एक रविवार सुबह अपनी मोटरसाइकल उठाई और अकेला ही मथुरा घूमने के लिए चल दिया ! दरअसल, शनिवार को एक दो मित्रों से इस यात्रा पर साथ चलने के लिए पूछा भी था पर कोई भी साथ चलने के लिए सहमत नहीं हुआ इसलिए मैने किसी पर ज़्यादा ज़ोर भी नहीं दिया ! सुबह 8 बजे जब घर से निकला तो हल्की-2 धूप थी, आधा नवंबर बीत जाने के कारण मौसम में हल्की-2 ठंडक हो गई थी, फिर भी उतनी ठंड नही थी जितनी होनी चाहिए ! अपने शहर से बाहर निकलकर जैसे ही खाली सड़क मिली, तो मोटरसाइकल की रफ़्तार अपने आप बढ़ने लगी ! वैसे तो पूरे रास्ते मैने 65 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार बनाए रखी, फिर भी जहाँ कहीं भी बहुत अच्छी सड़क मिल जाती, तो रफ़्तार की सुई 70 को भी छू ले रही थी ! पलवल से मथुरा जाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 2 है जिसका अभी विस्तारीकरण चल रहा है, आने वाले समय मैं ये 4 लाइन का राजमार्ग बढ़कर 6 लाइन का बन जाएगा ! पलवल से मथुरा तक विस्तारीकरण का अधिकतर काम तो पूरा हो गया है, बीच-2 में कुछ ऊपरगामी पुल है जो निर्माणाधीन है !
इसके अलावा इस मार्ग पर पड़ने वाले गाँवों और कस्बों के मुख्य चौराहों पर भी अभी काम बाकी है ! इस समय इस मार्ग की हालत पहले से काफ़ी बेहतर हो गई है, इस मार्ग पर मैं काफ़ी समय से यात्रा कर रहा हूँ, इसलिए इसकी स्थिति का आकलन अच्छे से कर सकता हूँ ! वैसे सड़क निर्माण का कार्य चल रहा है तो जाम लगना भी आम बात है ! रास्ते में एक जगह रुककर मोटरसाइकल में पेट्रोल डलवाया और अपना आगे का सफ़र जारी रखा ! साढ़े आठ बजे के आस-पास होड़ल पार हो गया और अगले पंद्रह मिनट में कोसी भी ! जिस रफ़्तार से मैं चल रहा था छाता आने में भी ज़्यादा समय नहीं लगा, और सवा नौ बजे छाता भी पार हो गया ! जब एक रफ़्तार से लगातार मोटरसाइकल या गाड़ी चल रही हो और किसी वजह से ब्रेक लगाना पड़े या रफ़्तार धीमी करनी पड़े तो बहुत बुरा लगता है ! ऐसी स्थिति में आपकी ले बिगड़ जाती है और दोबारा से वही लय पाने में थोड़ा समय भी लगता है ! रास्ते में कुछ चौराहों पर थोड़ा-बहुत जाम भी मिला, जो स्वाभाविक था, थोड़ी देर बाद जैसे ही छटीकरा चौराहे पर पहुँचा, सड़क के बाईं ओर एक सहायक मार्ग पर हो लिया !
प्रवेश द्वार से दिखाई देता प्रेम मंदिर (A view of Prem Mandir) |
ये मार्ग छटीकरा होते हुए वृंदावन को जाता है, इस मार्ग पर जाते हुए सड़क के दोनों ओर कई मंदिर है ! आधा किलोमीटर चलने के बाद सड़क के दाईं ओर माँ वैष्णो देवी का एक मंदिर है, यहाँ माँ शेरावाली की एक विशाल प्रतिमा भी बनी है जो मुख्य मार्ग से भी दिखाई देती है ! पूरे दिन खुले रहने के बावजूद भी इस मंदिर में हमेशा भीड़ लगी रहती है, मैं इस मंदिर को छोटा वैष्णो देवी मंदिर बोलता हूँ, बड़ा तो जम्मू में है ! इस मंदिर का भी हिंदू धर्म में काफ़ी महत्व है और नवरात्रों में यहाँ भीड़ बहुत बढ़ जाती है ! देश विदेश से यात्री यहाँ माता के दर्शन के लिए आते है, इस मंदिर के बारे में विस्तार से किसी दूसरे लेख में बताया जाएगा, फिलहाल अपनी आगे की यात्रा पर चलते है ! इसी मार्ग पर 4 किलोमीटर चलने के बाद सड़क के बाईं ओर दूधिया सफेदी लिए संगमरमर की बढ़िया नक्काशी से बना एक मंदिर है, प्रेम मंदिर ! ये मंदिर अपनी खूबसूरत कारीगरी के लिए जाना जाता है, मंदिर के सामने पहुँचकर मैने अपनी घड़ी में समय देखा तो पौने दस बजने वाले थे ! इस समय मेरे पास दो विकल्प थे या तो मैं पहले रंगजी मंदिर घूम आता और फिर प्रेम मंदिर देखता और दूसरा पहले प्रेम मंदिर देख लेता और रंगजी मंदिर दोपहर बाद देख लेता !
