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भूल-भुलैया से बाहर आकर हम शाही बावली देखने के लिए चल दिए, इमामबाड़े के पास बने चबूतरे से नीचे उतरकर दोनों बावली के प्रवेश द्वार पर पहुँच गए ! यहाँ मौजूद एक अधिकारी को अपना टिकट दिखाकर हमने अंदर प्रवेश किया, सलीम अभी भी हमारे साथ ही चल रहा था ! आगे बढ़ने से पहले थोड़ी जानकारी इस बावली के बारे में दे देता हूँ ! शाही बावली का निर्माण भी अवध के नवाब आसिफ़-उद्-दौला ने ही करवाया था ! बावली के निर्माण से पहले यहाँ एक कुआँ खोदा गया, जिसका पानी बाद में बावली और इसके आस-पास की इमारतों के निर्माण कार्य में प्रयोग हुआ ! सबसे पहले बावली का निर्माण हुआ, फिर आसिफी मस्जिद का और आख़िर में बड़े इमामबाड़े का ! कुछ लोगों की धारणा थी कि बावली में मौजूद कुआँ नीचे-2 गोमती नदी से जुड़ा हुआ था, जिस कारण कुएँ में हमेशा पानी रहता था ! वैसे अगर कुआँ गहरा हो तो इसमें सदा ही पानी रहता है, हाँ, गोमती नदी के पास में ही होने के कारण रिस कर ज़रूर पानी आता होगा ! लेकिन कुएँ के गोमती नदी से जुड़े होने वाली बात की पुष्टि नहीं हुई !
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शाही बावली का एक दृश्य (A Glimpse of Shahi Baoli, Lucknow) |
वैसे अगर नवाब आसिफ़-उद्-दौला को भव्य इमारतें बनाने का शौक ना होता तो ये बावली एक कुएँ तक ही सीमित रह जाती ! अपने शौक के चलते ही नवाब साहब ने यहाँ एक शाही मेहमान खाना बनाने का हुक्म दिया, हुक्म की तामील हुई और अगले कुछ समय में बावली के रूप में ये इमारत बनकर तैयार हुई ! ये बावली बाद में अवध के पाँचवे नवाब के राज्याभिषेक की गवाह भी बनी ! प्राचीन समय में बावली का प्रयोग पानी को संरक्षित करने के लिए किया जाता था ताकि विषम परिस्थितियों में इस संरक्षित जल को प्रयोग में लाया जा सके ! इस बावली की रूप-रेखा किफायत-उल्लाह ने तैयार की, जो अपने दौर के एक मशहूर वास्तुकार यानि कि आर्किटेक्ट थे ! इस बावली का निर्माण भी अकाल पीड़ित लोगों को रोज़गार देने के लिए किया गया था ! इमामबाड़े के मुख्य भवन के पूर्व में स्थित ये बावली पाँच मंज़िला विशाल इमारत थी, जिसकी तीन मंजिले अब पूरी तरह से पानी में विलुप्त हो चुकी है ! वर्तमान में इस बावली का सिर्फ़ एक हिस्से की दो मंजिले ही बची है जिसे हम आज देखने वाले है !
बावली के प्रवेश द्वार से अंदर जाने पर सामने सीढ़ियाँ बनी है जो नीचे कुएँ तक जाती है ! जबकि इन सीढ़ियों के बगल से जाने वाला मार्ग एक बहु-मंज़िला इमारत में जाता है जिसमें बहुत सी खिड़कियाँ और आपस में जुड़े हुए गलियारे है ! इस बावली की एक विशेषता है कि इसके आंतरिक भाग में दूसरी मंज़िल पर एक जगह से कुएँ के पानी में बावली के मुख्य द्वार पर खड़े व्यक्ति का प्रतिबिंब दिखाई देता है ! जबकि बावली के द्वार पर खड़े व्यक्ति को आभास तक नहीं होता कि बावली के अंदर से कोई उसे देख रहा होगा ! हालाँकि, पानी में होने वाली हलचल के कारण चेहरा तो साफ नहीं दिखाई देता पर अगर पानी स्थिर हो तो चेहरा भी देखा जा सकता है ! आजकल सीसीटीवी का प्रचलन चल रहा है लेकिन उस दौर में तो ये प्रतिबिंब दिखना ही सुरक्षा की दृष्टि से काफ़ी महत्वपूर्ण और सहायक था ! बावली के लिए ये एक सुरक्षा कवच की तरह था, कोई अंजान शत्रु अगर बावली में प्रवेश करता तो उसका प्रतिबिंब कुएँ में दिखाई दे देता और उसके पलक झपकने से पहले ही बावली में मौजूद तीरंदाज़ किसी गुप्त स्थान से बैठकर शत्रु का काम तमाम कर देते थे !
