खूबसूरत रूमी दरवाजा और हुसैनाबाद क्लॉक टावर (History of Rumi Darwaja and Husainabad Clock Tower)

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रूमी दरवाजा

छोटे इमामबाड़े से बाहर आने के बाद हमने पार्किंग में खड़ी अपनी मोटरसाइकल ली और मुख्य सड़क पर चल दिए ! यहाँ मैं आपको एक जानकारी देना चाहूँगा कि लखनऊ में अधिकतर जगहों पर मोटरसाइकल की पार्किंग का शुल्क 10 रुपए था, एक-दो जगहों पर ये ज़रूर 20 रुपए था ! वैसे लखनऊ की भीड़-भाड़ वाली जगहों पर घूमने के लिए बाइक सबसे बढ़िया साधन है, जो भीड़-भाड़ और संकरी गलियों से भी आसानी से निकल जाती है ! अगर गाड़ी में घूमना हो तो अतिरिक्त समय लेकर चलना होगा क्योंकि यहाँ के मुख्य चौराहों पर अक्सर जाम लगा रहता है ! छोटा इमामबाड़ा आते समय रास्ते में हम रूमी दरवाजे से होकर आए थे, ये भी लखनऊ की खूबसूरत धरोहरों में से एक है ! चलिए, इस लेख के माध्यम से आप लोगों को रूमी दरवाजे के बारे में ही बता देता हूँ !

rumi darwaja
रूमी दरवाजे का एक दृश्य (A Glimpse of Rumi Darwaja)

रूमी दरवाजे का निर्माण भी अवध के नवाब आसिफ़-उद्-दौला ने सन 1784 में करवाया था, इस विशाल दरवाजे को बनकर तैयार होने में 2 साल का समय लगा ! इस दरवाजे का निर्माण भी अकाल पीड़ित लोगों को सहायता स्वरूप काम देने के लिए किया गया था जिसका विस्तारपूर्वक वर्णन मैं अपने पिछले लेख में कर चुका हूँ ! इमामबाड़े, भूल-भुलैया, शाही बावली और आसिफी मस्जिद के साथ-2 रूमी दरवाजे की रूपरेखा भी उस समय के मशहूर वास्तुकार किफायत-उल्लाह ने तैयार की थी ! रूमी दरवाजा अवध वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, इस दरवाजे की बनावट तुर्की के सुल्तान के दरबार के प्रवेश द्वार से काफ़ी मिलती है इसलिए लोग रूमी दरवाजे को तुर्किश गेट के नाम से भी जानते है ! बड़े इमामबाड़ा के पास मौजूद इस दरवाजे की ऊँचाई 62 फीट है और इसके ऊपरी भाग में छतरीनुमा आकृतियाँ बनी हुई है ! पुराने समय में इस दरवाजे के ऊपरी भाग में लैंप रखे हुए थे जो रात के अंधेरे में भी इस दरवाजे को रोशनी से जगमग करते थे ! 

रूमी दरवाजे को लखनऊ का प्रवेश द्वार भी माना जाता है ! इन पाँचों इमारतों को बनाने में उस दौर में लगभग 1 करोड़ रुपए की लागत आई थी, और इनके रख-रखाव पर भी हर साल लाखों रुपए खर्च हो जाते थे ! इन सभी इमारतों के निर्माण में लखौरी ईंटों और बादामी चूने का खूब प्रयोग हुआ था ! वैसे लखनऊ में विद्यमान अधिकतर इमारतों की बनावट किसी भी एक शैली की नहीं है, हर इमारत को बनाने में दो या दो से अधिक वास्तुशैली का प्रयोग किया गया है ! रूमी दरवाजे के ऊपरी भाग में बनी छतरियों तक जाने के लिए रास्ता भी बना है लेकिन वर्तमान में यहाँ ऊपरी भाग में लोगों की आवाजाही पर रोक है ! रूमी दरवाजे के दोनों तरफ तीन मंज़िला हवादार परकोटा बना है जिसके सिरों पर आठ पहलू वाले बुर्ज बने हुए है ! इस दरवाजे की सजावट भी बहुत निराली है जिसमें हिंदू-मुस्लिम वास्तुकला का मिश्रण देखने को मिलता है ! रूमी दरवाजे की आकृति शंखाकार है जिसकी मेहराबें कमान की तरह झुकी है ! पूर्व की ओर से देखने पर ये पॅंच-महल सा प्रतीत होता है, शहर का काफ़ी यातायात प्रतिदिन इस दरवाजे से होकर गुज़रता है ! 