प्रेम मंदिर सुबह साढ़े पाँच बजे खुलकर साढ़े छ्ह बजे बंद हो जाता है और फिर सुबह साढ़े आठ बजे से पौने बारह बजे तक खुला रहता है ! शाम को भी ये साढ़े चार बजे खुलकर साढ़े पाँच बजे बंद हो जाता है, फिर सायँ सात बजे से रात साढ़े आठ बजे तक खुला रहता है ! मुझे दूसरा विकल्प ज़्यादा अच्छा लगा क्योंकि प्रेम मंदिर देखने के बाद वृंदावन में देखने के लिए कई विकल्प थे, पर अगर प्रेम मंदिर शाम को देखता तो यहाँ से वापसी करने में काफ़ी देर हो जाती ! दरअसल, मथुरा के मंदिरों के खुलने का समय लगभग एक जैसा है, एक ही समय पर सब खुलते है और एक ही समय पर बंद होते है ! इसलिए एक योजना के तहत ही इन्हें एक दिन में घूमा जा सकता है ! वैसे, प्रेम मंदिर के बारे में तो आप लोगों ने सुन ही रखा होगा, और सुन ही क्या अधिकतर लोग तो वहाँ जा भी चुके होंगे ! मैं भी यहाँ आने के लिए काफ़ी समय से सोच रहा था पर हर बार किसी ना किसी वजह से मथुरा जाने के बावजूद भी प्रेम मंदिर के दर्शन नहीं हो पाए थे !
आगे बढ़ने से पहले कुछ जानकारी इस मंदिर के बारे में दे देता हूँ, इस मंदिर की स्थापना कृपालु जी महाराज द्वारा करवाई गई है ! 54 एकड़ में फैले इस मंदिर का निर्माण जनवरी 2001 में शुरू हुआ था और अगले 11 सालों की कठिन मेहनत के बाद यानि फ़रवरी 2012 में ये मंदिर बनकर तैयार हुआ ! 150 करोड़ रुपए की लागत से बना ये भव्य मंदिर भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है, संगमरमर से बने इस मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है ! यही कारण है कि हर वर्ष लाखों लोग इस मंदिर के दर्शन के लिए देश-विदेश से आते है, मंदिर परिसर में एक विशाल हाल बना हुआ है जिसमें एक साथ 25000 लोगों के बैठने की व्यवस्था है ! मुख्य द्वार से प्रवेश करने पर मार्ग के दोनों ओर बगीचे बने है जिसमें तरह-2 के फूल लगे है ! बाईं ओर के बगीचे को पार करके वापिस आने का मार्ग है और उस से परे भगवान श्री कृष्ण की कालिया नाग के फन पर नाचते हुए लीला दिखाई गई है ! प्रेम मंदिर के सामने गाड़ी खड़ी करने के लिए पार्किंग की व्यवस्था भी है, पार्किंग निजी लोगों के पास है जिसका ये लोग भरपूर फ़ायदा उठाते है और मनमानी रकम वसूलते है ! एक पार्किंग में अपनी मोटरसाइकल खड़ी करके मैने मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश किया !
मैने प्रवेश मार्ग से आगे बढ़ना जारी रखा, इसी बीच जहाँ कोई सुंदर दृश्य बन पड़ता उसे मैं अपने कैमरे में क़ैद कर लेता ! आगे जाने पर ये मार्ग दाईं ओर मुड़कर भवन के प्रवेश द्वार तक जाता है ! मंदिर में प्रवेश करने से पहले ही दाईं ओर एक कोने में जूते-चप्पल रखने की निशुल्क व्यवस्था है ! मुख्य भवन के प्रवेश द्वार के सामने गोवर्धन पर्वत उठाते हुए भगवान श्री कृष्ण को दिखाया गया है, इसके अलावा भी पूरे मंदिर में दीवारों के साथ-2 भगवान कृष्ण की लीलाओं को चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है ! कहीं-2 बनाए गए चित्र तो इतने जीवंत लगते है जैसे अभी बोल पड़ेंगे ! सीढ़ियों से होकर ऊपर जाने पर मुख्य भवन के चारों ओर चबूतरा बना है इस चबूतरे से होते हुए आपको भवन के प्रवेश द्वार तक जाना होता है, लोग इस चबूतरे पर चलकर मंदिर की परिक्रमा भी लगाते है ! भवन के बाहरी हिस्से की दीवारों पर भी भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप से लेकर युवावस्था तक की सभी लीलाओं को दर्शाया गया है !
