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नहा-धोकर तैयार होने के बाद मैने नाश्ता किया और उदय के साथ एक मोटरसाइकल पर सवार होकर लखनऊ भ्रमण के लिए चल दिया ! तहज़ीब वाले इस शहर की आबो-हवा कुछ ऐसी है कि यहाँ आने के बाद आप भी इसके रंग में ही रंग जाते है ! लखनऊ भ्रमण से पहले थोड़ी जानकारी इस शहर के इतिहास के बारे में दे देता हूँ ! लखनऊ मुगल काल में अवध प्रदेश के अंतर्गत आता था, मुगल शासक हुमायूँ ने अवध के अधिकतर हिस्से को जीतकर अपनी सल्तनत में मिला लिया था ! मुगल काल में अवध का संचालन दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत होता था ! 1719 तक अवध प्रदेश मुगल सल्तनत का एक हिस्सा था जिसकी देखरेख मुगल सम्राट द्वारा चुने गए नवाब या नज़ीम के द्वारा की जाती थी ! समय के साथ जब मुगलों की ताक़त कम होने लगी तो उनके द्वारा स्थापित इन प्रदेशों के नवाब और नज़ीम मजबूत हो गए ! इस बीच अवध भी पहले से काफ़ी मजबूत और स्वतंत्र हो गया, फिर 1722 में शादत ख़ान अवध के पहले नवाब बने !
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बड़ा इमामबाड़ा (A view from Bada Imambara, Lucknow) |
लखनऊ के नवाबों को पहले अवध के नवाब के नाम से जाना जाता था, पर अवध के चौथे नवाब आसिफ़-उद्-दौला ने जब गद्दी संभाली तो अवध की राजधानी को फ़ैज़ाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दिया ! इसलिए बाद में अवध के नवाबों को लखनऊ के नवाब के नाम से जाना जाने लगा ! आसिफ़-उद्-दौला के शासन काल में लखनऊ में कई इमारतों का निर्माण हुआ, जिसमें दोनों इमामबाड़े और रूमी दरवाजा प्रमुख है ! आज मैं आपको पुराने लखनऊ की सैर पर लेकर जाने वाला हूँ जहाँ आप मेरे साथ बड़ा इमामबाड़ा और भूल-भुलैया देखेंगे ! गोमती नदी के किनारे स्थित बड़े इमामबाड़ा का निर्माण अवध के चौथे नवाब आसिफ़-उद्-दौला ने सन 1784 में करवाया था, कई वर्षों की मेहनत के बाद ये इमामबाड़ा 1791 में बनकर तैयार हुआ ! आसिफ़-उद्-दौला द्वारा बनवाए जाने के कारण इस इमामबाड़े को आसिफी इमामबाड़ा के नाम से भी जाना जाता है ! बड़ा इमामबाड़ा शिया मुस्लिम का एक तीर्थस्थान है जहाँ ये लोग अजादारी के लिए आते है, लखनऊ में मोहर्रम के जुलूस और अनुष्ठान को अजादारी के नाम से बुलाया जाता है ! इस इमामबाड़े में मोहर्रम के मौके पर ताज़िया निकाला जाता है ! बड़े इमामबाड़े को लखनऊ की शानदार इमारतों में शुमार किया जाता है !
