बुधवार, 11 अक्तूबर 2017
केदारनाथ (Kedarnath) जाने का जो सपना मैं पिछले कुछ सालों से देखता आ रहा था वो आखिर इस साल सच हो ही गया, पिछले साल भी अक्टूबर में कुछ दोस्तों के साथ केदारनाथ जाने का पूरा मन था लेकिन यात्रा से कुछ दिन पहले शौर्य को डेंगू हो जाने से मेरा इस यात्रा पर जाना स्थगित हो गया ! इस साल भी दशहरा पर जयंत के साथ जाने की योजना थी लेकिन अंतिम समय में कुछ व्यस्तता के कारण नहीं जा सका ! काफी जद्दोजेहद और योजना में उतार-चढ़ाव के बाद आखिर इसी साल दशहरा से दो सप्ताह बाद यानि अक्टूबर की 11 तारीख को केदारनाथ जाने का संयोग बनता दिखा ! मेरे अलावा इस यात्रा पर देवेन्द्र और उसका एक मित्र अनिल भी जाने वाला था, देवेन्द्र मेरे साथ पहले कसौली की यात्रा भी कर चुका है, लेकिन अनिल मेरे साथ पहली बार किसी यात्रा पर जा रहा था ! इस यात्रा पर जाने की जानकारी जब मैंने अपने परिवार में दी तो मेरे पिताजी ने भी केदारनाथ साथ चलने की इच्छा जताई, उनका इस यात्रा पर साथ चलने की बात सुनकर मुझे काफी अच्छा लगा ! अब यात्रा में केवल 1 ही दिन शेष था, और हमें सारी तैयारियां इसी एक दिन में करनी थी, पूरे जोर-शोर से तैयारियां होने लगी !
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देवप्रयाग स्थित रघुनाथ मंदिर में लिया एक चित्र (In Raghunath Temple, Devprayag)
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इस यात्रा से सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी मैं पहले ही इक्कट्ठी कर चुका था, मैंने इस यात्रा का दैनिक कार्यक्रम भी बना लिया था कि यहाँ से निकलकर हमें क्या-2 देखते हुए जाना है ! जयंत पिछले सप्ताह ही केदारनाथ होकर आया था और उससे मिली जानकारी के मुताबिक केदारनाथ में अच्छी ठण्ड पड़ रही थी, इसलिए हमने कुछ गरम कपडे भी अपने साथ रख लिए ! फिर निर्धारित दिन मैं सुबह समय से अपने काम के लिए निकल पड़ा, इस यात्रा पर ले जाने वाला बैग मैंने सुबह ही गाडी में रख लिया था ! पापा को मैंने दोपहर बाद साढ़े चार बजे सराय काले खां बस अड्डे के पास मिलने को कह दिया था, देवेन्द्र मुझे गुडगाँव में ही शंकर चौक पर मिलने वाला था ! जबकि इस यात्रा का हमारा चौथा साथी अनिल हमें धौला कुआँ मिलने वाला था ! इस तरह हम सब शाम को ऑफिस से थोडा जल्दी निकलकर इस यात्रा की शुरुआत करने वाले थे ! दिन में देवेन्द्र से बात करने पर पता चला कि अनिल का कुछ पारिवारिक कारणों से हमारे साथ चलना स्थगित हो गया है, कोई बात नहीं अब हम तीन लोग ही इस यात्रा पर जायेंगे !