way to rumi darwaja
रूमी दरवाजा जाने का मार्ग (Way to Rumi Darwaja)
rumi darwaja of lucknow
दूर से दिखाई देता रूमी दरवाजा
रूमी दरवाजे का एक और दृश्य
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सामने से दिखाई देता रूमी दरवाजा (Front view of Rumi Darwaja)
सामने से दिखाई देता रूमी दरवाजा


हुसैनाबाद घंटाघर


रूमी दरवाजे से निकलकर छोटा इमामबाड़ा जाने वाले मार्ग पर आगे बढ़ने पर आपके दाईं ओर एक घंटाघर दिखाई देता है ! ये हुसैनाबाद घंटाघर (क्लॉक टावर) है , इस घंटा घर से लगी हुई ही एक पिक्चर गैलरी भी है ! हुसैनाबाद घंटाघर का निर्माण नवाब नसीर-उद्-दीन ने अवध के पहले संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉर्ज कूपर के स्वागत में सन 1881 में करवाया था ! इस घंटाघर को रोस्केल पायने ने डिज़ाइन किया था और इसे बनाने में कुल 1.75 लाख रुपए की लागत आई थी ! इस घंटाघर की ऊँचाई 67 मीटर है और भारत का सबसे ऊँचा घंटाघर होने के साथ ही इसे देश की सबसे ऊँची इमारतों में भी गिना जाता है ! इसे लंदन के बिगबेन क्लॉक टावर की नकल करके बनाया गया है ! घंटाघर में लगी घड़ी की सूइयों को बनाने में तोपधातु (Gunmetal) का प्रयोग किया गया है, इसके पेंडुलम की मोटाई 1.5 इंच और लंबाई 14 फीट है ! 

इस घंटाघर को ब्रिटिश वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूनों में शुमार किया जाता है ! घंटाघर के चारों ओर खूब हरियाली और एक खुला मैदान है, वर्तमान में ये मैदान बच्चो के खेलने-कूदने के काम आता है ! वर्गाकार आकार का ये घंटाघर लाल रंग की ईंटों से बना है और इसकी चारों ओर की दीवारों पर फूल के आकार की घड़ियाँ लगी है ! इन घड़ियों के पुर्जों को लंदन के लुईगेट हिल से लाया गया था ! रूमी दरवाजे से निकलकर मुख्य मार्ग पर जाते हुए आज भी जब इस घंटाघर पर नज़र पड़ती है तो ये चुपचाप खड़ा अपने दौर की कहानी बयान करता है ! घंटाघर से थोड़ा और आगे बढ़ने पर सड़क के दाईं ओर ही एक अर्धनिर्मित इमारत है, नाम है सतखंडा ! 

hussainabad clock tower
हुसैनाबाद घंटाघर (Hussainabad Clock Tower)
clock tower in lucknow
घंटाघर का एक और दृश्य (Another view of Clock Tower)
थोड़ा ज़ूम करके देखते है

clock tower
घंटाघर पर लगी घड़ी (Clock on Tower)

सतखंडा

सतखंडा का अर्थ होता है सात मंज़िला ! हालाँकि, इस इमारत की केवल चार मंजिले ही है लेकिन फिर भी इसका नाम सतखंडा ! छोटे इमामबाड़े के सामने स्थित इस इमारत का निर्माण अवध के नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1837 से 1842 के बीच करवाया था ! मोहम्मद अली शाह की मृत्यु से पहले तक इस इमारत की सिर्फ़ 4 मंजिले ही बन पाई थी ! नवाब की मृत्यु के बाद इस इमारत का निर्माण कार्य बीच में ही रुक गया, जो आगे कभी पूरा नहीं हो सका और ये इमारत अधूरी ही रह गई ! दरअसल, अवध के नवाब यहाँ सात नहीं बल्कि नौ मंज़िला इमारत बनाना चाहते थे जिसका नाम नौखंड होता ! नवाब चाहते थे कि ये इमारत दिल्ली के क़ुतुब मीनार की तरह ऊँची हो और पीसा की झुकी मीनार की तरह इसे भी ख्याति प्राप्त हो ! 