कहते है कि अवध में सन 1784 में एक भयंकर अकाल पड़ा, उस समय लखनऊ अवध की राजधानी था और ये शहर भी इस अकाल से अछूता नहीं रहा ! लगभग 8 से 10 सालों तक पड़े इस अकाल में लोगों के पास रोज़ी-रोटी जुटाने के भी लाले पड़ गए ! चारों तरफ भुखमरी के हालात बन गए, रईस लोग भी इस अकाल से नहीं बच पाए ! तब अवध के तत्कालीन नवाब आसिफ़-उद्-दौला ने लोगों को रोज़गार देने के मकसद से इस इमामबाड़े का निर्माण कार्य शुरू करवाया ! नवाब चाहते तो लोगों को पैसे बाँट भी सकते थे पर कुछ लोग इसके पक्ष में नहीं थे उनका तर्क था कि इस तरह तो लोगों को हराम (मुफ़्त) मुफ़्त की आदत पड़ जाएगी ! इस इमामबाड़े को बनाने की कोई पूर्व योजना भी नहीं थी इसका निर्माण तो लोगों को रोज़गार देने के मकसद से किया गया ! उस समय एक कहावत भी काफ़ी लोकप्रिय हो गई थी "जिसे ना दे मौला, उसे दे आसिफ़-उद्-दौला" ! इस इमामबाड़े के निर्माण से लगभग 20 हज़ार लोगों को रोज़गार मिला, इसमें जो लोग कारीगर थे वो दिन में निर्माण कार्य करते थे जबकि जिन लोगों के पास कोई हुनर नहीं था या जो रईस लोग थे वो रात में काम करते थे !
कहते है कि दिन में साधारण लोगों से इमामबाड़े का निर्माण कार्य करवाया जाता था और रात के अंधेरे में रईस लोगों से उस निर्माण किए हुए भाग को तुड़वाने का काम लिया जाता था ! रईस लोग अपनी साख बनाए रखने के लिए दिन के उजाले में काम करने में शर्म महसूस करते थे लेकिन जीवन यापन करने के लिए काम करना ज़रूरी भी था ! इसी तरह जिन लोगों के पास हुनर नहीं था वो दिन में यहाँ क्या करते इसलिए अपनी आजीविका चलाने के लिए ये लोग रात के अंधेरे में काम करते थे ! इस इमामबाड़े को बनाने में उस समय 5 से 10 लाख रुपए का खर्च आया, इमामबाड़ा बन जाने के बाद भी इसके रख-रखाव पर अवध के नवाब हर साल लाखों रुपए खर्च करते थे ! इमामबाड़े के बाहर पहुँचकर हमने पार्किंग स्थल में अपनी मोटरसाइकल खड़ी की और इमामबाड़े के प्रथम द्वार से अंदर प्रवेश किया ! यहाँ से अंदर आने पर सामने एक गोल मैदान है जिसमें खूब हरियाली है, इस मैदान के किनारे-2 एक रास्ता इमामबाड़े के दूसरे द्वार तक जाता है ! प्रथम द्वार से अंदर आते ही आपकी दाईं तरफ सामान रखने के लिए क्लॉक रूम भी बना है, कैमरे का टिकट भी यहीं से लेना होता है !
साधरण कैमरे का शुल्क 5 रुपए है जबकि वीडियो कैमरे के लिए आपको 25 रुपए अदा करने होते है ! मैदान के किनारे से चलते हुए हम दूसरे प्रवेश द्वार के पास पहुँचे, यहीं पर टिकट घर है जहाँ से अंदर जाने की टिकटें मिलती है ! अलग-2 इमारत में जाने का अलग-2 शुल्क लगता है जबकि अगर आप एकीकृत पास बनवा लेंगे तो आपको सुविधा रहेगी ! एकीकृत पास 50 रुपए का है और इसमें आप 5 भवन देख सकते है जिसमें बड़ा इमामबाड़ा, शाही बावली, भूल-भुलैया, छोटा इमामबाड़ा, शाही हमाम और पिक्चर गैलरी शामिल है ! वैसे अधिकतर लोग बड़ा इमामबाड़ा और इससे सटी हुई इमारतें देखकर ही वापिस लौट जाते है क्योंकि छोटा इमामबाड़ा यहाँ से एक किलोमीटर आगे है ! द्वितीय द्वार पर ही कुछ दुकानें सजी है जहाँ से आप अपने लिए कुछ स्मृति-चिन्ह ले सकते है, इमामबाड़े का एकीकृत पास लेकर हमने दूसरे द्वार से अंदर प्रवेश किया ! इमामबाड़े के अंदर जाने पर दाईं ओर आसिफी मस्जिद है जबकि बाईं ओर शाही बावली है, प्रवेश द्वार के ठीक सामने इमामबाड़े का मुख्य भवन है ! इस इमामबाड़े का मुख्य भवन 50 मीटर लंबा, 16 मीटर चौड़ा और 15 मीटर ऊँचा है !
