शनिवार, 16 सितम्बर 2017
इस यात्रा वृतांत को शुरू से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें !
यात्रा के पिछले लेख में आपने खाटूश्याम के बारे में पढ़ा, दर्शन करने के बाद हम खा-पीकर यहाँ से चले तो कुछ ही देर में मुख्य मार्ग को जोड़ने वाले तिराहे पर पहुँच गए ! रात को हम दाईं तरफ से आए थे और अब हमें बाईं ओर मुड़ना था, वैसे रास्ता इतना भी मुश्किल नहीं था लेकिन रात को अँधेरा होने की वजह से धर्मशाला ढूँढने में हमें थोड़ी परेशानी हुई थी ! अब यहाँ से सालासर जाते हुए हम रास्ते में पड़ने वाली अन्य जगहों के अलावा रेवासा झील भी देखना चाहते थे जो खाटूश्याम से मात्र 29 किलोमीटर दूर है हालांकि, ये झील मुख्य मार्ग से थोडा हटकर है ! झील के पास ही जीण माता का प्रसिद्द मंदिर भी है, गूगल मैप का सहारा लेकर हम इस झील की ओर जाने वाले मार्ग पर चल दिए ! खाटू से निकलकर हम रींगस मार्ग पर चल रहे थे, थोड़ी दूर जाने पर मुख्य मार्ग से एक रास्ता अलग हो रहा था, हम एक चरवाहे से पूछकर मुख्य मार्ग पर ही चलते रहे ! थोड़ी आगे बढ़ने पर सड़क के किनारे एक मंदिर दिखाई दिया, मंदिर की बाहरी दीवार इतनी ऊंची थी कि मुख्य ईमारत का कुछ अता-पता नहीं चल रहा था, बाहर से देखने पर मंदिर भी कुछ ख़ास नहीं लग रहा था लेकिन फिर भी जाने क्यों हम सबकी इच्छा इस मंदिर में जाने की हुई !
ये एक रिहायशी क्षेत्र था, मुख्य मार्ग पर चलते हुए इक्का-दुक्का लोग भी दिखाई दे रहे थे, मंदिर के सामने एक बड़ा बरगद का पेड़ था और बाईं तरफ एक खुला मैदान था जहाँ पहले से ही 2 गाड़ियाँ खड़ी थी ! हम भी इसी पार्किंग स्थल में अपनी गाडी खड़ी करके दर्शन के लिए उतरे, मुख्य प्रवेश द्वार से होते हुए हम एक बरामदे में पहुंचे, यहाँ से एक अन्य द्वार मुख्य भवन के लिए जाता है, मंदिर के इस प्रवेश द्वार के ऊपरी भाग में कुछ आकृतियाँ बनी हुई थी ! बरामदे को पार करते हुए हम मंदिर के भीतरी भाग में पहुंचे, इस द्वार को पार करते ही यहाँ का नज़ारा ही बदल जाता है, बाहर से देखने पर मंदिर की भव्यता का अंदाजा ही नहीं होता लेकिन अन्दर जाने पर ये मंदिर वाकई बहुत सुन्दर है ! जिस समय हम यहाँ पहुंचे, मंदिर खाली ही था, 2-3 लोग दर्शन करके वापिस आ रहे थे ! मंदिर की मुख्य ईमारत एक किनारे थी जबकि मुख्य भवन के सामने एक खुला आँगन था, सीढ़ियों से होते हुए हम मुख्य भवन में पहुंचे जहाँ राम-सीता की मूर्ति लगी हुई थी ! इन मूर्तियों पर लगे नीले रंग के मोती अपनी चमक से मूर्तियों की शोभा में चार चाँद लगा रहे थे ! जिस चबूतरे पर खड़े होकर हम प्रार्थना कर रहे थे वहां दरी बिछाई गई थी, मुख्य भवन की सजावट भी बहुत अच्छे से की गई थी ! यहाँ कोई शोर-शराबा नहीं था, चारों तरफ शान्ति थी, इस मंदिर में आकर हमें बड़ा सुकून मिला !
