दिलवाड़ा के जैन मंदिर (Jain Temple of Delwara, Mount Abu)

शनिवार, 19 नवंबर 2016 

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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हम उदयपुर से चलकर सड़क मार्ग से होते हुए माउंट आबू पहुँचे ! यहाँ की नक्की झील और हनीमून पॉइंट देखने के बाद हम ब्रहमकुमारी के आश्रम गए, यहाँ भी आधा घंटा घूमने के बाद हम आश्रम से बाहर आकर अपनी गाड़ी की ओर चल दिए ! अब आगे, माउंट आबू में स्थानीय भ्रमण के लिए कई जगहें है, कुछ जगहें तो आप यात्रा के पिछले लेख के माध्यम से घूम ही चुके है इसी श्रंखला में आगे बढ़ते हुए हम माउंट आबू में स्थित अगले दर्शनीय स्थल की ओर चल रहे है जिसका जैन धर्म के लोगों में बड़ा महत्व है ! एक तरफ जहाँ जैन धर्म अपनी सादगी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर इस धर्म के तीर्थ स्थल अपनी सुंदरता के लिए दुनिया भर में जाने जाते है ! इन्हीं प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है “दिलवाड़ा के जैन मंदिर” (Jain Temples of Delwara), जो दुनिया भर में अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है ! राजस्थान के सिरोही (Sirohi) जिले के माउंट आबू (Mount Abu) में स्थित दिलवाड़ा के जैन मंदिरों का निर्माण 11वी से 13वी शताब्दी के मध्य हुआ था !
गुरु शिखर जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र
दिलवाड़ा मंदिर पाँच मंदिरों का एक समूह है जो माउंट आबू से मात्र ढाई किलोमीटर दूर है, मंदिर के बारे में ज़रूरी जानकारी मैं आप लोगों से साझा करता रहूँगा, फिलहाल हम आश्रम से निकलकर मंदिर तक पहुँचते है ! "ब्रहमकुमारी आश्रम" (Brahma Kumari Ashram) से बाहर आते ही हम अपनी गाड़ी में सवार होकर "गुरु शिखर" (Guru Shikhar, Mount Abu) की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, आश्रम से थोड़ा आगे बढ़ते ही सड़क के किनारे बाईं ओर एक छोटी झील है ! कुछ लोग यहाँ रुककर फोटो खिंचवा रहे थे, हम यहाँ बिना रुके मुख्य मार्ग पर आगे बढ़ते रहे, आश्रम से 1 किलोमीटर चलने के बाद बाईं ओर एक मार्ग जाता है, इसी मार्ग पर थोड़ी दूरी पर दिलवाड़ा मंदिर है ! गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करके हम पैदल ही मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! मार्ग के दोनों ओर कई दुकानें है जहाँ घर की सजावट और बच्चों के खेल-कूद के अलावा कुछ अन्य वस्तुएँ भी मिल रही थी ! मंदिर परिसर में प्रसाद चढ़ाने की अनुमति नहीं है इसलिए प्रसाद किसी भी दुकान पर नहीं था, लगभग 100 मीटर चलने के बाद हम मंदिर के सामने पहुँचे ! 

ब्रहमकुमारी आश्रम से निकलते हाइ सड़क के किनारे एक झील


दिलवाड़ा मंदिर की ओर जाने का मार्ग
प्रवेश द्वार पर जाकर पता चला कि अंदर फोटोग्राफी वर्जित है और अपने साथ फोन लेकर जाने की अनुमति भी नहीं है ! फिर हम सबने अपने-2 फोन बंद करके एक साथी को दे दिए, जो इन्हें ले जाकर गाड़ी में रख आया ! दिलवाड़ा जैन मंदिर विश्व के खूबसूरत मंदिरों में से एक है जिसे इसकी असाधारण वास्तुकला (Unique Architecture) और सफेद संगमरमर (White Marble) पर की गई शानदार नक्काशी (Beautiful Carving) के लिए दुनिया भर में जाना जाता है ! कुछ जानकार तो ये भी कहते है कि वास्तुकला की दृष्टि से देखा जाए तो ये मंदिर ताजमहल (Tajmahal) से भी उत्कृष्ट कलाकृति है ! बाहर से देखने पर तो ये किसी भी साधारण से मंदिर जैसा ही लगता है लेकिन इस मंदिर की सादगी के पीछे ही इसकी सुंदरता छिपी है ! हमें अपने गाइड से जो जानकारी मिली उसके अनुसार ऐसा जानबूझ कर किया गया था, ताकि इस मंदिर को विदेशी हमलावरों की नज़रों से बचाया जा सके ! इतना छुपाने के बावजूद भी 1311 में अलाऊदीन खिलजी ने इस मंदिर पर आक्रमण किया और यहाँ काफ़ी क्षति पहुँचाई, मंदिर के बाहरी क्षेत्र में टूटी हुई आकृतियाँ इस बात को प्रमाणित भी करती है !