इमामबाड़े की विशेषता है कि इसे बनाने में कहीं भी किसी स्तंभ, बीम, या लोहे का प्रयोग नहीं हुआ है ! इमामबाड़े के मुख्य भवन के बीचो-बीच आसिफ़-उद्-दौला का मकबरा बना है ! इमामबाड़े के साथ ही भूल-भुलैया बनी है जो अनजाने प्रवेश करने वालो को रास्ता भुला कर अंदर जाने से रोकती थी ! इस भूल-भुलैया में एक जैसे दिखने वाले 489 दरवाजे है, जो किसी को भी भटकाने के लिए काफ़ी है ! आसिफी मस्जिद में गैर-मुस्लिम लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है जबकि बाकी सभी इमारतों में ऐसी कोई पाबंदी नहीं है ! इमामबाड़े में आकर हमने एक गाइड कर लिया, जिसका नाम था सलीम ! सलीम ने हमें इमामबाड़े के बारे में काफ़ी जानकारी दी, जिनकी पुष्टि मैने बाद में आकर इंटरनेट पर की, इनमें से अधिकतर जानकारियाँ सही थी ! सलीम हमारे अलावा एक और ग्रुप को भी गाइड कर रहा था इसलिए हम भी उसी ग्रुप में शामिल हो गए ! मेरे हिसाब से इमामबाड़े में अकेले घूमने में भी कोई दिक्कत नहीं है लेकिन गाइड कर लेने से आपको इमारत से जुड़ी कुछ अहम जानकारियाँ भी मिल जाती है !
अकेले घूमने पर आप बाकी लोगों का अनुसरण करते हुए आप भी घूम ही लेंगे, पर रास्ता भटकने पर दिक्कत हो सकती है, गाइड का तो यहाँ रोज का घूमना है इसलिए वो सभी रास्तों से अच्छी तरह वाकिफ़ है ! इमामबाड़े में जूते-चप्पल पहनकर जाने की अनुमति नहीं है, कारण पूछे बिना सलीम ने अपने आप ही बताया कि ऐसा करने से शाम को इमामबाड़ा बंद करते समय यहाँ के अधिकारियों को जूते-चप्पलो से इस बात का अनुमान लग जाता है कि इमामबाड़े में कोई रह तो नहीं गया ! जूते उतारकर हमने इमामबाड़े के मुख्य हाल में प्रवेश किया, और सलीम ने इमारत से जुड़ी जानकारी देनी शुरू कर दी ! वास्तुकला के लिहाज से ये इमामबाड़ा अपने दौर की शानदार इमारतों में शुमार होता था ! बड़े इमामबाड़ा की वास्तुकला मुगल शैली को प्रदर्शित करती है जो पाकिस्तान के लाहौर में स्थित बादशाही मस्जिद से काफ़ी मिलती-जुलती है ! इसे दुनिया की पाँचवी सबसे बड़ी मस्जिद का खिताब भी हासिल है ! अवध के नवाब इस इमामबाड़े का प्रयोग अपने दरबार की तरह करते थे जहाँ लोगों की समस्याएँ सुनी जाती थी ! इमामबाड़े में दो अलग-2 हाल बने है छोटा हाल दीवान-ए-ख़ास था जबकि बड़ा हाल दीवान-ए-आम था !