लखनऊ का नवाब बनने के बाद मोहम्मद अली शाह ने इस भवन का निर्माण कार्य शुरू भी करवा दिया ! उनके शासनकाल में इस इमारत की 4 मंजिले ही बन पाई, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद इस इमारत का निर्माण कार्य ठप्प हो गया ! वैसे इस इमारत को बनाने के पीछे नवाब का एक उद्देशय ये भी था कि इस इमारत से वो पूरे शहर का नज़ारा देख सके ! इस इमारत की बनावट पीसा की मीनार से काफ़ी प्रभावित है जो सतखंडा के वास्तुकला में भी साफ झलकता है ! ये इमारत वास्तुकला की दृष्टि से यूनानी और मुस्लिम शैली का मिश्रण है, इमारत की रूपरेखा यूनानी शैली को प्रदर्शित करती है जबकि दरवाज़ों और खिड़कियों की मेहराबें मुस्लिम शैली को दर्शाती है ! 

भूमितल पर बने आठ कोने वाले भवन की ऊँचाई 10 फीट है जबकि इस इमारत की कुल ऊँचाई 35 फीट है ! इस इमारत की हर मंज़िल की ऊँचाई और चौड़ाई इसके नीचे वाली मंज़िल के अनुपात में कम रखी गई थी ! सतखंडा के सबसे ऊँचे वाले भाग से आस-पास की जगहों को आसानी से देखा जा सकता है ! कुछ लोगों का ये भी मानना है कि इस इमारत का निर्माण ईद के समय चाँद को देखने के लिए किया गया था ! इमारत का निर्माण कार्य पूरा हो जाने पर शाही परिवार की औरतें इस इमारत से ईद के चाँद का दीदार किया करती ! अब पता नहीं इस बात में कितनी सच्चाई है, जिस समय मैं लखनऊ भ्रमण पर था और सतखंडा के सामने से निकला तो इसकी मरम्मत का कार्य चल रहा था ! वैसे अगर ये इमारत पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई होती तो काफ़ी शानदार दिखाई देती !

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सतखंडा का एक दृश्य (A glimpse of Satkhanda)
छोटे इमामबाड़ा से पुराने लखनऊ जाते हुए
क्यों जाएँ (Why to go Lucknow): वैसे नवाबों का शहर लखनऊ किसी पहचान का मोहताज नहीं है, इस शहर के बारे में वैसे तो आपने भी सुन ही रखा होगा ! अगर आप प्राचीन इमारतें जैसे इमामबाड़े, भूल-भुलैया, अंबेडकर पार्क, या फिर जनेश्वर मिश्र पार्क घूमने के साथ-2 लखनवी टुंडे कबाब और अन्य शाही व्यंजनों का स्वाद लेना चाहते है तो बेझिझक लखनऊ चले आइए !

कब जाएँ (Best time to go Lucknow
): आप साल के किसी भी महीने में लखनऊ जा सकते है ! गर्मियों के महीनों यहाँ भी खूब गर्मी पड़ती है जबकि दिसंबर-जनवरी के महीने में यहाँ बढ़िया ठंड रहती है !

कैसे जाएँ (How to reach Lucknow): 
दिल्ली से लखनऊ जाने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन भारतीय रेल है दिल्ली से दिनभर लखनऊ के लिए ट्रेनें चलती रहती है किसी भी रात्रि ट्रेन से 8-9 घंटे का सफ़र करके आप प्रात: आराम से लखनऊ पहुँच सकते है ! दिल्ली से लखनऊ जाने का सड़क मार्ग भी शानदार बना है 550 किलोमीटर की इस दूरी को तय करने में भी आपको 7-8 घंटे का समय लग जाएगा !

कहाँ रुके (Where to stay in Lucknow): लखनऊ एक पर्यटन स्थल है इसलिए यहाँ रुकने के लिए होटलों की कमी नहीं है आप अपनी सुविधा के अनुसार चारबाग रेलवे स्टेशन के आस-पास या शहर के अन्य इलाक़ों में स्थित किसी भी होटक में रुक सकते है ! आपको 500 रुपए से शुरू होकर 4000 रुपए तक के होटल मिल जाएँगे !


