रविवार 28 नवंबर, 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप माँ ज्वाल्पा देवी के दर्शन कर चुके है, अब आगे, ज्वाल्पा देवी मंदिर से गाड़ी लेकर चले तो हमारा अगला पड़ाव पौड़ी स्थित नागदेव मंदिर था ! इस मंदिर के बारे में मैंने अंकित भाई के यूट्यूब चैनल पर देखा था, घने जंगल के बीच स्थित इस मंदिर की वीडियो देखते ही मैंने इस मंदिर में जाने का निश्चय कर लिया था और देखिए आज हमें इस मंदिर में दर्शन करने का मौका मिल ही गया ! ज्वालपा देवी के मंदिर से चलने के बाद कुछ रिहायशी कस्बों से निकलकर हम परसुंडाखाल पहुंचे, अभी तक हम आधी दूरी तय कर चुके थे, ये जगह ज्वाल्पा देवी मंदिर और पौड़ी के बीच में पड़ती है, यहाँ से पौड़ी लगभग 20 किलोमीटर रह जाता है ! जिस मार्ग पर हम चल रहे थे वो ज्यादा चौड़ा तो नहीं था लेकिन बढ़िया बना था और इस पर गाड़ियां भी गिनती की ही चल रही थी ! पहाड़ों के बीच सूर्य देव भी बढ़िया आँख-मिचौली खेल रहे थे, किसी-2 मोड पर जब सूर्य देव पहाड़ी के पीछे छुप जाते तो अचानक ठंड भी लगने लगती ! इस मार्ग पर नज़ारे शानदार थे इसी तरह चलते हुए कुछ देर बाद हम बुवाखाल पहुंचे, यहाँ एक तिराहा था जहां से बाईं ओर जाने का मार्ग पौड़ी को चला जाता है जो यहाँ से 6 किलोमीटर दूर है, नागदेव मंदिर इसी मार्ग पर इस तिराहे से 3 किलोमीटर दूर है ! बुवाखाल के तिराहे से दाएं जाने का मार्ग थैलीसेण होता हुआ कर्णप्रयाग को चला जाता है, इसे हरिद्वार-कर्णप्रयाग मार्ग कहते है ! कुछ प्रमुख जगहों की दूरियाँ इस तिराहे पर लगे दिशा सूचक बोर्ड पर अंकित थी ! हम इस तिराहे से बाएं मुड़ गए, थोड़ा आगे बढ़ने पर मार्ग फिर से 2 हिस्सों में बँट जाता है, दोनों मार्ग पौड़ी को जाते है, बाईं ओर वाले मार्ग को ऊपरी मार्ग कहते है ये घने जंगल से होकर निकलता है, कुछ चुनिंदा लोग ही इस मार्ग पर चलते है हमें इसी मार्ग पर जाना था, जबकि दाईं ओर जाने वाला मार्ग मेरठ से पौड़ी को आने वाला मुख्य मार्ग है और अधिकतर यात्री इसी मार्ग से पौड़ी आते है !
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नागदेव मंदिर, पौड़ी गढ़वाल |
बुवाखाल से 3 किलोमीटर चलने के बाद हम नागदेव मंदिर के सामने पहुँच गए, वैसे बुवाखाल से आते हुए इस मंदिर से 100-150 मीटर पहले सड़क के दाईं ओर हनुमान जी का एक मंदिर भी है, लेकिन समयाभाव के कारण हमने वो मंदिर नहीं देखा और सीधे नागदेव मंदिर चले आए ! सड़क किनारे बाईं ओर मंदिर में जाने का प्रवेश मार्ग बना है, मुख्य मंदिर प्रवेश द्वार से लगभग 300 मीटर दूर है ! वैसे तो प्रवेश द्वार से मंदिर तक जाने का पक्का मार्ग बना है, जिसके किनारे लोहे की रेलिंग भी लगी है लेकिन रास्ता घने जंगल के बीच से होकर निकलता है इसलिए जंगली जानवरों का डर भी हमेशा बना रहता है ! हम गाड़ी से उतरकर हम लोग प्रवेश द्वार से होते हुए मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर पहुँच गए, मार्ग के दोनों तरफ चीड़ के ऊंचे-2 पेड़ है, कुछ पेड़ तो टूटकर रास्ते में भी गिरे हुए थे, ऐसे ही एक टूटे हुए पेड़ के पास से जलधारा बहकर नीचे जा रही थी ! हमने यहाँ रुककर मुंह-हाथ धोए, पानी बरफ की तरह ठंडा था जिसने पलभर में ही सफर की सारी थकान निकाल दी, ये पानी ऊपर किसी पहाड़ी से रिसकर आ रहा था ! पैदल मार्ग के किनारे लगे चीड़ के पेड़ों के बीच से होते हुए रास्ता ऊपर घने जंगल में जा रहा था जहां अक्सर जंगली जानवर भी दिख जाते है इसलिए ऐसे घने जंगल में जाना कोई समझदारी नहीं है ! कुछ दूर चलने के बाद एक अन्य प्रवेश द्वार आया जहां से नागदेव मंदिर ज्यादा दूर नहीं रह जाता, कुछ सीढ़ियाँ चढ़कर हम मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के सामने पहुँच गए ! इस द्वार पर नाग देवता और शिवलिंग के चित्र बनाए गए है, जूते बाहर उतारकर हम प्रवेश द्वार से मुख्य भवन में दाखिल हुए !
