उदयपुर से माउंट आबू की सड़क यात्रा (A Road Trip from Udaipur to Mount Abu)

शनिवार, 19 नवंबर 2016 

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यात्रा के पिछले लेख में आपने पढ़ा कि किस तरह हमने उदयपुर में पहला दिन स्थानीय भ्रमण करते हुए बिताया, पहले दिन घूमते हुए हम उदयपुर की अधिकतर जगहें देख चुके थे जिसमें "सिटी पैलेस (City Palace), पिछोला झील (Lake Pichhola), रोपवे (Ropeway), सहेलियों की बाड़ी (Saheliyon ki Bari) और फ़तेह सागर झील (Fateh Sagar Lake)" शामिल थे ! दिन भर घूमकर और रात्रि भोजन करने के बाद आराम करने के लिए हम वापिस अपने होटल आ गए ! अब आगे, दिन भर घूमते हुए शाम को अच्छी-ख़ासी थकान हो गई थी इसलिए रात को बढ़िया नींद आई और सुबह समय से सोकर उठे ! आज उदयपुर में हमारा दूसरा दिन था, और सबका मन "माउंट आबू" (Mount Abu) जाने का था, वैसे ये विचार भी एकदम ही बना था, दिल्ली से तो यही सोचकर चले थे कि उदयपुर घूमने के बाद "हल्दीघाटी" (Haldighati) होते हुए "कुम्भलगढ़ का किला" (Kumbhalgarh Fort) घूम लेंगे ! वापसी में "चितौडगढ़ का किला" (Chittorgarh Fort) देखने के बाद दिल्ली की ट्रेन पकड़ कर वापिस आ जाएँगे ! लेकिन कल रात को एकदम से माउंट आबू जाने का विचार बन गया, इसलिए रात को ही इस यात्रा के हमारे एक साथी रवि ने गाड़ी का इंतज़ाम भी करवा दिया जो सुबह हमें अपने होटल से लेकर माउंट आबू घुमा देगी !
नक्की झील का एक दृश्य (A View of Nakki Lake, Mount Abu)
बिस्तर से उठने के बाद सभी लोग बारी-2 से नहाने-धोने में लग गए, इस बीच रवि ने गाड़ी वाले को फोन किया तो पता चला कि वो अभी रास्ते में है और अगले 15-20 मिनट में हमारे होटल पहुँच जाएगा ! अपने कहे अनुसार 20 मिनट बाद गाड़ी वाला हमारे होटल के सामने खड़ा था ! अब तक हम सभी लोग तैयार हो चुके थे, होटल के कर्मचारी अभी सोकर भी नहीं उठे थे इसलिए नाश्ता यहाँ करने का सवाल ही नहीं था ! अपना हिसाब करने के लिए हमने एक कर्मचारी को जगाया और जब तक बकाया राशि का भुगतान किया तब तक हम अधिकतर बैग गाड़ी के ऊपर बाँध चुके थे ! हम माउंट आबू घूमकर यहाँ वापिस नहीं आने वाले थे, इसलिए सारा सामान लेकर निकल रहे थे ! सारा सामान गाड़ी में बाँधने के बाद जब आख़िरी बैग लेने एक साथी ऊपर गया तो अचानक उसे अपनी जैकेट की याद आई, बढ़िया जैकेट थी और सर्दी का मौसम था ! बिना जैकेट के सफ़र नहीं कटने वाला था इसलिए हम सब उसकी जैकेट ढूँढने में लग गए ! पहले तो लगा कि शायद ग़लती से बैग में ना रख दी हो, इसलिए जैकेट ढूँढने के लिए उसने अपना बैग भी खंगाल दिया, लेकिन जैकेट नहीं मिली 

