भानगढ़ यात्रा के मेरे पिछले लेख में आपने पढ़ा कि कैसे हम भानगढ़ के किले की दीवार फांदकर खंडहर बन चुकी बस्ती से होते हुए किले के दूसरे प्रवेश द्वार तक पहुँच गए ! अब आगे, इस बात से तो सब वाकिफ़ होंगे कि डर में शायद ही किसी का दिमाग़ ठीक ढंग से काम करता हो, हममें से भी किसी एक के दिमाग़ ने ही काम किया और बाकी सब तो बस उसके पीछे-2 हो लिए ! फिलहाल तो किले में जाने की हमारी हिम्मत इस दरवाजे पर ही जवाब दे गई थी, इसलिए यहाँ से वापसी की राह पकड़ना ही बेहतर लगा ! हमने सोचा, उजाला होने के बाद आराम से भानगढ़ का किला देखने आएँगे ! जितना समय हमें यहाँ तक पहुँचने में लगा था उससे आधे समय में ही हम वापिस किले की बाहरी दीवार के पास पहुँच गए ! एक-दूसरे को सहारा देते हुए हम सब दीवार कूदकर किले से बाहर निकल गए और अपनी गाड़ी की ओर तेज कदमों से चल दिए ! गाड़ी में सवार होने की देर थी फिर तो पता ही नहीं चला कि कब अपने होटल के सामने पहुँच गए, होटल से थोड़ी आगे ही एक मंदिर था, जहाँ टहलते हुए हम रात को भी आए थे ! यहाँ एक-दो चाय की दुकानें खुल चुकी थी, 4 चाय का आदेश देकर वहीं रखे एक तख्त पर हम चारों बैठ गए !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJhtvZWEBvzDMpISUve8Nv-lCAwDha144JKVsCcJ7qyZRWfJb969hU6S0uzSfTz27bDRchHNFWqQZ5cmCYQFGMLjkEH9CGyPDNBe0cbMKoGvdgml2opAT_tPT6BWzSVknbJwbO8vUT8gbM/s640/Img05.JPG) |
पाराशर धाम जाने का मार्ग |
कोई किसी से कुछ नहीं बोल रहा था, एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी, शायद सभी लोग किले वाली घटना के बारे में ही चिंतित थे ! चाय के दो घूँट मारने के बाद हमारे आस-पास फैला सन्नाटा ख़त्म हुआ और थोड़ी देर में सब-कुछ सामान्य हो गया ! चाय ख़त्म होते-2 हम निश्चय कर चुके थे कि अब नारायणी माता के मंदिर जाने के बाद ही आगे की योजना बनाएँगे ! अगले कुछ ही पलों में हमारी गाड़ी नारायणी माता के मंदिर की ओर दौड़ रही थी, जहाँ बैठकर हमने चाय पी थी उसके पास से ही बाईं ओर एक मार्ग अंदर जा रहा था, ये मंदिर मुख्य मार्ग से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है ! मुख्य द्वार से मंदिर परिसर में प्रवेश करने के बाद मार्ग के दोनों ओर क्रमबद्ध दुकानें है जो इस समय बंद थी ! दिन में इन दुकानों पर पूजा सामग्री व सजावट का अन्य सामान मिलता है, थोड़ी और आगे जाने पर एक खुला मैदान है जहाँ गाड़ी खड़ी करके हम मंदिर परिसर में घूमने लगे ! इस समय मंदिर खुल चुका था लेकिन सुबह का समय होने के कारण अभी ज़्यादा भीड़ नहीं थी, जैसे-2 दिन चढ़ता जाएगा, मंदिर में भीड़ भी बढ़ती जाएगी !
