रविवार 28 नवंबर, 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप पौड़ी स्थित नागदेव मंदिर के दर्शन कर चुके है, अब आगे, गाड़ी लेकर नागदेव मंदिर से चले तो पौड़ी पहुँचने में 10 मिनट से कम का समय ही लगा ! यहाँ एक चौराहे पर चाय की दुकान दिखी तो हमने गाड़ी रोक ली, सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करके चाय पीने चल दिए ! नवंबर के अंत में यहाँ अच्छी-खासी ठंड पड़ने लगती है, चाय की दुकान पर कुछ अन्य लोग भी चाय पीने खड़े थे और पतीले में पक रही चाय के तैयार होने का इंतजार कर रहे थे, हमने भी जाकर दुकानदार को 4 चाय बनाने के लिए कह दिया ! जब तक चाय बनकर तैयार हो रही थी, हम वहीं दुकान के पास रखी एक लोहे की बेंच पर बैठ गए ! इस चौराहे से कई रास्ते निकल रहे थे, एक रास्ता कंडोलिया पार्क से होता हुआ आगे रांसी स्टेडियम और क्यूँकालेश्वर मंदिर को चला जाता है, कंडोलिया पार्क के पास से ही एक अन्य मार्ग, कंडोलिया मंदिर के सामने से निकलकर देवप्रयाग को चला जाता है जबकि चौराहे से नीचे जाने वाला मार्ग पौड़ी के मुख्य बाजार में चला जाता है जहां से एक मार्ग दिल्ली और दूसरा श्रीनगर को निकलता है ! ऊपर से आता एक मार्ग वही था जिससे चलकर हम आए थे, इसके अलावा कुछ अन्य सहायक मार्ग भी इस चौराहे पर आकर मिल रहे थे जो पौड़ी के अलग-2 क्षेत्रों को मुख्य शहर से जोड़ते है ! हम यहाँ चाय की दुकान पर बैठकर आते-जाते वाहनों को देख रहे थे, कसम से बड़ा आनंद आ रहा था, मैं यहाँ घंटों बैठकर चाय की चुसकियाँ लेता हुआ इस नज़ारे का आनंद ले सकता हूँ ! जैसे-2 समय बीत रहा था, ठंड भी बढ़ने लगी थी, कुछ देर बाद हमारी चाय आ गई, धीमी आंच पर देर तक पकाई गई चाय का आनंद ही अलग था, चाय खत्म होते-2 अंधेरा होने लगा था !
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कंडोलिया मंदिर का प्रवेश द्वार |
हमारी यात्रा का अगला पड़ाव पौड़ी स्थित कंडोलिया मंदिर था जो इस चौराहे से बमुश्किल 100 मीटर दूर था, मंदिर के सामने गाड़ी खड़ी करके हम मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए मंदिर में दर्शन के लिए चल दिए ! मंदिर प्रांगण तक पहुंचते-2 अंधेरा हो चुका था, मंदिर में दर्शन तो किये लेकिन अंधेरा होने के कारण आस-पास के प्राकृतिक नज़ारे नहीं दिखाई दिए ! यहाँ से वापिस आते हुए ही निश्चय कर लिया था कि सुबह यहाँ दर्शन के लिए फिर आना है ! इस मंदिर की जानकारी भी आपको इस लेख में आगे दूंगा, पौड़ी में होटल ढूँढने से पहले दोबारा चाय की दुकान पर जाकर रुके और फिर से 1-1 प्याली चाय का आनंद लिया ! मन तो था कि यहाँ बिना गिने लगातार चाय पीते रहो और पौड़ी की ठंड का आनंद लेते रहो ! लेकिन मैं हर बार मन की भी नहीं सुनता, इसलिए चाय पीकर फ़ारिक हुए तो हम रात्रि विश्राम के लिए एक कमरा ढूँढने चल दिए ! चाय की दुकान पर बातचीत के दौरान पता चला कि होटल के लिए पौड़ी के मुख्य बाजार की ओर जाना होगा, जिसके लिए रास्ता यहीं दुकान के बगल से निकल रहा था ! हम गाड़ी लेकर चले तो रास्ते में मिलने वाले सभी होटलों में पूछताछ करते जा रहे थे लेकिन कहीं व्यवस्था नहीं हो पाई ! पौड़ी के मुख्य बाजार में पहुँचकर मैंने गाड़ी रोक दी, और देवेन्द्र के साथ होटल देखने चल दिया, 2-3 जगह देखने के बाद एक कमरा पसंद आया, यहाँ होटल के बाहर सड़क किनारे पार्किंग की व्यवस्था भी थी ! इसलिए इस होटल में हमने अपने लिए कमरा ले लिया, किराया 1200 रुपए था, कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद हम अपना सामान लेकर कमरे में आ गए !
