शुक्रवार, 26 मार्च 2021
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यात्रा के इस लेख में आज मैं आपको ग़ाज़ीपुर के प्रसिद्ध हथियाराम मठ लेकर चलूँगा, जो देश के मशहूर सिद्धपीठों में गिना जाता है ! यहाँ जाने की कोई पूर्व योजना नहीं थी बस एकदम से विचार बना, और हम घूमने निकल पड़े, दरअसल हुआ कुछ यूं कि शाम को चाय पीते हुए बातों ही बातों में घर के आस-पास घूमने वाली जगहों की चर्चा हुई, और हथियाराम मठ का जिक्र भी हुआ ! फिर क्या था, चाय खत्म करके गाड़ी उठाई और हथियाराम मठ जाने के लिए निकल पड़े, घर से चले तो शाम के साढ़े पाँच बज रहे थे ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि घर से इस मठ की दूरी लगभग 19 किलोमीटर है, घर से निकलकर सादात-जखनियाँ मार्ग से होते हुए हम मजुई चौराहे पर पहुंचे, यहाँ से बाएं मुड़कर बहरियाबाद के लिए निकल पड़े, दूरी 9 किलोमीटर है लेकिन बढ़िया मार्ग बना है तो 15 मिनट से ज्यादा समय नहीं लगता, रास्ते में कुछ रिहायशी इलाके भी है लेकिन ये मार्ग अक्सर खाली ही रहता है ! बहरियाबाद एक बड़ा कस्बा है मुख्य मार्ग बाजार से होकर निकलता है इसलिए थोड़ा भीड़-भाड़ मिल जाती है इस बाजार में आपको खान-पान के कई विकल्प मिल जाएंगे, मुख्य मार्ग तिराहे पर जाकर खत्म होता है जहां एक पुलिस चौकी भी है ! यहाँ से बाएं जाने वाला मार्ग सैदपुर को चला जाता है, जो आगे जाकर वाराणसी-गोरखपुर मार्ग में मिल जाता है जबकि यहाँ से दाएं जाने वाला मार्ग रायपुर होता हुआ चिरैयाकोट को चला जाता है ! इसी मार्ग पर बहरियाबाद से 4 किलोमीटर आगे चलकर रायपुर में हथियाराम मठ जाने का रास्ता अलग होता है, रायपुर से इस मठ की दूरी लगभग 5 किलोमीटर है !
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हथियाराम मठ का प्रवेश द्वार |
रायपुर पहुंचे तो 6 बज चुके थे, यहाँ से दाएं मुड़कर हम रायपुर-जखनियाँ मार्ग पर पहुँच गए, रायपुर तक बढ़िया रास्ता था, लेकिन रायपुर-जखनियाँ मार्ग की हालत खराब थी ! जैसे-2 हम आगे बढ़ते गए, रास्ता भी खराब होता गया, इस मार्ग पर 4 किलोमीटर चलने के बाद हरिहर मोड़ नाम की एक जगह पर हम ये मार्ग छोड़कर अपनी बाईं ओर मुड़ गए ! ये मार्ग सीधा हथियाराम मठ को जाता है, यहाँ से मठ की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है, लेकिन रास्ता बेहद खराब है, इतना खराब कि ये दूरी तय करने में हमें 10-15 मिनट लग गए ! मठ पहुंचे तो सवा छह से ऊपर का समय हो चुका था, मुख्य द्वार बंद था, गाड़ी से उतरकर हमने द्वार के भीतर खड़े एक चौकीदार से पूछा तो उसने मठ के पिछले द्वार से अंदर आने को कहा ! उसके कहे अनुसार हम गाड़ी लेकर पिछले द्वार से मठ परिसर में दाखिल हुए, गाड़ी से उतरकर मठ के अंदर जाने का मार्ग ढूँढने लगे, लेकिन आस-पास हमें कोई दिखाई नहीं दे रहा था जिससे रास्ता पूछ सके ! तभी एक गाड़ी को मठ के पीछे से आते देखा, ये एक मालवाहक गाड़ी थी जो शायद मठ में कुछ सामान लेकर आई थी ! जिधर से गाड़ी आ रही थी हम उसी दिशा में चल दिए, ये एक चौड़ा गलियारा था जो मठ के बगल से निकलकर आगे जाकर बाईं ओर घूम रहा था, मठ का पिछला प्रवेश द्वार वहीं था ! हम गलियारे को पार करते हुए मठ के पिछले द्वार पर पहुंचे, ये खुला हुआ था लेकिन कोई हलचल नहीं थी, अंदर इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे !
