शनिवार 27 नवंबर, 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप कोटद्वार स्थित श्री सिद्धबली धाम के दर्शन कर चुके है, अब आगे, मंदिर में दर्शन करने के बाद हम सीढ़ियों से होते हुए वापिस पार्किंग स्थल पहुंचे ! दोपहर के 3 बज रहे थे, लेकिन खाना खाने की इच्छा किसी की नहीं थी, क्योंकि हम रास्ते में अपने साथ फल और खान-पान की अन्य वस्तुएं लाए थे तो हल्की-फुल्की पेट-पूजा लगातार हो रही थी ! अब खाने के लिए रुकना नहीं था तो हमने अपना आगे का सफर जारी रखा, पार्किंग से गाड़ी लेकर चले तो धीरे-2 पहाड़ी मार्ग भी शुरू हो गया ! लगभग 13 किलोमीटर चलने के बाद हम दुग्गडा पहुंचे, दुग्गडा से 2 किलोमीटर आगे बढ़ने पर मुख्य मार्ग दो हिस्सों में बँट जाता है, यहीं मोड पर एक मंदिर भी है ! इस तिराहे से दाईं ओर जाने वाला मार्ग लैन्सडाउन चला जाता है, जो एक सैन्य छावनी क्षेत्र है, और यहाँ भी घूमने के लिए कई जगहें है ! इन जगहों की अधिक जानकारी के लिए आप यहाँ क्लिक करके पढ़ सकते है ! जबकि तिराहे से बाईं ओर जाने वाला मार्ग गुमखाल होता हुआ पौड़ी को चला जाता है, हम इसी मार्ग पर मुड़ गए ! लैंसडाउन से भी एक मार्ग जहरिखाल-कोटी होता हुआ गुमखाल जाने वाले मार्ग में जा मिलता है, अपनी पिछली यात्रा के दौरान हम देवप्रयाग से लैंसडाउन आते हुए गुमखाल से इसी मार्ग से जहरिखाल आए थे ! जैसे-2 हम आगे बढ़ रहे थे, मार्ग की चढ़ाई भी बढ़ती जा रही थी, सड़क किनारे दोनों ओर दिखाई देते ऊंचे-2 चीड़ के पेड़ रास्ते की सुंदरता को बढ़ा रहे थे, इस मार्ग पर बीच-2 में सड़क किनारे कुछ दुकानें और इक्का-दुक्का होटल भी है !
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भैरवगढ़ी जाते हुए रास्ते में एक मंदिर |
इसी बीच एक जगह सड़क मरम्मत का काम चल रहा था, जहां सड़क में जगह-2 बने गड्ढों की भराई की जा रही थी, मरम्मत कार्य से यातायात थोड़ा बाधित जरूर था लेकिन हमें ज्यादा परेशानी नहीं हुई ! वैसे इस तरह का मरम्मत कार्य ऐसे पहाड़ी मार्गों पर समय-2 पर होते रहना चाहिए, ताकि खराब रास्ते से होने वाले हादसों पर लगाम लगाई जा सके ! घने पेड़ों और ऊंची-2 पहाड़ियों से घिरा होने के कारण इस मार्ग पर सूर्य की रोशनी बराबर नहीं आ रही थी इसलिए एक बार तो ऐसा लगा जैसे शाम हो गई हो ! लेकिन जब एक मोड से हम पहाड़ी के दूसरी ओर पहुंचे तो सूर्य देव ने दर्शन दे दिए, धूप बराबर ना आने के कारण ठंड भी लगने लगी थी, लेकिन सफर का आनंद इस ठंड पर भारी था और हम प्रकृति के खूबसूरत नज़ारों का आनंद लेते हुए आगे बढ़ रहे थे ! दुग्गडा से लगभग 19 किलोमीटर चलने के बाद हम गुमखाल पहुंचे, सड़क के दोनों ओर बनी दुकानों और मार्ग पर खड़ी जीपों को देखकर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि यहाँ कोई रिहायशी इलाका है ! सड़क किनारे बनी इन दुकानों में खान-पान से लेकर जरूरत का सारा सामान मिल जाएगा, वैसे इन दुकानों के पीछे लोगों के घर भी है, कुल मिलाकर यहाँ अच्छी चहल-पहल थी ! गुमखाल के मुख्य चौराहे से थोड़ा आगे बढ़ने पर मार्ग फिर से 2 हिस्सों में बँट जाता है, दाईं ओर जाने वाला मार्ग सतपुली होते हुए पौड़ी को चला जाता है जबकि बाईं ओर जाने वाला मार्ग कीर्तिखाल-द्वारीखाल होता हुआ ऋषिकेश को चला जाता है !
