कीर्तिखाल का प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर (Hanuman Garhi Temple, Pauri Garhwal)

शनिवार 27 नवंबर, 2021

इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें !

यात्रा के पिछले लेख में आप कीर्तिखाल स्थित भैरवगढ़ी मंदिर के दर्शन कर चुके है, अब आगे, काली माता और हनुमान जी के दर्शन करके हम आगे बढ़े तो सूर्यास्त की लालिमा दिखाई देने लगी थी ! आज की हमारी यात्रा का अगला पड़ाव हनुमानगढ़ी मंदिर था जो इस लाँगूल पर्वत के पश्चिमी छोर पर स्थित है इसलिए स्थानीय लोग इसे लंगूरगढ़ी के नाम से भी जानते है ! मंदिर के पुजारी से प्राप्त जानकारी के अनुसार भैरवगढ़ी से हनुमानगढ़ी की दूरी लगभग 3 किलोमीटर है, जिसके लिए वापसी के मार्ग पर पहले आधा किलोमीटर नीचे आना होता है और फिर यहाँ से पश्चिम दिशा की ओर एक मार्ग जंगल से होता हुआ हनुमानगढ़ी की ओर चला जाता है ! हम रास्ते में मिलने वाले कुछ स्थानीय लोगों से इस मंदिर के बाबत जानकारी लेने के बाद मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! हमने अनुमान लगाया कि आधे घंटे में मंदिर पहुँचकर घंटे भर में वापिस भी आ जाएंगे, लेकिन जैसे-2 हम आगे बढ़ रहे थे जंगल घना होता जा रहा था और अंधेरा भी बढ़ने लगा था ! अंधेरा बढ़ने के साथ ही जंगल में झींगुरों और अन्य छोटे जीवों की आवाज़ें सन्नाटे को चीरते हुए काफी दूर तक सुनाई दे रही थी, ऐसे में हमें कोई बड़ा जीव मिल जाता तो भगवान ही मालिक थे ! यहाँ एक मजेदार वाक्या हुआ, भैरवगढ़ी से वापिस आकर जब हम हनुमानगढ़ी के लिए इस मार्ग पर चले तो एक काला कुत्ता भी हमारे साथ हो लिया, ये हमें रास्ता दिखाता हुआ आगे बढ़ रहा था, हम कहीं रुकते तो ये भी हमसे थोड़ी दूरी पर रुक जाता, शायद भगवान ने उसे हमारी मदद के लिए ही भेजा था ! लेकिन किसी बेज़ुबान जीव के पीछे घने अंधेरे में अनजान रास्ते पर चलना कोई समझदारी नहीं थी, पर पता नहीं क्यों हम इस उम्मीद में आगे बढ़ रहे थे कि शायद अगले मोड पर ही मंदिर पहुँच जाए !

कीर्तिखाल स्थित हनुमानगढ़ी मंदिर

कुछ दूर चलने के बाद ये मार्ग घने जंगल से निकलकर एक ऊंचे टीले पर पहुँच गया, जहां से दूर तक फैली घाटी दिखाई दे रही थी लेकिन मंदिर का कहीं भी अता-पता नहीं था ! यहाँ हम लोग कुछ देर के लिए रुके और इस बात पर विचार करने लगे कि आगे चला जाए या वापसी की राह पकड़े, हम जिस जगह खड़े थे वहाँ से नीचे घाटी में सीधा ढलान था, मतलब अगर रात के अंधेरे में थोड़ा भी फिसलते तो सीधा नीचे घाटी में पहुंचते ! अब तक हमने अपने मोबाईल के टॉर्च भी जला लिए थे, और अपने आस-पास की जगहों का जायजा लेने की नाकाम कोशिश करने में लगे थे ! थोड़ी देर यहाँ खड़े रहकर अंतत: सबकी सहमति से वापसी का विचार बना, सोचा अगर किसी तरह मंदिर पहुँच भी गए तो ठीक है लेकिन अगर रास्ता भटक गए तो कुछ अनहोनी भी हो सकती है ! वापसी का निर्णय लेने के बाद हम तेजी से वापिस कीर्तिखाल की ओर चल दिए, कुछ देर तो वो कुत्ता भी हमारे साथ आया लेकिन फिर घने जंगल में चला गया ! अगले आधे घंटे में हम कीर्तिखाल पहुँच चुके थे, यहाँ चाय पीते हुए स्थानीय लोगों से रात्रि विश्राम के लिए किसी होटल के बारे में पूछा तो पता चला यहाँ कोई होटल नहीं है, वापिस गुमखाल जाना पड़ेगा ! गाड़ी होने की वजह से हमें कोई दिक्कत नहीं थी इसलिए बिना देर किये हम गुमखाल की ओर चल दिए, रास्ते में 1-2 होटल में हमने कमरे के बाबत जानकारी ली, लेकिन 2500 रुपए से कम में कोई होटल नहीं मिल रहा था ! अंतत: सोचा पहले पेट पूजा कर लेते है फिर होटल ढूँढेंगे, या इन्हीं में से किसी होटल में रुक जाएंगे !