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पौड़ी चौराहे पर स्थित चाय की दुकान |
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रात्रि भोजन का आनंद लेते हुए |
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सुबह पौड़ी से निकलते हुए |
हाथ-मुंह धोकर कुछ देर कमरे में बैठे, फिर खाने के लिए पौड़ी के बाजार में निकल पड़े, इस होटल की रसोई में गए तो यहाँ का खाना हमें ठीक नहीं लगा था इसलिए बाहर किसी अन्य होटल में खाने का विचार बना ! यहाँ के बाजार शिमला, मसूरी, नैनीताल या किसी अन्य चर्चित पहाड़ी क्षेत्रों की तरह बहुत देर तक नहीं खुलते, साढ़े सात बजे ही बाजार की दुकानें धीरे-2 बंद होने लगी थी ! टहलते हुए हम एक होटल में पहुंचे, यहाँ 70 रुपए थाली के हिसाब से भरपेट भोजन किया, आधे घंटे बाद यहाँ से चले तो पिताजी होटल में आराम करने चले गए और हम तीनों सड़क किनारे टहलते रहे ! रात होने के साथ ही कड़ाके की ठंड भी पड़ने लगी थी, दिनभर के सफर पर चर्चा करते हुए कैसे समय बीत गया, पता ही नहीं चला ! टहलते हुए वापिस अपने होटल के सामने पहुंचे तो बाजार की सारी दुकानें बंद हो चुकी थी, गाड़ी के पास जाकर देखा तो ठंड के कारण शीशे पर ओस जमने लगा था ! हम वापिस अपने कमरे में चल दिए, कमरे में भी कुछ देर बैठकर बातें करते रहे, अगले दिन की यात्रा पर चर्चा भी हुई ! रात 10 बजे सभी लोग आराम करने अपने-2 बिस्तर पर चले गए, आज की यात्रा थोड़ा भागम-भाग वाली रही लेकिन फिर भी आज कई मंदिरों में दर्शन किये ! अगले दिन सुबह समय से सोकर उठे, ठंड के कारण बिस्तर से निकलने की इच्छा नहीं हो रही थी लेकिन सफर जारी रखना था तो समय से तैयार भी होना था ! नहा-धोकर फ़ारिक हुए और साढ़े छह बजे होटल छोड़ दिया, अपना सारा सामान हमने गाड़ी में रखा और आज के सफर की शुरुआत की, शहर की सड़कों पर अभी सन्नाटा पसरा हुआ था !
