सोमवार 29 नवंबर, 2021
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यात्रा के पिछले लेख में आप पौड़ी के प्रसिद्ध कंडोलिया मंदिर के दर्शन कर चुके है, अब आगे, कंडोलिया मंदिर से चले तो कंडोलिया पार्क के सामने से होते हुए हम ऊपर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, ये मार्ग रांसी स्टेडियम होता हुआ क्यूँकालेश्वर मंदिर को चला जाता है ! जबकि कंडोलिया मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने से जाने वाला मार्ग देवप्रयाग को चला जाता है, घर वापिस आते हुए हम इसी मार्ग से आए थे ! जानकारी के अभाव में हम रांसी स्टेडियम नहीं देख पाए, हुआ कुछ यूं कि कंडोलिया पार्क के सामने से होते हुए ऊपर जाने वाले जिस मार्ग पर हम चल रहे थे, थोड़ा आगे जाने पर ये दो हिस्सों में बँट गया ! यहाँ से एक मार्ग रांसी स्टेडियम को चला जाता है, हमें लगा ये प्रतिबंधित मार्ग है इसलिए हम इस पर नहीं गए ! दूसरे मार्ग पर चलकर थोड़ा आगे बढ़ते ही हिमालय दर्शन के लिए के एक पॉइंट बनाया गया है, एक बोर्ड पर यहाँ से दिखाई देने वाली हिमालय की चोटियों के नाम भी लिखे है ! हिमालय की चोटियों के जो नज़ारे इस स्थान से दिखाई देते है उनका तो क्या ही कहना, मन प्रसन्न हो जाता है ! सुबह का समय होने के बावजूद भी मौसम साफ था, इसलिए हमें भी इन चोटियों का शानदार नजारा दिखाई दे रहा था ! यहाँ से नीचे पौड़ी की बलखाती सड़कों पर चलती गाड़ियां भी सुंदर लग रही थी ! जैसे-2 हम ऊंचाई पर बढ़ते जा रहे थे ठंड भी बढ़ती जा रही थी, और ठंड भी ऐसी कि हाथ-पैर की उँगलियाँ अकड़ने लगी थी, फिर भी यात्रा के मजे में कोई कमी नहीं आई ! यहाँ से चले तो रास्ता सुनसान था लेकिन थोड़ा आगे जाने पर कुछ नवयुवक सड़क किनारे दौड़ लगाते मिले, ये सभी शायद सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे थे ! धीरे-2 आगे बढ़ते हुए कुछ देर बाद हम मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने पहुंचे !
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क्यूँकालेश्वर महादेव मंदिर का प्रवेश द्वार |
मुख्य सड़क से मंदिर तक जाने के दो रास्ते है, हालांकि, आगे जाकर दोनों मार्ग एक हो जाते है ! जिस स्थान पर अभी हम खड़े थे वहाँ से थोड़ा आगे जाने पर एक प्रवेश मार्ग भी है जो मंदिर तक जाता है ! गाड़ियां प्रवेश मार्ग से आगे नहीं जाती, प्रवेश द्वार से आगे का सफर आपको पैदल ही तय करना होता है, लेकिन पैदल मार्ग की दूरी ज्यादा नहीं है और आस-पास के नज़ारे भी इतने शानदार है कि पैदल जाते हुए पता भी नहीं चलता और आप मंदिर तक पहुँच जाते है ! गाड़ी खड़ी करके हम प्रवेश द्वार से होते हुए मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए, यहाँ कुछ दूर तक तो सीढ़ियाँ बनी है लेकिन जब दूसरे प्रवेश द्वार से आने वाला मार्ग भी आकर इसमें मिल जाता है तो सीढ़ियाँ खत्म हो जाती है लेकिन चढ़ाई भरा मार्ग जारी रहता है ! जिन लोगों को सीढ़ियाँ चढ़ने में दिक्कत है वो दूसरा मार्ग ले सकते है क्योंकि उसपर शुरुआत से ही सीढ़ियाँ नहीं है, वापिस आते हुए हम इसी मार्ग से आए थे ! कुछ देर चलने के बाद हम मंदिर के सामने पहुँच गए, यहाँ एक पक्का बरामदा बना है जहां से मंदिर परिसर में जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी है ! मंदिर परिसर के चारों ओर ऊंचे-2 चीड़ और अन्य कई प्रजातियों के पेड़-पौधे लगे है ! ये मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर बना है, जिसकी बाहरी दीवार पर शंकर जी की प्रतिमा बनी है ! मुख्य प्रवेश द्वार पर एक बड़ा घंटा लगा है, मंदिर परिसर में दाखिल होते ही बाईं ओर चलकर मंदिर का मुख्य भवन है ! जूते एक तरफ उतारकर हम सब मुख्य भवन की ओर चल दिए, फर्श पर चलते हुए ठंड तो बहुत लग रही थी, लेकिन हमारी आस्था इस ठंड पर भारी थी ! वैसे, फिलहाल मंदिर परिसर में हमारे अलावा गिनती के लोग ही थे !
