रामनगर का जिम कॉर्बेट संग्रहालय (A Visit to Corbett Museum)

रविवार, 04 मार्च 2018 

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें !

रानीखेत से वापिस आते हुए हमें कालाढूँगी में स्थित जिम कॉर्बेट संग्रहालय जाने का अवसर मिला, दरअसल हुआ कुछ यूं कि रानीखेत जाते समय तो होली के अवसर पर ये संग्रहालय बंद था इसलिए हम इसे देख नहीं पाए थे ! सोचा था वापसी में इसे देखते हुए निकल जाएंगे, लेकिन वापिस आते हुए जब हमने भुवाली से हल्द्वानी वाला रास्ता ले लिया तो इस संग्रहालय को देखने की रही सही उम्मीद भी जाती रही ! फिर हल्द्वानी से बाहर निकलते हुए रुद्रपुर की जगह जब हम अनजाने में कालाढूँगी वाले रास्ते पर पहुंचे तो इस संग्रहालय को देखने की उम्मीद एक बार फिर से जाग उठी ! कहते है ना कि किस्मत में जो होना होता है उसके लिए संयोग बन ही जाते है, वैसे यात्रा के पिछले लेख में हल्द्वानी से संग्रहालय पहुँचने का वर्णन मैं कर चुका हूँ ! टिकट खिड़की पर जाकर मैंने 10 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से 2 प्रवेश टिकट लिए, झोपड़ी की आकृति में बना ये टिकट घर बहुत ही सुंदर लगता है, टिकट घर के बगल में ही प्रवेश द्वार है, जहां से हम संग्रहालय परिसर में दाखिल हुए ! अंदर जाने पर दाईं ओर छोटी हल्द्वानी हेरिटेज विलेज का बोर्ड लगा है, रास्ता भी बगल से ही जाता है, हालांकि, जानकारी के अभाव में हम इस विलेज का भ्रमण नहीं कर पाए ! थोड़ा आगे बढ़ने पर परिसर में एक किनारे शेड से ढकी जिम कॉर्बेट की प्रतिमा स्थापित की गई है, जिसके नीचे एक बोर्ड पर उनके जीवनकाल से संबंधित जानकारी दी गई है !

संग्रहालय में लगी जिम कॉर्बेट की प्रतिमा 

परिसर में पैदल चलने के लिए पक्का मार्ग बना है, जिसके दोनों और छायादार पेड़ लगाए गए है, कुछ कदम चलते ही हमारी दाईं ओर संग्रहालय कक्ष था जबकि पैदल जाने वाला मार्ग आगे आम के एक बगीचे से होते हुए शौचालय की ओर चला जाता है ! 2-3 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद हम संग्रहालय के बाहर बने बरामदे में पहुँच गए, यहाँ भी जिम कॉर्बेट की एक अन्य प्रतिमा लगाई गई है और बरामदे की दीवार पर उनका एक संक्षिप्त परिचय दिया गया है ! चलिए, अंदर जाने से पहले आपको कुछ जानकारी इस संग्रहालय और जिम कॉर्बेट के बारे में दे देता हूँ, ये संग्रहालय असल में जिम कॉर्बेट (असली नाम एडवर्ड जेम्स कॉर्बेट) का निवास स्थान था जिसका निर्माण उन्होनें 1922 में करवाया था ! 22 बीघा में फैले इस परिसर में चारों तरफ बढ़िया पेड-पौधे लगाए गए है और बीच में ये निवास स्थान है, जहां जिम अपनी बहन मैगी के साथ सर्दियों के दिनों में रहा करते थे ! जब ये इमारत जिम का निवास स्थान थी तो एक छोटी नहर के माध्यम से यहाँ जल पहुंचाया जाता था, जिसका इस्तेमाल घरेलू काम के अलावा, बगीचे की सिंचाई में भी किया जाता था ! जिम का जन्म 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में हुआ, वे अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे, जिम का बचपन नैनीताल में ही बीता और आरंभिक शिक्षा भी यहीं हुई, पूरा साल वो नैनीताल में रहते थे जबकि सर्दियों में उनका निवास स्थान कालाढूँगी में था ! 