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सिद्धबली मंदिर से निकलते समय |
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कोटद्वार दुग्गडा मार्ग पर लिया एक चित्र |
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कोटद्वार दुग्गडा मार्ग |
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पहाड़ी मार्ग |
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पहाड़ी मार्ग पर बना एक पुल |
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दूरियाँ दर्शाता एक बोर्ड |
आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस यात्रा का हमारा अगला पड़ाव भैरवगढ़ी मंदिर था जो कीर्तिखाल में स्थित है, इसलिए हम गुमखाल से निकलकर बाईं ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! गुमखाल से लगभग 5 किलोमीटर चलने के बाद हम कीर्तिखाल पहुंचे, यहाँ सड़क किनारे दाईं तरफ मंदिर की ओर जाने का प्रवेश द्वार बना है ! इस द्वार के आस-पास और सामने कुछ दुकानें है जहां खान-पान से लेकर मंदिर में चढ़ाने के लिए पूजा सामग्री भी उपलब्ध है ! कीर्तिखाल में सड़क किनारे काफी दूर तक गाड़ियां खड़ी थी, द्वार के आस-पास जगह ना मिलने के कारण थोड़ी दूर एक खाली जगह देखकर हमने अपनी गाड़ी खड़ी कर दी और वापिस मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर आ गए ! यहाँ एक दुकान से प्रसाद और अन्य पूजा सामग्री लेकर हमने मंदिर के लिए अपनी यात्रा शुरू कर दी ! अभी शाम के साढ़े चार बज रहे थे, इस बात का हमें अंदाजा था कि वापसी में अंधेरा होना तय है, लेकिन मंदिर जाने की इच्छा इतनी तीव्र थी कि समय की फिक्र किसी को नहीं थी ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस मंदिर के बारे में कुछ जानकारी दे देता हूँ, यूं तो भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है, लेकिन उनके 15 अवतारों में से एक नाम भैरवगढ़ी का भी है। भैरवगढ़ी का ये मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में स्थित है, लैंसडाउन से लगभग 17 किमी दूर कीर्तिखाल में लाँगूल पर्वत की चोटी पर स्थित इस मंदिर की आस-पास के क्षेत्रों में बहुत मान्यता है ! स्थानीय लोगों के अलावा देश के कोने-2 से हजारों श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आते है, हर साल जून के महीने में भैरवगढ़ी में एक वार्षिक मेले का आयोजन भी किया जाता है जिसमें शामिल होने के लिए दूर-2 से श्रद्धालु आते है !