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मंदिर जाने का मार्ग |
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हिमालय दर्शन के लिए बना स्थान |
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मंदिर जाते हुए दिखाई देता पौड़ी शहर और घाटी का नजारा |
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सड़क मार्ग से दिखाई देता प्रवेश द्वार |
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क्यूँकालेश्वर मंदिर की जानकारी यहाँ अंकित है |
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मंदिर का द्वितीय प्रवेश द्वार |
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मंदिर के सामने का एक दृश्य |
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मंदिर के सामने बरामदे का एक नजारा |
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मंदिर परिसर के चारों ओर हरियाली |
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मंदिर के आस-पास फैली हरियाली |
चलिए, मुख्य भवन में जाने से पहले आपको इस मंदिर से संबंधित कुछ जरूरी जानकारी दे देता हूँ, उत्तराखंड को देवों की भूमि ऐसे ही नहीं कहा जाता, यहाँ कई प्रसिद्ध और ऐतिहासिक धार्मिक स्थल है, ऐसा ही एक स्थल है पौड़ी का क्यूँकालेश्वर महादेव मंदिर ! इस मंदिर को यमराज जी की तपोस्थली के रूप में भी जाना जाता है, समुद्रतल से 2200 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये मंदिर पौड़ी शहर से मात्र 2.5 किलोमीटर दूर है ! प्राचीन मंदिर होने के कारण इसे पौड़ी के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में गिना जाता है, चारों ओर घने जंगलों से घिरे इस मंदिर परिसर से शानदार नज़ारे दिखाई देते है ! एक पौराणिक कथा के अनुसार ताड़कासुर के अत्याचारों से परेशान होकर यमराज जी ने कीनाश पर्वत पर भगवान शिव की उपासना की थी ! उनकी उपासना से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा ! वर में यमराज ने भोलेनाथ से मांगा कि वो माता पार्वती संग इस पर्वत पर निवास करें, शिवजी ने उन्हें आश्वासन दिया ! वैसे क्यूँकालेश्वर मंदिर की वास्तुकला कुछ हद तक केदारनाथ से मिलती-जुलती है, इस मंदिर में भगवान शिव, माता पार्वती, गणपति, और कार्तिकेय जी की मूर्तियाँ स्थापित है ! जबकि मंदिर के पिछले भाग में एक अन्य मंदिर में प्रभु राम, लक्ष्मण और माता सीता की मूर्तियाँ स्थापित है ! एक अन्य मान्यता के अनुसार मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था ! मंदिर परिसर से हिमालय पर्वत के अलावा अलकनंदा घाटी और पौड़ी शहर का शानदार नजारा दिखाई देता है ! यहाँ से डेढ़ किलोमीटर दूर एशिया का दूसरा सबसे ऊंचा रांसी का स्टेडियम भी है, जिसे जानकारी के अभाव में हम लोग नहीं देख पाए !