हनुमानगढ़ी जाते हुए यही कुत्ता हमें मिला था

सूर्यास्त होने ही वाला है

कीर्तिखाल से निकलते हुए

गुमखाल में रावत रेस्टोरेंट पर हम खाने के लिए रुके, सबको तेज भूख लगी थी, यहाँ 60 रुपए प्रति थाली के हिसाब से भरपेट भोजन किया ! खाना खाते हुए ही इस दुकान के मालिक से बातचीत शुरू हो गई, रात्रि विश्राम की बात हुई तो उन्होंने अपने एक परिचित का नंबर दिया जो गुमखाल से 5 किलोमीटर दूर दुग्गडा मार्ग पर डे-नाइट नाम से एक गेस्ट हाउस चलाते है ! हम कोटद्वार से निककलर इसी मार्ग से यहाँ आए थे और रास्ते में हमने ये गेस्ट हाउस देखा भी था, खाना खाते हुए ही गेस्ट हाउस के मालिक से फोन पर बात हो गई ! खाना खाकर फ़ारिक हुए तो कुछ देर बाद हम अपनी गाड़ी में सवार होकर गेस्ट हाउस की ओर चल दिए, 10-12 मिनट बाद हम डे-नाइट गेस्ट हाउस के सामने खड़े थे, नीचे एक दुकान थी जो गेस्ट हाउस के मालिक ही चलाते है ! कमरा पहली मंजिल पर था, जो ठीक ठाक था, दिन-भर के सफर से अच्छी थकान हो गई थी तो हमें अब आराम ही करना था और सुबह फिर से अपनी यात्रा के लिए निकल जाना था ! वैसे भी इतनी रात में हम कहाँ भटकते, और फिर कमरे का किराया भी मात्र 800 रुपए था, इतने रुपए में इस समय तो शायद ही कहीं होटल मिलता ! अपना सामान लेकर कमरे में गए और कुछ देर बैठकर बातें की और अगले दिन की यात्रा पर चर्चा भी हुई, विचार ये बन रहा था कि अगर समय से तैयार हो गए तो सुबह हनुमानगढ़ी के दर्शन करने के बाद सफर को आगे बढ़ाएंगे ! बातचीत करते हुए कब नींद आई पता ही नहीं चला, नवंबर खत्म होने को था और यहाँ पहाड़ों पर बढ़िया ठंड पड़ने लगी थी, सुबह नींद खुली तो बिस्तर से निकलने का मन नहीं हो रहा था लेकिन सफर जारी रखने के लिए बिस्तर छोड़कर तैयार होना जरूरी था !

होटल की छत से दिखाई देता एक दृश्य

सौर ऊर्जा से पानी गरम करने का एक उपकरण

बिस्तर से निकलकर हम सब बारी-2 से तैयार हुए, नहाने के लिए गरम पानी हमें मिल गया था इसलिए ज्यादा दिक्कत नहीं हुई ! जब तक बाकि लोग तैयार हो रहे थे मैंने गेस्ट हाउस की छत पर बैठकर चारों आस-पास के नज़ारों का आनंद लिया, शहर की भागम-भाग से दूर किसी पहाड़ी क्षेत्र में एक शांत जगह बैठकर, मार्ग पर आती-जाती गाड़ियों को देखना भी कई बार सुखद एहसास देता है ! तैयार होकर यहाँ से चले तो साढ़े सात बजने में 5 मिनट बाकि थे, हमने कुछ खाया-पिया नहीं था सोचा कि हनुमानगढ़ी में दर्शन करने के बाद खाना खाएंगे ! गुमखाल पहुँचने में हमें 10 मिनट लगे, और लगभग इतने ही मिनट आगे कीर्तिखाल पहुँचने में लगे, कीर्तिखाल में मंदिर के प्रवेश द्वार के आस-पास आज भी गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं मिली ! शायद सड़क किनारे खड़ी गाड़ियां स्थानीय लोगों की थी वरना इतनी सुबह तो यहाँ दर्शन करने कौन ही आया होगा ! प्रवेश द्वार से थोड़ी दूर कल वाली जगह पर ही गाड़ी खड़ी की, एक बार फिर प्रवेश द्वार से होते हुए मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! आज हमने कीर्तिखाल से यात्रा शुरू की तो 8 बज रहे थे, आगे बढ़ने से पहले आज भी हमने रास्ते में स्थित माता वैष्णो देवी के दर्शन किए ! कुछ दूर चलने के बाद उस जंगल वाले रास्ते को पार करते हुए उसी जगह पहुँच गए, जहां से कल रात को हमने वापसी की थी ! यहाँ तक यात्री विश्राम के लिए रास्ते में ग्राम पंचायत की ओर से जगह-2 बैठने की उत्तम व्यवस्था है, लेकिन इससे आगे रास्ता सुनसान है और हमारे अलावा यहाँ कोई दिखाई नहीं दे रहा था ! जैसे-2 हम आगे बढ़ रहे थे, रास्ता संकरा और दुर्गम होता जा रहा था, अब हमें एहसास होने लगा था, कि हमने कल रात को बढ़िया निर्णय लिया और वापिस चले गए !