दफ्तर से अपना काम निबटाकर मैं साढ़े तीन बजे इस यात्रा के लिए निकल पड़ा, अपने दफ्तर से चलने से कुछ देर पहले मैंने देवेन्द्र को इसकी जानकारी दे दी ताकि वो भी समय से शंकर चौक पहुँच सके ! 10 मिनट बाद जब मैं शंकर चौक पहुंचा तो देवेन्द्र यहाँ पहले से ही पहुँच चुका था, गाडी में सवार होकर हम दोनों धौला कुआँ की ओर चल दिए ! गुडगाँव से निकलकर दिल्ली में घुसते ही यहाँ के बदनाम यातायात ने हमारा स्वागत किया, इसी भीड़-भाड़ के चक्कर में हम धौला कुआँ पहुँचने से पहले ही एक फ्लाईओवर से नीचे उतर गए ! घूमते-घामते रिंग रोड पर पहुंचे, फिर मेडिकल, साउथ एक्सटेंशन, लाजपत नगर होते हुए हम सराय काले खां बस अड्डे के सामने पहुंचे, यहाँ से पिताजी को अपने साथ लेकर अक्षरधाम होते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पकड़ लिया और पटपडगंज, नोयडा होते हुए हिंडन नदी पार करने के बाद हरिद्वार जाने वाले मार्ग पर जा मिले ! भीड़-भाड़ के कारण हमें गुडगाँव से गाज़ियाबाद पहुँचने में ही 3 घंटे का समय लग गया, हरिद्वार मार्ग पर आकर गाड़ी ने थोड़ी रफ़्तार पकड़ी !
गाज़ियाबाद से चले तो मेरठ, मुज्ज़फरनगर पार करते हुए रूडकी पहुंचे, इस बीच रास्ते में एक जगह रूककर रात्रि भोजन भी किया ! इस मार्ग पर पड़ने वाला जो एकमात्र टोल केंद्र है वहां भी टोल शुल्क बढाकर 80 रूपए कर दिया है ! हरिद्वार पहुँचते-2 रात के 11 बज चुके थे, गुडगाँव से चले थे तो रात्रि विश्राम का विचार ऋषिकेश से कहीं आगे ब्यासी या देवप्रयाग में करने का था ! लेकिन जब आधी रात यहीं हो गई तो, ऋषिकेश में ही एक होटल "ग्रेट पेरीवाल" (Hotel Great Periwal) में ऑनलाइन आरक्षण करवा लिया ! साढ़े ग्यारह बजे हम होटल के सामने जाकर रुके, यहाँ पार्किंग में गाडी खड़ी करके हमने अपना ज़रूरी सामान लिया और होटल के रिशेप्शन पर पहुँच गए ! यहाँ अपना बुक किया हुआ कमरा देखने के बाद हमने रिशेप्शन पर रखे आगंतुक रजिस्टर में अपनी जानकारी भरी और आराम करने के लिए प्रथम तल पर स्थित अपने कमरे में चल दिए ! वैसे, ऑनलाइन बुकिंग के कुछ फायदे होते है तो कभी-2 नुकसान भी हो जाते है, देखा जाए तो आज की ऑनलाइन बुकिंग में हमें नुकसान ही हुआ !
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रात्रि भोजन के लिए इसी होटल में रुके थे (A Hotel on the way to Haridwar) |
3 लोगों के रुकने के लिए जो कमरा हमें ऑनलाइन 1300 रूपए का मिला, उससे भी बड़ा और शानदार कमरा हमें ऑफलाइन 1200 का मिल जाता ! ये बात हमें होटल पहुंचकर स्टाफ से बातचीत करने के बाद महसूस हुई ! खैर, अब अफ़सोस करने से कोई फायदा नहीं, वैसे भी अगर ऑनलाइन बुकिंग ना करवाते तो आधी रात को कहाँ होटल ढूंढते फिरते ! सीढ़ियों से होते हुए हम अपने कमरे में पहुंचे और दिन भर की थकान होने के कारण बिस्तर पर जाते ही नींद आ गई ! रात को सोने से पहले देवेन्द्र और मैंने अपने-2 मोबाइल में सुबह का अलार्म लगा दिया था ताकि, समय से उठकर नहा-धोकर तैयार हो सके ! सुबह अलार्म बजने के साथ ही साढ़े 4 बजे सोकर उठे और फटाफट नित्य-क्रम से फारिक होने के बाद 6 बजे तक हमने होटल छोड़ दिया ! बातों ही बातों में मैं आपको ये तो बताना भूल ही गया कि हमारा चौथा साथी अनिल जो कल किसी कारणवश गुडगाँव से हमारे साथ नहीं आ पाया था, इस समय ऋषिकेश बस अड्डे पर खड़ा हमारी प्रतीक्षा कर रहा था !