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बरामदे से दिखाई देता मंदिर |
चलिए, वापिस यात्रा पर लौटते है जहां हम प्रवेश द्वार से निकलकर मुख्य भवन के सामने पहुँच चुके है ! जैसा कि मैं बता चुका हूँ कि मंदिर परिसर में गिनती के लोग ही थे इसलिए मुख्य भवन का द्वार बंद ही था जिसे खोलते हुए हम सब अंदर दाखिल हुए ! मुख्य भवन के बीचों-बीच एक शिवलिंग स्थापित किया गया है, आस-पास पूजा सामग्री रखी थी ! इस शिवलिंग के चारों ओर लकड़ी का फ्रेम बनाकर एक कलश लटकाया गया है जहां से एक जलधारा शिवलिंग पर अनवरत गिरती रहती है, शिवलिंग पर लकड़ी के फ्रेम के ऊपर चांदी के छत्र भी लटकाए गए है ! यहाँ बैठकर पूजा करने के लिए शिवलिंग के बगल में एक लकड़ी की पीढ़ी भी रखी गई है, शंख, घंटी, पुष्प और आरती करने का पात्र भी यहाँ रखा गया था ! मुख्य भवन के कोने में रखे लोटे को लेकर हमने शिवलिंग पर जल चढ़ाया और फिर यहाँ बैठकर बारी-2 से कुछ देर प्रार्थना की, यहाँ बैठकर जो आत्मिक सुख हमें मिला, वो अकल्पनीय था ! बड़े शहरों के मंदिरों में अव्यवस्था के चलते भक्तजन अपने पूजनीय देवों से संवाद स्थापित करने से वंचित रह जाते है, लेकिन यहाँ आप शांत रहकर अपनी प्रार्थना कर सकते है और समय की भी यहाँ कोई पाबंदी नहीं होती ! इसलिए ऐसे दुर्गम स्थानों पर बने मंदिर सदैव ही मेरे लिए आकर्षण का केंद्र रहते है, और अपनी यात्राओं के दौरान में ऐसे मंदिरों को भी यात्रा सूची में जरूर शामिल करता हूँ ! मुख्य भवन से प्रार्थना करके उठे तो मंदिर परिसर में बने अन्य देवी-देवताओं के मंदिरों में जाकर भी पूजा-अर्चना की !
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मुख्य भवन का एक दृश्य |
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मुख्य भवन में स्थापित मूर्तियाँ |
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मुख्य भवन में स्थापित कुछ अन्य मूर्तियाँ |
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मुख्य भवन में स्थापित शिवलिंग |
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शिवलिंग के पास रखी पूजा सामग्री |
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मुख्य भवन का एक दृश्य |
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मुख्य भवन में स्थापित नागदेव |
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मंदिर परिसर में राधा कृष्ण की मूर्ति |
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शिवलिंग का एक और दृश्य |
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मंदिर परिसर का एक दृश्य |
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क्यूँकालेश्वर मंदिर परिसर |
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मुख्य भवन के सामने |
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मंदिर परिसर |
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मुख्य भवन के बाहर बना एक छोटा कुंड, शिवलिंग पर चढ़ाया जल इसी कुंड में गिरता है |
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मंदिर परिसर का एक अन्य दृश्य |
मुख्य भवन के बाहर उत्तर दिशा की ओर एक छोटा कुंड भी है, शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल और दूध बहकर इसी कुंड में गिरता है ! मंदिर के पिछले भाग में घने वृक्ष है, जो इस मंदिर की सुंदरता को निखारते है ! मंदिर परिसर में कुछ देर घूमने के बाद हमने वापसी की राह पकड़ी, जब हम वापिस आ रहे थे तब तक काफी श्रद्धालु यहाँ दर्शन के लिए आ चुके थे ! मंदिर से नीचे आते हुए हम सीढ़ियों से ना आकर पैदल मार्ग से लौटे, इस मार्ग में एक स्थान पर मंदिर से संबंधित जानकारी अंकित है ! पैदल मार्ग से नीचे आते ही सामने एक विश्राम स्थली बनाई गई है, एक धर्मशाला भी है, जहां शायद रुकने की व्यवस्था हो जाती है ! अपनी गाड़ी की ओर वापिस आते हुए सड़क किनारे हमें एक पुरानी टूटी हुई जेसीबी मिल गई, इस पर बैठकर सबने खूब फोटो खिंचवाए ! गाड़ी लेकर मंदिर से चले तो नीचे पौड़ी जाने में हमें ज्यादा देर नहीं लगी, वापसी में हमें कुछ अन्य यात्री भी मिले जो मंदिर की ओर जा रहे थे ! कंडोलिया पार्क के सामने से होते हुए हम एक बार फिर मैंने कल शाम वाली चाय की दुकान पर जाकर गाड़ी रोक दी ! ऊपर मंदिर के पास ठंड कुछ ज्यादा ही लग रही थी जिसका असर अभी तक था, यहाँ चाय पीकर ठंड से थोड़ा राहत मिली ! चाय खत्म करके यहाँ से चले तो कंडोलिया मंदिर के सामने वाले मार्ग से होते हुए हमने वापसी की राह पकड़ी, पौड़ी से निकलते हुए सड़क किनारे एक स्थान से हिमालय का शानदार नजारा दिखाई दे रहा था, यहाँ भी कुछ देर गाड़ी रोककर प्रकृति के इस सौन्दर्य का आनंद लिया ! चलिए, फिलहाल इस लेख पर विराम लगाता हूँ, अगले लेख में आपको वापसी के सफर के किस्से सुनाऊँगा !