सुबह होटल से निकलते हुए

देवेन्द्र और अनिल (बाएं से दाएं)

कीर्तिखाल में सड़क किनारे खड़ी गाड़ियां

कीर्तिखाल में मंदिर के प्रवेश द्वार की ओर जाते हुए

माँ वैष्णो देवी मंदिर तक यात्रा मार्ग पर शेड डाली गई है

माँ वैष्णो देवी का दरबार

वैष्णो देवी मंदिर से आगे बढ़ते हुए

मार्ग में पेड़ों से क्या शानदार मार्ग बन गया है

हनुमानगढ़ी जाने का मार्ग

मार्ग से दिखाई देता घाटी का एक नजारा

रास्ते में लगा मालटे का पेड़

बीच-2 में मार्ग संकरा है

जंगल से गुजरता मार्ग

इतने दुर्गम रास्ते पर रात को जाना खतरे से खाली नहीं था, इस सँकरे मार्ग पर जहां दिन में चलने पर इतना खतरा है वहाँ रात में तो कोई कैसे ही जाता ! आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि कल रात को हम मंदिर के आधे रास्ते तक भी नहीं आए थे और जहां से हम वापिस लौटे थे, दुर्गम रास्ता तो उससे आगे ही था ! कुछ दूर चलने पर हमें पक्की पगडंडी मिल गई जो लगभग 3 या साढ़े तीन फुट चौड़ी रही होगी, इस पर चलने में तो कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन रास्ते के दोनों ओर कंटीली झाड़ियाँ थी, जो सूख चुकी थी और इनके कांटे हमारे कपड़ों में चिपक रहे थे ! थोड़ी देर बाद इस रास्ते के किनारे हमें पानी का एक छोटा कुंड दिखाई दिया, पानी की जो पाइप लाइन ऊपर हनुमानगढ़ी गई है उससे ही रिसकर ये कुंड बना था, हमने रिसते हुए पाइप से पीने का पानी अपनी बोतल में भर लिया, बरफ की तरह ठंडा पानी था ! थोड़ा आगे बढ़ने पर ये पक्का मार्ग खत्म हो गया और पथरीला मार्ग शुरू हो गया जिसे बड़े-2 पत्थरों को रास्ते में बिछाकर बनाया गया था ! इस रास्ते पर चलते हुए बहुत खतरा था क्योंकि जरा भी ध्यान भटकने पर ठोकर लग रही थी ! दिन की शुरुआत होने के कारण किसी को थकान नहीं हो रही थी और हम लगातार आगे बढ़ते रहे, यहाँ हमारी दाईं ओर पहाड़ी थी जबकि बाईं ओर गहरी खाई, मार्ग की चढ़ाई लगातार बढ़ती जा रही थी ! सूखी घास पर पैर भी बार-2 फिसल रहे थे, इसलिए हम काफी सावधानी बरत रहे थे, इसी ढलान पर हमें एक हिरण अपने 2 बच्चों के साथ दौड़ता हुआ दिखाई दिया, जो पलभर में ही आँखों से ओझल हो गया !