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होटल के कमरे का एक दृश्य (A view of Hotal in Rishikesh) |
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होटल के कमरे का एक दृश्य (A view of Hotal in Rishikesh) |
हुआ, दरअसल यूँ कि रात को होटल पहुँचने से थोड़ी देर पहले देवेन्द्र की उससे फ़ोन पर बात हुई थी और उसका मन हमारे साथ इस यात्रा पर चलने का था ! इसलिए देवेन्द्र ने उससे कह दिया था कि अगर साथ चलना है तो रात को दिल्ली से हरिद्वार या ऋषिकेश की कोई बस या वॉल्वो पकड़कर यहाँ आ जाए ! सुबह हम होटल से निकलने के बाद उसे अपने साथ ले लेंगे, आज सुबह होटल से निकलने से पहले ही उसका फ़ोन आ गया था कि वो ऋषिकेश बस अड्डे पर खड़ा हमारी प्रतीक्षा कर रहा है ! फिर होटल से निकलने के आधा घंटा बाद अनिल भी हमारे साथ था, सुबह का समय होने के कारण ऋषिकेश की रोड बिल्कुल खाली थी वरना दिन के समय यहाँ अच्छी-खासी भीड़ रहती है ! वैसे भी ऋषिकेश तो अब मैदानी इलाके जैसा ही है, नतीजन हम ऋषिकेश से निकलकर तेजी से देवप्रयाग की ओर बढ़ने लगे, होटल से चले थे तो चाय तक नहीं पी थी ! हमने सोच लिया था कि ब्यासी या देवप्रयाग पहुँचने के बाद ही कहीं चाय पियेंगे ! सुबह-2 खाली पहाड़ी मार्ग, खिड़की के शीशे से टकराकर आती ठंडी-2 हवा और आस-पास दिखाई देते खूबसूरत नज़ारे, गाडी चलाने के लिए अनुकूल माहौल था !
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देवप्रयाग जाने का मार्ग (On the way to DevPrayag) |
साढ़े आठ बजने को थे जब हमने देवप्रयाग से 10 किलोमीटर पहले सड़क के किनारे एक चाय की दूकान पर जाकर गाडी रोकी ! गाडी से उतरकर दुकान पर गए और 4 चाय बनाने का कहकर होटल के पास टहलने लगे ! इस समय यहाँ हल्का-2 कोहरा था, और होटल के पीछे नीचे घाटी में बहती गंगा नदी से टकराकर आती ठंडी हवाएं मन को शीतलता प्रदान कर रही थी ! एक बहुत ही सुखद एहसास था, ऐसा लग रहा था कि समय यहीं ठहर जाए और हम घंटो यहाँ ऐसे ही टहलते रहे ! जिस समय हम यहाँ आकर रुके थे, यहाँ होटल पर एक बंगाली परिवार भी चाय पीने के लिए रुका था ! अधेड़ उम्र के दम्पति, उनका एक बेटा और टैक्सी ड्राईवर, ये लोग घूमने के बाद हरिद्वार वापिस जा रहे थे ! इन लोगों की गाडी रास्ते में कहीं पंचर हो गई थी, टायर तो ये रास्ते में ही बदल चुके थे, लेकिन ड्राईवर को यहाँ चाय की दूकान के बगल में जब पंचर की दुकान दिखी तो उसने पंचर टायर को मरम्मत करवाने के लिए यहाँ गाडी रोक ली ! जब तक मिस्त्री ने पंचर लगाया, तब तक बंगाली परिवार ने एक-2 कप चाय पी लिया !