मुख्य भवन के अंदर जाने पर एक शानदार दृश्य दिखाई देता है, यहाँ की साजो-सज्जा देख कर आँखें चौंधिया जाती है ! मुख्य भवन में मोबाइल या कैमरा ले जाने पर मनाही तो नहीं है पर फोटो खींचने या वीडियो बनाने पर मनाही ज़रूर है, पहले शायद फोटो खींचने पर मनाही नहीं थी ! लेकिन मैने फिर भी कुछ लोगों को मोबाइल चालू करके यहाँ की रिकॉर्डिंग करते हुए देखा, हालाँकि मैने अंदर के फोटो नहीं लिए ! भवन की भीतरी दीवारों पर कृपालु महाराज सहित कुछ अन्य महापुरुषों के जीवन को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है ! इन चित्रों में ये लोग कहीं ज्ञान बाँट रहे है तो कहीं प्रभु भक्ति में लीन दिखाए गए है ! मुख्य भवन के अंदर बने हाल में लोगों के बैठने की व्यवस्था भी है, हाल की छत पर एक बहुत बड़ा झूमर लगा है जो रंग-बिरंगी रोशनी में बहुत शानदार लगता है ! संगमरमर से बना होने के कारण रोशनी के प्रभाव से मंदिर का रंग भी रोशनी के अनुसार ही बदलता रहता है, हर 6-7 सेकेंड में प्रकाश का रंग बदलता रहता है !
मुख्य भवन में भूमितल पर राधा-कृष्ण जी की बहुत सुंदर प्रतिमा लगी है जो सदैव प्रकाशमान रहती है, दर्शन के दौरान कभी-2 यहाँ बहुत भीड़ हो जाती है पर लोग अपने आप ही आगे बढ़ते रहते है ताकि सबको दर्शन हो सके ! हाल में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-2 बैठने की व्यवस्था है ! भूमितल पर दर्शन करने के बाद सभी लोग प्रथम तल की ओर चल दिए ! सीढ़ियों से होते हुए प्रथम तल पर पहुँचते ही सामने कृपालु महाराज की साधना करते हुए एक प्रतिमा लगी है जो जीवंत सी प्रतीत होती है, इसके अलावा यहाँ भी दीवारों पर महापुरुषों के चित्र उकेरे गए है ! इन चित्रों को देखते हुए आगे बढ़ने पर मैं भगवान राम-सीता जी की प्रतिमा के सामने पहुँच गया, ये प्रतिमा भी बहुत सुंदर दिखती है और नीचे वाली प्रतिमा की तरह ये भी सदैव प्रकाशमान रहती है !
ध्यान लगाने के लिए यहाँ प्रथम तल पर भी लोगों के बैठने की व्यवस्था है, जिस समय मैं यहाँ पहुँचा कुछ भक्तजन यहीं बैठकर प्रभु भक्ति में लीन थे ! प्रथम तल पर दर्शन करने के बाद में नीचे आ गया और मुख्य भवन से बाहर की ओर चल दिया ! मुख्य भवन की परिक्रमा लगाते हुए मैं भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं को देखने लगा, फिर चाहे वो माखन चोरी करने की हो, पूतना वध की हो, गायों को चराने की हो या कन्स वध की ! प्रभु की सभी लीलाओं को बड़े अच्छे से मुख्य भवन की बाहरी दीवारों पर दिखाया गया है ! जब मंदिर का चक्कर लगा लिया तो थोड़ी देर के लिए चबूतरे पर ही खाली जगह देख कर आराम करने के लिए बैठ गया ! वैसे मंदिर के अंदर और बाहर घूमने के बाद पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगा कि मंदिर का आंतरिक भाग भगवान को कम और कृपालु जी महाराज को ज़्यादा समर्पित है ! इसकी मुख्य वजह आंतरिक भाग में भगवान की गिनी-चुनी दो मूर्तियों का होना है ! इन दो मूर्तियों को छोड़ दे तो कृपालु महाराज के अलावा अन्य कुछ दिखाई नहीं देता !