देख लो हनुमानगढ़ी जाने का मार्ग

कल रात को यहाँ से वापिस लौटे थे

मार्ग के दोनों ओर सूखी झाड़ियाँ

जंगल के बीच सुनसान रास्ते

यहाँ रास्ता संकरा हो गया

हनुमानगढ़ी के मार्ग में एक कुंड 

आगे बढ़ने पर रास्ता पथरीला हो गया था

ढूंढो रास्ता कहाँ है

कुछ दूर चलने के बाद हम फिर से एक जंगल में पहुँच गए, यहाँ जमीन समतल थी और दोनों तरफ ऊंचे-2 पेड़ थे, इन पेड़ों में से जाली की तरह छनकर आती सूरज की रोशनी बड़ा सुकून दे रही थी ! हमें लगा अब तो मंदिर पहुँचने ही वाले है इसलिए यहाँ रुककर कुछ देर फोटो खींचने लगे, यहाँ से चले तो कुछ देर बाद ये जंगल खत्म हो गया और हम फिर से एक चढ़ाई भरे मार्ग पर पहुँच गए ! लेकिन ये अंतिम चढ़ाई बहुत तीखी थी, मेरे अंदाजे से शायद 60-65 डिग्री की चढ़ाई रही होगी, यहाँ रास्ता मात्र डेढ़ या 2 फुट चौड़ा था, वो भी सूखी झाड़ियों में दब गया था और बड़ी मुश्किल से दिखाई दे रहा था ! यहाँ फिसलने का मतलब सीधे सैकड़ों फुट गहरी खाई में गिरना था और अभी-2 हमने हिरण को यहाँ दौड़ते देखा था तो बाघ का डर भी मन में आने लगा था ! 2-3 घुमावदार मोड़ों से होते हुए बड़ी मुश्किल से अंतिम 100 मीटर की दूरी तय की, फिर जब मंदिर के सामने पहुंचे तो सारा डर और थकान खत्म हो गई, समय 9 बज रहे थे इस तरह हमें कीर्तिखाल से यहाँ पहुँचने में घंटे भर का समय लगा ! समुद्र तल से इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 1810 मीटर है जबकि हनुमानगढ़ी मंदिर समुद्रतल से 1855 मीटर ऊंचाई पर है ! यहाँ मंदिर परिसर तो काफी दूर तक फैला है लेकिन मुख्य भवन ज्यादा बड़ा नहीं है, बमुश्किल एक साथ 4-5 लोग ही मंदिर में दर्शन कर सकते है, हमने भी बारी-2 से जाकर मंदिर में दर्शन किये और फिर हम सबने इकट्ठे होकर मंदिर के पुजारी के साथ मुख्य भवन में बैठकर हनुमान जी की आरती का पाठ किया ! 

मंदिर जाते हुए रास्ते में पड़ने वाला एक जंगल

रास्ता थोड़ी दूर तक समतल था

यात्रा के साथियों साथ एक चित्र

रास्ते के साइड में तीखी ढलान है

घनी झाड़ियों में रास्ता खोजता हुआ अनिल

रास्ते से दिखाई देता एक चित्र

दूर रास्ता दिखाई दे रहा है

बस आखिरी चढ़ाई है

हनुमानगढ़ी मंदिर का एक दृश्य

पूजा करने के बाद हम मुख्य भवन से निकलकर मंदिर परिसर में घूमने लगे, बाहरी प्रवेश द्वार के पास एक कोने में कुछ पेड़-पौधे और फूल लगाए गए है जबकि मुख्य भवन के पीछे एक ऊंचे पत्थर पर शिवलिंग की स्थापना की गई है ! यहाँ भी काफी ऊंची-2 झाड़ियाँ थी, ये परिसर ही कभी लंगूरगढ़ का किला था लेकिन अब किले के नाम पर बस कुछ अवशेष ही बचे है ! इस परिसर के चारों ओर 3 फुट ऊंची चारदीवारी है जो या तो किले का ही हिस्सा थी या फिर ये चारदीवारी बाद में बनाई गई होगी ! यहाँ खड़े होकर देखने पर घाटी में दूर तक फैली पहाड़ियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है, अगर मौसम साफ हो तो हनुमानगढ़ी से भैरवगढ़ी की चोटी दिखाई देती है और ऐसे ही भैरवगढ़ी से भी हनुमानगढ़ी की चोटी दिखाई देती है, आज मौसम साफ था और इसलिए हमें भैरवगढ़ी की चोटी दिखाई दे रही थी ! कुछ देर मंदिर परिसर में घूमने के बाद हम पंडित जी के साथ बैठ गए, मंदिर के पुजारी फिलहाल यहीं रहते है और अपने भोजन की व्यवस्था भी उन्हें खुद ही करनी होती है ! उन्होनें बताया कई बार यात्री यहाँ दर्शन के लिए आते है और रात्रि विश्राम भी करते है, जिसके लिए या तो मंदिर में रखे बिस्तर का प्रयोग कर लेते है या फिर कई बार यात्री अपने साथ लाया टेंट भी लगा लेते है !