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सादात का रघुवंश चौराहा |
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सादात जाखनिया मार्ग |
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मजुई चौराहे के पास |
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सादात बहरियाबाद मार्ग |
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सादात बहरियाबाद मार्ग का एक दृश्य |
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रास्ते में लिया एक और चित्र |
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रायपुर चौराहे के पास |
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रायपुर जाखनिया मार्ग |
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हथियाराम मठ का एक दृश्य |
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हथियाराम मठ का एक दृश्य |
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हथियाराम मठ का एक दृश्य |
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हथियाराम मठ के पिछले द्वार की ओर जाने का मार्ग |
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हथियाराम मठ का अंदर से दिखाई देता एक दृश्य |
प्रवेश द्वार से होकर हम अंदर दाखिल हुए, यहाँ हमारी बाईं ओर लंबे-चौड़े आँगन के बीच एक मंदिर बना था, जो चारों तरफ से खुला हुआ था इसलिए इसके अंदर बना अग्नि कुंड यहाँ से भी दिखाई दे रहा था, शायद इस कुंड में हवन हुआ होगा ! इसी बीच इस मंदिर की दीवार पर लगे बैनर को देखकर पता चला कि 10 दिन पहले ही यहाँ 3 दिवसीय रजत जयंती समारोह का आयोजन किया गया है जो मठ के वर्तमान पीठाधीश श्री भवानी नंदन यति जी महाराज के पीठाधीश्वर पद पर आसीन होने के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया था ! प्रवेश द्वार से अंदर जा रहे एक गलियारे से होते हुए हम माँ सिद्धिदात्री देवी के मंदिर में पहुंचे, अभी बिजली नहीं थी इसलिए मंदिर परिसर में चारों तरफ अंधेरा था, रोशनी के लिए हमने अपने मोबाईल का टॉर्च जला लिया ! हालांकि, सिद्धिदात्री देवी के मुख्य भवन में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था थी लेकिन बाहर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था ! माता के दर्शन करके हम मुड़े ही थे कि बिजली आ गई, अंधेरे में तो कुछ दिखाई नहीं दिया था लेकिन रोशनी में इस मंदिर की असली सुंदरता निखर कर सामने आई ! मंदिर के द्वार और दीवारों पर पीतल की परत चढ़ाई गई है, जिसपर फूल-पत्तियां और देवी-देवताओं के चित्र उकेरे गए है, ये चित्र देखने में ये बहुत सुंदर लगते है ! मुख्य भवन में माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित है, जिनका खूब सुंदर श्रंगार किया गया था, मूर्ति के सामने पूजा सामग्री भी रखी थी !
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मठ के पिछले प्रवेश द्वार की ओर जाते हुए |
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मठ के अंदर बने मंदिर का एक दृश्य |
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मठ का पिछला प्रवेश द्वार |
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इसी मंदिर में हवं कुंड बना था |
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सिद्धिदात्री देवी के मंदिर की ओर जाने का मार्ग |
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सिद्धिदात्री मंदिर का प्रवेश द्वार |
कोरोना की वजह से मंदिर परिसर की घंटियों को ऊपर करके बांधा गया था, बरामदे में ही आरती का समय और मंदिर की समय सारणी लिखी हुई थी ! भक्तों के बैठने के लिए फर्श पर दरी भी बिछी थी, लेकिन इस समय तो यहाँ हमारे अलावा पुजारी जी ही थे ! कुछ समय माता के दरबार में बिताने के बाद हम बाहर आ गए ! इस मंदिर से अगले भाग में कुछ लोग रोजमर्रा के काम में व्यस्त थे, शायद ये मठ में रहने वाले लोग थे ! कोरोना की वजह से मंदिर के अन्य भागों को अभी बंद किया गया था, इसलिए आगे नहीं जा पाए, वरना इस मठ में देखने के लिए बहुत कुछ है ! चलिए, मंदिर से बाहर निकलने से पहले मैं आपको इस मठ से संबंधित कुछ जरूरी जानकारी दे देता हूँ ! प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मठ की परंपरा लगभग 700 साल पुरानी है और इस मठ को भारतवर्ष के कुछ प्रसिद्ध सिद्धपीठों में गिना जाता है, इस मठ की शाखाएं देश के अलग-2 भागों में फैली हुई है जहां लाखों शिष्य है ! इस मठ का प्रमाण प्राचीन हस्तलिपि, लिखित पुस्तकों और भारतीय इतिहास में मिलता है, श्री सिंह श्याम यति से इस पीठ की संत परंपरा आरंभ हुई ! भवानी नंदन यति मठ के 26वें महंत है, मठ के नए महंत का चयन पूर्व महंत द्वारा किया जाता है, बाद में यति जी महाराज को जूना अखाड़े द्वारा महामंडलेश्वर की उपाधि भी दी गई ! श्री यति जी महाराज का जन्म उत्तराखंड में हुआ था लेकिन उन्होनें अपनी शिक्षा काशी से प्राप्त की, अपने अनुशासन और कर्तव्यनिष्ठा के कारण उन्हें पीठाधीश की ये गद्दी प्राप्त हुई !