इस मंदिर की कितनी मान्यता है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दर्शन के लिए यहाँ बहुत दूर-2 से लोग आए हुए थे और मंदिर परिसर में ही सो रहे थे ताकि सुबह समय से दर्शन कर सके ! इनमें से कुछ लोग तो दर्शन के लिए लाइन में लग चुके थे जबकि अन्य लोग अभी तक सो ही रहे थे ! हमने भी मुख्य भवन के सामने आकर माता को हाथ जोड़कर प्रार्थना की ! मंदिर परिसर में एक छोटा कुंड भी है, जो इस समय सूख चुका था, थोड़ी देर आस-पास घूमने के बाद हम अपनी गाड़ी में सवार होकर वापिस चल दिए ! स्थानीय लोगों से मिली जानकारी के अनुसार यहाँ नारायणी माता के मंदिर से अलवर जाने वाले मार्ग पर 6 किलोमीटर आगे जाकर पाराशर धाम नाम का एक मंदिर है !
पाराशर धाम के पास एक झरना भी है, स्थानीय लोगों ने बढ़ा-चढ़ा कर इस झरने का बखान किया ! हमें संदेह तो था कि गर्मी के इस मौसम में झरने में शायद ही पानी हो, लेकिन जब स्थानीय लोगों ने बड़े आत्मविश्वास से कहा कि झरने में इस समय भी पर्याप्त पानी है तो हमें उनकी बात मानने को बाध्य होना पड़ा !
नारायणी मंदिर से मुख्य मार्ग पर पहुँचने के बाद हमने गाड़ी अपनी बाईं ओर मोड़ दी, ये मार्ग भी सरिस्का वन्य जीव उद्यान के बाहर ही बाहर होता हुआ अलवर को जाता है, कल हम दूसरे मार्ग से आए थे ! इस मार्ग पर थोड़ी-2 दूरी पर सड़क के दोनों ओर घने पेड़ और थोड़ी दूरी पर पहाड़ी भी है, मार्ग पर चलते हुए ही आपको छोटे जंगली जीव घूमते हुए दिख जाएँगे ! हम लोग बमुश्किल 2 किलोमीटर ही चले होंग कि सड़क के बीचों-बीच हमें टोटके का कुछ सामान दिखाई दिया, नींबू, सिंदूर और भी कुछ सामान था !
सड़क के बीचों-बीच किसी ने टोटका कर रखा था, सामान की हालत देखकर लग रहा था कि किसी ने थोड़ी देर पहले ही ये सब किया है, और ये सामान था भी एक तीव्र मोड़ पर ! ताकि तेज गति से आता कोई वाहन ना चाहते हुए भी इसे लाँघकर चला जाए ! हमारी किस्मत अच्छी थी कि हमारी नज़र दूर से ही इस पर पड़ गई और हम इसके बगल से होते हुए निकल गए ! वैसे तो मैं अंधविश्वास पर यकीन नहीं करता, लेकिन उड़ता तीर लेना भी कोई समझदारी का काम नहीं है !
सुबह किले वाली घटना के बाद से ही सभी लोग चौकस थे, यहाँ से आगे बढ़े तो थोड़ी देर बाद ही हम पाराशर धाम जाने वाले मार्ग के पास पहुँच गए ! मुख्य मार्ग से बाईं ओर एक सहायक मार्ग अंदर जा रहा था, इसी मार्ग के शुरुआत में एक दीवार पर पाराशर धाम लिखा हुआ था जो इस बात की पुष्टि कर रहा था कि यही मार्ग पाराशर धाम तक जाएगा ! हमने अपनी गाड़ी इस मार्ग पर मोड़ दी, शुरुआत में 25-30 कदम तक तो ये मार्ग ठीक था लेकिन उसके बाद तो इसे रोड कहना ठीक नहीं होगा !
मार्ग इतना खराब है कि कई बार तो ऐसा लग रहा था कि कहीं गाड़ी फँस ना जाए, सड़क कम गढ्ढे ज़्यादा थे ! मार्ग पर जगह-2 बड़े-2 पत्थर भी थे, जो आधे ज़मीन में धँस रहे थे और आधे बाहर थे ! बड़ी मुश्किल से इन पत्थरों से बचते-बचाते हम आगे बढ़ते रहे, आधी दूरी तय करने के बाद एक बार तो ऐसा भी लगा कि गाड़ी को यहीं खड़ी करके पैदल ही चलते है ! लेकिन फिर मार्ग में एक स्थानीय लड़का दिख गया, पूछने पर उसने बताया कि पाराशर धाम यहाँ से ज़्यादा दूर नहीं है !