मंदिर के प्रवेश द्वार से ही एक गाइड ने दर्शन के लिए आए 60-70 लोगों को मंदिर घुमाने के लिए अपने साथ ले लिया ! इनका तर्क था कि मंदिर परिसर में किसी भी तरह की जानकारी अंकित नहीं है इसलिए अगर आप अपने आप इस मंदिर को देखेंगे तो ना तो आप मंदिर के इतिहास के बारे में जान पाएँगे और ना ही मंदिर से संबंधित अन्य जानकारी ! हम भी ऐसे ही एक समूह में शामिल होकर दिलवाड़ा मंदिर को देखने प्रवेश द्वार से आगे बढ़ गए ! प्रवेश द्वार से आगे बढ़कर जैसे ही आप मंदिर परिसर में दाखिल होते है तो मंदिर की नक्काशीदार छतों (Carved Roofs), स्तंभों, दरवाज़ों और दीवारों पर की गई बारीक कारीगरी को देखकर आँखें खुली की खुली रह जाती है ! मंदिर के भीतरी भाग में की गई ऐसी असाधारण शिल्पकारिता का अनूठा रूप शायद ही कहीं ओर देखने को मिले ! मंदिर के भीतरी भाग में संगमरमर पर की गई कारीगरी वाकई असाधारण और अद्वितीए है, पूरे मंदिर में कोई भी कारीगरी दोहराई नहीं गई है ! 

हर दीवार, हर छत, हर दरवाजे और हर स्तंभ पर अलग ही चित्रकारी की गई है, कुछ कारीगरी तो एक ही बड़े पत्थर को काटकर की गई है, जिसमें यक़ीनन महीनों या वर्षों का समय लगा होगा ! कितना धैर्य और संयम होगा उन कारीगरों में जिन्होनें इन पत्थरों पर ये बारीक कारीगरी की है ! माउंट आबू में 1200 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर का जब निर्माण किया गया था तो यातायात के साधन नहीं थे, जिन पत्थरों का इस्तेमाल इस मंदिर में किया गया है वे पत्थर तब हाथियों द्वारा अंबाजी में स्थित अरसूरी पहाड़ से यहाँ लाए गए थे ! मंदिर प्रांगण में मुख्यत पाँच मंदिर है जैन धर्म के अलग-2 तीर्थकरों को समर्पित इन शानदार मंदिरों में सबसे प्राचीन व प्रमुख है “विमल वासाही मंदिर” (Vimal Vasahi Temple)! प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभ देव (आदिनाथ) को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 1031 ई. में हुआ था ! पत्थर के निर्जीव खंडों को इतनी कुशलता से तराशा गया है कि हर आकृति सजीव लगती है ! इस मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य वंश (Chalukya Dynasty) के राजा भीमदेव के सेनापति विमल शाह ने अपने पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूरी होने पर करवाया था ! 


विमल वासाही मंदिर (फोटो www.remotetraveler.com से लिया गया है )
मंदिर परिसर में जगह-2 दीवारों और छतों पर उकेरी गई माँ सरस्वती, अंबिका, लक्ष्मी, शीतला और अन्य देवियों की उत्कृष्ट प्रतिमाएँ इनके शिल्पकारों की निपुणता का प्रमाण है ! प्राप्त जानकारी के अनुसार कुछ कलाकृतियाँ तो ऐसी भी थी जो अपने अंतिम रूप में आने से कुछ क्षण पहले ही टूट गई और शिल्पकार की सारी मेहनत पर पानी फिर गया, कुछ कलाकृतियों को बनाने में महीनों लगे तो कुछ में वर्ष ! कहते है इन मंदिरों के निर्माण में शिल्पकार अपने मेहनताना में सोना लिया करते थे ! दिनभर काम करने के बाद शाम के समय हर शिल्पकार द्वारा बनाई गई कलाकृति से गिरे संगमरमर के टुकड़ों का वजन किया जाता था फिर उतने ही वजन का सोना उस शिल्पकार को दिया जाता था ! बड़ा आश्चर्य होता है ये सुनकर, लेकिन उस दौर में सोने की कीमत वर्तमान जैसी नहीं थी ! मंदिर प्रांगण में स्थित दूसरा मंदिर “लुन वासाही मंदिर” (Luna Vasahi Temple) भी काफी लोकप्रिय है जो 22वें तीर्थकर नेमीनाथ को समर्पित है ! इस मंदिर का निर्माण 1231 ई. में वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाइयों ने अपने स्वर्गीय भाई लूना की याद में करवाया था ! 