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मंदिर से वापिस आने का मार्ग |
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मंदिर से वापसी का पैदल मार्ग |
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प्रवेश द्वार के पास बनी एक विश्राम स्थली |
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मंदिर के सामने मुख्य मार्ग से दिखाई देता एक दृश्य |
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मुख्य मार्ग से दिखाई देती एक अन्य इमारत |
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मंदिर के सामने मुख्य मार्ग |
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दाईं तरफ बनी सीढ़ियों से पैदल मार्ग शुरू हो जाता है |
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चाय की दुकान से दिखाई देता चौराहा |
क्यों जाएँ (Why to go): अगर आपको धार्मिक स्थलों पर जाना पसंद है और आप उत्तराखंड में कुछ शांत और प्राकृतिक जगहों की तलाश में है तो निश्चित तौर पर ये यात्रा आपको पसंद आएगी ! शहर की भीड़-भाड़ से निकलकर इस मंदिर में आकर आपको मानसिक संतुष्टि मिलेगी ! इस मंदिर के अलावा आप आस-पास के कुछ अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कर सकते है !
कब जाएँ (Best time to go): आप यहाँ साल के किसी भी महीने में जा सकते है, हर मौसम में यहाँ अलग ही नजारा दिखाई देता है ! लेकिन यहाँ जाने के लिए बारिश का मौसम सबसे उपयुक्त है क्योंकि तब मंदिर के आस-पास की हरियाली देखते ही बनती है !
कैसे जाएँ (How to reach): दिल्ली से इस मंदिर की दूरी मात्र 380 किलोमीटर है जिसे आप 7-8 घंटे में आसानी से पूरा कर सकते है ! दिल्ली से यहाँ आने के लिए सबसे बढ़िया मार्ग ऋषिकेश-देवप्रयाग होकर है ! अगर आप ट्रेन से यहाँ आना चाहते है तो कोटद्वार यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो इस मंदिर से लगभग 106 किलोमीटर दूर है, जबकि हरिद्वार रेलवे स्टेशन से पौड़ी 136 किलोमीटर दूर है ! लेकिन हरिद्वार से चौड़ा मार्ग और यातायात के बढ़िया साधन होने के कारण लोग इसे ज्यादा पसंद करते है ! निजी वाहन से आप अपनी सहूलियत अनुसार किसी भी मार्ग को चुन सकते है !
कहाँ रुके (Where to stay): पौड़ी में रुकने के लिए आपको कई होटल में जाएंगे जिनका किराया 1000 रुपए से शुरू हो जाता है ! पौड़ी में वैसे कई धर्मशालाएं भी है, अकेले यात्रा के दौरान या अगर कम बजट में रुकना हो तो आप इन धर्मशालाओं में भी रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see): पौड़ी में कंडोलिया मंदिर के अलावा अन्य कई दर्शनीय स्थल है जिसमें नागदेव मंदिर, क्यूँकालेश्वर मंदिर, खिरसू, ज्वालपा देवी मंदिर, डांडा नागराजा मंदिर और कुछ अन्य स्थलों का भ्रमण कर सकते है !