पहले से थोड़ी बेहतर थी, सबने भरपेट भोजन किया, इसी दुकान के बाहर मिठाइयों में लड्डू खूब सजा रखे थे ! छोटे-2 रंगीन लड्डू थे, पूछने पर पता चला 5 रूपए प्रति पीस, ऐसे ही मन भर गया, तो आगे बढ़ गए ! 
भैरवनाथ मंदिर का एक दृश्य (A View of Bhairavnath Temple)

पेट भरने के बाद हम यहाँ से टहलते हुए आराम करने के लिए अपने होटल पहुंचे, मंदिर से होटल जाने के मार्ग में एक भवन निर्माण का कार्य चल रहा था, हम इसी निर्माणाधीन इमारत से होते हुए अपने होटल गए ! वैसे, पहाड़ों पर भवन निर्माण का कार्य काफी लागत वाला है, भवन निर्माण की कुछ सामग्री तो यहाँ आसानी से मिल जाती है लेकिन सीमेंट और अन्य सामग्री जुटाना काफी मुश्किल का काम है ! होटल पहुंचकर सभी लोग आराम करने के लिए अपने-2 बिस्तर पर चले गए, थोड़ी देर आराम करने के बाद देवेन्द्र मुझसे बोला, यार यहाँ से थोड़ी दूरी पर एक पहाड़ी के ऊपर भैरवनाथ का मंदिर है, मेरा वहां जाने का मन है, अगर तुम्हें भी साथ चलना हो तो बताओ ! मैं बोला, नेकी और पूछ-2, बिल्कुल चलूँगा भाई ! मेरे पिताजी और अनिल थकान के कारण सो चुके थे, उन्हें नींद से जगाना हमें ठीक नहीं लगा, इसलिए हम दोनों ही भैरवनाथ मंदिर जाने के लिए निकल पड़े ! केदार घाटी में केदारनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर एक पहाड़ी की छोटी पर स्थित ये मंदिर भी केदारनाथ आने वाले श्रधालुओं में खासा लोकप्रिय है ! इसलिए केदारनाथ आने वाले लोग अक्सर इस मंदिर में भी दर्शन करके ही वापिस लौटते है !

चलिए, आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी इस मंदिर के बारे में दे देता हूँ ! हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान् शिव का एक अन्य रूप भी है जिसे लोग भैरवनाथ के नाम से जानते है, भैरवनाथ को केदार घाटी ओर केदारनाथ मंदिर का संरक्षक माना जाता है ! माना जाता है कि जब सर्दियों में भारी बर्फ़बारी के कारण केदारनाथ के पट बंद हो जाते है और सभी लोग केदार घाटी से निकलकर नीचे सोनप्रयाग या अन्य निचले क्षेत्रों में चले जाते है तो भैरवनाथ ही इस मंदिर की रक्षा करते है ! केदार घाटी में पूर्वी पहाड़ी की छोटी पर स्थित भैरवनाथ मंदिर भगवान् शिव के इसी रूप को समर्पित है, भैरवनाथ का हथियार त्रिशूल है जबकि उनका वाहन कुत्ता है ! अब तक हम पानी की एक बोतल और कैमरा लेकर अपने होटल से निकलकर भैरवनाथ मंदिर जाने के लिए निकल चुके थे ! ये एक रिहायशी इलाका था, कई इमारतों के इर्द-गिर्द होते हुए थोड़ी देर में ही हम इस कस्बे से निकलकर मन्दाकिनी नदी के किनारे पहुँच चुके थे ! नदी पार करने के लिए पक्का पुल काफी आगे बना था, और पुल तक जाकर वापिस आने की हमारी इच्छा नहीं थी इसलिए यहाँ बने एक अस्थायी पुल के सहारे हम नदी के उस पार पहुँच गए !