मुख्य भवन में दर्शन करने के बाद हम कुछ देर ध्यान लगाने के लिए बरामदे में ही बैठ गए, वैसे यहाँ फोटो खींचने पर कोई पाबन्दी नहीं थी लेकिन फिर भी ना जाने क्यों इस यात्रा पर ज्यादा फोटो खींचने का मन ही नहीं हुआ ! प्रार्थना करके उठे तो मंदिर परिसर में घूमने लगे, यहाँ एक गुरुकुल भी था जहाँ बच्चे बालपन में ही शिक्षा ग्रहण करने के लिए आ जाते है ! इन बच्चों में अधिकतर ब्राह्मण थे, शिक्षा के बाद ये रहते भी यहीं है, बीच-2 में इनके परिवार के सदस्य मिलने ज़रूर आ जाते है ! वैसे वर्तमान में गुरुकुल का प्रचलन ख़त्म होता जा रहा है और होस्टल का चलन जोर-शोर से चल रहा है, गुरुकुल में हमें अलग-2 आयु वर्ग के बच्चे भगवा कपड़ों में दिखाई दिए ! यहाँ से आगे बढे तो मंदिर परिसर में ही एक पुस्तकालय भी था, जहाँ अलग-2 विषयों की किताबें उपलब्ध थी कुछ किताबें बिक्री के लिए भी रखी थी ! किताबों के अलावा हाजमे और पेट से सम्बंधित विकारों के चूर्ण भी रखे थे, हमने कुछ किताबें उलट-पलट के भी देखी लेकिन जब अपने मतलब की कोई किताब नहीं दिखाई दी तो हमने यहाँ से चलने की सोची ! वापसी के लिए आगे बढ़ते इससे पहले ही एक सेवादार प्रसाद स्वरुप कचोरी ले आया, हम कचोरी का भक्षण करके गाडी में सवार हुए और फिर से झील देखने की लालसा के साथ निकल पड़े !
गूगल मैप के हिसाब से हम झील के आस-पास ही किसी मार्ग पर चल रहे थे लेकिन कभी-2 गूगल भी आपको भ्रमित कर देता है ! हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था, गूगल मैप हमें घुमा-फिरा कर झील के चारों तरफ चक्कर कटवा रहा था लेकिन हमें अभी तक झील दिखाई नहीं दे रही थी ! एक अंदाजा ये भी लगाया कि शायद झील तक गाडी ले जाने का मार्ग ना हो और हमें पैदल ही जाना पड़े ! कुछ स्थानीय लोगों से इस झील से सम्बंधित जानकारी भी लेनी चाही लेकिन अधिकतर लोगों ने इस झील का नाम ही पहली बार सुना था या शायद हम ही गलत लोगों से पूछताछ कर रहे थे ! मैंने नमक उत्पादन के लिए मशहूर इस रेवासा झील के बारे में इन्टरनेट पर ही पढ़ा था, इसलिए इस झील को देखने की इच्छा मन में थी, लेकिन शायद इस बार किस्मत में इसे देखना नहीं लिखा था ! इस झील को देखने की चाह में हम कई किलोमीटर ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर भी चले, इसी चक्कर में एक घंटे से भी अधिक का समय खराब हुआ लेकिन झील नहीं मिली ! जब स्थानीय लोगों से भी इस झील से सम्बंधित कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिली तो हमने झील देखने का विचार त्याग दिया, फिर कभी इधर आना हुआ तो इस झील को देखूंगा !