हल्द्वानी कालाढूँगी मार्ग का एक दृश्य

संग्रहालय का टिकट घर

प्रवेश द्वार के पास का एक दृश्य

संग्रहालय परिसर में आम का बगीचा 

संग्रहालय में लगी जिम कॉर्बेट की प्रतिमा

प्रवेश द्वार से दिखाई देता एक दृश्य

प्रवेश द्वार से दिखाई देता एक दृश्य

ये दोनों ही स्थान प्रकृति के निकट थे और इस बात का जिम की मानसिकता पर गहरा प्रभाव पड़ा, क्योंकि यहीं से प्रकृति और वन्य जीवों के प्रति उनका प्रेम जागृत हुआ ! बारहवीं की शिक्षा प्राप्त करने के बाद कुछ वर्ष उन्होनें रेलवे में नौकरी की और फिर कुछ समय सेना में अपनी सेवाएं दी, लेकिन अंत में वो नैनीताल लौट आए ! यही वो दौर था जब उन्होनें अपने लेखन पर ध्यान दिया, जिम का व्यक्तित्व बहुआयामी था, वो एक प्रसिद्ध शिकारी, चित्रकार, प्रकृति प्रेमी, फोटोग्राफर  और लेखक भी थे ! इसके अलावा खाली समय में वो शौकिया तौर पर बढ़ई का काम भी कर लिया करते थे, यहाँ रखा लकड़ी का अधिकतर सामान उन्होनें अपने उपयोग के लिए खुद ही बनाया था ! लेकिन इन सबसे ऊपर वो एक दयालु इंसान थे, यहाँ मौजूद तथ्य इस बात को प्रमाणित करते है, कमजोर वर्ग के लोगों की सहायता के लिए वो सदैव अग्रणी रहे ! आमजन की सहायता करते हुए उन्होनें अधिकतर आदमखोर बाघों और तेंदुओं को ही अपना शिकार बनाया ! भारत की आजादी के बाद जिम अपनी बहन मैगी के साथ केन्या जाकर बस गए और कालाढूँगी का अपना घर चिरंजी लाल को बेच दिया, उनकी अधिकतर पुस्तकें उनके केन्या वास के दौरान ही प्रकाशित हुई और 1955 में उन्होनें केन्या में ही अपनी अंतिम सांस ली ! बाद में सन 1965 में वन विभाग ने इस भवन को खरीद कर इसे जिम कॉर्बेट को समर्पित करते हुए एक संग्रहालय का रूप दे दिया !

चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम बरामदे से होते हुए प्रदर्शनी कक्ष में प्रवेश कर चुके है, पहले कक्ष में चित्रों की प्रदर्शनी लगाई गई है जिसमें जिम के जीवन से जुड़े अहम पहलुओं को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है ! उनके द्वारा उत्तराखंड के अलग-2 क्षेत्रों में किए गए आदमखोर बाघों के शिकार की सचित्र जानकारी यहाँ दी गई है, जिम द्वारा अर्जित किए गए विभिन्न उपलब्धियों का ब्योरा भी यहाँ दिया गया है ! इस प्रदर्शनी से हमें जिम के बारे में अनेकों जानकारियाँ मिलती है जिसमें से कुछ मैं आपके साथ यहाँ साझा कर रहा हूँ ! अपने बालपन से ही जिम ने जंगल में इतना समय बिताया कि वे जंगल में मिलने वाले संकेतों से ही आने वाले खतरों और जंगल में चल रही गतिविधियों को भांप लेते थे ! अपने इसी हुनर के कारण उन्होनें कई आदमखोर बाघों और तेंदुओं का शिकार किया, धीरे-2 उन्होनें इतना नाम कमा लिया कि लोग दूर-दराज के क्षेत्रों से उनके पास आते और आदमखोर बाघों से निजात दिलाने का आग्रह करते ! इस काम के लिए जिम को दुर्गम क्षेत्रों की यात्राएं करनी पड़ती और उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में पैदल भी चलना पड़ता ! वे अक्सर अकेले शिकार करना पसंद करते थे लेकिन उनका एक भारतीय सहयोगी बहादुरशाह खान हर शिकार में उनका सहयोगी रहा, जिम अक्सर शिकार के विषय में बहादुरशाह खान की राय लिया करते थे ! 