काफ़ी खोजबीन के बाद अंत में जैकेट जाकर मिली होटल की लौंड्री में ! हमें मामला समझते देर नहीं लगी कि ये काम होटल के एक कर्मचारी का था जिसने मौका मिलते ही ये जैकेट चुरा ली थी ! थोड़ी देर पहले ही हम लौंड्री में भी देखकर आए थे तब ये वहाँ नहीं थी, लेकिन हमारी डाँट-फटकार और मामला बढ़ता देख वो डर गया, और चुपके से जाकर उसे लौंड्री में रख आया ! पूछने पर कहने वाला बेड शीट के साथ ग़लती से आ गई थी ! ये एक शर्मनाक घटना थी, अक्सर कहीं भी घूमने जाने वाले लोग अपने होटल में बहुत सा कीमती सामान रखकर घूमने निकल जाते है ! इस तरह की घटनाओं से मन में एक संशय रहता है कि आपकी अनुपस्थिति में ये कर्मचारी दूसरी चाबी से आपका सामान भी खंगाल सकते है ! खिन्न होकर कुछ साथी तो पुलिस कार्यवाही के पक्ष में भी थे लेकिन मैने कहा पुलिस के चक्कर में काफ़ी समय खराब हो जाएगा ! जैकेट मिल ही गई है और आरोपी को भी डाँट-फटकार की अच्छी खुराक मिल ही चुकी है, इस मामले पर और समय ना खराब करते हुए सफ़र की शुरुआत करते है ! 

जैकेट के चक्कर में होटल से निकलते-2 8:30 बज गए, यहाँ से चले तो गाड़ी में तनाव का माहौल था, थोड़ी देर बातें करने के बाद हालात सामान्य हुए ! होटल से निकलकर उदयपुर की सड़कों से होते हुए कई चौराहों को पार करने के बाद हम एक कच्चे मार्ग पर पहुँच गए ! लगभग एक किलोमीटर चलने के बाद ये कच्चा मार्ग ख़त्म हो गया और हम एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुँच गए ! ये उदयपुर बाइपास था जो सीधा "माउंट आबू" (Mount Abu) के लिए चला जाता है, उदयपुर से माउंट आबू की दूरी लगभग 164 किलोमीटर है, और सड़क मार्ग से जाने पर 3 घंटे का समय लगता है ! इस राजमार्ग पर कुछ दूर चलने के बाद नाश्ता करने के लिए हम सड़क किनारे "होटल विष्णु" (Hotel Vishnu) पर जाकर रुके, इस होटल के बगल में दूध की एक डेरी भी थी ! नाश्ते में पराठो का ऑर्डर देकर हम वहीं एक मेज के किनारे लगी कुर्सियों पर जाकर बैठ गए, यहाँ सूरज की हल्की-2 रोशनी पड़ रही थी ! नाश्ते के इंतजार में सब खाली बैठे थे, इसलिए आस-पास की गतिविधियों को देखकर दिल बहलाने लगे ! 

उदयपुर से माउंट आबू जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र
उदयपुर से माउंट आबू जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र


थोड़ी-2 देर में इस डेरी से दूध खरीदने के लिए लोग आते रहे, बीच-2 में इक्का-दुक्का ऐसे लोग भी आए जो यहाँ दूध बेचने आ रहे थे ! दूध बेचने आने वाले लोगों की शारीरिक स्थिति बहुत ज़्यादा अच्छी नहीं थे, हाथ-पैर सूखकर एकदम काँटा हो चुके थे ! लेकिन ग़रीबी के कारण जो भी थोड़ा-बहुत दूध इनके पशु देते थे ये अपनी आजीविका चलाने के लिए इस दूध को भी यहाँ बेचने आ रहे थे ! बड़ी ही दयनीय स्थिति थी, लेकिन जीवन की कड़वी सच्चाई यही है कि हर व्यक्ति किसी ना किसी दुख से पीड़ित है ! दूध बेचकर इन्हें जो थोड़ा-बहुत पैसा मिलेगा उससे इनके घर का चूल्हा जलेगा, कभी-2 लोगों की दयनीय स्थिति देखकर मन व्यथित हो उठता है ! लेकिन ऊपर वाला जो भी करता है भले के लिए ही करता है, आज किसी का समय खराब है तो उसका बढ़िया समय भी आएगा, इसी सकारात्मक सोच के साथ जीवन चलता रहता है ! इसी दौरान हमारा नाश्ता आ गया और हमारा ध्यान अब खाने की तरफ हो गया, दही संग आलू के पराठे खाकर मज़ा आ गया ! आधे घंटे में यहाँ से खा-पीकर फारिक हुए तो फिर से अपने सफ़र पर चल दिए ! 