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देवप्रयाग जाते हुए रास्ते में एक चाय की दूकान (A Tea shop on the way to DevPrayag) |
यहाँ मुझे एक बात बड़ी अजीब लगी, बंगाली परिवार में जो लड़का था उसकी उम्र शायद 17-18 वर्ष रही होगी, देखने से लग रहा था शायद किसी कॉलेज में पढता होगा ! अपने माँ-बाप के आगे उसे सिगरेट के कश लगाता देख थोडा अचरज सा हुआ, चाहे किसी को कोई भी लत हो, माँ-बाप के आगे तो आखों की शर्म होती ही है ! लेकिन यहाँ तो उस अधेड़ व्यक्ति ने अपने हाथ में रखी सिगरेट की डिब्बी में से स्वयं एक सिगरेट निकालकर उस लड़के को दी थी ! एक पल को संशय भी हुआ कि शायद बाप-बेटे नहीं है लेकिन उनकी बातचीत से निश्चित हो गया कि ये एक ही परिवार के लोग थे ! मन में यही उहापोह चल रही थी कि इसी बीच हमारी चाय बनकर आ गई, हल्की-2 भूख लगने लगी थी इसलिए चाय आने के बाद हम अपने साथ लाए मुरमुरे गाडी में से निकाल लाए ! ऐसे पहाड़ी मार्ग पर, सुबह के ठन्डे मौसम में, रोजमर्रा की भागम-भाग से दूर चाय पीने का भी एक अलग ही आनंद है ! चाय की हर चुस्की के साथ शरीर में जैसे एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था, चाय के साथ मुरमुरे स्वादिष्ट लग रहे थे !
अनिल से इन मुरमुरों की तारीफ़ किये बिना नहीं रहा गया, वो पिताजी से बोला, अंकल ये आप बहुत बढ़िया चीज लाये हो, सफ़र के दौरान ये बहुत काम आएंगे ! हमने कहा जी भर के खाना भाई, अभी तो सफ़र की शुरुआत है ! 20-25 मिनट बाद यहाँ से फारिक होकर चले तो 15-20 मिनट में देवप्रयाग (Devprayag) पहुँच गए, यहाँ भागीरथी का पुल पार करने के बाद हम देवप्रयाग-श्रीनगर मार्ग पर चल दिए ! थोड़ी दूर जाने पर गाडी सड़क के किनारे खड़ी करके हम सीढ़ियों से होते हुए अलकनंदा (Alaknanda) और भागीरथी (Bhagirathi) के संगम स्थल पर चल दिए ! संगम स्थल से थोडा पहले रघुनाथ जी का एक मंदिर (Raghunath Temple, Devprayag) बना है, मैं यहाँ एक बार पहले भी आ चुका हूँ और देवप्रयाग के बारे में मैं अपनी पौड़ी यात्रा में लिख चुका हूँ ! घाट पर जाने से पहले हम रघुनाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए ! पूजा करने के बाद कुछ समय मंदिर परिसर में बिताया और फिर सीढ़ियों से होते हुए नीचे घाट की ओर चल दिए !
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देवप्रयाग में स्थित रघुनाथ मंदिर जाने की सीढियाँ (Way to Raghunath Temple) |
इस घाट पर आना हमेशा ही एक सुखद अनुभव रहता है, आखिर इस संगम के बाद ही तो गंगा नदी को अपनी पहचान मिलती है ! इस घाट पर हिन्दू देवी-देवताओं की कुछ मूर्तियाँ रखी गई है, लोग यहाँ अक्सर पूजा-पाठ के लिए आते रहते है ! घाट पर मौजूद पण्डे भी लोगों को धर्म का वास्ता देकर पूजा या दान-दक्षिणा देने के लिए बाध्य करने का भरसक प्रयत्न करते है ! हमें भी घाट की ओर जाता देख एक पंडा हमारी ओर बढ़ा, हमारे बारे में थोड़ी जानकारी लेने के बाद बोला, इतनी दूर से आए हो, बिना पूजा-पाठ करवाए चले जाओगे तो आना सफल कैसे होगा ! मैं बोला महाराज कोई मन्नत लेकर नहीं आए, बस गंगा मैया के दर्शन की लालसा थी तो चले आए ! पण्डे ने पूरा जोर लगा लिया, लेकिन जब उसकी दाल नहीं गली तो एक किनारे जाकर बैठ गया ! यहाँ आकर सभी लोग प्रसन्नचित थे, घाट के किनारे ही कुछ भक्तजन आटे की गोलियां बनाकर पानी में मौजूद मछलियों को डाल रहे थे ! कहते है मछलियों को दाना डालने से काफी पुण्य मिलता है, इसलिए इन मछलियों को आटे की कुछ गोलियां डालकर हमने भी थोडा पुण्य कमा लिया !