मंदिर के अंदर का दृश्य

मंदिर के पुजारी जी के साथ एक फोटो

मंदिर के पिछले भाग में स्थापित एक शिवलिंग

मंदिर परिसर से दिखाई देता घाटी का एक नजारा

मंदिर परिसर से दिखाई देता एक अन्य दृश्य

जंगली जानवरों के बारे में पूछने पर उन्होनें बताया कि मंदिर के आस-पास गुलदार और अन्य जंगली जानवरों का आना आम बात है लेकिन मंदिर परिसर में कोई जीव नहीं आता ! द्वारिखाल जाने के लिए पंडित जी जंगल के रास्ते से होकर निकलते है ! इसी तरह पंडित जी से काफी देर तक बातचीत का दौर चलता रहा, 10 बजने वाले थे, यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा, वापसी का मन तो किसी का नहीं हो रहा था लेकिन हमें अपना आगे का सफर भी जारी रखना था इसलिए हमने हमने वापसी की राह पकड़ी ! वापिस आते हुए वैसे तो हमें ज्यादा समय नहीं लगना था लेकिन रास्ते में हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ कि कीर्तिखाल पहुँचने में हमें डेढ़ घंटे से भी ज्यादा लग गए ! इस घटना का जिक्र और अपनी आगे की यात्रा का वर्णन मैं अपने अगले लेख में करूंगा, फिलहाल इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ, यात्रा के अगले पड़ाव पर आपसे जल्द ही फिर मुलाकात होगी !

मंदिर से वापिस आते हुए

रास्ते की चौड़ाई आप खुद देख लो

मंदिर से वापिस आते हुए घाटी का एक नजारा

कुंड के पास बैठा अनिल, यहीं उसकी तबीयत खराब हुई

मंदिर से वापिस आते हुए रास्ते का एक दृश्य

अब जंगल में प्रवेश करने वाले है

मंदिर से वापिस आते हुए एक अन्य दृश्य

रास्ते से दिखाई देता घाटी का एक नजारा

फिलहाल जंगल सूख गया था

क्यों जाएँ (Why to go)अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये यात्रा आपको पसंद आएगी ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !

कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! बारिश के मौसम में ट्रेक करते हुए पैरों में जोंक काफी चिपकते है इसलिए थोड़ा सावधानी बरतना चाहिए !

कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 280 किलोमीटर है जिसे आप 6-7 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से कोटद्वार आप बिजनोर-नजीबाबाद से होकर जा सकते है, कोटद्वार से आगे गुमखाल होते हुए कीर्तिखाल पहुँच सकते है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 35 किलोमीटर दूर है, स्टेशन से यहाँ आने के लिए आप टैक्सी कर सकते है या फिर प्राइवेट जीप भी मिल सकती है लेकिन वो आपको सीधे कीर्तिखाल के लिए शायद ना मिले ! 

कहाँ रुके (Where to stay): कीर्तिखाल में रुकने के लिए कोई होटल नहीं है इसलिए आपको गुमखाल या उसके आस-पास कहीं होटल देखना होगा ! होटल का किराया 800 रुपए से शुरू हो जाता है आप अपनी सुविधा अनुसार होटल चुन सकते है !

क्या देखें (Places to see): कीर्तिखाल में भैरवगढ़ी और हनुमानगढ़ी के दर्शन करने के अलावा आप लैंसडाउन भी घूमने जा सकते है जो यहाँ से ज्यादा दूर नहीं है ! 


पौड़ी गढ़वाल यात्रा

  1. फरीदाबाद से कोटद्वार का सफर (Road Trip to Kotdwar)
  2. कीर्तिखाल का प्रसिद्ध भैरवगढ़ी मंदिर (Trip to Bhairav Garhi Temple, Pauri Garhwal)
  3. कीर्तिखाल का प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी मंदिर (Hanuman Garhi Temple, Pauri Garhwal)
  4. ज्वाल्पा देवी मंदिर, पौड़ी गढ़वाल (Journey to Jwalpa Devi Temple, Pauri Garhwal)
  5. पौड़ी का नागदेव मंदिर (Nagdev Temple, Pauri Garhwal)
  6. पौड़ी का कंडोलिया मंदिर (Kandolia Temple, Pauri Garhwal)
  7. पौड़ी का क्यूँकालेश्वर महादेव मंदिर (Kyukaleshwar Mahadev Mandir, Pauri Garhwal)
  8. पौड़ी से वापसी का सफर (Pauri to Faridabad Return Journey)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

Post a Comment

Previous Post Next Post