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कंडोलिया मंदिर जाते हुए लिया एक चित्र |
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सड़क के दाईं ओर स्थित कंडोलिया मंदिर का प्रवेश द्वार |
आज हमारा पहला पड़ाव पौड़ी का कंडोलिया मंदिर था, हम कल शाम को भी यहाँ गए थे, लेकिन सुबह हमारे पास पर्याप्त समय था इसलिए यहाँ दर्शन के लिए दोबारा चल दिए ! होटल से निकलकर 10 मिनट बाद ही हम मंदिर के सामने खड़े थे, मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए हम मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! चलिए, आगे बढ़ने से पहले आपको इस मंदिर से संबंधित कुछ जरूरी जानकारी दे देता हूँ, पौड़ी गढ़वाल के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों में कंडोलिया मंदिर भी शामिल है इसलिए यहाँ आने वाले पर्यटक और श्रद्धालु कंडोलिया मंदिर भी जरूर जाते है ! पौड़ी के जिला मुख्यालय से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित ये मंदिर अपने प्रांगण से दिखाई देने वाले प्राकृतिक दृश्यों के लिए भी जाना जाता है ! मंदिर के चारों ओर ऊंचे-2 चीड़, देवदार और बांज के घने वृक्ष है, मंदिर परिसर से हिमालय की कुछ प्रसिद्ध चोटियों और गंगवारस्यू घाटी का विहंगम दृश्य दिखाई देता है ! कहा जाता है कि कंडोलिया देवता चंपावत से पौड़ी आए हुए डुंगरियाल नेगी जाति के लोगों के कुल देवता है, कंडोलिया देवता के बारे में अनेकों कहानियाँ प्रचलित है, कुछ लोग कहते है कि ये भगवान शिव का स्वरूप है ! डुंगरियाल जाति के लोग जब चंपावत से यहाँ पौड़ी में रहने आए तो वो अपने इष्टदेव गोलू देवता (गोरिल देवता) को भी कंडी में रखकर अपने साथ ले लाए ! कंडी में रखकर लाने के कारण इनका नाम कंडोलिया देवता पड़ा ! उत्तराखंड में भगवान शिव को अलग-2 रूपों में पूजा जाता है, यहाँ हर क्षेत्र में भगवान शिव के मंदिर स्थापित किए गए है, पौड़ी में भगवान शिव को कंडोलिया देवता के रूप में पूजा जाता है !
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कंडोलिया मंदिर के प्रवेश द्वार पर देवेन्द्र और मैं |
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मंदिर जाने का मार्ग |
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कंडोलिया मंदिर जाने का पैदल मार्ग |
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शानदार नज़ारे |
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कंडोलिया मंदिर का इतिहास |
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सीढ़ियों से दिखाई देता मंदिर प्रांगण |
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मंदिर परिसर से दिखाई देता एक दृश्य |
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मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
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कंडोलिया देवता का मंदिर |
कंडोलिया देवता को भूमियाल देवता भी कहा जाता है क्योंकि वो यहाँ के इष्टदेव है और सभी की रक्षा करते है ! पहले कंडोलिया देवता का मंदिर नीचे पौड़ी में था बाद में किसी स्थानीय निवासी के स्वप्न में आकर कंडोलिया ठाकुर ने अपना मंदिर एक ऊंचे स्थान पर बनाने को कहा, इसके बाद कंडोलिया देवता का मंदिर यहाँ स्थापित कर दिया गया ! चंपावत के डुंगरियाल नेगी जाति के जो लोग पौड़ी में बसे हुए है वे ही यहाँ के पुजारी है, स्थानीय लोग इन्हें धावड़िया देवता के नाम से पुकारते थे क्योंकि क्षेत्र में कोई भी संकट आने से पहले ये लोग आवाज लगाकर लोगों को सचेत कर देते थे ! चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे, इस मार्ग पर धूप और बारिश से बचाव के लिए शेड डाली गई है ! कुछ दूर चलने के बाद सीढ़ियों से होते हुए हम मंदिर परिसर में पहुँच गए ! मुख्य भवन में कंडोलिया देवता की मूर्ति स्थापित है, मंदिर का मुख्य भवन छोटा ही है, जिसके बाहर ताला लगा था, इसलिए बाहर से ही दर्शन करके हम मंदिर परिसर में घूमते रहे ! मंदिर में कई जगह छोटी-2 घंटियाँ लगी है, जो यहाँ आने वाले श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर बांधते है, इसके अलावा कुछ बड़ी घंटियाँ भी बांधी गई है ! यहाँ बैठकर मन को बड़ा सुकून मिला, ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से आस-पास के पहाड़ों और घाटियों का शानदार नजारा दिखाई देता है ! कुछ देर मंदिर परिसर में बिताने के बाद हमने यहाँ से वापसी की राह पकड़ी और अपने अगले पड़ाव की ओर चल दिए !