उदयपुर से माउंट आबू जाने का ये बढ़िया राजमार्ग था जिस पर यातायात ना के बराबर था, गाड़ी आराम से 90-100 की रफ़्तार से चल रही थी ! हम सब बातें कर रहे थे कि अगर दुष्यंत इस समय ड्राइविंग सीट पर बैठा होता तो निश्चित तौर पर गाड़ी 130 से ऊपर की गति से दौड़ रही होती ! हम सब रोज साथ ही जाते है इसलिए हमें पता है कि खाली मार्ग देखकर उसके पैर रेस पर दबने लगते है ! एक तिराहे पर जाकर ये रास्ता ख़त्म हो गया, यहाँ से दाएँ जाने वाला मार्ग माउंट आबू जाता है जबकि बाईं ओर को जाने वाला मार्ग आबू रोड बस अड्डे की तरफ जा रहा था ! अपनी पिछली उदयपुर यात्रा के दौरान मैं इसी तिराहे पर बस से उतरकर जीप में सवार हुआ था ! इस तिराहे से माउंट आबू की दूरी लगभग 21 किलोमीटर है और इस मार्ग पर थोड़ी दूर जाने पर पहाड़ी मार्ग शुरू हो जाता है ! पहाड़ी घुमावदार रास्ते पर कुछ दूर चलने के बाद आख़िरकार हमारे एक साथी को उल्टी होनी शुरू हो गई, उसकी ये हालत देखकर अन्य किसी साथी की हालत ना खराब हो इसलिए माउंट आबू से थोड़ी पहले हमने गाड़ी रोक ली, यहाँ गुजरात से यात्रियों को लेकर आई कुछ अन्य बसें भी खड़ी थी ! 

उदयपुर से माउंट आबू जाते हुए रास्ते में लिया एक चित्र




गाड़ी से उतरे तो बाहर तेज धूप थी, आँखें भी ठीक से नहीं खुल रही थी, लेकिन धूप के साथ ठंडी हवा भी चल रही थी इसलिए धूप में खड़े रहना भी अच्छा लग रहा था ! जब तक हम फोटो खींच कर हटे, हमारा साथी भी उल्टी करके फारिक हो चुका था ! यहाँ से चले तो अगले दस मिनट में हम "माउंट आबू" में प्रवेश कर चुके थे ! मुख्य बाज़ार से होते हुए हम सीधे "नक्की झील" (Nakki Lake) पर जाकर रुके, तीन तरफ से "अरावली पर्वत" (Aravali Hills) से घिरी नक्की झील का नीला पानी देख कर मन तृप्त हो गया ! मैं तो इस जगह पहले भी आ चुका था लेकिन बाकि साथी पहली बार यहाँ आए थे, एक प्रवेश द्वार से होते हुए हम झील परिसर में पहुँच गए !इस झील में नौकायान के अलावा भी कई क्रियाकलाप करवाए जाते है जैसे एक बड़े गुब्बारे में बिठाकर आपको झील में तैरने के लिए छोड़ दिया जाता है, ये गुब्बारा आपके भार से पानी में इधर-उधर घूमता रहता है ! अधिकतर बच्चे ही इन गुब्बारों में घूमने का मज़ा ले रहे थे, झील के किनारे खड़े होकर देखने में ये बड़ा रोमांचक लग रहा था, पर अंदर बैठे हुए शख्स की क्या हालत होगी ये तो वो ही जाने ! 

घर बैठकर तो आप इस रोमांच की शायद ठीक से कल्पना भी ना कर सके, अगर इस रोमांच का मज़ा लेना है तो कभी समय निकालकर आप भी आइए माउंट आबू की सैर पर ! अगर नक्की झील में बोटिंग की बात करे तो यहाँ शिकारा के अलावा "पेडल बोट" (Pedal Boat in Nakki Lake) भी थी, हर बोट का आकार अलग-2 था, कुछ बोट 2 सीटों वाली थी तो कुछ 4 सीटों वाली ! किसी का आकार बतख की तरह था तो किसी का अन्य किसी जीव की तरह ! झील के किनारे से दिखाई देती ये रंग-बिरंगी नावें बहुत सुंदर दृश्य प्रस्तुत कर रही थी ! इस झील में बोटिंग का किराया भी बहुत ज़्यादा नहीं था, 100 रुपए प्रति व्यक्ति, फिर चाहे आप शिकारा बोट में घूमो या पेडल बोट में ! राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन होने के कारण यहाँ आस-पास के इलाक़ों के लोग आते ही रहते है, गुजराती लोग भी यहाँ बहुत आते है ! हमने झील के किनारे खड़े एक फेरी वाले से आटा लिया और गोलियाँ बनाकर झील में मौजूद मछलियों के लिए फेंकने लगे ! इन मछलियों को आटे की गोलियों के लिए पानी के ऊपर आते देखना हमेशा ही एक सुखद अनुभव रहता है ! कभी-2 तो मन करता है घंटो ऐसे ही बैठकर इन मछलियों को दाना डालते रहो ! 