श्रीराम मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
खाटूश्याम से सालासर जाने का मार्ग |
श्रीराम मंदिर के बाहर का एक दृश्य |
मंदिर के छत का एक दृश्य |
मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
मंदिर के अन्दर का एक दृश्य |
अब हम सालासर के लिए निकल पड़े, इस बीच जब हम एक गाँव से होते हुए गुजरे तो यहाँ रास्ता संकरा था इस बीच अगर कोई गाडी सामने से आ जाती तो हमें अपनी गाडी एक तरफ रोकनी पड़ रही थी ! इस गाँव में भी जीण माता का एक मंदिर था, लेकिन ये मुख्य मंदिर नहीं था वो तो यहाँ से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है ! झील देखने के चक्कर में ही हम काफी लेट हो चुके थे खराब रास्ते पर चलते-2 मन भी खराब हो गया था इसलिए मंदिर के पास से निकलने के बावजूद भी हम इस मंदिर में नहीं गए ! अब ये लेख लिखने बैठा हूँ तो सोच रहा हूँ काश, थोड़ी चढ़ाई करके ये मंदिर भी देख ही लिया होता तो बढ़िया रहता ! खैर, अगली बार इधर का चक्कर लगा तो काश कहने की नौबत नहीं आएगी ! इस मंदिर के पास से दाएं मुड़कर कुछ दूर चलने के बाद हम जयपुर-झुंझनु राजमार्ग पर जा मिले, ये राजमार्ग सीकर होते हुए आगे लक्ष्मणगढ़ चला जाता है ! वैसे, सीकर से कई मार्ग अलग होते है, एक मार्ग नेच्वा होते हुए सालासर जाता है तो एक लक्ष्मणगढ़ होते हुए सालासर पहुँचता है ! हम इसी मार्ग पर चल रहे थे, ये शानदार राजमार्ग था, अब तक जिस मार्ग पर हम चल रहे थे उस से तो इसकी तुलना करना ही बेकार है !
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर 2 घंटे की सजा के बाद इस मार्ग पर गाडी चलाने में भरपूर मजा आ रहा था ! सीकर में हमारे साथ एक घटना घटी, चौराहे पर लगे एक दिशा सूचक बोर्ड ने हमें असमंजस में डाल दिया ! नतीजन हम बाईपास पर ना मुड़कर शहर में अन्दर चले गए, एक-दो स्थानीय लोगों से पूछताछ की तो हमें अपनी गलती का एहसास हुआ ! शहर की भीड़-भाड़ से बचने के लिए बाईपास रोड ही बढ़िया रहती है, हम वापिस आने के लिए गाडी मोड़ ही रहे थे कि सड़क के किनारे एक पेट्रोल पम्प दिखाई दिया ! गाडी में पेट्रोल ख़त्म होने को था इसलिए वापिस बाईपास रोड पर आने से पहले मैंने गाडी की टंकी फुल करवा ली ! 7-8 किलोमीटर चलने के बाद जब हम एक चौराहे पर फल लेने के लिए रुके तो अचानक मेरी नज़र पेट्रोल की टंकी पर गई, जिसका बाहरी ढक्कन खुला हुआ था ! इसे बंद करने के लिए जैसे ही लोकेश ने अपना हाथ बढाया तो पता चला कि पेट्रोल की टंकी का अन्दर वाला ढक्कन भी नहीं था ! मुझे समझते देर नहीं लगी कि पम्प कर्मी ने जल्दबाजी में ढक्कन बंद ही नहीं किया, अब ये ढक्कन या तो पम्प पर रह गया है या रास्ते में ही कहीं गिर गया है ! कसम से, बहुत गुस्सा आया, खुली पेट्रोल की टंकी लेकर हम शहर में घूम रहे थे, कुछ अनहोनी भी हो सकती थी !
