झूला देवी मंदिर, रानीखेत (Jhula Devi Temple of Ranikhet)

शुक्रवार, 02 मार्च 2018

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दोस्तों, यात्रा के पिछले लेख में हम कैंची धाम के दर्शन करने के बाद रानीखेत के लिए प्रस्थान कर चुके है, होली का दिन होने के कारण आज सड़क पर ज्यादा चहल-पहल भी नहीं थी ! कैंची धाम में भी हमारे अलावा गिनती के लोग ही थे, सड़क किनारे स्थित अधिकतर दुकानें बंद थी और नैनीताल-रानीखेत मार्ग पर भी ना के बराबर ही गाड़ियाँ दिखाई दे रही थी ! नतीजन, हम तेजी से इस मार्ग पर रानीखेत की ओर बढे जा रहे थे, रास्ते में कोई ख़ास दर्शनीय स्थल नहीं था तो हम कहीं रुके भी नहीं ! पहाड़ी मार्ग पर बीच-2 में मोबाइल के सिग्नल की आवाजाही भी जारी थी, हालांकि, सड़क किनारे खम्बों पर लटकती केसरी रंग की फाइबर केबल दिखाई दे रही थी लेकिन फिलहाल तो यहाँ मोबाइल नेटवर्क बहुत अच्छा नहीं था ! 10-11 किलोमीटर चलने के बाद हम एक तिराहे पर जाकर रुके, यहाँ हमारी बाईं ओर कोसी नदी पर एक पुल बना था पुल से होता हुआ ये मार्ग रानीखेत को चला जाता है जबकि इस तिराहे से सीधा जाने वाला मार्ग अल्मोड़ा, जागेश्वर और पित्थोरागढ़ को चला जाता है इसी मार्ग पर चितई देवता का मंदिर भी है, जो यहाँ से 42 किलोमीटर दूर था ये सब जानकारी मुझे इस तिराहे पर लगे एक दिशा सूचक बोर्ड से मिली !
झूला देवी मंदिर, रानीखेत
इस समय कोसी नदी में ज्यादा पानी नहीं था, लेकिन फिर भी पुल से शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था, आगे बढ़ने से पहले तिराहे पर रूककर हमने 2-3 फोटो लिए ! यहाँ से रानीखेत की दूरी तो महज 30 किलोमीटर है लेकिन पहाड़ी मार्ग पर पड़ने वाले खूबसूरत नजारों को देखते हुए आगे बढ़ने पर ये दूरी तय करने में भी घंटे भर का समय लग ही जाता है ! पुल पार करके आगे बढे तो घुमावदार रास्ते आने शुरू हो जाते है और धीरे-2 ऊंचाई बढती जाती है, रास्ते में एक मोड़ पर पहुंचे तो दूर घाटी में धुआं उठ रहा था, शायद जंगल में कहीं आग लगी थी ! काफी देर तक ये धुआं हमें दिखाई देता रहा, पहाड़ों पर अक्सर लोगों की लापरवाही से आग लगती है लेकिन कई बार टिम्बर माफिया जानबूझ कर जंगल में आग लगा देते है ताकि वो जंगल में लगी आग की आड़ में अपनी चोरी की हुई लकड़ियों का लेखा-जोखा प्रशासन और अन्य लोगों से छुपा सके ! विगत कुछ वर्षों में पहाड़ी क्षेत्रों में जिस तरह आगजनी की खबरें समाचार में आ रही है उससे टिम्बर माफिया के पहाड़ी क्षेत्रों में सक्रिय होने की प्रबल संभावना है ! इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग बेहद ज़रूरी है, तभी जंगलों को सुरक्षित रखा जा सकता है, वरना वो दिन दूर नहीं जब पहाड़ों से भी वन्य क्षेत्र खत्म हो जाएंगे ! 