दूसरी मंज़िल से नीचे देखने पर ये कुआँ दिखाई देता है, जो इस समय मलवे से भरा पड़ा था ! जानकारी के अनुसार ये मलवा पुरातत्व विभाग द्वारा पिछले कुछ वर्षों के दौरान बावली में कराए गए मरम्मत कार्य के कारण जमा हुआ है ! मलवा कुएँ में गिरता रहा और लापरवाही के कारण कुआँ का पानी मलवे के नीचे रह गया ! कहते है कि नवाब साहब ने अपना खजाना भी इसी बावली में कहीं छुपाया हुआ था, जो कभी मिल नहीं सका ! इस बावली में रुकने वाले बहुत से शाही मेहमानों ने अपने लेखों में इस इमारत को पॅंच-महल की उपाधि दी है, जिसमें मेहमानों की सुविधा के लिए एक बड़ा हाल और बहुत से कमरे है ! उस दौर में बावली में रुकने वाले शाही मेहमानों के स्नान के लिए यहाँ ठंडे-गरम पानी की व्यवस्था भी थी ! इस इमारत का प्रवेश द्वार पूरब दिशा में था, जबकि निकास द्वार पश्चिम दिशा में था ! बावली के अंदर वाले कमरों में अंधेरा था, इसलिए हमें फोटो लेने में काफ़ी दिक्कत आई, बावली में घूमने के बाद हम बाहर आ गए !
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शाही बावली जाने का मार्ग (Way to Shahi Baoli, Lucknow) |
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शाही बावली का प्रवेश द्वार (Entrance to Shahi Baoli, Lucknow) |
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शाही बावली की एक और झलक (Another view of Shahi Baoli) |
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बावली के अंदर का एक दृश्य (An Inside view of Shahi Baoli) |
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शाही बावली के अंदर कुआँ (A well inside the Baoli) |
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बावली तक जाने वाली सीढ़ियाँ (Stairs to Shahi Baoli) |
बावली देखने के बाद हमें छोटा इमामबाड़ा देखना था जो यहाँ से लगभग एक किलोमीटर दूर है ! बड़े इमामबाड़े से बाहर आकर हमने अपनी मोटरसाइकल उठाई और रूमी दरवाजे को पार करके मुख्य मार्ग पर चलते रहे ! इसी मार्ग पर सड़क के दाईं ओर हुसैनबाद घंटाघर है, रूमी दरवाजे और घंटाघर का वर्णन मैं इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा ! इसी मार्ग पर थोड़ा और आगे बढ़े तो सड़क के बाईं ओर ही छोटा इमामबाड़ा है, इमामबाड़े के बाहर बने पार्किंग स्थल में अपनी मोटरसाइकल खड़ी करके हम दोनों अंदर चल दिए ! प्रवेश द्वार पर अपना एकीकृत टिकट दिखाने के बाद हम इमामबाड़ा परिसर में दाखिल हुए, पहली झलक में ही एहसास हो जाता है कि छोटे इमामबाड़े की सुंदरता भी उस दौर की बनी दूसरी इमारतों से कम नहीं है ! छोटे इमामबाड़े का निर्माण अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह ने सन 1837 में करवाया था, इस इमामबाड़े के मुख्य भवन में नवाब और उनकी माँ की क़ब्रें भी मौजूद है ! जबकि इमामबाड़े परिसर में मौजूद अन्य इमारतों में नवाब के रिश्तेदारों की क़ब्रें बनी है !
इस इमामबाड़े के निर्माण के पीछे भी बड़े इमामबाड़े के निर्माण की तरह ही एक कहानी है, 18वी शताब्दी की तरह ही 19वी शताब्दी में भी एक बार अवध में अकाल पड़ा ! इस बार भी अकाल से बहुत लोग प्रभावित हुए, ख़ास तौर से किसान और मजदूर वर्ग के लोग ! तब अवध के तत्कालीन नवाब मोहम्मद अली शाह ने छोटे इमामबाड़े का निर्माण करवाया, इस बार काम के बदले अनाज की योजना चलाई गई ! जिन लोगों ने इस इमामबाड़े के निर्माण कार्य में श्रम किया, उन्हें जीवन यापन के लिए अनाज मिलता था ! बाद में नवाब की मृत्यु के बाद इसी इमामबाड़े में उनकी कब्र बना दी गई ! इस इमामबाड़े में प्रवेश के भी दो द्वार है, तीन मंजिले पहले द्वार से होकर इमामबाड़े परिसर में प्रवेश करते ही हमें सामने एक पानी का सरोवर दिखाई दिया ! सरोवर लंबवत बना है, जिसकी चौड़ाई लंबाई के मुक़ाबले काफ़ी कम है, सरोवर के मध्य में एक अस्थायी पुल भी बना है जबकि इसके चारों तरफ खूब हरियाली है !