दीवान-ए-ख़ास में नवाब अपने रियासत से जुड़े लोगों से सलाह मशवरा करते थे जबकि दीवान-ए-आम में आम लोगों की फरियाद सुनी जाती थी ! आजकल दीवान-ए-आम वाले भवन का प्रयोग शिया मुस्लिम लोग अजादारी के लिए करते है ! दीवान-ए-ख़ास में नवाब के अलावा उनकी बेगमों के बैठने की भी व्यवस्था थी, हॉल के अंदर चारों तरफ ऊपरी भाग में बेगमों के बैठने के लिए सिंहासन लगे थे जो आज भी मौजूद है ! दीवान-ए-आम में नवाब के बैठने के लिए एक ऊँचा चबूतरा बना है जहाँ कभी सिंहासन भी रहा होगा, आजकल इसे ढक दिया गया है ! ये भी माना जाता है कि पहले इस इमामबाड़े के अंदर से ही एक रास्ता गोमती नदी के लिए भी जाता था, जिसे बाद में बंद कर दिया गया ! इस भवन के दीवारों और छत की संरचना कुछ इस तरह की है कि एक कोने में खड़ा होकर यदि कोई व्यक्ति धीमे से कुछ कहे तो दूसरे कोने में खड़े आदमी को वो बात एकदम साफ सुनाई देती है ! इस बात को प्रमाणित करने के लिए यहाँ के गाइड आपको माचिस की तीली जलाकर और कागज फाड़कर भी दिखाते है, जिसकी आवाज़ दूसरे कोने पर खड़े लोगों को साफ सुनाई देती है !
शायद ऐसी ही कलाकृतियों के कारण कुछ मुहावरे जैसे "दीवारों के भी कान होते है" लोकप्रिय हुए ! इमामबाड़े के भवन में तीन मुख्य कक्ष है जिसमें से एक की छत तो चाइनीज प्लेट के आकार की है, दूसरी खरबूजे के आकर की और तीसरी पार्शियाँ शैली से बनी है ! इमामबाड़ा घूमने के बाद हम सब भूल-भुलैया देखने के लिए चल दिए, जिसका प्रवेश द्वार इमामबाड़े से बाहर है ! इसलिए हम सब इमामबाड़े से बाहर आकर भूल-भुलैया के प्रवेश द्वार की ओर चल दिए ! अपना एकीकृत पास दिखाकर हमने अंदर प्रवेश किया, अंदर जाते ही सीधी खड़ी सीढ़ियाँ है, जो ऊपर जाकर एक छत पर खुलती है ! सीढ़ियों की ऊँचाई भी काफ़ी अधिक है इसलिए अच्छे-अच्छों के पैर दर्द कर जाते है ! हम लोग सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर पहुँच गए, जिसके बगल में ही एक गलियारा था, जिसमें बहुत से झरोखे और गुप्त दरवाजे थे ! इन दरवाजो और झरोखों का आकार कुछ इस तरह का है कि ये इमारत के ऊपरी भार को अपने तक ही रोक लेते है ! भूल-भुलैया के दरवाज़ों और झरोखों का आकार छोटा होने का एक कारण ये भी था कि उस दौर में बहुत से ऐसे लोग भी थे जिन्हें अपने ओहदे या ताक़त पर गुरूर हुआ करता था !