दूरियाँ दर्शाता एक बोर्ड

कोसी नदी पर बना एक पुल

पुल के पास का एक दृश्य

कोसी नदी

कोसी नदी

रास्ते में लिया एक दृश्य

देखिये, मैं भी यात्रा को छोड़ कर कहाँ पहुँच गया, दरअसल जब इस तरह की घटनाओं का जिक्र होता है तो मन व्यथित हो उठता है और मैं भावनाओं में  बह जाता हूँ ! वापिस यात्रा पर लौटते है जहां सड़क किनारे लगे पत्थरों पर दर्शाई गई दूरी के अनुसार अब तक हम आधे से ज्यादा रास्ता तय कर चुके थे, घंटे भर के सफर के बाद हम रानीखेत में प्रवेश कर गए ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी इस क्षेत्र के बारे में भी दे देता हूँ, रानीखेत, उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले का एक पहाड़ी पर्यटन क्षेत्र है, समुद्रतल से 1824 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये क्षेत्र अपने शांत वातावरण और प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण हमेशा से ही सैलानियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता रहा है ! अंग्रेजों ने अपनी छुट्टियों में मौज-मस्ती के लिए रानीखेत को एक हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था और 1869 में यहाँ कई छावनियाँ भी बनवाई थी जो अब कुमाऊँ रेजिमेंट सेंटर है ! एक समय रानीखेत को शिमला के स्थान पर ब्रिटिश सरकार के ग्रीष्मकालीन मुख्यालय के रूप में भी प्रस्तावित किया गया था, लेकिन किसी कारणवश बात नहीं बनी । देवदार के ऊंचे-2 पेड़ों से घिरा रानीखेत एक सैन्य छावनी क्षेत्र है जहां से हिमालय की ऊंची-2 चोटियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! सैलानियों के लिए यहाँ बहुत कुछ है जिसमें माता झूला देवी मंदिर, चौबटिया, कुमाऊँ रेजीमेंट का म्यूजियम, और गोल्फ कोर्स प्रमुख है ! 

रानीखेत जाते हुए रास्ते में लिया एक और चित्र
रानीखेत में प्रवेश करते ही हम हेड पोस्ट ऑफिस के पास वाले चौराहे से चौबाटिया की ओर जाने वाले मार्ग पर मुड़ गए ! इस मार्ग पर सबसे पहले होटल मेघदूत है, थोड़ा आगे बढ़ने पर कुमाऊँ मण्डल का रेस्ट हाउस है और फिर यही रास्ता झूला देवी मंदिर के सामने से निकलकर चौबटिया को चला जाता है ! मंदिर जाते समय हम रास्ते में पड़ने वाले होटलों में रात्रि विश्राम के लिए कमरा देखते जा रहे थे, इसका विस्तारपूर्वक वर्णन मैं यात्रा के अगले लेख में करूंगा ! फिलहाल हम झूला देवी मंदिर के पास पहुँच चुके थे, गाड़ी खड़ी करके हम मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर पहुंचे, यहाँ मुख्य द्वार पर 2 बड़ी-2 घंटियाँ और मंदिर की दीवारों पर लगे पाइप पर हजारों छोटी-बड़ी घंटियाँ बंधी थी ! मंदिर की बाहरी दीवार पर झूला देवी मंदिर का इतिहास भी लिखा है, जिसके अनुसार आज से लगभग 700 साल पहले चौबटिया जंगली जानवरों से भरा एक घना जंगल था ! शेर-चीते यहाँ रहने वाले लोगों पर हमला करते और उनके जानवरों को अपना आहार बनाते, इन आक्रमणों से परेशान होकर यहाँ के लोगों ने माँ दुर्गा की उपासना शुरू की !

कहते है कि उपासना से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने पिलखोली के एक व्यक्ति को स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि इस विशेष स्थान पर तुम खुदाई करो तो तुम्हें मेरी एक प्रतिमा प्राप्त होगी ! उस स्थान पर मेरे मंदिर की स्थापना करने से तुम्हारी समस्या का निवारण हो जाएगा ! गाँव वालों ने मिलकर खुदाई शुरू की जहां उन्हें माँ की मूर्ति प्राप्त हुई, उसके बाद तो यहाँ नियमित रूप से माँ की वंदना होने लगी ! इसके बाद जंगली जानवरों का आतंक भी थम सा गया और लोग निडर होकर इस वन्य क्षेत्र में घूमने लगे, समय बीतने के साथ लोगों ने यहाँ इस मंदिर का निर्माण करवाया ! मंदिर के नामकरण के पीछे भी एक कहानी है कहते है एक बार सावन के महीने की बात है बच्चे मंदिर परिसर में झूला डाल कर झूल रहे थे, माँ ने पुनः किसी ग्रामीण के स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि मेरे प्रांगण में बच्चे झूला झूलते है, मुझे भी झूलने की इच्छा है ! तब ग्रामवासियों ने माँ की प्रतिमा को झूले में रख दिया तभी से मंदिर का नाम झूला देवी विख्यात हो गया ! इस मंदिर में भक्तों द्वारा की जाने वाली सभी मनोकामनाएं पूरी होती है जिसका प्रतीक मंदिर में लगी हजारों घंटियाँ है, लोग अपनी मन्नतें पूरी होने पर मंदिर में आकर घंटियाँ चढ़ाते है !
मंदिर परिसर का एक दृश्य