संग्रहालय परिसर का बरामदा

जिम कॉर्बेट द्वारा मारे गए आदमखोर बाघों का लेखा-जोखा

शिकार के दौरान जिम कॉर्बेट का एक दृश्य

जिम कॉर्बेट द्वारा शुरू की गई एक कंपनी

संग्रहालय में लगी कुछ पेंटिंग

संग्रहालय के अंदर का एक दृश्य

जिम कॉर्बेट की समाधि

जिम कॉर्बेट के कुछ ब्रिटिश सहयोगी

जिम कॉर्बेट के कुछ भारतीय सहयोगी

जिम ने हमेशा ये आग्रह किया कि उनके शिकार पर जाने से पहले किसी भी आदमखोर बाघ या तेंदुए पर अगर कोई इनाम राशि रखी गई हो तो उसे हटा लिया जाए, ये इस बात को भी प्रमाणित करता है कि उन्होनें लालच के लिए कभी कोई शिकार नहीं किया ! कुमाऊँ के लोगों में जिम के प्रति बड़ा सम्मान था जिसका प्रमुख कारण उनका अदम्य साहस, प्रकृति प्रेम और निस्वार्थ भाव से लोगों को आदमखोर बाघों से मुक्ति दिलाना था ! बाघों की खोज में कई बार तो उन्हें कई-2 दिन जंगल में बिताने पड़ते थे, उनका धैर्य और बाघों को ढूँढने की क्षमता वाकई प्रशंसनीय है ! संग्रहालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार जिम ने महज 5 वर्ष की उम्र में पहली बार बंदूक चलाई थी, उनके भाई टॉम ने उन्हें जंगल के नियमों की बारीकियाँ सिखाई ! जल्द ही जिम जंगल में छुपकर शिकार पर नजर रखने, बिना आवाज किए जंगल में चलने और जंगल के नियमों की अन्य कई बारीकियाँ सीख गए ! 11 वर्ष की उम्र में पहुँचने से पहले ही उन्होनें एक घायल तेंदुए को ढूंढकर उसका शिकार कर दिया ! अपने जीवन काल में कॉर्बेट ने लगभग 50 बाघों और 250 तेंदुओं का शिकार किया, जिम ने अपना अंतिम शिकार 71 वर्ष की उम्र में किया !