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कीर्तिखाल में सड़क किनारे खड़ी गाड़ियां |
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कीर्तिखाल में सड़क किनारे गाड़ियां |
भैरवगढ़ी में कालभैरव की पूजा नियमित रूप से की जाती है, जिन्हें काली चीजें काफी पंसद है और उनके पसंद को ध्यान में रखते हुए मंडवे के आटे का प्रसाद बनाया जाता है, जिसे पहाड़ी भाषा में रोट कहते हैं । भैरवगढ़ी को गढ़वाल मंडल का रक्षक भी माना जाता है, कालभैरव के साधक और पुजारी आज भी पहाड़ी की चोटी पर स्थित भैरवगढ़ी मंदिर में जाकर सिद्धि प्राप्त करते हैं। माना जाता है कि यहां रोजाना सैकड़ों भक्त अपनी मनोकामना लेकर दर्शन के लिए आते है और मुराद पूरी होने पर बहुत से श्रद्धालु मंदिर में चांदी का छत्र भी चढ़ाते हैं। भैरावगढ़ का वास्तविक नाम लंगूरगढ़ है, लाँगूल पर्वत पर स्थित होने के कारण इसका नाम लंगूरगढ़ पड़ा, सन् 1791 तक लंगूरगढ़ को बहुत शक्तिशाली गढ़ माना जाता था। इस गढ़ को जीतने के लिए गोरखाओं ने दो वर्षों तक इसकी घेराबंदी भी की, लेकिन अंतत, 28 दिनों के संघर्ष के बाद गोरखा पराजित हुए और लंगूरगढ़ से वापिस लौट गए ! इन गोरखों में से एक थापा नाम के गोरखा ने कालभैरव की शक्ति से प्रभावित होकर यहाँ ताम्रपत्र चढ़ाया था, जिसका वजन लगभग 40 किलो बताया जाता है। भैरवगढ़ी मंदिर भैरव की गुमटी पर बना है, जिसके बाहर बायें हिस्से में एक शक्तिकुंड है, आस-पास के क्षेत्रों से नवविवाहित जोड़े एक खुशहाल वैवाहिक जीवन की कामना लेकर यहाँ दर्शन के लिए आते है, हालांकि, इस धाम का प्राकृतिक सौंदर्य भी यहाँ आने वाले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। समुद्रतल से इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 1855 मीटर है, चोटी पर स्थित होने के कारण बर्फ से लदी पहाड़ियां, चारों तरफ फैली हरियाली और यहाँ का शांत वातावरण पर्यटकों को एक सुखद एहसास देता है !
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भैरवगढ़ी मंदिर जाने का प्रवेश द्वार |
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मंदिर जाने का मार्ग |
चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहां प्रवेश द्वार से लगभग 250 मीटर चलने के बाद माता वैष्णो देवी का एक मंदिर बना है, आगे बढ़ने से पहले सभी श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए जाते है ! हम भी दर्शन के लिए माता वैष्णो देवी के दरबार में गए और अपनी सुखद यात्रा की प्रार्थना की ! मंदिर के पुजारी सचिन डोबरियाल बहुत ही शांत और सरल स्वभाव के है, यहाँ माता के दर्शन करके हमने अपना आगे का सफर जारी रखा ! माँ वैष्णो देवी के मंदिर तक सीमेंट का पक्का मार्ग बना है और मार्ग के ऊपर धूप और बारिश से बचने के लिए शेड भी है, लेकिन इस मंदिर से थोड़ा आगे बढ़ते ही मार्ग की चौड़ाई घटकर कम हो जाती है और कुछ दूर जाने पर तो कच्चा मार्ग शुरू हो जाता है ! शेड तो कीर्तिखाल से माँ वैष्णो देवी के मंदिर तक ही लगा है और फिर भैरवगढ़ी मंदिर से 200-250 मीटर पहले दोबारा ये शेड शुरू हो जाता है ! कीर्तिखाल से भैरवगढ़ी मंदिर की दूरी लगभग 2 किलोमीटर है और पूरा रास्ता चढ़ाई भरा है, बीच-2 में कुछ शॉर्टकट रास्ते भी है, जिससे ये दूरी घटकर कुछ कम हो जाती है ! लेकिन अपनी सहूलियत के हिसाब से इन शॉर्टकट रास्तों को चुने, क्योंकि शॉर्टकट के चक्कर में रास्ता भटकने की भी पूरी आशंका बनी रहती है ! वैसे अगर मौसम साफ हो तो यहाँ से दूर तक फैली घाटी का शानदार नजारा दिखाई देता है, बारिश के मौसम में तो यहाँ से आस-पास की पहाड़ियों की हरियाली देखते ही बनती है ! मंदिर तक जाने वाले मार्ग में शुरुआत में तो कई घर है लेकिन जैसे-2 ऊंचाई बढ़ती जाती है रास्ते में इक्का-दुक्का घर ही दिखाई देते है !