मंदिर से थोड़ी पहले एक खुला मैदान आ गया, अपनी गाड़ी यहीं खड़ी करके हम झरने की ओर जाने वाले मार्ग पर पैदल चल दिए ! जहाँ हमने गाड़ी खड़ी की थी, वहाँ से थोड़ी दूरी पर ही हमें एक बड़ी झोपड़ी भी दिखाई दी, जिस पर रंग-बिरंगी झंडे लगे हुए थे ! इस झोपड़ी के चारों और बाड़ लगाया गया था, अंदर जाने का मार्ग शायद घूम कर दूसरी दिशा में था, इसलिए हमने दूर से ही इस झोपड़ी के कुछ फोटो खींचे !
झरने की ओर जाने वाले मार्ग से थोड़ी दूरी पर ऊँची-2 चट्टाने दिखाई दे रही थी, सुबह की लालिमा में ये चट्टाने बहुत सुंदर लग रही थी ! झरने की ओर जाते हुए रास्ते में हमें सैकड़ों मोर भी दिखाई दिए, जो एक खुले मैदान में विचरण कर रहे थे, इसी मैदान के एक हिस्से में इक्का-दुक्का लोग अपने पशु भी चरा रहे थे ! झरने की ओर जाने वाले मार्ग के किनारे कुछ झोपडियाँ बनी हुई थी, जो अस्थाई दुकानें थी ! यात्रा सीजन में इन दुकानों पर खूब चहल-पहल रहती होगी, लेकिन इस समय तो सब उजाड़ सा पड़ा था ! रास्ते में बड़े-2 पेड़ों पर केसरिया रंग के फूल भी खिले हुए थे, शायद गुडहल के फूल थे !
थोड़ी आगे जाने पर पक्का मार्ग शुरू हो गया, इस मार्ग पर यहाँ से थोड़ी दूरी पर एक प्राइमरी विद्यालय भी है ! पता नहीं यहाँ इस जंगल में कौन पढ़ने आता होगा, शायद आस-पास के गाँव के बच्चे आते हो !
स्कूल से आगे बढ़ते ही हमारे दाईं ओर एक कुंड था, जहाँ कुछ स्थानीय बच्चे खेल रहे थे, इस कुंड में एक गाय के मुख से होता हुआ पानी गिर रहा था ! पत्थर से बने इस गाय के मुख पर गोमुख लिखा हुआ था, यहाँ आने वाले श्रधालु इस कुंड में स्नान करते होंगे ! वैसे इस समय कुंड का पानी काफ़ी गंदा था, अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं था कि ये पानी काफ़ी दिनों से ठहरा हुआ है ! उन बच्चों में से एक को बुलाकर झरने के बारे में पूछा तो वो बोला झरना पहाड़ों के ऊपर से आता है, हाथ से इशारा करके उसने हमें बता दिया कि झरना किस ओर से आता है ! उसके बताए अनुसार हम आगे बढ़े, लेकिन हमें झरना नहीं मिला, बच्चे अभी भी उस कुंड में ही खेल रहे थे, हमारे हाथों में कैमरा देखकर उनमें से एक बच्चा हमारे पीछे-2 भी चला आया था !
उसने बिना पूछे ही बताया कि झरना यहीं से गिरता है, अभी झरने में पानी नहीं है, बारिश होती है तो झरने में खूब पानी आता है और फिर हम झरने के नीचे नहाते है !