खैर, ये मेरी निजी धारणा है कोई इसे अन्यथा ना ले, हो सकता है मुझे ऐसा लगा हो पर वास्तव में ऐसा ना हो ! आख़िर कुछ तो सोच-समझ कर ही मुख्य भवन के आंतरिक भाग में लगाने के लिए चित्रों का चयन किया गया होगा ! मुख्य भवन के अंदर-बाहर का अच्छे से अवलोकन करने के बाद काफ़ी देर तक चबूतरे पर ही बैठा रहा, यहाँ से मंदिर के उत्तरी भाग वाला बगीचा दिखाई दे रहा था जहाँ कुछ लोग बाग़बानी में लगे हुए थे ! मैने सोचा बाहर निकलने से पहले इस बगीचे को भी पास से चलकर देखना चाहिए, ये सोचकर मैं चबूतरे से नीचे उतर आया ! चबूतरे से नीचे उतरते हुए चबूतरे पर ही दोनों ओर बहुत सुंदर आकृतियाँ बनाई गई है जबकि सीढ़ियों के पास हाथियों के चित्र बने है ! चबूतरे से नीचे आकर मैं मंदिर के चारों ओर बने पक्के मार्ग पर चल दिया, इस मार्ग के एक ओर तो मुख्य भवन है जबकि दूसरी ओर वो बगीचा, जिसमें बहुत ही सुंदर फूल लगे है !
लोग बगीचे में ना जाएँ इसलिए रेलिंग भी लगी है और कुछ सुरक्षाकर्मी भी यहाँ खड़े रहते है जो समय-2 पर लोगों की अंदर ना जाने की हिदायत देते रहते है ! बगीचे में ही जीव-जंतुओं की भी कई आकृतियाँ बनी हुई है जो यहाँ आने वालों को अपनी ओर आकर्षित करती है और लोग भी यहाँ आपको फोटो खींचते-खिंचवाते दिख जाएँगे ! मैं भी काफ़ी देर तक मंदिर के चारों ओर बनी इन आकृतियों को अपने कैमरे की नज़र से देखता रहा और फिर बाहर जाने वाले मार्ग पर चल दिया ! मंदिर से बाहर निकलकर घड़ी में समय देखा तो साढ़े ग्यारह बजने वाले थे, रंगजी मंदिर तो इस समय तक बंद हो गया होगा ! फिर मेरा अगला पड़ाव कहाँ होगा, यही विचार मन में चलने लगा ! पार्किंग में जाकर अपनी मोटरसाइकल उठाई और मैं जयपुर मंदिर की ओर चल दिया, मेरी जानकारी के मुताबिक ये मंदिर अभी तक खुल रहा होगा !
मंदिर प्रांगण में बनी कुछ प्रतिमाएँ (Idols of Lord Krishna) |
मंदिर प्रांगण में बनी कुछ प्रतिमाएँ |
गोवर्धन पर्वत उठाते भगवान श्री कृष्ण (A view of Goverdhan Parvat) |
भवन का मुख्य प्रवेश द्वार (Entrance of Prem Mandir) |
भवन में जाने के लिए बनी सीढ़ियाँ |
चबूतरे पर बनी कुछ सुंदर आकृतियाँ |
मंदिर के स्तंभ पर बनाई गई आकृति |
एक मनोरम दृश्य |
जीव-जंतुओं की कुछ आकृतियाँ |
रास लीला करते हुए श्री कृष्ण (Idols of Lord Krishna) |
खूबसूरत बगुलों की आकृतियाँ |
प्रेम मंदिर का एक और दृश्य |
खूबसूरत बगुलों की आकृतियाँ |
कालिया नाग के फन पर नाचते हुए श्री कृष्ण |
क्यों जाएँ (Why to go Vrindavan): अगर आप साप्ताहिक अवकाश (Weekend) पर दिल्ली की भीड़-भाड़ से दूर धार्मिक नगरी की तलाश में है तो वृंदावन आपके लिए उपयुक्त स्थान है यहाँ भगवान कृष्ण को समर्पित इतने मंदिर है कि आप घूमते-2 थक जाओगे पर यहाँ के मंदिर ख़त्म नहीं होंगे ! वृंदावन के तो कण-2 में कृष्ण भगवान से जुड़ी यादें है, क्योंकि उनका बचपन यहीं ब्रज में ही गुजरा ! कृष्ण भक्तों के लिए इससे उत्तम स्थान पूरी दुनिया में शायद ही कहीं हो !
कब जाएँ (Best time to go Vrindavan): वृंदावन आप साल के किसी भी महीने में किसी भी दिन आ सकते है बस यहाँ के मंदिरों के खुलने और बंद होने का एक निर्धारित समय है अधिकतर मंदिर दोपहर 12 बजे के आस पास बंद हो जाते है ! फिर शाम को 5 बजे खुलते है, इसलिए जब भी वृंदावन आना हो, समय का ज़रूर ध्यान रखें !