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ज्वालपा देवी मंदिर से निकलते हुए |
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ज्वालपा देवी से पौड़ी जाते हुए |
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रास्ते से दिखाई देता एक दृश्य |
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सतपुली पौड़ी मार्ग |
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शानदार नज़ारे |
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ज्वालपा से पौड़ी जाते हुए |
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खूबसूरत पहाड़ी मार्ग |
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एक रिहायशी इलाके से निकलते हुए |
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ऐसे नज़ारे पहाड़ी क्षेत्रों में आम है |
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पहाड़ी मार्ग के नज़ारे |
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ज्वालपा देवी मंदिर से पौड़ी जाते हुए |
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ज्वालपा देवी मंदिर से पौड़ी जाते हुए |
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पहाड़ों पर धूप-छाँव का खेल |
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घुमावदार पहाड़ी मार्ग |
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पहाड़ी मार्ग के नज़ारे |
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बुवाखाल तिराहे का एक दृश्य |
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बुवाखाल-पौड़ी मार्ग |
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मंदिर मार्ग से दिखाई देता एक दृश्य |
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नागदेव मंदिर जाने का मार्ग |
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मंदिर जाते हुए रास्ते में जंगल |
मंदिर परिसर में शिवलिंग की स्थापना की गई है, इसके अलावा कुछ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी यहाँ स्थापित है, हमने बारी-2 से सभी देवताओं के दर्शन किए और फिर मंदिर परिसर में बनी लोहे की एक बेंच पर बैठ गए ! श्रद्धालुओं के लिए बैठने के लिए मंदिर में उत्तम व्यवस्था है, यहाँ से आस-पास के जंगल का नजारा भी देखते ही बनता है, घने जंगल के बीच स्थित इस मंदिर में सन्नाटा ऐसा कि अपने दिल की धड़कन भी साफ सुनाई दे रही थी ! मुझे यहाँ एक चीज बहुत अच्छी लगी, मंदिर के बीचों-बीच एक बड़ा चीड़ का पेड़ है, लेकिन मंदिर का छत बनाते हुए कारीगरों ने ऐसी व्यवस्था की है कि पेड़ भी नहीं काटना पड़ा और छत भी बन गई, मतलब पेड़ को छत के आर-पार निकाल दिया है ! प्रकृति के प्रति लोगों का ये प्रेम मुझे बड़ा अच्छा लगा, कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी ! वैसे समय तो ज्यादा नहीं हुआ था, 5 बजने में अभी 10 मिनट शेष थे लेकिन घने जंगल के बीच स्थित होने के कारण यहाँ धीरे-2 अंधेरा होने लगा था ! तेज कदमों से चलते हुए हम मंदिर से बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, जहां गाड़ी में बैठा अनिल हमारा इंतजार कर रहा था, तबीयत ठीक ना होने के कारण वो इस मंदिर में दर्शन के लिए हमारे साथ नहीं आया था ! चलिए, अब आपको इस मंदिर से संबंधित कुछ जरूरी जानकारी दे देता हूँ, नागदेव को मूलरूप से डोभाल वंश का देवता माना जाता है, पौड़ी गढ़वाल के डोभ गाँव में डोभाल जाति के लोग रहते है, एक कहावत के अनुसार लगभग 200 साल पहले डोभ गाँव में एक बालक का जन्म हुआ जिसका ऊपरी भाग इंसान का और कमर के नीचे का भाग सर्प रूप में था जिसे नागरूप कहा जाता है !