क्या देखें (Places to see in Lucknow
): लखनऊ में घूमने के लिए बहुत जगहें है जिनमें से छोटा इमामबाड़ा, बड़ा इमामबाड़ा, भूल-भुलैया, आसिफी मस्जिद, शाही बावली, रूमी दरवाजा, हुसैनबाद क्लॉक टॉवर, रेजीडेंसी, कौड़िया घाट, शादत अली ख़ान का मकबरा, अंबेडकर पार्क, जनेश्वर मिश्र पार्क, कुकरेल वन और अमीनाबाद प्रमुख है ! इसके अलावा भी लखनऊ में घूमने की बहुत जगहें है 2-3 दिन में आप इन सभी जगहों को देख सकते है !

क्या खरीदे (Things to buy from Lucknow): लखनऊ घूमने आए है तो यादगार के तौर पर भी कुछ ना कुछ ले जाने का मन होगा ! खरीददारी के लिए भी लखनऊ एक बढ़िया शहर है लखनवी कुर्ते और सूट अपने चिकन वर्क के लिए दुनिया भर में मशहूर है ! खाने-पीने के लिए आप अमीनाबाद बाज़ार का रुख़ कर सकते है, यहाँ के टुंडे कबाब का स्वाद आपको ज़िंदगी भर याद रहेगा ! लखनऊ की गुलाब रेवड़ी भी काफ़ी प्रसिद्ध है, रेलवे स्टेशन के बाहर दुकानों पर ये आसानी से मिल जाएगी !

अगले भाग में जारी...

लखनऊ यात्रा
  1. लखनऊ की ट्रेन यात्रा (Train Journey to Lucknow)
  2. लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा और भूल-भुलैया (A visit to Bada Imambada and Bhool Bhullaiya)
  3. लखनऊ की शानदार शाही बावली और छोटा इमामबाड़ा (A visit to Shahi Baoli and Chota Imambara)
  4. खूबसूरत रूमी दरवाजा और हुसैनाबाद क्लॉक टावर (History of Rumi Darwaja and Husainabad Clock Tower)
  5. लखनऊ की रेजीडेंसी में बिताई एक शाम (An Evening in the Residency, Lucknow)
  6. गोमती नदी के कुड़ीया घाट की सैर (Kudiya Ghaat of Gomti River, Lucknow)
  7. लखनऊ के अलीगंज का प्राचीन हनुमान मंदिर (Ancient Temple of Lord Hanuman in Aliganj, Lucknow)
  8. नवाब शादत अली ख़ान और बेगम मुर्शीदज़ादी का मकबरा (Tomb of Saadat Ali Khan and Begam Murshid Zadi)
  9. लखनऊ का खूबसूरत जनेश्वर मिश्र पार्क (The Beauty of Janeshwar Mishr Park, Lucknow)
  10. लखनऊ का अंबेडकर पार्क - सामाजिक परिवर्तन स्थल (A Visit to Ambedkar Park, Lucknow)
  11. लखनऊ का कुकरैल वन - घड़ियाल पुनर्वास केंद्र (Kukrail Reserve Forest – A Picnic Spot in Lucknow)
Pradeep Chauhan

घूमने का शौक आख़िर किसे नहीं होता, अक्सर लोग छुट्टियाँ मिलते ही कहीं ना कहीं घूमने जाने का विचार बनाने लगते है ! पर कुछ लोग समय के अभाव में तो कुछ लोग जानकारी के अभाव में बहुत सी अनछूई जगहें देखने से वंचित रह जाते है ! एक बार घूमते हुए ऐसे ही मन में विचार आया कि क्यूँ ना मैं अपने यात्रा अनुभव लोगों से साझा करूँ ! बस उसी दिन से अपने यात्रा विवरण को शब्दों के माध्यम से सहेजने में लगा हूँ ! घूमने जाने की इच्छा तो हमेशा रहती है, इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी से जैसे भी बन पड़ता है थोड़ा समय निकाल कर कहीं घूमने चला जाता हूँ ! फिलहाल मैं गुड़गाँव में एक निजी कंपनी में कार्यरत हूँ !

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