संग्रहालय में लगी एक पेंटिंग
17 वर्ष की उम्र में जिम ने रेलवे की नौकरी पकड़ ली, जहां उन्होनें 25  वर्षों तक काम किया, उनकी पहली तैनाती बख्तियारपुर (बिहार) में हुई, फिर समस्तीपुर और अंतत वे मोकामा घाट पर तैनात रहे ! शुरुआत में जिम एक ईंधन निरीक्षक के तौर पर नियुक्त हुए, तत्पश्चात वो सहायक स्टेशन अधीक्षक और फिर स्टोरकीपर के पद पर पदस्थ रहे ! बाद में वो रेलवे में श्रम प्रबंधक (ठेकेदार) बन गए और मोकामा घाट रेलवे स्टेशन पर मीटर और ब्रॉड गेज लाइन के लिए जरूरी सामान की आपूर्ति करने लगे ! बाघों का शिकार करने का अनुभव जिम को बचपन में ही हो गया था, मोकामा घाट में रहते हुए भी वे आदमखोर बाघों का शिकार करने कुमाऊँ क्षेत्र में आया करते थे ! एक बार 1907 में जब वो छुट्टी पर आए तो उन्होनें चंपावत की एक आदमखोर बाघिन का शिकार किया, जिसने 436 लोगों की जान ली थी, इसी तरह जिम ने 1926 में रुद्रप्रयाग के आदमखोर तेंदुए का शिकार किया, जिसने 125 लोगों को अपना शिकार बनाया था ! प्रथम विश्व युद्ध में जिम ने कैप्टन के पद पर सेना में नियुक्ति ली, सन 1917 में 500 कुमाऊँनी जवानों के एक श्रमिक दल का गठन करके जिम ने फ्रांस में लड़ाई अभियान में भाग लिया ! अपना दायित्व बखूबी निभाने के लिए उन्हें पददोन्नति मिली और मेजर बना दिया गया, अगले वर्ष एक बार फिर से उन्हें अफगानिस्तान और वजीरिस्तान में सेवा करने के लिए भेजा गया ! 1944 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें विशेष नियुक्ति पर सैनिकों को प्रशिक्षण देने के लिए कार्यरत किया, इस बार भी उनके प्रशंसनीय कार्य के लिए पददोन्नति देकर कर्नल बना दिया गया ! 

संग्रहालय के अंदर लगी एक पेंटिंग

संग्रहालय के अंदर लगी एक पेंटिंग

भारत की आजादी के बाद तत्कालीन वनों का एक बड़ा भाग कृषि भूमि में परिवर्तित हो गया, जिस कारण बाघों की संख्या में भारी गिरावट आई ! सन 1972 में हालात और गंभीर हो गए जब भारत में बाघों की संख्या घटकर सिर्फ 1800 रह गई, तब तत्कालीन भारत सरकार ने बाघों को बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बाघ परियोजना की शुरुआत की ! जिसके तहत बाघ संरक्षण हेतु महत्वपूर्ण कई वनों में टाइगर रिजर्व स्थापित किए गए, उसी समय जिम कॉर्बेट पार्क को देश का प्रथम टाइगर रिजर्व घोषित किया गया ! जिम का व्यक्तित्व प्रकृति संरक्षण में जुटे लोगों और संस्थाओं के लिए सदैव प्रेरणादायी रहा है, इसलिए जिम के सम्मान में भारत के पहले राष्ट्रीय उद्यान का नाम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान रखा गया ! जिम ने भारत के पहले राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना में विशेष भूमिका निभाई, इस पार्क का गठन 1936 में हुआ और इसका नाम उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मैलकम हैली के सम्मान में “हैली नैशनल पार्क” रखा गया ! सन 1952 में इसका नाम बदलकर "रामगंगा नैशनल पार्क" कर दिया गया, लेकिन ये नाम भी ज्यादा दिन नहीं चला, अंतत 1957 में जिम की स्मृति में इस पार्क का नाम बदलकर कॉर्बेट नैशनल पार्क रख दिया गया ! आज भी देश-विदेश से हर साल जिम के हजारों प्रशंसक भारत आते है और उनके तत्कालीन घर जाकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है ! जिम का जन्मशती समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया था और इस उपलक्ष्य में भारतीय डाक ने जिम को समर्पित एक डाक टिकट भी जारी किया था ! जिम से जुड़ी कई संस्थाएं आज भी उनकी धरोहर को जीवित रखने का प्रयास कर रही है ! 