लुन वासाही मंदिर (फोटो www.remotetraveler.com से लिया गया है )
इस प्रांगण में तीसरा मंदिर है “पार्श्वनाथ मंदिर” (Parshwanath Temple, Dilwara) है जो 23वें जैन तीर्थकर पार्श्वनाथ को समर्पित है इस मंदिर का निर्माण 1458-59 के दौरान मांडलिक और उसके परिवार वालों ने करवाया था ये एक तीन मंज़िला इमारत है जो दिलवाड़ा में स्थित सभी मंदिरों में सबसे ऊँची है ! प्रांगण में चौथा मंदिर है “पीतल हार मंदिर” (Pittalhar Temple), ये भी पहले जैन तीर्थकर ऋषभ देव को समर्पित है ! इस मंदिर का निर्माण 1468-69 में गुजरात के भीमशाह ने करवाया था, बाद में सुंदर और गदा नामक व्यक्तियों ने इस मंदिर का जीर्णोदार करवाया ! मंदिर में पहले जैन तीर्थकर ऋषभ देव की धातु से बनी मूर्ति को स्थापित किया गया है जिसका वजन 1 मन बताया जाता है ! इस मूर्ति को बनाने में पॅंच-धातुओं का प्रयोग किया गया है जिसमें पीतल धातु का प्रयोग बहुतायत में किया गया है इसलिए इस मंदिर का नाम पीतलहार मंदिर पड़ा ! प्रांगण में स्थित पाँचवा और अंतिम मंदिर है “महावीर स्वामी मंदिर” (Mahaveer Swami Temple), जो अंतिम जैन तीर्थकर महावीर जी को समर्पित है ! इस मंदिर का निर्माण 1582 में करवाया गया था ! 

समय-2 पर मंदिर का जीर्णोदार भी करवाया गया, तभी ये मंदिर आज हमारे सामने इस रूप में खड़ा है ! इसके अलावा गाइड ने हमें यहाँ दिलवाड़ा में स्थित देवरानी-जेठानी मंदिर (Devrani Jethani Temple) के बारे में भी बताया, मंदिर के मुख्य द्वार के बाहर दोनों ओर दो छोटे मंदिर बने हुए थे ! गाइड के अनुसार ये देवरानी-जेठानी मंदिर थे, इन मंदिरों के निर्माण में भी बड़ा समय लगा, जब देवरानी मंदिर बन कर तैयार हो जाता तो जेठानी मंदिर को और अच्छा बनाने के लिए तोड़ दिया जाता, इसी तरह जब जेठानी मंदिर बन कर तैयार हो जाता तो देवरानी मंदिर को तोड़ दिया जाता ! ये क्रम काफ़ी समय तक ऐसे ही चलता रहा, अंत में ये दोनों मंदिरों पर बराबर राशि खर्च करके इस मामले को हल किया गया ! ये बात हमें गाइड ने बताई, अब इस बात में कितनी सच्चाई है ये मैं नहीं जानता ! मंदिर में की गई नक्काशी से टूट कर जो पत्थर बचा उससे भी मंदिर के बाहरी हिस्से में एक अन्य मंदिर का निर्माण कर दिया गया ! 