नक्की झील के प्रवेश द्वार के पास
नक्की झील का एक दृश्य

नक्की झील में रंग-बिरंगी नावें



कुछ देर मछलियों के साथ उलझे रहने के बाद हम झील और इसके आस-पास की फोटो खींचने लगे ! हमारे समूह में अधिकतर साथियों का इस झील में नौकायान का मन नहीं था इसलिए यहाँ ज़्यादा समय ना गँवाते हुए "माल रोड" (Mall Road, Mount Abu) से 1-1 कुल्फी खाने के बाद अपनी गाड़ी में सवार होकर झील के दूसरे किनारे पर स्थित "हनीमून पॉइंट" (Honeymoon Point) देखने चल दिए ! झील के किनारे-2 बने सड़क मार्ग से होते हुए अगले 10 मिनट में हम हनीमून पॉइंट के सामने खड़े थे, यहाँ आकर ये मार्ग भी ख़त्म हो जाता है ! पता नहीं इस जगह का ये नाम क्यों पड़ा ? शायद प्रेमी युगल यहाँ एकांत की तलाश में सुकून के कुछ पल बिताने आते हो, इसलिए इस जगह का ये नाम पड़ा या कुछ और ! खैर, वजह जो भी हो, हम सब गाड़ी से उतरकर पैदल इस पॉइंट की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! पॉइंट तक जाने के लिए सीमेंट का पक्का मार्ग बना था, हनीमून पॉइंट मुख्य मार्ग से थोड़ी ऊँचाई पर जाकर था ! यहाँ से नीचे देखने पर दूर तक फैली एक घाटी दिखाई देती है और घाटी के उस पार "अरावली पर्वत श्रंखला" (Aravalli Range) का शानदार दृश्य दिखाई देता है !

माउंट आबू के माल रोड पर घूमते हुए
हनीमून पॉइंट की ओर जाने का मार्ग
हनीमून पॉइंट से दिखाई देता एक नज़ारा
हनीमून पॉइंट से दिखाई देता एक नज़ारा

हनीमून पॉइंट से दिखाई देता एक नज़ारा




हमारे लिए हनीमून पॉइंट पर ज़्यादा कुछ करने को नहीं था, यहाँ एक बगीचा बना है जहाँ से घाटी और पहाड़ी के ऊपर बने मंदिर का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है ! खाने-पीने का सामान बेचते हुए कुछ फेरी वाले यहाँ आने वाले लोगों की बाट जोहते रहते है ! हमें यहाँ एक घोड़े वाला मिला, इस पॉइंट पर घूमने आने वाले अधिकतर लोग घुड़सवारी का आनंद ले रहे थे, ये घोड़ी वाला थोड़ी दूर की घुड़सवारी के लिए 100 रुपए वसूल रहा था, हमने 10 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से फोटो खिंचवाने के लिए उसे मना लिया ! वापिस जाने से पहले बारी-2 से घोड़े पर बैठकर फोटो खिंचवाई और फिर गाड़ी में बैठकर "गुरु शिखर" (Guru Shikhar) की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! हनीमून पॉइंट से 2 किलोमीटर चलने के बाद हमें सड़क के बाईं ओर एक सफेद इमारत दिखाई दी, ये "ब्रहमकुमारी आश्रम" (Braham Kumari, Ashram) था ! गाड़ी से उतरकर हम आश्रम के प्रवेश द्वार से होते हुए अंदर दाखिल हुए, 110 से भी अधिक देशों में फैले ब्रहमकुमारी संस्था की स्थापना 1937 में हुई थी ! एक बड़े हॉल में बिठाकर इस संस्था के लोग अपनी संस्था के संसार के प्रति दिए गए योगदान का उल्लेख करते है, हम इस आश्रम में आधे घंटे रुके ! ब्रहमकुमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें !

ब्रहमकुमारी आश्रम का एक दृश्य 



     
क्यों जाएँ (Why to go Mount Abu): अगर आप राजस्थान में किसी हिल स्टेशन की तलाश में है तो आपकी तलाश यहाँ माउंट आबू आकर ख़त्म हो जाएगी ! समूचे राजस्थान में एक माउंट आबू ही ऐसा पर्वतीय क्षेत्र है जिसे इसकी हरियाली के लिए जाना जाता है ! यहाँ देखने के लिए पहाड़, झील, वन्य जीव उद्यान, और मंदिर भी है !