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सिद्धिदात्री देवी मंदिर में लगी घंटियां |
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सिद्धदात्री माता का दरबार |
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मंदिर की समय सारणी |
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मंदिर परिसर का एक और दृश्य |
मठ की बागडोर संभालते ही उन्होनें लगातार 12 वर्षों तक 12 ज्योतिलिंगों पर अनुष्ठान करते हुए सामाजिक कार्यों, और धर्म प्रचार पर भी ध्यान दिया, इसके लिए वे सनातन धर्म का ध्वज लेकर धार्मिक अनुष्ठानों द्वारा देश के कोने-2 में जाकर लोगों को मानवता की राह दिखाते रहे ! इसके अलावा काशी के प्राचीन दशाश्वमेघ घाट पर गंगोत्री सेवा समिति की स्थापना कर गंगा आरती की शुरुआत कराते हुए इस समिति के संस्थापक संरक्षक बने, इन्हीं के कार्यकाल में हथियाराम मठ को सिद्धपीठ की उपाधि मिली ! यहाँ मठ के पास बुढ़िया माई का एक मंदिर भी है जिसकी मान्यता है कि यहाँ लकवाग्रस्त मरीजों का माता के दर्शन मात्र से ही उपचार हो जाता है, आज तो इस मंदिर के दर्शन नहीं हो पाए, लेकिन भविष्य में फिर कभी इधर आना हुआ तो आपको बुढ़िया माई के दर्शन भी जरूर करवाऊँगा ! बाहर काफी अंधेरा हो गया था और मंदिर परिसर में खामोशी छाई हुई थी, अब हमें यहाँ से वापिस भी जाना था, मठ से बाहर निकले तो मोर की मधुर आवाज कानों में पड़ी, जो रात के इस सन्नाटे को तोड़ती हुई काफी दूर तक जा रही थी ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि मठ के आस-पास काफी घने पेड है जहां इस समय मोरों का जमावड़ा लगने लगा था ! गलियारे से होते हुए हम अपनी गाड़ी तक पहुंचे, यहाँ से निकले तो 8 बजे से तक घर पहुँच गए ! इसके साथ ही आज का ये सफर खत्म होता है, जल्द ही आपसे एक नए सफर पर फिर मुलाकात होगी !
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मठ परिसर का एक दृश्य |
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मठ परिसर का एक और दृश्य |
अगले भाग में जारी...
पूर्वाञ्चल यात्रा
- पूर्वाञ्चल सड़क यात्रा – दिल्ली से ग़ाज़ीपुर (Poorvanchal Road Trip – Delhi to Ghazipur)
- ग़ाज़ीपुर के सादात में स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Sadat)
- मार्कन्डेय महादेव मंदिर की यात्रा (A Trip to Markandey Mahadev Temple, Kaithi)
- ग़ाज़ीपुर का प्रसिद्ध हथियाराम मठ (A Visit to Hathiyaram Math, Ghazipur)
- पूर्वाञ्चल सड़क यात्रा - ग़ाज़ीपुर से दिल्ली (Poorvanchal Road Trip – Ghazipur to Delhi)
Superb Explained and ..... you'll growth in parts of knowledge amd helping to others people.
ReplyDeleteThank You
Deleteमैंने पाञ्चजन्य में जब इस सिद्ध मठ के बारे में पढ़ा तो मुझे ग़ाज़ीपुर का गौरवशाली अतीत समझ में आया ऋषि विश्वामित्र के पिता ऋषि गाधी का जन्मअस्थान भी गाज़ीपुर रहा है
ReplyDeleteस्वामी विवेकानंद जी गाज़ीपुर में पवहारी महाराज से मिलने तीन महीने रुके थे
जी धन्यवाद ये जानकारी साझा करने के लिए !
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