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माँ वैष्णो देवी का दरबार, मुख्य द्वार पर मंदिर के पुजारी |
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मार्ग से दिखाई देता माँ वैष्णो देवी मंदिर |
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यहाँ रास्ता संकरा हो गया है और शेड भी नहीं है |
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रास्ते से दिखाई देते नज़ारे |
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मंदिर जाने का रास्ता चढ़ाई भरा है |
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ये सूखे घास बारिश में हरियाली से भर जाते है |
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दूर पहाड़ी की चोटी पर दिखाई देता मंदिर |
आज मौसम ज्यादा साफ नहीं था, इसलिए घाटी का नजारा धुंधला ही दिखाई दे रहा था, लेकिन यहाँ की हवा में जो ताजगी थी उससे दिनभर के सफर की थकान खत्म हो गई ! मंदिर जाते हुए रास्ते में हम 1-2 जगह आराम करने के लिए भी रुके, यहाँ से आस-पास की पहाड़ियों के शानदार नज़ारे दिखाई देते है ! मंदिर जाने वाले मार्ग के किनारे पड़ने वाले घरों में लोगों ने मालटे और अन्य पहाड़ी फलों के पेड़ भी लगा रखे है ! कुछ देर चलने के बाद हम भैरवगढ़ी की यात्रा के पहले पड़ाव पर पहुँच गए, यहाँ माँ काली और हनुमान जी का मंदिर बना है ! यहाँ से भैरवगढ़ी का मंदिर ज्यादा दूर नहीं है, और इस मंदिर के प्रांगण से दिखाई भी देता है ! यहाँ दर्शन करने के बाद मंदिर के बगल में बनी कुछ सीढ़ियों से होते हुए हम भैरवगढ़ी की ओर बढ़ गए, यहाँ से आगे मंदिर तक पक्का मार्ग बना है ! एक-दो घुमावदार मोड को पार करने के बाद यात्रा मार्ग के ऊपर फिर से शेड शुरू हो जाती है, मार्ग के किनारे दीवारों पर जीवन के विभिन्न पहलुओं से जुड़े कुछ सकारात्मक संदेश भी लिखे गए है, कुछ संदेश आप इस लेख के चित्रों में देख सकते है ! कुछ देर बाद यात्रा मार्ग मंदिर के बाहर बने एक चबूतरे पर जाकर खत्म हो गया, इस चबूतरे पर भक्तों के बैठने की उत्तम व्यवस्था है, बगल में ही मोरपंखी (विद्या) का एक विशाल पेड़ भी है, इतना बड़ा मोरपंखी का पेड़ मैंने अपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा ! वैसे मंदिर परिसर से हिमालय की पहाड़ियों का अद्भुत नजारा दिखाई देता है लेकिन मौसम साफ ना होने से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था !
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मंदिर जाने के मार्ग से दिखाई देती पहाड़ियाँ |
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रास्ते पर शेड दोबारा शुरू हो गए है |
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लिखने वाले ने क्या बात कही है, ऐसे कई संदेश लिखे थे |
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मंदिर के बाहर बना चबूतरा |
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एक विशाल मोरपंखी का पेड़ |
फिर हमने अपने जूते उतारकर एक कोने में रख दिए और हाथ-मुंह धोकर दर्शन के लिए मंदिर में चल दिए ! प्रवेश द्वार के पास एक घंटा लगा है और इस द्वार से अंदर जाते ही एक गलियारे से निकलकर हम मंदिर के मुख्य भवन में पहुंच गए ! मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग की स्थापना की गई है, और इस गर्भगृह के सामने एक हाल है जहां बैठकर श्रद्धालु अलग-2 अवसर पर भजन-कीर्तन करते है ! इस मंदिर की व्यवस्था आस-पास के ग्रामीण ही संभालते है ! मुख्य भवन के बाहर बैठकर हमने कुछ देर प्रभु-भक्ति में ध्यान लगाया और फिर मंदिर से बाहर आ गए, यहाँ बैठकर एक अलग ही अनुभूति हुई, जिसे शब्दों में बताना थोड़ा कठिन है ! हम लोग कुछ देर मंदिर परिसर से आस-पास के नज़ारों को देखते रहे, धीरे-2 सूर्यास्त भी होने लगा था, हमारे आज के सफर का आखिरी पड़ाव अभी बाकि था इसलिए हमने भैरवगढ़ी से वापसी की राह पकड़ी ! वापसी में तो उतराई का मार्ग ही था इसलिए हमें ज्यादा समय नहीं लगना था, मंदिर परिसर से निकलकर कुछ ही मिनटों में हम हनुमान जी और माता काली के मंदिर के पास पहुँच गए ! आगे बढ़ने से पहले हम एक बार फिर से इन मंदिरों में दर्शन के लिए गए, यहाँ एक भवन में कालभैरव जी की चरण पादुकाएं स्थापित की गई है, जबकि अन्य भवनों में माता काली और हनुमान जी की मूर्तियाँ स्थापित है ! बारी-2 से हमने हर भवन में जाकर दर्शन किये और स्मृति स्वरूप यहाँ के कुछ चित्र भी ले लिए ! ये लेख काफी लंबा हो गया है इसलिए फिलहाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, यात्रा के अगले लेख में आपको अपने सफर के अगले पड़ाव पर लेकर चलूँगा !