दिलवाड़ा मंदिर का एक दृश्य (फोटो www.remotetraveler.com से लिया गया है )
पूरा मंदिर घुमाने के बाद गाइड बोला, सभी लोग अपनी-2 इच्छा से हमें मेहनताना के तौर पर जो देना चाहे दे दीजिए ! गाइड को उसका मेहनताना देने के बाद अन्य लोगों की तरह हम भी मंदिर से बाहर आ गए ! अपनी पिछली उदयपुर यात्रा के दौरान मैं दिलवाड़ा का मंदिर नहीं देख पाया था, 5 साल बाद ही सही, आख़िर इस मंदिर को देखने की मेरी इच्छा पूरी हो ही गई ! एक बात जो मुझे यहाँ सबसे ज़्यादा खली वो भी मंदिर परिसर में फोटोग्राफी वर्जित होना ! अगर यहाँ फोटो खींचने की अनुमति होती तो आप लोगों को भी इस मंदिर की खूबसूरत नक्काशी से मुखातिब करवाता ! अगर आप माउंट आबू आने का विचार बना रहे है तो अपने घूमने जाने की जगहों में इस मंदिर को ज़रूर शामिल कीजिए ! ये मंदिर रोजाना दोपहर 12 बजे खुलकर शाम को 6 बजे बंद हो जाता है अवकाश वाले दिन भी मंदिर खुलता है ! मंदिर से बाहर आकर गाड़ी की ओर जाते हुए रास्ते में हमने थोड़ी-बहुत खरीददारी भी की, फिर गाड़ी में सवार होकर हम इसी मार्ग पर पड़ने वाले अगले स्थल गुरु शिखर की ओर चल दिए ! 

"गुरु शिखर" (Guru Shikhar) राजस्थान के माउंट आबू में आरबूडा पर्वत पर स्थित एक धार्मिक स्थल है ! 1722 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गुरु शिखर की दूरी माउंट आबू से 15 किलोमीटर है ! रास्ता एक घने जंगल से होकर निकलता है और अधिकतर मार्ग चढ़ाई भरा है ! माउंट आबू से गुरु शिखर जाते हुए रास्ते में देखने लायक कई जगहें पड़ती है जिनमें से कुछ जगहें तो आप मेरे लेख के माध्यम से घूम ही चुके है ! मंदिर के सामने जहाँ जाकर हमने गाड़ी रोककर सड़क के किनारे खड़ी कर दी ! मुख्य मार्ग आगे चला जाता है जबकि मंदिर तक जाने के लिए यहाँ से आपको एक पैदल मार्ग से होकर जाना होता है ! इस मार्ग से होते हुए हम मंदिर के मुख्य भवन के सामने पहुँचे, प्रवेश द्वार से मुख्य भवन तक रेलिंग लगी है ताकि धक्का-मुक्की ना हो ! वैसे इस मंदिर में ज़्यादा भीड़ नहीं थी, लेकिन शायद कभी-2 भीड़ बढ़ जाती हो ! मंदिर परिसर में फोटोग्राफी वर्जित था इसलिए हमने अपने फोन बंद कर दिए ! यहाँ पूजा करने के बाद हम मंदिर से बाहर आ गए, यहीं से एक मार्ग ऊपर मंदिर की चोटी पर बने मंदिर तक जाता है ! 


गुरु शिखर जाते हुए रास्ते से दिखाई देता एक दृश्य
गुरु शिखर जाते हुए रास्ते से दिखाई देता एक दृश्य
गुरु शिखर मंदिर जाने का मार्ग
गुरु शिखर जाते हुए रास्ते से दिखाई देता एक दृश्य
गुरु शिखर जाते हुए रास्ते से दिखाई देता एक दृश्य
गुरु शिखर मंदिर जाने का मार्ग

रास्ता चढ़ाई वाला है लेकिन सीमेंट का पक्का मार्ग बना है तो ज़्यादा परेशानी नहीं होती ! वैसे तो इस मार्ग पर सदा ही लोगों का आना-जाना लगा रहता है लेकिन फिर भी सहूलियत के लिए दिशा-निर्देश दिए गए है ताकि कोई रास्ता ना भटके ! जैसा कि अधिकतर धार्मिक स्थलों पर होता है यहाँ भी रास्ते में खाने-पीने से लेकर सजावट के सामान की दुकानें है ! थोड़ी देर की चढ़ाई के बाद हम मंदिर पर पहुँच गए, इस मंदिर के बाहर एक बड़ा घंटा भी लगा है, पूजा करने का बाद हम यहाँ खड़े होकर आस-पास के नज़ारों का आनंद लेने लगे ! यहाँ से देखने पर दूर तक दिखाई देती अरावली पर्वतमाला का शानदार दृश्य दिखाई देता है ! कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी, नीचे आते हुए हम रास्ते में खाते-पीते आए, बच्चों के लिए थोड़ी खरीददारी भी की ! फिर अगले कुछ ही पलों में गाड़ी में सवार होकर हम अपनी अगली मंज़िल की ओर चल दिए जिसका वर्णन मैं इस यात्रा के अगले लेख में करूँगा !