प्रवेश द्वार से थोड़ी आगे ही एक खंबे पर सुनहरी मछली लगी है जो उस दौर में हवा की दिशा जानने के लिए प्रयोग में लाई जाती थी ! इस सरोवर के दोनों ओर ताजमहल से मिलती-जुलती बनावट वाली इमारतें बनी है, जिनमें नवाब के रिश्तेदारों के मक़बरे है ! ये इमारतें काफ़ी हद तक ताजमहल से मिलती है, जिसमें मुख्य इमारत के चारों ओर मीनारें है ! यहाँ से दिखाई देता सफेद रंग का इमामबाड़ा और उसकी बाहरी दीवारों पर की गई कारीगरी बहुत सुंदर दृश्य प्रस्तुत करते है, जबकि इमामबाड़े की चोटी पर एक सुनहरा गुंबद भी है ! चारों तरफ के फोटो खींचते हुए जब हम आगे बढ़े तो आगे जाकर सीढ़ियों से ऊपर चढ़कर एक चबूतरा बना है, जो इमामबाड़े के मुख्य द्वार तक जाता है ! इस चबूतरे पर भी एक छोटा कुंड बना है जिसमें एक फव्वारा भी लगा है, इस समय तो ये नहीं चल रहा था पर चलते समय ये काफ़ी सुंदर लगता होगा ! इस कुंड की भीतरी दीवारें आसमानी रंग की है जबकि फव्वारा सफेद रंग का, कुंड के चारों ओर बैठने की भी व्यवस्था है !
इमामबाड़े के मुख्य भवन में जूते-चप्पल ले जाने की अनुमति नहीं है, चप्पल-जूते रखने के लिए आपको 2 रुपए का मामूली शुल्क अदा करना होता है ! इमामबाड़े के मुख्य हाल में बड़े-2 झूमर और लाइट से सजावट की गई है, कहते है कि सज्जा का ये सारा सामान बेल्जियम से मँगवाया गया था ! मुख्य हाल के बीचो-बीच नवाब मोहम्मद अली शाह और उनकी माँ की कब्र है जिसके चारों ओर रेलिंग लगी है ! इसके अलावा इस इमामबाड़े में ताज़िया भी रखा है, मोहर्रम के मौके पर यहाँ भी बहुत भीड़ रहती है ! इमामबाड़ा परिसर में ऊपर बताई गई इमारतों के अलावा एक मस्जिद, एक शाही हमामखाना, एक अस्तबल और एक नौबतखाना भी है ! नौबतखाने में उस दौर में ड्रम बजाकर घंटो की जानकारी दी जाती थी, जितना समय हो रहा होता था उतनी बार ड्रम बजाया जाता था ! मेरे लिए इस इमामबाड़े के मुख्य हाल में करने के लिए कुछ नहीं था इसलिए मैं इमामबाड़े के मुख्य हाल में नहीं गया, लेकिन बाहर से ही एक नज़र देख लिया ! चबूतरे पर बने कुंड के किनारे बैठ कर ही थोड़ी देर तक यहाँ-वहाँ की फोटो खींचने में लगा रहा, फिर सीढ़ियों से नीचे उतरकर बाहर की ओर चल दिया !
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छोटे इमामबाड़े के बाहर का एक दृश्य (A view outside Chota Imambara, Lucknow) |
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छोटे इमामबाड़ा का प्रवेश द्वार (Entrance of Chota Imambara) |
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प्रवेश द्वार से दिखाई देता छोटा इमामबाड़ा (A view of Imambara from the Main Entrance) |
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इमामबाड़ा परिसर का एक दृश्य (A view from Imambara Premises) |
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इमामबाड़ा का एक और दृश्य (Another view of Imambara) |
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इमामबाड़े से दिखाई देता प्रवेश द्वार (A view of entrance from Imambara) |
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ताजमहल की आकृति से मिलती-जुलती एक इमारत |
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एक फोटो हमारी भी हो जाए |
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इमामबाड़ा परिसर का एक दृश्य |
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इमामबाड़ा के ऊपर बनी गुंबद |
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इमामबाड़ा के सामने बना सरोवर |
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मेरा भाई उदय प्रताप सिंह |
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Chota Imambara, Lucknow |
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Building in Imambara Premises |
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इमामबाड़े के सामने वाला फव्वारा |
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उदय और उसका मित्र आदिल |
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इमामबाड़े के भीतर का एक दृश्य |
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जनाब आराम फरमा रहे है |
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चबूतरे से लिया एक दृश्य |
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इमामबाड़ा परिसर में मस्जिद |
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ये है सुनहरी मछली |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
शानदार वृत्तान्त और खूबसूरत फ़ोटो। बढ़िया प्रदीप भाई।
ReplyDeleteधन्यवाद बीनू भाई, आपकी प्रतिक्रियाओं का हमेशा इंतजार रहता है !
Deleteप्रदीप भाई मजा आया यात्रा लेख पढ़कर व चित्रों को देखकर।
ReplyDeleteसचिन भाई, सुनकर अच्छा लगा कि लेख आपको पसंद आया ! अभी लखनऊ यात्रा जारी है, उम्मीद है आपको आगे आने वाले लेख भी पसंद आएँगे !
Deleteलखनऊ के शानदार दृश्य कई फिल्मो में देखे है खूबसूरत
ReplyDeleteहाँ जी, यहाँ कई फिल्मों की शूटिंग हुई है !
Deleteफोटो बहुत सुंदर हैं प्रदीप भाई |
ReplyDeleteधन्यवाद रूपेश भाई !
DeleteVery nice and useful and interesting.
ReplyDeleteधन्यवाद जी !
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