मन्दाकिनी नदी के अस्थायी पुल पर लिया एक चित्र

भैरवनाथ मंदिर जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र
नदी में पानी का बहाव तो काफी तेज था लेकिन यहाँ नदी की चौड़ाई बहुत ज्यादा नहीं थी, पहाड़ों पर अक्सर ही ऐसा होता है ! जैसे-2 ये नदी मैदानी इलाकों की ओर बढती जाएगी, रास्ते में अलग-2 पहाड़ी क्षेत्रों से सहायक नदियाँ और बरसाती नाले आकर इस नदी में मिलते रहेंगे, नतीजन, मैदानी क्षेत्रों में पहुँचते-2 ये काफी चौड़ी हो जाएगी ! खैर, यहाँ बने एक अस्थायी लोहे के पुल से होते हुए हम नदी के उस पार पहुंचे, पुल से गुजरते हुए मेरा मन 2013 में यहाँ आई त्रादसी की कल्पना करते हुए सिहर उठा ! उस समय इस नदी ने कैसा विकराल रूप धारण किया होगा, जब इसने हज़ारों लोगों को लील लिया था ये सोचकर ही पूरा शरीर काँप उठा ! उस त्रादसी के बाद से ही केदार घाटी में बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य चल रहा है, मंदिर के तीन तरफ सीमेंट की ऊंची-2 दीवारें बनाई जा रही है ! बड़े-2 ट्रक और जेसीबी मशीनें निर्माण कार्य में लगी हुई है, इन ट्रकों के आवागमन के लिए नदी के किनारे-2 एक कच्चा मार्ग भी बना है ! स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान हमें पता चला, कि निर्माण कार्य में लगी इन मशीनों और वाहनों को खोलकर छोटे-2 हिस्सों में हेलीकाप्टर की मदद से यहाँ लाया गया था, बाद में इन्हें फिर से जोड़ दिया गया !

पुल पार करने के बाद थोड़ी दूर चलते ही हम पहाड़ी की तलहटी में पहुँच गए, यहाँ पहाड़ी के किनारे-2 एक मार्ग ऊपर की ओर जा रहा था ! मार्ग के शुरुआत में ही लोहे के पाइपों को मोड़कर प्रवेश द्वार का रूप देने की कोशिश की गई है, पाइप के ऊपर एक घंटी भी बँधी हुई है, यही मार्ग पहाड़ी की छोटी पर स्थित भैरवनाथ मंदिर तक जाता है ! शुरुआत में तो सामान्य सी चढ़ाई है लेकिन 100 मीटर चलने के बाद चढ़ाई थोड़ी तेज हो जाती है और जैसे-2 आप ऊपर चढ़ते जाते है चढ़ाई भी बढती जाती है ! इस मंदिर की ओर जाने का रास्ता भी ऊबड़-खाबड़ है, एक बार कभी यहाँ मार्ग बनाया गया होगा जो अब कई जगह से टूट चुका है, अधिकतर मार्ग पर पत्थरों के छोटे-2 टुकड़े बिखरे पड़े है ! मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग के एक तरफ तो ऊंचे-2 पहाड़ है जबकि दूसरी ओर शुरुआत में तो कुछ नहीं है लेकिन ऊँचाई बढ़ने के साथ ही किनारों पर रेलिंग लगाईं गई है ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके ! हालांकि, ये रेलिंग अब बीच-2 में कई जगह से क्षतिग्रस्त हो चुकी है, इस मार्ग पर चलते हुए थोड़ी सी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है !