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मंदिर में स्थापित मूर्ति |
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मंदिर परिसर में एक पेड़ पर बंधी घंटियाँ |
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मुख्य भवन से दिखाई देता मंदिर प्रांगण |
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मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
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मंदिर का पिछला भाग |
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मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
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सफर के साथी |
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मंदिर परिसर में बना एक कक्ष |
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मंदिर प्रांगण में बैठने की व्यवस्था |
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मंदिर प्रांगण से दिखाई देता एक दृश्य |
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मंदिर के सामने बना बरामदा |
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मंदिर प्रांगण का एक दृश्य |
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सामने दिखाई देता मंदिर से बाहर जाने का मार्ग |
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मंदिर से बाहर जाने की सीढ़ियाँ |
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मंदिर से वापिस आते हुए |
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गिनती के लोग ही मंदिर परिसर में थे |
मंदिर से बाहर निकलते ही सामने कंडोलिया पार्क भी है, जो समुद्रतल से लगभग 1750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित होने के कारण भारत का सबसे ऊंचा पार्क है, और उत्तराखंड का ये पहला थीम पार्क भी है ! वैसे इस पार्क की सबसे बड़ी विशेषता यहाँ का लेजर लाइट और म्यूज़िकल फाउंटेन सिस्टम है, इसलिए रात के समय इस पार्क की छटा देखते ही बनती है, हालांकि, कोरोना के कारण फिलहाल ये पार्क आम जनता के लिए बंद था, लेकिन भविष्य में पौड़ी आना हुआ तो इस पार्क का भ्रमण भी जरूर करूंगा ! बाहर से ही इस पार्क को देखते हुए हम आगे बढ़ गए ! इस मंदिर से 2 किलोमीटर दूर भगवान शिव का प्राचीन क्यूँकालेश्वर मंदिर भी स्थित है जो हमारी यात्रा का अगला पड़ाव था, इस मंदिर का वर्णन मैं अपनी यात्रा के अगले लेख में करूंगा !
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मंदिर के सामने बना कंडोलिया पार्क |
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कंडोलिया पार्क का प्रवेश द्वार |
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फिलहाल पार्क बंद था |
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कंडोलिया पार्क के बाहर |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये यात्रा आपको पसंद आएगी ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन यहाँ जाने के लिए बारिश का मौसम सबसे उपयुक्त है क्योंकि तब मंदिर के आस-पास की हरियाली देखते ही बनती है !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 380 किलोमीटर है जिसे आप 7-8 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से यहाँ आने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग ऋषिकेश-देवप्रयाग होकर है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 106 किलोमीटर दूर है, जबकि हरिद्वार रेलवे स्टेशन से पौड़ी 136 किलोमीटर दूर है ! लेकिन हरिद्वार से चौड़ा मार्ग और यातायात के बढ़िया साधन होने के कारण लोग इसे ज्यादा पसंद करते है ! निजी वाहन से आप अपनी सहूलियत अनुसार किसी भी मार्ग को चुन सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay): पौड़ी में रुकने के लिए आपको कई होटल में जाएंगे जिनका किराया 1000 रुपए से शुरू हो जाता है ! पौड़ी में वैसे कई धर्मशालाएं भी है, अकेले यात्रा के दौरान या अगर कम बजट में रुकना हो तो आप इन धर्मशालाओं में भी रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see): पौड़ी में कंडोलिया मंदिर के अलावा अन्य कई दर्शनीय स्थल है जिसमें नागदेव मंदिर, क्यूँकालेश्वर मंदिर, खिरसू, ज्वालपा देवी मंदिर, डांडा नागराजा मंदिर और कुछ अन्य स्थलों का भ्रमण कर सकते है !
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