अपने विशिष्ट व्यक्तित्व के कारण जिम को अपने जीवनकाल में अनेक पुरस्कारों और उपाधियों से सम्मानित किया गया, जिसमें से एक "फ्रीडम ऑफ फोरेस्टस" भी था इसके तहत उन्हें एक वनाधिकारी का दर्जा दिया गया और किसी भी वन में प्रवेश और शिकार की सम्पूर्ण स्वतंत्रता दी गई ! सन 1926 में रुद्रप्रयाग के आदमखोर तेंदुए को मारने पर जिम को "कैसर ए हिन्द" की उपाधि से नवाजा गया ! जिम को "ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर" का दर्जा भी प्राप्त हुआ, उनका अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण पुरस्कार "कम्पैनियन ऑफ द इंडियन एम्पायर" था जो अति विशिष्ट व्यक्तियों को ही दिया जाता था ! इन सभी उपलब्धियों और पुरस्कारों से संबंधित जानकारी प्रदर्शनी के लिए यहाँ रखी गई है, इसके अलावा जिम के परिवार के कुछ सदस्यों का जिक्र भी प्रदर्शनी में चित्रों के माध्यम से किया गया है जिसमें उनकी बहन मैगी और माता-पिता प्रमुख है, मैगी जीवन के हर मोड पर उनके साथ ही रही ! प्रदर्शनी में जिम के करीबी कुछ ब्रिटिश और भारतीय सहयोगियों के चित्रों को भी स्थान दिया गया है, और उनके सहयोग के बाबत जानकारी दी गई है ! एक शीशे के फ्रेम में भारतीय डाक द्वारा जिम के सम्मान में जारी की गई डाक टिकटों को रखा गया है, एक अन्य फ्रेम में जिम द्वारा नेगी और चिरंजी लाल को लिखे गए उन पत्रों को फ्रेम करके रखा गया है जो उन्होनें केन्या में रहते हुए लिखे थे !

शिकार के दौरान जिम की सवारी

जिम द्वारा 1952 में लिखे गए पत्र

जिम द्वारा खुद के लिए बनाया गया फर्नीचर

ये भी जिम की कारीगरी का नमूना है 

जिम द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला सामान

रुद्रप्रयाग में जिम द्वारा मारा गया आदमखोर गुलदार

चंपावत में जिम द्वारा शिकार की गई आदमखोर बाघिन

जिम द्वारा कुमाऊँ में शिकार किए गए आदमखोर बाघों का मानचित्र पर लेखा जोखा 

चंपावत में आदमखोर बाघिन का शिकार करने पर गवर्नर द्वारा मिली बंदूक

जिम द्वारा प्रयोग में लाया जाने वाला फर्नीचर

टहलते हुए हम दूसरे कक्ष में पहुंचे तो यहाँ जिम द्वारा द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुओं को सहेज कर रखा गया है, जिसमें लकड़ी की कुर्सियाँ और मेज शामिल है जो जिम ने अपने उपयोग के लिए स्वयं बनाए थे ! तत्कालीन समय में बनी लकड़ी की अलमारियाँ आज भी ज्यों की त्यों है, कुछ अलमारियाँ बंद थी तो कुछ खुली हुई थी जिसमें कॉर्बेट द्वारा लिखी गई पुस्तकों और रोजमर्रा की कुछ अन्य वस्तुओं को रखा गया है ! इस कक्ष में रखा अधिकतर सामान धूल फांक रहा है इन्हें शीशे में फ्रेम करके अच्छे ढंग से व्यवस्थित किया जा सकता है ! हवा की उचित व्यवस्था ना होने के कारण प्रदर्शनी कक्ष में घुटन होने लगी थी, रोशनी भी पर्याप्त नहीं थी, इसलिए यहाँ ज्यादा समय ना बिताते हुए हम बाहर आ गए ! बाहर बरामदे में उत्तराखंड के एक नक्शे में उन स्थानों को चिन्हित किया गया है जहां जिम ने आदमखोर बाघों और तेंदुओं का शिकार किया ! कुल मिलाकर ये संग्रहालय जिम कॉर्बेट के जीवन को दर्शाती एक खुली किताब है जिसमें उनके जीवन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी बात का जिक्र किया गया है ! यहाँ आकर आपको जिम से संबंधित कई अनछुए पहलुओं को जानने का मौका मिलेगा, इसलिए अगर आप कालाढूँगी के आस-पास से गुजर रहे है तो एक बार यहाँ जरूर आइए !