यही रास्ता ऊपर पहाड़ी पर भैरवनाथ के मंदिर तक जाता है 

पहाड़ी से दिखाई देता केदार घाटी का एक दृश्य

पहाड़ी से दिखाई देता केदार घाटी का एक दृश्य
ख़ास तौर पर उतरते हुए तो अतिरिक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत है क्योंकि इस ढलान भरे मार्ग पर छोटे पत्थर गिरे होने के कारण फिसलने की पूरी संभावना रहती है ! जैसे-2 हम इस मार्ग पर ऊपर बढ़ते जाते है, केदार घाटी में दिखाई दे रही इमारतों का दृश्य भी सुन्दर होने लगता है ! यहाँ से मंदिर के किनारे बनाई जा रही दीवार भी दिखाई देती है, पता नहीं ये दीवार मंदिर को कितनी सुरक्षा दे पायेगी ! केदारनाथ से इस मंदिर की कुल दूरी लगभग 1 किलोमीटर है, जिसमें अंतिम 100 मीटर तो अच्छी चढ़ाई है ! पहाड़ी की चोटी पर पहुंचे तो यहाँ एक ऊंचा चबूतरा बना है, जिसपर भैरवनाथ के अलावा कुछ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी रखी हुई है ! लोग यहीं पूजा करते है, तेल और लोहे के त्रिशूल चढाते है और कुछ समय रूककर प्रभु भक्ति में लीन हो जाते है ! जूते उतारकर हम सीढ़ियों से होते हुए चबूतरे पर चढ़े, सीढ़ियों से ऊपर एक बड़ा घंटा टंगा है ! चबूतरे पर एक बड़े पत्थर के सहारे कई मूर्तियाँ रखी हुई थी, इन मूर्तियों के सामने एक अग्नि कुंड भी जल रहा था, सामने सरसों के तेल की कई बोतलें और अन्य पूजा सामग्री रखी हुई थी ! चबूतरे के चारों ओर रेलिंग लगी थी और जगह-2 रंग-बिरंगे झंडे टंगे हुए थे और बैठने के लिए एक आसन भी रखा था !


पहाड़ी से दिखाई देता केदार घाटी का एक दृश्य

पहाड़ी से दिखाई देता केदार घाटी का एक दृश्य

पहाड़ी से दिखाई देता केदार घाटी का एक दृश्य

पहाड़ी से दिखाई देता केदार घाटी का एक दृश्य

केदारनाथ के पीछे पहाड़ों का एक दृश्य

मंदिर जाने का मार्ग

सामने जो झंडिया दिखाई दे रही है वही मंदिर है 
मतलब पूजा करने का पूरा इंतजाम पहले से ही था, कसम से, ऐसा लग रहा था जैसे हमारे आने की जानकारी किसी को पहले से ही थी ! वैसे आज यहाँ आने वाले हम पहले इंसान नहीं थे, मंदिर की ओर आते समय रास्ते में हमें कुछ लोग वापिस जाते हुए भी दिखे थे ! लोग यहाँ मन्नत लेकर भी खूब आते है, और फिर मन्नत पूरी होने पर यहाँ घंटे और त्रिशूल चढाते है, चबूतरे में टंगे सैकड़ों घंटे और यहाँ रखे त्रिशूल इस बात की गवाही दे रहे थे ! चबूतरे पर खड़े होकर साफ़ दिखाई दे रहा था कि मंदिर की ओर आने वाले मार्ग के नीचे अच्छा-ख़ासा भूमि कटाव हो रखा था, बारिश के मौसम में जलकटाव से ये मार्ग ढह भी सकता है ! इसके अलावा यहाँ खड़े होकर चारों तरफ दूर-2 तक फैली ऊंची-2 पहाड़ियों का दृश्य दिखाई दे रहा था, जिनपर शाम होते-2 घने बादल घिर आए थे ! थोड़ी देर पूजा करने के बाद हम ध्यान लगाने के लिए वहां रखे आसन पर बैठ गए, इस समय यहाँ बहुत तेज हवा चल रही थी और ऊँचाई पर होने के कारण ये तेज हवा हमें बहुत तेज लग रही थी ! 10 मिनट यहाँ बैठने के बाद हम चबूतरे से नीचे आ गए, और आस-पास की पहाड़ियों के चित्र लेने लगे !