नवाब के पास बेशुमार दौलत थी, लेकिन इन झरोखों से गुज़रते हुए वो भी झुक कर निकलते थे ! इस बात से उन्होनें ऐसे लोगों को पैगाम दिया कि बेशुमार दौलत होने के बावजूद भी नवाब साहब खुद भी कहीं ना कहीं झुकते है ! हम सब इन गलियारे से होते हुए कुछ झरोखों से निकलकर एक गुप्त दरवाजे से इमामबाड़े के ऊपरी भाग में पहुँच गए ! ये भाग ज़मीन से 40-45 फीट ऊपर इमामबाड़े के बड़े हाल के भीतरी भाग में चारों ओर बना एक छज्जा था ! ये छज्जा बहुत संकरा था, जो आगे की ओर झुका हुआ था, इसलिए यहाँ सँभल कर चलना था, ज़्यादा किनारे जाने पर मनाही थी ! सभी लोग छज्जे के किनारे-2 खड़े हो गए तब सलीम ने छज्जे के दूसरे छोर पर जाकर माचिस की तीली जलाई और कुछ कागज भी फाडे, जिसकी आवाज़ छज्जे पर खड़े सभी लोगों को दीवार पर कान लगाने पर सुनाई दी ! सलीम ने हमें बताया कि इमामबाड़ा नवाब का इबादतखाना था और चारबाग रेलवे स्टेशन हिफाज़तखाना ! मतलब इमामबाड़ा पूजा घर था और चारबाग रेलवे स्टेशन नवाब का महल, जो बाद में सरकार ने कब्जा करके रेलवे स्टेशन बना दिया ! हालाँकि, मुझे इस बात पर यकीन नहीं हुआ और मैं इस बात की पुष्टि भी नहीं कर पाया, अगर कोई सज्जन इस बात के जानकार हो तो मुझे भी ज़रूर बताए !
इमामबाड़े के ऊपर पहुँचने के बाद हम सब ज़मीन से 200 फीट ऊपर आ चुके थे, यहाँ सलीम ने तर्क दिया कि अगर ये बात वो हमें पहले बता देता कि हम 200 फीट ऊपर जाने वाले है तो आधे लोग नीचे से ही वापिस लौट जाते ! माहौल को जीवंत रखने के लिए सलीम बीच-2 में जुमले भी मारता रहा, ताकि किसी को बोरियत ना हो ! फिर उसने बताया कि गदर फिल्म की शूटिंग भी इस इमामबाड़े में हुई थी, इमामबाड़े परिसर में वो नलकूप आज भी मौजूद है जिसे गदर फिल्म में सन्नी देओल द्वारा उखाड़ते हुए दिखाया गया है ! इस फिल्म का काफ़ी भाग लखनऊ में फिल्माया गया है जैसे एक भाग में सन्नी के ट्रक को एक विस्फोट में उड़ते हुए दिखाया गया है वो दृश्य गोमती नदी के ऊपर फिल्माया गया है ! इसके बाद सलीम अपने साथ आए सभी लोगों की ग्रुप फोटो खींचने में लगा गया, यहाँ से काफ़ी शानदार नज़ारे दिखाई दे रहे थे ! थोड़ी देर वहाँ रुकने के बाद हम सब वापिस उन्हीं रास्तों से होते हुए नीचे की ओर चल दिए जिन रास्तों से होकर हम ऊपर आए थे ! अगले लेख में आपको शाही बावली और छोटे इमामबाड़े की सैर पर लेकर चलूँगा !
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लखनऊ भ्रमण का हमारा साथी |
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बड़ा इमामबाड़ा जाते समय, सामने रूमी दरवाजा है (On the way to Bada Imambara) |
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बड़ा इमामबाड़ा का प्रवेश द्वार (Entrance of Bada Imambara, Lucknow) |
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A view of Bada Imambara, Lucknow |
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A Glimpse of Bada Imambara, Lucknow |
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इमामबाड़ा का टिकट घर (Ticket Counter of Bada Imambada, Lucknow) |
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Camera Ticket |
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इमामबाड़ा टिकट शुल्क (Tiket Rate List) |
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Guide Rate List |
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इमामबाड़ा का प्रवेश टिकट (Gate Pass of Imambara) |
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Bada Imambaa of Lucknow |
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Garden in Bada Imambara |
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आसिफी मस्जिद (Aasifi Masjid, Bada Imambara) |
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इमामबाड़े से दिखाई देता प्रवेश द्वार (Entry Gate of Bada Imambara) |
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इमामबाड़ा परिसर का एक दृश्य (A view from Bada Imambada) |
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इमामबाड़ा परिसर का एक दृश्य (A view from Bada Imambada) |
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इमामबाड़ा का मुख्य हाल (A view of Main Hall, Bada Imambada) |
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Inner view of Bada Imambada |