अब इस अनजान शहर में ढक्कन खरीदने के लिए हम कहाँ भटकते, इसलिए हमने गाडी वापिस पेट्रोल पम्प की ओर मोड़ दी ! वापिस आते हुए एक नज़र सड़क पर दौड़ा रहे थे कि शायद कहीं ढक्कन मिल जाए और हमें वापिस ना जाना पड़े, लेकिन बात नहीं बनी ! पेट्रोल पम्प पर जाकर जब इस बाबत शिकायत की तो कोई भी कर्मी अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था ! समय बीतने के साथ मेरा गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था इस बीच मैंने पम्पकर्मियों को उनकी लापरवाही के लिए खूब डांट लगाईं ! पम्प मेनेजर भी यहाँ नहीं बैठा था, कर्मियों से पूछा तो पता चला कि वो आज छुट्टी पर है, अंत में मेनेजर को फ़ोन किया जो इस समय बैंक में किसी काम से गया था ! जब उसे इस बाबत जानकारी दी तो वो 10 मिनट के अन्दर वो यहाँ पहुँच गया, अपने कर्मचारियों की गलती के लिए माफ़ी भी मांगी और नया ढक्कन लाकर इस मामले को शांत किया ! इस घटना की वजह से हमारा काफी समय ख़राब हो गया, यहाँ से निकले तो लक्ष्मणगढ़ चौराहे पर पहुंचकर राजमार्ग को छोड़कर अपनी बाईं ओर जा रहे एक मार्ग पर मुड गए, ये मार्ग सालासर जाता है ! इस मार्ग पर दूर तक कोई आबादी नहीं थी, बीच-2 में कोई रिहायशी इलाका आ जाता तो थोडा चहल-पहल ज़रूर दिख जाती, लेकिन फिर वही सन्नाटा !
सड़क के किनारे कीकर के पेड़ थे, बीच-2 में कहीं-2 हरियाली भी दिख जाती, वैसे इस मार्ग पर मैंने कई जगह फव्वारे वाली खेती होते देखी, इससे कम पानी में ही बढ़िया खेती हो जाती है ! रिहायशी इलाका आते ही सड़कों पर गड्ढे भी बढ़ जाते क्योंकि स्थानीय लोगों ने घर का पानी सड़क पर ही छोड़ रखा था ! बीच में कुछ जगहों पर सड़क विस्तारीकरण का काम चल रहा था, इसलिए यातायात को एक ही मार्ग पर चलाया जा रहा था ! इस सड़क निर्माण क्षेत्र से थोड़ी आगे बढ़ने के बाद हम एक व्यस्त इलाके में पहुंचे, यहाँ एक तिराहा था जहाँ से एक मार्ग सुजानगढ़ के लिए भी जा रहा था ! हम एक बाज़ार में से होते हुए मंदिर के पीछे वाले इलाके में पहुंचे, यहाँ कई धर्मशालाएं थी ! हमारा विचार आज यहाँ रुकने का था इसलिए सबसे पहले अपने लिए एक होटल या धर्मशाला ढूँढना ज़रूरी था ! जैसे ही हमने अपनी गाडी एक धर्मशाला के सामने जाकर रोकी, मांगने वाली औरतों के एक झुण्ड ने हमें घेर लिया, हम इन्हें नज़रंदाज़ करते हुए अपने लिए धर्मशाला देखने चल दिए ! 2-3 धर्मशालाएं देख ली लेकिन कोई पसंद नहीं आई, इस बीच जब कोई गाडी मार्ग से गुजरती तो हमें अपनी गाडी इधर-उधर करनी पड़ जाती !
आखिरकार गाडी वहीँ पास में स्थित एक पार्किंग में खड़ी करके मैं और लोकेश धर्मशाला देखने निकल पड़े, इस बार हमें कमरा मिल गया ! गाडी से अपना सामान लेकर हम कमरे में पहुंचे और यहाँ कुछ कागजी कार्यवाही पूरी करने के बाद कमरे में रूककर कुछ देर आराम किया ! चलिए, इस लेख पर यहीं विराम लगाता हूँ सलासर में घूमने और मंदिर के दर्शन यात्रा के अगले लेख में करवाऊंगा !