मंदिर के बाहर लटका विशाल घंटा 

गुरु शिखर जाते हुए रास्ते से दिखाई देता एक दृश्य
पहाड़ी की चोटी पर स्थित मंदिर के बाहर का एक दृश्य 

गुरु शिखर से दिखाई देता एक नज़ारा
क्यों जाएँ (Why to go Mount Abu): अगर आप राजस्थान में किसी हिल स्टेशन की तलाश में है तो आपकी तलाश यहाँ माउंट आबू आकर ख़त्म हो जाएगी ! समूचे राजस्थान में एक माउंट आबू ही ऐसा पर्वतीय क्षेत्र है जिसे इसकी हरियाली के लिए जाना जाता है ! यहाँ देखने के लिए पहाड़, झील, वन्य जीव उद्यान, और मंदिर भी है !

कब जाएँ (Best time to go Mount Abu): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए माउंट आबू जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है और झील में नौकायान का आनंद भी ठीक से नहीं ले सकते !

कैसे जाएँ (How to reach Mount Abu): दिल्ली से माउंट आबू की दूरी लगभग 764 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से माउंट आबू के लिए नियमित रूप से कई ट्रेने चलती है, जो शाम को दिल्ली से चलकर सुबह जल्दी ही माउंट आबू पहुँचा देती है ! यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड है जिसके दूरी मुख्य शहर से 27 किलोमीटर है ! ट्रेन से दिल्ली से माउंट आबू जाने में 12-13 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से माउंट आबू के लिए बसें भी चलती है जो 14 से 15 घंटे का समय लेती है ! अगर आप निजी वाहन से माउंट आबू जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए माउंट आबू जा सकते है निजी वाहन से आपको 13-14 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा अगर आप हवाई यात्रा का आनंद लेना चाहते है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर जिसकी दूरी यहाँ से 210 किलोमीटर के आस पास है ! हवाई यात्रा में आपको सवा घंटे का समय लगेगा !


कहाँ रुके (Where to stay in Mount Abu): माउंट आबू राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रोजाना हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी घूमने के लिए आते है ! सैलानियों के रुकने के लिए यहाँ होटलों की भी कोई कमी नहीं है आपको 500 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see in Mount Abu): माउंट आबू में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण दिलवाड़ा मंदिर, नक्की झील, गुरु शिखर, ट्रेवर टेंक वन्य जीव उद्यान के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है ! जो लोग उदयपुर घूमने आते है वो माउंट आबू के लिए कुछ अतिरिक्त समय लेकर चलते है ! उदयपुर यहाँ से 160 किलोमीटर दूर है, और वहाँ देखने के लिए सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, एकलिंगजी मंदिर, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ किला, कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है !


उदयपुर - कुम्भलगढ़ यात्रा
  1. उदयपुर में पहला दिन – स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Udaipur)
  2. उदयपुर का सिटी पैलेस, रोपवे और पिछोला झील (City Palace, Ropeway and Lake Pichola of Udaipur)
  3. उदयपुर से माउंट आबू की सड़क यात्रा (A Road Trip from Udaipur to Mount Abu)
  4. दिलवाड़ा के जैन मंदिर (Jain Temple of Delwara, Mount Abu)
  5. माउंट आबू से कुम्भलगढ़ की सड़क यात्रा (A Road Trip From Mount Abu to Kumbhalgarh)
  6. कुम्भलगढ़ का किला - दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार (Kumbhalgarh Fort, The Second Longest Wall of the World)
  7. हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध और महाराणा प्रताप संग्रहालय (The Battle of Haldighati and Maharana Pratap Museum)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

8 Comments

  1. दिलवाडा के जैन मन्दिरों को देखने का मौका अभी तक नहीं मिला है, देखते है किस्मत में कब लिखा है?

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    1. इरादे तो आपके बुलंद है ही संदीप भाई, मौका भी जल्द ही मिल जाएगा !

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  2. bahut hi badhiya yatra, bahut acha laga padhkar
    rahichaltaja.blogspot.in

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    1. धन्यवाद सिन्हा जी !

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  3. दिलवाड़ा मंदिर के फोटो बहुत ही मस्त है

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    1. Photo to badhiya aate lekin wahan photo kheenchne par pratibandh tha....ye doosre blog se liye hai...

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