ड़े-2 पत्थरों पर चढ़ते हुए हम थोड़ी ऊँचाई तक भी गए और जब आगे जाने का कोई मार्ग नहीं सूझा तो कुछ फोटो खींचने के बाद वापिस नीचे आ गए ! थोड़ी देर कुंड पर बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी, वापिस आते हुए हमें रास्ते में मोर के अलावा बंदर और लंगूर भी दिखाई दिए ! चहल-कदमी करते हुए हम वापिस अपनी गाड़ी तक पहुँचे और यहाँ से सवार होकर फिर से मुख्य मार्ग की ओर चल दिए ! अगर आप कभी यहाँ घूमने आए तो बारिश के मौसम में आइए ताकि झरने का भरपूर आनंद ले सके, झरने में बिना पानी के तो आप निराश ही होंगे, एक घंटे में आप यहाँ आराम से घूम सकते है !
इस समय तक काफ़ी उजाला हो चुका था, अगले कुछ ही पलों में हम मुख्य मार्ग से होते हुए वापिस अपने होटल के सामने पहुँच गए ! अब तक हमें भूख भी लगने लगी थी, इसलिए सोचा भानगढ़ जाने से पहले नाश्ता कर लिया जाए, वरना एक बार घूमना शुरू होगा तो पता नहीं फिर कब खाने का मौका मिले ! अपने होटल के बाहर बने रेस्टोरेंट में ही आलू-प्याज के पराठे का ऑर्डर देकर हम वहीं सड़क किनारे खड़े होकर बातें करने लगे ! थोड़ी देर बाद जब पराठे तैयार हो गए तो हम यहाँ से नाश्ता करने के बाद फिर से भानगढ़ की ओर चल दिए !
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhp3OoBhKGl1x_hi50YSRE4apdxPOBA8nJ-BDzf_jKd2HqKoR09EBesHTIdLb-BPoLO_l21V4uJvxMEktE66cXsSLI7H6hLWO_tdPvh7FK2suHbxfC_vvkaNAWPFeTEXLow2ULfHMnjcjrX/s640/Img01.JPG) |
पाराशर धाम जाने का मार्ग |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj70toIjFiBUq2EEXRjmFG9QLZIKI53yyrnso_RImAp1JjRgD5X8QREqA53mRpwjZrmvzjDYri5iKL6oD1Itg9WNpULGynhyphenhyphen7F9ybV0Wiaa8IdwzD6l1xvikWBVt4zXZF_vlH7Z_9iP4ZMY/s640/Img02.JPG) |
पाराशर धाम के पास एक आश्रम |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEinNleecSe2fGZ8ky9tz9nM1kTCaCq0Voi8DfBhTtXR4Usl2c8sfrQ5WmoSTNh9IMFAlnvuMnG-vTx6X5aPZKGFkjNGfcV79TGgoWaovOpqqfzUSUHwW4rz-af73sw7IEKHn_p5SWfmw5zr/s640/Img03.JPG) |
झरने की ओर जाने का मार्ग |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgNtS2lnjLZuJ_jj0b52nPPPwUwcpjkfn8tbQytZYglR0W0ggnjqdaQHFU7eDm_ES2XhSKVFJ6ZAZkABnBhAYsJvBPaxscgKsmpZ-wAgMaEEkl6f24abCtb-xmSo8tYHZnGzvcKJKx0ggC6/s640/Img04.JPG) |
मोर यहाँ बहुतायत में थे |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8WTbIUInSbYEqEtGGEM832nmRqCRgOr37tKGX5dqalbHqtteNHMcjusmaO6_stESQ4XudYBQcz_FGM5nbDaPIU5OUI6AcdE9TkrSQgIO3KrPGoNySagFzJzzIHt7Tl9tL-0yKbW2BuNCK/s640/Img06.JPG) |
दूर से दिखाई देती एक पहाड़ी |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhJKIVLf0HjLGBOqmPY5zc3XJtn2o5Tlm6RNGjwbDsi-HdUlQ6KWUTYf9X1ZxBlrUznXiLHRo0c5W235C3NmhBAfNJ8d57D4-otqCxjep69LyXV7Aa4cS50Gx9Q5tceMxm-toAQF6i3_tQs/s640/Img07.JPG) |