क्यों जाएँ (Why to go Salasar Balaji): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर बालाजी जाकर आप निराश नहीं होंगे ! ये एक धार्मिक स्थल है, यहाँ हनुमान जी को समर्पित एक मंदिर है ! पूरी दुनिया में यहीं हमुनान जी को दाढ़ी-मूछ वाले रूप में दिखाया गया है ! यहाँ दूर-2 से लोग दर्शन के लिए आते है, यहाँ आने वाले लोगों की कतार कभी कम नहीं होती !
मंदिर के प्रवेश द्वार का एक दृश्य |
क्यों जाएँ (Why to go Salasar Balaji): अगर आपको धार्मिक स्थानों पर जाना अच्छा लगता है तो निश्चित तौर पर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित सालासर बालाजी जाकर आप निराश नहीं होंगे ! ये एक धार्मिक स्थल है, यहाँ हनुमान जी को समर्पित एक मंदिर है ! पूरी दुनिया में यहीं हमुनान जी को दाढ़ी-मूछ वाले रूप में दिखाया गया है ! यहाँ दूर-2 से लोग दर्शन के लिए आते है, यहाँ आने वाले लोगों की कतार कभी कम नहीं होती !
कब जाएँ (Best time to go Salasar Balaji): आप साल के किसी भी महीने में सालासर बालाजी जा सकते है, वैसे ज्यादा ठण्ड और ज्यादा गर्मी में ना ही जाएँ तो बेहतर होगा ! यहाँ जाने के लिए अक्तूबर-नवम्बर का समय सर्वोत्तम है !
कैसे जाएँ (How to reach Salasar Balaji): दिल्ली से सालासर बालाजी की दूरी लगभग 340 किलोमीटर है ! यहाँ जाने का सबसे बढ़िया साधन सड़क मार्ग है दिल्ली से सालासर बालाजी जाने के लिए वॉल्वो भी चलती है ! अगर आप रेल मार्ग से जाना चाहे तो सुजानगढ़ यहाँ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो मंदिर से लगभग 27 किलोमीटर दूर है ! स्टेशन से मंदिर जाने के लिए आपको कई सवारियां मिल जाएँगी !
कहाँ रुके (Where to stay near Salasar Balaji): सालासर बालाजी में रुकने के लिए मंदिर के आस-पास कई धर्मशालाएँ और होटल है, जिनका किराया भी 400 रूपए से शुरू होकर 1000 रुपए तक है ! इन धर्मशालाओं में ज़रूरत की सभी सुविधाएँ मौजूद है, आप अपनी सहूलियत के हिसाब से कहीं भी रुक सकते है !
क्या देखें (Places to see near Salasar Balaji): सालासर बालाजी राजस्थान के चुरू जिले में स्थित है यहाँ बालाजी मंदिर के अलावा देखने के लिए अन्य कई स्थल है जिसमें ताल छप्पर सेंचुरी, चुरू का किला, और कुछ अन्य मंदिर प्रमुख है !
अगले भाग में जारी...
खाटूश्याम - सालासर यात्रा
- गुडगाँव से खाटूश्याम की एक सड़क यात्रा (A Road Trip from Gurgaon to Khatu Shyam)
- खाटूश्याम – कलयुग में कृष्ण के अवतार (Khatu Shyam Temple of Rajasthan)
- खाटूश्याम से सालासर बालाजी की सड़क यात्रा (A Road Trip from Khatu Shyam to Salasar Balaji)
- सालासर बालाजी – जहाँ दाढ़ी-मूछ वाले हनुमान जी विराजमान है (Temple of Lord Hanuman in Salasar Balaji)
जय हो
ReplyDeletejai ho
Deleteशायद आप झील क्षेत्र मे ही थे झील बहुत बडे क्षेत्र मे है और पानी व नमक उत्पादन बहुत छोटे क्षेत्र तक सीमित है
ReplyDeleteलेकिन झील का तो कहीं नामो-निशान नहीं था, हाँ, आस-पास रिहायशी इलाका ज़रूर था ! मेरी बड़ी इच्छा थी इस झील को देखने की !
Delete