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मंदिर का प्रवेश द्वार |
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मुख्य भवन का एक दृश्य |
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मुख्य भवन के बाहर बंधी घंटियाँ |
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मंदिर के बाहर बना गलियारा |
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मंदिर से दिखाई देता सूर्यास्त का नजारा |
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प्रवेश द्वार से अंदर आने पर बना गलियारा |
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यहाँ आकर सीढ़ियाँ खत्म हो जाती है |
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मंदिर से वापिस जाते हुए |
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दीवारों पर लिखी अच्छी बातें |
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रास्ते से दिखाई देता सूर्यास्त का नजारा |
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काली माता मंदिर में रखा एक शंख |
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काली माता मंदिर |
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मंदिर से वापिस आते हुए |
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पहाड़ी से दिखाई देता नीचे आने का मार्ग |
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मंदिर से नीचे आते हुए |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये यात्रा आपको पसंद आएगी ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! बारिश के मौसम में ट्रेक करते हुए पैरों में जोंक काफी चिपकते है इसलिए थोड़ा सावधानी बरतना चाहिए !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 280 किलोमीटर है जिसे आप 6-7 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से कोटद्वार आप बिजनोर-नजीबाबाद से होकर जा सकते है, कोटद्वार से आगे गुमखाल होते हुए कीर्तिखाल पहुँच सकते है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है, स्टेशन से यहाँ आने के लिए आप टैक्सी कर सकते है या फिर प्राइवेट जीप भी मिल सकती है लेकिन वो आपको सीधे कीर्तिखाल के लिए शायद ना मिले !
कहाँ रुके (Where to stay): कीर्तिखाल में रुकने के लिए कोई होटल नहीं है इसलिए आपको गुमखाल या उसके आस-पास कहीं होटल देखना होगा ! होटल का किराया 800 रुपए से शुरू हो जाता है आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है !
क्या देखें (Places to see): कीर्तिखाल में भैरवगढ़ी और हनुमानगढ़ी के दर्शन करने के अलावा आप लैंसडाउन भी घूमने जा सकते है जो यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है !
वाह भाई। बहुत ही सुंदर तरीके से आपने भैरव गढ़ी मंदिर यात्रा का शुरू से आखिरी तक वर्णन किया है। मै खुद पौड़ी गढ़वाल का रहने वाला हूं देहरादून में रहता हूं, हर महीने कोटद्वार से गुमखाल होते हुए आपने गांव आता जाता हूं और कई दिनों से भैरव गढ़ी जाने की सोच भी रहा हूं लेकिन अब इस प्रकार से आपने द्वारा पूरी जानकारी मिलने पर मन में जल्द से जल्द भैरव गढ़ी जाने की तमन्ना जोर मारने लगी है। एक बार फिर से आपका तहेदिल से धन्यवाद।
ReplyDeleteजी धन्यवाद, जानकर अच्छा लगा कि यात्रा लेख पढ़कर आपको भी इस यात्रा पर जाने का विचार बना !
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