मंदिर परिसर में बंधी घंटियाँ

मंदिर परिसर में मस्ती करते बच्चे

मंदिर परिसर का एक दृश्य

मंदिर परिसर का एक दृश्य

मंदिर परिसर में बंधी घंटियाँ 

मुख्य भवन का एक दृश्य
मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति 

मंदिर के सामने एक विश्राम स्थल भी है, जहां लोग सफर की थकान मिटाने के लिए कुछ देर के लिए रुक सकते है ! इसके अलावा मंदिर के आस-पास पूजा सामग्री की कुछ दुकाने है, इनमें से ही एक दुकान से हमने कुछ पूजा सामग्री ली और मंदिर परिसर में दाखिल हुए ! मंदिर की छत टीन की बनी है जबकि फर्श पर संगमरमर और दीवारों पर टाइलें लगी है, मुख्य भवन के चारों तरफ लोहे की जालियाँ भी लगी है ! मुख्य भवन में एक झूले पर माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई है, माता के वाहन सिंह की मूर्तियाँ भी मंदिर परिसर में बनी है ! मंदिर के शांत वातावरण में ध्यान लगाकर बैठने में बड़ा आनंद आता है, पूजा करने के बाद हम भी मानसिक शांति के लिए कुछ देर मंदिर परिसर में ही बैठ गए ! बच्चे यहाँ आकर काफी खुश थे और घंटियों के साथ मस्ती करने में लगे थे, मंदिर परिसर से सटे मकान में एक परिवार भी रहता था जो मंदिर की साफ सफाई और बाकि जरूरी काम में सहयोग करता है ! यहाँ कुछ देर ध्यान लगाकर हमारे सफर की सारी थकान दूर हो गई और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ ! घड़ी देखी तो शाम के साढ़े चार बजने वाले थे मंदिर परिसर में आए हमें आधा घंटा हो चुका था, अभी हमें चौबटिया भी जाना था इसलिए बिना देरी किये हम अपने अगले पड़ाव चौबटिया के लिए निकल पड़े ! 

मंदिर परिसर का एक दृश्य

मंदिर के सामने बना चेक पोस्ट 

मंदिर के सामने पर्यटक विश्राम स्थल

मंदिर का मुख्य द्वार

चौबटिया उद्यान - Chaubatia Garden

चौबटिया जाने के लिए झूला देवी मंदिर के सामने बने चेकपोस्ट पर हमने अपनी जानकारी दी, एक पहचान पत्र दिखाया, और आगे बढ़े ! लगभग 2-3 किलोमीटर गाड़ी से चलने के बाद एक जगह जाकर रास्ता खत्म हो गया, यहाँ से आगे हमें पैदल ही जाना था ! ये एक रिहायशी इलाका था इमारतों के रंग से लग रहा था जैसे ये सरकारी आवास स्थल थे ! यहाँ एक बोर्ड पर चौबटिया के आस-पास देखने लायक कुछ अन्य जगहों के नाम भी लिखे थे जैसे भालू डैम, डेन्स फॉरेस्ट यानि घना जंगल, लेकिन ना तो यहाँ किसी गाइड का नंबर लिखा था और ना ही हमें वहाँ कोई मिला ! यहाँ से थोड़ी दूरी पर कुछ बच्चे जरूर खेल रहे थे, हमने गाड़ी एक किनारे खड़ी की और चौबटिया जाने वाले मार्ग पर पैदल चल दिए ! कुछ दूर जाने पर हमें एक इमारत दिखी, अंदर जाने पर पता चला कि यहाँ चौबटिया गार्डन से लाए गए फलों से जैम, और आचार बनाया जाता है ! हालांकि, इमारत का बाहरी द्वार खुला हुआ था लेकिन अंदर कोई नहीं मिला, यहाँ से आगे बढ़े तो 10 मिनट की पदयात्रा करके चौबटिया पहुंचे, यहाँ भी निराशा ही हाथ लगी क्योंकि हमारे सिवा वहाँ कोई नहीं था ! 
चौबटिया से वापिस आते हुए एक दृश्य