जानकारी देता एक बोर्ड |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibEG0EcV07Hn6ekvZ4m7mHtQz-pmN1qmVnqwpD3IuplTZ9JvCCqY9d7AfnlqPZJtThkcaMJQhSfwCgYrfWk1rRrHYGMldkKEU0Xz3rwkW_stquezdL35H4mY_0lWZZ9GJglXX8BigKDwgN/s640/Img08.JPG) |
झरने की ओर जाने का मार्ग |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-jovv1HJZViNEnhTMPytto6OBDWaef4WUoeBm9EAuCGX6tMHXoG8WD6p4ssnQHf4LdTdlZo_WNGb0OwvntKMtS2HwqZOA-tpzZCXqXqR-QAPq814cnCGikxCXrq276w8LsqGaPwjlq-W-/s640/Img10.jpg) |
झरने से पहले एक विद्यालय |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhZ8pIcxglnkNhHaA6dTcEjaANqe6R3iwManEJbFOJkn2ISX0Ep_xQF7Je4CHjdwJtYYd14ldIlZwbeX3F01SQ0KPgKPvUNJ1G_cAAsLy1Mr_vEVWzfF7bia_tUKFh9Wsq1CpyMPjoQtkG0/s640/Img11.JPG) |
स्नान कुंड |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOMJcHchN0fnjR56lTqOEUVqFGaMMPBjYkeAKqrDpZbPB82B2muZLog2wtjU61ggErF5AALOqSZquKFCdrlSrKJIJ3IStQdjBlTkizrqiMe7E7jZiC4NX8hRaPsFkzIznU0_4gk_4cxGoF/s640/Img12.JPG) |
एक स्थानीय बालक |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg2oW5_SQT4NPh7RGxyyuYvoooKm1vOLPQh_wdnur498IEdsA1B-I-njd_LLUB6LdweNWHCDvyJS-O2O_ntry2-l4sr4ZurD1RqnNUCVazYjCN1zgw7T5-GfHdW4Y9spk271owqSiZPzLER/s640/Img15.JPG) |
इन्हीं पहाड़ियों से झरना आता है |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgWmenBB9FTqCW4_eVVGfZuxp5vmJELLSYvvLjyroyaT-VmbU0aqRQJQALIeReDgwmIafhmiOtyMVLzmJmk-Buk9T29YOmX-0wTTjCpTb07piErEEYnK9WYtLBA0h4k87zJKiXDQ-iuNp8v/s640/Img18.jpg) |
झरने से वापिस जाते हुए |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhXzxsVfGdlgdsiTNEKDfOC4ayODYThDLS9i0FaUALhUnadP2KGJ8eVik7OY7_H_S07WivQr8FD_qUzy6XT22cgJr57BkuHDujs-HlkOMnUmMgM2hA5FDxAZR93k6u8ZqunrlWPTkq1haWl/s640/Img19.jpg) |
वापिस जाने का मार्ग |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgbua6E7ltCxoiGu2P97ETBJdx-NxbKwa7exkg7fGYasPvrLBKyZs8rEJ6QTBsjPXu1n0YO2OLqIk6Ofhyd0kNP563sfk4nCdls_06fPC7P-o5QIdsw8WgaAo6aomtpWOMb-_vi9BJHGgKH/s640/Img20.jpg) |
हमारे होटल का एक दृश्य |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjpVawsh2wOjA6TQ_nP8GPJqi-OoPo6WFS4MIcwooHwd3zkcwnLs49UJ30qo_ir8IYiJuV_NofVxz2hQF4v3_jJj_Ilh0ZAx7pkcivF_K4TUncgLjOhKWpwwmIICVEU9kbEBzViGE6rQkcT/s640/Img21.jpg) |
रास्ते में दिखाई दिया एक जुगाड़ |
क्यों जाएँ (Why to go Bhangarh): अगर आपको रहस्यमयी और डरावनी जगहों पर घूमना अच्छा लगता है तो भानगढ़ आपके लिए उपयुक्त स्थान है ! भानगढ़ का किला दुनिया की डरावनी जगहों में शुमार है !