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एक फोटो मेरी भी हो जाए (Bada Imambada) |
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नवाब की बेगमों के लिए ऊपर छत के पास बना बैठने का स्थान |
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छत पर की गई कलाकारी |
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मुख्य हाल के अंदर का एक दृश्य (A view of Bada Imambara) |
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मुख्य हाल के अंदर का एक दृश्य |
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इमामबाड़े के चबूतरे से दिखाई देता एक दृश्य |
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भूल-भुलैया का प्रवेश द्वार (Entrance to Bhool Bhulaiya) |
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ऊपर जाने की सीढ़ियाँ |
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इन्हीं झरोखों से होकर हम भूल-भुलैया में गए |
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भूल-भुलैया के छज्जे से दिखाई देता दृश्य (A view from Bhool Bhullaiya Balcony) |
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भूल-भुलैया के छज्जे से दिखाई देता दृश्य |
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भूल-भुलैया के छज्जे में जाते लोग |
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भूल-भुलैया के छत का एक दृश्य |
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भूल-भुलैया के छत का एक दृश्य (A view from Bhool Bhullaiya Terrace) |
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ऊपर से दिखाई देता एक दृश्य (A view from top) |
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इमामबाड़े की छत का एक दृश्य |
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आसिफी मस्जिद का एक दृश्य (A view of Aasifi Masjid, Lucknow) |
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इमामबाड़े परिसर का एक और दृश्य |
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प्रवेश द्वार पर सजी दुकानें (A stall near Bada Imambada) |
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प्रवेश द्वार पर सजी दुकानें |
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प्रवेश द्वार पर सजी दुकानें |
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !
कब जाएँ (Best time to go Lucknow): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !
कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !
क्या देखें (Places to see in Lucknow): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !
क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !
अगले भाग में जारी...
Yaad taza kar di aap ke lekh ne .....bahuth acche
ReplyDeletehttp://maheshndivya.blogspot.in/2013/10/sham-e-awadh-lucknow.html
धन्यवाद सेमवाल जी, सुनकर अच्छा लगा कि लेख पढ़कर आपको अपनी यात्रा याद आ गई ! आपके लेख भी मैं अक्सर पढ़ता हूँ और आपका अवध वाला लेख भी पढ़ा है मैने !
Deleteमेरा भी मन बहुत दिनों से लखनऊ घूमना का कर रहा है।जानकारी अछि है।जल्द ही मे भी यहा भरमन करना वाला हु।फोटो तो लाजवाब है।
ReplyDeleteजी बिल्कुल, ज़रूर जाइए लखनऊ घूमने ! शानदार जगहें है वहाँ देखने के लिए, जिनका वर्णन में अपने आने वाले लेखों में करने वाला हूँ !
Deleteलखनऊ के ठाटबाट तो सुने थे आज देख भी लिए बहुत खूबसूरत फोटु
ReplyDeleteधन्यवाद बुआ जी !
Deleteआपकी लखनऊ यात्रा तो शानदार रहीं।
ReplyDeleteबिल्कुल, शानदार यात्रा रही गुप्ता जी ! उम्मीद है आपने इस यात्रा के सारे भाग पढ़े होंगे !
Deleteसबसे पहली बात धार्मिक स्थल है इसलिए लोग बिना जूते चप्पल के जाते है और आप वाली बात भी सही है,जो हॉल है वो ना कोई दीवान ए ख़ास है ना आम वो हॉल सिर्फ मोहर्रम अजादारी (सोग) मनाने के लिए है,वो कुर्सियां रानी के बैठने के लिए नहीं थी धार्मिक स्थल में रानिया उप्पर क्यों बैठीगी ये सिर्फ इस लिए की उस वक़्त बिजली नहीं थी तो सिपाही मशाल जला के खड़े रहते थे रोशनी के लिए
ReplyDeleteजी ये जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद !
Deleteअपने लेख के माध्यम से बड़ा इमामबाड़ा घुमाने के लिए धन्यवाद !
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