सड़क मार्ग यहाँ समाप्त हो जाता है

चौबटिया में देखने लायक जगहों के नाम

जैम और आचार सेंटर

चौबटिया जाने का पैदल मार्ग 

चौबटिया में लिया एक चित्र

झूला देवी मंदिर से लिया एक चित्र

बगीचे में फल भी नहीं लगे थे, वैसे भी ये समय सेब की फसल का नहीं था, कुछ समय वहाँ बिताकर और कुछ फोटो लेकर हमने वापसी की राह पकड़ी ! वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि चौबटिया अपने सेब के बगीचों के लिए प्रसिद्ध है और जो लोग भी यहाँ रानीखेत घूमने आते है वो चौबटिया जरूर जाते है ! वापसी में ज्यादा समय नहीं लगा और 10 मिनट में ही हम झूला देवी मंदिर को पार करके माल रोड पर टूरिस्ट रेस्ट हाउस के सामने आकर रुके, जिसका वर्णन मैं यात्रा के अगले लेख में करूंगा !

क्यों जाएँ (Why to go Ranikhet)अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति के समीप कुछ समय बिताना चाहते है तो रानीखेत आपके लिए एक बढ़िया विकल्प है ! यहाँ से हिमालय की ऊँची-2 चोटियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! 

कब जाएँ (Best time to go Ranikhet): आप रानीखेत साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में रानीखेत का अलग ही रूप दिखाई देता है ! बारिश के दिनों में यहाँ हरियाली रहती है तो सर्दियों के दिनों में यहाँ कड़ाके की ठंड पड़ती है, गर्मियों के दिनों में भी यहाँ का मौसम बड़ा खुशगवार रहता है !

कैसे जाएँ (How to reach Ranikhet): दिल्ली से रानीखेत की दूरी महज 350 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 8-9 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से रानीखेत जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मुरादाबाद-कालाढूँगी-नैनीताल होते हुए है ! दिल्ली से रामपुर तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है और रामपुर से आगे 2 लेन राजमार्ग है ! आप काठगोदाम तक ट्रेन से भी जा सकते है, और उससे आगे का सफर बस या टैक्सी से कर सकते है ! काठगोदाम से रानीखेत महज 75 किलोमीटर दूर है, वैसे काठगोदाम से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है !

कहाँ रुके (Where to stay near Ranikhet)रानीखेत उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 1000 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! वैसे अगर आप रानीखेत में शांत जगह पर रुकने का मन बना रहे है तो कुमाऊँ मण्डल का टूरिस्ट रेस्ट हाउस सबसे बढ़िया विकल्प है क्योंकि ये शहर की भीड़-भाड़ से दूर घने पेड़ों के बीच में बना है !

क्या देखें (Places to see near Ranikhet)रानीखेत में घूमने की जगहों की भी कमी नहीं है यहाँ देखने के लिए झूला देवी मंदिर, चौबटिया गार्डन, कुमाऊँ रेजीमेंट म्यूजियम, मनकामेश्वर मंदिर, रानी झील, आशियाना पार्क, हेड़खान मंदिर, गोल्फ कोर्स प्रमुख है ! इसके अलावा कटारमल सूर्य मंदिर भी यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है ! !


नैनीताल-रानीखेत यात्रा
  1. कालाढूंगी का कॉर्बेट वाटर फाल (Corbett Water Fall in Kaladungi)
  2. खुर्पाताल होते हुए नैनीताल – (Kaladungi to Nainital via Khurpatal)
  3. नैनीताल में स्थानीय भ्रमण (Sight Seen in Nainital)
  4. कैंची धाम – नैनीताल (Kainchi Dham in Nainital)
  5. झूला देवी मंदिर, रानीखेत (Jhula Devi Temple of Ranikhet)
  6. रानीखेत का टूरिस्ट रेस्ट हाउस (Tourist Rest House, Ranikhet)
  7. रानीखेत का कुमाऊँ रेजीमेंट (History of Kumaon Regiment, Ranikhet)
  8. रानीखेत में स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Ranikhet)
  9. अल्मोड़ा का कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple, Almora)
  10. रानीखेत का हेड़खान मंदिर (Hedakhan Temple of Ranikhet)
  11. रानीखेत से वापसी का सफर (Road Trip from Ranikhet to Delhi)
  12. रामनगर का जिम कॉर्बेट संग्रहालय (A Visit to Corbett Museum)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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