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नदी में तैरती हुई मछलियाँ (Fishes in Water on Ghat) |
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देवप्रयाग के घाट से दिखाई देता एक दृश्य (A view from DevPrayag Ghat) |
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देवप्रयाग के घाट से दिखाई देता एक दृश्य (A view from DevPrayag Ghat) |
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देवप्रयाग के घाट से दिखाई देता एक दृश्य (A view from DevPrayag Ghat) |
कुछ समय यहाँ घाट पर बैठकर व्यतीत किया, एकदम शांत वातावरण था, केवल पानी के बहने की आवाज आ रही थी ! पिछली बार जब मैं यहाँ आया था तो गंगोत्री से आने वाली भागीरथी (Bhagirathi) का बहाव बहुत तेज था जबकि अलकनंदा (Alaknanda) शांत भाव से बह रही थी ! लेकिन इस बार स्थिति बिल्कुल विपरीत थी, आज भागीरथी शांत भाव से बह रही थी जबकि अलकनंदा उफनती हुई दिखाई दे रही थी ! संगम पर समय बिताना मुझे हमेशा से अच्छा लगता है, बैठने को तो आप यहाँ घंटो बैठकर पानी में तैरती हुई मछलियों को देखते रहो लेकिन हमें आज शाम तक सोनप्रयाग (SonPrayag) भी पहुंचना था और सोनप्रयाग जाते हुए रास्ते में पड़ने वाली कई जगहें देखनी थी ! यहाँ ज्यादा समय बिताते तो आगे भगदड़ मची रहती, इसलिए आधा घंटा यहाँ बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी ! यात्रा के इस लेख में फिल्हाल इतना ही, देवप्रयाग से आगे की यात्रा का विवरण अगले लेख में करूँगा !
क्यों जाएँ (Why to go Devprayag): अगर आप शहर की भीड़-भाड़ से दूर सुकून के कुछ पल बिताना चाहते है तो देवप्रयाग आकर आप निराश नहीं होंगे ! यहाँ संगम स्थल पर आप घंटो बैठकर प्रकृति के नज़ारों का आनंद ले सकते है !
कब जाएँ (Best time to go Devprayag): देवप्रयाग आप साल भर किसी भी महीने में जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएँ अक्सर होती रहती है इसलिए बारिश के दिनों में तो ना ही जाएँ ! अगर फिर भी बारिश के मौसम में जाने का विचार बने तो अतिरिक्त सावधानी बरतें !
कैसे जाएँ (How to reach Devprayag): दिल्ली से देवप्रयाग की कुल दूरी 316 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8 से 9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से देवप्रयाग जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग रुड़की-हरिद्वार-ऋषिकेश होते हुए है, दिल्ली से हरिद्वार तक 4 लेन राजमार्ग बना है जबकि ऋषिकेश से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है और सिंगल मार्ग है !
कहाँ रुके (Where to stay in Devprayag): देवप्रयाग एक पहाड़ी क्षेत्र है यहाँ आपको छोटे-बड़े कई होटल मिल जाएँगे, पहाड़ों पर स्थानीय लोग होमस्टे भी कराते है ! जहाँ होटल के लिए आपको 1000 से 1500 रुपए तक खर्च करने पड़ सकते है वहीं होमस्टे थोड़ा सस्ता पड़ेगा ! फिर स्थानीय लोगों के बीच रहने से आप पहाड़ी लोगों की संस्कृति, रहन-सहन,और खान-पान को करीब से जान पाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Devprayag): देवप्रयाग एक धार्मिक स्थल है, यहाँ भागीरथी और अलकनंदा नदियों के संगम पर बना रघुनाथ जी मंदिर देवप्रयाग आने वालों के लिए सदा से ही आकर्षण का केंद्र रहा है !