कब जाएँ (Best time to go Mount Abu): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में घूमने के लिए माउंट आबू जा सकते है लेकिन सितंबर से मार्च यहाँ घूमने जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम है ! गर्मियों में तो यहाँ बुरा हाल रहता है और झील में नौकायान का आनंद भी ठीक से नहीं ले सकते !

कैसे जाएँ (How to reach Mount Abu): दिल्ली से माउंट आबू की दूरी लगभग 764 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन रेल मार्ग है दिल्ली से माउंट आबू के लिए नियमित रूप से कई ट्रेने चलती है, जो शाम को दिल्ली से चलकर सुबह जल्दी ही माउंट आबू पहुँचा देती है ! यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन आबू रोड है जिसके दूरी मुख्य शहर से 27 किलोमीटर है ! ट्रेन से दिल्ली से माउंट आबू जाने में 12-13 घंटे का समय लगता है जबकि अगर आप सड़क मार्ग से जाना चाहे तो दिल्ली से माउंट आबू के लिए बसें भी चलती है जो 14 से 15 घंटे का समय लेती है ! अगर आप निजी वाहन से माउंट आबू जाने की योजना बना रहे है तो दिल्ली जयपुर राजमार्ग से अजमेर होते हुए माउंट आबू जा सकते है निजी वाहन से आपको 13-14 घंटे का समय लगेगा ! इसके अलावा अगर आप हवाई यात्रा का आनंद लेना चाहते है तो यहाँ का सबसे नज़दीकी हवाई अड्डा उदयपुर जिसकी दूरी यहाँ से 210 किलोमीटर के आस पास है ! हवाई यात्रा में आपको सवा घंटे का समय लगेगा !


कहाँ रुके (Where to stay in Mount Abu): माउंट आबू राजस्थान का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है यहाँ रोजाना हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी घूमने के लिए आते है ! सैलानियों के रुकने के लिए यहाँ होटलों की भी कोई कमी नहीं है आपको 500 रुपए से लेकर 8000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !

क्या देखें (Places to see in Mount Abu): माउंट आबू में देखने के लिए वैसे तो बहुत जगहें है लेकिन यहाँ के मुख्य आकर्षण दिलवाड़ा मंदिर, नक्की झील, गुरु शिखर, ट्रेवर टेंक वन्य जीव उद्यान के अलावा कुछ अन्य दर्शनीय स्थल भी है ! जो लोग उदयपुर घूमने आते है वो माउंट आबू के लिए कुछ अतिरिक्त समय लेकर चलते है ! उदयपुर यहाँ से 160 किलोमीटर दूर है, और वहाँ देखने के लिए सिटी पैलेस, लेक पैलेस, सहेलियों की बाड़ी, पिछोला झील, फ़तेह सागर झील, रोपवे, एकलिंगजी मंदिर, जगदीश मंदिर, जैसमंद झील, हल्दीघाटी, कुम्भलगढ़ किला, कुम्भलगढ़ वन्यजीव उद्यान, चित्तौडगढ़ किला और सज्जनगढ़ वन्य जीव उद्यान है !

अगले भाग में जारी...

उदयपुर - कुम्भलगढ़ यात्रा
  1. उदयपुर में पहला दिन – स्थानीय भ्रमण (Local Sight Seen in Udaipur)
  2. उदयपुर का सिटी पैलेस, रोपवे और पिछोला झील (City Palace, Ropeway and Lake Pichola of Udaipur)
  3. उदयपुर से माउंट आबू की सड़क यात्रा (A Road Trip from Udaipur to Mount Abu)
  4. दिलवाड़ा के जैन मंदिर (Jain Temple of Delwara, Mount Abu)
  5. माउंट आबू से कुम्भलगढ़ की सड़क यात्रा (A Road Trip From Mount Abu to Kumbhalgarh)
  6. कुम्भलगढ़ का किला - दुनिया की दूसरी सबसे लंबी दीवार (Kumbhalgarh Fort, The Second Longest Wall of the World)
  7. हल्दीघाटी का ऐतिहासिक युद्ध और महाराणा प्रताप संग्रहालय (The Battle of Haldighati and Maharana Pratap Museum)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

2 Comments

  1. बहुत ही सुंदर यात्रा का लाभ लिया आपने अगली बार और आइए राजस्थान को भी है जय हिंद

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