एक फोटो तो अपनी भी हो जाए

बच्चों की खुशी देखने लायक थी

संग्रहालय से बाहर आते हुए लिया एक चित्र

क्यों जाएँ (Why to go Kaladungi): अगर आपको जंगल में घूमना और प्राकृतिक दृश्यों से परिपूर्ण जगह पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर आप नैनीताल के कालाढूंगी में आकर निराश नहीं होंगे ! 

कब जाएँ (Best time to go Kaladungi): आप नैनीताल साल के किसी भी महीने में जा सकते है यहाँ हर मौसम में प्रकृति का अलग ही रूप देखने को मिलता है ! गर्मियों की छुट्टियों में यहाँ ज्यादा भीड़ रहती है इसलिए इस समय ना ही जाए तो बेहतर होगा !

कैसे जाएँ (How to reach Kaladungi): दिल्ली से कालाढूंगी की दूरी महज 298 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको लगभग 6-7 घंटे का समय लगेगा ! दिल्ली से कालाढूंगी जाने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग मुरादाबाद-बाजपुर होते हुए है ! दिल्ली से रामपुर तक शानदार 4 लेन राजमार्ग बना है और रामपुर से आगे 2 लेन राजमार्ग है ! आप कालाढूंगी ट्रेन से भी जा सकते है, यहाँ जाने के लिए सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है जो देश के अन्य शहरों से जुड़ा है ! काठगोदाम से कालाढूंगी महज 28 किलोमीटर दूर है जिसे आप टैक्सी या बस के माध्यम से तय कर सकते है ! काठगोदाम से आगे पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है !

कहाँ रुके (Where to stay near Kaladungi): कालाढूंगी नैनीताल के पास ही है और नैनीताल उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रुकने के लिए बहुत होटल है ! आप अपनी सुविधा अनुसार 800 रुपए से लेकर 5000 रुपए तक का होटल ले सकते है ! नौकूचियाताल झील के किनारे क्लब महिंद्रा का शानदार होटल भी है ! 

क्या देखें (Places to see near Kaladungi): कालाढूंगी के अलावा इसके आस-पास घूमने के लिए नैनीताल में जगहों की कमी नहीं है नैनी झील, नौकूचियाताल, भीमताल, सातताल, खुरपा ताल, नैना देवी का मंदिर, चिड़ियाघर, नैना पीक, कैंची धाम, टिफिन टॉप, नैनीताल रोपवे, माल रोड, और ईको केव यहाँ की प्रसिद्ध जगहें है ! इसके अलावा आप नैनीताल से 45 किलोमीटर दूर मुक्तेश्वर का रुख़ भी कर सकते है !

समाप्त...

नैनीताल-रानीखेत यात्रा
  1. कालाढूंगी का कॉर्बेट वाटर फाल (Corbett Water Fall in Kaladungi)
  2. खुर्पाताल होते हुए नैनीताल – (Kaladungi to Nainital via Khurpatal)
  3. नैनीताल में स्थानीय भ्रमण (Sight Seen in Nainital)
  4. कैंची धाम – नैनीताल (Kainchi Dham in Nainital)
  5. झूला देवी मंदिर, रानीखेत (Jhula Devi Temple of Ranikhet)
  6. रानीखेत का टूरिस्ट रेस्ट हाउस (Tourist Rest House, Ranikhet)
  7. रानीखेत का कुमाऊँ रेजीमेंट (History of Kumaon Regiment, Ranikhet)
  8. रानीखेत में स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Ranikhet)
  9. अल्मोड़ा का कटारमल सूर्य मंदिर (Katarmal Sun Temple, Almora)
  10. रानीखेत का हेड़खान मंदिर (Hedakhan Temple of Ranikhet)
  11. रानीखेत से वापसी का सफर (Road Trip from Ranikhet to Delhi)
  12. रामनगर का जिम कॉर्बेट संग्रहालय (A Visit to Corbett Museum)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

Post a Comment

Previous Post Next Post