कैसे जाएँ (How to reach Vrindavan): वृंदावन आने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन रेल मार्ग से है, मथुरा यहाँ का सबसे नज़दीकी बड़ा रेलवे स्टेशन है जो देश के अन्य शहरों से रेल मार्ग से बढ़िया से जुड़ा है ! मथुरा से वृंदावन की दूरी महज 15 किलोमीटर है, रेलवे स्टेशन के बाहर से वृंदावन आने के लिए आपको तमाम साधन मिल जाएँगे ! अगर आप दिल्ली से सड़क मार्ग से वृंदावन आना चाहे तो यमुना एक्सप्रेस वे से होते हुए आ सकते है ! दिल्ली से वृंदावन की कुल दूरी 185 किलोमीटर है जिसे तय करने में आपको ढाई से तीन घंटे का समय लगेगा !
कहाँ रुके (Where to stay in Vrindavan): वृंदावन एक प्रसिद्ध धार्मिक शहर है यहाँ रोजाना दर्शन के लिए हज़ारों यात्री आते है ! लोगों के रुकने के लिए यहाँ तमाम धर्मशालाएँ और होटल है ! आप अपनी सहूलियत के हिसाब से 500 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक के होटल ले सकते है !
कहाँ खाएँ (Eating option in Vrindavan): वृंदावन में अच्छा ख़ासा बाज़ार है जहाँ आपको खाने-पीने के तमाम विकल्प मिल जाएँगे ! मथुरा के पेड़े तो दुनिया भर में मशहूर है अगर आप वृंदावन आ रहे है तो यहाँ के पेड़ों के अलावा कचोरियों का स्वाद भी ज़रूर चखें !
क्या देखें (Places to see in Vrindavan): ये तो मैं आपको बता ही चुका हूँ कि वृंदावन भगवान कृष्ण की नगरी है यहाँ घूमने के लिए अनगिनत मंदिर है ! फिर भी कुछ मंदिर है जो यहाँ आने वाले लोगों में ख़ासे लोकप्रिय है जिनमें से कुछ है बांके बिहारी मंदिर, प्रेम मंदिर, बिरला मंदिर, जयपुर मंदिर, कृष्ण जन्मभूमि, माँ वैष्णो देवी मंदिर, रंगनाथ मंदिर और गोविंद देव मंदिर !
अगले भाग में जारी...
वृंदावन यात्रा
- वृंदावन के प्रेम मंदिर में बिताए कुछ पल (An Hour Spent in Prem Mandir, Vrindavan)
- वृंदावन के जयपुर मंदिर की एक झलक (A View of Jaipur Temple in Vrindavan)
- वृंदावन का खूबसूरत बिरला मंदिर (Birla Temple of Vrindavan)
- श्रीकृष्ण जन्मभूमि और द्वारकाधीश मंदिर (Shri Krishna Janmbhoomi and Dwarkadheesh Temple, Mathura)
- वृंदावन का पागल बाबा मंदिर (Pagal Baba Temple of Vrindavan)
- भगवान विष्णु को समर्पित रंगनाथ मंदिर (A Temple Dedicated to Lord Vishnu)
- हिंदू-मुस्लिम शिल्पकला का प्रतीक - गोविंद देव मंदिर (Beauty of Govind Dev Temple, Vrindavan)
- माँ वैष्णो देवी धाम – वृंदावन (Maa Vaishno Devi Temple, Vrindavan)
प्रदीप भाई, मुझे भी ऐसा ही लगा था |पर फिर भी ख़ूबसूरती देखने लायक है |बहुत मेहनत की गयी है तराशने में |
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने रूपेश भाई, खूबसूरती तो देखने लायक ही है !
Deleteसुन्दर तस्वीरें।
ReplyDeleteDhanyvaad Sachin Bhai...
Deleteप्रदीप जी आपने बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है वृन्दावन के प्रेम मंदिर का। घर बैठे ही प्रेम मंदिर का पूरा दर्शन करा दिया आपने आप अपने ऐसे ही पावन पल को हिंदी में बहुत ही आसान तरीके से शब्दनगरी पर भी लिख सकते हैं वहां पर भी मंदिर में इसलिए घंटिया लगाई जाती है |
ReplyDeleteजैसी रचनाएं पढ़ व लिख सकते हैं ।
Ji Dhanyvaad
Deleteआपका बहुत बहुत आभार और धन्यवाद
ReplyDeleteधन्यवाद जी
DeleteNice bblog post
ReplyDeleteVery nice blog yyou have here
ReplyDelete