मंदिर से दिखाई देता मार्ग

मंदिर से दिखाई देता पहाड़ी का एक दृश्य

मंदिर से दिखाई देता एक अन्य दृश्य

पहाड़ी पर स्थित मंदिर

इस मंदिर में सैकड़ों घंटिया बंधी है
चबूतरे के सामने एक जगह 2013 की त्रादसी में मारे गए लोगों के स्मृति चिन्ह लगे हुए थे, कुछ लोग तो बहुत कम उम्र में ही इस प्रलय की भेंट चढ़ गए ! हम इन लोगों के बारे में पढ़ ही रहे थे, कि इसी दौरान कुछ अन्य लोग भी यहाँ दर्शन हेतु आए, इन्हीं लोगों में से एक परिवार से बातचीत के दौरान पता चला कि ये लोग उत्तराखंड के किसी पहाड़ी इलाके से ही थे ! परिवार के मुखिया किसी सरकारी विभाग में कार्यरत थे, और 2013 में आई प्रलय के दौरान उन्हें इस क्षेत्र में चल रहे बचाव कार्य की निगरानी के लिए यहाँ भेजा गया था ! उन्होंने हमें अपनी आँखों देखा हाल बताया, कुछ लोग तो यहाँ बचाव कार्य के दौरान ही अकारण ही काल के गर्भ में चले गए थे ! लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, भगवान् इस प्रलय में मारे गए लोगों की आत्मा को शान्ति दे ! कुछ देर यहाँ बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी, मंदिर से वापिस आते समय हमें ज्यादा समय नहीं लगा, लेकिन फिर भी नीचे पहुँचते-2 शाम हो गई थी ! हमें अंदाजा हो गया था कि होटल में हमारे दोनों साथी जाग गए होंगे और हमें वहां ना पाकर थोडा चिंतित भी होंगे, इसलिए तेज क़दमों से हम अपने होटल की ओर चल दिए !


आस-पास की पहाड़ी को बादलों ने घेर लिया

आस-पास की पहाड़ियों पर मंडराते बादल



पूजा करने के बाद तिलक लगाना तो बनता ही है
कुछ ही पलों में अपने होटल पहुंचे तो वहां दोनों लोग हमारी प्रतीक्षा ही कर रहे थे ! जैसे-2 शाम हो रही थी मौसम भी ठंडा होने लगा था, ऐसे में चाय पीने की तलब हो रही थी ! बिना समय गंवाए हम होटल से निकलकर मंदिर के पास बनी दुकानों की ओर चल दिए, यहाँ खान-पान की कई दुकानें थी, ऐसी ही एक दुकान पर जाकर हम चाय पीने के लिए बैठ गए ! जब तक चाय बनकर तैयार हुई, हम आगे के कार्यक्रम पर चर्चा करने लगे, स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान हमें पता चला था कि यहाँ केदारनाथ में हर शाम आरती होती है, हमारा मन केदारनाथ में हर शाम होने वाली आरती में शामिल होने का था ! 15-20 मिनट बाद हम चाय पीकर फारिक हो चुके थे, बाज़ार में घूमते हुए हमने अपने साथ घर ले जाने के लिए प्रसाद भी ले लिया ! अभी आरती शुरू होने में आधे घंटे से भी अधिक समय था, समय बिताने के लिए हम मंदिर के पिछले भाग की ओर चल दिए, जहाँ भीमशिला स्थित है ! इस विशाल शिला और मंदिर में होने वाली आरती के बारे में अगले लेख में बताऊंगा, फिल्हाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, तक तक आप भैरवनाथ के दर्शन कीजिये !

क्यों जाएँ (Why to go Kedarnath): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर उत्तराखंड में स्थित केदारनाथ आपके लिए एक बढ़िया जगह है ! केदारनाथ उत्तराखंड में स्थित चार धाम में से एक है यहाँ जाने के लिए सोनप्रयाग बेस कैम्प है और यहाँ जाते हुए रास्ते में घूमने के लिए अनेकों जगहें है, शहर की भीड़-भाड़ से दूर 2-3 दिन आप यहाँ आराम से बिता सकते है ! 

कब जाएँ (Best time to go Kedarnath): केदारनाथ के द्वार हर वर्ष मई में खुलकर दीवाली के बाद बंद हो जाते है ! साल के 6 महीने बर्फ़बारी के कारण केदारनाथ मंदिर बंद रहता है ! बहुत से लोग बर्फ़बारी के दौरान भी सोनप्रयाग आते है लेकिन इस दौरान बर्फ के अलावा उन्हें कुछ नहीं मिलता ! बारिश के मौसम में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए इन दिनों भी यहाँ ना ही जाएँ ! अगर फिर भी इस दौरान जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !