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मंदिर परिसर में लगा चीड़ का पेड़ जिसे छत से आर-पार निकाला गया है |
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मंदिर परिसर का एक दृश्य |
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मंदिर में स्थापित कुछ मूर्तियाँ |
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मंदिर परिसर में स्थापित मूर्तियाँ |
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मंदिर से वापिस आते हुए |
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मंदिर जाने के मार्ग पर शेड भी डाली गई है |
समय बीतने के साथ बच्चे ने अपने पिता से कहा कि उसे लैंसडाउन के पास भैरवगढ़ी मंदिर के पास एक स्थान पर कंण्डी में ले जाकर स्थापित कर दिया जाए ! साथ ही बच्चे ने ये निर्देश भी दिए कि भैरवगढ़ी ले जाते हुए इस कंण्डी को रास्ते में कहीं भी नीचे ना रखा जाए, कंण्डी को वहीं उतारा जाए जहां उसे स्थापित करना है ! फिर डोभाल वंश के लोग बालक को कंण्डी में लेकर अपने गंतव्य की ओर चल दिए ! लेकिन रास्ते में लोगों ने भूलवश इस कंण्डी को जमीन पर रख दिया, फिर नागरूपी बालक ने सभी लोगों से उस कंण्डी को छूने और उठाने से मना कर दिया ! बालक के आदेश पर ही लोगों ने कुछ दूरी पर खुदाई की तो वहाँ एक जलधारा निकली, जिसमें स्नान करके लोगों ने विधिवत रूप से पूजा करके कंण्डी को वहीं स्थापित कर दिया ! तभी से लोग इस स्थान को नागदेव मंदिर के नाम से जानने लगे, ये प्राकृतिक जलधारा आज भी मंदिर के पास स्थित है ! सच्ची श्रद्धा से आने वाले भक्तों को अक्सर यहाँ नागदेव के दर्शन भी हो जाते है, कहते है कि मंदिर परिसर में स्थापित शिवलिंग के पास ही एक बिल में नाग देवता का वास है ! मंदिर के पुजारी रोजाना यहाँ एक कटोरी में दूध रख देते है और कुछ समय बाद कटोरी का दूध खाली हो जाता है ! अब इन कहावतों में कितनी सच्चाई है ये बता पाना जरा मुश्किल है, लेकिन इन कहावतों को ध्यान में रखकर अगर इन जगहों के दर्शन किए जाए तो यात्रा का मजा दुगुना हो जाता है ! चलिए, अब हम चलते हुए अपनी गाड़ी तक पहुँच चुके है, फिलहाल इस लेख पर भी यहीं विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको पौड़ी के किसी अन्य धार्मिक स्थल के दर्शन करवाऊँगा !
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मंदिर के प्रवेश द्वार पर लगी घंटियाँ |
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देवेन्द्र मंदिर से बाहर आते हुए |
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मार्ग के दोनों ओर ऊंचे-2 पेड़ |
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प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही मार्ग के दोनों ओर घने वृक्ष |
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEib-mP7BlmsyZFYfz6lRGQtsq5nE3y1hpSYLFF8T6XlLu8nrfveQrgD2URXdAdgQkX7Ms7nLTn6gMwXqUMza3poaul3ZvTEBciJuA8m1R7-51I_knEmsOYwb-CLt7zhY89qGRMKcwTAWkxV/w640-h360/Img32.jpg) |
मंदिर मार्ग से दिखाई देती मुख्य सड़क |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये यात्रा आपको पसंद आएगी ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन यहाँ जाने के लिए बारिश का मौसम सबसे उपयुक्त है क्योंकि तब मंदिर के आस-पास की हरियाली देखते ही बनती है !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 380 किलोमीटर है जिसे आप 7-8 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से यहाँ आने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग ऋषिकेश-देवप्रयाग होकर है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 106 किलोमीटर दूर है, जबकि हरिद्वार रेलवे स्टेशन से पौड़ी 136 किलोमीटर दूर है ! लेकिन हरिद्वार से चौड़ा मार्ग और यातायात के बढ़िया साधन होने के कारण लोग इसे ज्यादा पसंद करते है ! निजी वाहन से आप अपनी सहूलियत अनुसार किसी भी मार्ग को चुन सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay): पौड़ी में रुकने के लिए आपको कई होटल में जाएंगे जिनका किराया 1000 रुपए से शुरू हो जाता है ! पौड़ी में वैसे कई धर्मशालाएं भी है, अकेले यात्रा के दौरान या अगर कम बजट में रुकना हो तो आप इन धर्मशालाओं में भी रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see): पौड़ी में नागदेव मंदिर के अलावा अन्य कई दर्शनीय स्थल है जिसमें कंडोलिया मंदिर, क्यूँकालेश्वर मंदिर, खिरसू, ज्वालपा देवी मंदिर और कुछ अन्य स्थलों का भ्रमण कर सकते है !