कब जाएँ (Best time to go Bhangarh): वैसे तो आप साल के किसी भी महीने में भानगढ़ जा सकते है लेकिन बारिश के मौसम में यहाँ की हरियाली देखने लायक होती है ! इस मौसम में हरे-भरे पहाड़ों के बीच भानगढ़ का किले की खूबसूरती देखने लायक होती है ! हर मौसम में यहाँ अलग ही आनंद आता है गर्मी के दिनों में भयंकर गर्मी पड़ती है तो सर्दी भी कड़ाके की रहती है ! क्योंकि ये किला एक डरावनी जगह है इसलिए रात को इस किले में ना ही जाएँ तो सही रहेगा !
कैसे जाएँ (How to reach Bhangarh): दिल्ली से भानगढ़ की दूरी मात्र 250 किलोमीटर है भानगढ़ रेल और सड़क मार्ग से अच्छे से जुड़ा हुआ है यहाँ का नज़दीकी रेलवे स्टेशन दौसा है जिसकी दूरी भानगढ़ के किले से 29 किलोमीटर है ! दौसा से भानगढ़ जाने के लिए आपको जीपें और अन्य सवारियाँ आसानी से मिल जाएँगी ! जबकि आप सीधे दिल्ली से भानगढ़ निजी गाड़ी से भी जा सकते है, इसके लिए आपको दिल्ली-जयपुर राजमार्ग से होते हुए जयपुर से पहले मनोहरपुर नाम की जगह से आपको बाएँ मुड़ना है ! एक मार्ग अलवर-सरिस्का से होकर भी है वैसे तो इस मार्ग की हालत बहुत लेकिन सरिस्का के बाद थोड़ा खराब और सँकरा मार्ग है !
कहाँ रुके (Where to stay in Bhangarh): भानगढ़ में रुकने के लिए बहुत कम विकल्प है, अधिकतर होटल यहाँ से 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर है ! शुरुआती होटल तो आपको 1000-1200 में मिल जाएँगे लेकिन अगर किसी पैलेस में रुकना चाहते है तो आपको अच्छी ख़ासी जेब ढीली करनी पड़ेगी !
क्या देखें (Places to see in Bhangarh): वैसे तो भानगढ़ और इसके आस-पास देखने के लिए काफ़ी जगहें है लेकिन भानगढ़ का किला, नारायणी माता का मंदिर, पाराशर धाम, सरिस्का वन्य जीव उद्यान, सरिस्का पैलेस, और सिलिसढ़ झील प्रमुख है !
अगले भाग में जारी...
भानगढ़ यात्रा
- भानगढ़ की एक सड़क यात्रा (A road trip to Bhangarh)
- भानगढ़ की वो यादगार रात (A Scary Night in Bhangarh)
- भानगढ़ का नारायणी माता मंदिर और पाराशर धाम (Parashar Dham and Narayani Temple in Bhangarh)
- भानगढ़ के किले में दोस्तों संग बिताया एक दिन (A Day in Bhangarh Fort)
- भानगढ़ के किले से वापसी (Bhangarh to Delhi – Return Journey)
सुंदर चित्र। लेखन में दिन-ब-दिन निखार आ रहा है चौहान साहब।
ReplyDeleteउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद !
Deleteपाराशर और पराशर में क्या अन्तर है
ReplyDeletekoi antar nahin hai
Deletemain bhi kai babaar yaha gaya hu. ab 30 aug 2019 ko jau ga. Narayani mata ka mela hain .
ReplyDeleteBahut Badhiya, kya august mein wahan koi mela lagta hai ?
DeleteHa yhaa bharish ke time bhut achcha mansoon rhtaa h or parashar or prashar me koi antr nhi h
ReplyDeleteDhanyvaad !
Delete