कैसे जाएँ (How to reach Kedarnath): दिल्ली से केदारनाथ की कुल दूरी लगभग 481 किलोमीटर है, जिसमें से सोनप्रयाग तक की 460 किलोमीटर की दूरी आप निजी वाहन से भी तय कर सकते है ! सोनप्रयाग से आगे 5 किलोमीटर गौरीकुंड है जहाँ जाने के लिए सोनप्रयाग से जीपें चलती है ! अंतिम 17 किलोमीटर की यात्रा आपको पैदल ही तय करनी होती है ! सोनप्रयाग तक आपको लगभग 15 से 16 घंटे का समय लगेगा, सोनप्रयाग से आगे पैदल यात्रा करने में 7-8 घंटे लगते है ! दिल्ली से सोनप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग हरिद्वार-देवप्रयाग-रुद्रप्रयाग होते हुए है, दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है ! आप चाहे तो हरिद्वार तक का सफ़र ट्रेन से कर सकते है और हरिद्वार से आगे का सफ़र बस या जीप से तय कर सकते है ! इसमें आपको थोडा अधिक समय लगेगा !


कहाँ रुके (Where to stay near Kedarnath): केदारनाथ में रुकने के लिए कई होटल है जहाँ रुकने के लिए आपको 500-600 रूपए में कमरा मिल जायेगा ! मई-जून में ये किराया बढ़कर दुगुना भी हो जाता है ! हेलीपेड के पास डोरमेट्री की व्यवस्था भी है जहाँ प्रति व्यक्ति आपको 600-700 रूपए देने होंगे ! केदारनाथ में खान-पान के बहुत ज्यादा विकल्प नहीं है इसलिए सुख सुविधाओं की बहुत ज्यादा उम्मीद ना करें !


क्या देखें (Places to see near Kedarnath): केदारनाथ चार धामों में से एक धार्मिक स्थल है, यहाँ 1 किलोमीटर की दूरी पर भैरवनाथ मंदिर है, 4 किलोमीटर दूरी पर चोराबारी ताल भी है, चोराबारी ताल से आगे ग्लेशियर शुरू हो जाते है ! सोनप्रयाग में वासुकी गंगा और मन्दाकिनी नदियों का संगम होता है ! सोनप्रयाग से 13 किलोमीटर दूर त्रियुगीनारायण का मंदिर है, जबकि सोनप्रयाग से 5 किलोमीटर दूर गौरीकुंड में भी पार्वती माता का मंदिर है !

अगले लेख में जारी...

केदारनाथ यात्रा
  1. दिल्ली से केदारनाथ की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Kedarnath)
  2. उत्तराखंड के कल्यासौड़ में है माँ धारी देवी का मंदिर (Dhari Devi Temple in Uttrakhand)
  3. रुद्रप्रयाग में है अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम (Confluence of Alaknanda and Mandakini Rivers - RudrPrayag)
  4. रुद्रप्रयाग में है कोटेश्वर महादेव मंदिर (Koteshwar Mahadev Temple in Rudrprayag)
  5. रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि मंदिर होते हुए सोनप्रयाग (A Road Trip from Rudrprayag to Sonprayag)
  6. गौरीकुंड से रामबाड़ा की पैदल यात्रा (A Trek from Gaurikund to Rambada)
  7. रामबाड़ा से केदारनाथ की पैदल यात्रा (A Trek from Rambada to Kedarnath)
  8. केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर (Bhairavnath Temple in Kedar Valley)
  9. केदारनाथ धाम की संध्या आरती (Evening Prayer in Kedarnath)
  10. केदारनाथ से वापसी भी कम रोमांचक नहीं (A Trek from Kedarnath to Gaurikund)
  11. सोनप्रयाग का संगम स्थल और त्रियुगीनारायण मंदिर (TriyugiNarayan Temple in Sonprayag)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

6 Comments

  1. भैरवनाथ जी की जानकारी पाकर अच्छा लगा
    पहली बार इस लेख के माध्यम से ही जानकारी मिली
    बहुत खूब सर

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    1. धन्यवाद महेश जी, सुनकर अच्छा लगा कि लेख आपको पसंद आया !

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  2. फोटो बहुत बेहतरीन है और अच्छा लिखा आपने

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई !

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  3. जय भैरव बाबा की

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    1. जय भैरव बाबा की सचिन भाई !

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