अगले लेख में जारी...
केदारनाथ यात्रा
- दिल्ली से केदारनाथ की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Delhi to Kedarnath)
- उत्तराखंड के कल्यासौड़ में है माँ धारी देवी का मंदिर (Dhari Devi Temple in Uttrakhand)
- रुद्रप्रयाग में है अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम (Confluence of Alaknanda and Mandakini Rivers - RudrPrayag)
- रुद्रप्रयाग में है कोटेश्वर महादेव मंदिर (Koteshwar Mahadev Temple in Rudrprayag)
- रुद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि मंदिर होते हुए सोनप्रयाग (A Road Trip from Rudrprayag to Sonprayag)
- गौरीकुंड से रामबाड़ा की पैदल यात्रा (A Trek from Gaurikund to Rambada)
- रामबाड़ा से केदारनाथ की पैदल यात्रा (A Trek from Rambada to Kedarnath)
- केदार घाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर (Bhairavnath Temple in Kedar Valley)
- केदारनाथ धाम की संध्या आरती (Evening Prayer in Kedarnath)
- केदारनाथ से वापसी भी कम रोमांचक नहीं (A Trek from Kedarnath to Gaurikund)
- सोनप्रयाग का संगम स्थल और त्रियुगीनारायण मंदिर (TriyugiNarayan Temple in Sonprayag)
बढ़िया शुरुआत... वैसे यह समय केदारनाथ के कपाट बंद होने जा है
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक भाई, केदारनाथ के कपाट 21 अक्तूबर को बंद हो चुके है !
Deleteप्रदीप जी क्या संस्मरण लिखा है आपने सच में ऐसा लगता है की मानो साथ साथ ही आपके खुद भी चल रहे हों। आपके यात्रा वृतांत को पढ़ कर मेरा भी मन हो रहा है गौमुख केदारनाथ तथा तपोवन यात्रा की किन्तु ये मेरा प्रथम अनुभव होगा किसी ऐसी जगह पर जाने का इसलिए आपसे एक बार व्यक्तिगत बात करना चाहता था जिससे अपने कुछ संशय दूर कर सकूँ और आपके अमूल्य सुझावों से अपनी यात्रा मंगलमयी कर सकूँ।
Deleteक्या आपका कोई संपर्क सूत्र मिल सकता है जिससे मैं आपसे बात कर सकूँ।
धन्यवाद
उत्तर हेतु प्रतीक्षारत
रत्नेश जी, आप मुझसे 8700159961 पर संपर्क कर सकते है !
Deleteबढ़िया शुरुआत
ReplyDeleteधन्यवाद प्रफुल्ल भाई !
DeleteYe lekh pad kar saari yaade taza ho gayi. Bahut khoob likha pradeep bhai.
ReplyDeleteचलो बढ़िया है देव बाबु, यादें ही ताज़ा हो गई इसी बहाने !
Deleteबढ़िया शुरुआत प्रदीप भाई .जय भोले की .
ReplyDeleteधन्यवाद नरेश जी.....जय भोले की !
Deleteबढ़िया यात्रा वृतांत
ReplyDeleteधन्यवाद महेश जी !
Deleteबढ़िया शुरुआत!! अगली कड़ी का इतंजार।
ReplyDeleteधन्यवाद विकास जी, अगली कड़ी भी जल्द ही आने वाली है !
Deleteचित्र और विवरण शानदार
ReplyDeleteधन्यवाद वसंत जी !
Deleteधन्यवाद प्रदीप जी
ReplyDeleteआपके उत्तर हेतु